भारत की चुनावी अखंडता: वोटर लिस्ट की राष्ट्रव्यापी समीक्षा का महत्व और चुनौतियाँ

भारत की चुनावी अखंडता: वोटर लिस्ट की राष्ट्रव्यापी समीक्षा का महत्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) ने देशभर में मतदाता सूचियों (Voter Lists) की व्यापक जांच और शुद्धिकरण (Purification) के लिए अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। यह पहल बिहार में सफलतापूर्वक लागू किए गए मॉडल पर आधारित है, जहाँ मतदाताओं की पहचान और सत्यापन के लिए आधार (Aadhaar) का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। इस राष्ट्रव्यापी अभियान पर अंतिम निर्णय 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के बाद लिया जाएगा। यह घटनाक्रम भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जिसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता, सटीकता और विश्वसनीयता को और बढ़ाना है।

लोकतंत्र की नींव: मतदाता सूची का महत्व

किसी भी जीवंत लोकतंत्र की आत्मा उसके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। और इन चुनावों की सबसे मूलभूत इकाई क्या है? यह है मतदाता सूची। कल्पना कीजिए एक घर की नींव को, अगर नींव कमजोर हो, तो इमारत कभी मजबूत नहीं हो सकती। ठीक इसी तरह, यदि मतदाता सूची त्रुटिपूर्ण, अधूरी या अशुद्ध हो, तो चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगते हैं।

  • प्रतिनिधित्व का आधार: मतदाता सूची ही तय करती है कि कौन वोट दे सकता है और किसका प्रतिनिधित्व होगा। यह नागरिकों के मताधिकार का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
  • लोकतांत्रिक वैधता: एक सटीक मतदाता सूची यह सुनिश्चित करती है कि डाले गए वोट वैध मतदाताओं के हैं, जिससे चुनावों के परिणामों को व्यापक वैधता मिलती है।
  • संसाधनों का कुशल उपयोग: शुद्ध मतदाता सूची का मतलब है चुनाव सामग्री, सुरक्षा बलों और मतदान कर्मियों का कुशल नियोजन। फर्जी या मृत मतदाताओं के नाम होने से इन संसाधनों का व्यर्थ व्यय होता है।
  • नागरिक अधिकारों की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक पात्र नागरिक का नाम सूची में हो और कोई भी अपात्र व्यक्ति इसमें शामिल न हो, नागरिकों के मौलिक अधिकार और चुनावी अखंडता दोनों की रक्षा करता है।

भारत निर्वाचन आयोग का जनादेश और मतदाता सूची का शुद्धिकरण

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 भारत निर्वाचन आयोग को संसद, प्रत्येक राज्य के विधानमंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए सभी चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। इस व्यापक जनादेश में मतदाता सूची तैयार करना और अद्यतन करना एक महत्वपूर्ण कार्य है।

शुद्धिकरण की आवश्यकता क्यों?

समय के साथ, मतदाता सूची में कई तरह की अशुद्धियाँ आ जाती हैं, जैसे:

  • मृत मतदाता: जिन मतदाताओं का निधन हो गया है, उनके नाम सूची में बने रहते हैं।
  • दोहराव (Duplicates): एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक बार या एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज होना।
  • स्थानांतरित मतदाता: ऐसे मतदाता जो अपना निवास स्थान बदल चुके हैं, लेकिन उनका नाम पुरानी सूची में अभी भी दर्ज है।
  • फर्जी मतदाता (Bogus Voters): काल्पनिक नामों या गलत पहचानों के आधार पर बनाए गए नाम।
  • त्रुटियाँ: नाम, पता या अन्य विवरणों में वर्तनी संबंधी या अन्य मानवीय त्रुटियाँ।

ये अशुद्धियाँ चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को भंग करती हैं, चुनावी धोखाधड़ी की संभावना को बढ़ाती हैं, और चुनाव आयोग के संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डालती हैं। इसी कारण से, मतदाता सूची का आवधिक और गहन शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है।

वोटर लिस्ट शुद्धिकरण: प्रक्रिया और उद्देश्य

मतदाता सूची के शुद्धिकरण का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी सूची तैयार करना है जो मौजूदा, पात्र मतदाताओं का सही और सटीक प्रतिनिधित्व करे। यह एक बहु-आयामी प्रक्रिया है जिसमें डेटाबेस प्रबंधन और जमीनी स्तर के सत्यापन दोनों शामिल हैं।

प्रक्रिया के मुख्य चरण:

  1. सूचियों का एकीकरण और विश्लेषण: विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मतदाता सूचियों को एक साथ लाना और डुप्लीकेट प्रविष्टियों, विसंगतियों और संभावित त्रुटियों की पहचान के लिए उनका विश्लेषण करना।
  2. मृत्यु पंजीकरण डेटा से मिलान: नागरिक पंजीकरण प्रणाली (Civil Registration System – CRS) से मृत्यु के डेटा को प्राप्त कर मतदाता सूची से मृत व्यक्तियों के नाम हटाना।
  3. आधार सीडिंग और सत्यापन: मतदाताओं के विवरण को उनके आधार नंबर से जोड़ना। यह एक शक्तिशाली उपकरण है जो डुप्लीकेट और फर्जी प्रविष्टियों की पहचान करने में मदद कर सकता है। (हालांकि, आधार सीडिंग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अधीन है और यह स्वैच्छिक होना चाहिए)।
  4. घर-घर जाकर सत्यापन (House-to-House Verification): बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) द्वारा घर-घर जाकर यह सत्यापित करना कि संबंधित मतदाता उस पते पर रहता है या नहीं और उसकी पहचान वैध है या नहीं।
  5. दावे और आपत्तियाँ: नागरिकों को अपनी प्रविष्टियों की जांच करने और किसी भी त्रुटि या आपत्ति की रिपोर्ट करने का अवसर देना। इसमें नए नाम जोड़ने, मौजूदा विवरणों में सुधार करने या किसी अवांछित नाम को हटाने का अनुरोध करना शामिल है।
  6. प्रकाशन और अंतिम सूची: सभी शुद्धिकरण चरणों के बाद, अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन किया जाता है।

आधार लिंकिंग की भूमिका:
चुनाव आयोग ने पूर्व में आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने का प्रयास किया था ताकि मतदाताओं की डुप्लीकेसी को रोका जा सके। यह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद रुका था जिसमें आधार के अनिवार्य उपयोग को सीमित किया गया था। अब, यह स्वैच्छिक हो गया है। हालांकि, अगर इस राष्ट्रव्यापी अभियान में आधार का उपयोग सत्यापन के लिए किया जाता है, तो यह डुप्लीकेसी को रोकने में अत्यंत प्रभावी साबित हो सकता है, बशर्ते डेटा गोपनीयता और निजता के अधिकारों का पूरा सम्मान किया जाए।

बिहार मॉडल: एक सफल प्रयोग और केस स्टडी

खबरों के अनुसार, चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभियान बिहार में सफलतापूर्वक लागू किए गए मॉडल पर आधारित है। बिहार में इस पहल का मुख्य फोकस आधार-आधारित सत्यापन पर था, जिसने मतदाता सूची को शुद्ध करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की।

बिहार में क्या हुआ?

  • आधार का उपयोग: बिहार में, मतदाताओं को स्वेच्छा से अपने आधार नंबर को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
  • डेटा मिलान: आधार डेटाबेस के साथ मतदाता सूची का मिलान किया गया, जिससे डुप्लीकेट प्रविष्टियों, मृत मतदाताओं और स्थानांतरित मतदाताओं की पहचान की जा सके।
  • क्षेत्रीय सत्यापन: जहां भी विसंगतियां पाई गईं, वहां बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) ने घर-घर जाकर सत्यापन किया।

बिहार मॉडल की सफलता:

बिहार में इस मॉडल के परिणामस्वरूप लाखों की संख्या में डुप्लीकेट और मृत मतदाताओं के नाम हटाए गए, जिससे मतदाता सूची की सटीकता में जबरदस्त सुधार आया। इसने चुनावी धोखाधड़ी की संभावना को कम किया और चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बढ़ाया। यह एक उदाहरण बन गया कि कैसे प्रौद्योगिकी और जमीनी स्तर के प्रयासों का संयोजन चुनावी सुधारों को आगे बढ़ा सकता है।

“बिहार का अनुभव दर्शाता है कि आधार जैसे विश्वसनीय पहचान प्रणाली का उपयोग करके मतदाता सूची को शुद्ध करना संभव है, बशर्ते यह स्वैच्छिक हो और डेटा सुरक्षा उपायों के साथ किया जाए।”

यह मॉडल अब पूरे देश में दोहराने की योजना है, जिससे भारत के व्यापक और विविध चुनावी परिदृश्य में इसकी व्यावहारिकता और चुनौतियों का परीक्षण होगा।

राष्ट्रव्यापी अभियान: आवश्यकता, लाभ और प्रभाव

एक राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान की आवश्यकता केवल कुछ राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।

आवश्यकता क्यों?

  • चुनावी अखंडता: भारत में चुनावों का पैमाना विशाल है। अशुद्ध मतदाता सूची हमेशा चुनावी विवादों और धांधली के आरोपों का स्रोत बनी रहती है। एक साफ-सुथरी सूची इन आरोपों को कम करती है।
  • सीमित संसाधनों का अनुकूलन: चुनाव कराने में भारी मात्रा में धन और मानव संसाधन खर्च होता है। अनावश्यक या फर्जी मतदाताओं के नाम हटाने से इन संसाधनों को सही जगह उपयोग किया जा सकता है।
  • मतदाता भागीदारी: जब मतदाता सूची विश्वसनीय होती है, तो नागरिकों का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है और वे अधिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
  • डिजिटल इंडिया पहल: डिजिटल तकनीकों का उपयोग कर चुनावी प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाना भारत के डिजिटल इंडिया दृष्टिकोण के अनुरूप है।

संभावित लाभ:

  1. चुनावी धोखाधड़ी में कमी: फर्जी और डुप्लीकेट मतदाताओं की पहचान होने से फर्जी मतदान और चुनावी हेरफेर की संभावना कम हो जाएगी।
  2. बढ़ी हुई सटीकता: सूची में केवल वास्तविक और पात्र मतदाताओं के नाम होंगे, जिससे चुनावी परिणामों की वैधता बढ़ेगी।
  3. लागत में कमी: चुनाव आयोग को अनावश्यक मतदान सामग्री छापने और अतिरिक्त व्यवस्थाएं करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा।
  4. तेज और सुगम चुनाव: मतदान केंद्रों पर भीड़ कम होगी और पहचान प्रक्रिया आसान होगी, जिससे चुनाव प्रक्रिया सुगम बनेगी।
  5. राष्ट्रीय सुरक्षा: मतदाता सूची में घुसपैठ या गलत पहचान का उपयोग करके राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों की संभावना को भी कम किया जा सकता है।
  6. अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता: एक मजबूत और पारदर्शी चुनावी प्रणाली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की लोकतांत्रिक साख को मजबूत करेगी।

चुनौतियाँ और संभावित मुद्दे

हालांकि राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान के अनेक लाभ हैं, लेकिन यह बिना चुनौतियों के नहीं है। इस प्रक्रिया में कई व्यावहारिक, तकनीकी और कानूनी बाधाएं आ सकती हैं।

  1. बड़े पैमाने पर अभियान का प्रबंधन: भारत का आकार और जनसंख्या विशाल है। ऐसे बड़े पैमाने पर अभियान को पूरे देश में प्रभावी ढंग से लागू करना एक संगठनात्मक चुनौती है। इसमें समन्वय, प्रशिक्षण और निगरानी की आवश्यकता होगी।
  2. डेटा गोपनीयता और निजता: यदि आधार या अन्य बायोमेट्रिक डेटा का उपयोग किया जाता है, तो नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी। डेटा लीक या दुरुपयोग की चिंताएं बढ़ सकती हैं, खासकर निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आलोक में।
  3. नागरिकों का प्रतिरोध और कम भागीदारी: कई नागरिकों को इस प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं होगी या वे इसमें रुचि नहीं लेंगे। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जागरूकता और भागीदारी सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है।
  4. राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप: ऐसी प्रक्रिया पर राजनीतिक दलों द्वारा पक्षपात के आरोप लगाए जा सकते हैं, खासकर यदि किसी विशेष वर्ग के मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी हो। इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।
  5. मानव संसाधन और वित्तीय बाधाएँ: इस अभियान के लिए बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) और अन्य चुनाव कर्मियों की एक बड़ी टीम की आवश्यकता होगी, जिन्हें उचित प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। यह एक महंगा और समय लेने वाला काम है।
  6. तकनीकी चुनौतियाँ: पूरे देश के डेटाबेस को एकीकृत करना, डुप्लीकेसी की सटीक पहचान करना और तकनीकी त्रुटियों से बचना एक जटिल कार्य है। साइबर सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा।
  7. प्रवासी मजदूरों का मुद्दा: भारत में बड़ी संख्या में लोग काम के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन करते हैं। यह सुनिश्चित करना कि इन प्रवासी मजदूरों का नाम सही जगह पर पंजीकृत हो और उन्हें अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिले, चुनौतीपूर्ण होगा।
  8. कानूनी अड़चनें: सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले और भविष्य की कोई भी याचिका इस प्रक्रिया को बाधित कर सकती है। आधार लिंकिंग के संबंध में कानूनी स्पष्टता और उसकी स्वैच्छिकता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा।
  9. त्रुटिपूर्ण निष्कासन का जोखिम: जल्दबाजी या अपर्याप्त सत्यापन के कारण योग्य मतदाताओं के नाम गलती से हटाए जा सकते हैं, जिससे उनके मताधिकार का हनन होगा।

“एक मजबूत और त्रुटिहीन मतदाता सूची लोकतंत्र के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी कि एक मजबूत नींव घर के लिए। लेकिन इस नींव को बनाते समय, हमें निजता और पहुंच के संतुलन को बनाए रखना होगा।”

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और न्यायपालिका का हस्तक्षेप

28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई इस राष्ट्रव्यापी अभियान के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। पूर्व में, सुप्रीम कोर्ट ने आधार-वोटर आईडी लिंकिंग के अनिवार्य प्रावधानों पर रोक लगा दी थी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि आधार का उपयोग स्वैच्छिक होना चाहिए।

न्यायपालिका की भूमिका:

  • अधिकारों का संरक्षण: सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करेगा कि मतदाता सूची शुद्धिकरण की प्रक्रिया नागरिकों के निजता के अधिकार, मताधिकार और अन्य मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।
  • प्रक्रिया की वैधता: न्यायालय यह जांच करेगा कि चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया कानूनी रूप से वैध है और संविधान के अनुरूप है।
  • संतुलन स्थापित करना: यह न्यायपालिका का कार्य है कि वह चुनावी अखंडता की आवश्यकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच एक उचित संतुलन स्थापित करे।

न्यायालय का फैसला चुनाव आयोग के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करेगा कि वह कैसे इस अभियान को आगे बढ़ा सकता है, खासकर आधार के उपयोग और डेटा गोपनीयता के संबंध में। यह संभावना है कि न्यायालय प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देगा।

आगे की राह: एक मजबूत और पारदर्शी प्रक्रिया

मतदाता सूची शुद्धिकरण के लिए एक प्रभावी और स्थायी प्रणाली बनाने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो चुनौतियों का समाधान करे और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखे।

  1. जन जागरूकता अभियान: चुनाव आयोग को एक व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि नागरिक इस प्रक्रिया के महत्व को समझें, अपनी प्रविष्टियों की जांच करें और सक्रिय रूप से भाग लें। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं और विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाना चाहिए।
  2. प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • AI और ML: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीकों का उपयोग बड़े डेटासेट में डुप्लीकेसी और त्रुटियों की सटीक पहचान करने के लिए किया जा सकता है।
    • ब्लॉकचेन तकनीक: भविष्य में, ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का उपयोग मतदाता पंजीकरण को अधिक सुरक्षित और छेड़छाड़-प्रूफ बनाने के लिए किया जा सकता है।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म: ऑनलाइन पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से नागरिकों को अपनी जानकारी अपडेट करने और शिकायतों को दर्ज करने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
  3. डाटा सुरक्षा कानून और प्रोटोकॉल: एक मजबूत डेटा सुरक्षा ढांचा अनिवार्य है। इसमें कड़े गोपनीयता प्रोटोकॉल, एन्क्रिप्शन और डेटा तक पहुंच को सीमित करने के नियम शामिल होने चाहिए। भारतीय संदर्भ में जल्द ही लागू होने वाले डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP Act) के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक होगा।
  4. नागरिक समाज की भागीदारी: गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और नागरिक समाज समूहों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए ताकि वे जागरूकता फैलाने, नागरिकों की सहायता करने और प्रक्रिया की निगरानी करने में मदद कर सकें।
  5. निरंतर समीक्षा और अद्यतन: मतदाता सूची का शुद्धिकरण एक बार की गतिविधि नहीं होनी चाहिए। इसे एक सतत प्रक्रिया बनाना होगा, जिसमें नियमित अंतराल पर समीक्षा और अद्यतन शामिल हो।
  6. अंतर-विभागीय समन्वय: चुनाव आयोग को मृत्यु पंजीकरण, जनगणना, आधार प्राधिकरण (UIDAI) और अन्य संबंधित सरकारी विभागों के साथ मजबूत समन्वय स्थापित करना चाहिए ताकि सटीक और अद्यतन डेटा साझा किया जा सके।
  7. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) और अन्य चुनाव कर्मियों को इस प्रक्रिया के लिए उचित रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिसमें तकनीकी पहलुओं और नागरिकों के साथ प्रभावी ढंग से बातचीत करने के कौशल शामिल हों।

निष्कर्ष

भारत में मतदाता सूची की राष्ट्रव्यापी समीक्षा एक अत्यंत आवश्यक और महत्वाकांक्षी कदम है। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और सटीकता को बढ़ाएगा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नींव को भी मजबूत करेगा। बिहार मॉडल की सफलता एक आशा की किरण है, लेकिन इसके राष्ट्रव्यापी विस्तार में चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस राह में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक पात्र नागरिक बिना किसी बाधा के मतदान कर सके और कोई भी अपात्र व्यक्ति इस प्रक्रिया में शामिल न हो, हमारे संविधान निर्माताओं के सपनों को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। एक शुद्ध मतदाता सूची केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं है; यह एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय लोकतंत्र का दर्पण है। यह समय है कि भारत अपनी चुनावी अखंडता को नई ऊंचाइयों पर ले जाए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार करें और दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनें)

1. भारत में चुनाव आयोग के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह संसद, राज्य विधानमंडलों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
2. यह मतदाता सूची तैयार करने और उसमें संशोधन करने के लिए जिम्मेदार है।
3. संविधान के अनुच्छेद 324 में इसके कार्य और शक्तियों का उल्लेख है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)
व्याख्या: भारत निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका गठन संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत किया गया है। यह संसद, राज्य विधानमंडलों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के साथ-साथ मतदाता सूची तैयार करने और उसमें संशोधन करने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, सभी तीनों कथन सही हैं।

2. मतदाता सूची के शुद्धिकरण के संबंध में, ‘डूप्लीकेट मतदाता’ शब्द का क्या अर्थ है?
(a) ऐसे मतदाता जिनका नाम मतदाता सूची में दो अलग-अलग पतों पर दर्ज है।
(b) ऐसे मतदाता जिनका नाम एक ही निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार दर्ज है।
(c) ऐसे मतदाता जो गलती से दो अलग-अलग राज्यों की सूची में शामिल हो गए हैं।
(d) उपरोक्त सभी

उत्तर: (d)
व्याख्या: ‘डुप्लीकेट मतदाता’ एक व्यापक शब्द है जिसमें वे सभी स्थितियाँ शामिल हैं जहाँ एक ही व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में एक से अधिक बार दर्ज होता है, चाहे वह एक ही निर्वाचन क्षेत्र में हो, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में हो, या विभिन्न राज्यों में हो।

3. भारत में मतदाता सूची को आधार से जोड़ने के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह पहल निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची में डुप्लीकेसी और त्रुटियों को कम करने के लिए की गई है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है।
3. यह प्रक्रिया मतदाताओं के लिए पूरी तरह से स्वैच्छिक है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सही है क्योंकि यह पहल डुप्लीकेसी कम करने के लिए है। कथन 2 गलत है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना अनिवार्य नहीं किया है, बल्कि इसे स्वैच्छिक बना दिया है। कथन 3 सही है, वर्तमान में यह प्रक्रिया मतदाताओं के लिए स्वैच्छिक है।

4. बूथ लेवल अधिकारी (BLO) की मुख्य जिम्मेदारियों में से एक क्या है?
(a) चुनाव अभियान चलाना और राजनीतिक रैलियां आयोजित करना।
(b) मतदाता सूची को अद्यतन करने और सत्यापन के लिए घर-घर सर्वेक्षण करना।
(c) चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(d) मतदान केंद्रों पर सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना।

उत्तर: (b)
व्याख्या: बूथ लेवल अधिकारी (BLO) चुनाव आयोग के महत्वपूर्ण जमीनी स्तर के कर्मचारी होते हैं। उनकी मुख्य जिम्मेदारियों में से एक मतदाता सूची को अद्यतन रखने के लिए घर-घर जाकर सत्यापन करना, नए मतदाताओं का पंजीकरण करना और त्रुटियों को ठीक करना शामिल है।

5. निम्नलिखित में से कौन-सा/से संभावित लाभ मतदाता सूची के राष्ट्रव्यापी शुद्धिकरण अभियान से संबंधित है/हैं?
1. चुनावी धोखाधड़ी पर अंकुश लगाना।
2. चुनाव आयोग के संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग।
3. चुनाव परिणामों की स्वीकार्यता बढ़ाना।
4. मतदान केंद्रों पर भीड़ में कमी।
सही कूट का चयन कीजिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)
व्याख्या: मतदाता सूची के शुद्धिकरण से चुनावी धोखाधड़ी कम होती है, संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है क्योंकि फर्जी नामों पर खर्च नहीं होता, परिणामों की वैधता बढ़ती है जिससे स्वीकार्यता बढ़ती है, और मतदान केंद्रों पर केवल वास्तविक मतदाता ही आते हैं जिससे भीड़ कम होती है। सभी विकल्प सही हैं।

6. भारत में मतदाता सूची के शुद्धिकरण अभियान से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों में से कौन-सी शामिल नहीं है?
(a) बड़े पैमाने पर अभियान का प्रबंधन।
(b) डेटा गोपनीयता और निजता संबंधी चिंताएं।
(c) चुनाव आयोग का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न होना।
(d) राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगने की संभावना।

उत्तर: (c)
व्याख्या: चुनाव आयोग का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न होना एक सामान्य चिंता हो सकती है, लेकिन यह सीधे तौर पर मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान से जुड़ी प्रमुख चुनौती नहीं है। बाकी सभी विकल्प इस अभियान से जुड़ी प्रत्यक्ष चुनौतियाँ हैं।

7. बिहार मॉडल, जिसका उल्लेख मतदाता सूची शुद्धिकरण के संदर्भ में किया गया है, मुख्य रूप से किस पर केंद्रित था?
(a) केवल मृत मतदाताओं को हटाना।
(b) बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा घर-घर जाकर भौतिक सत्यापन।
(c) मतदाताओं के आधार-आधारित सत्यापन पर।
(d) प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण के लिए विशेष शिविर।

उत्तर: (c)
व्याख्या: खबरों के अनुसार, बिहार मॉडल मुख्य रूप से मतदाताओं के आधार-आधारित सत्यापन पर केंद्रित था ताकि डुप्लीकेसी और त्रुटियों को प्रभावी ढंग से पहचाना जा सके। इसमें भौतिक सत्यापन भी शामिल था, लेकिन मुख्य जोर आधार पर था।

8. निम्नलिखित में से कौन-सी तकनीक मतदाता सूची शुद्धिकरण की प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकती है?
1. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)
2. मशीन लर्निंग (ML)
3. ब्लॉकचेन तकनीक
सही कूट का चयन कीजिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)
व्याख्या: AI और ML बड़े डेटासेट में पैटर्न और विसंगतियों की पहचान करके डुप्लीकेसी और त्रुटियों को अधिक कुशलता से ढूंढने में मदद कर सकते हैं। ब्लॉकचेन तकनीक भविष्य में मतदाता पंजीकरण को अधिक सुरक्षित और छेड़छाड़-प्रूफ बनाने की क्षमता रखती है। इसलिए, सभी तीनों तकनीकें सहायक हो सकती हैं।

9. मतदाता सूची के शुद्धिकरण से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट की संभावित भूमिका क्या है?
(a) केवल चुनाव आयोग के फैसलों को मंजूरी देना।
(b) प्रक्रिया की संवैधानिकता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करना।
(c) अभियान के लिए आवश्यक धन आवंटित करना।
(d) केवल राजनीतिक दलों की शिकायतों का समाधान करना।

उत्तर: (b)
व्याख्या: सुप्रीम कोर्ट की भूमिका न्यायिक समीक्षा और संविधान के संरक्षक के रूप में होती है। इसका कार्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी सरकारी कार्रवाई, जिसमें मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान भी शामिल है, संवैधानिक प्रावधानों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से निजता और मताधिकार के अनुरूप हो।

10. भारत में चुनावी प्रक्रिया के संदर्भ में, सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) डेटा का उपयोग किस उद्देश्य से किया जा सकता है?
(a) नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए।
(b) मृत मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए।
(c) मतदाताओं के पते को सत्यापित करने के लिए।
(d) चुनावी परिणामों की गणना के लिए।

उत्तर: (b)
व्याख्या: सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) जन्म और मृत्यु के पंजीकरण से संबंधित डेटा रखता है। इस डेटा का उपयोग विशेष रूप से मतदाता सूची से उन व्यक्तियों के नामों को हटाने के लिए किया जा सकता है जिनका निधन हो चुका है, जिससे सूची को अधिक सटीक बनाया जा सके।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(निम्नलिखित प्रश्नों के विश्लेषणात्मक उत्तर दें, जो लगभग 250-400 शब्दों में होने चाहिए)

1. “मतदाता सूची किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है।” इस कथन के आलोक में, भारत में मतदाता सूची के राष्ट्रव्यापी शुद्धिकरण अभियान की आवश्यकता और संभावित लाभों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

2. भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची को आधार से जोड़ने के प्रयासों के संबंध में निहित चुनौतियों पर प्रकाश डालिए, विशेष रूप से डेटा गोपनीयता और नागरिकों के अधिकारों के संदर्भ में। इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता है?

3. मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभियान को लागू करते समय किन प्रमुख प्रशासनिक और तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है? इन बाधाओं को दूर करने के लिए ‘आगे की राह’ के रूप में क्या उपाय सुझाए जा सकते हैं?

4. “एक मजबूत और त्रुटिहीन मतदाता सूची लोकतंत्र के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी कि एक मजबूत नींव घर के लिए।” भारत में चुनावी अखंडता सुनिश्चित करने में एक स्वच्छ मतदाता सूची की भूमिका का मूल्यांकन करें और उन उपायों पर चर्चा करें जो इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनाए जा सकते हैं।

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