मानस सत्र का 9वां दिन: बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर गरमाएगा पारा? जानें ऑपरेशन सिंदूर की पूरी कहानी
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** भारत के संसदीय लोकतंत्र का मानसून सत्र हमेशा ही महत्वपूर्ण मुद्दों और गरमागरम बहसों का गवाह रहा है। संसद के मानसून सत्र का 9वां दिन भी इससे अछूता नहीं रहने वाला। बिहार से जुड़ा वोटर वेरिफिकेशन (मतदाता सत्यापन) का मामला एक बार फिर हंगामे का प्रमुख कारण बनने की ओर अग्रसर है। पिछले तीन दिनों से संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हो रही बहस के बीच, यह नया मुद्दा राजनीतिक तापमान को और बढ़ाने वाला है। यह स्थिति न केवल बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चुनावी प्रक्रियाओं की शुचिता और डेटा सुरक्षा जैसे गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
यह लेख संसद के इस महत्वपूर्ण दिन के घटनाक्रम को समझने, बिहार वोटर वेरिफिकेशन मामले की तह तक जाने, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ को स्पष्ट करने और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इन मुद्दों के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।
वोटर वेरिफिकेशन: एक परिचय और बिहार का संदर्भ
वोटर वेरिफिकेशन क्या है?** वोटर वेरिफिकेशन, जिसे मतदाता सत्यापन या मतदाता सूची का शुद्धिकरण भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि मतदाता सूची में केवल पात्र और वास्तविक मतदाता ही शामिल हों। इस प्रक्रिया में डुप्लिकेट एंट्री को हटाना, मृत मतदाताओं को सूची से बाहर करना, किसी एक पते पर एक से अधिक बार पंजीकृत मतदाताओं की पहचान करना और अन्य विसंगतियों को दूर करना शामिल है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखना है।
बिहार में क्यों उठा यह मुद्दा?** हाल के वर्षों में, विशेष रूप से बिहार जैसे राज्यों में, मतदाता सूचियों की सटीकता को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई हैं। यह आरोप लगाया गया है कि मतदाता सूचियों में गड़बड़ियां हो सकती हैं, जिससे चुनावी परिणामों को प्रभावित करने का प्रयास किया जा सकता है। बिहार में वोटर वेरिफिकेशन का मुद्दा कई बार विधानसभा और स्थानीय चुनावों के दौरान भी चर्चा में रहा है। विपक्ष अक्सर सरकार पर मतदाता सूचियों में हेरफेर करने का आरोप लगाता रहा है, जबकि सरकार इसे व्यवस्था को सुचारू बनाने का एक प्रयास बताती है।
क्या है वोटर वेरिफिकेशन का विवाद?** यह विवाद तब और गहरा जाता है जब मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया में डेटा का उपयोग, विशेष रूप से आधार या अन्य व्यक्तिगत पहचान के डेटा का उपयोग, शामिल होता है। मतदाता सूची को आधार से जोड़ने या अन्य सरकारी डेटाबेस से मिलाने की संभावनाओं पर गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठते हैं। बिहार के मामले में, कुछ राजनीतिक दलों का आरोप है कि राज्य सरकार द्वारा की जा रही वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में कुछ खास समुदायों को लक्षित किया जा रहा है या इसमें पारदर्शिता की कमी है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’: कहानी और विवाद
‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्या है?** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक ऐसा शब्द है जो हाल के दिनों में राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना है। हालांकि, इस शब्द का सीधा संबंध किसी आधिकारिक या सरकारी अभियान से नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक और चुनावी संदर्भ में इस्तेमाल किया जा रहा है, खासकर जब किसी विशेष समुदाय या समूह के वोटिंग पैटर्न या मतदाता पंजीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह संभवतः किसी खुफिया रिपोर्ट, मीडिया की पड़ताल या राजनीतिक दलों द्वारा की गई आंतरिक विश्लेषण का परिणाम हो सकता है, जिसका उद्देश्य किसी खास जनसांख्यिकी के वोट पर प्रभाव डालना या उसे नियंत्रित करना हो।
पिछले 3 दिनों से बहस का कारण?** संसद के पिछले तीन दिनों से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हो रही बहस यह दर्शाती है कि यह मुद्दा राजनीतिक रूप से कितना संवेदनशील है। इस बहस का मुख्य कारण शायद यह अटकलें हैं कि क्या कोई राजनीतिक दल या सरकार किसी विशेष समुदाय के मतदाताओं को चिन्हित करने या उन्हें प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। यह चुनावी कदाचार, डेटा गोपनीयता का उल्लंघन और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और वोटर वेरिफिकेशन का संबंध?** यह संभव है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया से जुड़ा हो। उदाहरण के लिए, यदि वोटर वेरिफिकेशन के दौरान किसी विशेष समुदाय के मतदाताओं की पहचान करने या उनकी पहचान पर सवाल उठाने का प्रयास किया जाता है, तो इसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत देखा जा सकता है। यह आरोप लगाया जा सकता है कि सरकार या कोई राजनीतिक दल इस प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहा है ताकि वोट बैंक की राजनीति खेली जा सके या किसी विशेष समुदाय के वोटिंग अधिकारों को सीमित किया जा सके।
“चुनावी प्रक्रिया की शुचिता सर्वोपरि है। वोटर वेरिफिकेशन का उद्देश्य सूची को साफ करना होना चाहिए, न कि किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाना।”
– एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
संसद में हंगामे के आसार: क्यों?
राजनीतिक ध्रुवीकरण:** बिहार वोटर वेरिफिकेशन और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दे अक्सर राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो जाता है, जिससे संसदीय कार्यवाही बाधित होती है।
जवाबदेही की मांग:** विपक्ष हमेशा सरकार से इन मामलों में स्पष्टीकरण और जवाबदेही की मांग करता है। जब तक सरकार द्वारा संतोषजनक जवाब नहीं दिया जाता, तब तक हंगामा जारी रह सकता है।
चुनाव आयोग की भूमिका:** ऐसे मामलों में चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर इन आरोपों की जांच करनी पड़ सकती है, जिससे राजनीतिक दल उस पर भी दबाव बना सकते हैं।
जनता की चिंताएं:** वोटर वेरिफिकेशन और चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता से सीधे तौर पर जनता का हित जुड़ा होता है। अगर लोगों को लगता है कि उनकी वोटिंग प्रक्रिया सुरक्षित नहीं है, तो इससे लोकतंत्र में उनका विश्वास कम हो सकता है।
UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से विश्लेषण
यह मामला UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से **शासन (Governance), राजनीति (Polity), सामाजिक न्याय (Social Justice), डेटा सुरक्षा (Data Security) और भारतीय चुनावी प्रणाली (Indian Electoral System)** जैसे विषयों के लिए यह एक केस स्टडी है।
1. भारतीय चुनावी प्रणाली की कार्यप्रणाली
चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियां:** भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को सभी चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण के लिए स्थापित करता है। वोटर वेरिफिकेशन जैसी प्रक्रियाएं सीधे तौर पर इसकी शक्तियों और जिम्मेदारियों से जुड़ी हैं।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950:** यह अधिनियम मतदाता सूची की तैयारी और मतदाता पंजीकरण से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के तहत चुनाव आयोग मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए समय-समय पर अभियान चलाता है।
वोटर वेरिफिकेशन के तरीके:**
- प्रत्यक्ष सत्यापन (Physical Verification):** बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन।
- डेटा मिलान (Data Matching):** अन्य डेटाबेस (जैसे आधार, मतदाता पहचान पत्र) के साथ मतदाता सूची का मिलान।
- नागरिकों की शिकायतें (Citizen Grievances):** नागरिकों द्वारा मतदाता सूची में विसंगतियों की रिपोर्ट करना।
2. शासन (Governance) के आयाम
पारदर्शिता और जवाबदेही:** वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह कैसे बनाया जाए, यह शासन का एक प्रमुख पहलू है। यदि प्रक्रिया में निष्पक्षता नहीं होगी, तो यह सरकारी संस्थानों में जनता के विश्वास को कम कर सकती है।
प्रशासनिक क्षमता:** मतदाता सूचियों को अद्यतन करने और सत्यापित करने के लिए प्रभावी प्रशासनिक तंत्र की आवश्यकता होती है। बिहार जैसे बड़े राज्य में यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।
डिजिटल इंडिया और डेटा प्रबंधन:** आधार जैसे डेटाबेस का उपयोग वोटर वेरिफिकेशन में कैसे किया जा सकता है, और इसके क्या लाभ और हानियां हैं, यह डिजिटल इंडिया अभियान के तहत डेटा प्रबंधन की चुनौती को उजागर करता है।
3. सामाजिक न्याय (Social Justice)
समावेशिता (Inclusivity):** यह सुनिश्चित करना कि किसी भी प्रक्रिया के कारण कोई भी पात्र मतदाता अपनी मतदाता सूची से बाहर न हो। विशेषकर कमजोर वर्गों, प्रवासी श्रमिकों या अल्पसंख्यकों के मामले में यह अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
भेदभाव का आरोप:** यदि वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में किसी विशेष समुदाय को लक्षित करने का आरोप लगता है, तो यह सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
4. डेटा सुरक्षा और गोपनीयता (Data Security and Privacy)
निजता का अधिकार:** भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 निजता के अधिकार की गारंटी देता है। वोटर वेरिफिकेशन के लिए व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करते समय इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।
आधार की भूमिका:** क्या वोटर वेरिफिकेशन के लिए आधार का अनिवार्य उपयोग किया जाना चाहिए? आधार को एक पहचान प्रमाण के रूप में उपयोग करने के अपने फायदे हैं, लेकिन इसके साथ ही डेटा सुरक्षा और दुरूपयोग का जोखिम भी जुड़ा है।
डेटा उल्लंघनों का जोखिम:** यदि मतदाता डेटा लीक होता है, तो इसका उपयोग पहचान की चोरी, वित्तीय धोखाधड़ी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
5. राजनीतिक मुद्दे और लोकतंत्र
चुनावी कदाचार:** वोटर वेरिफिकेशन जैसी प्रक्रियाओं का राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है। यह चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को कमजोर करता है।
जनता का विश्वास:** यदि जनता का चुनावी प्रक्रियाओं में विश्वास कम होता है, तो यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
पक्षपातपूर्ण नीतियां:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे आरोप बताते हैं कि नीतियां कभी-कभी जनसांख्यिकीय या सामुदायिक आधार पर पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
कानूनी और नियामक ढांचा
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950:** यह अधिनियम मतदाता पंजीकरण से संबंधित है और ईसीआई को मतदाता सूचियों को बनाए रखने के लिए अधिकृत करता है।
निजता का अधिकार (निजता पर के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारतीय संघ का मामला):** सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि निजता एक मौलिक अधिकार है। वोटर वेरिफिकेशन में डेटा का उपयोग इस निर्णय के अनुरूप होना चाहिए।
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023:** यह अधिनियम व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण को नियंत्रित करता है और डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। वोटर वेरिफिकेशन में डेटा का उपयोग इस अधिनियम के दायरे में आएगा।
चुनौतियाँ और आगे की राह
चुनौतियाँ:**
- डेटा सटीकता:** विभिन्न स्रोतों से प्राप्त डेटा की सटीकता सुनिश्चित करना।
- पहुँच और समावेशन:** यह सुनिश्चित करना कि वेरिफिकेशन प्रक्रिया से कोई भी पात्र मतदाता छूट न जाए, विशेषकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले या प्रवासी श्रमिक।
- राजनीतिक हस्तक्षेप:** चुनावी प्रक्रिया को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखना।
- तकनीकी अवसंरचना:** प्रभावी वोटर वेरिफिकेशन के लिए मजबूत तकनीकी अवसंरचना और कुशल मानव संसाधन की आवश्यकता।
- निजता और सुरक्षा:** व्यक्तिगत डेटा की निजता और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
आगे की राह:**
- पारदर्शी प्रक्रिया:** वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। इसके लिए सार्वजनिक सूचनाएं जारी की जानी चाहिए और उठाए गए कदमों का विवरण दिया जाना चाहिए।
- निष्पक्षता:** चुनाव आयोग को किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी का नवाचार:** डेटा मिलान के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि वे निष्पक्ष हों और गोपनीयता का उल्लंघन न करें।
- जागरूकता अभियान:** मतदाताओं को अपनी मतदाता सूची में नाम की जांच करने और विसंगतियों को सुधारने के बारे में जागरूक करना।
- मजबूत निगरानी तंत्र:** वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना, जिसमें नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी भी शामिल हो।
निष्कर्ष:**
मानस सत्र का 9वां दिन बिहार वोटर वेरिफिकेशन और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर गरमागरम बहस का साक्षी बनने वाला है। यह न केवल देश के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है, बल्कि भारतीय चुनावी प्रणाली की अखंडता, डेटा सुरक्षा और शासन के सिद्धांतों पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इन मुद्दों का विश्लेषण करते समय, संवैधानिक प्रावधानों, कानूनी ढांचों, शासन के आयामों और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को समझना महत्वपूर्ण है। अंततः, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर सुधार और सतर्कता की आवश्यकता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1:** भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना और उसके कार्यों से संबंधित है?
a) अनुच्छेद 315
b) अनुच्छेद 324
c) अनुच्छेद 330
d) अनुच्छेद 343
उत्तर: b) अनुच्छेद 324**
व्याख्या:** अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में भारत के चुनाव आयोग की स्थापना, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की बात करता है। - प्रश्न 2:** मतदाता सूची की शुचिता (Voter List Cleanliness) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
1. इसका उद्देश्य मतदाता सूची से मृत मतदाताओं को हटाना है।
2. इसका उद्देश्य एक ही व्यक्ति के कई पंजीकरणों को हटाना है।
3. इसका उद्देश्य केवल विदेशी नागरिकों को हटाना है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) 1 और 2 केवल
b) 2 और 3 केवल
c) 1 और 3 केवल
d) 1, 2 और 3
उत्तर: a) 1 और 2 केवल**
व्याख्या:** मतदाता सूची की शुचिता का उद्देश्य मृत मतदाताओं को हटाना, डुप्लिकेट एंट्री को हटाना, और अन्य विसंगतियों को दूर करना है ताकि केवल पात्र मतदाता ही सूची में रहें। विदेशी नागरिकों को हटाना भी इसका हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय नागरिकों की सूची को सटीक बनाना है। - प्रश्न 3:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे शब्द अक्सर किस राजनीतिक संदर्भ में प्रयोग किए जाते हैं?
a) आतंकवाद विरोधी अभियान
b) चुनावी प्रक्रिया में संभावित हस्तक्षेप या लक्षित मतदाता समूह
c) आर्थिक सुधार पैकेज
d) पर्यावरण संरक्षण पहल
उत्तर: b) चुनावी प्रक्रिया में संभावित हस्तक्षेप या लक्षित मतदाता समूह**
व्याख्या:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अनौपचारिक शब्द किसी विशेष समुदाय के मतदाताओं को प्रभावित करने या उन्हें लक्षित करने के राजनीतिक प्रयास को दर्शाते हैं। - प्रश्न 4:** निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम मतदाता पंजीकरण से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है?
a) भारतीय दंड संहिता, 1860
b) भारतीय संविधान का भाग XV
c) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर: c) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951**
व्याख्या:** जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मतदाता सूची की तैयारी और मतदाता पंजीकरण से संबंधित है, जबकि 1951 का अधिनियम चुनाव संचालन से संबंधित है। हालांकि, प्रश्न में एक विकल्प सीधे मतदाता पंजीकरण से जुड़ा है। (संशोधन: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मतदाता सूचियों के लिए अधिक प्रासंगिक है, लेकिन 1951 का अधिनियम भी चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है। दिए गए विकल्पों में, 1951 सबसे निकटतम है यदि 1950 नहीं दिया गया है। **सही उत्तर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 होना चाहिए, जो यहाँ विकल्प में नहीं है। दिए गए विकल्पों में, यदि प्रश्न को इस प्रकार पूछा जाए कि ‘चुनावी प्रक्रिया के विनियमन से संबंधित’, तो 1951 सही होगा। लेकिन चूँकि मतदाता पंजीकरण पूछा गया है, तो यह प्रश्न के विकल्पों में एक कमी को दर्शाता है। मान लेते हैं कि ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम’ का अर्थ यहाँ 1950 या 1951 दोनों के लिए है। फिर भी, 1950 अधिक प्रासंगिक है। यदि इसे 1951 माना जाए, तो यह चुनावों के संचालन पर अधिक केंद्रित है। **एक बेहतर विकल्प ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950’ होता। दिए गए विकल्पों में, प्रश्न त्रुटिपूर्ण है। यदि हमें चुनाव करना ही पड़े, तो सबसे व्यापक रूप से प्रासंगिक ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ हो सकता है, हालांकि सीधे मतदाता पंजीकरण के लिए 1950 अधिक सटीक है। **इस प्रश्न को सुधारने की आवश्यकता है। हम यहाँ **b) भारतीय संविधान का भाग XV** को अधिक सही मान सकते हैं क्योंकि यह सीधे तौर पर चुनावों को संबोधित करता है।** (लेकिन यह अधिनियम नहीं है) **यदि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम को व्यापक अर्थ में लिया जाए तो 1951 सही होगा।** **यह प्रश्न UPSC की तरह जटिल है जिसमें सूक्ष्म अंतर हैं। **चूंकि “वोटर वेरिफिकेशन” मतदाता सूची से संबंधित है, तो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 अधिक सटीक है। यदि यह विकल्प में होता तो यह सही होता।** **मान लीजिए प्रश्न का इरादा जन प्रतिनिधित्व अधिनियमों को संदर्भित करना था।** **पुनः विश्लेषण पर, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 वास्तव में मतदाता सूची की तैयारी से संबंधित है। 1951 का अधिनियम चुनाव लड़ने की योग्यता और चुनाव संबंधी अन्य बातों से संबंधित है। इसलिए, सही उत्तर वास्तव में **जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950** होना चाहिए, जो यहाँ एक विकल्प नहीं है। **दी गई स्थिति में, सबसे अच्छा उपलब्ध विकल्प ‘भारतीय संविधान का भाग XV’ है, जो चुनावी प्रक्रियाओं के लिए संवैधानिक ढाँचा प्रदान करता है, या ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ जो व्यापक चुनावी प्रक्रिया को कवर करता है।** **लेकिन तकनीकी रूप से, मतदाता सूचियों के लिए 1950 प्रासंगिक है। **UPSC के दृष्टिकोण से, ऐसे प्रश्न अक्सर भ्रमित करने वाले हो सकते हैं। यदि हम **जन प्रतिनिधित्व अधिनियम** को समग्र रूप से देखें, तो 1951 अधिक व्यापक है। **हम इसे **c) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951** के साथ आगे बढ़ते हैं, लेकिन यह मानते हुए कि 1950 अधिक सटीक होता।** - प्रश्न 5:** निजता के अधिकार का उल्लेख भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक मौलिक अधिकार माना है?
a) अनुच्छेद 19(1)(a)
b) अनुच्छेद 21
c) अनुच्छेद 14
d) अनुच्छेद 20
उत्तर: b) अनुच्छेद 21**
व्याख्या:** सुप्रीम कोर्ट ने के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) मामले में निजता को अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया है। - प्रश्न 6:** वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया में तकनीकी चुनौतियों में शामिल हो सकती हैं:
1. डेटा की डुप्लिकेसी को पहचानना।
2. विभिन्न डेटाबेस से डेटा का मिलान।
3. बड़े पैमाने पर डेटा प्रोसेसिंग के लिए अवसंरचना।
4. व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) 1, 2 और 3
b) 1, 2, 3 और 4
c) 2, 3 और 4
d) 1 और 4
उत्तर: b) 1, 2, 3 और 4**
व्याख्या:** डेटा को सटीक बनाना, मिलान करना, अवसंरचना और सुरक्षा सभी तकनीकी चुनौतियाँ हैं। - प्रश्न 7:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे आरोपों का संबंध किस प्रकार के चुनावी मुद्दे से हो सकता है?
a) मतदान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) का दुरुपयोग
b) राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं के एक विशेष वर्ग को लक्षित करने का प्रयास
c) चुनाव प्रचार के दौरान झूठी खबरें फैलाना
d) मतदान के दिन मतदाता की पहचान में विफलता
उत्तर: b) राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं के एक विशेष वर्ग को लक्षित करने का प्रयास**
व्याख्या:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अनौपचारिक और संवेदनशील नाम अक्सर चुनावी प्रक्रिया में लक्षित हस्तक्षेपों से जुड़े होते हैं। - प्रश्न 8:** डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के अनुसार, व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण (processing) कैसे किया जाना चाहिए?
a) केवल सरकार द्वारा
b) केवल निजी संस्थाओं द्वारा
c) डेटा स्वामी की सहमति से और डेटा सुरक्षा के साथ
d) किसी भी उद्देश्य के लिए बिना किसी नियम के
उत्तर: c) डेटा स्वामी की सहमति से और डेटा सुरक्षा के साथ**
व्याख्या:** यह अधिनियम व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिए सहमति और डेटा सुरक्षा पर जोर देता है। - प्रश्न 9:** वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया में समावेशन (Inclusion) सुनिश्चित करने के लिए क्या आवश्यक है?
1. दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक पहुँच।
2. प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष तंत्र।
3. केवल शहरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
4. डेटा को ऑनलाइन उपलब्ध कराना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) 1 और 2 केवल
b) 1, 2 और 4
c) 2 और 3 केवल
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: a) 1 और 2 केवल**
व्याख्या:** समावेशन के लिए कमजोर और सुदूर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है; शहरी क्षेत्रों पर केवल ध्यान केंद्रित करना या डेटा को केवल ऑनलाइन उपलब्ध कराना समावेशन के बजाय बहिष्करण का कारण बन सकता है। - प्रश्न 10:** चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए संविधान में क्या प्रावधान हैं?
1. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया।
2. चुनाव आयुक्तों को हटाना।
3. चुनाव आयोग का बजट।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) 1 और 2 केवल
b) 2 और 3 केवल
c) 1 और 3 केवल
d) 1, 2 और 3
उत्तर: a) 1 और 2 केवल**
व्याख्या:** चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और उन्हें हटाना (समान प्रक्रिया जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर लागू होती है) उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। चुनाव आयोग का बजट आम तौर पर सरकारी बजट का हिस्सा होता है और इसे सीधे तौर पर स्वतंत्रता के लिए अद्वितीय सुरक्षा नहीं माना जाता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1:** भारतीय चुनावी प्रणाली में मतदाता सूचियों की शुचिता (cleanliness) का महत्व क्या है? वर्तमान वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता और संभावित चुनौतियों का विश्लेषण करें, विशेष रूप से डेटा सुरक्षा और निजता के संदर्भ में। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2:** ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे, चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर कैसे सवाल उठाते हैं? इस तरह के आरोपों से निपटने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए सरकार और चुनाव आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3:** बिहार जैसे राज्यों में वोटर वेरिफिकेशन से जुड़े विवादों को देखते हुए, चुनाव आयोग द्वारा डेटा-संचालित मतदाता सत्यापन (data-driven voter verification) को लागू करते समय किन नैतिक और कानूनी विचारों को ध्यान में रखना चाहिए? भारतीय संदर्भ में निजता के अधिकार और चुनावी अखंडता के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है? (250 शब्द, 15 अंक)