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मानसून का कहर: भारत के 5 राज्यों में बाढ़ का खतरा, 24 घंटे में 10 मौतें – UPSC के लिए संपूर्ण विश्लेषण

मानसून का कहर: भारत के 5 राज्यों में बाढ़ का खतरा, 24 घंटे में 10 मौतें – UPSC के लिए संपूर्ण विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारत, अपनी विशाल भौगोलिक विविधता और मौसमी हवाओं पर अत्यधिक निर्भरता के कारण, हर साल मानसून के मौसम से जूझता है। हाल ही में, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल और ओडिशा जैसे राज्यों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है, जबकि महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में 10 लोगों की दुखद मौतें हुई हैं। यह घटना न केवल तत्काल जीवन और संपत्ति के नुकसान का कारण बनती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और राष्ट्रीय विकास के प्रति सरकारी नीतियों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर करती है। यह ब्लॉग पोस्ट UPSC उम्मीदवारों के लिए इस परिघटना के विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें इसके कारण, प्रभाव, चुनौतियाँ और भविष्य की राह शामिल हैं।

यह केवल एक मौसमी घटना नहीं है: इसके पीछे का विज्ञान (It’s Not Just a Seasonal Phenomenon: The Science Behind It):
मानसून, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में, एक जटिल मौसम प्रणाली है जो पृथ्वी की परिक्रमा, महाद्वीपीय और महासागरीय सतहों के बीच तापमान के अंतर और विभिन्न वायुमंडलीय प्रवाहों की परस्पर क्रिया से संचालित होती है। अरब सागर से उठने वाली मानसूनी हवाएं भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी घाट से टकराकर भारी वर्षा करती हैं, जो भारत की कृषि और जल आपूर्ति के लिए जीवन रेखा का काम करती है।

हालांकि, इस बार की बारिश की तीव्रता और संबंधित घटनाओं के कई कारण हो सकते हैं:

  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैश्विक तापमान में वृद्धि, महासागरों का गर्म होना और वायुमंडल में अधिक नमी का जमाव, चरम मौसम की घटनाओं को अधिक तीव्र और अप्रत्याशित बना रहा है। हम ऐसे “इवेंट्स” देख रहे हैं जो पहले दुर्लभ थे, अब अधिक बार हो रहे हैं।
  • एल नीनो/ला नीना का प्रभाव: प्रशांत महासागर में एल नीनो और ला नीना जैसे चक्रवातों का भारतीय मानसून पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। एल नीनो आमतौर पर कमजोर मानसून का कारण बनता है, जबकि ला नीना मजबूत मानसून ला सकता है। वर्तमान में, इनके प्रभाव का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।
  • स्थानीय भौगोलिक कारक: कुछ क्षेत्रों में, जैसे कि घाटियों और तटीय इलाकों में, भारी वर्षा के कारण पानी का जमाव तेजी से हो सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  • शहरीकरण और वनों की कटाई: अनियोजित शहरीकरण ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित किया है, और वनों की कटाई से भूमि की जल-अवशोषित करने की क्षमता कम हो गई है, जिससे सतह पर अपवाह (surface runoff) बढ़ गया है।

बाढ़ का विनाशकारी चेहरा: प्रभावित राज्य और उनके संकट (The Devastating Face of Floods: Affected States and Their Crises):
महाराष्ट्र में 24 घंटे में 10 लोगों की मौत की खबर अत्यंत चिंताजनक है। यह केवल एक राज्य की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे देश को मानसून की विनाशकारी क्षमता की याद दिलाती है।

  • महाराष्ट्र: पश्चिमी घाट से लगे इलाकों में भारी बारिश के कारण भूस्खलन और अचानक बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है। पीने के पानी के स्रोतों का दूषित होना, बिजली की आपूर्ति बाधित होना, और सड़कों का अवरुद्ध होना यहाँ की प्रमुख समस्याएँ हैं।
  • मध्य प्रदेश: नर्मदा और चंबल जैसी नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में भारी वर्षा से इन नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ सकता है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • बिहार: कोसी और गंडक जैसी प्रमुख नदियों के कारण बिहार दशकों से बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है। इस वर्ष की भारी बारिश इन नदियों को और अधिक उग्र बना सकती है, जिससे राज्य के बड़े हिस्से प्रभावित हो सकते हैं।
  • केरल: पश्चिमी घाट के ढलानों पर स्थित होने के कारण, केरल में भारी बारिश अक्सर भूस्खलन और अचानक बाढ़ का कारण बनती है। कोझीकोड, वायनाड और इडुक्की जैसे जिले विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
  • ओडिशा: बंगाल की खाड़ी से निकटता और तटीय क्षेत्रों की उपस्थिति के कारण, ओडिशा अक्सर चक्रवातों और भारी मानसून वर्षा दोनों से प्रभावित होता है, जिससे तटीय बाढ़ और जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।

सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि जीवन का संकट (Not Just Rain, but a Crisis of Lives):
बारिश का पानी जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन अत्यधिक मात्रा में यह विनाशकारी बन जाता है। इन घटनाओं के तत्काल और दीर्घकालिक प्रभाव विनाशकारी होते हैं:

  • जीवन की हानि: जैसा कि महाराष्ट्र में देखा गया, बाढ़ और भूस्खलन से सबसे प्रत्यक्ष और दुखद नुकसान मानव जीवन का होता है।
  • संपत्ति का विनाश: घर, सड़कें, पुल, बिजली के खंभे और संचार नेटवर्क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे लाखों-करोड़ों का नुकसान होता है।
  • आर्थिक प्रभाव: कृषि क्षेत्र, जो भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा आधार है, नष्ट हो जाता है। फसलें बर्बाद हो जाती हैं, पशुधन मारा जाता है, जिससे किसानों की आजीविका पर गहरा संकट आता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: बाढ़ के पानी से जल-जनित बीमारियाँ जैसे हैजा, टाइफाइड और डायरिया फैलने का खतरा बढ़ जाता है। मलेरिया और डेंगू जैसी मच्छर जनित बीमारियों के लिए भी अनुकूल वातावरण बनता है।
  • विस्थापन और सामाजिक संकट: बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित करना पड़ता है, जिससे अस्थायी आश्रयों में रहने की समस्या, भोजन और पानी की कमी और सामाजिक विघटन जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

चुनौतियाँ: सरकारी तंत्र के लिए एक कठिन परीक्षा (Challenges: A Difficult Test for the Government Machinery):
यह घटना भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र के लिए कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती है:

  • अनुमान और चेतावनी प्रणाली: हालांकि मौसम विभाग (IMD) चेतावनी जारी करता है, लेकिन उन्हें स्थानीय स्तर पर प्रभावी ढंग से प्रसारित करना और लोगों को समय पर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
  • बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता: कई क्षेत्रों में, बाढ़ सुरक्षा के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचा (जैसे तटबंध, जल निकासी व्यवस्था) मौजूद नहीं है या पुराना हो चुका है।
  • शहरी नियोजन और अतिक्रमण: शहरों में अनियोजित विकास और जल निकायों पर अतिक्रमण बाढ़ के खतरे को और बढ़ा देता है।
  • धन का आवंटन और निष्पादन: आपदा राहत और पूर्व-तैयारी के लिए आवंटित धन का प्रभावी ढंग से और समय पर उपयोग सुनिश्चित करना एक निरंतर चुनौती है।
  • जनजागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: लोगों को आपदाओं के प्रति जागरूक करना और उन्हें बचाव कार्यों में शामिल करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

UPSC के लिए केस स्टडी: एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण (Case Study for UPSC: An Analytical Approach):

“2018 में केरल में आई विनाशकारी बाढ़ एक ऐसी घटना थी जिसने भारत के आपदा प्रबंधन की तैयारियों की पोल खोल दी थी। भारी बारिश, नदियों के उफान पर आने और इडुक्की बांध से पानी छोड़े जाने के संयुक्त प्रभाव से राज्य के इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ आई थी। इसने न केवल जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान किया, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला। इस घटना से सीखे गए सबक, जैसे कि एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली और सामुदायिक-आधारित आपदा प्रतिक्रिया योजनाओं का महत्व, आज भी प्रासंगिक हैं।”

आगे की राह: एक मजबूत और लचीला भविष्य (The Way Forward: A Resilient and Robust Future):
मानसून की यह बढ़ती हुई अप्रत्याशितता एक संकेत है कि हमें केवल प्रतिक्रियात्मक (reactive) होने के बजाय अधिक सक्रिय (proactive) और निवारक (preventive) दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

  • बेहतर पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी: मौसम पूर्वानुमान को और अधिक सटीक बनाने के लिए उन्नत तकनीक (जैसे AI, मशीन लर्निंग) का उपयोग करना और इन चेतावनियों को अंतिम छोर तक प्रभावी ढंग से पहुंचाना।
  • जलवायु-स्मार्ट बुनियादी ढाँचा: ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण करना जो चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर सके, जैसे कि बाढ़-प्रतिरोधी सड़कें, ऊंचे तटबंध, और बेहतर जल निकासी प्रणालियाँ।
  • शहरी नियोजन का पुनर्मूल्यांकन: शहरी विकास में जल संसाधनों के प्रबंधन को प्राथमिकता देना, जल निकायों पर अतिक्रमण रोकना, और हरित अवसंरचना (green infrastructure) को बढ़ावा देना।
  • जंगल और जल संरक्षण: वनों की कटाई को रोकना और वनीकरण को बढ़ावा देना, जो मिट्टी के कटाव को कम करने और जल-धारण क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।
  • आपदा प्रबंधन की क्षमता बढ़ाना: राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (NDRF/SDRF) को और मजबूत करना, उन्हें नवीनतम उपकरणों और प्रशिक्षण से लैस करना, और मॉक ड्रिल (mock drills) का नियमित आयोजन करना।
  • अंतर-विभागीय समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों (जैसे जल संसाधन, मौसम, ग्रामीण विकास, शहरी विकास) के बीच प्रभावी समन्वय स्थापित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाना और अन्य देशों के साथ सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना।
  • जनजागरूकता और शिक्षा: लोगों को मानसून से संबंधित जोखिमों, सुरक्षा सावधानियों और बचाव की प्राथमिकताओं के बारे में शिक्षित करना।

निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, ओडिशा में भारी बारिश का अलर्ट और महाराष्ट्र में हुई मौतों का घटनाक्रम भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल एक मौसम संबंधी चुनौती नहीं है, बल्कि विकास, पर्यावरण और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों का एक जटिल ताना-बाना है। UPSC उम्मीदवारों को इस मुद्दे को केवल एक समाचार की तरह नहीं, बल्कि एक बहुआयामी समस्या के रूप में देखना चाहिए, जिसके समाधान के लिए सुविचारित नीतियों, मजबूत कार्यान्वयन और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। एक राष्ट्र के रूप में, हमें मानसून को एक दोस्त के रूप में गले लगाने के साथ-साथ उसकी विनाशकारी शक्ति से बचाव की तैयारी भी करनी होगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. कथन 1: भारतीय मानसून मुख्य रूप से महाद्वीपीय और महासागरीय सतहों के बीच तापमान के अंतर से प्रेरित होता है।
कथन 2: अल नीनो घटना भारतीय मानसून को मजबूत करने के लिए जानी जाती है।
विकल्प:
a) केवल कथन 1 सही है।
b) केवल कथन 2 सही है।
c) दोनों कथन सही हैं।
d) दोनों कथन गलत हैं।
उत्तर: a) केवल कथन 1 सही है।
व्याख्या: अल नीनो घटना आमतौर पर भारतीय मानसून को कमजोर करती है, न कि मजबूत।

2. निम्नलिखित में से कौन सी नदियाँ मुख्य रूप से बिहार में बाढ़ के लिए जिम्मेदार हैं?
a) गंगा और यमुना
b) कोसी और गंडक
c) नर्मदा और ताप्ती
d) ब्रह्मपुत्र और मानस
उत्तर: b) कोसी और गंडक
व्याख्या: कोसी (जिसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है) और गंडक नदियाँ अपने उग्र स्वभाव और बाढ़ के लिए कुख्यात हैं।

3. जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं को कैसे प्रभावित कर सकता है?
a) घटनाओं की आवृत्ति कम कर सकता है।
b) घटनाओं की तीव्रता बढ़ा सकता है।
c) घटनाओं की भविष्यवाणी अधिक आसान बना सकता है।
d) केवल ठंडे क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
उत्तर: b) घटनाओं की तीव्रता बढ़ा सकता है।
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापमान को बढ़ाता है, जिससे वायुमंडल में अधिक ऊर्जा और नमी जमा होती है, जो चरम मौसम की घटनाओं को अधिक तीव्र बनाती है।

4. ‘आपदा न्यूनीकरण’ (Disaster Mitigation) का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
a) आपदा आने के बाद तत्काल राहत प्रदान करना।
b) आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए पूर्व-उपाय करना।
c) आपदा के बाद पुनर्निर्माण की गति बढ़ाना।
d) आपदा की सूचना तुरंत फैलाना।
उत्तर: b) आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए पूर्व-उपाय करना।
व्याख्या: आपदा न्यूनीकरण का अर्थ है उन उपायों को अपनाना जो आपदा के संभावित नुकसान को कम करते हैं, जैसे कि मजबूत भवन निर्माण, बाढ़ सुरक्षा उपाय आदि।

5. निम्नलिखित में से कौन सा राज्य पश्चिमी घाट से लगा हुआ है और भारी बारिश के कारण भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है?
a) राजस्थान
b) उत्तर प्रदेश
c) केरल
d) पश्चिम बंगाल
उत्तर: c) केरल
व्याख्या: केरल पश्चिमी घाट के ढलानों पर स्थित है, जहाँ भारी बारिश अक्सर भूस्खलन और अचानक बाढ़ का कारण बनती है।

6. भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के संबंध में ‘ITCZ’ (Intertropical Convergence Zone) का क्या महत्व है?
a) यह भूमध्य रेखा के पास एक क्षेत्र है जहाँ वर्षा सबसे कम होती है।
b) यह वह क्षेत्र है जहाँ उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ मिलती हैं, जो मानसून की शुरुआत में भूमिका निभाती हैं।
c) यह एक उच्च दाब क्षेत्र है जो मानसून को नियंत्रित करता है।
d) यह केवल गर्मियों के दौरान सक्रिय रहता है।
उत्तर: b) यह वह क्षेत्र है जहाँ उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ मिलती हैं, जो मानसून की शुरुआत में भूमिका निभाती हैं।
व्याख्या: ITCZ का खिसकना भारतीय मानसून के आगमन और तीव्रता से जुड़ा हुआ है।

7. ‘शहरी बाढ़’ (Urban Flooding) के लिए निम्नलिखित में से कौन से कारक जिम्मेदार हो सकते हैं?
a) अनियोजित शहरीकरण और जल निकायों पर अतिक्रमण।
b) खराब जल निकासी व्यवस्था।
c) पक्के फर्श (paved surfaces) का अधिक होना।
d) उपरोक्त सभी।
उत्तर: d) उपरोक्त सभी।
व्याख्या: शहरी बाढ़ इन सभी कारकों के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होती है, जो प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करते हैं और पानी को जमीन में रिसने से रोकते हैं।

8. भारत में ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ (Disaster Management Act) किस वर्ष पारित किया गया था?
a) 2000
b) 2005
c) 2010
d) 2015
उत्तर: b) 2005
व्याख्या: भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक विधायी ढाँचा प्रदान करने हेतु 2005 में यह अधिनियम लागू किया गया।

9. निम्नलिखित में से कौन सी बीमारी बाढ़ के पानी से फैलने की संभावना है?
a) मलेरिया
b) डेंगू
c) टाइफाइड
d) चिकनगुनिया
उत्तर: c) टाइफाइड
व्याख्या: टाइफाइड (और हैजा, डायरिया) जल-जनित बीमारियाँ हैं जो दूषित पानी के सेवन से फैलती हैं, जो बाढ़ के बाद एक आम समस्या है। मलेरिया और डेंगू मच्छर जनित हैं, जो बाढ़ के बाद स्थिर पानी में पनप सकते हैं।

10. ‘जलवायु परिवर्तन अनुकूलन’ (Climate Change Adaptation) का क्या अर्थ है?
a) जलवायु परिवर्तन को रोकना।
b) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्वीकार करना और उनके प्रति समायोजित होना।
c) केवल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना।
d) नई प्रौद्योगिकियों का आविष्कार करना।
उत्तर: b) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्वीकार करना और उनके प्रति समायोजित होना।
व्याख्या: अनुकूलन का अर्थ है वर्तमान या भविष्य के जलवायु प्रभावों के प्रति लचीलापन बढ़ाना।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. जलवायु परिवर्तन भारत में मानसून की तीव्रता और अप्रत्याशितता को कैसे प्रभावित कर रहा है? इसके मद्देनजर, भारत में आपदा प्रबंधन रणनीतियों को अधिक प्रभावी और लचीला बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (लगभग 250 शब्द)
(250 Marks)

2. महाराष्ट्र में हाल ही में हुई मौतें मानसून की वर्षा और संबद्ध आपदाओं से निपटने में भारत के सामने आने वाली अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करती हैं। इन चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करें, जिसमें प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, शहरी नियोजन और सामुदायिक भागीदारी के पहलुओं पर प्रकाश डालें। (लगभग 250 शब्द)
(250 Marks)

3. बाढ़ को केवल एक प्राकृतिक आपदा के रूप में नहीं, बल्कि विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन से जुड़े मुद्दों के एक जटिल ताने-बाने के रूप में देखें। इस कथन के आलोक में, भारत में बाढ़ प्रबंधन के लिए एक एकीकृत और दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करें। (लगभग 150 शब्द)
(150 Marks)

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