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भारत-पाक के बाद थाईलैंड-कंबोडिया: ट्रम्प के ‘व्यापार दबाव’ से ‘सम्मान’ तक की कहानी

भारत-पाक के बाद थाईलैंड-कंबोडिया: ट्रम्प के ‘व्यापार दबाव’ से ‘सम्मान’ तक की कहानी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में एक अनूठा दावा किया है। उनका कहना है कि जैसे उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव को “स्थिर” (settled) किया, ठीक उसी तरह अब वे थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संबंधों को भी सुधारने की दिशा में काम कर रहे हैं। ट्रम्प ने इस प्रक्रिया में अपने पसंदीदा हथियार – ‘व्यापार दबाव’ (trade pressure) – का श्रेय देते हुए इसे अपने लिए एक “सम्मान” (honour) बताया है। यह बयान अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति और आर्थिक साधनों के उपयोग पर एक नई बहस छेड़ता है, खासकर UPSC उम्मीदवारों के लिए जो भू-राजनीति और समकालीन विश्व मामलों को समझना चाहते हैं।

यह कथन जितना सीधा लगता है, उससे कहीं अधिक जटिल है। यह एक राष्ट्रपति की कूटनीतिक शैली, उनकी ‘डील-मेकिंग’ क्षमता के दावों, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अमेरिकी प्रभाव को पुनः परिभाषित करने के प्रयासों को दर्शाता है। आइए, इस घटनाक्रम को गहराई से समझें, भारत-पाकिस्तान के संदर्भ से लेकर थाईलैंड-कंबोडिया तक की यात्रा का विश्लेषण करें, और देखें कि यह UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से कैसे प्रासंगिक है।

क्या है पूरा मामला? (What’s the Whole Story?)

डोनाल्ड ट्रम्प, अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, एक मुखर और अप्रत्याशित कूटनीतिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते रहे हैं। उनकी विदेश नीति अक्सर पारंपरिक कूटनीति से हटकर, सीधे सौदेबाजी और आर्थिक दबाव पर केंद्रित रही है। उन्होंने कई मौकों पर यह दावा किया है कि उनके नेतृत्व में अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बेहतर सौदे किए हैं और पुराने, अनसुलझे मुद्दों को हल करने में सफलता पाई है।

इस बार, उनका ध्यान दो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों – थाईलैंड और कंबोडिया – पर गया है। ऐतिहासिक रूप से, इन दोनों देशों के बीच कुछ सीमा विवाद और राजनीतिक मतभेद रहे हैं, हालांकि वे सीधे तौर पर “संघर्ष” की स्थिति में नहीं हैं जैसा कि भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर देखने को मिलता है। ट्रम्प का दावा है कि उन्होंने इन मतभेदों को सुलझाने के लिए ‘व्यापार दबाव’ का इस्तेमाल किया है और इसे एक बड़ी उपलब्धि मानते हुए इसे ‘सम्मान’ कहा है।

यह बयान विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिछले संदर्भों की ओर इशारा करता है, जैसे कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने में उनकी कथित भूमिका। ट्रम्प ने कई बार यह कहा है कि वह कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने के इच्छुक हैं या उन्होंने दोनों देशों को शांत करने में भूमिका निभाई है। हालांकि, इन दावों की सत्यता और प्रभावशीलता पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में हमेशा बहस होती रही है।

“मेरा मानना है कि मैं उन लोगों की तरह हूं जो समस्याओं को हल करते हैं। हम भारत और पाकिस्तान को सुलझाते हैं… और अब हम थाईलैंड और कंबोडिया को सुलझा रहे हैं। यह एक सम्मान की बात है।” – डोनाल्ड ट्रम्प

ट्रम्प की कूटनीति: ‘व्यापार दबाव’ का अस्त्र (Trump’s Diplomacy: The Weapon of ‘Trade Pressure’)

डोनाल्ड ट्रम्प की कूटनीतिक रणनीति को अक्सर “डील-मेकिंग” या “लेन-देन-आधारित कूटनीति” (transactional diplomacy) के रूप में वर्णित किया जाता है। इसमें, वे किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे को हल करने के लिए मुख्य रूप से आर्थिक या व्यापारिक लाभ-हानि के तराजू का उपयोग करते हैं। यदि कोई देश अमेरिका के साथ व्यापार घाटा रखता है, या यदि किसी देश की नीतियां अमेरिकी हितों के खिलाफ जाती हैं, तो ट्रम्प उस देश पर टैरिफ, प्रतिबंध या अन्य आर्थिक दबाव डालकर अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं।

यह कैसे काम करता है?

  • आर्थिक प्रोत्साहन/दंड: अमेरिका अपनी आर्थिक शक्ति का उपयोग करके अन्य देशों को वांछित व्यवहार के लिए प्रोत्साहित (प्रलोभन) या दंडित (धमकी) कर सकता है।
  • अप्रत्यक्ष लाभ: यह सीधे तौर पर एक देश को दूसरे देश के साथ समझौता करने के लिए मजबूर कर सकता है, खासकर यदि वह देश अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हो।
  • ‘सब कुछ एक सौदे का हिस्सा है’: ट्रम्प की सोच में, सुरक्षा, व्यापार, कूटनीति – सब कुछ एक बड़े सौदे का हिस्सा है, जहाँ हर पक्ष को कुछ न कुछ हासिल करना होता है (या कुछ खोना पड़ता है)।

उदाहरण:

  • चीन के साथ व्यापार युद्ध: ट्रम्प ने चीन पर विशाल व्यापार घाटे का आरोप लगाया और चीन से आयात पर भारी टैरिफ लगाए। उनका लक्ष्य चीनी व्यापार प्रथाओं को बदलना और अमेरिकी कंपनियों के लिए बेहतर अवसर पैदा करना था।
  • ईरान पर प्रतिबंध: परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने के बाद, ट्रम्प ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, ताकि उसे बातचीत की मेज पर लाया जा सके।
  • उत्तर कोरिया के साथ बातचीत: परमाणु निरस्त्रीकरण की मांग के बदले में, ट्रम्प ने उत्तर कोरिया पर से कुछ प्रतिबंध हटाने या आर्थिक सहायता का प्रस्ताव दिया।

थाईलैंड और कंबोडिया के मामले में, ट्रम्प का दावा है कि उन्होंने इन देशों को अपने बीच के मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रेरित करने हेतु अमेरिका के साथ उनके व्यापारिक संबंधों का लाभ उठाया।

भारत-पाकिस्तान संदर्भ: एक तुलनात्मक विश्लेषण (The India-Pakistan Context: A Comparative Analysis)

ट्रम्प द्वारा भारत-पाकिस्तान के संदर्भ का उल्लेख, उनके दावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

ट्रम्प का दावा: ट्रम्प ने कई बार कहा है कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर जैसे जटिल मुद्दों पर मध्यस्थता करने की पेशकश करते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि उनके हस्तक्षेप से दोनों देशों के बीच तनाव कम हुआ है।

“मैंने प्रधान मंत्री (नरेंद्र) मोदी से बात की, और मैंने प्रधान मंत्री (इमरान) खान से बात की, और वे ठीक हैं। हम भारत और पाकिस्तान के बीच समस्या को सुलझा रहे हैं।”

वास्तविकता क्या है?

  • कश्मीरी मुद्दा: कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, और भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता को स्पष्ट रूप से खारिज करती रही है। भारत का मानना ​​है कि सभी द्विपक्षीय मुद्दे पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत से ही हल किए जाने चाहिए।
  • अमेरिका की भूमिका: जबकि अमेरिका जैसे प्रमुख राष्ट्रों की टिप्पणियाँ या उनके द्वारा मध्यस्थता की पेशकश को महत्व दिया जाता है, वास्तविक समाधान अक्सर द्विपक्षीय बातचीत और दोनों देशों की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।
  • व्यापारिक संबंध: भारत का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव या पाकिस्तान का प्रभाव, ट्रम्प के दावों में एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है, लेकिन यह भारत-पाक संबंधों को सीधे तौर पर “स्थिर” करने का प्राथमिक कारण नहीं है।

भारत-पाक बनाम थाईलैंड-कंबोडिया:

  • गंभीरता: भारत-पाकिस्तान के संबंध ऐतिहासिक रूप से अधिक तनावपूर्ण रहे हैं, जिनमें सीमा पार आतंकवाद, युद्धों का इतिहास और परमाणु हथियारों का खतरा शामिल है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच के मुद्दे (जैसे सीमा विवाद) उतने गंभीर या व्यापक नहीं हैं।
  • ट्रम्प का प्रभाव: यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या ट्रम्प का ‘व्यापार दबाव’ वास्तव में थाईलैंड-कंबोडिया के मतभेदों को सुलझाने में प्रभावी रहा है, या क्या वे मतभेद वैसे भी कम होने वाले थे। भारत-पाकिस्तान के मामले में, अमेरिकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव मौजूद है, लेकिन इसके कारण कई गुना अधिक जटिल हैं।

थाईलैंड-कंबोडिया संबंध: एक संक्षिप्त अवलोकन (Thailand-Cambodia Relations: A Brief Overview)

थाईलैंड और कंबोडिया, दोनों दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित देश हैं और आसियान (ASEAN) के सदस्य हैं। ऐतिहासिक रूप से, उनके बीच:

  • सीमा विवाद: कुछ क्षेत्रों में सीमांकन को लेकर मतभेद रहे हैं।
  • राजनीतिक उठापटक: दोनों देशों ने अपने आंतरिक राजनीतिक विकास के दौरान कभी-कभी एक-दूसरे के प्रति अलग-अलग रुख अपनाया है।
  • सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध: बावजूद इसके, दोनों देशों के बीच मजबूत सांस्कृतिक, पर्यटन और आर्थिक संबंध भी हैं।

ट्रम्प के दावे के अनुसार, इन देशों ने अमेरिका के आर्थिक प्रभाव के चलते अपने मतभेदों को कम करने का प्रयास किया है। यह कहना मुश्किल है कि क्या यह पूरी तरह से ट्रम्प के दबाव का परिणाम है या क्षेत्र की अपनी भू-राजनीतिक गतिशीलता भी इसमें शामिल है।

‘सम्मान’ की परिभाषा: ट्रम्प का व्यक्तिगत एजेंडा? (The Definition of ‘Honour’: Trump’s Personal Agenda?)

ट्रम्प द्वारा इसे “सम्मान” कहना, उनकी प्रचार शैली का हिस्सा है। वे अपनी कूटनीतिक या व्यावसायिक सफलताओं को व्यक्तिगत गौरव का विषय बनाते हैं। उनके लिए, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना, विशेष रूप से अपनी विशेष शैली में, उनकी नेतृत्व क्षमता को साबित करने का एक तरीका है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता:

  • नेतृत्व शैली का विश्लेषण: ट्रम्प जैसे नेताओं की शैली का अध्ययन, कूटनीति के विभिन्न रूपों को समझने में मदद करता है।
  • ‘डील-मेकिंग’ का प्रभाव: क्या यह ‘डील-मेकिंग’ दृष्टिकोण वास्तव में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता लाता है, या यह केवल अल्पकालिक सौदेबाजी है?
  • अमेरिका की विदेश नीति: अमेरिकी विदेश नीति में आर्थिक साधनों का बढ़ता महत्व, विशेष रूप से ट्रम्प प्रशासन के तहत, एक महत्वपूर्ण विषय है।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ (Challenges and Criticisms)

ट्रम्प के इस दृष्टिकोण की कई आलोचनाएँ भी हैं:

  • अतिशयोक्ति: अक्सर उनके दावों को अतिरंजित माना जाता है। वे उन मुद्दों पर भी श्रेय ले लेते हैं जो शायद पहले से ही सुधर रहे थे या जिनका समाधान उनके हस्तक्षेप से स्वतंत्र था।
  • अस्थिरता: ‘व्यापार युद्ध’ और दबाव की रणनीति से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और संबंधों में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
  • पारंपरिक कूटनीति की उपेक्षा: यह दृष्टिकोण अक्सर कूटनीति के पारंपरिक तत्वों, जैसे संवाद, विश्वास निर्माण और दीर्घकालिक संबंधों को कमजोर कर सकता है।
  • “सम्मान” का औचित्य: क्या किसी राष्ट्र के आंतरिक मामलों या अंतर्राष्ट्रीय शांति में योगदान को व्यक्तिगत ‘सम्मान’ का विषय बनाना उचित है? यह राष्ट्रवाद और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के बीच की महीन रेखा को धुंधला करता है।

UPSC परीक्षा के लिए क्या महत्वपूर्ण है? (What’s Important for UPSC Exam?)

यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए प्रासंगिक है:

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठन: आसियान (ASEAN) की भूमिका।
  • भू-राजनीति: दक्षिण-पूर्व एशिया में सुरक्षा और आर्थिक गतिशीलता।
  • समसामयिक मुद्दे: अमेरिका की विदेश नीति, व्यापार युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के तरीके।
  • भारत की विदेश नीति: पाकिस्तान के साथ संबंध, भारत-अमेरिका संबंध, कश्मीर पर भारत का रुख।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  • GS-I (भूगोल/समाज): दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच संबंध।
  • GS-II (शासन/अंतर्राष्ट्रीय संबंध):
    • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अमेरिका की भूमिका और प्रभाव।
    • आर्थिक कूटनीति और ‘सॉफ्ट पावर’ बनाम ‘हार्ड पावर’।
    • प्रमुख शक्तियों की विदेश नीति का विश्लेषण (विशेष रूप से अमेरिका)।
    • कूटनीति के बदलते आयाम: क्या व्यापार ही नई कूटनीति है?
    • भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता और उसमें बाहरी शक्तियों की भूमिका।
  • GS-III (अर्थव्यवस्था): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार युद्धों का प्रभाव, आर्थिक दबाव के उपकरण।

भविष्य की राह (Future Path)

ट्रम्प की ‘डील-मेकिंग’ कूटनीति, चाहे वह कितनी भी विवादास्पद हो, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मॉडल के रूप में उभर रही है। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या अन्य राष्ट्र भी इसी तरह से आर्थिक शक्ति का उपयोग करके कूटनीतिक सफलताएँ प्राप्त कर सकते हैं।

  • संतुलित दृष्टिकोण: पारंपरिक कूटनीति और आर्थिक साधनों के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा।
  • स्थिरता का महत्व: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दीर्घकालिक स्थिरता और विश्वास निर्माण के लिए एक अधिक समावेशी और सहयोगात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है।
  • बहुध्रुवीय विश्व: आज के बहुध्रुवीय विश्व में, किसी एक देश की आर्थिक शक्ति का प्रभाव सीमित हो सकता है, और कूटनीति के अन्य रूप अधिक प्रभावी हो सकते हैं।

थाईलैंड-कंबोडिया का मामला, भले ही छोटा लगे, यह दर्शाता है कि कैसे एक बड़ी शक्ति, अपनी आर्थिक नीतियों के माध्यम से, क्षेत्रीय गतिशीलता को प्रभावित करने का प्रयास कर सकती है। ट्रम्प के लिए यह ‘सम्मान’ की बात हो सकती है, लेकिन वैश्विक मंच पर इसका प्रभाव और प्रभावशीलता हमेशा जांच का विषय रहेगी। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विभिन्न कूटनीतिक रणनीतियों के विश्लेषण और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को समझने का एक उत्कृष्ट केस स्टडी है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा “व्यापार दबाव” का उपयोग किस प्रकार की कूटनीति का उदाहरण है?
    1. सॉफ्ट पावर कूटनीति
    2. हार्ड पावर कूटनीति
    3. आर्थिक कूटनीति
    4. सांस्कृतिक कूटनीति

    उत्तर: (c) आर्थिक कूटनीति
    व्याख्या: व्यापार दबाव, जिसमें टैरिफ, प्रतिबंध आदि शामिल हैं, आर्थिक साधनों का उपयोग करके राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक रूप है, जिसे आर्थिक कूटनीति कहते हैं।

  2. प्रश्न: आसियान (ASEAN) का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
    1. बैंकाक, थाईलैंड
    2. जकार्ता, इंडोनेशिया
    3. कुआलालंपुर, मलेशिया
    4. सिंगापुर

    उत्तर: (b) जकार्ता, इंडोनेशिया
    व्याख्या: आसियान का सचिवालय जकार्ता, इंडोनेशिया में स्थित है।

  3. प्रश्न: भारत का कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के संबंध में आधिकारिक रुख क्या है?
    1. भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का स्वागत करता है।
    2. भारत द्विपक्षीय वार्ताओं को प्राथमिकता देता है और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता को अक्सर अस्वीकार करता है।
    3. भारत केवल संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से मध्यस्थता स्वीकार करेगा।
    4. भारत केवल तभी मध्यस्थता स्वीकार करेगा जब पाकिस्तान आतंकवाद बंद कर दे।

    उत्तर: (b) भारत द्विपक्षीय वार्ताओं को प्राथमिकता देता है और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता को अक्सर अस्वीकार करता है।
    व्याख्या: भारत का मानना ​​है कि कश्मीर से संबंधित सभी मुद्दे पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रूप से हल किए जाने चाहिए।

  4. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा देश वर्तमान में आसियान (ASEAN) का सदस्य नहीं है?
    1. वियतनाम
    2. म्यांमार
    3. ईस्ट तिमोर
    4. लाओस

    उत्तर: (c) ईस्ट तिमोर
    व्याख्या: ईस्ट तिमोर (तिमोर-लेस्ते) आसियान का सदस्य नहीं है, हालांकि यह पर्यवेक्षक का दर्जा रखता है और सदस्यता के लिए आवेदन कर चुका है।

  5. प्रश्न: “सॉफ्ट पावर” कूटनीति का तात्पर्य है:
    1. सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
    2. आर्थिक दबाव का उपयोग
    3. संस्कृति, मूल्य और नीतियों के माध्यम से आकर्षण पैदा करना
    4. धमकी या बल का प्रयोग

    उत्तर: (c) संस्कृति, मूल्य और नीतियों के माध्यम से आकर्षण पैदा करना
    व्याख्या: सॉफ्ट पावर वह क्षमता है जिसके द्वारा एक देश अपनी संस्कृति, राजनीतिक मूल्यों और विदेश नीतियों के आकर्षण के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करता है।

  6. प्रश्न: डोनाल्ड ट्रम्प की कूटनीतिक शैली को अक्सर किस शब्द से जोड़ा जाता है?
    1. बहुपक्षीय सहयोग
    2. ‘डील-मेकिंग’ या लेन-देन-आधारित कूटनीति
    3. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
    4. निःशस्त्रीकरण वार्ता

    उत्तर: (b) ‘डील-मेकिंग’ या लेन-देन-आधारित कूटनीति
    व्याख्या: ट्रम्प को अक्सर सौदेबाजी और व्यक्तिगत लाभ-हानि के आधार पर निर्णय लेने के लिए जाना जाता था, जिसे ‘डील-मेकिंग’ कूटनीति कहा जाता है।

  7. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा दक्षिण-पूर्व एशिया में देशों के बीच एक संभावित मुद्दा हो सकता है?
    1. जलवायु परिवर्तन को लेकर असहमतियाँ
    2. सीमा विवाद और राजनीतिक मतभेद
    3. अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग की कमी
    4. डिजिटल साक्षरता में असमानता

    उत्तर: (b) सीमा विवाद और राजनीतिक मतभेद
    व्याख्या: दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से सीमा विवाद और राजनीतिक मतभेद रहे हैं, जैसा कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच भी कुछ हद तक रहा है।

  8. प्रश्न: “व्यापार युद्ध” (Trade War) का सबसे संभावित परिणाम क्या है?
    1. आर्थिक विकास में वृद्धि
    2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि
    3. आर्थिक अस्थिरता और संरक्षणवाद में वृद्धि
    4. घरेलू उद्योगों के लिए कम प्रतिस्पर्धा

    उत्तर: (c) आर्थिक अस्थिरता और संरक्षणवाद में वृद्धि
    व्याख्या: व्यापार युद्धों में टैरिफ का आदान-प्रदान शामिल होता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित होता है, आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है और संरक्षणवाद को बढ़ावा मिलता है।

  9. प्रश्न: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का मुख्य कारण क्या था?
    1. चीन का अमेरिकी संस्कृति को बढ़ावा देना
    2. अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा और व्यापार प्रथाओं पर चिंताएँ
    3. चीन की सैन्य आक्रामकता
    4. चीन द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन

    उत्तर: (b) अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा और व्यापार प्रथाओं पर चिंताएँ
    व्याख्या: ट्रम्प प्रशासन ने चीन के साथ अमेरिका के विशाल व्यापार घाटे और कथित अनुचित व्यापार प्रथाओं को एक प्रमुख मुद्दा बनाया था।

  10. प्रश्न: कूटनीति में “हार्ड पावर” का अर्थ क्या है?
    1. आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग
    2. सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना
    3. सैन्य बल या जबरदस्ती का उपयोग
    4. बातचीत और संवाद

    उत्तर: (c) सैन्य बल या जबरदस्ती का उपयोग
    व्याख्या: हार्ड पावर से तात्पर्य किसी देश की सैन्य और आर्थिक शक्ति से है जिसका उपयोग वह अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए कर सकता है, जिसमें जबरदस्ती या बल का प्रयोग शामिल हो सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपनाई गई ‘लेन-देन-आधारित कूटनीति’ (transactional diplomacy) का विश्लेषण करें। यह पारंपरिक कूटनीति से कैसे भिन्न है और इसके क्या फायदे और नुकसान हैं? (लगभग 150 शब्द)
  2. प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में आर्थिक साधनों (जैसे व्यापार दबाव, प्रतिबंध) की भूमिका पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखें। भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डालें। (लगभग 250 शब्द)
  3. प्रश्न: “कूटनीति में सॉफ्ट पावर और हार्ड पावर के बीच संतुलन बनाए रखना किसी भी देश की विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण है।” इस कथन का समर्थन या खंडन करते हुए, समकालीन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से उदाहरण दें। (लगभग 250 शब्द)
  4. प्रश्न: थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संभावित तनाव को दूर करने में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के ‘व्यापार दबाव’ के प्रभाव का मूल्यांकन करें। यह भारत-पाकिस्तान संबंधों पर बाहरी हस्तक्षेप की भूमिका से कैसे भिन्न हो सकता है? (लगभग 250 शब्द)

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