मालेगांव धमाका केस: प्रज्ञा ठाकुर का सनसनीखेज दावा, किसने रची साजिश?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, मालेगांव धमाका मामले में आरोपी और वर्तमान सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। उन्होंने कहा है कि उन्हें इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत का नाम लेने के लिए ” torture ” (यातना) दी गई थी। यह बयान इस बहुचर्चित और संवेदनशील मामले में एक नया मोड़ लेकर आया है, जिसने कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में हलचल मचा दी है। UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, यह घटना राष्ट्रीय सुरक्षा, न्यायपालिका की भूमिका, आतंकवाद के अभियोजन और राजनीतिक हस्तियों की संलिप्तता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहनता से विचार करने का अवसर प्रदान करती है।
यह ब्लॉग पोस्ट मालेगांव धमाका मामले के विभिन्न पहलुओं, प्रज्ञा ठाकुर के दावों के निहितार्थों, भारतीय न्याय प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों और इस पूरी घटना से संबंधित UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।
मालेगांव धमाका: एक पृष्ठभूमि (Malegaon Blast: A Background)
मालेगांव, महाराष्ट्र का एक शहर, जो अपनी कपड़ा मिलों और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, 29 सितंबर 2008 को एक भीषण आतंकी हमले का गवाह बना। इस दिन, रमजान के महीने में, जब लोग जुमे की नमाज के लिए मस्जिदों की ओर जा रहे थे, शहर के एक भीड़भाड़ वाले बाजार में दो शक्तिशाली बम विस्फोट हुए। इन हमलों में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
यह घटना तब और भी संवेदनशील हो गई जब शुरुआती जांच में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े कुछ व्यक्तियों की संलिप्तता का संदेह जताया गया। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि यह हमला ‘हिंदू आतंकवाद’ के एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रतिशोध लेना था।
मुख्य बिंदु:
- तारीख: 29 सितंबर 2008
- स्थान: मालेगांव, महाराष्ट्र
- पीड़ित: 6 की मौत, 100 से अधिक घायल
- आरोपी: साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, आदि।
- अभियोजन पक्ष का आरोप: ‘हिंदू आतंकवाद’ नेटवर्क का हिस्सा, प्रतिशोध की भावना।
प्रज्ञा ठाकुर का सनसनीखेज दावा: क्या है पूरा मामला? (Pragya Thakur’s Sensational Claim: What’s the Whole Story?)
हाल ही में, प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मुंबई की एक विशेष NIA अदालत में अपनी गवाही के दौरान, एक नया और विवादास्पद बयान दिया है। उन्होंने दावा किया है कि 2008 में जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें “यातना” (torture) दी गई थी। उनका यह भी आरोप है कि उनसे जबरन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और RSS प्रमुख मोहन भागवत का नाम लेने के लिए कहा गया था।
ठाकुर ने अदालत में कहा, “मुझे 2008 में गिरफ्तार किया गया था और लगभग 12 दिनों तक हिरासत में रखा गया था। इस दौरान, मुझे इतना टॉर्चर किया गया कि मैं चलने में भी असमर्थ हो गई थी। उन्होंने मुझसे नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत का नाम लेने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि अगर मैं इनका नाम नहीं लेती तो मुझे अंजाम भुगतना पड़ेगा।”
दावे के मुख्य पहलू:
- यातना का आरोप: ठाकुर ने स्वीकार किया कि उन्हें हिरासत में शारीरिक और मानसिक यातना दी गई।
- दबाव का संकेत: उनका दावा है कि उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों का नाम लेने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
- राजनीतिक हस्तियों का उल्लेख: मोदी, योगी और भागवत जैसे उच्च-प्रोफ़ाइल व्यक्तियों का नाम शामिल होना इसे राजनीतिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील बनाता है।
इस दावे के निहितार्थ (Implications of This Claim)
प्रज्ञा ठाकुर का यह बयान कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है और इसके दूरगामी निहितार्थ हो सकते हैं:
1. कानूनी निहितार्थ (Legal Implications):
- सबूतों की विश्वसनीयता: यदि यह साबित हो जाता है कि गवाहों पर दबाव डाला गया था या उनके साथ यातना हुई थी, तो यह अभियोजन पक्ष के मामले की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
- न्यायपालिका की भूमिका: यह भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठा सकता है, खासकर अगर आरोप सही साबित होते हैं।
- पुनः जाँच की मांग: इस तरह के दावों से मामले की पुनः जाँच या मौजूदा जांच पर सवाल उठ सकते हैं।
2. राजनीतिक निहितार्थ (Political Implications):
- सरकार पर दबाव: यदि आरोप सच पाए जाते हैं, तो तत्कालीन यूपीए सरकार (जो उस समय सत्ता में थी) पर उंगलियां उठ सकती हैं।
- विपक्ष का रुख: विपक्षी दल इस मुद्दे को सरकार पर हमला करने के लिए भुनाने की कोशिश कर सकते हैं, खासकर यदि आरोप मौजूदा राजनीतिक हस्तियों के बारे में हैं।
- चुनावों पर प्रभाव: ऐसे संवेदनशील मुद्दे चुनावों के दौरान मतदाताओं के मूड को प्रभावित कर सकते हैं।
3. सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ (Social and National Security Implications):
- “हिंदू आतंकवाद” की अवधारणा: यह विवाद “हिंदू आतंकवाद” की अवधारणा पर बहस को फिर से शुरू कर सकता है, जो भारत में एक संवेदनशील विषय रहा है।
- जांच एजेंसियों पर भरोसा: ऐसे दावों से जनता का राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और अन्य सुरक्षा एजेंसियों पर भरोसा कम हो सकता है।
- धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव: यदि आरोप किसी विशेष धार्मिक या राजनीतिक समूह को लक्षित करने के बारे में हैं, तो यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है।
“मानवाधिकारों का उल्लंघन”: यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय कानून के तहत किसी भी व्यक्ति के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का मामला बन सकता है। किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी गंभीर अपराध का आरोपी क्यों न हो, यातना देना यातना के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) (आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध अधिकार) का उल्लंघन है।
“यातना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह मानवता के विरुद्ध एक अपराध भी है। न्याय प्रक्रिया में निष्पक्षता और गरिमा सर्वोपरि है।”
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)
यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है। आइए देखें कि किन-किन क्षेत्रों से यह जुड़ता है:
GS पेपर I: सामाजिक मुद्दे, इतिहास (GS Paper I: Social Issues, History)
- सांप्रदायिक दंगे और आतंकवाद: भारत में सांप्रदायिकता और आतंकवाद का इतिहास, उनके कारण और प्रभाव।
- राष्ट्रवाद और पहचान: राष्ट्रवाद की विभिन्न व्याख्याएं और भारतीय समाज में उनकी भूमिका।
GS पेपर II: शासन, संविधान, राजनीति (GS Paper II: Governance, Constitution, Politics)
- न्यायपालिका: भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, भूमिका और चुनौतियाँ। न्यायिक समीक्षा, जनहित याचिकाएं।
- संविधान: मौलिक अधिकार (विशेषकर अनुच्छेद 20, 21), राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत।
- शासन: कानून का शासन, पुलिस सुधार, जेल सुधार, मानवाधिकार संरक्षण।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध: आतंकवाद से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मानवाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून।
GS पेपर III: सुरक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (GS Paper III: Security, Science & Technology)
- आंतरिक सुरक्षा: भारत में आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे, आतंकवाद के विभिन्न रूप (धार्मिक, जातीय, राजनीतिक)।
- जांच एजेंसियां: NIA, CBI जैसी एजेंसियों की भूमिका, उनके अधिकार क्षेत्र और चुनौतियाँ।
- साइबर सुरक्षा और आतंकवाद: (हालांकि सीधे तौर पर संबंधित नहीं, पर सुरक्षा के व्यापक दायरे में आता है)।
GS पेपर IV: नैतिकता, सत्यनिष्ठा (GS Paper IV: Ethics, Integrity)
- नैतिक दुविधाएं: राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन।
- पुलिस और जांच एजेंसियों की नैतिकता: पूछताछ के दौरान नैतिक व्यवहार, यातना का उपयोग न करना।
- अधिकार और कर्तव्य: सार्वजनिक सेवकों के अधिकार और कर्तव्य, सत्यनिष्ठा का महत्व।
UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषण: क्यों, क्या, कैसे? (Analysis from UPSC Perspective: Why, What, How?)
क्यों? (Why?)
यह मामला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह:
- कानून के शासन को चुनौती देता है।
- मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाता है।
- जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
- राजनीतिकरण का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- आतंकवाद के मुद्दे से जुड़ा है, जो भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है।
क्या? (What?)
यह मामला सीधे तौर पर निम्नलिखित से संबंधित है:
- मालेगांव धमाका: यह एक आतंकवादी घटना है।
- प्रज्ञा ठाकुर: वह इस मामले की एक प्रमुख आरोपी हैं और वर्तमान में एक निर्वाचित सांसद हैं।
- यातना का आरोप: पुलिस या किसी भी सरकारी एजेंसी द्वारा यातना गैरकानूनी है।
- राजनीतिक हस्तियों का उल्लेख: इससे मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो जाता है।
कैसे? (How?)
UPSC उम्मीदवार इस मामले का विश्लेषण कैसे कर सकते हैं:
- ऐतिहासिक संदर्भ: मालेगांव धमाके के समय की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को समझें।
- कानूनी प्रक्रिया: गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों पर किस तरह के आरोप लगे, अभियोजन पक्ष का क्या मामला था, और बचाव पक्ष के तर्क क्या थे?
- NIA की भूमिका: NIA ने मामले की जांच कैसे की और उनके निष्कर्ष क्या थे?
- न्यायिक प्रक्रिया: अदालत में क्या चल रहा है? यह मामला वर्तमान में किस चरण में है?
- साक्ष्य का महत्व: किसी भी मामले में साक्ष्य कितने महत्वपूर्ण होते हैं और गलत साक्ष्य या दबाव के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- सवालों के घेरे: इस घटना ने जांच एजेंसियों, न्यायपालिका और सरकार की कार्यप्रणाली पर क्या सवाल खड़े किए हैं?
पक्ष और विपक्ष (Arguments For and Against)
यह मामला काफी ध्रुवीकृत है, और इसके विभिन्न पहलू हैं:
ठाकुर के दावों के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of Thakur’s Claims):
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: यदि यातना के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह सीधे तौर पर भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगा।
- राजनीतिक साजिश का संदेह: यदि कुछ समूह किसी विशेष विचारधारा से जुड़े व्यक्तियों को फंसाने की कोशिश कर रहे थे, तो यह राजनीतिक साजिश का एक रूप हो सकता है।
- जांच एजेंसियों की जवाबदेही: यह जांच एजेंसियों को अपनी प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की मांग करता है।
ठाकुर के दावों के विपक्ष में तर्क / विरोधी दृष्टिकोण (Arguments Against Thakur’s Claims / Counter-Arguments):
- सबूतों की कमी: जब तक यातना के पुख्ता सबूत पेश नहीं किए जाते, तब तक यह सिर्फ एक आरोप बना रहेगा।
- मामले का राजनीतिकरण: विरोधी इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया गया बयान मान सकते हैं।
- आतंकवाद का खतरा: यह तर्क दिया जा सकता है कि आतंकवाद के मामलों में, राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है, और ऐसे मामलों में पूछताछ कड़ी हो सकती है। (हालांकि, “यातना” को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।)
- NIA की क्लीन चिट: NIA ने पहले ही मामले की जांच के बाद क्लीन चिट दे दी थी, हालांकि यह नए दावों के आलोक में फिर से जांच का विषय हो सकता है।
चुनौतियां और भविष्य की राह (Challenges and The Way Forward)
इस मामले से उत्पन्न होने वाली मुख्य चुनौतियां और भविष्य में उठाए जाने वाले कदम:
चुनौतियां (Challenges):
- सच्चाई का पता लगाना: यातना के दावों की सच्चाई का पता लगाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निष्पक्ष जांच की आवश्यकता होती है।
- सबूत इकट्ठा करना: ग्यारह साल बाद यातना के सबूत इकट्ठा करना मुश्किल हो सकता है।
- न्यायिक देरी: भारतीय न्यायपालिका में मामलों में होने वाली देरी अक्सर न्याय को बाधित करती है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: ऐसे संवेदनशील मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
- सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना: ऐसे आरोप सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकते हैं, जिससे समाज में शांति बनाए रखना एक चुनौती बन जाता है।
भविष्य की राह (Way Forward):
- निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच: यातना के आरोपों की गहन, निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।
- न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका: अदालत को इन आरोपों का गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए।
- कानूनी सुधार: पूछताछ के दौरान बेहतर निगरानी और सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए कानूनी सुधारों पर विचार किया जा सकता है।
- जांच एजेंसियों की जवाबदेही: यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जांच एजेंसियां अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करें और सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करें।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया को जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करनी चाहिए और मामले के राजनीतिकरण से बचना चाहिए।
- आतंकवाद विरोधी कानूनों की समीक्षा: आतंकवाद विरोधी कानूनों और उनकी कार्यान्वयन प्रक्रिया की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे मानवाधिकारों का उल्लंघन न करें।
“⚖️ न्याय की प्रक्रिया पवित्र है। इसे किसी भी राजनीतिक एजेंडे या व्यक्तिगत द्वेष से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए। सत्य की खोज में निष्पक्षता और मानवीय गरिमा सर्वोपरि है।”
प्रज्ञा ठाकुर का यह दावा मालेगांव धमाका मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह न केवल कानूनी और राजनीतिक जगत में, बल्कि समाज में भी बहस का एक नया दौर शुरू कर सकता है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भारतीय कानून, न्याय प्रणाली, शासन और सामाजिक सद्भाव से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों को समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है। इस मामले के सभी पहलुओं का गहराई से विश्लेषण करना परीक्षा में ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने में सहायक होगा, जिनमें जटिल समसामयिक मुद्दों पर आपकी समझ का परीक्षण किया जाता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: मालेगांव धमाका किस वर्ष हुआ था?
* (a) 2006
* (b) 2007
* (c) 2008
* (d) 2009
* उत्तर: (c) 2008
* व्याख्या: मालेगांव धमाका 29 सितंबर 2008 को हुआ था।
2. प्रश्न: मालेगांव धमाका मामले में मुख्य आरोपी के तौर पर किसे गिरफ्तार किया गया था?
* (a) स्वामी असीमानंद
* (b) कर्नल प्रसाद पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
* (c) अजमल कसाब
* (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
* उत्तर: (b) कर्नल प्रसाद पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
* व्याख्या: मालेगांव धमाके के मामले में कर्नल प्रसाद पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर प्रमुख आरोपी थे।
3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आता है?
* (a) समानता का अधिकार
* (b) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
* (c) आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध अधिकार
* (d) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
* उत्तर: (c) आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध अधिकार
* व्याख्या: अनुच्छेद 20(3) किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिए गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, यह सुरक्षा प्रदान करता है।
4. प्रश्न: भारत में आतंकवाद के मामलों की जांच के लिए कौन सी केंद्रीय एजेंसी जिम्मेदार है?
* (a) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)
* (b) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
* (c) प्रवर्तन निदेशालय (ED)
* (d) उपरोक्त सभी
* उत्तर: (b) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
* व्याख्या: NIA विशेष रूप से आतंकवाद से संबंधित अपराधों की जांच के लिए स्थापित की गई है।
5. प्रश्न: “हिंदू आतंकवाद” की अवधारणा से संबंधित कौन सा मामला हाल के वर्षों में चर्चा में रहा है?
* (a) मक्का मस्जिद धमाका
* (b) समझौता एक्सप्रेस धमाका
* (c) मालेगांव धमाका
* (d) उपरोक्त सभी
* उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
* व्याख्या: मालेगांव, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस धमाकों को अक्सर “हिंदू आतंकवाद” के संदर्भ में चर्चा की जाती है।
6. प्रश्न: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद यातना के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है?
* (a) अनुच्छेद 14
* (b) अनुच्छेद 19
* (c) अनुच्छेद 21
* (d) अनुच्छेद 22
* उत्तर: (c) अनुच्छेद 21
* व्याख्या: अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिसमें यातना से मुक्ति का अधिकार भी शामिल है। (हालांकि, अनुच्छेद 20(3) भी अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है)।
7. प्रश्न: प्रज्ञा ठाकुर ने हाल ही में किस विशेष अदालत में अपनी गवाही दी?
* (a) दिल्ली की एक विशेष अदालत
* (b) मुंबई की एक विशेष NIA अदालत
* (c) पुणे की एक सत्र अदालत
* (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
* उत्तर: (b) मुंबई की एक विशेष NIA अदालत
* व्याख्या: मालेगांव धमाके के मामले की सुनवाई मुंबई की एक विशेष NIA अदालत में हो रही है।
8. प्रश्न: निम्नलिखित में से किस राजनेता का नाम प्रज्ञा ठाकुर ने अपने बयान में ज़िक्र किया है?
* (a) सोनिया गांधी
* (b) राहुल गांधी
* (c) नरेंद्र मोदी
* (d) ममता बनर्जी
* उत्तर: (c) नरेंद्र मोदी
* व्याख्या: प्रज्ञा ठाकुर ने कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था।
9. प्रश्न: ‘यातना’ (Torture) के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कौन सी महत्वपूर्ण संधि मौजूद है?
* (a) जेनोवा कन्वेंशन
* (b) कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर एंड अदर क्रूर, इनह्यूमन या डिग्रेडिंग ट्रीटमेंट ऑर पनिशमेंट
* (c) वियना कन्वेंशन
* (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
* उत्तर: (b) कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर एंड अदर क्रूर, इनह्यूमन या डिग्रेडिंग ट्रीटमेंट ऑर पनिशमेंट
* व्याख्या: यह वह अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो यातना को प्रतिबंधित करती है।
10. प्रश्न: यदि किसी आरोपी को यातना देकर बयान लिया जाता है, तो उस बयान की कानूनी स्थिति क्या होगी?
* (a) वह बयान स्वतः ही सत्य माना जाएगा।
* (b) उस बयान को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
* (c) अभियोजन पक्ष को उस बयान की सत्यता साबित करनी होगी।
* (d) यह पूरी तरह से अदालत के विवेक पर निर्भर करेगा।
* उत्तर: (b) उस बयान को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
* व्याख्या: स्वैच्छिक न होने के कारण यातना द्वारा प्राप्त स्वीकारोक्ति को साक्ष्य में स्वीकार नहीं किया जाता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: मालेगांव धमाका मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा यातना और कुछ प्रमुख राजनीतिक हस्तियों का नाम लेने के लिए मजबूर करने के आरोपों के आलोक में, भारतीय न्याय प्रणाली में पूछताछ के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों की सुरक्षा के महत्व का विश्लेषण करें। (250 शब्द)
2. प्रश्न: “राष्ट्रीय सुरक्षा” और “व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के बीच संतुलन को मालेगांव धमाका मामले के संदर्भ में समझाइए। क्या “यातना” जैसी प्रथाएं राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उचित ठहराई जा सकती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। (150 शब्द)
3. प्रश्न: मालेगांव धमाका जैसे मामलों की जांच में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की भूमिका और शक्तियों की विवेचना करें। इस तरह के संवेदनशील मामलों में जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु किन सुधारों की आवश्यकता है? (200 शब्द)
4. प्रश्न: भारतीय संविधान नागरिकों को अपराध के अभियोजन के संबंध में क्या सुरक्षा प्रदान करता है? मालेगांव धमाका मामले में प्रज्ञा ठाकुर के बयानों के संदर्भ में अनुच्छेद 20(3) और अनुच्छेद 21 के महत्व को स्पष्ट करें। (150 शब्द)