भारी वर्षा का ‘ट्रिपल थ्रेट’: उत्तर-पश्चिम से लेकर दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में बाढ़ का अलर्ट!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने एक अभूतपूर्व मौसम अलर्ट जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि देश के तीन प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों – उत्तर-पश्चिम भारत, दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत – में अगले तीन से चार दिनों में भारी से अत्यधिक भारी वर्षा होने की संभावना है। यह मौसमी गतिविधि न केवल सामान्य जनजीवन को बाधित कर रही है, बल्कि विभिन्न राज्यों में बाढ़, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को भी बढ़ा रही है। यह स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामान्य अध्ययन (GS) पेपर I (भूगोल), GS पेपर III (आपदा प्रबंधन, पर्यावरण) और यहां तक कि आंतरिक सुरक्षा (बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कानून व्यवस्था) जैसे विषयों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस बहु-आयामी मौसम प्रणाली को गहराई से समझेंगे, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों का विश्लेषण करेंगे, विभिन्न क्षेत्रों पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन करेंगे, और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे।
मौसम का ‘ट्रिपल थ्रेट’: क्या है पूरा मामला?
मौसम की यह असामान्य पैटर्न कई मौसम प्रणालियों के एक साथ सक्रिय होने का परिणाम है, जो देश के विभिन्न कोनों में बारिश का ‘ट्रिपल थ्रेट’ पैदा कर रही है। आइए इन क्षेत्रों और उनके विशिष्ट मौसम पैटर्नों को समझते हैं:
1. उत्तर-पश्चिम भारत: मानसून की वापसी और पश्चिमी विक्षोभ का संगम
- वर्तमान स्थिति: उत्तर-पश्चिम भारत, जिसमें जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्से शामिल हैं, में अक्सर मानसून की वापसी के समय मौसम में बदलाव देखा जाता है। इस बार, मानसून की वापसी के साथ-साथ एक शक्तिशाली पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के सक्रिय होने की उम्मीद है।
- वैज्ञानिक कारण:
- पश्चिमी विक्षोभ (WD): ये भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाली उष्णकटिबंधीय तूफानी प्रणालियाँ हैं जो पश्चिमी हवाओं के साथ भारत की ओर बढ़ती हैं। जब ये हिमालय से टकराती हैं, तो ये पहाड़ी इलाकों में भारी बर्फबारी और मैदानी इलाकों में वर्षा का कारण बनती हैं।
- मानसून की वापसी: जैसे-जैसे मानसून की ऋतु समाप्त होने लगती है, उत्तर-पश्चिम भारत से मानसून की ट्रफ रेखा उत्तर की ओर खिसकने लगती है। इस समय, यदि कोई पश्चिमी विक्षोभ आता है, तो यह नमी को अंदर खींच सकता है और सामान्य से अधिक बारिश का कारण बन सकता है, खासकर हिमालयी राज्यों में।
- संभावित प्रभाव: पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन, हिमस्खलन और अचानक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। मैदानी इलाकों में, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में, भारी बारिश से जल-जमाव और फसलों को नुकसान हो सकता है।
2. दक्षिण भारत: गहराता निम्न दबाव क्षेत्र या चक्रवाती परिसंचरण
- वर्तमान स्थिति: दक्षिण भारत, विशेष रूप से तटीय आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु, अक्सर बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्पन्न होने वाली मौसम प्रणालियों से प्रभावित होता है। वर्तमान में, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में एक निम्न दबाव क्षेत्र (Low Pressure Area) या एक चक्रवाती परिसंचरण (Cyclonic Circulation) के बनने की संभावना है।
- वैज्ञानिक कारण:
- समुद्री नमी: गर्म समुद्री सतह का तापमान और अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियाँ निम्न दबाव या चक्रवाती प्रणालियों के बनने के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करती हैं।
- मानसून ट्रफ की स्थिति: मानसून ट्रफ (मानसून की धुरी) की स्थिति भी दक्षिण भारत में बारिश के पैटर्न को प्रभावित करती है। यदि ट्रफ दक्षिण की ओर शिफ्ट होती है, तो यह इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा ला सकती है।
- संभावित प्रभाव: तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश, तेज हवाएं, समुद्र में ऊंची लहरें और तटीय बाढ़ का खतरा। आंतरिक क्षेत्रों में भी तीव्र वर्षा और स्थानीयकृत बाढ़ आ सकती है। कुछ क्षेत्रों में, ये प्रणालियाँ चक्रवाती तूफान का रूप भी ले सकती हैं, जिससे क्षति का पैमाना बढ़ जाता है।
3. पूर्वोत्तर भारत: बंगाल की खाड़ी से नमी का प्रवेश
- वर्तमान स्थिति: पूर्वोत्तर भारत, जिसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं, मानसून के सक्रिय होने और बंगाल की खाड़ी से नमी के लगातार प्रवेश के कारण भारी बारिश का अनुभव कर रहा है।
- वैज्ञानिक कारण:
- ओरोग्राफिक वर्षा: क्षेत्र की पहाड़ी संरचना भी ओरोग्राफिक वर्षा (पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठती हवाओं के कारण होने वाली वर्षा) के लिए अनुकूल है, खासकर मेघालय जैसे राज्यों में, जहाँ चेरापूंजी और मासिनराम जैसी दुनिया की सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान स्थित हैं।
- निम्न दबाव का प्रभाव: यदि बंगाल की खाड़ी में कोई निम्न दबाव क्षेत्र बनता है, तो वह पूर्वोत्तर की ओर नमी ले जा सकता है, जिससे पहले से सक्रिय मानसून के प्रभाव के साथ मिलकर बारिश की तीव्रता और बढ़ जाती है।
- संभावित प्रभाव: असम में ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों के जलस्तर में वृद्धि, जिससे बाढ़ की स्थिति गंभीर हो जाती है। भूस्खलन, विशेष रूप से पहाड़ी और असम, मेघालय, मणिपुर जैसे राज्यों में, एक बड़ा खतरा है।
“भारत की भौगोलिक विविधता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है, लेकिन यही विविधता कभी-कभी मौसम की चरम घटनाओं के प्रति उसे संवेदनशील भी बना देती है। उत्तर-पश्चिम, दक्षिण और पूर्वोत्तर में एक साथ भारी वर्षा की चेतावनी, भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र के लिए एक कड़ी परीक्षा है।”
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: गहन विश्लेषण
यह मौसम की स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए एक उत्कृष्ट केस स्टडी प्रदान करती है।
1. GS पेपर I: भूगोल (Geography)
- मानसून की जटिलता: यह घटना भारतीय मानसून की जटिलताओं को समझने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कैसे पश्चिमी विक्षोभ, निम्न दबाव क्षेत्र और मानसून ट्रफ की स्थिति एक साथ मिलकर देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम को प्रभावित कर सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: क्या ऐसी तीव्र और एक साथ होने वाली चरम मौसमी घटनाएँ जलवायु परिवर्तन का संकेत हैं? उम्मीदवार इस पर चर्चा कर सकते हैं कि कैसे वैश्विक तापमान वृद्धि चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा सकती है।
- भौगोलिक विशेषताएं और वर्षा: उत्तर-पश्चिम में पश्चिमी विक्षोभ, दक्षिण में समुद्री प्रभाव और पूर्वोत्तर में ओरोग्राफिक वर्षा – ये सभी भौगोलिक कारक विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न को कैसे निर्धारित करते हैं, इसका विश्लेषण किया जा सकता है।
2. GS पेपर III: आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
- बाढ़: देश के तीन प्रमुख क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा। बाढ़ के कारण, प्रभाव (आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय), और निवारण/प्रतिक्रिया रणनीतियाँ।
- भूस्खलन: विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम और पूर्वोत्तर भारत में भूस्खलन एक प्रमुख चिंता का विषय है। भूस्खलन के कारण (पहाड़ी ढलानों की अस्थिरता, अत्यधिक वर्षा) और शमन उपाय।
- सूखा और अतिवृष्टि का चक्र: कई बार, भारत में एक ही समय में कुछ क्षेत्रों में सूखा और कुछ में अत्यधिक वर्षा देखी जाती है। यह नीतिगत और कृषिगत चुनौतियाँ पैदा करता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): इस तरह की व्यापक प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में उनकी भूमिका। पूर्व-चेतावनी प्रणाली, राहत और पुनर्वास कार्य।
- शहरी बाढ़: यदि भारी बारिश शहरों में होती है, तो शहरी नियोजन की खामियाँ, जल निकासी प्रणालियों की क्षमता और शहरी बाढ़ से निपटने के तरीके महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
3. GS पेपर III: पर्यावरण (Environment)
- पर्यावरणीय प्रभाव: बाढ़ और भूस्खलन का स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता और मानव बस्तियों पर दीर्घकालिक प्रभाव।
- जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने का एक अवसर प्रदान करता है।
4. GS पेपर II: आंतरिक सुरक्षा (Internal Security)
- विस्थापन और शरणार्थी: बाढ़ और भूस्खलन से बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन हो सकता है, जिससे आंतरिक शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न होती है।
- संसाधन वितरण: आपदा की स्थिति में राहत सामग्री, चिकित्सा सहायता और अन्य संसाधनों का वितरण एक बड़ी रसद चुनौती पेश करता है।
- कानून व्यवस्था: आपदा राहत कार्यों के दौरान अफवाहों, जमाखोरी और सामाजिक अशांति से निपटने के लिए कानून व्यवस्था बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
5. सामान्य जागरूकता और उत्तर लेखन
- समस्या-समाधान दृष्टिकोण: उम्मीदवार इस स्थिति का विश्लेषण करके एक समस्या-समाधान दृष्टिकोण विकसित कर सकते हैं।
- डेटा का उपयोग: IMD के पूर्वानुमान, प्रभावित क्षेत्रों के आंकड़ों और पिछले ऐसे अनुभवों का हवाला देकर उत्तर को अधिक विश्लेषणात्मक बनाया जा सकता है।
- संरचना: एक सुसंगत और तार्किक प्रवाह के साथ उत्तर लिखना, जिसमें परिचय, मुख्य भाग (कारण, प्रभाव, समाधान) और निष्कर्ष शामिल हों।
“आपदाएँ प्राकृतिक घटनाएँ हो सकती हैं, लेकिन उनका प्रबंधन हमारी तैयारी, हमारी नीतियों और हमारे सामूहिक संकल्प पर निर्भर करता है। इस ‘ट्रिपल थ्रेट’ के समय, सरकारों, एजेंसियों और नागरिकों के बीच समन्वय सर्वोपरि है।”
संभावित चुनौतियाँ और समाधान
चुनौतियाँ:
- पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन और यात्रा प्रतिबंध: उत्तर-पश्चिम और पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में सड़कों का बंद होना, संचार बाधित होना और बचाव कार्यों में बाधा उत्पन्न होना।
- नदी बेसिनों में बाढ़: प्रमुख नदियों जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कावेरी आदि के बेसिनों में जलस्तर का खतरनाक रूप से बढ़ना, जिससे बड़े पैमाने पर तटीय और निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा।
- शहरी अवसंरचना पर दबाव: शहरों में खराब जल निकासी व्यवस्था, अनियोजित विकास और कंक्रीट के जंगल शहरी बाढ़ को और बदतर बना देते हैं।
- किसानों के लिए दोहरा मार: एक ओर जहाँ कुछ क्षेत्रों में सूखा होता है, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक वर्षा फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- संसाधन आवंटन: देश के तीन प्रमुख क्षेत्रों में एक साथ होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन (धन, जनशक्ति, उपकरण) जुटाना एक बड़ी चुनौती है।
- पूर्व-चेतावनी प्रणाली की प्रभावशीलता: यह सुनिश्चित करना कि पूर्व-चेतावनी प्रणाली अंतिम व्यक्ति तक प्रभावी ढंग से पहुंचे और समय पर कार्रवाई की जा सके।
समाधान और आगे की राह:
- एकीकृत आपदा प्रबंधन: विभिन्न सरकारी विभागों (मौसम, जल संसाधन, सड़क परिवहन, रक्षा) और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर समन्वय।
- पूर्व-चेतावनी और प्रतिक्रिया: IMD की भविष्यवाणियों को त्वरित कार्रवाई में बदलना। स्थानीय अधिकारियों को सक्रिय करना और सुरक्षित स्थानों पर लोगों को स्थानांतरित करने की योजनाएँ बनाना।
- बुनियादी ढांचे में सुधार: नदियों के तटबंधों को मजबूत करना, प्रभावी जल निकासी प्रणालियों का निर्माण और रखरखाव, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में ढलान स्थिरीकरण।
- वनीकरण और भू-आवरण प्रबंधन: नदी बेसिनों और पहाड़ी ढलानों पर वनीकरण को बढ़ावा देना, जो मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को कम करने में मदद कर सकता है।
- जलवायु-अनुकूल कृषि: किसानों को बाढ़-प्रतिरोधी फसलों या ऐसी तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना जो बदलते मौसम के पैटर्न के अनुकूल हों।
- जागरूकता और क्षमता निर्माण: समुदायों को आपदाओं के जोखिमों और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में शिक्षित करना। मॉक ड्रिल आयोजित करना।
- जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन: दीर्घकालिक समाधानों में जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन) को संबोधित करना और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने की रणनीतियों को विकसित करना शामिल है।
निष्कर्ष
देश के तीन प्रमुख क्षेत्रों में एक साथ भारी वर्षा का यह ‘ट्रिपल थ्रेट’ भारत की मौसम संबंधी चुनौतियों की जटिलता को दर्शाता है। यह न केवल सरकारों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के लिए एक परीक्षा है, बल्कि देश के भूगोल, जलवायु और पर्यावरणीय प्रणालियों की गहरी समझ के लिए एक अवसर भी है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, इस तरह की समसामयिक घटनाओं का गहन विश्लेषण, उनके पीछे के वैज्ञानिक सिद्धांतों और उनके सामाजिक-आर्थिक, पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी प्रभावों को समझना, सामान्य अध्ययन के कई पत्रों में उच्च अंक प्राप्त करने की कुंजी है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मौसम की ये घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना सीखना होगा और भविष्य की चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहना होगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) भूमध्य सागर से उत्पन्न होते हैं।
2. मानसून की वापसी के समय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा की तीव्रता बढ़ा सकते हैं।
3. पूर्वोत्तर भारत में भारी वर्षा का एक कारण ओरोग्राफिक वर्षा है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर से आते हैं और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा और हिमपात का कारण बनते हैं, खासकर मानसून के बाद। पूर्वोत्तर भारत में, विशेष रूप से मेघालय में, पहाड़ी संरचनाओं के कारण ओरोग्राफिक वर्षा बहुत आम है।
2. अत्यधिक वर्षा के कारण होने वाली ‘शहरी बाढ़’ (Urban Flooding) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. शहरी बाढ़ के लिए खराब जल निकासी व्यवस्था एक प्रमुख कारण है।
2. अनियोजित शहरी विकास और निर्माण कार्य बाढ़ के खतरे को कम करते हैं।
3. मिट्टी के कंक्रीटीकरण (concretization) से भूमि में पानी सोखने की क्षमता (infiltration) बढ़ जाती है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से गलत हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 2 गलत है; अनियोजित विकास और कंक्रीटीकरण बाढ़ के खतरे को बढ़ाते हैं। कथन 3 भी गलत है; कंक्रीटीकरण से भूमि की जल सोखने की क्षमता कम हो जाती है।
3. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा जारी की जाने वाली विभिन्न मौसम चेतावनियों के रंग कोड के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. हरा (Green) – कोई खतरा नहीं
2. पीला (Yellow) – सावधानी बरतें
3. नारंगी (Orange) – कार्रवाई के लिए तैयार रहें
4. लाल (Red) – तत्काल कार्रवाई करें
उपरोक्त रंग कोड का कौन सा संयोजन सही है?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: IMD के रंग कोड भारतीय मौसम पूर्वानुमान में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं और ये सभी संयोजन सही ढंग से दर्शाते हैं।
4. ब्रह्मपुत्र नदी के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह तिब्बत में ‘यारलुंग त्संगपो’ के नाम से जानी जाती है।
2. यह भारत में अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।
3. यह बांग्लादेश में ‘जमुना’ के नाम से जानी जाती है और पद्मा (गंगा) में मिल जाती है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत से होता है, जहाँ इसे यारलुंग त्संगपो कहा जाता है। यह भारत में अरुणाचल प्रदेश से प्रवेश करती है और असम से बहती हुई बांग्लादेश में ‘जमुना’ के नाम से जानी जाती है, जहाँ यह अंततः पद्मा (गंगा) में मिल जाती है।
5. “मानसून ट्रफ” (Monsoon Trough) क्या है?
(a) एक उच्च दबाव वाली बेल्ट जो मानसून को बढ़ाती है।
(b) एक निम्न दबाव वाली रेखा जो हिमालय के दक्षिण में फैली होती है और मानसून के दौरान वर्षा के लिए जिम्मेदार होती है।
(c) एक ठंडी हवा का प्रवाह जो पूर्व की ओर बढ़ता है।
(d) अटलांटिक महासागर में एक चक्रवाती प्रणाली।
उत्तर: (b)
व्याख्या: मानसून ट्रफ एक निम्न दबाव वाली द्रोणी है जो आमतौर पर पश्चिमी अफगानिस्तान से शुरू होकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और बंगाल की खाड़ी तक फैली होती है। इसकी स्थिति मानसून की गतिविधि और वर्षा को प्रभावित करती है।
6. निम्नलिखित में से कौन सा राज्य पूर्वोत्तर भारत में स्थित नहीं है?
(a) मणिपुर
(b) त्रिपुरा
(c) सिक्किम
(d) मिजोरम
उत्तर: (c)
व्याख्या: सिक्किम भौगोलिक रूप से पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा माना जाता है, लेकिन इसे अक्सर ‘सात बहनों’ (Seven Sisters) वाले पारंपरिक पूर्वोत्तर राज्यों से अलग रखा जाता है। हालाँकि, यदि प्रश्न “पारंपरिक सात बहनों” के संदर्भ में है, तो सिक्किम बाहर है। आमतौर पर, सिक्किम को पूर्वोत्तर क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। (प्रश्नोत्तरी के उद्देश्य से, यहाँ यह मान लिया गया है कि ‘सात बहनों’ का संदर्भ है)। *यदि प्रश्न अधिक समावेशी है, तो सभी विकल्प पूर्वोत्तर भारत के माने जा सकते हैं, लेकिन UPSC अक्सर ऐसी बारीकियों को पकड़ता है।* (यह प्रश्न विकल्प में अस्पष्टता के कारण विवादास्पद हो सकता है। मान लें कि प्रश्न का अर्थ ‘सात बहनें’ है)।
7. बाढ़ के प्रबंधन के लिए ‘तटबंध’ (Embankments) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) नदी के पानी को तेजी से समुद्र में पहुँचाना।
(b) बाढ़ के पानी को कृषि भूमि और बस्तियों में फैलने से रोकना।
(c) जलविद्युत उत्पादन के लिए पानी को रोकना।
(d) नावों के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: तटबंध नदियों के किनारों पर बनाई गई संरचनाएँ होती हैं जो बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने और मानव बस्तियों व कृषि भूमि की रक्षा करने के लिए डिज़ाइन की जाती हैं।
8. भूस्खलन (Landslides) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. अत्यधिक वर्षा भूस्खलन को ट्रिगर कर सकती है।
2. पहाड़ी ढलानों पर अनियोजित निर्माण कार्य भूस्खलन के जोखिम को कम करता है।
3. वनस्पति आवरण मिट्टी को बांधने में मदद करता है, जिससे भूस्खलन की संभावना कम हो जाती है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: अत्यधिक वर्षा और वनस्पति का समर्थन भूस्खलन के संबंध में महत्वपूर्ण है। कथन 2 गलत है क्योंकि अनियोजित निर्माण जोखिम बढ़ाता है।
9. बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव क्षेत्र (Low Pressure Area) के बनने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?
1. गर्म समुद्री सतह का तापमान
2. कम वायुमंडलीय अस्थिरता (Low Atmospheric Instability)
3. अनुकूल ऊपरी वायुमंडलीय अपसरण (Favorable Upper Atmospheric Divergence)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: निम्न दबाव और चक्रवात के निर्माण के लिए गर्म समुद्री सतह का तापमान (नमी और ऊर्जा प्रदान करता है), वायुमंडलीय अस्थिरता (ऊपर उठने वाली हवाएँ) और ऊपरी वायुमंडलीय अपसरण (ऊपर से हवाओं का दूर जाना, जो नीचे से अधिक हवा को खींचता है) आवश्यक हैं। कथन 2 गलत है; इसके लिए वायुमंडलीय अस्थिरता की आवश्यकता होती है।
10. “आपदा को अवसर में बदलो” (Turn Disaster into Opportunity) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सी रणनीति दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा दे सकती है?
(a) केवल तत्काल राहत पर ध्यान केंद्रित करना।
(b) पुनर्निर्माण और बहाली (reconstruction and rehabilitation) के दौरान जलवायु-अनुकूल और आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना का निर्माण।
(c) प्रभावित क्षेत्रों से लोगों का स्थायी स्थानांतरण।
(d) भविष्य की आपदाओं के लिए बीमा को बढ़ाना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: केवल तत्काल राहत स्थायी समाधान नहीं है। पुनर्निर्माण के दौरान बेहतर और अधिक लचीली अवसंरचना का निर्माण भविष्य में होने वाले नुकसान को कम करता है और दीर्घकालिक विकास में योगदान देता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. **भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के पूर्वानुमान के अनुसार, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में एक साथ भारी वर्षा की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करें। इसके पीछे के मौसम संबंधी कारकों, इन क्षेत्रों पर इसके संभावित प्रभावों (सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय) और भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे के समक्ष इससे उत्पन्न चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा करें।**
(लगभग 250 शब्द)
2. **”भारत में तीव्र मौसम की घटनाएँ, जैसे कि वर्तमान देशव्यापी भारी वर्षा, जलवायु परिवर्तन का परिणाम हो सकती हैं।” इस कथन का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए भारत को अपनी आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र को कैसे मजबूत करना चाहिए?**
(लगभग 250 शब्द)
3. **बाढ़ और भूस्खलन के प्रबंधन के संदर्भ में, भारत में वर्तमान अवसंरचनात्मक और नीतिगत उपायों की विवेचना करें। शहरी बाढ़ और पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन जैसी विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिए किन नवीन और एकीकृत दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है?**
(लगभग 150 शब्द)
4. **समसामयिक मौसम की घटनाओं का सीधा संबंध भारतीय भूगोल, विशेष रूप से मानसून की प्रकृति और उससे जुड़े विभिन्न मौसम प्रणालियों से है। वर्तमान भारी वर्षा के संदर्भ में, मानसून ट्रफ, पश्चिमी विक्षोभ और चक्रवाती परिसंचरण (Cyclonic Circulation) जैसी प्रमुख मौसम प्रणालियों की भूमिका को स्पष्ट करें और भारतीय उपमहाद्वीप पर उनके प्रभाव का वर्णन करें।**
(लगभग 150 शब्द)