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भू-राजनीतिक दांवपेंच: US द्वारा UN दो-राज्य समाधान सम्मेलन से दूरी का गहरा विश्लेषण और भारत के लिए संकेत

भू-राजनीतिक दांवपेंच: US द्वारा UN दो-राज्य समाधान सम्मेलन से दूरी का गहरा विश्लेषण और भारत के लिए संकेत

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण सम्मेलन, जिसका उद्देश्य इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के समाधान के रूप में “दो-राज्य समाधान” (Two-State Solution) की संभावनाओं को बढ़ावा देना था, को संयुक्त राज्य अमेरिका (US) द्वारा ‘गलत समय पर’ (Ill-timed) बताते हुए उससे दूरी बना ली गई। इसके साथ ही, अमेरिका ने इस मुद्दे पर अपनी चिंताओं को भारत के साथ भी साझा किया है। यह घटनाक्रम मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है और वैश्विक भू-राजनीति, विशेषकर भारत के लिए इसके निहितार्थों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के विभिन्न आयामों का गहराई से विश्लेषण करेगा, जिसमें दो-राज्य समाधान की अवधारणा, अमेरिका के रुख के पीछे की संभावित वजहें, भारत की स्थिति और भविष्य की राह शामिल है।

क्या है दो-राज्य समाधान? (What is the Two-State Solution?)

दो-राज्य समाधान, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का वह प्रस्तावित राजनीतिक समाधान है जिसके तहत एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की जाएगी जो वर्तमान में इज़राइल के बगल में स्थित होगा। इस अवधारणा के तहत, दोनों राज्य शांति और सुरक्षा के साथ सह-अस्तित्व में रहेंगे।

मुख्य बिंदु:

  • सीमाएं: आमतौर पर 1967 की युद्ध रेखाओं पर आधारित, कुछ भूमि विनिमय के साथ।
  • जेरुसलम: एक साझा या विभाजित राजधानी का प्रस्ताव।
  • शरणार्थी: फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी का अधिकार, जिसकी जटिलताएं बहुत हैं।
  • सुरक्षा: इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं का समाधान और फिलिस्तीनी राज्य की संप्रभुता।

यह समाधान दशकों से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा समर्थित रहा है, लेकिन इजरायल और फिलिस्तीनी दोनों पक्षों के बीच गहरे मतभेदों और विश्वास की कमी के कारण इसे लागू करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है।

अमेरिका ने UN सम्मेलन से दूरी क्यों बनाई? ‘गलत समय पर’ का क्या मतलब है? (Why did the US Shun the UN Conference? What does ‘Ill-timed’ mean?)

अमेरिका की अनुपस्थिति और उसके द्वारा व्यक्त की गई चिंताएं अप्रत्याशित नहीं हैं, बल्कि हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और अमेरिका की अपनी राष्ट्रीय हितों से जुड़ी हुई हैं।

संभावित कारण:

  1. वर्तमान इजरायल सरकार का रुख: हाल ही में इज़राइल में गठित हुई सरकार, जिसे अक्सर अधिक दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी माना जाता है, दो-राज्य समाधान के प्रति उतनी प्रतिबद्ध नहीं है जितनी पिछली सरकारें थीं। वह वेस्ट बैंक में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने और फिलिस्तीनी राज्य की संभावनाओं को कम करने पर जोर दे रही है। ऐसे में, अमेरिका शायद नहीं चाहता कि वह ऐसे सम्मेलन में भाग ले जो वर्तमान इजरायली नेतृत्व के एजेंडे के विपरीत हो।
  2. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इजरायल को अकेला करने की चिंता: अमेरिका, इजरायल के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है। वह शायद ऐसे सम्मेलनों में भाग लेकर इजरायल को अंतर्राष्ट्रीय दबाव में लाने से बचना चाहता है, खासकर जब वह मानता है कि वर्तमान इजरायली सरकार के साथ बातचीत के लिए यह सही समय नहीं है।
  3. क्षेत्रीय भू-राजनीति में बदलाव: हाल के वर्षों में, कुछ अरब देशों ने इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य किया है (जैसे अब्राहम अकॉर्ड)। इस संदर्भ में, अमेरिका दो-राज्य समाधान पर बातचीत को ऐसे तरीके से आगे बढ़ाना चाहता है जो इन नई क्षेत्रीय वास्तविकताओं को ध्यान में रखे।
  4. रणनीतिक प्राथमिकताएं: अमेरिका की वर्तमान विदेश नीति की प्राथमिकताएं यूक्रेन युद्ध, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और अन्य वैश्विक मुद्दों पर केंद्रित हैं। मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया, जबकि महत्वपूर्ण है, शायद उनकी तात्कालिक रणनीतिक प्राथमिकताओं में दूसरे स्थान पर हो।
  5. एकतरफा कार्रवाइयों का विरोध: अमेरिका अक्सर संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर उन प्रस्तावों का विरोध करता है जिन्हें वह एकतरफा मानता है या जो बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं।

‘गलत समय पर’ (Ill-timed) का अर्थ: यह वाक्यांश इस बात का संकेत हो सकता है कि अमेरिका का मानना है कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा दो-राज्य समाधान पर जोर देना इजरायल सरकार के साथ बातचीत को और कठिन बना देगा, या यह कि वर्तमान इजरायली सरकार के साथ ऐसे ठोस कदम उठाने की संभावना नहीं है।

भारत के साथ चिंताओं का साझा होना: क्या मायने हैं? (Conveying Concerns with India: What are the Implications?)

अमेरिका का भारत के साथ अपनी चिंताएं साझा करना एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। भारत, मध्य पूर्व में एक प्रमुख खिलाड़ी है और फिलिस्तीन के मुद्दे पर एक पारंपरिक समर्थक रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इजरायल के साथ भी उसके संबंध मजबूत हुए हैं।

विश्लेषण:

  • भारत की जटिल स्थिति: भारत ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे का प्रबल समर्थक रहा है और “दो-राज्य समाधान” का समर्थन करता है। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने इजरायल के साथ अपने रक्षा, प्रौद्योगिकी और आर्थिक संबंधों को भी काफी मजबूत किया है। यह भारत को इस मुद्दे पर एक नाजुक संतुलन बनाने के लिए मजबूर करता है।
  • अमेरिका का कूटनीतिक पैंतरा: अमेरिका शायद भारत को अपनी स्थिति समझाने और यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे किसी भी कदम का समर्थन न करे जिसे अमेरिका अपने हितों के विरुद्ध मानता हो। यह अमेरिका के लिए भारत को अपने पाले में लाने या कम से कम उसे तटस्थ रखने का एक प्रयास हो सकता है।
  • साझा रणनीतिक हित: अमेरिका और भारत दोनों ही इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। अमेरिका शायद यह भी संकेत दे रहा है कि मध्य पूर्व में स्थिरता और क्षेत्रीय सुरक्षा उसके लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, और इस क्षेत्र में अमेरिकी नेतृत्व को वह कैसे देखता है, इसमें भारत का सहयोग उसे महत्वपूर्ण लगता है।
  • “ऑल्सो-रेंस” (Also-Rans) का संकेत: यह भी संभव है कि अमेरिका भारत को यह बताना चाहता हो कि वह उन देशों के साथ मिलकर काम करना चाहता है जो “स्थापित” विश्व व्यवस्था के सिद्धांतों का पालन करते हैं, और यह कि वह भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखता है, न कि केवल एक “ऑल्सो-रैन” (यानी, एक माध्यमिक खिलाड़ी)।

“अंतर्राष्ट्रीय संबंध जटिल होते हैं। जब एक महाशक्ति अपना रुख बदलती है, तो वह अन्य प्रमुख खिलाड़ियों को भी अपनी स्थिति समझाने का प्रयास करती है, खासकर उन देशों को जिनके साथ उसके मजबूत रणनीतिक हित जुड़े होते हैं।”

भारत की स्थिति और नीति (India’s Stand and Policy)

भारत की विदेश नीति हमेशा “गुटनिरपेक्षता” और “विविध-ध्रुवीय विश्व” के सिद्धांतों पर आधारित रही है। इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के मामले में, भारत का रुख परंपरागत रूप से फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र, व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन करने वाला रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • ऐतिहासिक समर्थन: भारत ने हमेशा फिलिस्तीनी मुक्ति आंदोलन का समर्थन किया है।
  • इजरायल के साथ संबंध: 1992 में पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से, भारत-इजरायल संबंध रक्षा, प्रौद्योगिकी, कृषि और जल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में तेजी से बढ़े हैं।
  • संतुलित दृष्टिकोण: भारत दोनों देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए “दो-राज्य समाधान” का समर्थन करता रहा है, जबकि इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को भी मान्यता देता है।
  • हालिया रुझान: हाल के वर्षों में, भारत ने इजरायल के साथ अपने संबंधों को अधिक प्राथमिकता दी है, संभवतः पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और तकनीकी व रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए।

अमेरिका द्वारा भारत के साथ चिंताएं साझा करना, भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती पेश करता है। उसे न तो इजरायल के साथ अपने संबंधों को खराब करना है और न ही फिलिस्तीन के प्रति अपनी दशकों पुरानी प्रतिबद्धता को छोड़ना है।

भू-राजनीतिक दांवपेंच और चुनौतियाँ (Geopolitical Chess and Challenges)

यह घटनाक्रम एक बड़े भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है, जिसमें कई खिलाड़ी और उनके हित शामिल हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ:

  • इजरायल-फिलिस्तीन गतिरोध: बिना किसी प्रभावी कूटनीतिक प्रक्रिया के, संघर्ष के समाधान की उम्मीद कम है।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता: मध्य पूर्व में तनाव, अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
  • बड़ी शक्तियों की भूमिका: अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसे खिलाड़ियों की भूमिका इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • कूटनीतिक विभाजन: अमेरिका का रुख अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में विभाजन को और बढ़ा सकता है।
  • भारत का संतुलन: भारत को अपने रणनीतिक हितों और अपनी विदेश नीति की सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाना जारी रखना होगा।

भू-राजनीतिक पहलू:

  • अमेरिका बनाम चीन/रूस: अमेरिका मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहता है, जबकि चीन और रूस भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। अमेरिका का यह कदम इस व्यापक शक्ति संघर्ष का भी हिस्सा हो सकता है।
  • अब्राहम अकॉर्ड्स का प्रभाव: ये समझौते क्षेत्रीय गठबंधनों को नया आकार दे रहे हैं, और दो-राज्य समाधान पर उनका प्रभाव पड़ सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और बहुपक्षवाद: अमेरिका का एकतरफा रवैया संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की भूमिका पर भी सवाल उठाता है।

भविष्य की राह: आगे क्या? (The Way Forward: What Next?)

अमेरिका के इस कदम से इज़रायल-फिलिस्तीन शांति प्रक्रिया के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं।

संभावित परिदृश्य:

  • स्थगन (Stalemate): शांति वार्ता में एक और लंबा स्थगन देखा जा सकता है, जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति पर अड़े रहेंगे।
  • वैकल्पिक समाधानों की खोज: यदि दो-राज्य समाधान असंभव लगने लगे, तो वैकल्पिक समाधानों पर चर्चा शुरू हो सकती है, जैसे एक-राज्य समाधान, लेकिन यह भी अपने आप में अत्यंत जटिल है।
  • क्षेत्रीय कूटनीति पर जोर: अरब देशों और इजरायल के बीच बढ़ते सामान्यीकरण से क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने का एक नया अवसर मिल सकता है, लेकिन यह फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
  • भारत की भूमिका: भारत को इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक संलग्नता बनाए रखनी होगी, और उसे एक संतुलित व रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। वह संवाद को प्रोत्साहित करने और दोनों पक्षों के बीच विश्वास बहाली के प्रयासों में भूमिका निभा सकता है।

“जब तक इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मुख्य मुद्दों (सीमाएं, जेरुसलम, शरणार्थी, सुरक्षा) पर ठोस प्रगति नहीं होती, तब तक कोई भी ‘समाधान’ केवल कागजों तक ही सीमित रहेगा।”

कुल मिलाकर, अमेरिका द्वारा UN सम्मेलन से दूरी बनाना मध्य पूर्व शांति की राह में एक महत्वपूर्ण और संभावित रूप से निराशाजनक विकास है। यह वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं और भारत जैसे देशों के लिए इस नाजुक संतुलन को बनाए रखने की चुनौती को रेखांकित करता है। भारत को अपनी विदेश नीति को बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से संचालित करते हुए, शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने वाले संतुलित दृष्टिकोण को बनाए रखना होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: “दो-राज्य समाधान” का संदर्भ निम्नलिखित में से किस अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष से संबंधित है?

    (a) यूक्रेन-रूस संघर्ष
    (b) इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष
    (c) भारत-पाकिस्तान संघर्ष
    (d) दक्षिण चीन सागर विवाद

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: दो-राज्य समाधान इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के माध्यम से संघर्ष को हल करने का एक प्रस्तावित राजनीतिक समाधान है।
  2. प्रश्न 2: 1967 की युद्ध रेखाओं का संदर्भ, दो-राज्य समाधान के तहत, निम्नलिखित में से किस भौगोलिक क्षेत्र से सबसे अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है?
    (a) गोलान हाइट्स
    (b) वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी
    (c) सिनाई प्रायद्वीप
    (d) लेबनान का दक्षिणी भाग

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: 1967 के युद्ध के बाद, इज़राइल ने वेस्ट बैंक (पूर्वी यरुशलम सहित) और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था। दो-राज्य समाधान अक्सर इन क्षेत्रों पर आधारित एक फिलिस्तीनी राज्य की परिकल्पना करता है।
  3. प्रश्न 3: हाल ही में अमेरिका द्वारा UN के दो-राज्य समाधान सम्मेलन से दूरी बनाने के पीछे एक संभावित कारण क्या हो सकता है?
    (a) इज़राइल के साथ संबंधों को मजबूत करने की इच्छा
    (b) फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ असहमति
    (c) सम्मेलन के एजेंडे से पूर्ण असहमति
    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)
    व्याख्या: अमेरिका ने वर्तमान इजरायली सरकार के रुख, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इजरायल को अकेला करने से बचने की इच्छा, और इस समय को ‘गलत समय’ मानने जैसे कारणों से दूरी बनाई हो सकती है।
  4. प्रश्न 4: “अब्राहम अकॉर्ड्स” (Abraham Accords) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. ये समझौते संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को के इजरायल के साथ सामान्यीकरण से संबंधित थे।
    2. इनका उद्देश्य मध्य पूर्व में इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान खोजना था।
    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (a)
    व्याख्या: अब्राहम अकॉर्ड्स इज़राइल और कुछ अरब देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को सामान्य बनाने से संबंधित थे, न कि सीधे तौर पर फिलिस्तीनी मुद्दे का समाधान खोजने से।
  5. प्रश्न 5: भारत की विदेश नीति के संदर्भ में, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति भारत का पारंपरिक रुख क्या रहा है?
    (a) इज़राइल का पूर्ण समर्थन
    (b) फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय का समर्थन
    (c) दोनों देशों के साथ समान दूरी बनाए रखना
    (d) केवल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन करना

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: भारत ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय और दो-राज्य समाधान का समर्थक रहा है, जबकि इजरायल के साथ भी अपने संबंध मजबूत किए हैं।
  6. प्रश्न 6: UN के दो-राज्य समाधान सम्मेलन से अमेरिका के हटने और भारत के साथ चिंताएं साझा करने का क्या निहितार्थ हो सकता है?
    (a) भारत को अपनी स्थिति समझाने का प्रयास
    (b) क्षेत्रीय भू-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को पहचानना
    (c) दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक गठजोड़ का संकेत
    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)
    व्याख्या: अमेरिका की कार्रवाई भारत को अपनी स्थिति समझाने, उसकी बढ़ती भूमिका को स्वीकार करने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का एक संकेत हो सकती है।
  7. प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा समूह “दो-राज्य समाधान” के घटकों में शामिल हो सकता है?
    1. 1967 की युद्ध रेखाओं पर आधारित सीमाएं
    2. यरुशलम को दोनों राज्यों की राजधानी बनाना
    3. फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी का अधिकार
    4. इजरायल की पूर्ण सुरक्षा गारंटी
    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
    (a) 1, 2 और 3
    (b) 1, 3 और 4
    (c) 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (d)
    व्याख्या: ये सभी बिंदु दो-राज्य समाधान की चर्चाओं के मुख्य घटक रहे हैं, हालांकि इनके विवरण पर बहुत मतभेद हैं।
  8. प्रश्न 8: मध्य पूर्व में हाल के वर्षों में हुए “सामान्यीकरण” (Normalization) से संबंधित प्रमुख समझौता कौन सा है?
    (a) ओस्लो अकॉर्ड्स
    (b) कैम्प डेविड अकॉर्ड्स
    (c) अब्राहम अकॉर्ड्स
    (d) डे मोंट अकॉर्ड्स

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: अब्राहम अकॉर्ड्स ने कुछ अरब देशों के इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य किया।
  9. प्रश्न 9: भारत-इजरायल संबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्र महत्वपूर्ण सहयोग का रहा है?
    1. रक्षा और सुरक्षा
    2. कृषि और जल प्रबंधन
    3. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
    4. साइबर सुरक्षा
    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 1, 2 और 3
    (c) केवल 1, 2 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (d)
    व्याख्या: भारत और इजरायल रक्षा, कृषि, जल प्रबंधन, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा सहित कई क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग करते हैं।
  10. प्रश्न 10: UN के दो-राज्य समाधान सम्मेलन से अमेरिकी अनुपस्थिति के संदर्भ में, ‘गलत समय पर’ (Ill-timed) वाक्यांश का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या हो सकता है?
    (a) सम्मेलन के लिए वित्तीय सहायता की कमी
    (b) सम्मेलन के एजेंडे पर आंतरिक असहमति
    (c) वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों और इजरायल सरकार के रुख के कारण, यह बातचीत या प्रगति के लिए अनुकूल समय नहीं है।
    (d) संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर संदेह

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: ‘गलत समय पर’ का अर्थ है कि अमेरिका वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए इस मुद्दे पर आगे बढ़ने या चर्चा करने को प्रभावी नहीं मानता।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: “दो-राज्य समाधान” की अवधारणा का विस्तार से वर्णन करें। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हाल ही में UN के दो-राज्य समाधान सम्मेलन से दूरी बनाने के पीछे के संभावित कारणों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और इसके वैश्विक भू-राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: भारत के लिए इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना क्यों महत्वपूर्ण है? भारत-इजरायल संबंधों में हालिया प्रगति और भारत के पारंपरिक रुख के बीच अंतर्निहित तनावों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: अमेरिका का यह कदम कि उसने UN के दो-राज्य समाधान सम्मेलन से दूरी बनाई और भारत के साथ अपनी चिंताएं साझा कीं, मध्य पूर्व और वैश्विक शक्ति संतुलन के संदर्भ में क्या संकेत देता है? इस पर एक विश्लेषणात्मक टिप्पणी लिखें। (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: “अब्राहम अकॉर्ड्स” ने मध्य पूर्व की भू-राजनीति को कैसे प्रभावित किया है, और क्या यह “दो-राज्य समाधान” की संभावनाओं को मजबूत करता है या कमजोर? चर्चा करें। (150 शब्द, 10 अंक)

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