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मानसून का कहर: राजस्थान, MP और हिमाचल में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त – एक विस्तृत रिपोर्ट

मानसून का कहर: राजस्थान, MP और हिमाचल में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त – एक विस्तृत रिपोर्ट

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, भारत के कई राज्यों में मानसून की अभूतपूर्व वर्षा ने तबाही मचाई है। विशेष रूप से, राजस्थान और मध्य प्रदेश (MP) बाढ़ की गंभीर चपेट में हैं, जहाँ 18 जिलों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं और सवाई माधोपुर जैसे शहरों में घरों में 5 फीट तक पानी भर गया है। दूसरी ओर, हिमाचल प्रदेश में भी भारी बारिश के कारण 357 से अधिक सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं, जिससे जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है। यह स्थिति न केवल तात्कालिक संकट पैदा करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और सरकारी प्रतिक्रिया तंत्र पर भी गंभीर सवाल उठाती है। यह ब्लॉग पोस्ट इन बाढ़ों के कारणों, प्रभावों, सरकारी प्रतिक्रियाओं और भविष्य की राह पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो विशेष रूप से UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक है।

बाढ़: एक बढ़ती हुई प्राकृतिक आपदा (Floods: A Growing Natural Calamity)

भारत, अपनी भौगोलिक स्थिति और मौसमी मानसून पर निर्भरता के कारण, ऐतिहासिक रूप से बाढ़-प्रवण रहा है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि कई कारकों का परिणाम है, जिसमें अनियोजित शहरीकरण, वनों की कटाई, नदी घाटियों का अतिक्रमण और सबसे महत्वपूर्ण, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव शामिल हैं।

बाढ़ के कारण: एक बहुआयामी विश्लेषण (Causes of Floods: A Multifaceted Analysis)

राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में आई इन हालिया बाढ़ों के पीछे कई कारण हैं:

  • अत्यधिक वर्षा (Excessive Rainfall): मानसून के दौरान सामान्य से अधिक और केंद्रित वर्षा, जैसे कि क्लाउड बर्स्ट की घटनाएं, नदियों और जल निकायों में अचानक भारी मात्रा में पानी लाती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन (Climate Change): वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। इसके परिणामस्वरूप, तीव्र और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो पारंपरिक जल निकासी प्रणालियों के लिए एक चुनौती पेश करती हैं।
  • शहरीकरण और अनियोजित विकास (Urbanization and Unplanned Development):

    • कंक्रीट का जंगल (Concrete Jungle): शहरों में बढ़ते कंक्रीट और पक्की सड़कों के कारण भूमि की जल अवशोषण क्षमता कम हो जाती है। बारिश का पानी सीधे नालियों और नदियों में बह जाता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
    • जल निकासी व्यवस्था का अभाव (Inadequate Drainage Systems): पुरानी या अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्थाएं भारी वर्षा के पानी को प्रभावी ढंग से बाहर निकालने में असमर्थ होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप जल जमाव और बाढ़ आती है।
    • नदी तटों पर अतिक्रमण (Encroachment on Riverbanks): नदियों के किनारों पर निर्माण कार्य और अनधिकृत बस्तियाँ नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करती हैं और बाढ़ के दौरान जलस्तर को बढ़ा देती हैं।
  • वनों की कटाई (Deforestation): पहाड़ी क्षेत्रों (जैसे हिमाचल प्रदेश) और जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की कटाई मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है और वर्षा जल को सोखने की प्राकृतिक क्षमता को कम करती है। इससे न केवल भूस्खलन का खतरा बढ़ता है, बल्कि नदियों में गाद (silt) भी बढ़ती है, जिससे उनकी जल धारण क्षमता घट जाती है।
  • बांधों से पानी छोड़ना (Water Release from Dams): कई बार, भारी बारिश के पूर्वानुमान के कारण, निचले इलाकों में बाढ़ को रोकने के लिए बांधों से नियंत्रित मात्रा में पानी छोड़ा जाता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से आगे चलकर बाढ़ का कारण बन सकता है, खासकर यदि यह अचानक और बिना पर्याप्त चेतावनी के हो।

क्षेत्र-विशिष्ट परिदृश्य (Region-Specific Scenarios)

राजस्थान और मध्य प्रदेश: इन राज्यों के निचले इलाकों में, विशेष रूप से सवाई माधोपुर जैसे क्षेत्रों में, जलभराव एक बड़ी समस्या है। घरों में 5 फीट तक पानी भर जाना यह दर्शाता है कि स्थानीय जल निकासी व्यवस्थाएं पूरी तरह से चरमरा गई हैं। नदियों का जलस्तर बढ़ना, बांधों से पानी छोड़ना और तीव्र वर्षा का संयोजन इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। 18 जिलों में स्कूलों का बंद होना शिक्षा और बच्चों की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव डालता है।

“बाढ़ सिर्फ एक जल समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक अव्यवस्था का एक गंभीर संकेत है।”

हिमाचल प्रदेश: यह राज्य अपनी पहाड़ी प्रकृति के कारण भूस्खलन और अचानक बाढ़ (flash floods) के प्रति अधिक संवेदनशील है। 357 से अधिक सड़कों का बंद होना केवल कनेक्टिविटी की समस्या नहीं है, बल्कि यह आवश्यक सेवाओं, चिकित्सा सहायता, आपूर्ति श्रृंखला और बचाव कार्यों में बाधा डालता है। भूस्खलन के कारण बिजली लाइनें और संचार व्यवस्था भी प्रभावित होती है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है।

बाढ़ के प्रभाव: तत्काल और दीर्घकालिक (Impact of Floods: Immediate and Long-Term)

बाढ़ों के प्रभाव दूरगामी होते हैं, जो मानव जीवन, संपत्ति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को प्रभावित करते हैं:

सामाजिक प्रभाव (Social Impacts):

  • जानमाल की हानि (Loss of Life and Property): बाढ़ से सीधे तौर पर लोगों की मृत्यु होती है और उनके घरों, संपत्ति और आजीविका का विनाश होता है।
  • विस्थापन (Displacement): लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं, जिन्हें अस्थायी आश्रयों में रहना पड़ता है। यह बेघर, खाद्य असुरक्षा और स्वच्छता संबंधी बीमारियों का कारण बनता है।
  • स्वास्थ्य संकट (Health Crisis): बाढ़ का पानी अपने साथ सीवेज और खतरनाक रसायन ला सकता है, जिससे हैजा, टाइफाइड, मलेरिया और डेंगू जैसी जल-जनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • शिक्षा में बाधा (Disruption of Education): स्कूलों का बंद होना बच्चों की शिक्षा में व्यवधान डालता है, खासकर परीक्षा अवधि के दौरान।

आर्थिक प्रभाव (Economic Impacts):

  • कृषि को नुकसान (Damage to Agriculture): फसलें पानी में डूब जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। मिट्टी का उपजाऊपन भी प्रभावित हो सकता है।
  • बुनियादी ढांचे का विनाश (Destruction of Infrastructure): सड़कें, पुल, बिजली लाइनें, संचार टावर और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे नष्ट हो जाते हैं, जिनके पुनर्निर्माण में भारी लागत आती है।
  • आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान (Disruption of Supply Chains): परिवहन बाधित होने से वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति प्रभावित होती है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।
  • पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Impact on Tourism and Local Economy): हिमाचल जैसे राज्यों में, जहाँ पर्यटन एक प्रमुख उद्योग है, बाढ़ के कारण पर्यटकों का आगमन रुक जाता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगता है।

पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impacts):

  • मिट्टी का कटाव और भूस्खलन (Soil Erosion and Landslides): विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में, भारी बारिश मिट्टी को बहा ले जाती है और भूस्खलन को प्रेरित करती है।
  • जल प्रदूषण (Water Pollution): बाढ़ का पानी सीवेज, औद्योगिक अपशिष्टों और रासायनिक उर्वरकों से दूषित हो सकता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।
  • वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर प्रभाव (Impact on Flora and Fauna): बाढ़ से वन्यजीव आवास नष्ट हो जाते हैं और स्थानीय प्रजातियों पर खतरा मंडराने लगता है।

सरकारी प्रतिक्रिया और आपदा प्रबंधन (Government Response and Disaster Management)

जब ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो सरकारी प्रतिक्रिया तंत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। इसमें शामिल हैं:

तत्काल राहत और बचाव कार्य (Immediate Relief and Rescue Operations):

  • बचाव दल की तैनाती (Deployment of Rescue Teams): राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), सेना, नौसेना और वायु सेना को बचाव और राहत कार्यों के लिए तैनात किया जाता है।
  • शिफ्टिंग (Evacuation): प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जाता है।
  • आश्रय और भोजन (Shelter and Food): विस्थापित लोगों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
  • सड़क बहाली (Road Restoration): हिमाचल जैसे राज्यों में, अवरुद्ध सड़कों को खोलने के लिए मशीनरी और श्रम का उपयोग किया जाता है ताकि बचाव और आपूर्ति पहुंचाई जा सके।

दीर्घकालिक पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Long-Term Rehabilitation and Reconstruction):

  • क्षति का आकलन (Damage Assessment): सरकारी एजेंसियां ​​बाढ़ से हुए नुकसान का विस्तृत आकलन करती हैं।
  • पुनर्निर्माण (Reconstruction): क्षतिग्रस्त घरों, सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण किया जाता है।
  • आजीविका बहाली (Livelihood Restoration): प्रभावित समुदायों को उनकी आजीविका फिर से शुरू करने में मदद की जाती है, जैसे कि किसानों को बीज और उपकरण प्रदान करना।
  • आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे का निर्माण (Building Disaster-Resilient Infrastructure): भविष्य की आपदाओं का सामना करने के लिए अधिक मजबूत और लचीला बुनियादी ढांचा तैयार किया जाता है।

नीतिगत प्रतिक्रियाएँ (Policy Responses):

यह स्थिति राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA) के महत्व को रेखांकित करती है। सरकारों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसमें रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के चरण शामिल हैं।

“प्रभावी आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शमन (mitigation) और तैयारी (preparedness) पर भी समान जोर दिया जाना चाहिए।”

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and The Way Forward)

बाढ़ों से निपटने में कई चुनौतियाँ आती हैं, जिनके लिए नवीन और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges):

  • बढ़ता जलवायु परिवर्तन (Aggravating Climate Change): जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित मौसम की घटनाएं और बढ़ेंगी, जिससे भविष्यवाणी और तैयारी अधिक कठिन हो जाएगी।
  • अनियोजित शहरीकरण (Unplanned Urbanization): शहरों का अनियंत्रित विस्तार जल निकासी प्रणालियों पर दबाव डालता है और बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है।
  • संसाधनों की कमी (Lack of Resources): खासकर छोटे राज्यों या ग्रामीण क्षेत्रों में, बचाव, राहत और पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
  • समन्वय का अभाव (Lack of Coordination): विभिन्न सरकारी एजेंसियों, स्थानीय निकायों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच प्रभावी समन्वय की कमी राहत कार्यों में बाधा डाल सकती है।
  • जागरूकता की कमी (Lack of Awareness): आम जनता में आपदाओं के प्रति जागरूकता और तैयारी के उपायों की कमी भी नुकसान को बढ़ाती है।

भविष्य की राह (Way Forward):

इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है:

  1. जलवायु-अनुकूल शहरी नियोजन (Climate-Resilient Urban Planning): शहरों के विकास में हरित बुनियादी ढांचे, पारगम्य फुटपाथों (permeable pavements) और प्रभावी जल निकासी प्रणालियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को विनियमित किया जाना चाहिए।
  2. पारिस्थितिक बहाली (Ecological Restoration): जलग्रहण क्षेत्रों और नदी घाटियों में वनीकरण और पुनर्वनीकरण (reforestation) जैसे कदम उठाने चाहिए। आर्द्रभूमि (wetlands) और झीलों का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि वे प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करते हैं।
  3. प्रौद्योगिकी का उपयोग (Leveraging Technology):

    • मौसम पूर्वानुमान (Weather Forecasting): बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रणाली और प्रारंभिक चेतावनी तंत्र (early warning systems) को मजबूत करना।
    • रिमोट सेंसिंग और GIS (Remote Sensing and GIS): बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पहचान, मैपिंग और निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग।
    • डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics): ऐतिहासिक डेटा का विश्लेषण करके जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना और भविष्य की बाढ़ों की भविष्यवाणी करना।
  4. समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (Community-Based Disaster Management): स्थानीय समुदायों को आपदा तैयारी, बचाव और प्राथमिक उपचार में प्रशिक्षित करना। सामुदायिक स्वयंसेवकों का एक मजबूत नेटवर्क बनाना।
  5. नीतिगत सुधार (Policy Reforms):

    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR): आपदाओं के बजाय जोखिम को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule of the Constitution): आपदा प्रबंधन में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी और कार्यकारी जिम्मेदारियों को स्पष्ट करना।
    • वित्तपोषण (Financing): आपदा प्रबंधन और पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त और समय पर वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना।
  6. अंतर-एजेंसी समन्वय (Inter-Agency Coordination): सभी संबंधित एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय निकायों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष (Conclusion)

राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ें भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। वे न केवल प्राकृतिक शक्तियों की अनिश्चितता को दर्शाते हैं, बल्कि हमारे शहरी विकास, पर्यावरण प्रबंधन और आपदा प्रतिक्रिया प्रणालियों में मौजूद कमियों को भी उजागर करते हैं। जलवायु परिवर्तन के युग में, इन घटनाओं से निपटना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकता है। एक सुविचारित, एकीकृत और टिकाऊ दृष्टिकोण, जिसमें रोकथाम, तैयारी, प्रभावी प्रतिक्रिया और मजबूत पुनर्निर्माण शामिल है, भविष्य में ऐसी तबाही के प्रभाव को कम करने की कुंजी है। UPSC उम्मीदवारों को इन मुद्दों को केवल एक समाचार के रूप में नहीं, बल्कि शासन, पर्यावरण और सामाजिक न्याय के व्यापक संदर्भ में समझने की आवश्यकता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: हाल की बाढ़ों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कारक राजस्थान और मध्य प्रदेश में जल-जनित बीमारियों के प्रसार में योगदान देता है?

    1. सीवेज सिस्टम का प्रभावी ढंग से काम करना
    2. शुद्ध पेयजल स्रोतों की प्रचुरता
    3. सीवेज और खतरनाक अपशिष्टों के साथ पानी का संदूषण
    4. सभी

    उत्तर: (c) सीवेज और खतरनाक अपशिष्टों के साथ पानी का संदूषण
    व्याख्या: बाढ़ का पानी अक्सर सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और रसायनों से दूषित हो जाता है, जिससे हैजा, टाइफाइड जैसी जल-जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

  2. प्रश्न: हिमाचल प्रदेश में बाढ़ों से सड़कों का बंद होना मुख्य रूप से किस प्राकृतिक घटना से जुड़ा हुआ है?

    1. मरुस्थलीकरण
    2. भूस्खलन
    3. ज्वालामुखी विस्फोट
    4. मरुस्थलीय तूफान

    उत्तर: (b) भूस्खलन
    व्याख्या: हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में, भारी बारिश अक्सर मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को प्रेरित करती है, जिससे सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं।

  3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कथन “शहरी बाढ़” (Urban Flooding) के संबंध में सही है?

    1. यह मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में होती है।
    2. यह नदियों के उफान के कारण होती है।
    3. यह शहरी क्षेत्रों में तीव्र वर्षा और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों का परिणाम है।
    4. यह केवल ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है।

    उत्तर: (c) यह शहरी क्षेत्रों में तीव्र वर्षा और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों का परिणाम है।
    व्याख्या: शहरी बाढ़ का मुख्य कारण कंक्रीट के जंगल के कारण भूमि की जल अवशोषण क्षमता में कमी और खराब जल निकासी व्यवस्था है।

  4. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया था?

    1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
    2. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
    3. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 1990
    4. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2001

    उत्तर: (b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
    व्याख्या: NDMA का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था, जो आपदाओं के प्रबंधन के लिए एक विधायी ढाँचा प्रदान करता है।

  5. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन का एक संभावित परिणाम क्या है जो हाल की बाढ़ों की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा सकता है?

    1. महाद्वीपीय बहाव
    2. सूर्य की किरणों की तीव्रता में कमी
    3. अत्यधिक और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाओं में वृद्धि
    4. पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन

    उत्तर: (c) अत्यधिक और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाओं में वृद्धि
    व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से मौसम के पैटर्न में बदलाव आता है, जिससे तीव्र वर्षा और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ सकती हैं।

  6. प्रश्न: जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की कटाई के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में क्या देखा जा सकता है?

    1. भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि
    2. नदियों में गाद (silt) की मात्रा में कमी
    3. मिट्टी का कटाव और भूस्खलन के जोखिम में वृद्धि
    4. भूजल स्तर में वृद्धि

    उत्तर: (c) मिट्टी का कटाव और भूस्खलन के जोखिम में वृद्धि
    व्याख्या: वनों की कटाई मिट्टी को बांधे रखने वाली जड़ों को हटा देती है, जिससे कटाव और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

  7. प्रश्न: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    1. प्रकोप के बाद बचाव कार्य शुरू करना
    2. प्रकोप होने से पहले प्रभावित आबादी को सूचित करना
    3. क्षति का आकलन करना
    4. दीर्घकालिक पुनर्निर्माण योजना बनाना

    उत्तर: (b) प्रकोप होने से पहले प्रभावित आबादी को सूचित करना
    व्याख्या: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का उद्देश्य संभावित आपदाओं के बारे में समय रहते सूचित करना है ताकि लोग सुरक्षित स्थानों पर जा सकें या आवश्यक सावधानी बरत सकें।

  8. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था “राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल” (NDRF) के संचालन के लिए जिम्मेदार है?

    1. भारतीय सेना
    2. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
    3. केंद्रीय गृह मंत्रालय
    4. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) स्वयं

    उत्तर: (c) केंद्रीय गृह मंत्रालय
    व्याख्या: NDRF, केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है और NDMA के मार्गदर्शन में संचालन करता है।

  9. प्रश्न: बाढ़ों के दीर्घकालिक आर्थिक प्रभावों में कौन सा शामिल नहीं है?

    1. कृषि उत्पादन में वृद्धि
    2. बुनियादी ढांचे का विनाश
    3. आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान
    4. पर्यटन राजस्व में कमी

    उत्तर: (a) कृषि उत्पादन में वृद्धि
    व्याख्या: बाढ़ से कृषि को भारी नुकसान होता है, जिससे उत्पादन में कमी आती है, न कि वृद्धि।

  10. प्रश्न: “आपदा जोखिम न्यूनीकरण” (Disaster Risk Reduction – DRR) का प्राथमिक ध्यान किस पर होता है?

    1. प्रकोप के बाद राहत प्रदान करना
    2. भविष्य में होने वाली आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करना
    3. सभी आपदाओं को पूरी तरह से रोकना
    4. केवल तत्काल बचाव कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना

    उत्तर: (b) भविष्य में होने वाली आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करना
    व्याख्या: DRR का लक्ष्य शमन (mitigation) और तैयारी (preparedness) के माध्यम से आपदाओं के प्रभाव को कम करना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर, भारत में बाढ़ों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में हाल की बाढ़ों के कारणों और प्रभावों का विश्लेषण करें। आपदा प्रबंधन में प्रभावी नीतियों और रणनीतियों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न: भारत में प्रभावी बाढ़ प्रबंधन के लिए “आपदा जोखिम न्यूनीकरण” (DRR) और “आपदा तैयारी” (Disaster Preparedness) के महत्व पर चर्चा करें। शहरी बाढ़ों से निपटने के लिए शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के विकास में सुधार हेतु सुझाव दीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न: हाल की बाढ़ों से प्रभावित राज्यों में नागरिक समाज, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और स्थानीय समुदायों की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। सरकारी प्रयासों के साथ उनके समन्वय की आवश्यकता पर टिप्पणी करें। (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न: “बाढ़ सिर्फ एक जल समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक अव्यवस्था और पर्यावरणीय गिरावट का परिणाम है।” इस कथन के आलोक में, भारत में बाढ़ों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता का परीक्षण करें, जिसमें प्रौद्योगिकी, सामुदायिक भागीदारी और नीतिगत सुधार शामिल हों। (250 शब्द, 15 अंक)

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