भारत-चीन संबंध: दुनिया के लिए क्यों अहम है तनाव में कमी? SCO बैठक का विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में गोवा में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक संपन्न हुई, जिसने वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा। इस बैठक के दौरान, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष किन गैंग के बीच द्विपक्षीय मुलाकात हुई, जिसमें भारत-चीन संबंधों पर गहन चर्चा हुई। चीनी विदेश मंत्री वांग यी (जो अब विदेश नीति आयोग के निदेशक हैं, किन गैंग ने उनकी जगह ली है) ने इस बैठक के बाद एक महत्वपूर्ण बयान दिया कि भारत और चीन के संबंध न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सीमा पर तनाव कम हुआ है, हालाँकि कुछ मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत-चीन संबंधों में डोकलाम और गलवान जैसी घटनाओं के बाद से काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है। इस मुलाकात और दिए गए बयानों के निहितार्थों को समझना UPSC उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत की विदेश नीति, क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक संतुलन को गहराई से प्रभावित करते हैं।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO): एक क्षेत्रीय शक्ति का स्तंभ
SCO एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है। इसे 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं द्वारा शंघाई में स्थापित किया गया था। भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके पूर्ण सदस्य बने।
SCO के मुख्य उद्देश्य:
- सदस्य देशों के बीच विश्वास और सद्भाव को मजबूत करना।
- क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना।
- आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयासों को बढ़ावा देना (इसके लिए SCO क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना, RATS, महत्वपूर्ण है)।
- आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना।
- क्षेत्र में एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत नई अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था स्थापित करना।
भारत के लिए SCO का महत्व:
SCO भारत को कई रणनीतिक लाभ प्रदान करता है:
- क्षेत्रीय संपर्क: यह मध्य एशियाई देशों तक पहुंच बनाने का एक महत्वपूर्ण मंच है, जो ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है।
- आतंकवाद का मुकाबला: RATS के माध्यम से आतंकवाद से लड़ने में सहयोग मिलता है, जो भारत के लिए एक बड़ी चिंता है।
- चीन और पाकिस्तान के साथ जुड़ाव: SCO एकमात्र बड़ा बहुपक्षीय मंच है जहाँ भारत सीधे चीन और पाकिस्तान के साथ एक ही मेज पर बैठता है, जो संकट प्रबंधन और संवाद के अवसर प्रदान करता है।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: यह भारत को बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण में योगदान करने का अवसर देता है, जहाँ पश्चिमी प्रभुत्व कम हो रहा है।
- भू-रणनीतिक संतुलन: भारत के लिए यह अमेरिका-केंद्रित गठबंधनों और चीन-रूस-केंद्रित समूहों के बीच एक संतुलन साधने का मंच भी है।
“शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सिर्फ एक क्षेत्रीय समूह नहीं, बल्कि एशिया के उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य का एक दर्पण है, जहाँ भारत अपनी पहचान को मजबूत कर रहा है।”
भारत-चीन संबंध: एक जटिल और बहुआयामी गाथा
भारत और चीन, एशिया के दो विशालकाय देश, दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले राष्ट्र और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनके संबंध एक जटिल tapestry की तरह हैं, जिसमें सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष के धागे बुने हुए हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ से प्रतिद्वंद्विता तक
- प्राचीन संबंध: रेशम मार्ग और बौद्ध धर्म के माध्यम से सदियों से सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं।
- स्वतंत्रता के बाद: 1950 के दशक में ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा बुलंद था और ‘पंचशील’ सिद्धांतों पर सहमति बनी।
- 1962 का युद्ध: सीमा विवाद के कारण हुआ यह युद्ध संबंधों में एक गहरा घाव छोड़ गया, जिससे अविश्वास की नींव पड़ी।
- संबंधों का सामान्यीकरण: 1988 में राजीव गांधी की ऐतिहासिक बीजिंग यात्रा ने संबंधों को पटरी पर लाने की शुरुआत की।
- आर्थिक उभार: 1990 के दशक के बाद से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से वृद्धि हुई, जिससे व्यापारिक संबंध मजबूत हुए, लेकिन साथ ही प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी।
तनाव के मुख्य बिंदु: अनसुलझी पहेलियाँ
भारत-चीन संबंधों को कई ऐसे मुद्दे प्रभावित करते हैं, जो अक्सर तनाव का कारण बनते हैं:
- सीमा विवाद:
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC): यह 3,488 किलोमीटर लंबी एक अस्पष्ट सीमा है, जहाँ दोनों देशों के बीच अवधारणाओं का अंतर है।
- पश्चिमी क्षेत्र: अक्साई चिन पर चीन का नियंत्रण और लद्दाख में कई क्षेत्रों पर भारत का दावा।
- पूर्वी क्षेत्र: अरुणाचल प्रदेश पर चीन का ‘दक्षिणी तिब्बत’ के रूप में दावा।
- हालिया गतिरोध: डोकलाम (2017), गलवान घाटी (2020) और तवांग (2022) में हुई झड़पें सीमा पर संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC): BRI के तहत यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत को आपत्ति है क्योंकि यह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): भारत ने BRI का बहिष्कार किया है, क्योंकि यह राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान नहीं करता।
- व्यापार असंतुलन: चीन के पक्ष में भारी व्यापार असंतुलन भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत चीनी सामानों का एक बड़ा आयातक है, जबकि भारत का निर्यात चीन में अपेक्षाकृत कम है।
- वैश्विक मंचों पर असहयोग:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता पर चीन का अस्पष्ट रुख।
- परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत की सदस्यता को चीन द्वारा वीटो करना।
- आतंकवादी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में नामित आतंकवादी घोषित करने के प्रयासों को चीन द्वारा अवरुद्ध करना (जो बाद में हट गया)।
- रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
- हिंद महासागर में चीन की उपस्थिति: ‘मोतियों की माला’ (String of Pearls) रणनीति के तहत श्रीलंका (हंबनटोटा), पाकिस्तान (ग्वादर) और म्यांमार (क्याउक्प्यु) में बंदरगाहों का विकास भारत के लिए सामरिक चुनौती है।
- क्वाड (QUAD): भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के इस समूह को चीन अपने प्रभाव को कम करने के प्रयास के रूप में देखता है।
- तिब्बत मुद्दा: दलाई लामा और तिब्बती समुदाय को भारत में शरण देना चीन के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है।
सहयोग के क्षेत्र: उम्मीद की किरणें
तनाव के बावजूद, भारत और चीन के बीच सहयोग के कई महत्वपूर्ण क्षेत्र भी मौजूद हैं:
- बहुपक्षीय मंच: BRICS, SCO, G20, जलवायु परिवर्तन पर UNFCCC जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए मंचों पर दोनों देश अक्सर मिलकर काम करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: विकासशील देशों के रूप में, दोनों पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने और विकसित देशों से अधिक जलवायु वित्तपोषण प्राप्त करने के लिए एकजुटता दिखाते हैं।
- वैश्विक शासन सुधार: दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करते हैं और संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार चाहते हैं।
- व्यापार और निवेश: विशाल जनसंख्या और बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के कारण, दोनों देश एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं, भले ही व्यापार संतुलन असंतुलित हो।
- आतंकवाद-रोधी सहयोग: SCO के भीतर RATS के माध्यम से आतंकवाद से लड़ने में सहयोग।
“भारत और चीन के संबंध एक रस्सी पर चलने वाले नट की तरह हैं – संतुलन बनाना अनिवार्य है, क्योंकि जरा सी चूक दोनों के साथ-साथ विश्व के लिए भी खतरनाक हो सकती है।”
वांग यी-जयशंकर बैठक के निहितार्थ: सीमा पर शांति, वैश्विक संबंधों में नए अध्याय की तलाश
SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान जयशंकर और वांग यी की मुलाकात अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह बैठक उन प्रयासों का हिस्सा है जो 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल करने और सीमा पर तनाव कम करने के लिए किए जा रहे हैं।
प्रमुख निहितार्थ:
- संवाद का महत्व: यह मुलाकात इस बात का संकेत है कि दोनों देश उच्च-स्तरीय संवाद बनाए रखने के इच्छुक हैं, भले ही संबंध चुनौतीपूर्ण हों।
- तनाव कम करने का संकेत: वांग यी का यह बयान कि सीमा पर तनाव कम हुआ है, एक सकारात्मक संकेत है। यह दर्शाता है कि सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर चल रही बातचीत का कुछ असर हो रहा है। हालाँकि, ‘पूरी तरह से सामान्यीकरण’ की बात अभी दूर है।
- सीमा मुद्दों पर जोर: जयशंकर ने स्पष्ट किया कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता नहीं होगी, तब तक चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। यह भारत की सुसंगत स्थिति को दोहराता है।
- वैश्विक जिम्मेदारी: वांग यी का यह कहना कि भारत-चीन संबंध दुनिया के लिए अहम हैं, दोनों देशों की बढ़ती वैश्विक भूमिका को स्वीकार करता है। यह भी संकेत देता है कि चीन, भारत के साथ संबंधों में स्थिरता को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण मानता है।
- विश्वास बहाली के उपाय (CBMs): यह बैठक भविष्य में और अधिक CBMs के लिए मंच तैयार कर सकती है, जैसे कि सेनाओं की वापसी, गश्त के प्रोटोकॉल का पालन और सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास पर संयम।
- बहुपक्षीय मंच का सदुपयोग: SCO जैसे मंच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा के लिए एक तटस्थ और सुविधाजनक पृष्ठभूमि प्रदान करते हैं।
भारत-चीन संबंधों का वैश्विक महत्व: क्यों दुनिया के लिए अहम हैं ये संबंध?
भारत और चीन के संबंध केवल द्विपक्षीय नहीं हैं; उनका प्रभाव वैश्विक भू-राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिदृश्य पर पड़ता है।
- एशियाई स्थिरता: एशिया की शांति और स्थिरता काफी हद तक इन दो एशियाई दिग्गजों के संबंधों पर निर्भर करती है। कोई भी बड़ा संघर्ष पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था: दोनों दुनिया की सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से हैं। इनके बीच का सहयोग वैश्विक व्यापार, निवेश और विकास को गति दे सकता है। तनाव की स्थिति वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकती है और आर्थिक अनिश्चितता पैदा कर सकती है।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: भारत और चीन दोनों ही एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के पैरोकार हैं, जहाँ शक्ति का संतुलन केवल पश्चिमी देशों के पास न हो। इनके बीच का सहयोग इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन: दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से होने के नाते, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में इनके बीच का सहयोग वैश्विक प्रयासों के लिए अनिवार्य है।
- भू-राजनीतिक संतुलन: अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ जैसे अन्य प्रमुख खिलाड़ियों के साथ इनके संबंध वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करते हैं।
- क्षेत्रीय परियोजनाएं: BRI जैसी परियोजनाएं क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे को प्रभावित करती हैं, और भारत-चीन सहयोग/प्रतिस्पर्धा इनका भविष्य तय करती है।
चुनौतियाँ और आगे की राह: संतुलन की कला
हालांकि SCO बैठक से कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं, भारत-चीन संबंधों में अभी भी कई चुनौतियाँ और जटिलताएँ हैं।
चुनौतियाँ:
- सीमा पर यथास्थिति की बहाली: सबसे बड़ी चुनौती LAC पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति को पूरी तरह से बहाल करना है। कुछ क्षेत्रों से सेना की वापसी हुई है, लेकिन देपसांग और डेमचोक जैसे ‘घर्षण बिंदु’ अभी भी अनसुलझे हैं।
- विश्वास का अभाव: 1962 के युद्ध और हाल की झड़पों ने दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास को जन्म दिया है। विश्वास बहाली के लिए निरंतर और ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
- रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव, वैश्विक शासन में भूमिका और क्षेत्रीय नेतृत्व के लिए उनकी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता बनी रहेगी।
- व्यापार असंतुलन: चीन के पक्ष में बढ़ता व्यापार घाटा भारत के आर्थिक हितों के लिए एक चुनौती है और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को भी जन्म देता है (जैसे चीनी प्रौद्योगिकी कंपनियों की घुसपैठ)।
- सूचना युद्ध और दुष्प्रचार: दोनों देशों में राष्ट्रवादी नैरेटिव और दुष्प्रचार संबंधों को और जटिल बनाते हैं।
- आंतरिक राजनीति का प्रभाव: दोनों देशों की घरेलू राजनीतिक मजबूरियाँ भी उनकी विदेश नीति को प्रभावित करती हैं।
आगे की राह (The Way Forward):
भारत-चीन संबंधों को स्थिर और रचनात्मक दिशा में ले जाने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
- तीन ‘परस्पर’ का सिद्धांत: विदेश मंत्री जयशंकर ने संबंधों की बहाली के लिए तीन ‘परस्पर’ (परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित) के सिद्धांत पर जोर दिया है। इन पर आधारित नीति ही आगे बढ़ सकती है।
- सीमा प्रबंधन को मजबूत करना: सीमा पर शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी मौजूदा समझौतों का पालन करना और नए विश्वास-बहाली उपायों (CBMs) को लागू करना। इसमें सैन्य और कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से नियमित संवाद शामिल है।
- पारदर्शिता और संवाद: विशेषकर सीमा मुद्दों पर अधिक पारदर्शिता और निरंतर उच्च-स्तरीय संवाद बनाए रखना।
- व्यापार असंतुलन को संबोधित करना: भारत को चीन में अपने उत्पादों और सेवाओं के लिए अधिक बाजार पहुंच बनाने पर जोर देना चाहिए, साथ ही घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आयात पर निर्भरता कम हो।
- बहुपक्षीय मंचों का सदुपयोग: BRICS, SCO और G20 जैसे मंचों का उपयोग द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करने और वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग करने के लिए करना।
- पीपल-टू-पीपल कनेक्ट: सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पर्यटन और शिक्षा के माध्यम से लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना, ताकि एक-दूसरे की संस्कृति और दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
- ‘सह-अस्तित्व’ से ‘सह-विकास’ की ओर: दोनों देशों को केवल साथ रहने से आगे बढ़कर उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए जहाँ वे एक-दूसरे के विकास में योगदान कर सकते हैं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, महामारी प्रतिक्रिया और वैश्विक शासन में सुधार।
निष्कर्ष: सतर्क आशावाद का दौर
SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान जयशंकर और वांग यी की मुलाकात ने भारत-चीन संबंधों में एक नया अध्याय खोला है, जो सतर्क आशावाद से भरा है। वांग यी का बयान कि भारत-चीन संबंध दुनिया के लिए अहम हैं और सीमा पर तनाव कम हुआ है, एक सकारात्मक संकेत है। यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि भारत और चीन के बीच के रिश्ते जटिल हैं और गहरे ऐतिहासिक, भौगोलिक और वैचारिक मतभेदों से प्रभावित हैं।
हालांकि, दोनों देशों की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जिम्मेदारियों को देखते हुए, उनके संबंधों में स्थिरता और सहयोग न केवल उनके अपने विकास के लिए, बल्कि पूरे एशिया और वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए अनिवार्य है। चुनौतियाँ बनी रहेंगी, लेकिन निरंतर संवाद, परस्पर सम्मान और साझा हितों पर ध्यान केंद्रित करके ही इन दो एशियाई शक्तियों के बीच एक अधिक स्थिर और उत्पादक संबंध का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। यह एक मैराथन है, कोई स्प्रिंट नहीं, और इसमें धैर्य, कूटनीति और दृढ़ता की आवश्यकता होगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)
- प्रश्न 1: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- SCO की स्थापना 2001 में हुई थी और भारत 2017 में इसका पूर्ण सदस्य बना।
- SCO के सदस्य देशों में केवल मध्य एशियाई गणराज्य, चीन और रूस शामिल हैं।
- SCO का एक प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) के माध्यम से आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से निपटना है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल a और b
(b) केवल b और c
(c) केवल a और c
(d) a, b और c
उत्तर: (c)
व्याख्या: कथन (a) सही है। SCO की स्थापना 2001 में हुई थी और भारत (पाकिस्तान के साथ) 2017 में पूर्ण सदस्य बना। कथन (b) गलत है। SCO के सदस्य देशों में चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्य (कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान) शामिल हैं। ईरान भी जल्द ही इसका सदस्य बनने वाला है। कथन (c) सही है। RATS आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ SCO का एक महत्वपूर्ण अंग है। - प्रश्न 2: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह भारत और चीन के बीच एक सीमांकन रेखा है जिसका कानूनी तौर पर सीमांकन किया गया है।
- यह मैकमोहन रेखा से भिन्न है, जो भारत-म्यांमार सीमा का निर्धारण करती है।
- गलवान घाटी, जहाँ 2020 में भारत और चीन के बीच झड़प हुई थी, LAC के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल a और b
(b) केवल c
(c) केवल a और c
(d) a, b और c
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन (a) गलत है। LAC एक स्पष्ट रूप से सीमांकित और कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त सीमा नहीं है, बल्कि एक वास्तविक नियंत्रण रेखा है जिस पर दोनों देशों की अवधारणाएँ अलग-अलग हैं। कथन (b) गलत है। मैकमोहन रेखा भारत-चीन सीमा के पूर्वी हिस्से का निर्धारण करती है, न कि भारत-म्यांमार सीमा का। कथन (c) सही है। गलवान घाटी लद्दाख में LAC के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। - प्रश्न 3: भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?
(a) भारत का चीन के साथ व्यापार अधिशेष है।
(b) चीन का भारत के साथ व्यापार अधिशेष है।
(c) दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन लगभग बराबर है।
(d) भारत मुख्य रूप से चीन को निर्मित वस्तुओं का निर्यात करता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत का चीन के साथ भारी व्यापार घाटा (चीन के पक्ष में व्यापार अधिशेष) है। भारत मुख्य रूप से चीन से निर्मित वस्तुओं और इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात करता है, जबकि भारत का चीन को निर्यात अपेक्षाकृत कम और ज्यादातर प्राथमिक वस्तुओं का होता है। - प्रश्न 4: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- CPEC चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है।
- CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है।
- भारत ने CPEC में अपनी भागीदारी की घोषणा की है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल a
(b) केवल a और b
(c) केवल b और c
(d) a, b और c
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन (a) सही है। CPEC, BRI का एक महत्वपूर्ण अंग है। कथन (b) सही है। CPEC पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है, जिस पर भारत की संप्रभुता का दावा है। कथन (c) गलत है। भारत ने CPEC का कड़ा विरोध किया है क्योंकि यह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है और इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है। - प्रश्न 5: ‘मोतियों की माला’ (String of Pearls) रणनीति पद अक्सर निम्नलिखित में से किस संदर्भ में प्रयोग किया जाता है?
(a) भारत के समुद्री व्यापार मार्गों का विकास
(b) चीन द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में विकसित किए जा रहे बंदरगाहों और नौसैनिक ठिकानों की श्रृंखला
(c) जापान की प्रशांत महासागर में नौसैनिक उपस्थिति
(d) अमेरिका की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा गठबंधन
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘मोतियों की माला’ (String of Pearls) पद का उपयोग चीन द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में (जैसे श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, अफ्रीका के कुछ हिस्सों में) रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाहों और नौसैनिक सुविधाओं के विकास का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसे भारत अपने लिए एक संभावित घेराबंदी या सुरक्षा चुनौती के रूप में देखता है। - प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन-सा देश शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का संस्थापक सदस्य नहीं है?
(a) रूस
(b) चीन
(c) भारत
(d) कजाकिस्तान
उत्तर: (c)
व्याख्या: SCO की स्थापना 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी। भारत और पाकिस्तान 2017 में पूर्ण सदस्य बने, इसलिए भारत संस्थापक सदस्य नहीं है। - प्रश्न 7: हाल ही में चर्चा में रहा ‘तीन ‘परस्पर’ का सिद्धांत’ किस संदर्भ में विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा दिया गया था?
(a) भारत-अमेरिका संबंध
(b) भारत-चीन संबंध
(c) भारत-रूस संबंध
(d) भारत-पाकिस्तान संबंध
उत्तर: (b)
व्याख्या: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए ‘परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित’ के तीन ‘परस्पर’ सिद्धांतों पर जोर दिया है। - प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन-सा बहुपक्षीय संगठन भारत और चीन दोनों की सदस्यता रखता है?
- क्वाड (QUAD)
- एशियाई बुनियादी ढांचा निवेश बैंक (AIIB)
- ब्रिक्स (BRICS)
- नाटो (NATO)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल a और b
(b) केवल b और c
(c) केवल a, b और c
(d) a, b, c और d
उत्तर: (b)
व्याख्या: QUAD में भारत सदस्य है लेकिन चीन नहीं है। NATO में न तो भारत और न ही चीन सदस्य हैं। AIIB और BRICS में भारत और चीन दोनों सदस्य हैं। - प्रश्न 9: भारत-चीन सीमा विवाद के पूर्वी क्षेत्र से संबंधित कौन-सी रेखा है?
(a) रेडक्लिफ रेखा
(b) डूरंड रेखा
(c) मैकमोहन रेखा
(d) नियंत्रण रेखा (LoC)
उत्तर: (c)
व्याख्या: मैकमोहन रेखा भारत-चीन सीमा के पूर्वी क्षेत्र (मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश) से संबंधित है। रेडक्लिफ रेखा भारत-पाकिस्तान (और भारत-बांग्लादेश) सीमा है। डूरंड रेखा पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा है। नियंत्रण रेखा (LoC) भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में है। - प्रश्न 10: निम्नलिखित में से किस घटना के बाद भारत और चीन के बीच संबंधों में गंभीर गिरावट आई, जिसके बाद दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय सैन्य और कूटनीतिक वार्ता की आवश्यकता पड़ी?
(a) डोकलाम गतिरोध (2017)
(b) गलवान घाटी झड़प (2020)
(c) तवांग झड़प (2022)
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: डोकलाम गतिरोध, गलवान घाटी झड़प और तवांग झड़प तीनों ने भारत-चीन संबंधों में तनाव को बढ़ाया है और इन घटनाओं के बाद सैन्य व कूटनीतिक स्तर पर गहन बातचीत की आवश्यकता पड़ी है ताकि सीमा पर शांति और स्थिरता बहाल की जा सके। हालांकि, गलवान झड़प ने सबसे गंभीर सैन्य और मानवीय क्षति पहुंचाई थी, जिससे संबंधों में ऐतिहासिक गिरावट आई।
मुख्य परीक्षा (Mains)
(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)
- “भारत-चीन संबंध एक जटिल गाथा है जिसमें सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष तीनों शामिल हैं।” इस कथन के आलोक में, दोनों देशों के बीच तनाव के प्रमुख बिंदुओं और सहयोग के संभावित क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिए। भारत के लिए इस जटिल संबंध को संतुलित करना क्यों आवश्यक है? (250 शब्द)
- हाल ही में संपन्न SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुई मुलाकात के निहितार्थों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। सीमा पर तनाव कम होने के वांग यी के बयान के बावजूद, भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने के मार्ग में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? (250 शब्द)
- “भारत और चीन के संबंध केवल द्विपक्षीय नहीं हैं, बल्कि उनके भू-राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव वैश्विक स्तर पर महसूस किए जाते हैं।” इस कथन की विवेचना कीजिए और वैश्विक स्थिरता बनाए रखने में दोनों देशों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालिए। (150 शब्द)
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में उभरा है। भारत के लिए SCO की सदस्यता के सामरिक महत्व का विश्लेषण कीजिए, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा और जुड़ाव के संदर्भ में। (200 शब्द)