भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम
( Family Planning Programme in India )
यह परिवार के सम्बन्ध में बनाई जाने वाली एक ऐसी योजना है जिससे हम यह तय करते हैं कि कितने बच्चे हमारे होने चाहिए कि हम उनका ठीक से पालन – पोषण यानी परवरिश कर सकें । हमारे बच्चे और हम सुखी , स्वस्थ , एवं प्रसन्न रह सकें । परिवार नियोजन के उद्देश्य विवेकपूर्ण मातृत्व – पितृत्व , स्वस्थ्य बच्चे व सुखी परिवार का निर्माण करना है । इस प्रकार अपने साधनों के अनुकूल अपने परिवार को अपनी इच्छा से परिसीमित करना ही परिवार नियोजन है ।
परिवार नियोजन का अर्थ परिवार नियोजन परिवार तथा नियोजन इन दो शब्दों के योग से बना हुआ है । ” परिवार नियोजन एक कल्याणकारी योजना है , जिसका उद्देश्य व्यक्ति की उन्नति , परिवार की भलाई , समाज का सुधार और देश की उन्नति करना है । ” स्पष्ट है कि नियोजित परिवार , सन्तान अपनी इच्छा से न कि संयोग से ही परिवार नियोजन है । भारत में परिवार नियोजन की आवश्यकता एवं महत्त्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं
बन्ध्याकरण ऑपरेशन- पुरुषों के बंध्यकरण को वैसेक्टॉमी तथा स्त्रियों के बन्यकरण को टयूबेक्टॉमी कहते हैं । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं ऊपरी त्वचा को सुन्न ( अ ) वैसेक्टॉमी ( Vasectomy ) – इसमें अण्डकोश कर देते हैं । एक छोटे से चीरे द्वारा शुक्राणु वाहिनी नलिका के बाहर निकालकर दो सिरी पर बाँधकर बीच में विभक्त कर देते हैं । शुक्राणुओं के निर्माण में व्यय होने वाली प्रोटीन उत्सर्जित होने के बजाए संचित होने लगती है । स्टरलाइजेशन के बाद शुक्राणुओं को छोड़कर अन्य ग्रन्थियों को तरल पदार्थ पूर्ववत् निकलता है । शुक्राणु भी अन्य कोशिकाओं की तरह बनते बिगड़ते रहते हैं जैसे – रक्तकण । आवश्यकता पड़ने पर स्त्री की अपेक्षा पुरुष की नस जोड़ना अधिक सरल है ।
( ख ) टूयूबेक्टॉमी ( Tubectomy ) – इसमें नाभी के नीचे पेट में दो इंच का चीरा लगाकर डिम्ब वाहिनी नालिका ( फेलोपियन ट्यूब ) को बाहर निकालकर विभक्त कर देते हैं । इस ऑपरेशन स्त्री को अस्पताल में एक सप्ताह तक रहना पड़ता है । प्रसव के बाद 36 घण्टे के अन्दर यह सुविधाजनक होता है । उस समय ट्यूब ऊपर रहते हैं तथा अस्पताल में ठहरने की अवधि भी लगभग वही रहती है ।
कृत्रिम तरीके – महिलाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले कृत्रिम तरीकों में प्रमुख हैं— डायफ्राम , पिचकारी से योनि में क्रीम भरना , फेनिल गोलियाँ , रबड़ , स्पंज कागज , रूई व कपड़े का स्पंज , जेली आदि । अनुमान है कि करीब 15 लाख गर्भ निरोध के कृत्रिम तरीके अपना रहे हैं ।
गर्भपात – गर्भपात परिवार नियोजन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली उपाय है । ऐसी मान्यता है कि गर्भ धारण से 20 सप्ताह तक भ्रूण में जीवन का संचार नहीं होता है और इस अवधि के दौरान गर्भपात कराया जा सकता है । भारत में भी 1 अप्रैल 1972 से गर्भपात को वैधानिक मान्यता दे दी गई है । फिर भी हमारे देश का गर्भपात अधिनियम अन्य देशों की भाँति गर्भपात कराने की खुली छूट प्रदान नहीं करता । भारत का गर्भपात अधिनियम पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा श्रेष्ठ उपकरणों व सामग्रीयुक्त संस्थाओं में कुछ निर्धारित दशाओं में गर्भपात की व्यवस्था करता है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न राज्यों व संघीय क्षेत्र में 550 सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं को गर्भपात करने की मान्यता प्रदान की गई है ।
जनसंख्या वृद्धि की समस्या का प्रभावपूर्ण समाधान- परिवार नियोजन भारत में तूफानी गति से हो रही जनसंख्या वृद्धि को रोकने का एकमात्र प्रभावपूर्ण उपाय है । जब तक भारत में परिवार नियोजन को व्यापक पैमाने पर नहीं अपनाया जाता तब तक जनसंख्या वृद्धि की बाढ़ को नहीं रोका जा सकता है ।
लेप्रोस्कोपिक विधि ( Leproscopic Method ) — यह दूरबीन विधि के नाम से प्रसिद्ध है । इस आपरेशन में नाभी के नीचे सुन्न कर , पेट में गैस भर देते हैं । दो सेंटीमीटर का चीरा लगाकर लेप्रोस्कोप पेट के अन्दर ले जाकर डिम्बवाहिनी नलिका को पहचान कर सेलिस्टकरिंग पहना देते हैं । जिससे प्रकाश व्यवस्था रहती है । डिम्बवाहिनी नलिका में अगूँठी की तरह का छल्ला लिपट जाता है । इस विधि में न कोई कॉट – छाँट होती है और न बेहोशी । छ : घण्टे बाद अस्पताल से वापस आ सकते हैं ।
बन्ध्याकरण ऑपरेशन- पुरुषों के बंध्यकरण को वैसेक्टॉमी तथा स्त्रियों के बन्यकरण को टयूबेक्टॉमी कहते हैं । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं ऊपरी त्वचा को सुन्न ( अ ) वैसेक्टॉमी ( Vasectomy ) – इसमें अण्डकोश कर देते हैं । एक छोटे से चीरे द्वारा शुक्राणु वाहिनी नलिका के बाहर निकालकर दो सिरी पर बाँधकर बीच में विभक्त कर देते हैं । शुक्राणुओं के निर्माण में व्यय होने वाली प्रोटीन उत्सर्जित होने के बजाए संचित होने लगती है । स्टरलाइजेशन के बाद शुक्राणुओं को छोड़कर अन्य ग्रन्थियों को तरल पदार्थ पूर्ववत् निकलता है । शुक्राणु भी अन्य कोशिकाओं की तरह बनते बिगड़ते रहते हैं जैसे – रक्तकण । आवश्यकता पड़ने पर स्त्री की अपेक्षा पुरुष की नस जोड़ना अधिक सरल है ।
( ख ) टूयूबेक्टॉमी ( Tubectomy ) – इसमें नाभी के नीचे पेट में दो इंच का चीरा लगाकर डिम्ब वाहिनी नालिका ( फेलोपियन ट्यूब ) को बाहर निकालकर विभक्त कर देते हैं । इस ऑपरेशन स्त्री को अस्पताल में एक सप्ताह तक रहना पड़ता है । प्रसव के बाद 36 घण्टे के अन्दर यह सुविधाजनक होता है । उस समय ट्यूब ऊपर रहते हैं तथा अस्पताल में ठहरने की अवधि भी लगभग वही रहती है ।
कृत्रिम तरीके – महिलाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले कृत्रिम तरीकों में प्रमुख हैं— डायफ्राम , पिचकारी से योनि में क्रीम भरना , फेनिल गोलियाँ , रबड़ , स्पंज कागज , रूई व कपड़े का स्पंज , जेली आदि । अनुमान है कि करीब 15 लाख गर्भ निरोध के कृत्रिम तरीके अपना रहे हैं ।
गर्भपात – गर्भपात परिवार नियोजन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली उपाय है । ऐसी मान्यता है कि गर्भ धारण से 20 सप्ताह तक भ्रूण में जीवन का संचार नहीं होता है और इस अवधि के दौरान गर्भपात कराया जा सकता है । भारत में भी 1 अप्रैल 1972 से गर्भपात को वैधानिक मान्यता दे दी गई है । फिर भी हमारे देश का गर्भपात अधिनियम अन्य देशों की भाँति गर्भपात कराने की खुली छूट प्रदान नहीं करता । भारत का गर्भपात अधिनियम पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा श्रेष्ठ उपकरणों व सामग्रीयुक्त संस्थाओं में कुछ निर्धारित दशाओं में गर्भपात की व्यवस्था करता है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न राज्यों व संघीय क्षेत्र में 550 सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं को गर्भपात करने की मान्यता प्रदान की गई है ।
लेप्रोस्कोपिक विधि ( Leproscopic Method ) — यह दूरबीन विधि के नाम से प्रसिद्ध है । इस आपरेशन में नाभी के नीचे सुन्न कर , पेट में गैस भर देते हैं । दो सेंटीमीटर का चीरा लगाकर लेप्रोस्कोप पेट के अन्दर ले जाकर डिम्बवाहिनी नलिका को पहचान कर सेलिस्टकरिंग पहना देते हैं । जिससे प्रकाश व्यवस्था रहती है । डिम्बवाहिनी नलिका में अगूँठी की तरह का छल्ला लिपट जाता है । इस विधि में न कोई कॉट – छाँट होती है और न बेहोशी । छ : घण्टे बाद अस्पताल से वापस आ सकते हैं ।
जहाँ तक भारत के लिए परिवार नियोजन की उपयुक्त विधि का प्रश्न है , अध्यकरण सर्वोत्तम विधि है । जिन व्यक्तियों के दो या तीन बच्चे हैं , उनमें से कोई एक अर्थात् या तो पुरुष या स्त्री , अपना बन्ध्यकरण करा सकता है । बन्ध्याकरण से नए जन्म की सम्भावना ही मिट जाती है । भारत में वैसे भी निरोध का व्यापक प्रचार है और काफी लोग इसका प्रयोग करते हैं । जहाँ तक गर्भपात का प्रश्न है इसका सहारा तभी लिया जाना चाहिए , जब गर्भ निरोध के अन्य सभी साधन असफल हो जाये । गर्भपात को परिवार नियोजन के सरल साधन के रूप में नहीं अपनाया जाना चाहिए क्योंकि यह गर्भिणी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रम की सफलता या उपलब्धियों का वर्णन
परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रम की सफलता / उपलब्धियाँ
( Success or Achievements of Family Planning and Welfare Programme ) परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रम की सफलता एवं उपलब्धियाँ निम्न तथ्यों से स्पष्ट है
निरोध एवं गोलियों का प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है – महिलाओं में गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग भी बढ़ रहा है । प्रारम्भ में संकोच करने वाले आज बेधड़क इन उपकरणों का प्रयोग करने लगे हैं ।
जनसंख्या वृद्धि पर रोक में सहायता – देश में परिवार नियोजन के प्रति बनी धारणा , नसबन्दी , लूप लगाने एवं उपकरणों के प्रयोग से पिछले 46 वर्षों में जन्म दर को 42 प्रति हजार से घटाकर 27.5 प्रति हजार करने का यह लाभ हुआ है ।
बड़े पैमाने पर नसबन्दी एवं लूप सुविधा का उपयोग- भारत में परिवार नियोजन की उपलब्धियाँ बढ़ते नसबन्दी ओपरेशनों और लूप लगाने में दृष्टिगोचर होती है । एक मोटे अनुमान के अनुसार अब तक 13.5 करोड़ नसबन्दी ऑपरेशन किये जा चुके हैं और लगभग 1 करोड़ से अधिक महिलाओं के लूप लगाये गये हैं । 2. गर्भपात को कानूनी मान्यता – 1972 में गर्भपात को कानूनी मान्यता दी जाने से आकांक्षी महिलाओं को एक अतिरिक्त सुविधा मिली है । देश में लगभग 170 संस्थायें गर्भपात का प्रशिक्षण प्रदान करती है । इस प्रकार गर्भपात की वैधानिकता काफी लाभदायक सिद्ध होगी । 3. परिवार नियोजन उपकरणों का देश में उत्पादन एवं वितरण- परिवार नियोजन की सफलता इस बात में भी निहित है कि देश में गर्भ निरोधक उपकरणों एवं गोलियों का उत्पादन किया जा रहा है । परिवार नियोजन केन्द्रों में निरोध एवं गर्भ निरोधक गोलियाँ निःशुल्क वितरित की जाती है । 4. जन्म – दर में कमी – परिवार नियोजन कार्यक्रमों में सन्तानोत्पत्ति पर प्रभावी नियन्त्रण हुआ है । 5. परिवार नियोजन की लोकप्रियता – पिछले कुछ वर्षों में परिवार नियोजन कार्यक्रम की सबसे बड़ी सफलता यही है कि आज देश में सन्तति निग्रह एवं छोटे परिवार
और परिवार नियोजन की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है । 6. 23 प्रतिशत दत्पत्ति इस योजना की परिधि में आ गये हैं देश में लगभग 10.5 करोड़ सन्तानोत्पत्ति योग्य दम्पत्ति हैं , उनमें से लगभग 23 प्रतिशत दम्पत्तियों को परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रम की परिधि में ले आये हैं ।
परिवार नियोजन में प्रशिक्षित कर्मचारियों में वृद्धि आज देश में परिवार नियोजन के प्रशिक्षित कर्मचारियों की संख्या काफी बढ़ गयी है और इसके कार्यक्रमों के संचालन के लिये पर्याप्त पूर्ति हो गयी है ।
जनसंख्या सम्बन्धी अनुसन्धान को प्रोत्साहन परिवार नियोजन को महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि आज देश में जन्म दर मृत्यु दर , प्रजनन दर एवं गर्भाधान नियन्त्रण आदि पहलुओं पर अनुसन्धान कार्यों में पर्याप्त तेजी आई है ।
भारत में परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रम की कठिनाइयों / कनियाँ / बाधायें ( Difficulties and Shortcomings in Family Planning Programme in India )
परिवार नियोजन की आंशिक सफलता के पीछे निम्नांकित बाधायें एवं कठिनाइयाँ
उचित देख – भाल का अभाव- लक्ष्यों की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर नसबन्दी ऑपरेशन तो कर दिये गये किन्तु उसके बाद उचित डॉक्टरी देखभाल के न होने से स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्यायें उत्पन्न हुई ।
ऑपरेशन का अज्ञात भय – भारतीयों में ऑपरेशन के द्वारा नसबन्दी के प्रति अज्ञात भय है । कभी – कभी ऑपरेशनों में डॉक्टर की लापरवाही , बाद में देखरेख का अभाव आदि कारणों से उत्पन्न संकटों से भय में वृद्धि हुई है ।
अशिक्षा तथा जन सहयोग का अभाव- देश की लगभग 48 प्रतिशत जनसंख्या अशिक्षित है अतः वे रूढ़िवादी होकर सन्तानोत्पत्ति को भाग्य की देन मानते हैं । अब धीरे – धीरे सुधार हो रहा है , फिर भी जन – सहयोग का नितान्त अभाव सबसे बड़ी बाधा है ।
परस्पर विरोधी प्रचार एवं भ्रांतियाँ- देश में परिवार नियोजन के सम्बन्ध में राजनेताओं एवं धार्मिक गुरुओं द्वारा समय – समय पर परस्पर विरोधी प्रचार से जन – साधारण में इसके प्रति भ्रांतियाँ घर कर गयी हैं ।
सन्तानोत्पत्ति नियन्त्रण को प्राथमिकता दी गयी है— मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य , पोषण आदि पहलुओं को गौण माना है । बन्ध्याकरण एवं लूप लगाने पर ही अधिक ध्यान दिये जाने से परिवार कल्याण के धनात्मक पहलुओं को भुला दिया है ।
निर्धन जनता – परिवार नियोजन उपकरणों एवं तरीकों के लिये लागत चुकाना भी उस जनता के लिये कठिन है । जिसे भर पेट भोजन न मिले । नसबन्दी एवं लूप लगाने से उत्पन्न खर्चे उनकी सीमा से बाहर हैं ।
ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन सुविधाओं एवं प्रचार का अभाव रहा है – वहाँ न परिवार नियोजन के चिकित्सा केन्द्रों की पर्याप्त सुविधायें हैं , और न पर्याप्त प्रशिक्षित चिकित्सक है ।
यौन शिक्षा का अभाव- भारत में युवक – युवतियों को यौन शिक्षा का अभाव होने से भी परिवार नियोजन के प्रति पर्याप्त जागरुकता उत्पन्न नहीं हो पायी है ।
सामाजिक चेतना का अभाव- परिवार नियोजन के प्रति भारतीय समाज में अरुचि , असहयोग और भ्रम के साथ – साथ परिवार कल्याण के प्रति चेतना नहीं जागी है ।