भारत में जन स्वास्थ्य
( Public Health in India )
देश की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा हो । स्वस्थ नागरिकों से तात्पर्य शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक रूप में उनका ठीक होना है । यद्यपि भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से जन स्वास्थ्य में सुधार आया है पर अभी भी
भारतीयों का स्वास्थ्य स्तर विकसित देशों के नागरिकों से काफी गिरा हुआ है । यही कारण है कि भारत में लोगों की औसत आयु कम है और जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही अधिक है । शिशु और मातृ मृत्यु दर बहुत अधिक है तथा महामारियों और बीमारियों का प्रकोप बराबर बना हुआ है । ” बीमारियाँ देश के हृष्ट – पुष्ट और शक्तिवान लोगों को मारकर आर्थिक शक्ति को नष्ट करती है । “
किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए वहाँ की जनता का शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से हृष्ट – पुष्ट या स्वस्थ होना आवश्यक है । क्योंकि मानव समाज का आधार स्वयं मानव है अन्य सभी आधार उसी पर निर्भर करते हैं ।
शाब्दिक दृष्टि से जन स्वास्थ्य से आशय जनता के स्वास्थ्य से है । ‘ स्वास्थ्य ‘ का अर्थ उसका शारीरिक , मानसिक दृष्टि से स्वस्थ्य होने से है । यदि देश की जनता शक्तिहीन व अस्वस्थ होगी तो देश भी कमजोर होगा तथा उसका भविष्य भी अन्धकारमय होगा । अत : हर दृष्टि से जनता का स्वस्थ्य होना समाज के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है ।
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
( Factors affecting the Health )
स्वास्थ्य जो जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है अपने आप ही प्राप्त नहीं हो जाता , बल्कि यह स्वयं अनेक सामाजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित व प्रभावित होता है । पर्यावरण – जलवायु , प्राकृतिक साधनों तथा वैयक्तिक कारकों , जैसे – खाने – पीने , सोने , मल – मूत्र त्याग करने , सफाई व शुद्ध वायु सेवन सम्बन्धी आदतों पर बहुत कुछ निर्भर करता है वहीं निम्न सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक कारकों के ऊपर भी विशेष रूप से निर्भर है ।
चिकित्सा विज्ञान की स्थिति – स्वास्थ्य का स्तर न केवल स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवाओं पर निर्भर है बल्कि स्वास्थ्य , चिकित्सा विज्ञान व सेवाओं के स्तर पर भी निर्भर होता है । जहाँ चिकित्सा विज्ञान में काफी प्रगति हो चुकी है , वहाँ गम्भीर – से – गम्भीर संक्रामक बीमारियों की रोकथाम प्रभावशाली ढंग से सम्भव होती है । फलत : जनमानस का स्वास्थ्य स्तर बढ़ता है । विकसित देश इसके स्पष्ट प्रमाण हैं । इसके विपरीत जहाँ चिकित्सा विज्ञान आज भी पिछड़ा हुआ है , ऑपरेशन की रीतियाँ पिछड़ी हुई हैं , अनेक खतरनाक महामारियों व बीमारियों का कोई प्रभावशाली इलाज नहीं है वहाँ जनता का स्वास्थ्य स्तर गिरा हुआ है । पिछड़े देश इसके प्रमाण हैं ।
सामाजिक पर्यावरण – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं । यदि सामाजिक वातावरण स्वास्थ्य के अनुकूल है अर्थात् समाज में बाह्य और आन्तरिक शान्ति है , जीवन के लिए अन्य आवश्यक सामाजिक परिस्थितियाँ व सांस्कृतिक मान्यताएँ स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त और प्रेरक हैं तो जनस्वास्थ्य का स्तर अच्छा होगा । इसके विपरीत यदि सामाजिक वातावरण स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है तो इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव होगा ।
जीवन स्तर- जन स्वास्थ्य के निर्धारण में जीवन स्तर का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अच्छी , पौष्टिक और पर्याप्त मात्रा में वस्तुओं के साथ ही सेवाओं का उपयोग किया जाता है तो उसका स्वास्थ्य स्तर ऊंचा होगा । इसके विपरीत यदि लोगों का जीवन स्तर नीचा है । वे निर्धनता और अभाव की जिन्दगी व्यतीत कर रहे हैं तो इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ।
पेयजल एवं आवास व्यवस्था – जल और आवास का जीवन में हर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है । यदि पेयजल का स्वच्छता के साथ उचित प्रबन्ध है तो स्वास्थ्य पर इसका अच्छा प्रभाव होता है जबकि इसके अभाव में गन्दे जल से अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं और स्वास्थ्य खराब हो जाता है । यदि आवास व्यवस्था के अनुकूल है ।
शिक्षा व स्वास्थ्य नियमों की जानकारी- अशिक्षित व्यक्ति अज्ञानतावश स्वास्थ्य नियमों और सुविधाओं की न तो जानकारी ही रखना न ही स्वास्थ्य रक्षा के प्रति तत्पर ही होता है । वह अपने अन्धविश्वासों और जीने , रहने के अविवेकपूर्ण ढंग के कारण तरह – तरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है ।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ – स्वास्थ्य स्तर के निर्माण में देश में उपलब्ध चिकित्सा , सार्वजनिक साफ – सफाई व स्वास्थ्य सुविधाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । जहाँ इन सुविधाओं और सेवाओं का अभाव है वहाँ लोग तरह – तरह की संक्रामक और अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार रहते हैं ।
जनसंख्या– मानव का स्वास्थ्य स्वयं उसकी संख्या पर भी निर्भर होता है । यदि किसी देश में जनसंख्या , खाद्यान्न व अन्य वस्तुओं के उत्पादन के उपयुक्त अनुपात से अधिक है व उत्पादन में होने वाली वृद्धि से अधिक बढ़ रही है तो देश में खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं का अभाव उत्पन्न होगा और जनता निर्धनता , अभाव व कुपोषण का शिकार होगी ।
निर्धनता एवं असन्तुलित आहार – स्वास्थ्य के निर्धारण में निर्धनता का बहुत बड़ा हाथ होता है । निर्धनता की स्थिति में लोगों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती है जिससे उन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो पाता ।