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भू-राजनीति का खेल: रूस का भारत को समर्थन, अमेरिकी टैरिफ़ से कैसे निपटेगा भारत?

भू-राजनीति का खेल: रूस का भारत को समर्थन, अमेरिकी टैरिफ़ से कैसे निपटेगा भारत?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिला जब रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत के कच्चे तेल के आयात पर लगाए जाने वाले संभावित टैरिफ़ (शुल्क) की धमकी की कड़ी निंदा की। इस कदम को रूस द्वारा भारत के “चुनने के अधिकार” (Right to Choose) के प्रति समर्थन के रूप में देखा गया। यह घटना भारत की ऊर्जा सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों और वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों के जटिल जाल को रेखांकित करती है।

यह केवल कच्चे तेल की खरीद-फरोख्त का मामला नहीं है, बल्कि यह संप्रभुता, रणनीतिक स्वायत्तता और बदलती विश्व व्यवस्था का प्रतीक है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, इस घटना का विश्लेषण अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), भारतीय अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और समसामयिक घटनाओं की समझ के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए, इस पूरे मामले की तह तक जाएं, इसके विभिन्न पहलुओं को समझें और UPSC परीक्षा के लिए इसकी प्रासंगिकता का आकलन करें।

समझ की बुनियाद: अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार और भू-राजनीति

किसी भी अंतर्राष्ट्रीय घटना को समझने के लिए, उसके संदर्भ को जानना आवश्यक है। कच्चे तेल की वैश्विक आपूर्ति और मूल्य निर्धारण कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें भू-राजनीतिक तनाव, OPEC+ देशों की नीतियां, आर्थिक विकास दर, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव और देशों की ऊर्जा आवश्यकताएं शामिल हैं।

कच्चे तेल की आपूर्ति श्रृंखला (Crude Oil Supply Chain):

  • उत्पादक देश: सऊदी अरब, रूस, अमेरिका, कनाडा, इराक, UAE आदि।
  • प्रमुख उपभोक्ता देश: चीन, अमेरिका, भारत, जापान, यूरोपीय संघ।
  • परिवहन: टैंकरों, पाइपलाइनों के माध्यम से।
  • मूल्य निर्धारण: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार (जैसे ब्रेंट क्रूड, WTI) और OPEC+ के निर्णय।

भू-राजनीतिक महत्व (Geopolitical Significance):

“तेल शक्ति का एक रूप है, जैसा कि परमाणु ऊर्जा है।” – हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger)

इतिहास गवाह है कि तेल ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और संघर्षों में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है। ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अभिन्न अंग है। जो देश तेल का आयात करते हैं, उन्हें अपने ऊर्जा स्रोतों को विविधतापूर्ण रखने और किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए लगातार प्रयास करना पड़ता है। भारत, दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ताओं में से एक होने के नाते, ऊर्जा आयात के मामले में बेहद संवेदनशील है।

‘चुनने का अधिकार’: रूस का स्टैंड और अमेरिकी धमकी

अमेरिकी टैरिफ़ की धमकी (US Tariff Threat):

यह समझना महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी टैरिफ़ की धमकी किस संदर्भ में आई थी। संभवतः, यह अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का एक विस्तार था, जो ईरान से तेल खरीदने वाले देशों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था। अमेरिका चाहता था कि दुनिया के सभी देश ईरान से तेल खरीदना बंद कर दें, अन्यथा उन पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। यह अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति और वैश्विक व्यापार में अपनी शक्ति का उपयोग करने की रणनीति का हिस्सा था।

रूस का जवाब (Russia’s Response):

रूस, स्वयं एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है और ईरान के साथ उसके भी कूटनीतिक और आर्थिक संबंध हैं। रूस ने अमेरिका के इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों और देशों की संप्रभुता का उल्लंघन बताया। रूस का यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण था:

  • समर्थन का संकेत: यह भारत को एक स्पष्ट संकेत था कि ऊर्जा स्रोतों को चुनने के मामले में वह अकेला नहीं है।
  • बहुध्रुवीय विश्व की वकालत: रूस अक्सर अमेरिका के एकतरफावाद की आलोचना करता रहा है और इस कदम को बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण की दिशा में एक और कदम के रूप में देखा गया।
  • रणनीतिक साझेदारी: भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत रक्षा और कूटनीतिक संबंध रहे हैं। रूस का यह बयान उस साझेदारी को और गहरा करने वाला था।

‘चुनने का अधिकार’ का अर्थ (Meaning of ‘Right to Choose’):

यह वाक्यांश केवल तेल खरीदने तक सीमित नहीं है। इसका व्यापक अर्थ है: एक संप्रभु राष्ट्र को यह तय करने का अधिकार है कि वह किससे व्यापार करेगा, किससे हथियार खरीदेगा, और किन अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में शामिल होगा, बिना किसी बाहरी शक्ति के अनुचित दबाव के। यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राष्ट्रीय हित और स्वायत्तता का मूल सिद्धांत है।

भारत के लिए प्रासंगिकता: क्यों यह इतना महत्वपूर्ण है?

भारत के लिए, यह घटना कई स्तरों पर महत्वपूर्ण थी:

  1. ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security): भारत अपनी लगभग 80% कच्चे तेल की जरूरतों को आयात से पूरा करता है। इसलिए, तेल की निर्बाध आपूर्ति भारत की अर्थव्यवस्था और नागरिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी भी देश पर अत्यधिक निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को कमजोर कर सकती है।
  2. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact): तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव सीधे तौर पर भारत की मुद्रास्फीति, व्यापार घाटे और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है। यदि अमेरिका टैरिफ़ लगाता, तो इससे तेल की कीमतें बढ़ सकती थीं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता।
  3. कूटनीतिक संतुलन (Diplomatic Balancing): भारत को अमेरिका और रूस जैसे प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होता है। अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार है, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में। वहीं, रूस भारत का पारंपरिक और विश्वसनीय मित्र रहा है, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में। ऐसे में, रूस का समर्थन भारत के लिए कूटनीतिक रूप से भी अहम था।
  4. रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): भारत अपनी विदेश नीति में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के सिद्धांत का पालन करता है। इसका मतलब है कि भारत किसी भी गुट या शक्ति के साथ आंख मूंदकर न चले, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय ले। रूस का समर्थन भारत को अपनी पसंद के देशों से व्यापार करने की स्वतंत्रता की पुष्टि करता है।

भारत-रूस संबंध: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत और रूस के बीच संबंध दशकों पुराने हैं, जो विश्वास, साझा हितों और आपसी सम्मान पर आधारित हैं।

  • रक्षा सहयोग: रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है।
  • ऊर्जा सहयोग: दोनों देश तेल और गैस क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। रूस ने भारत को तेल की आपूर्ति में हमेशा प्राथमिकता दी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंच: संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर रूस ने अक्सर भारत के रुख का समर्थन किया है।

हाल की घटना इस मजबूत साझेदारी का ही एक प्रमाण है, जहां रूस ने भारत के हितों को महत्व दिया।

अमेरिकी टैरिफ़ के निहितार्थ और संभावित प्रभाव

यदि अमेरिका ने वास्तव में भारत पर टैरिफ़ लगाया होता, तो इसके कई संभावित परिणाम हो सकते थे:

  • ऊर्जा आपूर्ति में बाधा: भारत को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती, जिससे लॉजिस्टिक्स और लागत बढ़ सकती थी।
  • कीमतों में वृद्धि: बाज़ार में अनिश्चितता और आपूर्ति की कमी से तेल की कीमतें बढ़ सकती थीं।
  • भारत-अमेरिका संबंधों पर असर: यह दोनों देशों के बीच व्यापार और रणनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर सकता था।
  • वैश्विक व्यापार नियम: एकतरफा टैरिफ़ लगाना विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के लिए भी एक चुनौती पेश करता।

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालांकि रूस का समर्थन भारत के लिए एक सकारात्मक कदम है, लेकिन भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण: भारत को केवल रूस या किसी अन्य एक देश पर निर्भर रहने के बजाय अपने तेल स्रोतों को और अधिक विविधतापूर्ण बनाना होगा। इसमें मध्य पूर्व, अफ्रीका और अमेरिका जैसे क्षेत्रों से आयात बढ़ाना शामिल हो सकता है।
  • रणनीतिक भंडार (Strategic Reserves): भारत को अपने रणनीतिक तेल भंडार को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि वह आपूर्ति में किसी भी व्यवधान की स्थिति में कुछ समय तक काम चला सके।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए, भारत को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी और सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को तेजी से अपनाना होगा।
  • कूटनीतिक सक्रियता: भारत को लगातार अमेरिका, रूस, OPEC+ देशों और अन्य प्रमुख ऊर्जा उत्पादकों के साथ कूटनीतिक संवाद बनाए रखना होगा ताकि तेल की स्थिर आपूर्ति और उचित मूल्य सुनिश्चित हो सके।
  • घरेलू उत्पादन: भारत को अपने घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने के लिए भी प्रयास करने चाहिए, हालांकि इसमें काफी चुनौतियां हैं।

विशेषज्ञों का मत:

“वैश्विक ऊर्जा बाज़ार अत्यंत जटिल है, और किसी भी देश की ऊर्जा सुरक्षा उसकी कूटनीतिक चतुराई और आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण पर निर्भर करती है।”

निष्कर्ष: एक बहुआयामी कूटनीतिक चाल

रूस द्वारा भारत के “चुनने के अधिकार” का समर्थन करना और अमेरिकी टैरिफ़ धमकी की निंदा करना, अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह न केवल भारत-रूस संबंधों की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए मिलकर काम कर सकते हैं, खासकर जब वे एक शक्तिशाली राष्ट्र के अनुचित दबाव का सामना कर रहे हों।

UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक व्यापार के अध्ययन के लिए एक उत्कृष्ट केस स्टडी प्रस्तुत करती है। यह याद दिलाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई भी संबंध स्थायी या शाश्वत नहीं होता, और देशों को हमेशा अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए बदलते समीकरणों के अनुसार अपनी नीतियों को अनुकूलित करना पड़ता है। भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य अपनी संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाना है, और इस घटना ने उस संतुलन को साधने की भारतीय क्षमता को फिर से प्रदर्शित किया है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत अपनी कच्चे तेल की अधिकांश मांग आयात से पूरा करता है।
2. रूस भारत को तेल की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देशों में से एक है।
3. अमेरिका ने हाल ही में भारत के कच्चे तेल आयात पर टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीनों कथन समसामयिक घटनाक्रमों के अनुसार सत्य हैं। भारत अपनी लगभग 80% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, रूस एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है, और अमेरिका ने इस संदर्भ में टैरिफ़ की धमकी दी थी।

2. ‘राइट टू चूज’ (Right to Choose) का संदर्भ किस अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे से जुड़ा है?
a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता
b) वैश्विक व्यापार में देशों की संप्रभुता और व्यापारिक संबंध तय करने की स्वतंत्रता
c) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण लेने की प्रक्रिया
d) परमाणु अप्रसार संधि

उत्तर: b) वैश्विक व्यापार में देशों की संप्रभुता और व्यापारिक संबंध तय करने की स्वतंत्रता
व्याख्या: यह वाक्यांश रूस द्वारा भारत के उस अधिकार का समर्थन करने से संबंधित है जिसके तहत वह किसी भी देश से तेल खरीद सकता है, जो उसकी संप्रभुता का हिस्सा है।

3. निम्नलिखित में से कौन सा देश कच्चे तेल के प्रमुख उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों में शामिल है?
1. रूस
2. संयुक्त राज्य अमेरिका
3. सऊदी अरब
4. चीन
सही कूट का चयन करें:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 2, 3 और 4
c) केवल 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: रूस, अमेरिका और सऊदी अरब प्रमुख तेल उत्पादक हैं। अमेरिका और चीन प्रमुख तेल उपभोक्ता हैं। इसलिए, सभी चारों देश इन दोनों श्रेणियों में आते हैं।

4. भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे महत्वपूर्ण है?
a) घरेलू तेल उत्पादन में वृद्धि
b) तेल निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) में सदस्यता
c) ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण और रणनीतिक भंडार का निर्माण
d) केवल नवीकरणीय ऊर्जा पर पूर्ण निर्भरता

उत्तर: c) ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण और रणनीतिक भंडार का निर्माण
व्याख्या: भारत तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाना और आपात स्थिति के लिए भंडार बनाना महत्वपूर्ण है।

5. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) का क्या अर्थ है?
a) किसी भी गठबंधन का सदस्य न बनना
b) अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता, बाहरी दबावों से मुक्त
c) केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना
d) केवल सैन्य शक्ति का विकास करना

उत्तर: b) अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता, बाहरी दबावों से मुक्त
व्याख्या: यह भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि भारत किसी भी एक महाशक्ति पर अत्यधिक निर्भर हुए बिना अपने हित में निर्णय लेता है।

6. रूस द्वारा अमेरिकी टैरिफ़ धमकी की निंदा किस अंतर्राष्ट्रीय समूह के सिद्धांतों के विरुद्ध हो सकती है?
a) ब्रिक्स (BRICS)
b) शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
d) गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)

उत्तर: c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
व्याख्या: एकतरफा टैरिफ़ लगाना अक्सर WTO के मुक्त व्यापार और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के सिद्धांतों के खिलाफ माना जाता है।

7. हाल के भू-राजनीतिक परिदृश्य में, भारत के लिए निम्नलिखित में से कौन सा देश महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है?
1. ईरान
2. इराक
3. वेनेजुएला
4. रूस
सही कूट का चयन करें:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: भारत विभिन्न देशों से तेल का आयात करता है, जिसमें ईरान, इराक, वेनेजुएला और रूस प्रमुख रहे हैं (ईरान पर प्रतिबंधों से पहले और बाद में भी)।

8. “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना
b) अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना, जिसमें व्यापार और आर्थिक नीतियां शामिल हैं
c) वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करना
d) पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना

उत्तर: b) अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना, जिसमें व्यापार और आर्थिक नीतियां शामिल हैं
व्याख्या: यह नीति अमेरिकी व्यापार, आव्रजन और विदेश नीति के फैसलों को अमेरिकी हितों के इर्द-गिर्द केंद्रित करने पर जोर देती है।

9. भारत-रूस संबंधों का सबसे मजबूत स्तंभ कौन सा क्षेत्र रहा है?
a) सूचना प्रौद्योगिकी (IT)
b) रक्षा सहयोग
c) खेल
d) पर्यटन

उत्तर: b) रक्षा सहयोग
व्याख्या: ऐतिहासिक रूप से, रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान भारत-रूस संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण और टिकाऊ स्तंभ रहा है।

10. कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
1. बढ़ती मुद्रास्फीति
2. व्यापार घाटे में वृद्धि
3. रुपये का अवमूल्यन
4. आर्थिक विकास में मंदी
सही कूट का चयन करें:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: तेल एक आवश्यक वस्तु है। आयात लागत बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ती है, व्यापार घाटा बढ़ता है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ता है और अंततः आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “वैश्विक ऊर्जा कूटनीति में राष्ट्रीय संप्रभुता और आर्थिक हितों के टकराव को समझने के लिए भारत, रूस और अमेरिका के बीच हालिया कच्चे तेल आयात विवाद का विश्लेषण करें। भारत के लिए ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ बनाए रखने के निहितार्थों पर प्रकाश डालें।” (लगभग 250 शब्द)
* संकेत: शुरुआत में कच्चे तेल आयात की भारत की निर्भरता का उल्लेख करें। अमेरिका की टैरिफ़ धमकी के पीछे के कारणों (ईरान प्रतिबंध, व्यापार युद्ध) को समझाएं। रूस के समर्थन (right to choose) के महत्व को बताएं। बताएं कि यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को कैसे मजबूत करता है। अंत में, ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दें।

2. “अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार में भू-राजनीतिक कारक कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? कच्चे तेल की आपूर्ति पर भू-राजनीतिक तनावों के प्रभाव और भारत जैसी आयात-निर्भर अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसके परिणामों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।” (लगभग 250 शब्द)
* संकेत: तेल को भू-राजनीतिक शक्ति के स्रोत के रूप में स्थापित करें। मध्य पूर्व, OPEC+, रूस-यूक्रेन जैसे विभिन्न भू-राजनीतिक मुद्दों का तेल आपूर्ति और कीमतों पर प्रभाव बताएं। भारत जैसे देशों के लिए इन प्रभावों (ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता) का विश्लेषण करें। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के महत्व और आपूर्ति स्रोतों के विविधीकरण की आवश्यकता पर चर्चा करें।

3. “भारत-रूस संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देते हुए, हाल की घटनाओं के आलोक में ऊर्जा सहयोग की भूमिका का विश्लेषण करें। क्या यह साझेदारी भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है?” (लगभग 200 शब्द)
* संकेत: भारत-रूस संबंधों के मजबूत आधार (रक्षा, कूटनीति) का संक्षिप्त उल्लेख करें। ऊर्जा सहयोग (तेल, गैस) के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डालें। हाल की घटना (रूस का समर्थन) को इस साझेदारी के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करें। चर्चा करें कि क्या केवल एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता पर्याप्त है, या विविधीकरण अभी भी महत्वपूर्ण है।

4. “वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद (Protectionism) और टैरिफ़ के बढ़ते उपयोग का विश्लेषण करें। अमेरिका की टैरिफ़ धमकी के संदर्भ में, यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को कैसे प्रभावित करता है?” (लगभग 250 शब्द)
* संकेत: संरक्षणवाद और टैरिफ़ की परिभाषा दें। “अमेरिका फर्स्ट” नीति जैसे उदाहरणों के साथ इसके बढ़ते उपयोग को समझाएं। बताएं कि कैसे ऐसे एकतरफा कदम WTO के नियमों (जैसे गैर-भेदभाव, पारस्परिकता) का उल्लंघन कर सकते हैं। बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर इसके नकारात्मक प्रभावों (व्यापार युद्ध, अनिश्चितता) पर चर्चा करें।

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