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मालेगांव धमाका: आरोपी बरी, NIA कोर्ट का फैसला – कब क्या हुआ?

मालेगांव धमाका: आरोपी बरी, NIA कोर्ट का फैसला – कब क्या हुआ?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब मुंबई की एक विशेष NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और पांच अन्य सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। यह फैसला 15 साल से चले आ रहे एक ऐसे मुकदमे का अंत है जिसने देश की सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता और न्याय प्रणाली पर कई सवाल खड़े किए थे। इस फैसले ने न केवल प्रभावित परिवारों के लिए न्याय की तलाश को जटिल बना दिया है, बल्कि इसने भारतीय राजनीति और समाज में भी नई बहसें छेड़ दी हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस घटनाक्रम को समझना न केवल वर्तमान घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय कानून, आतंकवाद विरोधी उपायों, जांच एजेंसियों की भूमिका और न्याय प्रक्रिया की चुनौतियों को समझने का एक अवसर भी प्रदान करता है।

यह ब्लॉग पोस्ट मालेगांव विस्फोट मामले के पूरे घटनाक्रम, NIA अदालत के फैसले के पीछे के कारणों, इस निर्णय के विभिन्न पहलुओं, और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व पर गहराई से प्रकाश डालेगा।

मालेगांव विस्फोट: एक कालानुक्रमिक अवलोकन (Malegaon Blast: A Chronological Overview)

मालेगांव, महाराष्ट्र का एक शहर, जो अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए जाना जाता है, 29 सितंबर 2008 को एक विनाशकारी आतंकवादी हमले का गवाह बना। इस दिन, रमज़ान के पवित्र महीने में, जब मुस्लिम समुदाय के लोग तरावीह की नमाज़ के बाद मस्जिद से बाहर निकल रहे थे, ठीक उसी समय एक शक्तिशाली बम विस्फोट हुआ।

  • 29 सितंबर 2008: मालेगांव के खड़ा बाजार इलाके में स्थित एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर लगे बम में विस्फोट हुआ। इस हमले में छह लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
  • जांच की शुरुआत: महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (ATS) ने इस मामले की जांच शुरू की। ATS ने शुरुआत में इस हमले के लिए एक स्थानीय इस्लामिक आतंकवादी समूह “जमीयत-ए-तमीज-उल-मुस्लिमीन” को जिम्मेदार ठहराया था।
  • नई दिशा: ATS के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने जांच को एक नई दिशा दी। उन्होंने कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े लोगों की संलिप्तता का पता लगाया।
  • गिरफ्तारियां: इस जांच के परिणामस्वरूप, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय राहिरकर, सुरेश नायर और रामानंद छत्रपति को गिरफ्तार किया गया। उन पर अनlawful Activities (Prevention) Act (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।
  • NIA का गठन: 2011 में, केंद्र सरकार ने मालेगांव सहित देश भर में हुए कुछ प्रमुख आतंकवादी मामलों की जांच का जिम्मा NIA को सौंप दिया।
  • NIA की चार्जशीट: NIA ने 2016 में अपनी चार्जशीट दायर की, जिसमें उसने साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित जैसे कुछ आरोपियों के खिलाफ से मकोका (Maharashtra Control of Organised Crime Act) हटा दिया और मामले को “रद्द” करने की सिफारिश की। हालांकि, अदालत ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया। NIA ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी “हिंदू राष्ट्र” बनाने के एजेंडे पर काम कर रहे थे।
  • NIA के रुख में बदलाव: बाद में, NIA ने एक आवेदन दायर कर कहा कि कुछ गवाहों पर दबाव डाला गया था और कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को “मिसिंग” बताया। NIA ने यह भी कहा कि उनके पास सभी आरोपियों के खिलाफ “पर्याप्त सबूत” नहीं हैं।
  • विशेष NIA अदालत का फैसला: 25 अक्टूबर 2023 को, विशेष NIA न्यायाधीश पी.आर. देसाई ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि NIA यह साबित करने में विफल रही कि आरोपियों ने इस अपराध को अंजाम दिया।

NIA अदालत के फैसले के पीछे के कारण (Reasons Behind the NIA Court’s Verdict)

NIA अदालत द्वारा सभी सात आरोपियों को बरी करने का निर्णय कई जटिल कानूनी और तथ्यात्मक आधारों पर आधारित है। न्यायाधीश ने अपने फैसले में विस्तार से बताया कि क्यों अभियोजन पक्ष (prosecution) आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।

1. सबूतों की कमी (Lack of Evidence):

  • प्रत्यक्ष सबूत का अभाव: अदालत ने पाया कि विस्फोटों को अंजाम देने में आरोपियों की सीधी संलिप्तता साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष सबूत पेश नहीं किया गया।
  • गवाहों का मुकरना: अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए कई गवाह, जो पहले ATS की जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ बयान दे चुके थे, NIA अदालत में अपने बयानों से मुकर गए। अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि कुछ गवाहों ने स्वीकार किया कि उन पर ATS द्वारा दबाव डाला गया था।
  • साजिश का अप्रमाणित होना: हालांकि NIA ने “हिंदू राष्ट्र” बनाने के एजेंडे पर एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया था, लेकिन अदालत को यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले कि सभी आरोपी इस व्यापक साजिश का हिस्सा थे और उन्होंने मिलकर अपराध को अंजाम दिया।

2. NIA का रुख (NIA’s Stance):

NIA, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है, ने अपने रुख में कई बार बदलाव किया। पहले ATS के बाद NIA ने भी इस मामले में मुख्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने की मांग की थी। हालांकि, बाद में NIA ने कुछ आरोपियों के खिलाफ मकोका हटाने और मामला रद्द करने की सिफारिश की थी, जो एक महत्वपूर्ण मोड़ था। अदालत ने NIA के इन तर्कों पर भी विचार किया कि कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज खो गए हैं या अभियोजन पक्ष के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

3. समय की देरी और न्याय में देरी (Time Delay and Delay in Justice):

15 साल की लंबी अवधि के दौरान, कई गवाह उपलब्ध नहीं थे या वे बयान देने से कतरा रहे थे। जांच प्रक्रिया, अदालती कार्यवाही में देरी भी न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है, खासकर जब सबूतों की प्रामाणिकता और गवाहों की विश्वसनीयता समय के साथ कम हो जाती है।

“न्याय में देरी, न्याय से इनकार है।” – विलियम इवार्ट ग्लैडस्टोन

यह कहावत इस मामले में प्रासंगिक हो जाती है, जहां लंबे इंतजार के बाद आए फैसले ने कई लोगों को निराश किया है।

फैसले का विश्लेषण: पक्ष और विपक्ष (Analysis of the Verdict: Pros and Cons)

NIA अदालत के इस फैसले के कई महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं, जिनके विभिन्न पक्षों पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।

पक्ष (Pros):

  • निर्वेय सिद्धान्त (Presumption of Innocence): भारतीय कानून प्रणाली में, हर व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसका अपराध संदेह से परे साबित न हो जाए। इस मामले में, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष इस सिद्धांत को स्थापित करने में विफल रहा।
  • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार: यह फैसला आरोपी के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को भी रेखांकित करता है। यदि पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो किसी को भी केवल शक के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता: अदालत ने सबूतों के आधार पर अपना फैसला सुनाया, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता का प्रतीक है।

विपक्ष (Cons) और चिंताएं (Concerns):

  • पीड़ितों के लिए न्याय: 2008 में मारे गए छह लोगों के परिवारों और घायलों के लिए, यह फैसला न्याय की तलाश को धूमिल करता है। वे उन लोगों के लिए जवाबदेही की उम्मीद कर रहे थे जिन्होंने उनके प्रियजनों को खो दिया।
  • “भगवा आतंकवाद” की अवधारणा: इस मामले में हिंदुत्ववादी समूहों की संलिप्तता की जांच ने “भगवा आतंकवाद” (saffron terrorism) या “हिंदू आतंकवाद” (Hindu terrorism) की अवधारणा को जन्म दिया था। इस फैसले के बाद, इस अवधारणा पर फिर से बहस छिड़ गई है। कुछ लोगों का तर्क है कि इस फैसले से ऐसे तत्वों को बल मिलेगा।
  • जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता: ATS और NIA जैसी प्रमुख जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ सकते हैं। सबूतों को पेश करने में या मामले को आगे बढ़ाने में आई कमियों को लेकर आलोचना हो सकती है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह मामला हमेशा से राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर एक वर्तमान सांसद हैं। इस फैसले का राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने एजेंडे के लिए इस्तेमाल किए जाने की पूरी संभावना है, जिससे समाज में और अधिक ध्रुवीकरण हो सकता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

1. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):

  • सामान्य अध्ययन पेपर I (इतिहास, भूगोल, सामाजिक न्याय): 2008 का मालेगांव विस्फोट एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। आतंकवाद, धार्मिक अतिवाद और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे इस अनुभाग से जुड़े हैं।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II (शासन, संविधान, राजनीति): भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकार (जैसे निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार), भारतीय दंड संहिता (IPC), गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), NIA की भूमिका, और न्यायिक प्रक्रिया की समझ महत्वपूर्ण है।
  • सामान्य अध्ययन पेपर III (सुरक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी): आतंकवाद के विभिन्न रूप, आतंकवाद विरोधी कानून और एजेंसियां, जांच की चुनौतियां, और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे इस परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

2. मुख्य परीक्षा (Mains):

  • सामान्य अध्ययन पेपर I: सामाजिक मुद्दे, सांप्रदायिकता, और भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएं।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II: भारतीय संविधान, सरकारी नीतियों और विभिन्न एजेंसियों की भूमिका। यह मामला सुरक्षा से संबंधित कानूनों और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर प्रश्न पूछने का अवसर प्रदान करता है।
  • सामान्य अध्ययन पेपर III: आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां (आतंकवाद के विभिन्न रूप), राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां (NIA, ATS), राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां, राष्ट्रीय सुरक्षा में गैर-राज्य अभिकर्ताओं की भूमिका।
  • निबंध (Essay): “न्याय में देरी”, “आतंकवाद का सामना”, “धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय सुरक्षा”, या “जांच एजेंसियों की भूमिका और चुनौतियां” जैसे विषयों पर निबंध के लिए यह मामला एक केस स्टडी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

आगे की राह और चुनौतियां (Way Forward and Challenges)

मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है, लेकिन यह मामला कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ जाता है और आगे की राह में कई चुनौतियां पेश करता है:

1. पीड़ित परिवारों का दृष्टिकोण:

यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पीड़ित परिवारों को न्याय मिले। हालाँकि, अदालत के फैसले के बाद, उन्हें भविष्य में कानूनी या अन्य प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो सकती है।

2. जांच की गुणवत्ता और प्रक्रिया:

जांच एजेंसियों को अपनी जांच प्रक्रियाओं को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। सबूतों को इकट्ठा करने, संरक्षित करने और अदालत में प्रस्तुत करने में किसी भी प्रकार की चूक या लापरवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। गवाहों की सुरक्षा और उन्हें बयान देने के लिए प्रोत्साहित करना भी एक चुनौती है।

3. आतंकवाद विरोधी कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन:

UAPA जैसे कड़े कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि इन कानूनों का दुरुपयोग न हो।

4. राजनीतिक हस्तक्षेप और सांप्रदायिक सद्भाव:

ऐसे मामलों को राजनीतिक रंग देने से बचना चाहिए। राजनीतिक दलों को सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और न्याय प्रणाली पर विश्वास को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

5. “भगवा आतंकवाद” की बहस:

इस मामले ने “भगवा आतंकवाद” की अवधारणा को चर्चा में लाया था। इस तरह की विचारधाराओं के उदय और प्रसार को समझना और उन्हें नियंत्रित करने के लिए सामाजिक और वैचारिक स्तर पर प्रयास करना आवश्यक है।

“हमारा काम तथ्यों की तलाश करना है, न कि अटकलें लगाना।” – एक विशेष NIA अदालत के न्यायाधीश के हवाले से कहा जा सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

2008 का मालेगांव विस्फोट मामला एक जटिल और संवेदनशील मामला रहा है, जिसने भारतीय न्याय प्रणाली, जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और समाज में मौजूद विभिन्न वैचारिक धाराओं पर प्रकाश डाला है। NIA अदालत का सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला, भले ही यह कानूनी रूप से सही हो, उन लोगों के लिए गहरा निराशा का कारण है जिन्होंने इस हमले में अपने प्रियजनों को खोया। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह मामला केवल एक समाचार से कहीं अधिक है। यह उन्हें भारतीय कानून, सुरक्षा व्यवस्था, न्यायपालिका की भूमिका, और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए देश के दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है। इस मामले से सीखकर, हमारी एजेंसियां और न्याय प्रणाली भविष्य में ऐसे मामलों को और अधिक प्रभावी ढंग से संभालने के लिए अपनी प्रक्रियाओं में सुधार कर सकती हैं, ताकि न्याय सभी के लिए, चाहे वह पीड़ित हो या आरोपी, एक निष्पक्ष और समय पर पूरा हो सके।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में प्रारंभिक जांच किस एजेंसी द्वारा शुरू की गई थी?

(a) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)

(b) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)

(c) महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (ATS)

(d) प्रवर्तन निदेशालय (ED)

उत्तर: (c) महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (ATS)

व्याख्या: शुरुआत में, महाराष्ट्र ATS ने मालेगांव विस्फोट मामले की जांच शुरू की थी। बाद में, इस मामले की जांच NIA को सौंपी गई।

2. मालेगांव विस्फोट मामले में हाल ही में NIA अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने का मुख्य कारण क्या था?

(a) आरोपी अपराध स्वीकार कर चुके थे।

(b) अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा।

(c) मामला राजनीतिक दबाव के कारण रद्द कर दिया गया।

(d) आरोपी को बचाव के लिए पर्याप्त वकील नहीं मिले।

उत्तर: (b) अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा।

व्याख्या: अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के पास आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत नहीं थे, जिससे आरोप साबित नहीं हो सके।

3. निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम आतंकवाद से संबंधित मामलों के लिए प्रमुख कानून है और जिसे मालेगांव विस्फोट मामले के आरोपियों पर लागू किया गया था?

(a) राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA)

(b) गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA)

(c) टाडा (TADA)

(d) पोटा (POTA)

उत्तर: (b) गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA)

व्याख्या: UAPA आतंकवाद और संबंधित गतिविधियों से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसे इस मामले में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया गया था।

4. मालेगांव विस्फोट घटना कब हुई थी?

(a) 15 अगस्त 2008

(b) 26 जनवरी 2008

(c) 29 सितंबर 2008

(d) 15 अगस्त 2009

उत्तर: (c) 29 सितंबर 2008

व्याख्या: 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक शक्तिशाली बम विस्फोट हुआ था।

5. मालेगांव विस्फोट मामले के संबंध में ‘NIA’ का पूर्ण रूप क्या है?

(a) National Investigation Agency

(b) National Intelligence Agency

(c) New Investigation Agency

(d) National Intelligence Authority

उत्तर: (a) National Investigation Agency

व्याख्या: NIA भारत की एक संघीय आतंकवाद विरोधी जांच एजेंसी है।

6. उस समय के महाराष्ट्र ATS प्रमुख कौन थे जिन्होंने जांच को नई दिशा दी थी?

(a) राकेश अस्थाना

(b) हेमंत करकरे

(c) परम बीर सिंह

(d) संजय पांडे

उत्तर: (b) हेमंत करकरे

व्याख्या: हेमंत करकरे, जो 26/11 मुंबई हमलों में शहीद हुए थे, उस समय महाराष्ट्र ATS के प्रमुख थे और उन्होंने मालेगांव विस्फोट मामले की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

7. NIA ने अपनी चार्जशीट में कुछ आरोपियों के खिलाफ किस अधिनियम को हटाने की सिफारिश की थी, जिसे बाद में अदालत ने स्वीकार नहीं किया?

(a) UAPA

(b) टाडा (TADA)

(c) मकोका (MCOCA)

(d) पोटा (POTA)

उत्तर: (c) मकोका (MCOCA)

व्याख्या: NIA ने शुरुआत में कुछ आरोपियों के खिलाफ मकोका (Maharashtra Control of Organised Crime Act) हटाने की सिफारिश की थी।

8. मालेगांव विस्फोट मामले में कितने आरोपी बरी किए गए हैं?

(a) 5

(b) 6

(c) 7

(d) 8

उत्तर: (c) 7

व्याख्या: साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और पांच अन्य सहित कुल सात आरोपियों को बरी किया गया।

9. NIA अदालत के फैसले के संदर्भ में, “अभियोजन पक्ष” (Prosecution) का क्या अर्थ है?

(a) वह पक्ष जो आरोपी की ओर से बचाव करता है।

(b) वह पक्ष जो मामले में पीड़ित का प्रतिनिधित्व करता है।

(c) वह पक्ष जो राज्य या सरकार की ओर से मुकदमा चलाता है और आरोप साबित करने का प्रयास करता है।

(d) वह पक्ष जो अदालत में गवाहों की गवाही की जांच करता है।

उत्तर: (c) वह पक्ष जो राज्य या सरकार की ओर से मुकदमा चलाता है और आरोप साबित करने का प्रयास करता है।

व्याख्या: अभियोजन पक्ष वह होता है जो अदालत में किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए सबूत पेश करता है।

10. मालेगांव विस्फोट मामला भारतीय न्याय प्रणाली के किन महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालता है?

I. सबूतों का महत्व

II. गवाहों की विश्वसनीयता

III. न्याय में देरी

IV. अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी

(a) केवल I और IV

(b) केवल II और III

(c) I, II, III और IV

(d) केवल I, II और IV

उत्तर: (c) I, II, III और IV

व्याख्या: यह मामला सबूतों की कमी, गवाहों के मुकरने, न्याय में देरी और अभियोजन पक्ष पर आरोप साबित करने के दबाव जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में NIA अदालत द्वारा सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने के निर्णय का विश्लेषण करें। इस फैसले ने भारतीय न्याय प्रणाली, जांच एजेंसियों की भूमिका और आतंकवाद विरोधी उपायों पर क्या प्रभाव डाला है, इसकी विस्तार से चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)

2. “भगवा आतंकवाद” (Saffron Terrorism) की अवधारणा का उदय और इस संदर्भ में मालेगांव विस्फोट मामले का महत्व समझाएं। इस तरह की विचारधाराओं के प्रसार को रोकने के लिए भारत को किन सामाजिक, वैचारिक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? (250 शब्द, 15 अंक)

3. गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन और उनके संभावित दुरुपयोग के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है? मालेगांव विस्फोट जैसे मामलों के संदर्भ में इस पर अपने विचार व्यक्त करें। (150 शब्द, 10 अंक)

4. मालेगांव विस्फोट मामले में 15 साल के बाद आए फैसले ने पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की भावना पर क्या असर डाला है? ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया को तेज और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या सुधार किए जा सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)

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