भारत की संपत्ति पर बहस: ट्रम्प के बोल, कांग्रेस का हल्लाबोल, PM की खामोशी

भारत की संपत्ति पर बहस: ट्रम्प के बोल, कांग्रेस का हल्लाबोल, PM की खामोशी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में भारतीय राजनीति में एक नई हलचल तब मच गई जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत से संबंधित कुछ दावों ने घरेलू राजनीतिक गलियारों में एक तूफान खड़ा कर दिया। इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने केंद्र सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री से संसद में प्रत्यक्ष जवाब की मांग की। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तीखे शब्दों में कहा कि इस गंभीर मुद्दे पर प्रधानमंत्री को स्वयं जवाब देना होगा और “कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा।” इस घटनाक्रम ने न केवल भारत के आंतरिक राजनीतिक विमर्श को गर्मा दिया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भारत की आर्थिक संप्रभुता पर भी बहस छेड़ दी है। इस पूरे प्रकरण में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का इस्तेमाल भी किया गया है, जो इस बहस को और अधिक जटिल बनाता है। आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं और इसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करते हैं, जो यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका साबित होगा।

पूरा मामला क्या है? (What is the whole matter?)

यह मामला भारत में चल रही चुनावी राजनीति, संपत्ति वितरण पर जारी बहस और अंतर्राष्ट्रीय बयानों के घरेलू राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का एक मिश्रण है।

डोनाल्ड ट्रम्प के दावे: अस्पष्टता और अटकलें (Donald Trump’s Claims: Ambiguity and Speculation)

खबरों के अनुसार, डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की संपत्ति या आर्थिक स्थिति से संबंधित कुछ दावे किए हैं। हालांकि, इन दावों का सटीक विवरण सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नहीं है, लेकिन भारतीय संदर्भ में इन्हें ‘धन के हस्तांतरण’ या ‘भारत से बाहर जा रही संपत्ति’ से जोड़ा जा रहा है। ट्रम्प अक्सर अन्य देशों की आर्थिक नीतियों, व्यापार समझौतों या वित्तीय व्यवहार पर टिप्पणी करते रहे हैं। उनके बयानों को अक्सर चुनावी रैलियों या विदेशी नीतियों को परिभाषित करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है।

“विदेशी नेताओं के बयान, चाहे वे कितने भी अस्पष्ट क्यों न हों, अक्सर घरेलू राजनीति में एक शक्तिशाली हथियार बन जाते हैं, विशेषकर चुनावी मौसम में।”

भारतीय परिप्रेक्ष्य में, ट्रम्प के इन दावों को विपक्ष द्वारा सरकार पर हमला करने या अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसे अंतर्राष्ट्रीय बयानों को अक्सर उनके मूल संदर्भ से हटाकर घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।

कांग्रेस के 3 सवाल: प्रधानमंत्री से सीधी जवाबदेही की मांग (Congress’s 3 Questions: Demand for Direct Accountability from the Prime Minister)

डोनाल्ड ट्रम्प के दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस ने केंद्र सरकार से तीन मुख्य प्रश्न पूछे हैं। यद्यपि इन प्रश्नों का सटीक पाठ सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन वे संभावित रूप से निम्नलिखित विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं:

  1. क्या ट्रम्प के दावे सत्य हैं और यदि हाँ, तो सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया है?
  2. इन दावों से भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि और वित्तीय साख पर क्या असर पड़ेगा?
  3. सरकार ऐसी अंतर्राष्ट्रीय टिप्पणियों का खंडन करने या उनसे निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है?

कांग्रेस का इन सवालों को उठाने का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री को संसद में इस विषय पर स्पष्टीकरण देने के लिए बाध्य करना है। यह विपक्षी दलों द्वारा सरकार को सार्वजनिक मंच पर जवाबदेह ठहराने की एक पारंपरिक संसदीय रणनीति है। ‘जयराम रमेश’ का यह कथन कि “हमें संसद में PM से जवाब चाहिए, कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा,” संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही के महत्व पर जोर देता है। इसका अर्थ है कि केवल संबंधित मंत्री या पार्टी प्रवक्ता ही नहीं, बल्कि सरकार के मुखिया को स्वयं इस गंभीर मुद्दे पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ: एक प्रतीकात्मक युद्ध (Context of ‘Operation Sindoor’: A Symbolic War)

‘ऑपरेशन सिंदूर’ शब्द का उपयोग कांग्रेस द्वारा इस मामले में एक प्रतीकात्मक संदर्भ के रूप में किया गया है। यह शब्द सीधे तौर पर ट्रम्प के दावों या किसी विशिष्ट सरकारी नीति से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह हाल ही में भारत में संपत्ति वितरण और महिलाओं के अधिकारों पर चल रही राजनीतिक बहस से गहरा संबंध रखता है।

  • उत्पत्ति: यह शब्द संभवतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर लगाए गए ‘संपत्ति सर्वेक्षण’ और ‘धन के पुनर्वितरण’ के आरोपों के जवाब में आया है। प्रधानमंत्री ने चुनावी रैलियों में आरोप लगाया था कि कांग्रेस सत्ता में आने पर लोगों की संपत्ति का सर्वेक्षण करेगी और उसे पुनर्वितरित करेगी, जिससे महिलाओं के ‘मंगलसूत्र’ भी खतरे में पड़ सकते हैं।
  • प्रतीकात्मक अर्थ: ‘सिंदूर’ और ‘मंगलसूत्र’ भारतीय महिलाओं के सुहाग और संपत्ति से जुड़े गहरे सांस्कृतिक प्रतीक हैं। कांग्रेस ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उपयोग करके शायद यह संदेश देने की कोशिश की है कि ट्रम्प के दावे या केंद्र सरकार की नीतियां किसी तरह भारतीय महिलाओं की संपत्ति या देश की संपत्ति पर खतरा पैदा कर रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री ने ‘मंगलसूत्र’ के संदर्भ में आरोप लगाए थे। यह एक तरह का ‘शब्दों का युद्ध’ है, जहां राजनीतिक दल सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग कर मतदाताओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
  • चुनावों से संबंध: यह बहस ऐसे समय में उठी है जब देश में आम चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में संपत्ति, धन का हस्तांतरण, और राष्ट्रीय गौरव जैसे मुद्दे चुनावी विमर्श का केंद्र बन जाते हैं।

‘कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा’: संसदीय जवाबदेही का महत्व (Significance of ‘No Substitute Batsman’: The Importance of Parliamentary Accountability)

क्रिकेट की उपमा का उपयोग करते हुए, जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही पर जोर दिया। इसका अर्थ यह है कि जब कोई गंभीर राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा उठता है, तो सरकार के मुखिया, यानी प्रधानमंत्री को स्वयं संसद में आकर विपक्ष के सवालों का जवाब देना चाहिए।

  • संसदीय लोकतंत्र में महत्व: संसदीय लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च मंच होता है जहां सरकार को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है। प्रधानमंत्री की उपस्थिति और उनका सीधा जवाब न केवल विपक्ष को संतुष्ट करता है, बल्कि जनता को भी यह विश्वास दिलाता है कि सरकार मुद्दों को गंभीरता से ले रही है।
  • विश्वास और पारदर्शिता: बड़े मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी या किसी अन्य मंत्री द्वारा जवाब देना अक्सर विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका देता है कि सरकार सच छिपा रही है या मुद्दों से भाग रही है। सीधी जवाबदेही से सरकार में जनता का विश्वास बढ़ता है और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
  • नैतिक और संवैधानिक अनिवार्यता: प्रधानमंत्री सरकार का चेहरा होते हैं और देश की नीतियों के अंतिम रूप से जिम्मेदार होते हैं। इसलिए, राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर उनका सीधा बयान एक नैतिक और कभी-कभी संवैधानिक अनिवार्यता भी बन जाता है।

राजकीय हस्तक्षेप और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (State Intervention and International Relations)

यह घटनाक्रम सिर्फ एक घरेलू राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसके अंतर्राष्ट्रीय संबंध और भारत की संप्रभुता पर भी गहरे निहितार्थ हैं।

ट्रम्प के बयानों का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (International Impact of Trump’s Statements)

  • भारत की छवि: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति (और संभावित भविष्य के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार) के बयान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की आर्थिक स्थिति या वित्तीय अखंडता के बारे में गलत धारणाएँ पैदा कर सकते हैं। यह भारत की निवेश क्षमता, व्यापार संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय साख को प्रभावित कर सकता है।
  • कूटनीतिक संवेदनशीलता: भारत-अमेरिका संबंध रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में, किसी अमेरिकी नेता का बयान, भले ही वह अनौपचारिक हो, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत को इन बयानों का जवाब देते समय सावधानी बरतनी होगी ताकि द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  • वैश्विक धारणा: ट्रम्प जैसे व्यक्तित्व के बयानों को वैश्विक मीडिया में काफी कवरेज मिलती है। यदि इन दावों का स्पष्ट खंडन नहीं किया जाता है, तो वे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों और नीति निर्माताओं के बीच भारत के बारे में गलत धारणाओं को मजबूत कर सकते हैं।

भारत की संप्रभुता और आर्थिक नीति (India’s Sovereignty and Economic Policy)

कोई भी अंतर्राष्ट्रीय बयान जो किसी देश की आर्थिक नीतियों या धन प्रबंधन पर सवाल उठाता है, उसकी संप्रभुता को चुनौती दे सकता है। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और उसे अपनी आर्थिक नीतियों को अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार तय करने का पूरा अधिकार है।

  • आत्मनिर्भरता पर जोर: भारत लगातार आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है। ऐसे में, बाहरी ताकतों द्वारा आर्थिक मामलों में किसी भी तरह की टिप्पणी को राष्ट्रीय गौरव और संप्रभुता पर हमले के रूप में देखा जा सकता है।
  • विकासशील अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ: भारत जैसी तेजी से बढ़ती विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास बनाए रखना महत्वपूर्ण है। बाहरी बयानों से पैदा होने वाले भ्रम से निवेश का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।

प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव (Impact on Indian Diaspora)

दुनिया भर में फैले भारतीय प्रवासी समुदाय पर ऐसे बयानों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है। वे भारत के प्रति अपनी निष्ठा और अपने मूल देश की छवि के प्रति संवेदनशील होते हैं। यदि उनके देश की आर्थिक स्थिति या ईमानदारी पर सवाल उठाया जाता है, तो यह उन्हें प्रभावित कर सकता है और भारत में उनके निवेश या उनके संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

भारतीय राजनीति में धन और संपत्ति का मुद्दा (The Issue of Wealth and Property in Indian Politics)

संपत्ति और उसके वितरण का मुद्दा भारतीय राजनीति में हमेशा से एक गर्म विषय रहा है। यह मुद्दा विभिन्न विचारधाराओं, सामाजिक न्याय की अवधारणाओं और आर्थिक नीतियों के केंद्र में रहा है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective)

  • समाजवाद और राष्ट्रीयकरण: आजादी के बाद, भारत ने समाजवाद से प्रेरित मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया। इस दौरान भूमि सुधार, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, और प्रमुख उद्योगों का सरकारी नियंत्रण जैसे कदम उठाए गए, जिनका उद्देश्य धन के केंद्रीकरण को रोकना और समानता लाना था। ‘गरीबी हटाओ’ जैसे नारे इसी दर्शन का हिस्सा थे।
  • आर्थिक उदारीकरण: 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत को अधिक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर धकेला। इसने संपत्ति निर्माण को बढ़ावा दिया, लेकिन साथ ही धन के असमान वितरण की चिंताएँ भी बढ़ीं।
  • आय असमानता: पिछले कुछ दशकों में भारत में तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद, आय असमानता एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। विभिन्न रिपोर्टें, जैसे कि ऑक्सफैम की रिपोर्ट, भारत में धन के अत्यधिक केंद्रीकरण को उजागर करती हैं, जहाँ शीर्ष 1% आबादी देश की अधिकांश संपत्ति को नियंत्रित करती है।

हालिया बहसें: चुनावी विमर्श का केंद्र (Recent Debates: Hub of Electoral Discourse)

हाल के दिनों में, संपत्ति वितरण पर बहस ने चुनावी विमर्श में एक केंद्रीय स्थान ले लिया है।

  • ‘संपत्ति सर्वेक्षण’ और ‘पुनर्वितरण’: कांग्रेस के घोषणापत्र और उसके नेताओं के बयानों को लेकर यह आरोप लगाया गया कि वे ‘एक्स-रे’ जैसी किसी प्रक्रिया से संपत्ति का सर्वेक्षण करेंगे और उसे ‘पुनर्वितरित’ करेंगे। इस पर सत्ताधारी दल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, खासकर प्रधानमंत्री ने ‘मंगलसूत्र’ और महिलाओं की संपत्ति छीनने के आरोपों के साथ इस मुद्दे को भावनात्मक रंग दिया।
  • विरासत कर (Inheritance Tax): इस बहस के दौरान ‘विरासत कर’ (Estate Duty) को फिर से लागू करने की संभावना पर भी चर्चा हुई, जो भारत में 1985 में समाप्त कर दिया गया था। यह तर्क दिया गया कि ऐसे कर धन के असमान वितरण को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • सामाजिक न्याय बनाम संपत्ति का अधिकार: यह बहस मूल रूप से सामाजिक न्याय (सभी के लिए समानता) और संपत्ति के अधिकार (व्यक्तिगत स्वामित्व) के बीच के तनाव को दर्शाती है। राजनीतिक दल इन दोनों अवधारणाओं को अपने पक्ष में परिभाषित करने का प्रयास करते हैं।

संसद की भूमिका: बहस का सर्वोच्च मंच (Role of Parliament: Supreme Forum for Debate)

भारतीय संसद, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं, देश में नीतियों पर बहस, कानून बनाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का सर्वोच्च मंच है। इस मामले में भी संसद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: संसद में विपक्ष के प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपकरणों का उपयोग कर सरकार को जवाबदेह ठहरा सकता है। कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री से सीधे जवाब की मांग इसी संसदीय परंपरा का हिस्सा है।
  • जनता के मुद्दों को उठाना: संसद जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। ट्रम्प के दावों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दों को उठाकर सांसद जनता की चिंताओं को सरकार तक पहुंचाते हैं।
  • नीति निर्माण में योगदान: संसद में होने वाली बहसें भविष्य की नीतियों को आकार देने में मदद करती हैं। संपत्ति वितरण, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आर्थिक संप्रभुता पर होने वाली चर्चाएँ सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

इस पूरे प्रकरण ने भारतीय राजनीति और शासन के सामने कई चुनौतियाँ पेश की हैं, जिनके लिए एक सुविचारित आगे की राह की आवश्यकता है।

सूचना का अभाव और दुष्प्रचार (Lack of Information and Misinformation)

आधुनिक सूचना युग में, अधूरी या भ्रामक जानकारी (disinformation) तेजी से फैल सकती है। ट्रम्प के दावों की अस्पष्टता और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का उपयोग इस बात का उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक विमर्श तथ्यों से दूर होकर भावनाओं पर आधारित हो सकता है।

  • आगे की राह: सरकार को ऐसे संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय बयानों पर त्वरित और स्पष्ट प्रतिक्रिया देनी चाहिए। मुख्यधारा मीडिया और विश्वसनीय स्रोतों को तथ्यों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए ताकि दुष्प्रचार का मुकाबला किया जा सके।

कूटनीतिक संतुलन (Diplomatic Balance)

भारत को अपने महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों, विशेषकर अमेरिका के साथ, को बनाए रखते हुए राष्ट्रीय गरिमा और हितों की रक्षा करनी होगी। ट्रम्प जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के बयानों को नजरअंदाज करना मुश्किल है, लेकिन उन पर अति-प्रतिक्रिया भी संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है।

  • आगे की राह: विदेश मंत्रालय को ऐसे मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से संबंधित देशों को भारत की स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए। साथ ही, सार्वजनिक प्रतिक्रिया संयमित और तथ्यात्मक होनी चाहिए।

लोकतांत्रिक जवाबदेही (Democratic Accountability)

प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही की मांग एक स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। बड़े और संवेदनशील मुद्दों पर सरकार के मुखिया का स्वयं संसद में उपस्थित होकर जवाब देना जनता के प्रति पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को दर्शाता है।

  • आगे की राह: प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को संसदीय प्रक्रियाओं का सम्मान करते हुए विपक्ष के सवालों का सामना करना चाहिए। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और जनता के विश्वास को बनाए रखता है।

जन जागरूकता और आलोचनात्मक सोच (Public Awareness and Critical Thinking)

मतदाताओं को राजनीतिक बयानबाजी के पीछे के वास्तविक मुद्दों को समझने के लिए आलोचनात्मक सोच विकसित करने की आवश्यकता है। केवल भावनात्मक अपीलों पर प्रतिक्रिया देने के बजाय, उन्हें तथ्यों और नीतियों का विश्लेषण करना चाहिए।

  • आगे की राह: शिक्षा प्रणाली को नागरिक शिक्षा और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना चाहिए। नागरिक समाज संगठनों और थिंक टैंक को जनता को सूचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

संपत्ति वितरण पर रचनात्मक बहस (Constructive Debate on Wealth Distribution)

संपत्ति वितरण पर बहस को केवल चुनावी जुमला बनाकर नहीं छोड़ना चाहिए। यह एक गंभीर आर्थिक और सामाजिक मुद्दा है जिसके लिए ठोस नीतिगत समाधानों की आवश्यकता है।

  • आगे की राह: राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर एक रचनात्मक बहस करनी चाहिए। इसमें विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की राय को शामिल किया जाना चाहिए ताकि गरीबी और असमानता को कम करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जा सकें।

निष्कर्ष (Conclusion)

डोनाल्ड ट्रम्प के दावों पर कांग्रेस के सवालों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में उभरी यह राजनीतिक बहस केवल एक तात्कालिक घटना नहीं है, बल्कि यह भारत की राजनीतिक परिपक्वता, संसदीय लोकतंत्र की मजबूती और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रबंधन की एक परीक्षा है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कैसे वैश्विक बयानबाजी घरेलू राजनीति को प्रभावित कर सकती है और कैसे संपत्ति वितरण जैसे संवेदनशील मुद्दे चुनावी विमर्श का केंद्र बन सकते हैं। एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में, भारत को न केवल ऐसे बयानों का प्रभावी ढंग से जवाब देना होगा, बल्कि अपने नागरिकों के सामने तथ्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होगा। प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही की मांग, संसदीय परंपराओं में विश्वास को दर्शाती है और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार अपने कार्यों के लिए जवाबदेह रहे। अंततः, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राजनीतिक बयानबाजी तथ्यों पर आधारित हो और राष्ट्र हित में हो, ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके और वे सूचित निर्णय ले सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न 1: भारतीय संसद में ‘ध्यानाकर्षण प्रस्ताव’ (Calling Attention Motion) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह एक तात्कालिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
    2. यह प्रस्ताव स्वीकार होने पर मंत्री को उस मामले पर एक बयान देना होता है।
    3. यह केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (A) केवल a और b

    व्याख्या: ध्यानाकर्षण प्रस्ताव किसी तात्कालिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और उस पर मंत्री से बयान प्राप्त करने के लिए होता है। यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों में प्रस्तुत किया जा सकता है, इसलिए कथन c गलत है।

  2. प्रश्न 2: ‘जयराम रमेश’ द्वारा उपयोग किए गए मुहावरे “कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा” का संसदीय संदर्भ में सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?

    (A) किसी भी विधेयक पर मंत्री के बजाय प्रधानमंत्री को ही बोलना चाहिए।

    (B) प्रधानमंत्री को किसी विशेष और महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्वयं संसद में जवाब देना चाहिए, न कि किसी अन्य मंत्री को।

    (C) विपक्ष को केवल प्रधानमंत्री से ही प्रश्न पूछने का अधिकार है।

    (D) प्रधानमंत्री को केवल बल्लेबाजी में ही शामिल होना चाहिए, गेंदबाजी में नहीं।

    उत्तर: (B) प्रधानमंत्री को किसी विशेष और महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्वयं संसद में जवाब देना चाहिए, न कि किसी अन्य मंत्री को।

    व्याख्या: यह मुहावरा क्रिकेट से लिया गया है और इसका अर्थ यह है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार के मुखिया (प्रधानमंत्री) को स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए और प्रत्यक्ष रूप से जवाब देना चाहिए, बजाय इसके कि कोई ‘सब्स्टीट्यूट’ (अन्य मंत्री) उनकी जगह ले।
  3. प्रश्न 3: भारत में धन के असमान वितरण (Wealth Inequality) को मापने के लिए अक्सर निम्नलिखित में से किस आर्थिक सूचकांक का उपयोग किया जाता है?

    (A) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

    (B) मानव विकास सूचकांक (HDI)

    (C) गिनी गुणांक (Gini Coefficient)

    (D) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)

    उत्तर: (C) गिनी गुणांक (Gini Coefficient)

    व्याख्या: गिनी गुणांक एक सांख्यिकीय माप है जिसका उपयोग किसी जनसंख्या में आय या धन के वितरण की असमानता का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है। 0 का गिनी गुणांक पूर्ण समानता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि 1 का गिनी गुणांक पूर्ण असमानता का प्रतिनिधित्व करता है।
  4. प्रश्न 4: भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद संसद में मंत्रियों, विशेषकर प्रधानमंत्री, की जवाबदेही से संबंधित है?

    (A) अनुच्छेद 74

    (B) अनुच्छेद 75

    (C) अनुच्छेद 78

    (D) अनुच्छेद 105

    उत्तर: (B) अनुच्छेद 75

    व्याख्या: अनुच्छेद 75 (3) विशेष रूप से कहता है कि “मंत्री परिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।” यह अनुच्छेद प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की संसद के प्रति सामूहिक जवाबदेही को स्थापित करता है।
  5. प्रश्न 5: ‘विरासत कर’ (Inheritance Tax) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के हस्तांतरण पर लगाया जाने वाला कर है।
    2. भारत में यह कर वर्तमान में लागू है।
    3. यह धन के असमान वितरण को कम करने में सहायक हो सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (C) केवल a और c

    व्याख्या: विरासत कर (जिसे पहले ‘एस्टेट ड्यूटी’ या ‘संपदा शुल्क’ कहा जाता था) भारत में 1985 में समाप्त कर दिया गया था, इसलिए कथन b गलत है। यह कर वास्तव में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के वारिसों को हस्तांतरण पर लगाया जाता है और इसका उद्देश्य धन के असमान वितरण को कम करना हो सकता है।

  6. प्रश्न 6: भारतीय संविधान के अनुसार, संसद में किसी भी मुद्दे पर सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार विपक्ष को किस संसदीय उपकरण के माध्यम से प्राप्त है?

    1. प्रश्नकाल
    2. शून्यकाल
    3. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
    4. अविश्वास प्रस्ताव

    सही विकल्प चुनें:

    (A) केवल 1 और 2

    (B) केवल 1, 2 और 3

    (C) केवल 2, 3 और 4

    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (D) 1, 2, 3 और 4

    व्याख्या: ये सभी संसदीय उपकरण हैं जो विपक्ष को सरकार से प्रश्न पूछने और उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। प्रश्नकाल और शून्यकाल सीधे प्रश्न पूछने के लिए होते हैं, जबकि ध्यानाकर्षण प्रस्ताव एक विशेष मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करता है और अविश्वास प्रस्ताव सरकार को हटा सकता है, जिसके दौरान भी प्रश्न पूछे जाते हैं।

  7. प्रश्न 7: भारत में लोकसभा और राज्यसभा दोनों में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रस्ताव पेश किया जा सकता है?

    (A) अविश्वास प्रस्ताव

    (B) कटौती प्रस्ताव

    (C) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

    (D) धन विधेयक

    उत्तर: (C) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

    व्याख्या: अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। कटौती प्रस्ताव केवल लोकसभा में बजट मांगों पर चर्चा के दौरान पेश किया जाता है। धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पेश किया जा सकता है।
  8. प्रश्न 8: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में, ‘सॉफ्ट पावर’ (Soft Power) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन करता है?

    (A) सैन्य शक्ति का उपयोग करके अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (B) आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग करके अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (C) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक मूल्यों और नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (D) गुप्तचर अभियानों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    उत्तर: (C) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक मूल्यों और नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    व्याख्या: सॉफ्ट पावर, जोसेफ नाइ द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है, जिसमें सैन्य बल या आर्थिक दबाव के बजाय संस्कृति, राजनीतिक मूल्यों और विदेश नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को आकर्षित करने और प्रभावित करने की क्षमता शामिल है।
  9. प्रश्न 9: भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत मुख्यतः किस दशक में हुई?

    (A) 1970 के दशक

    (B) 1980 के दशक

    (C) 1990 के दशक

    (D) 2000 के दशक

    उत्तर: (C) 1990 के दशक

    व्याख्या: भारत में बड़े पैमाने पर आर्थिक उदारीकरण 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में शुरू हुआ।
  10. प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था भारत में आय और धन के असमान वितरण पर रिपोर्ट जारी करने के लिए जानी जाती है?

    (A) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

    (B) नीति आयोग

    (C) ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International)

    (D) वित्त आयोग

    उत्तर: (C) ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International)

    व्याख्या: ऑक्सफैम इंटरनेशनल एक वैश्विक संगठन है जो असमानता और गरीबी पर नियमित रूप से रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें भारत में आय और धन के वितरण पर भी विस्तृत विश्लेषण शामिल होता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के बयानों का किसी देश की घरेलू राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है? भारत के संदर्भ में हालिया घटनाओं का उदाहरण देते हुए विश्लेषण करें कि एक संप्रभु राष्ट्र को ऐसी स्थितियों से कैसे निपटना चाहिए। (250 शब्द)
  2. भारतीय राजनीति में ‘धन के पुनर्वितरण’ पर जारी बहस के ऐतिहासिक और समकालीन आयामों का आलोचनात्मक परीक्षण करें। आप इस बहस को कैसे देखते हैं – क्या यह सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है या आर्थिक विकास के लिए बाधक? अपने उत्तर को तर्कों और उदाहरणों से पुष्ट करें। (250 शब्द)
  3. संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की प्रत्यक्ष जवाबदेही का क्या महत्व है? हाल ही में ‘कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा’ जैसे बयानों के आलोक में, भारत की संसदीय परंपराओं में इस अवधारणा की भूमिका का मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
  4. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का उपयोग भारतीय चुनावी राजनीति में क्यों किया जाता है? ऐसे शब्दों के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें, और इनके सकारात्मक व नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द)

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[–SEO_TITLE–]भारत की संपत्ति पर बहस: ट्रम्प के बोल, कांग्रेस का हल्लाबोल, PM की खामोशी
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भारत की संपत्ति पर बहस: ट्रम्प के बोल, कांग्रेस का हल्लाबोल, PM की खामोशी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में भारतीय राजनीति में एक नई हलचल तब मच गई जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत से संबंधित कुछ दावों ने घरेलू राजनीतिक गलियारों में एक तूफान खड़ा कर दिया। इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने केंद्र सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री से संसद में प्रत्यक्ष जवाब की मांग की। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तीखे शब्दों में कहा कि इस गंभीर मुद्दे पर प्रधानमंत्री को स्वयं जवाब देना होगा और “कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा।” इस घटनाक्रम ने न केवल भारत के आंतरिक राजनीतिक विमर्श को गर्मा दिया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भारत की आर्थिक संप्रभुता पर भी बहस छेड़ दी है। इस पूरे प्रकरण में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का इस्तेमाल भी किया गया है, जो इस बहस को और अधिक जटिल बनाता है। आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं और इसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करते हैं, जो यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका साबित होगा।

पूरा मामला क्या है? (What is the whole matter?)

यह मामला भारत में चल रही चुनावी राजनीति, संपत्ति वितरण पर जारी बहस और अंतर्राष्ट्रीय बयानों के घरेलू राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का एक मिश्रण है।

डोनाल्ड ट्रम्प के दावे: अस्पष्टता और अटकलें (Donald Trump’s Claims: Ambiguity and Speculation)

खबरों के अनुसार, डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की संपत्ति या आर्थिक स्थिति से संबंधित कुछ दावे किए हैं। हालांकि, इन दावों का सटीक विवरण सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नहीं है, लेकिन भारतीय संदर्भ में इन्हें ‘धन के हस्तांतरण’ या ‘भारत से बाहर जा रही संपत्ति’ से जोड़ा जा रहा है। ट्रम्प अक्सर अन्य देशों की आर्थिक नीतियों, व्यापार समझौतों या वित्तीय व्यवहार पर टिप्पणी करते रहे हैं। उनके बयानों को अक्सर चुनावी रैलियों या विदेशी नीतियों को परिभाषित करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है।

“विदेशी नेताओं के बयान, चाहे वे कितने भी अस्पष्ट क्यों न हों, अक्सर घरेलू राजनीति में एक शक्तिशाली हथियार बन जाते हैं, विशेषकर चुनावी मौसम में।”

भारतीय परिप्रेक्ष्य में, ट्रम्प के इन दावों को विपक्ष द्वारा सरकार पर हमला करने या अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसे अंतर्राष्ट्रीय बयानों को अक्सर उनके मूल संदर्भ से हटाकर घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।

कांग्रेस के 3 सवाल: प्रधानमंत्री से सीधी जवाबदेही की मांग (Congress’s 3 Questions: Demand for Direct Accountability from the Prime Minister)

डोनाल्ड ट्रम्प के दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस ने केंद्र सरकार से तीन मुख्य प्रश्न पूछे हैं। यद्यपि इन प्रश्नों का सटीक पाठ सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन वे संभावित रूप से निम्नलिखित विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं:

  1. क्या ट्रम्प के दावे सत्य हैं और यदि हाँ, तो सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया है?
  2. इन दावों से भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि और वित्तीय साख पर क्या असर पड़ेगा?
  3. सरकार ऐसी अंतर्राष्ट्रीय टिप्पणियों का खंडन करने या उनसे निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है?

कांग्रेस का इन सवालों को उठाने का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री को संसद में इस विषय पर स्पष्टीकरण देने के लिए बाध्य करना है। यह विपक्षी दलों द्वारा सरकार को सार्वजनिक मंच पर जवाबदेह ठहराने की एक पारंपरिक संसदीय रणनीति है। ‘जयराम रमेश’ का यह कथन कि “हमें संसद में PM से जवाब चाहिए, कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा,” संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही के महत्व पर जोर देता है। इसका अर्थ है कि केवल संबंधित मंत्री या पार्टी प्रवक्ता ही नहीं, बल्कि सरकार के मुखिया को स्वयं इस गंभीर मुद्दे पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ: एक प्रतीकात्मक युद्ध (Context of ‘Operation Sindoor’: A Symbolic War)

‘ऑपरेशन सिंदूर’ शब्द का उपयोग कांग्रेस द्वारा इस मामले में एक प्रतीकात्मक संदर्भ के रूप में किया गया है। यह शब्द सीधे तौर पर ट्रम्प के दावों या किसी विशिष्ट सरकारी नीति से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह हाल ही में भारत में संपत्ति वितरण और महिलाओं के अधिकारों पर चल रही राजनीतिक बहस से गहरा संबंध रखता है।

  • उत्पत्ति: यह शब्द संभवतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर लगाए गए ‘संपत्ति सर्वेक्षण’ और ‘धन के पुनर्वितरण’ के आरोपों के जवाब में आया है। प्रधानमंत्री ने चुनावी रैलियों में आरोप लगाया था कि कांग्रेस सत्ता में आने पर लोगों की संपत्ति का सर्वेक्षण करेगी और उसे पुनर्वितरित करेगी, जिससे महिलाओं के ‘मंगलसूत्र’ भी खतरे में पड़ सकते हैं।
  • प्रतीकात्मक अर्थ: ‘सिंदूर’ और ‘मंगलसूत्र’ भारतीय महिलाओं के सुहाग और संपत्ति से जुड़े गहरे सांस्कृतिक प्रतीक हैं। कांग्रेस ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उपयोग करके शायद यह संदेश देने की कोशिश की है कि ट्रम्प के दावे या केंद्र सरकार की नीतियां किसी तरह भारतीय महिलाओं की संपत्ति या देश की संपत्ति पर खतरा पैदा कर रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री ने ‘मंगलसूत्र’ के संदर्भ में आरोप लगाए थे। यह एक तरह का ‘शब्दों का युद्ध’ है, जहां राजनीतिक दल सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग कर मतदाताओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
  • चुनावों से संबंध: यह बहस ऐसे समय में उठी है जब देश में आम चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में संपत्ति, धन का हस्तांतरण, और राष्ट्रीय गौरव जैसे मुद्दे चुनावी विमर्श का केंद्र बन जाते हैं।

‘कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा’: संसदीय जवाबदेही का महत्व (Significance of ‘No Substitute Batsman’: The Importance of Parliamentary Accountability)

क्रिकेट की उपमा का उपयोग करते हुए, जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही पर जोर दिया। इसका अर्थ यह है कि जब कोई गंभीर राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा उठता है, तो सरकार के मुखिया, यानी प्रधानमंत्री को स्वयं संसद में आकर विपक्ष के सवालों का जवाब देना चाहिए।

  • संसदीय लोकतंत्र में महत्व: संसदीय लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च मंच होता है जहां सरकार को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है। प्रधानमंत्री की उपस्थिति और उनका सीधा जवाब न केवल विपक्ष को संतुष्ट करता है, बल्कि जनता को भी यह विश्वास दिलाता है कि सरकार मुद्दों को गंभीरता से ले रही है।
  • विश्वास और पारदर्शिता: बड़े मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी या किसी अन्य मंत्री द्वारा जवाब देना अक्सर विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका देता है कि सरकार सच छिपा रही है या मुद्दों से भाग रही है। सीधी जवाबदेही से सरकार में जनता का विश्वास बढ़ता है और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
  • नैतिक और संवैधानिक अनिवार्यता: प्रधानमंत्री सरकार का चेहरा होते हैं और देश की नीतियों के अंतिम रूप से जिम्मेदार होते हैं। इसलिए, राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर उनका सीधा बयान एक नैतिक और कभी-कभी संवैधानिक अनिवार्यता भी बन जाता है।

राजकीय हस्तक्षेप और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (State Intervention and International Relations)

यह घटनाक्रम सिर्फ एक घरेलू राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसके अंतर्राष्ट्रीय संबंध और भारत की संप्रभुता पर भी गहरे निहितार्थ हैं।

ट्रम्प के बयानों का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (International Impact of Trump’s Statements)

  • भारत की छवि: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति (और संभावित भविष्य के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार) के बयान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की आर्थिक स्थिति या वित्तीय अखंडता के बारे में गलत धारणाएँ पैदा कर सकते हैं। यह भारत की निवेश क्षमता, व्यापार संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय साख को प्रभावित कर सकता है।
  • कूटनीतिक संवेदनशीलता: भारत-अमेरिका संबंध रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में, किसी अमेरिकी नेता का बयान, भले ही वह अनौपचारिक हो, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत को इन बयानों का जवाब देते समय सावधानी बरतनी होगी ताकि द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  • वैश्विक धारणा: ट्रम्प जैसे व्यक्तित्व के बयानों को वैश्विक मीडिया में काफी कवरेज मिलती है। यदि इन दावों का स्पष्ट खंडन नहीं किया जाता है, तो वे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों और नीति निर्माताओं के बीच भारत के बारे में गलत धारणाओं को मजबूत कर सकते हैं।

भारत की संप्रभुता और आर्थिक नीति (India’s Sovereignty and Economic Policy)

कोई भी अंतर्राष्ट्रीय बयान जो किसी देश की आर्थिक नीतियों या धन प्रबंधन पर सवाल उठाता है, उसकी संप्रभुता को चुनौती दे सकता है। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और उसे अपनी आर्थिक नीतियों को अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार तय करने का पूरा अधिकार है।

  • आत्मनिर्भरता पर जोर: भारत लगातार आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है। ऐसे में, बाहरी ताकतों द्वारा आर्थिक मामलों में किसी भी तरह की टिप्पणी को राष्ट्रीय गौरव और संप्रभुता पर हमले के रूप में देखा जा सकता है।
  • विकासशील अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ: भारत जैसी तेजी से बढ़ती विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास बनाए रखना महत्वपूर्ण है। बाहरी बयानों से पैदा होने वाले भ्रम से निवेश का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।

प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव (Impact on Indian Diaspora)

दुनिया भर में फैले भारतीय प्रवासी समुदाय पर ऐसे बयानों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है। वे भारत के प्रति अपनी निष्ठा और अपने मूल देश की छवि के प्रति संवेदनशील होते हैं। यदि उनके देश की आर्थिक स्थिति या ईमानदारी पर सवाल उठाया जाता है, तो यह उन्हें प्रभावित कर सकता है और भारत में उनके निवेश या उनके संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

भारतीय राजनीति में धन और संपत्ति का मुद्दा (The Issue of Wealth and Property in Indian Politics)

संपत्ति और उसके वितरण का मुद्दा भारतीय राजनीति में हमेशा से एक गर्म विषय रहा है। यह मुद्दा विभिन्न विचारधाराओं, सामाजिक न्याय की अवधारणाओं और आर्थिक नीतियों के केंद्र में रहा है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective)

  • समाजवाद और राष्ट्रीयकरण: आजादी के बाद, भारत ने समाजवाद से प्रेरित मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया। इस दौरान भूमि सुधार, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, और प्रमुख उद्योगों का सरकारी नियंत्रण जैसे कदम उठाए गए, जिनका उद्देश्य धन के केंद्रीकरण को रोकना और समानता लाना था। ‘गरीबी हटाओ’ जैसे नारे इसी दर्शन का हिस्सा थे।
  • आर्थिक उदारीकरण: 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत को अधिक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर धकेला। इसने संपत्ति निर्माण को बढ़ावा दिया, लेकिन साथ ही धन के असमान वितरण की चिंताएँ भी बढ़ीं।
  • आय असमानता: पिछले कुछ दशकों में भारत में तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद, आय असमानता एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। विभिन्न रिपोर्टें, जैसे कि ऑक्सफैम की रिपोर्ट, भारत में धन के अत्यधिक केंद्रीकरण को उजागर करती हैं, जहाँ शीर्ष 1% आबादी देश की अधिकांश संपत्ति को नियंत्रित करती है।

हालिया बहसें: चुनावी विमर्श का केंद्र (Recent Debates: Hub of Electoral Discourse)

हाल के दिनों में, संपत्ति वितरण पर बहस ने चुनावी विमर्श में एक केंद्रीय स्थान ले लिया है।

  • ‘संपत्ति सर्वेक्षण’ और ‘पुनर्वितरण’: कांग्रेस के घोषणापत्र और उसके नेताओं के बयानों को लेकर यह आरोप लगाया गया कि वे ‘एक्स-रे’ जैसी किसी प्रक्रिया से संपत्ति का सर्वेक्षण करेंगे और उसे ‘पुनर्वितरित’ करेंगे। इस पर सत्ताधारी दल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, खासकर प्रधानमंत्री ने ‘मंगलसूत्र’ और महिलाओं की संपत्ति छीनने के आरोपों के साथ इस मुद्दे को भावनात्मक रंग दिया।
  • विरासत कर (Inheritance Tax): इस बहस के दौरान ‘विरासत कर’ (Estate Duty) को फिर से लागू करने की संभावना पर भी चर्चा हुई, जो भारत में 1985 में समाप्त कर दिया गया था। यह तर्क दिया गया कि ऐसे कर धन के असमान वितरण को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • सामाजिक न्याय बनाम संपत्ति का अधिकार: यह बहस मूल रूप से सामाजिक न्याय (सभी के लिए समानता) और संपत्ति के अधिकार (व्यक्तिगत स्वामित्व) के बीच के तनाव को दर्शाती है। राजनीतिक दल इन दोनों अवधारणाओं को अपने पक्ष में परिभाषित करने का प्रयास करते हैं।

संसद की भूमिका: बहस का सर्वोच्च मंच (Role of Parliament: Supreme Forum for Debate)

भारतीय संसद, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं, देश में नीतियों पर बहस, कानून बनाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का सर्वोच्च मंच है। इस मामले में भी संसद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: संसद में विपक्ष के प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपकरणों का उपयोग कर सरकार को जवाबदेह ठहरा सकता है। कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री से सीधे जवाब की मांग इसी संसदीय परंपरा का हिस्सा है।
  • जनता के मुद्दों को उठाना: संसद जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। ट्रम्प के दावों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दों को उठाकर सांसद जनता की चिंताओं को सरकार तक पहुंचाते हैं।
  • नीति निर्माण में योगदान: संसद में होने वाली बहसें भविष्य की नीतियों को आकार देने में मदद करती हैं। संपत्ति वितरण, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आर्थिक संप्रभुता पर होने वाली चर्चाएँ सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

इस पूरे प्रकरण ने भारतीय राजनीति और शासन के सामने कई चुनौतियाँ पेश की हैं, जिनके लिए एक सुविचारित आगे की राह की आवश्यकता है।

सूचना का अभाव और दुष्प्रचार (Lack of Information and Misinformation)

आधुनिक सूचना युग में, अधूरी या भ्रामक जानकारी (disinformation) तेजी से फैल सकती है। ट्रम्प के दावों की अस्पष्टता और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का उपयोग इस बात का उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक विमर्श तथ्यों से दूर होकर भावनाओं पर आधारित हो सकता है।

  • आगे की राह: सरकार को ऐसे संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय बयानों पर त्वरित और स्पष्ट प्रतिक्रिया देनी चाहिए। मुख्यधारा मीडिया और विश्वसनीय स्रोतों को तथ्यों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए ताकि दुष्प्रचार का मुकाबला किया जा सके।

कूटनीतिक संतुलन (Diplomatic Balance)

भारत को अपने महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों, विशेषकर अमेरिका के साथ, को बनाए रखते हुए राष्ट्रीय गरिमा और हितों की रक्षा करनी होगी। ट्रम्प जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के बयानों को नजरअंदाज करना मुश्किल है, लेकिन उन पर अति-प्रतिक्रिया भी संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है।

  • आगे की राह: विदेश मंत्रालय को ऐसे मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से संबंधित देशों को भारत की स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए। साथ ही, सार्वजनिक प्रतिक्रिया संयमित और तथ्यात्मक होनी चाहिए।

लोकतांत्रिक जवाबदेही (Democratic Accountability)

प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही की मांग एक स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। बड़े और संवेदनशील मुद्दों पर सरकार के मुखिया का स्वयं संसद में उपस्थित होकर जवाब देना जनता के प्रति पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को दर्शाता है।

  • आगे की राह: प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को संसदीय प्रक्रियाओं का सम्मान करते हुए विपक्ष के सवालों का सामना करना चाहिए। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और जनता के विश्वास को बनाए रखता है।

जन जागरूकता और आलोचनात्मक सोच (Public Awareness and Critical Thinking)

मतदाताओं को राजनीतिक बयानबाजी के पीछे के वास्तविक मुद्दों को समझने के लिए आलोचनात्मक सोच विकसित करने की आवश्यकता है। केवल भावनात्मक अपीलों पर प्रतिक्रिया देने के बजाय, उन्हें तथ्यों और नीतियों का विश्लेषण करना चाहिए।

  • आगे की राह: शिक्षा प्रणाली को नागरिक शिक्षा और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना चाहिए। नागरिक समाज संगठनों और थिंक टैंक को जनता को सूचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

संपत्ति वितरण पर रचनात्मक बहस (Constructive Debate on Wealth Distribution)

संपत्ति वितरण पर बहस को केवल चुनावी जुमला बनाकर नहीं छोड़ना चाहिए। यह एक गंभीर आर्थिक और सामाजिक मुद्दा है जिसके लिए ठोस नीतिगत समाधानों की आवश्यकता है।

  • आगे की राह: राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर एक रचनात्मक बहस करनी चाहिए। इसमें विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की राय को शामिल किया जाना चाहिए ताकि गरीबी और असमानता को कम करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जा सकें।

निष्कर्ष (Conclusion)

डोनाल्ड ट्रम्प के दावों पर कांग्रेस के सवालों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में उभरी यह राजनीतिक बहस केवल एक तात्कालिक घटना नहीं है, बल्कि यह भारत की राजनीतिक परिपक्वता, संसदीय लोकतंत्र की मजबूती और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रबंधन की एक परीक्षा है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कैसे वैश्विक बयानबाजी घरेलू राजनीति को प्रभावित कर सकती है और कैसे संपत्ति वितरण जैसे संवेदनशील मुद्दे चुनावी विमर्श का केंद्र बन सकते हैं। एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में, भारत को न केवल ऐसे बयानों का प्रभावी ढंग से जवाब देना होगा, बल्कि अपने नागरिकों के सामने तथ्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होगा। प्रधानमंत्री की सीधी जवाबदेही की मांग, संसदीय परंपराओं में विश्वास को दर्शाती है और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार अपने कार्यों के लिए जवाबदेह रहे। अंततः, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राजनीतिक बयानबाजी तथ्यों पर आधारित हो और राष्ट्र हित में हो, ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके और वे सूचित निर्णय ले सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न 1: भारतीय संसद में ‘ध्यानाकर्षण प्रस्ताव’ (Calling Attention Motion) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह एक तात्कालिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
    2. यह प्रस्ताव स्वीकार होने पर मंत्री को उस मामले पर एक बयान देना होता है।
    3. यह केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (A) केवल a और b

    व्याख्या: ध्यानाकर्षण प्रस्ताव किसी तात्कालिक सार्वजनिक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और उस पर मंत्री से बयान प्राप्त करने के लिए होता है। यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों में प्रस्तुत किया जा सकता है, इसलिए कथन c गलत है।

  2. प्रश्न 2: ‘जयराम रमेश’ द्वारा उपयोग किए गए मुहावरे “कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा” का संसदीय संदर्भ में सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?

    (A) किसी भी विधेयक पर मंत्री के बजाय प्रधानमंत्री को ही बोलना चाहिए।

    (B) प्रधानमंत्री को किसी विशेष और महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्वयं संसद में जवाब देना चाहिए, न कि किसी अन्य मंत्री को।

    (C) विपक्ष को केवल प्रधानमंत्री से ही प्रश्न पूछने का अधिकार है।

    (D) प्रधानमंत्री को केवल बल्लेबाजी में ही शामिल होना चाहिए, गेंदबाजी में नहीं।

    उत्तर: (B) प्रधानमंत्री को किसी विशेष और महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्वयं संसद में जवाब देना चाहिए, न कि किसी अन्य मंत्री को।

    व्याख्या: यह मुहावरा क्रिकेट से लिया गया है और इसका अर्थ यह है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार के मुखिया (प्रधानमंत्री) को स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए और प्रत्यक्ष रूप से जवाब देना चाहिए, बजाय इसके कि कोई ‘सब्स्टीट्यूट’ (अन्य मंत्री) उनकी जगह ले।
  3. प्रश्न 3: भारत में धन के असमान वितरण (Wealth Inequality) को मापने के लिए अक्सर निम्नलिखित में से किस आर्थिक सूचकांक का उपयोग किया जाता है?

    (A) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

    (B) मानव विकास सूचकांक (HDI)

    (C) गिनी गुणांक (Gini Coefficient)

    (D) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)

    उत्तर: (C) गिनी गुणांक (Gini Coefficient)

    व्याख्या: गिनी गुणांक एक सांख्यिकीय माप है जिसका उपयोग किसी जनसंख्या में आय या धन के वितरण की असमानता का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है। 0 का गिनी गुणांक पूर्ण समानता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि 1 का गिनी गुणांक पूर्ण असमानता का प्रतिनिधित्व करता है।
  4. प्रश्न 4: भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद संसद में मंत्रियों, विशेषकर प्रधानमंत्री, की जवाबदेही से संबंधित है?

    (A) अनुच्छेद 74

    (B) अनुच्छेद 75

    (C) अनुच्छेद 78

    (D) अनुच्छेद 105

    उत्तर: (B) अनुच्छेद 75

    व्याख्या: अनुच्छेद 75 (3) विशेष रूप से कहता है कि “मंत्री परिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।” यह अनुच्छेद प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की संसद के प्रति सामूहिक जवाबदेही को स्थापित करता है।
  5. प्रश्न 5: ‘विरासत कर’ (Inheritance Tax) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के हस्तांतरण पर लगाया जाने वाला कर है।
    2. भारत में यह कर वर्तमान में लागू है।
    3. यह धन के असमान वितरण को कम करने में सहायक हो सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (C) केवल a और c

    व्याख्या: विरासत कर (जिसे पहले ‘एस्टेट ड्यूटी’ या ‘संपदा शुल्क’ कहा जाता था) भारत में 1985 में समाप्त कर दिया गया था, इसलिए कथन b गलत है। यह कर वास्तव में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के वारिसों को हस्तांतरण पर लगाया जाता है और इसका उद्देश्य धन के असमान वितरण को कम करना हो सकता है।

  6. प्रश्न 6: भारतीय संविधान के अनुसार, संसद में किसी भी मुद्दे पर सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार विपक्ष को किस संसदीय उपकरण के माध्यम से प्राप्त है?

    1. प्रश्नकाल
    2. शून्यकाल
    3. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
    4. अविश्वास प्रस्ताव

    सही विकल्प चुनें:

    (A) केवल 1 और 2

    (B) केवल 1, 2 और 3

    (C) केवल 2, 3 और 4

    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (D) 1, 2, 3 और 4

    व्याख्या: ये सभी संसदीय उपकरण हैं जो विपक्ष को सरकार से प्रश्न पूछने और उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। प्रश्नकाल और शून्यकाल सीधे प्रश्न पूछने के लिए होते हैं, जबकि ध्यानाकर्षण प्रस्ताव एक विशेष मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करता है और अविश्वास प्रस्ताव सरकार को हटा सकता है, जिसके दौरान भी प्रश्न पूछे जाते हैं।

  7. प्रश्न 7: भारत में लोकसभा और राज्यसभा दोनों में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रस्ताव पेश किया जा सकता है?

    (A) अविश्वास प्रस्ताव

    (B) कटौती प्रस्ताव

    (C) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

    (D) धन विधेयक

    उत्तर: (C) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

    व्याख्या: अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। कटौती प्रस्ताव केवल लोकसभा में बजट मांगों पर चर्चा के दौरान पेश किया जाता है। धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पेश किया जा सकता है।
  8. प्रश्न 8: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में, ‘सॉफ्ट पावर’ (Soft Power) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन करता है?

    (A) सैन्य शक्ति का उपयोग करके अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (B) आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग करके अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (C) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक मूल्यों और नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    (D) गुप्तचर अभियानों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    उत्तर: (C) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक मूल्यों और नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को प्रभावित करना।

    व्याख्या: सॉफ्ट पावर, जोसेफ नाइ द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है, जिसमें सैन्य बल या आर्थिक दबाव के बजाय संस्कृति, राजनीतिक मूल्यों और विदेश नीतियों के माध्यम से अन्य देशों को आकर्षित करने और प्रभावित करने की क्षमता शामिल है।
  9. प्रश्न 9: भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत मुख्यतः किस दशक में हुई?

    (A) 1970 के दशक

    (B) 1980 के दशक

    (C) 1990 के दशक

    (D) 2000 के दशक

    उत्तर: (C) 1990 के दशक

    व्याख्या: भारत में बड़े पैमाने पर आर्थिक उदारीकरण 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में शुरू हुआ।
  10. प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था भारत में आय और धन के असमान वितरण पर रिपोर्ट जारी करने के लिए जानी जाती है?

    (A) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

    (B) नीति आयोग

    (C) ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International)

    (D) वित्त आयोग

    उत्तर: (C) ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International)

    व्याख्या: ऑक्सफैम इंटरनेशनल एक वैश्विक संगठन है जो असमानता और गरीबी पर नियमित रूप से रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें भारत में आय और धन के वितरण पर भी विस्तृत विश्लेषण शामिल होता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के बयानों का किसी देश की घरेलू राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है? भारत के संदर्भ में हालिया घटनाओं का उदाहरण देते हुए विश्लेषण करें कि एक संप्रभु राष्ट्र को ऐसी स्थितियों से कैसे निपटना चाहिए। (250 शब्द)
  2. भारतीय राजनीति में ‘धन के पुनर्वितरण’ पर जारी बहस के ऐतिहासिक और समकालीन आयामों का आलोचनात्मक परीक्षण करें। आप इस बहस को कैसे देखते हैं – क्या यह सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है या आर्थिक विकास के लिए बाधक? अपने उत्तर को तर्कों और उदाहरणों से पुष्ट करें। (250 शब्द)
  3. संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की प्रत्यक्ष जवाबदेही का क्या महत्व है? हाल ही में ‘कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा’ जैसे बयानों के आलोक में, भारत की संसदीय परंपराओं में इस अवधारणा की भूमिका का मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
  4. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रतीकात्मक शब्दों का उपयोग भारतीय चुनावी राजनीति में क्यों किया जाता है? ऐसे शब्दों के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें, और इनके सकारात्मक व नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द)

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