महाराष्ट्र में भाषाई संघर्ष: क्या स्थानीय गौरव हिंसक रूप ले रहा है?

महाराष्ट्र में भाषाई संघर्ष: क्या स्थानीय गौरव हिंसक रूप ले रहा है?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में मुंबई में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जिसने देश की भाषाई विविधता और क्षेत्रीय पहचान के इर्द-गिर्द घूमते गहरे मुद्दों को फिर से सतह पर ला दिया है। एक ऑटो चालक को कथित तौर पर “मराठी विरोधी” टिप्पणी करने के लिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के कार्यकर्ताओं द्वारा पीटा गया। यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था के प्रश्न खड़े करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि कैसे भाषाई गौरव, जब अतिवादी रूप ले लेता है, तो सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के ताने-बाने को नुकसान पहुँचा सकता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं था; यह उन अंतर्निहित तनावों का प्रतीक है जो भारत के संघीय ढांचे में समय-समय पर उभरते रहते हैं।

घटना की पृष्ठभूमि और तात्कालिक कारण (Background and Immediate Cause of the Incident)

मुंबई, जिसे अक्सर ‘मिनी-इंडिया’ कहा जाता है, विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और पहचानों का संगम है। हालांकि, यह शहर हमेशा से भाषाई और क्षेत्रीय पहचान से जुड़े तनावों का केंद्र रहा है। विशेष रूप से मराठी गौरव और स्थानीय लोगों के अधिकारों की वकालत करने वाले राजनीतिक संगठनों का यहाँ गहरा प्रभाव रहा है।

यह घटना इसी पृष्ठभूमि में हुई है। रिपोर्टों के अनुसार, ऑटो चालक, जो संभवतः गैर-मराठी भाषी था, ने एक कथित “मराठी विरोधी” टिप्पणी की। यह टिप्पणी, चाहे वह जानबूझकर की गई हो या गलतफहमी का परिणाम, उद्धव शिवसेना के कार्यकर्ताओं के लिए एक ‘अपमान’ बन गई, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक हमला हुआ। इस घटना ने एक बार फिर महाराष्ट्र में ‘भूमिपुत्र’ (मिट्टी के बेटे) के मुद्दे को उजागर किया है, जो अक्सर रोजगार, भाषा और संस्कृति पर बाहरी लोगों के कथित प्रभाव को लेकर मुखर रहे हैं।

यह हमला केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं था, बल्कि यह क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा भाषाई पहचान को एक शक्तिशाली भावनात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसका उपयोग अक्सर राजनीतिक लाभ या अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किया जाता है। ऐसे में, यह समझना आवश्यक है कि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा कैसे पहचान का एक संवेदनशील और ज्वलनशील मुद्दा बन जाती है।

भारत में भाषाई विविधता और इसका संवैधानिक आधार (Linguistic Diversity in India and its Constitutional Basis)

भारत की भाषाई विविधता दुनिया में अद्वितीय है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है, और इससे भी कहीं अधिक भाषाएँ और बोलियाँ देश भर में बोली जाती हैं। यह विविधता भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का आधार है, लेकिन इसने समय-समय पर चुनौतियाँ भी पेश की हैं।

भाषाई राज्यों का गठन (Formation of Linguistic States):

  • स्वतंत्रता के बाद, भाषाई पहचान के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग तीव्र हुई।
  • 1953 में, तेलुगु भाषी क्षेत्रों के लिए आंध्र प्रदेश पहला भाषाई राज्य बना।
  • इसके बाद, राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission – SRC) की स्थापना की गई, जिसकी सिफारिशों के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने भाषाई रेखाओं पर भारत के राज्यों का बड़े पैमाने पर पुनर्गठन किया।
  • यह कदम भाषाई पहचानों को स्वीकार करने और उन्हें प्रशासनिक सुविधा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन इसने भाषाई राष्ट्रवाद के बीज भी बो दिए।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions):

भारत का संविधान भाषाई विविधता की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए कई प्रावधान करता है:

  • अनुच्छेद 29 (Article 29): नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 30 (Article 30): अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार देता है, ताकि वे अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर सकें।
  • अनुच्छेद 343-351: ये अनुच्छेद संघ की राजभाषा, क्षेत्रीय भाषाओं, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा, और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधानों से संबंधित हैं।
    • अनुच्छेद 343: संघ की राजभाषा हिंदी (देवनागरी लिपि में) और अंग्रेजी है।
    • अनुच्छेद 345: राज्यों को अपनी राजभाषा या भाषाओं को चुनने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 350A: भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करने का निर्देश देता है।
    • अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी (Special Officer for Linguistic Minorities) की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद 351: हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश देता है।
  • आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule): भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। यह भाषाओं को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देती है।

भारत की भाषाई विविधता हमारे राष्ट्रीय ताने-बाने की एक रंगीन बुनाई है। संविधान इसे सहेजने का प्रयास करता है, लेकिन इसे एक तलवार के रूप में इस्तेमाल करने के बजाय एक सेतु के रूप में देखना हमारी जिम्मेदारी है।

भाषाई पहचान बनाम क्षेत्रीय गौरव (Linguistic Identity vs. Regional Pride)

भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं है; यह पहचान, संस्कृति और विरासत का एक शक्तिशाली प्रतीक है। जब भाषा किसी विशेष क्षेत्र के साथ जुड़ जाती है, तो यह क्षेत्रीय गौरव और ‘भूमिपुत्र’ की भावना को जन्म दे सकती है।

भाषा के माध्यम से पहचान का निर्माण (Construction of Identity Through Language):

  • एक साझा भाषा एक समुदाय के भीतर एकता की भावना को बढ़ावा देती है। यह लोक कथाओं, गीतों, साहित्य और रीति-रिवाजों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाती है।
  • जब इस पहचान को ‘बाहरी’ प्रभावों से खतरा महसूस होता है, तो यह अक्सर रक्षात्मक और कभी-कभी आक्रामक रूप ले लेती है।

‘भूमिपुत्र’ नीति और उसका प्रभाव (‘Sons of the Soil’ Policy and Its Impact):

  • ‘भूमिपुत्र’ की अवधारणा यह तर्क देती है कि किसी विशेष राज्य के निवासी (अक्सर भाषाई आधार पर) उस क्षेत्र के संसाधनों और अवसरों पर प्राथमिक अधिकार रखते हैं।
  • महाराष्ट्र में मराठी मानुस, कर्नाटक में कन्नडिगा, असम में असमी – ये सभी इसी भावना के उदाहरण हैं।
  • यह नीति अक्सर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को आरक्षित करने की मांग करती है, जिसे स्थानीय राजनीतिक दल अक्सर समर्थन देते हैं।
  • उदाहरण: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और शिवसेना (जैसे उद्धव सेना) जैसे दल नियमित रूप से मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा तथा ‘बाहरी लोगों’ के कथित प्रभुत्व के खिलाफ अभियान चलाते हैं। कर्नाटक में, कन्नड़ समर्थक समूह अक्सर गैर-कन्नड़ भाषी लोगों के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं, विशेषकर साइनबोर्ड और रोजगार के मुद्दों पर।

स्वस्थ क्षेत्रीयता बनाम संकीर्ण प्रांतीयता (Healthy Regionalism vs. Narrow Provincialism):

  • स्वस्थ क्षेत्रीयता: यह अपने क्षेत्र की संस्कृति, भाषा और इतिहास के प्रति सकारात्मक लगाव है। यह विविधता का जश्न मनाता है और संघीय ढांचे को मजबूत करता है। यह अपनी जड़ों पर गर्व करने जैसा है।
  • संकीर्ण प्रांतीयता/भाषा chauvinism: यह अपने क्षेत्र या भाषा को दूसरों से श्रेष्ठ मानना और अन्य भाषाओं या संस्कृतियों के प्रति असहिष्णुता दिखाना है। यह अक्सर हिंसा और भेदभाव को जन्म देता है, जैसा कि ऑटो चालक के मामले में देखा गया। यह तब होता है जब जड़ें इतनी गहरी हो जाती हैं कि वे दूसरों की जड़ों को उखाड़ने लगती हैं।

यह घटना स्पष्ट रूप से संकीर्ण प्रांतीयता का एक उदाहरण है, जहाँ भाषाई गौरव ने हिंसक रूप ले लिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन किया।

भाषा विवाद के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव (Socio-Economic Impacts of Language Disputes)

भाषा विवाद केवल सांस्कृतिक या राजनीतिक मुद्दे नहीं हैं; उनके गंभीर सामाजिक और आर्थिक परिणाम होते हैं, जो समाज के ताने-बाने और देश की आर्थिक प्रगति को प्रभावित करते हैं।

प्रवासी श्रमिकों पर प्रभाव (Impact on Migrant Workers):

  • भारत में लाखों लोग रोजगार और बेहतर अवसरों की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास करते हैं। भाषाई तनाव इन प्रवासी श्रमिकों के लिए असुरक्षा और भेदभाव का माहौल पैदा करता है।
  • उन्हें भाषाई आधार पर दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और यहां तक कि शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि इस घटना में हुआ।
  • यह उनके जीवन को जोखिम में डालता है और उन्हें अपने मूल स्थानों पर लौटने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।

व्यवसायों और निवेश पर प्रभाव (Impact on Businesses and Investment):

  • जब किसी क्षेत्र में भाषाई या क्षेत्रीय तनाव बढ़ता है, तो वह व्यापार और निवेश के लिए कम आकर्षक हो जाता है।
  • निवेशक स्थिरता और शांति पसंद करते हैं। ऐसे विवाद व्यावसायिक संचालन को बाधित कर सकते हैं, श्रम संबंधों को तनावपूर्ण बना सकते हैं और अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं।
  • उदाहरण के लिए, यदि एक बहुभाषी शहर जैसे मुंबई में लगातार भाषाई झड़पें होती हैं, तो यह व्यापार करने में आसानी को प्रभावित कर सकता है और अंततः शहर की आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुँचा सकता है।

सामाजिक सद्भाव का विघटन (Disruption of Social Harmony):

  • भाषाई विवाद समाज को ‘हम’ बनाम ‘वे’ के आधार पर ध्रुवीकृत करते हैं। यह विभिन्न भाषाई समूहों के बीच अविश्वास और शत्रुता को बढ़ावा देता है।
  • स्कूलों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव बढ़ सकता है, जिससे सामाजिक एकजुटता कमजोर होती है।
  • यह भारत की विविधता में एकता के आदर्श को कमजोर करता है, जो हमारे संविधान का आधार स्तंभ है।

आर्थिक राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रीय एकीकरण (Economic Nationalism vs. National Integration):

  • भाषाई आधार पर ‘भूमिपुत्र’ के लिए नौकरियों की मांग अक्सर एक प्रकार के आर्थिक राष्ट्रवाद का रूप ले लेती है। यह अल्पकालिक राजनीतिक लाभ दे सकता है, लेकिन यह लंबे समय में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हानिकारक है।
  • एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार और श्रम शक्ति भारत की आर्थिक शक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। भाषाई संरक्षणवाद इस एकीकरण को बाधित करता है।

हिंसा और कानून-व्यवस्था (Violence and Law & Order)

ऑटो चालक पर हुआ हमला एक गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या है। यह दिखाता है कि कैसे कुछ समूह, अपनी पहचान के नाम पर, कानून को अपने हाथ में लेने में संकोच नहीं करते।

कानून-व्यवस्था का उल्लंघन (Violation of Law & Order):

  • किसी भी नागरिक को दूसरे पर शारीरिक हमला करने का अधिकार नहीं है, चाहे कारण कुछ भी हो। यह एक आपराधिक कृत्य है।
  • राज्य का यह प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, चाहे उनकी भाषाई या क्षेत्रीय पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
  • ऐसी घटनाओं पर त्वरित और कड़ी कार्रवाई न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाती है, बल्कि दूसरों को भी कानून तोड़ने से रोकती है।

राजनीतिक दलों की भूमिका (Role of Political Parties):

  • दुर्भाग्य से, कई राजनीतिक दल भाषाई और क्षेत्रीय पहचान का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए करते हैं। वे अक्सर भाषणों और कार्यों के माध्यम से तनाव भड़काते हैं।
  • जब राजनीतिक दल हिंसा को मौन समर्थन देते हैं या इसे जायज ठहराते हैं, तो यह अपराधियों को और अधिक बढ़ावा देता है।
  • उद्धव सेना कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया यह हमला इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक विचारधाराएँ कैसे हिंसक व्यवहार को जन्म दे सकती हैं।

व्यक्तिगत अधिकारों पर परिणाम (Consequences for Individual Rights):

  • यह घटना भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है:
    • अनुच्छेद 19 (1) (a): वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech and expression)। हालांकि यह पूर्ण नहीं है और उचित प्रतिबंधों के अधीन है, हिंसा इसका जवाब नहीं हो सकती।
    • अनुच्छेद 19 (1) (d) और (e): भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार और भारत के किसी भी भाग में निवास करने और बस जाने का अधिकार। प्रवासी श्रमिकों के लिए ये अधिकार खतरे में पड़ जाते हैं।
    • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार। शारीरिक हमला इस अधिकार का उल्लंघन है।

एक सभ्य समाज में, विचारों या बयानों का विरोध हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद, शिक्षा और कानूनी प्रक्रिया से किया जाना चाहिए।

चुनौतियाँ और जटिलताएँ (Challenges and Complexities)

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषाई शांति बनाए रखना एक बहुआयामी चुनौती है।

क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्रीय एकता में संतुलन (Balancing Regional Aspirations and National Unity):

  • प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट आकांक्षाएँ और गौरव होता है। चुनौती यह है कि इन आकांक्षाओं को कैसे पूरा किया जाए बिना राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाले।
  • यह एक नाजुक संतुलन है जिसे हासिल करने के लिए निरंतर बातचीत और सम्मान की आवश्यकता होती है।

स्थानीय आबादी की शिकायतों का समाधान (Addressing Grievances of Local Populations):

  • अक्सर, भाषाई विवादों के पीछे वास्तविक शिकायतें होती हैं जैसे रोजगार की कमी, संसाधनों पर नियंत्रण का अभाव, या सांस्कृतिक पहचान के लुप्त होने का डर।
  • इन वास्तविक शिकायतों को स्वीकार करना और उनके प्रभावी समाधान खोजना महत्वपूर्ण है, ताकि वे अतिवादी रूपों में न बदलें।

राजनीतिक शोषण की रोकथाम (Preventing Political Exploitation):

  • चुनावी लाभ के लिए भाषाई और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काना एक आम रणनीति है।
  • इससे निपटना मुश्किल है क्योंकि यह अक्सर भावनाओं को उत्तेजित करता है और तर्कसंगत बहस को बाधित करता है।

मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका (Role of Media and Social Media):

  • आज के युग में, सोशल मीडिया अफवाहों और भड़काऊ सामग्री को तेजी से फैलाने का एक शक्तिशाली माध्यम बन गया है।
  • जिम्मेदार पत्रकारिता और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का विवेक इस चुनौती से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।

आगे की राह (Way Forward)

भारत की भाषाई विविधता उसकी ताकत है, कमजोरी नहीं। इसे बनाए रखने और विवादों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

बहुभाषावाद और आपसी सम्मान को बढ़ावा देना (Promoting Multilingualism and Mutual Respect):

  • शिक्षा प्रणाली में बहुभाषावाद को बढ़ावा देना चाहिए। बच्चों को केवल अपनी मातृभाषा नहीं, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • “अतिथि देवो भव” की भारतीय संस्कृति के मूल्य को विभिन्न भाषाई समूहों के बीच आपसी सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए लागू किया जाना चाहिए।

संवैधानिक मूल्यों को सुदृढ़ करना (Strengthening Constitutional Values):

  • संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों को लगातार दोहराया और आत्मसात किया जाना चाहिए।
  • लोगों को उनके मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।

संवाद और बातचीत (Dialogue and Negotiation):

  • जब भी भाषाई या क्षेत्रीय तनाव उत्पन्न हों, संबंधित पक्षों के बीच खुला और रचनात्मक संवाद स्थापित किया जाना चाहिए।
  • विभिन्न भाषाई समूहों के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के नेताओं को एक साथ मिलकर समाधान खोजना चाहिए।

समावेशी विकास नीतियाँ (Inclusive Development Policies):

  • क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना और सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • रोजगार सृजन और अवसरों का समान वितरण भाषाई और क्षेत्रीय शिकायतों को कम करने में मदद करेगा।

कानून का सख्त प्रवर्तन (Strict Enforcement of Law):

  • हिंसा या भेदभाव में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानून का सख्त और निष्पक्ष प्रवर्तन आवश्यक है, चाहे उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो।
  • यह कानून के शासन में जनता के विश्वास को मजबूत करेगा।

शिक्षा प्रणाली की भूमिका (Role of Education System):

  • पाठ्यक्रम में भारत की विविधता, विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के योगदान को शामिल करना चाहिए।
  • छात्रों में सहिष्णुता, करुणा और राष्ट्रीय एकता की भावना विकसित करनी चाहिए।

सिविल सोसायटी की भूमिका (Role of Civil Society):

  • नागरिक समाज संगठन, गैर-सरकारी संगठन और सामुदायिक नेता भाषाई सद्भाव को बढ़ावा देने, गलत सूचनाओं का खंडन करने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भारत एक विशाल मोज़ेक है, जहाँ हर भाषाई टुकड़ा अपनी अनूठी चमक जोड़ता है। हमारा लक्ष्य इन टुकड़ों को एक दूसरे से लड़वाना नहीं, बल्कि उन्हें एक साथ जोड़कर एक खूबसूरत तस्वीर बनाना है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मुंबई में ऑटो चालक पर हुआ हमला सिर्फ एक छोटी सी घटना नहीं, बल्कि एक बड़े और गहरे मुद्दे का संकेत है: भाषाई पहचान के नाम पर बढ़ती असहिष्णुता। भारत की आत्मा विविधता में एकता में निहित है। जब हम अपनी भाषाई पहचान को गर्व से अपनाते हैं, तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यह गर्व दूसरों की पहचान के सम्मान की कीमत पर नहीं आना चाहिए। भारतीय संघ की ताकत उसकी भाषाओं और संस्कृतियों के गुलदस्ते में है, न कि किसी एक भाषा के वर्चस्व में। यह सरकार, राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे संवाद, समझ और संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से इस नाजुक संतुलन को बनाए रखें, ताकि ऐसी हिंसक घटनाएँ भविष्य में न दोहराई जाएँ और हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकें जहाँ हर भाषा और हर नागरिक सुरक्षित महसूस करे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार प्रदान करता है?

(a) अनुच्छेद 29

(b) अनुच्छेद 30

(c) अनुच्छेद 350A

(d) अनुच्छेद 351

उत्तर: (b)

व्याख्या: अनुच्छेद 30(1) के अनुसार, सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा। अनुच्छेद 29 भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार देता है, लेकिन संस्थानों की स्थापना का अधिकार अनुच्छेद 30 देता है।

2. राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission – SRC) का गठन किस वर्ष किया गया था?

(a) 1948

(b) 1950

(c) 1953

(d) 1956

उत्तर: (c)

व्याख्या: राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) का गठन दिसंबर 1953 में भारत में राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर विचार करने के लिए किया गया था, जिसका नेतृत्व न्यायमूर्ति फज़ल अली कर रहे थे।

3. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में कितनी भाषाओं को मान्यता प्राप्त है?

(a) 14

(b) 18

(c) 22

(d) 25

उत्तर: (c)

व्याख्या: भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं, बाद में विभिन्न संशोधनों के माध्यम से अन्य भाषाओं को जोड़ा गया।

4. निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश देता है?

(a) अनुच्छेद 343

(b) अनुच्छेद 345

(c) अनुच्छेद 350

(d) अनुच्छेद 351

उत्तर: (d)

व्याख्या: अनुच्छेद 351 संघ को हिंदी भाषा के विकास के लिए प्रचार करने और उसका प्रचार करने के लिए निर्देश देता है ताकि यह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी तत्वों के लिए अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में कार्य कर सके।

5. भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी (Special Officer for Linguistic Minorities) के पद का प्रावधान भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में है?

(a) अनुच्छेद 350A

(b) अनुच्छेद 350B

(c) अनुच्छेद 351

(d) अनुच्छेद 347

उत्तर: (b)

व्याख्या: अनुच्छेद 350B भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी के पद का प्रावधान करता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा, ताकि भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक सुरक्षा उपायों की निगरानी की जा सके।

6. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. अनुच्छेद 19(1)(d) भारत के नागरिकों को भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार प्रदान करता है।

2. भाषाई आधार पर किसी पर शारीरिक हमला करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या: दोनों कथन सही हैं। अनुच्छेद 19(1)(d) भारत के नागरिकों को पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है, और शारीरिक हमला इस अधिकार का सीधा उल्लंघन है।

7. भारत में भाषाई राज्यों के गठन की मांग के संदर्भ में, आंध्र प्रदेश किस वर्ष भाषाई आधार पर बनने वाला पहला राज्य बना?

(a) 1947

(b) 1950

(c) 1953

(d) 1956

उत्तर: (c)

व्याख्या: तेलुगु भाषी क्षेत्रों के लिए एक अलग राज्य की मांग के बाद, अक्टूबर 1953 में आंध्र प्रदेश का गठन किया गया, जिससे यह भाषाई आधार पर बनने वाला पहला राज्य बन गया।

8. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद यह निर्दिष्ट करता है कि प्रत्येक राज्य को अपनी राजभाषा या भाषाओं को चुनने का अधिकार है?

(a) अनुच्छेद 343

(b) अनुच्छेद 345

(c) अनुच्छेद 347

(d) अनुच्छेद 348

उत्तर: (b)

व्याख्या: अनुच्छेद 345 एक राज्य के विधानमंडल को उस राज्य में उपयोग की जाने वाली किसी भी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिए राजभाषा के रूप में अपनाने का अधिकार देता है।

9. निम्नलिखित में से कौन सी भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है?

(a) संथाली

(b) बोडो

(c) राजस्थानी

(d) डोगरी

उत्तर: (c)

व्याख्या: संथाली, बोडो और डोगरी सभी आठवीं अनुसूची में शामिल हैं (2003 के 92वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया)। राजस्थानी भाषा अभी तक आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है।

10. ‘भूमिपुत्र’ की अवधारणा मुख्य रूप से किससे संबंधित है?

(a) ग्रामीण विकास

(b) क्षेत्रीय पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकार

(c) पर्यावरण संरक्षण

(d) भूमि सुधार आंदोलन

उत्तर: (b)

व्याख्या: ‘भूमिपुत्र’ की अवधारणा उस विचार को संदर्भित करती है कि किसी विशेष राज्य या क्षेत्र के निवासी (अक्सर भाषाई या जातीय आधार पर परिभाषित) उस क्षेत्र के संसाधनों और अवसरों पर प्राथमिक अधिकार रखते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

1. भारत में भाषाई विविधता राष्ट्रीय एकता के लिए एक चुनौती और एक अवसर दोनों प्रस्तुत करती है। इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण करें और बताएं कि भाषाई विवादों को कैसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है। (250 शब्द)

2. ‘भूमिपुत्र’ नीति की अवधारणा पर चर्चा करें। क्या यह भारतीय संघवाद के सिद्धांत के अनुरूप है? तर्क सहित अपने उत्तर का समर्थन करें। (150 शब्द)

3. भाषाई पहचान के नाम पर होने वाली हिंसा के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का परीक्षण करें। ऐसी घटनाओं को रोकने में राज्य और राजनीतिक दलों की क्या भूमिका होनी चाहिए? (250 शब्द)

4. “एक थप्पड़ केवल एक व्यक्ति को नहीं लगता, बल्कि यह संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय सद्भाव पर भी प्रहार करता है।” हाल की घटना के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण करें और संवैधानिक नैतिकता तथा कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आगे की राह सुझाएँ। (200 शब्द)

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