मानसून सत्र: संसद में बवंडर या बिलों की बारिश? पक्ष-विपक्ष की रणनीति
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
भारत की संसद, लोकतंत्र का वह विशाल अखाड़ा है जहाँ देश की नीतियां आकार लेती हैं और जनता की आवाज़ गूँजती है। हर साल की तरह, एक बार फिर, संसद का मानसून सत्र अपने तय समय पर शुरू होने जा रहा है। इस सत्र को लेकर राजनीतिक गलियारों और विश्लेषकों में गहन चर्चाएँ चल रही हैं कि क्या यह सत्र विधायी कार्यों की ‘बिलों की बारिश’ लाएगा या फिर विपक्ष के तीखे तेवरों और सरकार के कड़े रुख के बीच ‘बवंडर’ की भेंट चढ़ जाएगा? यह सिर्फ एक अकादमिक बहस नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर देश की प्रगति, नीति निर्माण की गति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आइए, इस आगामी सत्र के भीतर छिपे मुद्दों, दोनों पक्षों की रणनीतियों और एक संसदीय सत्र की कार्यप्रणाली को गहराई से समझते हैं।
संसद सत्रों की अहमियत: लोकतंत्र का धड़कता दिल
संसद सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र का धड़कता दिल है। यह वह मंच है जहाँ देश के भविष्य की दिशा तय होती है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि उनके मुद्दों को उठाते हैं, कानूनों पर बहस करते हैं और सरकार को जवाबदेह ठहराते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर आहूत करने की शक्ति देता है, जैसा वह उचित समझे, लेकिन यह भी सुनिश्चित करता है कि संसद के एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की पहली बैठक के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए। इस प्रावधान के तहत, भारत में सामान्यतः तीन संसदीय सत्र होते हैं:
- बजट सत्र (फरवरी-मई): यह सबसे लंबा और सबसे महत्वपूर्ण सत्र होता है, जिसमें सरकार अपना वार्षिक बजट पेश करती है और उस पर विस्तृत चर्चा होती है।
- मानसून सत्र (जुलाई-सितंबर): यह दूसरा सत्र होता है, जिसमें विभिन्न विधेयक पारित किए जाते हैं और समसामयिक मुद्दों पर बहस होती है।
- शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर): यह सबसे छोटा सत्र होता है, जो वर्ष के अंत में होता है और इसमें महत्वपूर्ण विधायी कार्य पूरे किए जाते हैं।
प्रत्येक सत्र का अपना महत्व है, लेकिन मानसून सत्र अक्सर विशेष रूप से हंगामेदार होता है क्योंकि यह आमतौर पर राज्य चुनावों से पहले या राष्ट्रीय चुनावों के ठीक बाद आता है, जिससे राजनीतिक तापमान अपने चरम पर होता है। यह एक ऐसा समय होता है जब विपक्ष अपनी पूरी ताकत से सरकार को घेरने की कोशिश करता है और सरकार अपनी उपलब्धियों को उजागर कर विपक्ष के आरोपों का खंडन करती है।
मानसून सत्र क्यों होता है इतना ‘हंगामेदार’?
मानसून सत्र अक्सर अपनी गर्माहट और बहस की तीव्रता के लिए जाना जाता है। इसके कई कारण हैं:
- राजनीतिक ध्रुवीकरण और चुनावी चक्र: यह सत्र अक्सर आगामी राज्य विधानसभा चुनावों या अगले लोकसभा चुनावों से पहले का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। राजनीतिक दल इस मंच का उपयोग जनता के बीच अपनी पैठ बनाने और प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने के लिए करते हैं। हर मुद्दे पर राजनीतिक स्कोरिंग की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
- उच्च-दाँव वाले विधेयक: सरकार अक्सर मानसून सत्र में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद विधेयक पेश करती है जिन पर देशव्यापी बहस छिड़ सकती है। इन विधेयकों का पारित होना सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है, वहीं विपक्ष इन्हें रोकने या संशोधन कराने के लिए हर संभव प्रयास करता है।
- जनता के दबाव वाले ज्वलंत मुद्दे: मानसून सत्र में अक्सर वे मुद्दे हावी होते हैं जो हाल के महीनों में जनता के बीच चर्चा का विषय रहे हों – जैसे कि महंगाई, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था, कृषि संकट, सांप्रदायिक तनाव या कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा। विपक्ष इन मुद्दों को उठाकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करता है।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया संसद की कार्यवाही पर लगातार नज़र रखता है। हंगामेदार बहसें, वाकआउट और प्रदर्शन सुर्खियां बटोरते हैं। यह भी एक कारण है कि दल संसदीय मंच का उपयोग अपनी बात को व्यापक जनता तक पहुँचाने के लिए करते हैं।
- विपक्ष की रणनीति: सत्ता में न होने के कारण विपक्ष के पास सरकार पर दबाव बनाने और अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करने के लिए संसद सबसे सशक्त मंच होता है। व्यवधान, स्थगन और विरोध प्रदर्शन उनकी रणनीति का हिस्सा बन जाते हैं, विशेषकर जब उन्हें लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है।
“संसद बहस, विचार-विमर्श और सर्वसम्मति का मंदिर है, न कि व्यवधान और गतिरोध का अखाड़ा।”
सत्ता पक्ष के मुद्दे और रणनीति (सरकार का एजेंडा)
सत्तारूढ़ दल या गठबंधन के लिए संसद सत्र अपनी विधायी प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने, अपनी नीतियों का बचाव करने और अपनी उपलब्धियों को रेखांकित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। आगामी मानसून सत्र में सरकार इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है:
- कानून बनाना और शासन (Legislative Agenda):
- महत्वपूर्ण विधेयकों का पारित होना: सरकार का प्राथमिक लक्ष्य विभिन्न लंबित विधेयकों को पारित कराना होगा, जो उसके चुनावी वादों या नीतिगत लक्ष्यों से संबंधित हो सकते हैं। इनमें आर्थिक सुधारों से जुड़े विधेयक, सामाजिक कल्याण से संबंधित कानून (जैसे महिला सशक्तिकरण, बाल विकास), या राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने वाले विधेयक शामिल हो सकते हैं।
- पुरानी नीतियों में सुधार: कुछ ऐसे विधेयक भी पेश हो सकते हैं जो पिछली सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों में संशोधन करें या उन्हें निरस्त करें, ताकि सरकार अपनी विचारधारा के अनुरूप शासन प्रणाली स्थापित कर सके। उदाहरण के लिए, डेटा संरक्षण विधेयक, वन संरक्षण संशोधन विधेयक, या मीडिया संबंधी नियम।
- आर्थिक प्रदर्शन का बचाव (Defending Economic Performance):
- विकास दर और आर्थिक स्थिरता: सरकार आर्थिक विकास के आंकड़ों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), और बुनियादी ढाँचे के विकास को उजागर कर सकती है।
- महंगाई पर नियंत्रण के उपाय: विपक्ष द्वारा महंगाई के मुद्दे पर घेरे जाने पर, सरकार अपने द्वारा उठाए गए कदमों, जैसे आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता और ईंधन की कीमतों पर नियंत्रण के प्रयासों को रेखांकित कर सकती है।
- रोजगार सृजन: विभिन्न सरकारी योजनाओं और निजी क्षेत्र में निवेश के माध्यम से रोजगार के अवसरों में वृद्धि को सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।
- सामाजिक समरसता और कल्याण (Social Harmony & Welfare):
- कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार: प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत, जल जीवन मिशन, उज्ज्वला योजना जैसी प्रमुख योजनाओं की सफलता और उनके प्रभावों पर जोर दिया जा सकता है।
- सामाजिक न्याय के मुद्दे: समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए उठाए गए कदमों, जैसे आरक्षण, विशेष पैकेज या नई नीतियों को सरकार अपने एजेंडे में शामिल कर सकती है।
- एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना: राष्ट्रीय एकता और विविधता में एकता पर जोर देते हुए सांस्कृतिक और भाषाई समरसता को बढ़ावा देने वाले कदमों को उजागर किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सुरक्षा (International Relations & Security):
- वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका: जी-20 अध्यक्षता, विभिन्न वैश्विक शिखर सम्मेलनों में भारत की उपस्थिति और कूटनीतिक सफलताओं को सरकार अपनी विदेश नीति की जीत के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।
- सीमा सुरक्षा और आतंकवाद पर नियंत्रण: सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदमों, घुसपैठ पर नियंत्रण, और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई पर जोर दे सकती है।
- विपक्ष को साधने की कला (Managing the Opposition):
- विपक्ष के आरोपों का खंडन: सरकार विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों का तथ्यात्मक रूप से खंडन करने की कोशिश करेगी और उनके तर्कों को कमजोर करेगी।
- अपनी उपलब्धियों का आक्रामक प्रचार: सरकार संसद के भीतर और बाहर लगातार अपनी उपलब्धियों को दोहराएगी ताकि विपक्ष के नकारात्मक प्रचार का मुकाबला किया जा सके।
- संवाद और सर्वसम्मति का प्रयास: कुछ मुद्दों पर सरकार विपक्ष के साथ संवाद स्थापित कर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास भी कर सकती है, खासकर उन विधेयकों पर जहाँ उन्हें समर्थन की आवश्यकता होगी।
विपक्ष के मुद्दे और रणनीति (सरकार को घेरने की तैयारी)
विपक्ष के लिए संसद सरकार की नीतियों की समीक्षा करने, जनता के मुद्दों को उठाने और अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता स्थापित करने का सबसे शक्तिशाली मंच है। आगामी मानसून सत्र में विपक्ष इन प्रमुख मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश करेगा:
- महंगाई और बेरोजगारी (Inflation & Unemployment):
- जीवनयापन की लागत में वृद्धि: खाद्य पदार्थों, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर सरकार को घेरा जाएगा। यह मुद्दा सीधे आम आदमी को प्रभावित करता है।
- रोजगार संकट: खासकर युवा वर्ग में बेरोजगारी की उच्च दर, नई नौकरियों के सृजन में कमी और सरकारी भर्तियों में देरी जैसे मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगा जाएगा।
- सामाजिक विभाजन और सांप्रदायिकता (Social Division & Communalism):
- घृणा भाषण और सामाजिक तनाव: देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ते सामाजिक ध्रुवीकरण, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और घृणा भाषण के मामलों पर सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए जाएंगे।
- कानून-व्यवस्था की स्थिति: विभिन्न राज्यों में बिगड़ती कानून-व्यवस्था और संवेदनशील घटनाओं पर सरकार की जवाबदेही तय करने का प्रयास किया जाएगा।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले (Attacks on Democratic Institutions):
- एजेंसियों का कथित दुरुपयोग: विपक्ष आरोप लगा सकता है कि सरकारी एजेंसियों (जैसे ED, CBI) का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है।
- संसद की गरिमा पर सवाल: बार-बार व्यवधान, विधेयकों पर पर्याप्त बहस न होना, और संसदीय समितियों की भूमिका को कम करने जैसे मुद्दों पर चिंता व्यक्त की जा सकती है।
- मीडिया की स्वतंत्रता: मीडिया पर दबाव और आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के कथित प्रयासों पर भी विपक्ष सवाल उठा सकता है।
- राज्य विशिष्ट मुद्दे और संघीय ढाँचा (State-Specific Issues & Federal Structure):
- राज्यों के अधिकार: केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव, विशेष रूप से वित्तीय संसाधनों के बँटवारे और कुछ कानूनों के तहत राज्यों की स्वायत्तता को कम करने के कथित प्रयासों पर बहस हो सकती है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: यदि किसी राज्य में हाल ही में कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आई है, तो उस पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया और राहत कार्यों पर सवाल उठाए जाएंगे।
- संसदीय गतिरोध और विरोध की रणनीति (Parliamentary Deadlock & Protest Strategy):
- नियम 267 के तहत बहस: विपक्ष महत्वपूर्ण मुद्दों पर तत्काल बहस की मांग के लिए नियम 267 (नियमित एजेंडा को निलंबित कर किसी गंभीर विषय पर चर्चा) का सहारा ले सकता है।
- सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (यदि स्थिति अनुकूल हो): यदि विपक्ष के पास संख्या बल और एकजुटता हो, तो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर भी विचार किया जा सकता है, हालाँकि इसका उद्देश्य सरकार को गिराने से अधिक उसके प्रति जनता का ध्यान आकर्षित करना और उसकी कमजोरियों को उजागर करना होता है।
- ‘INDIA’ गठबंधन की चुनौतियाँ: नवगठित ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए यह सत्र अपनी एकजुटता और प्रभावी समन्वय दिखाने का पहला बड़ा अवसर होगा। विभिन्न दलों के हितों को साधते हुए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम और रणनीति बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
प्रमुख विधेयक और संभावित बहसें (उदाहरण)
हालांकि विधेयकों की अंतिम सूची सत्र से ठीक पहले जारी होती है, पर कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर आधारित विधेयक अक्सर संसद के पटल पर आते हैं और जिन पर तीखी बहसें अपेक्षित होती हैं:
- डेटा संरक्षण विधेयक: नागरिकों के डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए यह विधेयक महत्वपूर्ण है, लेकिन इस पर सरकार के निगरानी अधिकारों और कंपनियों की जवाबदेही को लेकर बहस हो सकती है।
- वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक: पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन साधने की कोशिश करता यह विधेयक, पर्यावरणविदों और आदिवासी समुदायों के अधिकारों को लेकर संवेदनशील है।
- जनजातीय मामलों से संबंधित विधेयक: जनजातीय समुदायों के अधिकारों, सशक्तिकरण और विकास से जुड़े विधेयक हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं और इन पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता होती है।
- अर्थव्यवस्था से जुड़े विधेयक: वित्तीय क्षेत्र में सुधार, कराधान या व्यापार संबंधी कोई भी विधेयक अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभावों को लेकर गहन चर्चा का विषय बनेगा।
संसदीय कार्यप्रणाली में चुनौतियाँ
भारत की संसदीय प्रणाली में पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियाँ उभरी हैं, जो आगामी सत्र की कार्यप्रणाली को भी प्रभावित कर सकती हैं:
- गतिरोध और व्यवधान (Deadlock & Disruptions):
- नुकसान: बार-बार के व्यवधानों से संसद का कीमती समय और जनता का पैसा बर्बाद होता है। महत्वपूर्ण विधेयकों पर पर्याप्त बहस नहीं हो पाती और वे बिना गहन पड़ताल के पारित हो जाते हैं।
- कारण: विपक्ष का असंतोष, सरकार का कठोर रवैया, और नियमों के उचित पालन की कमी।
- बहस की गुणवत्ता में कमी (Deterioration in Quality of Debate):
- गंभीर नीतिगत चर्चाओं के बजाय अक्सर राजनीतिक बयानबाजी और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप हावी हो जाते हैं।
- अध्यादेशों का बढ़ता प्रयोग (Increased Use of Ordinances):
- यह प्रवृत्ति संसद को बाईपास करने जैसी लगती है, क्योंकि अध्यादेशों को बाद में संसद में कानून के रूप में पारित कराना होता है, पर इससे सरकार को तत्काल प्रभाव से कानून लागू करने की छूट मिल जाती है।
- समिति प्रणाली का कमजोर होना (Weakening of Committee System):
- विधेयकों को अक्सर संसदीय स्थायी समितियों को भेजे बिना ही पारित कर दिया जाता है, जिससे उनकी गहन जांच और विभिन्न हितधारकों से परामर्श का अवसर कम हो जाता है।
- समितियाँ ‘मिनी-पार्लियामेंट’ होती हैं जहाँ विशेषज्ञता और सूक्ष्म-स्तरी पर विश्लेषण संभव होता है।
- अनुपस्थिति और गणपूर्ति (Absence & Quorum):
- सांसदों की सदन से अनुपस्थिति और गणपूर्ति (कोरम) की समस्या भी अक्सर देखी जाती है, जिससे कार्यवाही बाधित होती है।
“एक जीवंत लोकतंत्र में, संसद केवल कानूनों का कारखाना नहीं, बल्कि विचारों का विश्वविद्यालय है जहाँ हर आवाज़ को सुना जाना चाहिए।”
आगे की राह: संसद को प्रभावी बनाने के उपाय
संसद की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी और उत्पादक बनाने के लिए निम्नलिखित उपायों पर विचार किया जा सकता है:
- सकारात्मक संवाद और सर्वसम्मति (Constructive Dialogue & Consensus):
- सत्र शुरू होने से पहले ही सरकार और विपक्ष के बीच महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनौपचारिक बातचीत होनी चाहिए ताकि गतिरोध से बचा जा सके।
- पीठासीन अधिकारियों (अध्यक्ष और सभापति) को सभी पक्षों को साथ लेकर चलने में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- नियमों का प्रभावी पालन (Effective Enforcement of Rules):
- संसद के नियमों और प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि अनावश्यक व्यवधानों को रोका जा सके।
- विशेष रूप से, नियमों के तहत बहस के लिए उपलब्ध विभिन्न उपकरणों (जैसे प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अल्पकालिक चर्चा) का रचनात्मक उपयोग होना चाहिए।
- समिति प्रणाली का सुदृढीकरण (Strengthening the Committee System):
- अधिक से अधिक विधेयकों को संसदीय स्थायी समितियों को भेजा जाना चाहिए ताकि उनकी गहन जांच और व्यापक परामर्श हो सके।
- समितियों की रिपोर्टों को सदन में गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
- उत्पादकता का मूल्यांकन (Evaluating Productivity):
- संसद की उत्पादकता का मूल्यांकन केवल पारित विधेयकों की संख्या से नहीं, बल्कि बहस की गुणवत्ता, सरकार की जवाबदेही और मुद्दों के समाधान की क्षमता से भी होना चाहिए।
- जनता की भागीदारी और पारदर्शिता (Public Participation & Transparency):
- संसदीय कार्यवाही का सीधा प्रसारण और डिजिटलीकरण जनता को संसद के कामकाज से जोड़ने में मदद करता है।
- नागरिक समाज संगठनों और विशेषज्ञों के इनपुट को विधायी प्रक्रिया में शामिल करने के लिए तंत्र विकसित किए जाने चाहिए।
- सांसदों का आचरण और नैतिकता (Conduct and Ethics of MPs):
- सांसदों को संसदीय गरिमा बनाए रखने और मर्यादा का पालन करने के लिए स्वयं को अनुशासित करना चाहिए।
- विरोध दर्ज कराने के तरीके रचनात्मक और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप होने चाहिए।
निष्कर्ष
आगामी मानसून सत्र भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी। यह सिर्फ कुछ विधेयकों को पारित करने या राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मंच नहीं है, बल्कि यह वह अवसर है जब देश की सबसे बड़ी पंचायत जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठा सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या संसद, अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, एक रचनात्मक और उत्पादक सत्र के रूप में उभरेगी, या फिर राजनीतिक ध्रुवीकरण और चुनावी रणनीति के शोर में खो जाएगी। एक मजबूत और प्रभावी संसद ही एक मजबूत और जीवंत लोकतंत्र की नींव है। आशा है कि इस सत्र में ‘बिलों की बारिश’ होगी और ‘बवंडर’ को नियंत्रित किया जाएगा, जिससे भारतीय लोकतंत्र और सशक्त बनेगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(प्रत्येक प्रश्न के लिए दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनें।)
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार, संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम कितना अंतराल हो सकता है?
(a) 3 महीने
(b) 4 महीने
(c) 5 महीने
(d) 6 महीने
उत्तर: (d)
व्याख्या: अनुच्छेद 85(1) स्पष्ट रूप से कहता है कि संसद के एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की पहली बैठक के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए। - संसद में ‘शून्यकाल’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह भारतीय संसदीय नवाचार है जो प्रक्रिया नियमों में उल्लिखित नहीं है।
- इसमें सदस्य बिना पूर्व सूचना के तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठा सकते हैं।
- यह प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल i और ii
(b) केवल ii और iii
(c) केवल i और iii
(d) i, ii और iii
उत्तर: (d)
व्याख्या: शून्यकाल भारतीय संसदीय प्रक्रिया का एक अनौपचारिक हिस्सा है जो 1960 के दशक से प्रचलन में है। इसमें सदस्य अध्यक्ष/सभापति की अनुमति से बिना पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण मामले उठा सकते हैं। यह आमतौर पर प्रश्नकाल के ठीक बाद शुरू होता है और नियमित एजेंडा शुरू होने तक चलता है। - निम्नलिखित में से कौन-सा/से संसदीय समिति प्रणाली का/के लाभ है/हैं?
- विधेयकों का विस्तृत और गहन परीक्षण।
- विभिन्न हितधारकों से विशेषज्ञता और परामर्श प्राप्त करना।
- संसद के कीमती समय की बचत करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल i
(b) केवल ii और iii
(c) केवल i और iii
(d) i, ii और iii
उत्तर: (d)
व्याख्या: संसदीय समितियां “मिनी-पार्लियामेंट” के रूप में कार्य करती हैं, जहां विशेषज्ञता और समयबद्ध तरीके से विधेयकों का विस्तृत परीक्षण होता है, जिससे सदन का कीमती समय बचता है और नीतियों की गुणवत्ता सुधरती है। - भारतीय संसद के संदर्भ में, ‘प्रोटोम स्पीकर’ के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- वह नव-निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है।
- उसका मुख्य कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना है।
- वह आम तौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य होते हैं।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल i और ii
(b) केवल ii और iii
(c) केवल i और iii
(d) i, ii और iii
उत्तर: (d)
व्याख्या: प्रोटेम स्पीकर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, आमतौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को। उनका कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और नए अध्यक्ष के चुनाव की अध्यक्षता करना है। - संसद में ‘गणपूर्ति’ (Quorum) के संबंध में सही कथन चुनें:
(a) यह कुल सदस्यों का एक-दसवां हिस्सा होता है।
(b) इसके बिना सदन की कार्यवाही नहीं चल सकती।
(c) इसमें पीठासीन अधिकारी भी शामिल होता है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: अनुच्छेद 100(3) के अनुसार, सदन की बैठक के लिए गणपूर्ति कुल सदस्यों की संख्या का दसवां हिस्सा होता है, जिसमें पीठासीन अधिकारी भी शामिल होता है। यदि गणपूर्ति नहीं है, तो अध्यक्ष या सभापति सदन को स्थगित कर सकते हैं या बैठक को निलंबित कर सकते हैं। - निम्नलिखित में से कौन सा संसद के कार्य हैं?
- विधायी कार्य
- कार्यपालिका पर नियंत्रण
- वित्तीय कार्य
- संविधान में संशोधन
- न्यायिक कार्य
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल i, ii और iii
(b) केवल ii, iii, iv और v
(c) केवल i, iii, iv और v
(d) i, ii, iii, iv और v
उत्तर: (d)
व्याख्या: संसद के कार्य व्यापक होते हैं, जिनमें कानून बनाना (विधायी), सरकार पर नियंत्रण रखना (कार्यपालिका पर नियंत्रण), बजट और वित्त पर नियंत्रण (वित्तीय), संविधान में संशोधन करना (संशोधन), और कुछ न्यायिक कार्य (जैसे महाभियोग) शामिल हैं। - ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) किसी मंत्री पर आरोप लगाना
(b) किसी गंभीर सार्वजनिक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करना
(c) अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू करना
(d) किसी सदस्य को बहस से बाहर करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: ध्यानाकर्षण प्रस्ताव एक सदस्य द्वारा किसी तात्कालिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर किसी मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और उस मामले पर मंत्री से आधिकारिक बयान मांगने के लिए पेश किया जाता है। - भारत में संसद का बजट सत्र आम तौर पर किस महीने में शुरू होता है?
(a) जनवरी
(b) फरवरी
(c) जुलाई
(d) नवंबर
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत में संसदीय सत्रों का सामान्य क्रम है: बजट सत्र (फरवरी-मई), मानसून सत्र (जुलाई-सितंबर), और शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर)। - निम्नलिखित में से कौन-सा विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है?
(a) संविधान संशोधन विधेयक
(b) साधारण विधेयक
(c) धन विधेयक
(d) वित्त विधेयक (अनुच्छेद 117 के तहत)
उत्तर: (c)
व्याख्या: धन विधेयक (Money Bill) केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्यसभा की इसमें सीमित शक्तियाँ होती हैं। संविधान संशोधन विधेयक और साधारण विधेयक दोनों सदनों में से किसी में भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जबकि वित्त विधेयक (अनुच्छेद 117 के तहत) लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन यह धन विधेयक नहीं होता। - संसदीय कार्यवाही में ‘गिलोटिन’ (Guillotine) का क्या अर्थ है?
(a) किसी विधेयक को तुरंत पारित करना।
(b) बहस के लिए आवंटित समय समाप्त होने पर बिना चर्चा के शेष मांगों को मतदान के लिए रखना।
(c) किसी सदस्य को सदन से निलंबित करना।
(d) बजट सत्र को समय से पहले समाप्त करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: गिलोटिन वह स्थिति है जब बहस के लिए निर्धारित समय समाप्त होने पर, अध्यक्ष/सभापति बिना चर्चा के उन सभी मांगों को मतदान के लिए रखते हैं जिन पर अभी तक चर्चा नहीं हुई है। यह आमतौर पर बजट सत्र में विनियोग विधेयक के संबंध में होता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- “संसद, बहस, विचार-विमर्श और सर्वसम्मति का मंदिर है, न कि व्यवधान और गतिरोध का अखाड़ा।” भारतीय संसद की वर्तमान कार्यप्रणाली के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और इसके प्रभावी कामकाज में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
- भारतीय संसदीय प्रणाली में विपक्ष की भूमिका केवल सरकार की आलोचना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। हाल के संसदीय सत्रों के संदर्भ में विपक्ष की भूमिका और उसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।
- संसदीय समितियों को ‘मिनी-पार्लियामेंट’ क्यों कहा जाता है? भारतीय संसद में विधायी प्रक्रिया में इन समितियों की घटती भूमिका के क्या निहितार्थ हैं और इन्हें मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
- आगामी मानसून सत्र को लेकर सरकार और विपक्ष के अपने-अपने एजेंडे हैं। एक जीवंत लोकतंत्र में संसदीय सत्रों की उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए सरकार और विपक्ष, दोनों की क्या जिम्मेदारियां होनी चाहिए? उदाहरणों सहित समझाइए।