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भारत-रूस संबंध: ऊर्जा आयात पर अमेरिकी दबाव के बीच “समय-परीक्षित” साझेदारी की पड़ताल

भारत-रूस संबंध: ऊर्जा आयात पर अमेरिकी दबाव के बीच “समय-परीक्षित” साझेदारी की पड़ताल

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत द्वारा रूस से ऊर्जा आयात जारी रखने पर संभावित दंड की धमकी दी थी। इसके जवाब में, भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि रूस के साथ उसके संबंध “समय-परीक्षित” हैं और यह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देना जारी रखेगा। यह घटनाक्रम भारत के विदेश नीति के दृष्टिकोण, उसकी ऊर्जा सुरक्षा चुनौतियों और भू-राजनीतिक परिदृश्य में उसकी स्थिति को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यह ब्लॉग पोस्ट, UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, इस मामले की तह तक जाने का प्रयास करेगा। हम भारत-रूस संबंधों के ऐतिहासिक, आर्थिक और सामरिक आयामों का विश्लेषण करेंगे, अमेरिकी दबाव के निहितार्थों को समझेंगे, और भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति में रूस की भूमिका का मूल्यांकन करेंगे।

1. भारत-रूस संबंधों की गहरी जड़ें: “समय-परीक्षित” का क्या अर्थ है?

जब भारत कहता है कि रूस के साथ उसके संबंध “समय-परीक्षित” हैं, तो यह केवल एक कूटनीतिक बयान नहीं है, बल्कि दशकों के विश्वास, सहयोग और साझा हितों का प्रतिबिंब है। इन संबंधों की जड़ें बहुत गहरी हैं और इन्हें कई महत्वपूर्ण चरणों में समझा जा सकता है:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत की स्वतंत्रता के बाद से, विशेष रूप से शीत युद्ध के दौरान, जब भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा था, रूस (तब सोवियत संघ) भारत का एक विश्वसनीय सहयोगी रहा है। सोवियत संघ ने भारत को राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य सहायता प्रदान की, जो उस समय पश्चिमी देशों से मिलना मुश्किल था। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सोवियत संघ का समर्थन इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • सैन्य सहयोग: दशकों से, रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है। भारतीय सशस्त्र बलों के लगभग 70% उपकरण रूसी मूल के हैं। रूस के साथ रक्षा उत्पादन में सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रक्षा प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण भारत की रक्षा तैयारियों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। हालाँकि हाल के वर्षों में भारत ने अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल जैसे अन्य देशों से भी हथियार खरीदना शुरू किया है, रूस अभी भी एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
  • कूटनीतिक समर्थन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस ने हमेशा भारत के हितों का समर्थन किया है, खासकर कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर। यह समर्थन भारत के लिए भू-राजनीतिक रूप से बहुत मूल्यवान रहा है।
  • आर्थिक साझेदारी: रक्षा क्षेत्र के अलावा, ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अन्वेषण और दवाएं जैसे क्षेत्र भी भारत-रूस संबंधों के महत्वपूर्ण हिस्से रहे हैं। हाल के वर्षों में, भारत ने रूस से तेल और गैस का आयात बढ़ाया है, जिससे यह साझेदारी और भी महत्वपूर्ण हो गई है।

यह “समय-परीक्षित” साझेदारी, विभिन्न वैश्विक राजनीतिक बदलावों के बावजूद, भारत के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय संबंध के रूप में कायम रही है।

2. अमेरिकी दबाव: एस-400, CAATSA और ऊर्जा आयात

डोनाल्ड ट्रम्प की टिप्पणी अमेरिका के बढ़ते दबाव का एक और उदाहरण है, जो हाल के वर्षों में भारत-रूस संबंधों पर बढ़ रहा है। इस दबाव के मुख्य कारण:

  • S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद: भारत द्वारा रूस से S-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद ने अमेरिका को सबसे ज्यादा चिंतित किया है। यह प्रणाली अमेरिकी निर्मित पैट्रियट मिसाइल प्रणाली का प्रतिद्वंद्वी मानी जाती है। अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंधों को लागू करने वाले “काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट” (CAATSA) के तहत भारत पर भी प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है।
  • ऊर्जा आयात: अमेरिका रूस के तेल और गैस के प्रमुख उपभोक्ताओं में से एक रहा है, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण, अमेरिका ने अपने सहयोगियों से रूस से ऊर्जा आयात कम करने या बंद करने का आग्रह किया है। भारत, अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से तेल आयात पर निर्भरता बढ़ा रहा है, जो अमेरिका की स्थिति के विपरीत है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: अमेरिका, रूस को एक विरोधी शक्ति के रूप में देखता है, और वह अपने सहयोगियों को रूस के साथ महत्वपूर्ण रक्षा और आर्थिक संबंध रखने से हतोत्साहित करना चाहता है। उसका मानना है कि रूस के साथ भारत का गहरा संबंध उसके राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को प्रभावित करता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी दबाव केवल एक ही मुद्दे से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है जिसमें रूस की शक्ति को सीमित करना और अपने सहयोगियों को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखना शामिल है।

3. भारत की ऊर्जा सुरक्षा: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि

भारत के लिए, ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय हित का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत को अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए लगातार सस्ते और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता होती है।

  • ऊर्जा निर्भरता: भारत अपनी तेल और गैस की ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। इन आयातों का स्रोत देश की विदेश नीति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
  • रूस से आयात का बढ़ना: यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूस से रियायती दरों पर कच्चे तेल का आयात काफी बढ़ा दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य आपूर्तिकर्ता, जैसे कि मध्य पूर्व के देश, उच्च कीमतों पर तेल बेच रहे हैं। भारत की इस रणनीति का उद्देश्य अपनी ऊर्जा लागत को कम करना और अपने नागरिकों के लिए ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
  • विविधीकरण की आवश्यकता: हालाँकि भारत रूस से आयात बढ़ा रहा है, लेकिन वह अपनी ऊर्जा आपूर्ति का विविधीकरण भी कर रहा है। यह एक समझदारी भरी नीति है ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके। लेकिन, लागत और उपलब्धता के मामले में, रूस इस समय भारत के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गया है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव: यदि अमेरिका भारत पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाता है, तो इसका भारत पर बहुआयामी प्रभाव पड़ सकता है। इसमें भारत के लिए अमेरिकी प्रौद्योगिकी तक पहुँच बाधित होना, वैश्विक वित्तीय बाजारों में समस्याएं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर नकारात्मक असर शामिल हो सकता है।

भारत का यह रुख दर्शाता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों, विशेष रूप से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को, किसी अन्य देश के दबाव के आगे झुकने के बजाय प्राथमिकता देगा।

4. भारत-रूस संबंधों के पक्ष और विपक्ष

यह साझेदारी दोनों देशों के लिए फायदेमंद है, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

पक्ष (Pros):

  • भारत के लिए:
    • विश्वसनीय सैन्य आपूर्तिकर्ता।
    • ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण।
    • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक समर्थन।
    • रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।
  • रूस के लिए:
    • प्रमुख रक्षा खरीदार।
    • प्रतिबंधों के दौर में एक महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार।
    • पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के बीच भारत जैसे बड़े सहयोगी का होना।

विपक्ष (Cons)/चुनौतियाँ:

  • भारत के लिए:
    • अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा (CAATSA)।
    • पश्चिमी देशों के साथ संबंधों पर संभावित असर।
    • रूस की अपनी आर्थिक कमजोरियाँ।
    • भारत का पश्चिमी देशों और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने का दबाव।
  • रूस के लिए:
    • भारत की बढ़ती बहु-संरेखण (multi-alignment) नीति।
    • भारत का पश्चिमी देशों से रक्षा खरीद में वृद्धि।
    • वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधों का दबाव।

यह एक जटिल समीकरण है जहाँ भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी निभाना है।

5. भू-राजनीतिक परिदृश्य: भारत की बहु-संरेखण (Multi-alignment) रणनीति

भारत आज एक ऐसी दुनिया में है जहाँ पारंपरिक गठबंधनों की जगह ‘बहु-संरेखण’ की अवधारणा प्रभावी हो रही है। भारत किसी एक महाशक्ति के साथ ‘एकाधिकार’ संबंध रखने के बजाय, अपने हितों के अनुसार विभिन्न देशों के साथ संबंध विकसित कर रहा है।

“भारत की विदेश नीति की पहचान अब किसी एक गुट से बंधे रहने की नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर, विभिन्न देशों के साथ, विभिन्न मुद्दों पर, समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग करने की है। इसे ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) के रूप में भी देखा जाता है।”

इसका मतलब है कि भारत अमेरिका के साथ QUAD (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) का सदस्य है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने का एक प्रयास है। वहीं, भारत रूस के साथ भी अपने ऐतिहासिक और मजबूत संबंध बनाए हुए है। यह एक नाजुक संतुलन है जिसे भारत बड़ी कुशलता से साध रहा है।

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत का रूस से ऊर्जा आयात जारी रखना, इसी बहु-संरेखण और रणनीतिक स्वायत्तता का परिणाम है। भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखेगा, भले ही इसके लिए उसे किसी मित्र देश के साथ अपनी कूटनीति को चुनौती देनी पड़े।

6. भविष्य की राह: चुनौतियाँ और अवसर

भारत-रूस संबंध, और इस पर अमेरिकी दबाव, आने वाले वर्षों में एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक विषय बने रहेंगे।

  • चुनौतियाँ:
    • CAATSA प्रतिबंधों का प्रबंधन: भारत को यह तय करना होगा कि वह S-400 सौदे को कैसे आगे बढ़ाएगा और अमेरिकी प्रतिबंधों के जोखिमों को कैसे कम करेगा।
    • ऊर्जा आपूर्ति का विविधीकरण: रूस पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और आपूर्तिकर्ताओं की तलाश जारी रखनी होगी।
    • पश्चिमी देशों के साथ संबंध: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस के साथ उसके संबंध पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका, के साथ उसके रणनीतिक संबंधों को गंभीर रूप से नुकसान न पहुंचाएं।
    • वैश्विक ऊर्जा बाजार की अस्थिरता: ऊर्जा की कीमतें और आपूर्ति, भू-राजनीतिक घटनाओं से प्रभावित हो सकती है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अनिश्चितता बनी रहेगी।
  • अवसर:
    • रक्षा आत्मनिर्भरता: रूस के साथ संयुक्त उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत अपनी रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
    • ऊर्जा सहयोग का विस्तार: रूस के साथ ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, जैसे कि परमाणु ऊर्जा औरLNG, भारत के लिए दीर्घकालिक लाभ प्रदान कर सकता है।
    • रणनीतिक स्वायत्तता का सुदृढ़ीकरण: वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करके, भारत अपनी भू-राजनीतिक प्रासंगिकता को बढ़ा सकता है।
    • मध्यस्थता की भूमिका: भारत, अपनी तटस्थ स्थिति का उपयोग करके, रूस और पश्चिमी देशों के बीच मध्यस्थता या संवाद के लिए एक सेतु का काम कर सकता है, जो वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष

“Ties with Russia time-tested’: India brushes off Trump’s penalty threat on energy imports” यह शीर्षक भारत की कूटनीति के सार को दर्शाता है। यह भारत की उन “समय-परीक्षित” साझेदारियों को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता को उजागर करता है जो उसके राष्ट्रीय हितों, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा, को सुनिश्चित करती हैं। साथ ही, यह भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और ‘बहु-संरेखण’ की नीति को भी दर्शाता है, जहाँ वह किसी एक शक्ति के दबाव में आए बिना, अपने हितों के अनुसार विभिन्न देशों के साथ संबंध विकसित करता है।

UPSC के उम्मीदवारों के लिए, यह मामला भारत की विदेश नीति के जटिल संतुलन, ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों और वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की उभरती भूमिका को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। यह दिखाता है कि कैसे भारत, विभिन्न दबावों के बीच, अपनी राह बनाने में सक्षम है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: हाल के घटनाक्रम में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को किस आधार पर दंडित करने की धमकी दी?

    a) भारत द्वारा चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंध।

    b) भारत द्वारा रूस से ऊर्जा आयात जारी रखना।

    c) भारत द्वारा अमेरिकी प्रौद्योगिकी के उपयोग पर प्रतिबंध।

    d) भारत द्वारा अमेरिका से हथियार न खरीदना।

    उत्तर: b) भारत द्वारा रूस से ऊर्जा आयात जारी रखना।

    व्याख्या: यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद, भारत द्वारा रूस से तेल और गैस का आयात जारी रखने को लेकर अमेरिकी चिंताएं व्यक्त की गई थीं, जिस पर पूर्व राष्ट्रपति ने दंड की धमकी दी थी।
  2. प्रश्न: भारत द्वारा रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद को लेकर किस अमेरिकी अधिनियम के तहत चिंताएं जताई गई हैं?

    a) Patriot Act

    b) CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act)

    c) NDAA (National Defense Authorization Act)

    d) START Treaty

    उत्तर: b) CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act)

    व्याख्या: CAATSA, 2017 में पारित एक अमेरिकी कानून है जो रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए प्रतिबंधों का प्रावधान करता है।
  3. प्रश्न: भारत के अनुसार, रूस के साथ उसके संबंध किस प्रकार के हैं?

    a) नव-गठित (Newly Forged)

    b) सामरिक रूप से संवेदनशील (Strategically Sensitive)

    c) समय-परीक्षित (Time-Tested)

    d) अनिश्चित (Uncertain)

    उत्तर: c) समय-परीक्षित (Time-Tested)

    व्याख्या: भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि रूस के साथ भारत के संबंध “समय-परीक्षित” हैं, जो दशकों के सहयोग को दर्शाता है।
  4. प्रश्न: भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए किस पर निर्भरता रखता है?

    a) केवल घरेलू उत्पादन पर

    b) केवल पश्चिमी देशों से आयात पर

    c) आयातित स्रोतों पर, जिनमें रूस भी शामिल है

    d) केवल नवीकरणीय ऊर्जा पर

    उत्तर: c) आयातित स्रोतों पर, जिनमें रूस भी शामिल है

    व्याख्या: भारत अपनी ऊर्जा मांगों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, और यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल आयात बढ़ा है।
  5. प्रश्न: भारत की विदेश नीति की पहचान के रूप में हाल के वर्षों में किस अवधारणा का उदय हुआ है?

    a) गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment)

    b) ध्रुवीकरण (Polarization)

    c) बहु-संरेखण (Multi-alignment)

    d) एकाधिकार (Monopolization)

    उत्तर: c) बहु-संरेखण (Multi-alignment)

    व्याख्या: भारत अब विभिन्न देशों के साथ अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार संबंध विकसित कर रहा है, जिसे बहु-संरेखण या रणनीतिक स्वायत्तता कहा जाता है।
  6. प्रश्न: QUAD (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) में कौन से देश शामिल हैं?

    a) भारत, रूस, चीन, अमेरिका

    b) भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका

    c) भारत, फ्रांस, जर्मनी, जापान

    d) अमेरिका, रूस, चीन, जापान

    उत्तर: b) भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका

    व्याख्या: QUAD इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए गठित एक रणनीतिक मंच है।
  7. प्रश्न: शीत युद्ध के दौरान भारत का एक प्रमुख सहयोगी कौन था?

    a) संयुक्त राज्य अमेरिका

    b) यूनाइटेड किंगडम

    c) सोवियत संघ

    d) फ्रांस

    उत्तर: c) सोवियत संघ

    व्याख्या: शीत युद्ध के दौरान, सोवियत संघ भारत का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य सहयोगी था।
  8. प्रश्न: रूस भारतीय सशस्त्र बलों के लिए किस प्रकार का आपूर्तिकर्ता है?

    a) प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता

    b) केवल लॉजिस्टिक सपोर्ट प्रदाता

    c) गैर-महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता

    d) सैन्य प्रशिक्षण प्रदाता

    उत्तर: a) प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता

    व्याख्या: भारत के रक्षा उपकरणों का एक बड़ा हिस्सा रूसी मूल का है, जो रूस को एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनाता है।
  9. प्रश्न: भारत ने हाल के वर्षों में रूस से किस क्षेत्र में अपनी निर्भरता बढ़ाई है?

    a) आईटी सेवाएँ

    b) ऊर्जा (तेल और गैस)

    c) कपड़ा निर्यात

    d) कृषि उत्पाद

    उत्तर: b) ऊर्जा (तेल और गैस)

    व्याख्या: वैश्विक ऊर्जा बाजार में बदलाव के कारण भारत ने रूस से तेल और गैस का आयात बढ़ाया है।
  10. प्रश्न: “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) का अर्थ क्या है?

    a) किसी एक देश पर पूर्ण निर्भरता

    b) अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का पालन

    c) केवल पश्चिमी देशों के साथ संबंध रखना

    d) अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करना

    उत्तर: b) अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का पालन

    व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि कोई देश बाहरी दबावों से प्रभावित हुए बिना, अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय ले।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: भारत-रूस संबंधों की “समय-परीक्षित” प्रकृति का विस्तृत विश्लेषण करें, जिसमें ऐतिहासिक, रक्षा, ऊर्जा और कूटनीतिक आयामों पर प्रकाश डाला गया हो। हाल के भू-राजनीतिक दबावों के आलोक में, भारत इन संबंधों को कैसे संतुलित कर रहा है, इसकी विवेचना करें।
  2. प्रश्न: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के संबंध में CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के प्रावधानों का वर्णन करें। भारत द्वारा रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद के संदर्भ में इसके निहितार्थों का विश्लेषण करें और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर इसके प्रभाव की पड़ताल करें।
  3. प्रश्न: भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से ऊर्जा आयात का महत्व क्या है? यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से आयात बढ़ने के कारणों और इस नीति से जुड़े संभावित आर्थिक और कूटनीतिक जोखिमों का मूल्यांकन करें।
  4. प्रश्न: भारत की ‘बहु-संरेखण’ (Multi-alignment) और ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की विदेश नीति का क्या अर्थ है? वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, रूस और अमेरिका जैसे प्रमुख देशों के साथ भारत के जटिल संबंधों को बनाए रखने में यह नीति कैसे भूमिका निभाती है, इसका आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

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