भाषाई संघर्ष: महाराष्ट्र में क्यों भड़क रही है भाषा पर हिंसा?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में मुंबई में एक ऑटो रिक्शा चालक पर उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट के शिव सेना कार्यकर्ताओं द्वारा कथित तौर पर ‘मराठी-विरोधी’ टिप्पणी करने के आरोप में हमला किया गया। यह घटना न केवल कानून और व्यवस्था का मुद्दा है, बल्कि यह भारत में भाषाई पहचान, क्षेत्रीय गौरव और प्रवासियों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता के गहरे अंतर्निहित तनावों को भी उजागर करती है। यह घटना हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर एक भाषा, जो संवाद का माध्यम है, वह कैसे टकराव और हिंसा का कारण बन सकती है। यह सिर्फ एक ऑटो चालक पर हमले का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे संविधान की भावना, बहुलवाद की अवधारणा और “विविधता में एकता” के सिद्धांत के समक्ष खड़ी चुनौतियों का प्रतीक है।
पृष्ठभूमि: भाषाई पहचान और भारत (Background: Linguistic Identity and India)
भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, जहाँ हर कुछ किलोमीटर पर बोली और भाषाएँ बदल जाती हैं। यह भाषाई विविधता हमारी संस्कृति और इतिहास की अमूल्य धरोहर है। स्वतंत्रता के बाद, भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने भारत के संघीय ढांचे को एक नई दिशा दी।
भारत में भाषा का ऐतिहासिक संदर्भ
- राज्यों का भाषाई पुनर्गठन: स्वतंत्रता के बाद, भाषाई पहचान ने राजनीतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना। तेलुगु भाषी क्षेत्रों के लिए आंध्र प्रदेश की मांग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को गति दी। 1953 में भाषाई प्रांतों के निर्माण की जांच के लिए गठित राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC), जिसकी अध्यक्षता फजल अली ने की, की सिफारिशों पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने भाषाई पहचान को प्रशासनिक इकाइयों का आधार बनाया, जिससे भारत के राजनीतिक मानचित्र में बड़ा बदलाव आया। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने भाषाई समुदायों को अपनी पहचान और संस्कृति को संरक्षित करने का अवसर दिया, लेकिन साथ ही इसने क्षेत्रीय अस्मिता के विचारों को भी जन्म दिया।
- संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान ने भाषाओं को विशेष महत्व दिया है।
- आठवीं अनुसूची: भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं, जिन्हें आधिकारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया है। यह इस बात का प्रतीक है कि भारत सरकार इन भाषाओं के विकास और संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।
- अनुच्छेद 343-351: ये अनुच्छेद संघ और राज्यों की आधिकारिक भाषाओं, भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हिंदी के विकास से संबंधित प्रावधान करते हैं। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी (देवनागरी लिपि में) और अंग्रेजी को निर्धारित करता है, जबकि अनुच्छेद 350-A भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा प्रदान करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 29 और 30: ये अनुच्छेद सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं, जिसमें भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार शामिल है, और वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित और प्रशासित कर सकते हैं।
भाषाई पहचान सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है; यह लोगों की संस्कृति, इतिहास, मूल्यों और भावनाओं से गहराई से जुड़ी होती है। यह एक सामूहिक पहचान का आधार बन जाती है, जो अक्सर क्षेत्रीय गौरव का रूप ले लेती है।
“भाषा केवल विचारों को व्यक्त करने का माध्यम नहीं है; यह उस संस्कृति का हिस्सा है जिससे लोग जुड़े हुए हैं।”
महाराष्ट्र में भाषाई राजनीति: एक गहरा विश्लेषण (Linguistic Politics in Maharashtra: A Deep Analysis)
महाराष्ट्र, भाषाई पहचान के इर्द-गिर्द केंद्रित राजनीति का एक प्रमुख उदाहरण रहा है। ‘मराठी मानुस’ (मराठी व्यक्ति) की अवधारणा और भाषाई गौरव यहां की राजनीति का एक अभिन्न अंग है।
‘मराठी मानुस’ और शिव सेना का उदय
- ऐतिहासिक संदर्भ: महाराष्ट्र का निर्माण 1960 में भाषाई आधार पर बॉम्बे प्रांत को विभाजित करके किया गया था, जिसमें मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और गुजराती भाषी क्षेत्रों को गुजरात का रूप दिया गया। इस आंदोलन में ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ का महत्वपूर्ण योगदान था।
- शिव सेना का जन्म: 1966 में बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित शिव सेना, मुंबई में ‘मराठी मानुस’ के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बाहरी लोगों (विशेषकर दक्षिण भारतीयों) द्वारा नौकरियों और अवसरों पर कब्जा करने के खिलाफ मराठी लोगों के अधिकारों की वकालत करना था। धीरे-धीरे, यह आंदोलन भाषा, संस्कृति और स्थानीय पहचान के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया।
- प्रवासन का प्रभाव: मुंबई, भारत की आर्थिक राजधानी होने के नाते, पूरे देश से प्रवासियों को आकर्षित करती है। यह प्रवासन अक्सर संसाधनों, नौकरियों और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने पर दबाव डालता है। जब स्थानीय आबादी को लगता है कि उनके अवसर छिन रहे हैं या उनकी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है, तो भाषाई या क्षेत्रीय राष्ट्रवाद की भावना भड़क सकती है।
आज, ‘मराठी अस्मिता’ या मराठी गौरव की बात महाराष्ट्र की राजनीति में एक संवेदनशील और शक्तिशाली उपकरण बन गई है। राजनीतिक दल अक्सर इसे चुनावी लाभ के लिए उपयोग करते हैं, जिससे कभी-कभी भाषाई chauvinism को बढ़ावा मिलता है।
घटना का विश्लेषण: हिंसा और उसके निहितार्थ (Analyzing the Incident: Violence and its Implications)
ऑटो चालक पर हुए हमले की घटना एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि समाज में बढ़ती असहिष्णुता का भी संकेत है।
तात्कालिक और व्यापक निहितार्थ:
- कानून और व्यवस्था की चुनौती: ऐसी घटनाएँ कानून के शासन को कमजोर करती हैं। जब नागरिक स्वयं कानून अपने हाथों में लेते हैं, तो यह समाज में अराजकता और असुरक्षा की भावना पैदा करता है। राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, चाहे उनकी भाषाई या क्षेत्रीय पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
- सामाजिक सौहार्द पर असर: ऐसी घटनाएँ विभिन्न भाषाई या क्षेत्रीय समुदायों के बीच अविश्वास और शत्रुता पैदा करती हैं। यह विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देती है और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बन सकती है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार: भले ही टिप्पणी आपत्तिजनक रही हो, हिंसा उसका समाधान नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, हालांकि इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं (जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि आदि)। हिंसा का सहारा लेना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- “पहचान की राजनीति” का नकारात्मक पहलू: भाषाई पहचान का सम्मान महत्वपूर्ण है, लेकिन जब यह अति-राष्ट्रवाद या असहिष्णुता में बदल जाती है, तो यह समाज के लिए हानिकारक हो सकती है। “पहचान की राजनीति” का यह नकारात्मक पहलू सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है।
यह घटना एक चेतावनी है कि हमें भाषाई गौरव और भाषाई chauvinism के बीच की बारीक रेखा को पहचानना होगा। गौरव अपनी विरासत का सम्मान है, जबकि chauvinism दूसरों के प्रति घृणा या अवमानना है।
संवैधानिक और कानूनी आयाम (Constitutional and Legal Dimensions)
यह घटना भारतीय संविधान के कई मूलभूत सिद्धांतों और कानूनों के दायरे में आती है।
मौलिक अधिकार और उनकी सीमाएँ:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)): जैसा कि पहले बताया गया है, भारत में प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। हालाँकि, यह अधिकार असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) राज्य को भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए उकसाने के संबंध में उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है। यदि ऑटो चालक की टिप्पणी इन प्रतिबंधों के दायरे में आती थी, तो कानूनी कार्रवाई का रास्ता था, न कि हिंसा का।
- भारत में कहीं भी निवास करने और बसने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(e)): भारत का प्रत्येक नागरिक देश के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार रखता है। भाषाई या क्षेत्रीय आधार पर किसी को निशाना बनाना इस मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21): किसी पर शारीरिक हमला करना सीधे तौर पर उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
घृणास्पद भाषण और कानूनी प्रावधान:
हालांकि ऑटो चालक की टिप्पणी की प्रकृति स्पष्ट नहीं है, यदि यह घृणास्पद भाषण की श्रेणी में आती, तो भारतीय दंड संहिता (IPC) में इसके लिए प्रावधान हैं:
- धारा 153A: धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना और सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिकूल कार्य करना।
- धारा 505: ऐसे बयान देना जिससे सार्वजनिक शरारत या भय पैदा हो या विभिन्न वर्गों के बीच घृणा या शत्रुता को बढ़ावा मिले।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे मामलों में तेजी से और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए, चाहे वह हिंसा करने वालों के खिलाफ हो या घृणास्पद भाषण देने वालों के खिलाफ। कानून अपने हाथों में लेना कभी भी स्वीकार्य नहीं है।
चुनौतियाँ और जटिलताएँ (Challenges and Complexities)
भाषाई विवादों के मूल में कई जटिल चुनौतियाँ और सामाजिक-आर्थिक कारक होते हैं:
- संतुलित क्षेत्रीय पहचान बनाम राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान आवश्यक है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता की कीमत पर नहीं होना चाहिए। क्षेत्रीय गौरव कब chauvinism में बदल जाता है, यह पहचानना एक चुनौती है।
- प्रवासन और संसाधन प्रतिस्पर्धा: शहरी केंद्रों में बड़े पैमाने पर प्रवासन से नौकरियों, आवास और अन्य संसाधनों पर दबाव बढ़ता है। जब स्थानीय आबादी को लगता है कि प्रवासी उनकी आजीविका या पहचान के लिए खतरा बन रहे हैं, तो भाषाई या क्षेत्रीय तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
- राजनीतिक शोषण: कई बार, राजनीतिक दल चुनावी लाभ के लिए भाषाई और क्षेत्रीय भावनाओं का शोषण करते हैं। वे इन भावनाओं को भड़काकर वोट बैंक बनाते हैं, जिससे समाज में विभाजन और ध्रुवीकरण बढ़ता है।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: भाषाई विविधता की सुंदरता और बहुलवादी समाज के महत्व के बारे में जागरूकता का अभाव अक्सर असहिष्णुता को जन्म देता है। ऐतिहासिक रूप से, भारत ने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को आत्मसात किया है, लेकिन यह ज्ञान अक्सर नई पीढ़ी तक नहीं पहुंच पाता।
- सोशल मीडिया की भूमिका: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अफवाहों, गलत सूचनाओं और घृणास्पद भाषण को तेजी से फैलाने में सक्षम हैं, जिससे छोटे विवाद भी बड़े संघर्षों में बदल सकते हैं।
- स्थानीय बनाम बाहरी की बहस: यह बहस अक्सर नौकरियों, सांस्कृतिक प्रथाओं और स्थानीय रीति-रिवाजों को लेकर तनाव पैदा करती है। यह आवश्यक है कि सभी नागरिक, चाहे वे कहीं से भी आएं हों, कानून के तहत समान अधिकारों और सम्मान के साथ रहें।
“भाषा एक नदी की तरह है, जो अपने रास्ते में आने वाले सभी संस्कृतियों और अनुभवों को अपने साथ ले जाती है। उसे बांधने की कोशिश करने से केवल सूखा और टकराव ही पैदा होगा।”
आगे की राह: एक समावेशी दृष्टिकोण (Way Forward: An Inclusive Approach)
भाषाई सद्भाव सुनिश्चित करने और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- बहुभाषावाद को बढ़ावा: सभी भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान और प्रशंसा की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। स्कूलों में बहुभाषावाद को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जहां बच्चों को अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भारतीय भाषाएं सीखने का अवसर मिले। यह भाषाई खाई को पाटने में मदद करेगा।
- संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करना: शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता अभियानों के माध्यम से संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों पर जोर देना आवश्यक है। लोगों को यह समझना चाहिए कि भारत की विविधता उसकी ताकत है, कमजोरी नहीं।
- प्रभावी कानून प्रवर्तन: कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भाषाई या क्षेत्रीय आधार पर हिंसा करने वाले या घृणास्पद भाषण देने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए। इससे कानून के शासन में जनता का विश्वास बहाल होगा।
- संवाद और अंतर-सामुदायिक संपर्क: विभिन्न भाषाई और क्षेत्रीय समुदायों के बीच संवाद मंच और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। यह गलतफहमियों को दूर करने और एक-दूसरे की संस्कृतियों के प्रति सम्मान विकसित करने में मदद करेगा।
- आर्थिक एकीकरण और समान अवसर: प्रवासियों के लिए सम्मानजनक रोजगार और आवास के अवसर सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। जब आर्थिक असुरक्षा कम होती है, तो पहचान पर आधारित तनाव भी कम हो सकते हैं। स्थानीय और प्रवासी समुदायों के बीच आर्थिक अवसरों का समान वितरण सुनिश्चित करना दीर्घकालिक शांति के लिए महत्वपूर्ण है।
- मीडिया की जिम्मेदार भूमिका: मीडिया को संवेदनशील मामलों की रिपोर्टिंग करते समय जिम्मेदारी दिखानी चाहिए और सनसनीखेज से बचना चाहिए। उन्हें समाज में सद्भाव को बढ़ावा देने में मदद करनी चाहिए।
- नागरिक समाज की भागीदारी: गैर-सरकारी संगठन, बुद्धिजीवी और नागरिक समाज समूह भाषाई सद्भाव को बढ़ावा देने और असहिष्णुता के खिलाफ आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
मुंबई में ऑटो चालक पर हुआ हमला एक ऐसी घटना है जो हमें भारत के संघीय ढांचे और ‘विविधता में एकता’ के सिद्धांत पर चिंतन करने के लिए मजबूर करती है। भाषा, जो कभी हमारे राज्यों के निर्माण का आधार थी, आज कभी-कभी विभाजन का कारण बन जाती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें अपने संवैधानिक मूल्यों पर लौटना होगा – सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करना, कानून के शासन को बनाए रखना और भाषाई पहचान को राष्ट्रीय एकता के साथ संतुलित करना। भारत का भविष्य उसके बहुलवाद और सभी नागरिकों को समान सम्मान और अवसर प्रदान करने की क्षमता में निहित है, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों। एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण केवल तभी हो सकता है जब हम सभी अपनी विविधताओं का जश्न मनाएं, न कि उनसे डरें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) का गठन 1953 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की जांच के लिए किया गया था।
- भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को भारत में कभी भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के परिणामस्वरूप मुंबई को महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजित किया गया।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल (i)
(b) केवल (ii) और (iii)
(c) केवल (i) और (iii)
(d) (i), (ii) और (iii)उत्तर: (c)
व्याख्या: राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) का गठन 1953 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की जांच के लिए किया गया था (कथन i सही है)। भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को भारत में काफी हद तक स्वीकार किया गया है और यह भारतीय संघ का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है (कथन ii गलत है)। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत मुंबई को विभाजित नहीं किया गया था; महाराष्ट्र और गुजरात का गठन 1960 में बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम के तहत हुआ था (कथन iii गलत है)। हालांकि, मूल रूप से 1956 के पुनर्गठन ने भाषाई राज्यों की नींव रखी। 1956 अधिनियम ने बॉम्बे को एक द्विभाषी राज्य के रूप में रखा, जिसका विभाजन 1960 में हुआ। इसलिए, कथन (i) सही है और कथन (iii) भी एक हद तक सही माना जा सकता है क्योंकि यह उस प्रक्रिया का अंतिम परिणाम था। लेकिन अधिक सटीक रूप से, 1956 अधिनियम ने बॉम्बे को द्विभाषी राज्य रखा, और 1960 में इसे महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजित किया गया। इस प्रश्न में “परिणामस्वरूप” शब्द के कारण, हम मान सकते हैं कि यह अंतिम परिणाम को संदर्भित करता है। -
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह भारतीय गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
- इसमें वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं।
- अंग्रेजी इस अनुसूची में शामिल भाषाओं में से एक है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल (i)
(b) केवल (ii) और (iii)
(c) केवल (i) और (ii)
(d) (i), (ii) और (iii)उत्तर: (c)
व्याख्या: आठवीं अनुसूची भारत की अनुसूचित भाषाओं से संबंधित है, जिन्हें आधिकारिक मान्यता मिली है (कथन i सही है)। इसमें वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं (कथन ii सही है)। अंग्रेजी भारत संघ की आधिकारिक भाषाओं में से एक है, लेकिन यह आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है (कथन iii गलत है)। -
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत दी गई बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निम्नलिखित में से कौन-से “उचित प्रतिबंध” लगाए जा सकते हैं?
- राज्य की सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- मानहानि
- साहित्यिक आलोचना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल (i) और (ii)
(b) केवल (i), (ii) और (iii)
(c) केवल (ii), (iii) और (iv)
(d) (i), (ii), (iii) और (iv)उत्तर: (b)
व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जा सकने वाले उचित प्रतिबंधों में राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि, भारत की संप्रभुता और अखंडता, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, शालीनता या नैतिकता, और न्यायालय की अवमानना शामिल हैं। साहित्यिक आलोचना आमतौर पर प्रतिबंध का आधार नहीं बनती जब तक कि वह मानहानिकारक न हो या अन्य अनुमेय आधारों का उल्लंघन न करे। -
भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार प्रदान करता है?
(a) अनुच्छेद 28
(b) अनुच्छेद 29
(c) अनुच्छेद 30
(d) अनुच्छेद 31उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुच्छेद 30 सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण से संबंधित है, जिसमें उनकी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार शामिल है। -
निम्नलिखित में से कौन-सा प्रावधान भारतीय संविधान में भाषाई विविधता के संरक्षण से सीधे संबंधित नहीं है?
(a) आठवीं अनुसूची
(b) अनुच्छेद 350-A
(c) अनुच्छेद 343
(d) अनुच्छेद 17उत्तर: (d)
व्याख्या: आठवीं अनुसूची (राजभाषाएं), अनुच्छेद 350-A (प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा), और अनुच्छेद 343 (संघ की राजभाषा) सभी भाषाई विविधता और भाषाओं से संबंधित हैं। अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता के उन्मूलन से संबंधित है, जिसका भाषाई विविधता के संरक्षण से सीधा संबंध नहीं है। -
भारत में भाषाई आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य कौन-सा था?
(a) महाराष्ट्र
(b) आंध्र प्रदेश
(c) केरल
(d) कर्नाटकउत्तर: (b)
व्याख्या: आंध्र प्रदेश 1953 में भाषाई आधार पर (तेलुगु भाषी) गठित होने वाला पहला राज्य था। -
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A का संबंध किससे है?
(a) मानहानि
(b) सार्वजनिक व्यवस्था भंग करना
(c) धर्म, जाति, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना
(d) हत्या का प्रयासउत्तर: (c)
व्याख्या: IPC की धारा 153A धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिकूल कार्य करने से संबंधित है। -
भारत में भाषाई राष्ट्रवाद के उदय के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहा है?
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भाषाई पहचान का सुदृढीकरण।
- राज्यों के प्रशासनिक दक्षता के लिए भाषाई पुनर्गठन।
- आर्थिक असमानताएं और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल (i)
(b) केवल (ii) और (iii)
(c) केवल (i) और (iii)
(d) (i), (ii) और (iii)उत्तर: (d)
व्याख्या: तीनों कारक भाषाई राष्ट्रवाद के उदय में योगदान करते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विभिन्न भाषाई समूहों ने अपनी पहचान विकसित की। प्रशासनिक दक्षता के लिए भाषाई पुनर्गठन ने भाषाई पहचान को मजबूत किया। साथ ही, आर्थिक असमानताएं और संसाधनों (जैसे नौकरियां) के लिए प्रतिस्पर्धा अक्सर भाषाई तनावों को बढ़ावा देती है, जिससे भाषाई राष्ट्रवाद को बल मिलता है। -
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ‘भाषाई chauvinism’ (अंधराष्ट्रवाद) को सबसे अच्छे से परिभाषित करता है?
(a) अपनी भाषा के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान।
(b) अपनी भाषा को दूसरों से श्रेष्ठ मानना और अन्य भाषाओं के प्रति असहिष्णुता।
(c) विभिन्न भाषाओं के बीच अंतर-सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देना।
(d) मातृभाषा में शिक्षा पर जोर देना।उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘भाषाई chauvinism’ अपनी भाषा को दूसरों से श्रेष्ठ मानने और अन्य भाषाओं या उनके बोलने वालों के प्रति असहिष्णुता या शत्रुतापूर्ण रवैया रखने को संदर्भित करता है। यह स्वस्थ भाषाई गौरव से भिन्न है। -
महाराष्ट्र में ‘मराठी मानुस’ की अवधारणा के संदर्भ में, इसके उदय का प्राथमिक कारण क्या था?
(a) मराठी साहित्य और कला का संरक्षण।
(b) महाराष्ट्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
(c) मुंबई में बाहरी प्रवासियों से मराठी लोगों के हितों की रक्षा।
(d) सांस्कृतिक त्योहारों को बढ़ावा देना।उत्तर: (c)
व्याख्या: ‘मराठी मानुस’ की अवधारणा और शिव सेना का उदय मुख्य रूप से मुंबई में नौकरियों और अवसरों पर बाहरी (विशेषकर दक्षिण भारतीय) प्रवासियों के कथित प्रभुत्व से मराठी लोगों के हितों की रक्षा के लिए था।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- “भाषाई पहचान एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकती है, लेकिन यह विभाजनकारी भी साबित हो सकती है।” इस कथन के आलोक में भारत में भाषाई राष्ट्रवाद के उदय और उसकी चुनौतियों का विश्लेषण करें। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आप क्या उपाय सुझाएंगे जो भाषाई गौरव को हिंसा में बदल देती हैं? (लगभग 250 शब्द)
- भारत जैसे बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज में, आंतरिक प्रवास अक्सर भाषाई और क्षेत्रीय तनावों को जन्म देता है। इस तरह के तनावों को कम करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक प्रावधानों और व्यावहारिक नीतियों के मेल का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। (लगभग 250 शब्द)
- भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए क्षेत्रीय भाषाई गौरव को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? ऐसी घटनाओं में मीडिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका का मूल्यांकन करें जहाँ भाषाई विवाद हिंसा में बदल जाते हैं। (लगभग 150 शब्द)