भीषण बारिश का कहर: 13 राज्यों में अलर्ट, एमपी-यूपी हाईवे बंद, हिमाचल में तबाही!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** वर्तमान में, देश के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश का दौर जारी है, जिसके कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। विशेष रूप से, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों का बंद होना, हिमाचल प्रदेश में 700 से अधिक मकानों और दुकानों का जमींदोज होना, और 13 राज्यों में बारिश के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी होना, गंभीर पर्यावरणीय और नागरिक प्रबंधन से जुड़े मुद्दों को उजागर करता है। यह स्थिति न केवल तात्कालिक संकट पैदा करती है, बल्कि दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और बुनियादी ढांचे की भेद्यता पर भी सवाल उठाती है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, यह घटना न केवल समसामयिक मामलों का एक महत्वपूर्ण पहलू है, बल्कि भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, अर्थव्यवस्था और शासन जैसे विषयों के लिए एक केस स्टडी भी प्रदान करती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस अप्रत्याशित बारिश की घटनाओं के विभिन्न पहलुओं का गहराई से विश्लेषण करेगी, UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसकी प्रासंगिकता को स्पष्ट करेगी, और इससे जुड़े प्रमुख मुद्दों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करेगी।
वर्षा का तांडव: एक विस्तृत विश्लेषण
मौसम का मिजाज अचानक बदला और देश के कई हिस्सों में भारी बारिश ने तबाही मचाई। यह कोई सामान्य मानसूनी बारिश नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसने सामान्य जीवन को ठप कर दिया और बड़े पैमाने पर विनाश किया।
1. भू-भौगोलिक प्रभाव और आपदाएं
- हिमाचल प्रदेश में विनाश: जैसे ही हमने समाचार में देखा, हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में बारिश का प्रभाव विनाशकारी रहा। 700 से अधिक मकानों और दुकानों का ढह जाना, भूस्खलन, और सड़कों का बह जाना, यहाँ की नाजुक भू-वैज्ञानिक संरचना और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों के घातक गठजोड़ का परिणाम है।
- एमपी-यूपी हाईवे बंद: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्गों का बंद होना, न केवल लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करता है, बल्कि आपातकालीन सेवाओं की पहुँच को भी बाधित करता है। ऐसी सड़कें अक्सर नदियों के किनारे या ऐसे क्षेत्रों से गुजरती हैं जो जलभराव या भूस्खलन के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- 13 राज्यों में ऑरेंज अलर्ट: ऑरेंज अलर्ट एक चेतावनी है कि मौसम की स्थिति गंभीर हो सकती है और लोगों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि इन राज्यों में बाढ़, भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बिजली गिरने जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
2. पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर प्रभाव
भारी बारिश का सीधा असर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है:
- भूमि क्षरण: लगातार बारिश मिट्टी को ढीला कर देती है, जिससे भूस्खलन और मिट्टी के कटाव की संभावना बढ़ जाती है। यह न केवल प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट करता है, बल्कि कृषि भूमि को भी बर्बाद करता है।
- जल निकायों का प्रदूषण: बारिश का पानी अपने साथ मलबा, कचरा और प्रदूषक बहाकर लाता है, जिससे नदियाँ, झीलें और भूजल प्रदूषित हो जाते हैं। यह जलीय जीवन के लिए हानिकारक है और पीने योग्य पानी की उपलब्धता को भी प्रभावित करता है।
- जैव विविधता का नुकसान: अचानक आने वाली बाढ़ और भूस्खलन उन क्षेत्रों में रहने वाले वन्यजीवों और पौधों को विस्थापित या नष्ट कर सकते हैं।
3. सामाजिक और आर्थिक परिणाम
यह प्राकृतिक आपदा सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डालती है:
- आवासों की क्षति: 700 से अधिक मकानों का ढह जाना हजारों लोगों को बेघर कर देता है, जिससे उन्हें अस्थायी आश्रय और सहायता की आवश्यकता होती है।
- आजीविका का नुकसान: दुकानें, खेत और व्यवसाय नष्ट होने से लोगों की आजीविका छिन जाती है। किसानों की फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ता है।
- आर्थिक व्यय: सरकार को पुनर्वास, राहत कार्यों, और बुनियादी ढांचे की मरम्मत पर भारी व्यय करना पड़ता है, जो पहले से ही सीमित संसाधनों पर बोझ डालता है।
- परिवहन और लॉजिस्टिक्स: राजमार्गों के बंद होने से माल और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं और कालाबाजारी को बढ़ावा मिल सकता है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक विस्तृत दृष्टिकोण
यह घटना UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
I. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)
- भूगोल: भारत का भौतिक भूगोल, वर्षा के पैटर्न, भूस्खलन के लिए संवेदनशील क्षेत्र, प्रमुख नदियाँ और उनकी सहायक नदियाँ, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव।
- पर्यावरण और पारिस्थितिकी: जल प्रदूषण, भूमि क्षरण, जैव विविधता का संरक्षण, आपदाओं का पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।
- समसामयिक मामले: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन से संबंधित समझौते और नीतियाँ।
- सामान्य ज्ञान: राष्ट्रीय राजमार्ग, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, मौसम विभाग की भूमिका।
II. मुख्य परीक्षा (Mains)
यह घटना जीएस-I (भूगोल, समाज), जीएस-II (शासन, सरकारी नीतियां), जीएस-III (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन) और निबंध के लिए प्रासंगिक है।
A. जीएस-I: भूगोल और समाज
- भौगोलिक कारण: भारत में भारी वर्षा के लिए जिम्मेदार मौसमी कारक (जैसे मानसून का असामान्य व्यवहार, अवदाब क्षेत्र), हिमालयी क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक भेद्यता, पहाड़ी इलाकों में अनियोजित शहरीकरण और निर्माण।
- सामाजिक प्रभाव: विस्थापन, आजीविका का नुकसान, कमजोर वर्गों पर अधिक प्रभाव, राहत और पुनर्वास में चुनौतियाँ, सामुदायिक भागीदारी की भूमिका।
- भूस्खलन और बाढ़: मैदानी इलाकों में अचानक बाढ़ और पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन के कारणों और प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण।
B. जीएस-II: शासन और सरकारी नीतियां
- आपदा प्रबंधन: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की भूमिका और प्रभावशीलता। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) का संचालन।
- सरकारी प्रतिक्रिया: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की गई राहत और बचाव कार्यों का मूल्यांकन। त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता।
- नीतिगत विफलताएं: निर्माण नियमों का उल्लंघन, पर्यावरण मंजूरी में ढिलाई, जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढांचे की कमी, पूर्व चेतावनी प्रणालियों का प्रभावी कार्यान्वयन।
- अंतर-राज्यीय समन्वय: राजमार्गों के बंद होने और आपदाओं से निपटने में राज्यों के बीच समन्वय की आवश्यकता।
C. जीएस-III: अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन
- आपदा प्रबंधन: आपदाओं के लिए पूर्व-चेतावनी प्रणाली, भेद्यता मूल्यांकन, शमन उपाय, पुनर्निर्माण और पुनर्विकास रणनीतियाँ।
- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि, इसके आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव, ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर की भूमिका।
- अर्थव्यवस्था: बुनियादी ढांचे का नुकसान, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, कृषि क्षेत्र पर प्रभाव, बीमा और वित्तीय सुरक्षा, पर्यटन पर प्रभाव।
- सतत विकास: आपदाओं के संदर्भ में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की चुनौतियाँ।
D. निबंध
यह घटना “जलवायु परिवर्तन: एक बढ़ता हुआ वैश्विक संकट”, “आपदाएं: मानव निर्मित बनाम प्राकृतिक”, “बुनियादी ढांचे का विकास और पर्यावरणीय संतुलन”, या “भारत में आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान” जैसे विषयों पर एक उत्कृष्ट निबंध के लिए सामग्री प्रदान कर सकती है।
कारण, प्रभाव और समाधान: एक गहन विश्लेषण
आइए इस घटना के पीछे के कारणों, इसके व्यापक प्रभावों और संभावित समाधानों पर विस्तार से नज़र डालें:
1. कारण (Causes)
- जलवायु परिवर्तन: वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान और वायुमंडल में आर्द्रता का बढ़ा हुआ स्तर, अनियमित और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को जन्म दे रहा है। मानसून के पैटर्न में बदलाव, जैसे कि कम समय में भारी बारिश, इसका एक प्रमुख लक्षण है।
- शहरीकरण और अनियोजित विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में बेतरतीब निर्माण, वनों की कटाई, और जल निकासी प्रणालियों की उपेक्षा, भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम को बढ़ाती है। निर्माण नियमों का उल्लंघन एक आम समस्या है।
- बुनियादी ढांचे की भेद्यता: सड़कें, पुल और अन्य बुनियादी ढांचे अक्सर स्थानीय मौसम की स्थिति और संभावित आपदाओं को ध्यान में रखे बिना डिजाइन और निर्मित किए जाते हैं। अपर्याप्त ड्रेनेज सिस्टम और कमजोर निर्माण सामग्री इसे और खराब कर देते हैं।
- वनस्पतियों का क्षरण: वनों की कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव, मिट्टी को स्थिर रखने वाली जड़ों की कमी के कारण भूस्खलन का खतरा बढ़ाते हैं।
- नदी तटों पर अतिक्रमण: नदियों और जल निकायों के किनारों पर अवैध निर्माण, बाढ़ के मैदानों को संकुचित करता है और बाढ़ के पानी के फैलाव को बढ़ाता है।
2. प्रभाव (Impacts)
- जीवन की हानि: यह सबसे दुखद प्रभाव है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
- आर्थिक तबाही: संपत्ति का नुकसान, कृषि का विनाश, व्यापार का ठप पड़ना, और पुनर्निर्माण का भारी बोझ।
- पर्यावरणीय क्षरण: भूस्खलन, मिट्टी का कटाव, जल निकायों का प्रदूषण, जैव विविधता का नुकसान।
- सामाजिक विघटन: विस्थापन, मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव, समुदायों का टूटना।
- लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला बाधित: आवश्यक वस्तुओं की कमी, कीमतों में वृद्धि।
- स्वास्थ्य संकट: दूषित पानी से फैलने वाली बीमारियाँ, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच में बाधा।
3. समाधान (Solutions)
इस बहुआयामी समस्या के लिए बहुआयामी समाधान की आवश्यकता है:
A. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और पूर्व-सूचना (Early Warning Systems & Preparedness)
- तकनीकी उन्नयन: मौसम पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाने के लिए उपग्रह, रडार और अन्य उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग।
- भेद्यता मानचित्रण (Vulnerability Mapping): उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना और उसके अनुसार विकास योजनाओं को तैयार करना।
- सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदायों को आपदाओं के बारे में शिक्षित करना और उन्हें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में शामिल करना।
- जन जागरूकता अभियान: लोगों को सुरक्षित रहने के तरीके, आश्रय स्थलों के बारे में जानकारी देना।
B. सतत बुनियादी ढांचा और शहरी नियोजन (Sustainable Infrastructure & Urban Planning)
- जलवायु-अनुकूल डिजाइन: पुलों, सड़कों और इमारतों का निर्माण इस तरह से करना कि वे भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का सामना कर सकें। इसमें उचित जल निकासी प्रणाली, मजबूत सामग्री और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग का उपयोग शामिल है।
- वनस्पतियों का संरक्षण: पहाड़ी क्षेत्रों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और वनों की कटाई पर सख्ती से रोक लगाना।
- नियमों का प्रवर्तन: निर्माण नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना और अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई करना।
- आपदा-रोधी शहरी नियोजन: बाढ़ के मैदानों और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगाना।
C. आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया (Disaster Management & Response)
- समन्वय: विभिन्न सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना।
- संसाधन आवंटन: आपदा राहत और पुनर्वास के लिए पर्याप्त धन और संसाधनों का प्रावधान।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: NDRF, SDRF और स्थानीय प्रतिक्रिया टीमों के लिए नियमित प्रशिक्षण।
- पुनर्वास और पुनर्विकास: विस्थापित लोगों के लिए सुरक्षित और स्थायी आवास की व्यवस्था करना और प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्विकास करना।
D. नीतिगत और नियामक सुधार (Policy & Regulatory Reforms)
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): परियोजनाओं के लिए EIA को और मजबूत बनाना और उसके कार्यान्वयन की कड़ी निगरानी करना।
- वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों को मजबूत करना: प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करना।
- भूमि उपयोग नीतियां: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए स्पष्ट भूमि उपयोग नीतियां बनाना।
E. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International Cooperation)
- ज्ञान साझा करना: जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
- तकनीकी सहायता: उन्नत तकनीक और विशेषज्ञता प्राप्त करना।
निष्कर्ष (Conclusion)
मध्य प्रदेश-उत्तर प्रदेश हाईवे का बंद होना और हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही, भारत के कई राज्यों में भारी बारिश के कारण उत्पन्न हुई एक गंभीर स्थिति का प्रतीक है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन एक तात्कालिक खतरा है और हमें इसके प्रभावों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। एक मजबूत, लचीला और एकीकृत आपदा प्रबंधन ढांचा, सतत विकास के सिद्धांतों का पालन, और सु-नियोजित शहरीकरण भारत को ऐसी विनाशकारी घटनाओं से बचाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना न केवल समसामयिक मामलों की समझ प्रदान करती है, बल्कि शासन, पर्यावरण और समाज के जटिल अंतर्संबंधों को समझने का एक अवसर भी देती है। भविष्य में ऐसी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए, हमें proactive, adaptive और resilient दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: हाल ही में हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण हुई तबाही का मुख्य भूवैज्ञानिक कारण क्या हो सकता है?
- हिमनदों का पिघलना
- अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप और नाजुक पहाड़ी ढलानों पर निर्माण
- भूकंपीय गतिविधि
- अचानक तापमान में वृद्धि
- प्रश्न: ‘ऑरेंज अलर्ट’ का अर्थ क्या होता है?
- सामान्य मौसम की स्थिति
- कुछ क्षेत्रों में हल्के से मध्यम बारिश का अनुमान
- गंभीर मौसम की घटना की चेतावनी, जिसके लिए सतर्कता आवश्यक है
- खतरनाक मौसम की स्थिति, जिसके लिए तत्काल निकासी की आवश्यकता है
- प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) किस अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है?
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- प्रश्न: भारी बारिश के कारण भूस्खलन की संभावना किन कारकों से बढ़ती है?
- पहाड़ी ढलानों पर घनी वनस्पति
- ढलानों पर पानी का अत्यधिक जमाव और मिट्टी का कमजोर होना
- कमजोर निर्माण तकनीक
- उपरोक्त सभी
- प्रश्न: बाढ़ के मैदानों (Floodplains) पर निर्माण क्यों खतरनाक माना जाता है?
- ये क्षेत्र अक्सर शुष्क होते हैं
- इन क्षेत्रों में नदियाँ अपना मार्ग बदल सकती हैं और बाढ़ ला सकती हैं
- इन क्षेत्रों में हवा की गति अधिक होती है
- ये क्षेत्र हमेशा सूखा ग्रस्त रहते हैं
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी एजेंसी राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार है?
- भारतीय वायु सेना
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
- सीमा सुरक्षा बल (BSF)
- केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF)
- प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, भारत में निम्नलिखित में से किस प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है?
- अति-भयंकर वर्षा की घटनाएँ
- लंबे समय तक चलने वाले सूखे
- भयंकर उष्ण लहरें (Heatwaves)
- उपरोक्त सभी
- प्रश्न: पारिस्थितिकी तंत्र में ‘वनों की कटाई’ का एक प्रमुख नकारात्मक प्रभाव क्या है?
- भूमि की उर्वरता में वृद्धि
- भूस्खलन और मिट्टी के कटाव में कमी
- जैव विविधता में वृद्धि
- स्थानीय वर्षा पैटर्न में वृद्धि
- प्रश्न: ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ जैसी पहलें किस प्रकार की आपदा प्रबंधन रणनीतियों से संबंधित हैं?
- केवल बचाव अभियान
- केवल पूर्व-चेतावनी प्रणाली
- सामुदायिक भागीदारी और सशक्तिकरण
- केवल वित्तीय सहायता
- प्रश्न: यदि कोई राष्ट्रीय राजमार्ग किसी नदी के ऊपर बना है, तो किन संरचनात्मक पहलुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए?
- पुल की ऊँचाई और जल निकासी की क्षमता
- पुल के आधार की मजबूती
- आसपास के क्षेत्र में बाढ़ की संभावित ऊँचाई
- उपरोक्त सभी
उत्तर: B) अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप और नाजुक पहाड़ी ढलानों पर निर्माण
व्याख्या: पहाड़ी इलाकों में अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई और ढलानों पर दबाव भूस्खलन और तबाही का प्रमुख कारण बनता है।
उत्तर: C) गंभीर मौसम की घटना की चेतावनी, जिसके लिए सतर्कता आवश्यक है
व्याख्या: मौसम विभाग द्वारा जारी ‘ऑरेंज अलर्ट’ संभावित गंभीर मौसम की स्थिति का संकेत देता है, जिसके लिए लोगों को तैयार रहने की सलाह दी जाती है।
उत्तर: B) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
व्याख्या: NDMA की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
उत्तर: D) उपरोक्त सभी
व्याख्या: घनी वनस्पति भूस्खलन को रोकने में मदद करती है, लेकिन पानी का जमाव, मिट्टी का कमजोर होना और कमजोर निर्माण तकनीक इसके जोखिम को बढ़ाते हैं।
उत्तर: B) इन क्षेत्रों में नदियाँ अपना मार्ग बदल सकती हैं और बाढ़ ला सकती हैं
व्याख्या: बाढ़ के मैदान वे क्षेत्र होते हैं जो आमतौर पर नदी के उफान के समय जलमग्न हो जाते हैं, इसलिए इन पर निर्माण करना बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है।
उत्तर: B) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
व्याख्या: NDRF को विशेष रूप से आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया गया है।
उत्तर: D) उपरोक्त सभी
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण सभी प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है।
उत्तर: B) भूस्खलन और मिट्टी के कटाव में कमी
व्याख्या: वनों की कटाई से मिट्टी स्थिर करने वाली जड़ों की कमी के कारण भूस्खलन और कटाव का खतरा बढ़ जाता है।
उत्तर: C) सामुदायिक भागीदारी और सशक्तिकरण
व्याख्या: सरकारी पहलों में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करना, आपदा प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों में प्रभावी परिणाम देता है।
उत्तर: D) उपरोक्त सभी
व्याख्या: नदी के ऊपर बने राजमार्गों के लिए, पुल की ऊँचाई, जल निकासी, आधार की मजबूती और बाढ़ की संभावित ऊँचाई जैसे सभी पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: भारत में हाल ही में हुई भारी बारिश और उससे जुड़ी आपदाओं (जैसे भूस्खलन और बाढ़) के लिए जिम्मेदार प्रमुख जलवायु परिवर्तन संबंधी कारकों और भू-वैज्ञानिक कारणों का विश्लेषण करें। इसके अलावा, इन घटनाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ढाँचे की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें, विशेष रूप से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से निपटने के संदर्भ में। राहत, पुनर्वास और भविष्य में ऐसी आपदाओं को कम करने के लिए संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों का सुझाव दें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे के महत्व पर चर्चा करें। पहाड़ी क्षेत्रों और नदी घाटियों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में विकास के लिए यह कैसे एक महत्वपूर्ण विचार होना चाहिए? इस संबंध में वर्तमान चुनौतियों और संभावित समाधानों का उल्लेख करें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न: भारत में अनियोजित शहरीकरण और प्राकृतिक आपदाओं के बीच बढ़ते संबंध पर टिप्पणी करें। इसके सामाजिक-आर्थिक परिणामों पर प्रकाश डालते हुए, भविष्य में ऐसे जोखिमों को कम करने के लिए शहरी नियोजन में किन बदलावों की आवश्यकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
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