Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

भारत का सामरिक कदम: रूसी तेल से जुड़े अंतरराष्ट्रीय दांव-पेंच का गहरा विश्लेषण

भारत का सामरिक कदम: रूसी तेल से जुड़े अंतरराष्ट्रीय दांव-पेंच का गहरा विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा रूस से तेल की खरीद बंद करने की चेतावनी के बावजूद, भारत ने अपनी रिफाइनरियों को रूसी तेल खरीदना जारी रखने का कोई विशिष्ट आदेश नहीं दिया है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम को रेखांकित करती है, जो सीधे तौर पर UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक है। यह घटनाक्रम वैश्विक ऊर्जा बाजार, भारत की विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जटिल जाल को समझने का अवसर प्रदान करता है।

यह मामला केवल तेल खरीद के बारे में नहीं है; यह संप्रभुता, कूटनीति, राष्ट्रीय हित और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच संतुलन बनाने की भारत की क्षमता का एक सूक्ष्म अध्ययन है। आइए, इस जटिल मुद्दे को UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से गहराई से समझते हैं, इसके विभिन्न आयामों, कारणों, प्रभावों और भविष्य की राह पर विचार करते हैं।

समझें पूरा संदर्भ: अमेरिका की चेतावनी और भारत का जवाब (Understanding the Context: America’s Warning and India’s Response)

यह मामला यूक्रेन युद्ध और उसके बाद रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि में सामने आया है। पश्चिमी देशों ने रूस से ऊर्जा आयात कम करने या पूरी तरह से बंद करने के लिए अन्य देशों पर भी दबाव डाला है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टिप्पणी, भले ही वह वर्तमान प्रशासन की आधिकारिक नीति का हिस्सा न हो, एक ऐसे “सॉफ्ट प्रेशर” का संकेत देती है जो भारत जैसे देशों पर पड़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने अपनी रिफाइनरियों को रूसी तेल की खरीद रोकने का कोई नया या विशिष्ट आदेश जारी नहीं किया है। इसका तात्पर्य यह है कि भारत अपनी पहले से स्थापित ऊर्जा कूटनीति और खरीद रणनीतियों पर कायम है। यह उस समय हो रहा है जब वैश्विक ऊर्जा बाजार अस्थिर है, और कीमतें ऊँची बनी हुई हैं।

क्यों भारत रूसी तेल पर निर्भरता बनाए हुए है? (Why is India Maintaining Dependence on Russian Oil?)

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक देश है। हमारी ऊर्जा सुरक्षा सीधे तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास से जुड़ी हुई है। इस संदर्भ में, भारत के रूसी तेल खरीद जारी रखने के कई सामरिक और आर्थिक कारण हैं:

  • लागत-प्रभावशीलता (Cost-Effectiveness): पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण, रूस ने अपने तेल पर भारी छूट की पेशकश की है। यूक्रेन युद्ध से पहले, रूस भारत के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ताओं में से नहीं था। लेकिन युद्ध के बाद, रूसी तेल, विशेष रूप से Urals क्रूड, अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं जैसे मध्य पूर्व या पश्चिमी देशों से आयातित तेल की तुलना में काफी सस्ता हो गया है। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आयात बिल को कम करने में मदद करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security): जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के एक बड़े हिस्से के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में, केवल कुछ देशों पर निर्भर रहना एक रणनीतिक जोखिम है। रूसी तेल की खरीद जारी रखना आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाने का एक तरीका है, जो किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचाता है।
  • कूटनीतिक लचीलापन (Diplomatic Flexibility): भारत की विदेश नीति हमेशा “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) के सिद्धांत पर आधारित रही है। इसका मतलब है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है, भले ही वह किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र के दबाव में न हो। अमेरिका या किसी अन्य देश के इशारे पर अपनी ऊर्जा नीति को पूरी तरह से बदलना, भारत की इस स्वायत्तता पर सवाल उठा सकता है।
  • मौजूदा अनुबंध और लॉजिस्टिक्स (Existing Contracts and Logistics): भारत की रिफाइनरियों ने पहले से ही रूसी तेल के लिए अनुबंध किए हुए हैं, और उनके पास रूसी कच्चे तेल को संसाधित करने की क्षमता भी है। अचानक इन खरीदों को रोकना न केवल आर्थिक रूप से महंगा होगा, बल्कि मौजूदा लॉजिस्टिक्स और अनुबंध संबंधी दायित्वों को भी जटिल बना देगा।
  • सब्सिडियरी आयात (Subsidiary Imports): कुछ मामलों में, रूसी तेल भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के बजाय निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा खरीदा जा रहा है। यह भारत सरकार को सीधे तौर पर अमेरिकी दबाव से निपटने में थोड़ी दूरी बनाए रखने की अनुमति देता है।

“भारत की ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखती है। जब तक तेल हमारे राष्ट्रीय हित में सस्ता और उपलब्ध है, हम खरीद जारी रखेंगे। यह किसी भी देश के लिए एक सामान्य कूटनीतिक और आर्थिक अभ्यास है।”

अमेरिका की चिंताएं और ट्रम्प की चेतावनी (America’s Concerns and Trump’s Warning)

अमेरिका की चिंताएं बहुआयामी हैं:

  • यूक्रेन युद्ध का वित्तपोषण (Financing the Ukraine War): अमेरिका और उसके सहयोगी रूस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं ताकि यूक्रेन पर आक्रमण की उसकी क्षमता को सीमित किया जा सके। रूस अपनी ऊर्जा बिक्री से होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा अपने सैन्य खर्चों के लिए उपयोग करता है। इसलिए, रूस से तेल खरीद जारी रखना, अमेरिकी दृष्टिकोण से, यूक्रेन युद्ध के वित्तपोषण में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करना है।
  • यूरोपीय एकजुटता (European Solidarity): अमेरिका चाहता है कि यूरोपीय देश, जो ऐतिहासिक रूप से रूसी ऊर्जा पर अधिक निर्भर रहे हैं, अपने आयात को कम करें। यदि भारत जैसे प्रमुख उपभोक्ता रूसी तेल खरीद जारी रखते हैं, तो यह यूरोपीय देशों के लिए भी अपने आयात को कम करने का एक बहाना बन सकता है, जिससे प्रतिबंधों का प्रभाव कमजोर पड़ सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था (International Order): अमेरिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। भारत जैसे बड़े और प्रभावशाली देश का रूस के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखना, इस वैश्विक प्रयास को बाधित करता है।
  • ट्रम्प का राजनीतिक बयान (Trump’s Political Statement): पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प का बयान, भले ही वर्तमान प्रशासन का आधिकारिक रुख न हो, एक राजनीतिक दांव हो सकता है। वह अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत, अन्य देशों को उन देशों से दूर रहने के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर सकते हैं, जिन्हें वह विरोधी मानता है। यह मौजूदा बाइडेन प्रशासन पर भी अप्रत्यक्ष दबाव बनाने का एक तरीका हो सकता है।

क्या यह भारत के लिए जोखिम भरा है? (Is this Risky for India?)

किसी भी कूटनीतिक या आर्थिक निर्णय में जोखिम निहित होते हैं। भारत के रूसी तेल खरीद जारी रखने के भी कुछ संभावित जोखिम हैं:

  • अमेरिका से संभावित प्रतिबंध (Potential Sanctions from the US): हालांकि यह संभावना कम है कि अमेरिका तुरंत भारत पर CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) जैसे प्रतिबंध लगाएगा, लेकिन ऐसे कदम उठाने की एक सैद्धांतिक संभावना हमेशा बनी रहती है। भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को देखते हुए, अमेरिकी सरकार इस मुद्दे को सीधे प्रतिबंधों के बजाय कूटनीतिक दबाव के माध्यम से हल करने का प्रयास करेगी।
  • यूरोपीय देशों का असंतोष (Displeasure of European Countries): यूरोपीय देश, जो रूस से अपनी निर्भरता कम करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, भारत के रुख से असहज हो सकते हैं। यह यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों को थोड़ा प्रभावित कर सकता है।
  • ऊर्जा बाजार में अस्थिरता (Volatility in Energy Markets): वैश्विक ऊर्जा बाजार पहले से ही अप्रत्याशित है। भू-राजनीतिक तनावों के कारण कीमतों में अचानक वृद्धि या आपूर्ति में व्यवधान आ सकता है।
  • नैतिक और मानवाधिकारों का प्रश्न (Ethical and Human Rights Question): कुछ वैश्विक मंचों पर, भारत पर यह दबाव डाला जा सकता है कि वह मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल देश से तेल खरीदने से बचे। हालाँकि, भारत अपनी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।

भारत की प्रतिक्रिया: एक संतुलित दृष्टिकोण (India’s Response: A Balanced Approach)

भारत ने इन चिंताओं को समझा है और अपनी प्रतिक्रिया को सावधानीपूर्वक संतुलित किया है:

  • कूटनीतिक संवाद (Diplomatic Dialogue): भारत लगातार अमेरिका और अन्य प्रमुख पश्चिमी देशों के साथ संपर्क में है। वह अपनी ऊर्जा जरूरतों, आर्थिक प्राथमिकताओं और “रणनीतिक स्वायत्तता” के सिद्धांत को स्पष्ट करता है।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका (Role of the Private Sector): जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, भारत ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को रूसी तेल खरीदने की अनुमति देकर एक कुशल तरीका अपनाया है। इससे सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर थोड़ी दूरी बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • अन्य आपूर्तिकर्ताओं से खरीद (Purchases from Other Suppliers): भारत ने अन्य देशों, जैसे इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका से भी तेल खरीदना जारी रखा है, जिससे उसकी ऊर्जा आपूर्ति विविध बनी रहे।
  • रूस के साथ संबंध (Relations with Russia): भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं, खासकर रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में। इन संबंधों को पूरी तरह से तोड़ना भारत के लिए रणनीतिक रूप से हानिकारक होगा।

UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण विषय (Key Topics for UPSC Exam)

यह मुद्दा UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई चरणों और विषयों के लिए प्रासंगिक है:

  • अंतरराष्ट्रीय संबंध (International Relations): भारत-अमेरिका संबंध, भारत-रूस संबंध, पश्चिम बनाम रूस, रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक प्रभाव।
  • अर्थशास्त्र (Economics): ऊर्जा सुरक्षा, आयात-निर्यात, मुद्रास्फीति, भुगतान संतुलन, वैश्विक ऊर्जा बाजार, OPEC+ की भूमिका।
  • भू-राजनीति (Geopolitics): भू-राजनीतिक तनावों का ऊर्जा बाजारों पर प्रभाव, शक्ति संतुलन, रणनीतिक स्वायत्तता।
  • विदेश नीति (Foreign Policy): भारत की विदेश नीति के सिद्धांत, बहु-संरेखण (Multi-alignment), राष्ट्रीय हित।
  • सुरक्षा (Security): ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अभिन्न अंग है।
  • समसामयिक मामले (Current Affairs): समसामयिक घटनाओं को समझना और उनका विश्लेषण करना।

आगे की राह: भारत के लिए क्या? (The Way Forward: What for India?)

भारत के लिए, यह एक नाजुक संतुलन का कार्य है। उसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखना है, साथ ही अपने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ संबंधों को भी सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना है।

  • ईंधन विविधता (Fuel Diversification): भारत को केवल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर, पवन) में निवेश बढ़ाने की दिशा में अपनी गति तेज करनी चाहिए। यह दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगा।
  • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves): वैश्विक आपूर्ति में व्यवधानों से निपटने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों को और मजबूत करना आवश्यक है।
  • कूटनीतिक सक्रियता (Diplomatic Proactiveness): भारत को विभिन्न देशों के साथ सक्रिय रूप से संवाद जारी रखना चाहिए ताकि उसकी स्थिति को समझा जा सके और संभावित विवादों को टाला जा सके।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा (Boosting Domestic Production): घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लाना भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की चेतावनी के बावजूद भारत का रूसी तेल की खरीद जारी रखने का निर्णय, उसकी परिपक्व और राष्ट्रीय हितों पर आधारित विदेश नीति का एक उदाहरण है। यह दर्शाता है कि कैसे एक विकासशील देश वैश्विक महाशक्तियों के दबावों के बीच अपनी आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। यह कूटनीति, अर्थशास्त्र और भू-राजनीति के जटिल अंतर्संबंधों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे UPSC उम्मीदवारों को गहनता से समझना चाहिए। भारत की कार्रवाईयां न केवल उसके अपने राष्ट्रीय हितों को दर्शाती हैं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को भी प्रभावित करती हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: हाल की रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने किस देश से तेल की खरीद जारी रखने का निर्णय लिया है, भले ही उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव हो?
    1. ईरान
    2. वेनेजुएला
    3. रूस
    4. सऊदी अरब

    उत्तर: (c) रूस
    व्याख्या: रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने रूस से तेल की खरीद पर रोक लगाने का कोई नया आदेश जारी नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि खरीद जारी है।

  2. प्रश्न 2: अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद, रूस भारतीय रिफाइनरियों को अपना तेल किस कारण से आकर्षक मूल्य पर बेच रहा है?
    1. तकनीकी सहयोग के बदले
    2. ऊपरी छूट (Discount) की पेशकश
    3. सामरिक गठबंधन के हिस्से के रूप में
    4. कम परिवहन लागत के कारण

    उत्तर: (b) ऊपरी छूट (Discount) की पेशकश
    व्याख्या: पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण, रूस अपने तेल को आकर्षक छूट पर बेच रहा है ताकि खरीदार मिल सकें।

  3. प्रश्न 3: भारत की विदेश नीति का कौन सा सिद्धांत उसे अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने में सक्षम बनाता है, भले ही वह बाहरी दबाव में हो?
    1. गुटनिरपेक्षता
    2. रणनीतिक स्वायत्तता
    3. पंचशील
    4. सर्वांगीण सुरक्षा

    उत्तर: (b) रणनीतिक स्वायत्तता
    व्याख्या: भारत की विदेश नीति का मुख्य सिद्धांत “रणनीतिक स्वायत्तता” है, जो उसे अपने फैसले स्वयं लेने की स्वतंत्रता देता है।

  4. प्रश्न 4: अमेरिका और उसके सहयोगी रूस से तेल खरीद बंद करने का दबाव क्यों डाल रहे हैं?
    1. रूस की आर्थिक शक्ति को कम करने के लिए
    2. यूक्रेन युद्ध के वित्तपोषण को रोकने के लिए
    3. वैश्विक तेल कीमतों को नियंत्रित करने के लिए
    4. उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
    व्याख्या: अमेरिका और सहयोगी रूस की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालकर, उसके युद्ध वित्तपोषण को रोककर और वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखकर ऐसा कर रहे हैं।

  5. प्रश्न 5: भारत के लिए रूसी तेल की खरीद जारी रखने का मुख्य आर्थिक कारण क्या है?
    1. यूरोप से तेल की कमी
    2. लागत-प्रभावशीलता और आयात बिल कम करना
    3. रूस से कच्चे माल का आयात
    4. रूस के साथ व्यापार अधिशेष

    उत्तर: (b) लागत-प्रभावशीलता और आयात बिल कम करना
    व्याख्या: रूस द्वारा दी जा रही छूट के कारण, भारतीय रिफाइनरियों के लिए रूसी तेल खरीदना अधिक किफायती है।

  6. प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में सही है?
    1. भारत ऊर्जा के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर है।
    2. भारत आयातित तेल पर बहुत अधिक निर्भर है।
    3. भारत मुख्य रूप से अमेरिका से तेल आयात करता है।
    4. भारत जीवाश्म ईंधन के बजाय केवल नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करता है।

    उत्तर: (b) भारत आयातित तेल पर बहुत अधिक निर्भर है।
    व्याख्या: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और अपनी अधिकांश जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।

  7. प्रश्न 7: “CAATSA” (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) किस देश से संबंधित प्रमुख अमेरिकी कानून है?
    1. चीन
    2. ईरान
    3. उत्तर कोरिया
    4. रूस

    उत्तर: (d) रूस
    व्याख्या: CAATSA कानून रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों पर प्रतिबंध लगाने के लिए है।

  8. प्रश्न 8: भारत की प्रतिक्रिया में, निजी क्षेत्र की तेल कंपनियों की भूमिका क्या रही है?
    1. रूसी तेल की खरीद पूरी तरह से बंद करना
    2. केवल पश्चिमी देशों से तेल खरीदना
    3. रूसी तेल की खरीद में प्रमुख भूमिका निभाना
    4. सरकार के तेल सौदों पर निगरानी रखना

    उत्तर: (c) रूसी तेल की खरीद में प्रमुख भूमिका निभाना
    व्याख्या: निजी कंपनियों द्वारा खरीद से सरकार को सीधे अमेरिकी दबाव से बचने में मदद मिली है।

  9. प्रश्न 9: भू-राजनीतिक तनावों का ऊर्जा बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
    1. तेल की कीमतों में स्थिरता
    2. आपूर्ति में व्यवधान और कीमतों में वृद्धि
    3. ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण
    4. ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि

    उत्तर: (b) आपूर्ति में व्यवधान और कीमतों में वृद्धि
    व्याख्या: भू-राजनीतिक अस्थिरता अक्सर वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को बाधित करती है और कीमतों को बढ़ाती है।

  10. प्रश्न 10: भारत अपनी दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठा सकता है?
    1. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ाना
    2. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना
    3. केवल एक देश से तेल आयात करना
    4. घरेलू तेल उत्पादन पूरी तरह से बंद करना

    उत्तर: (b) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना
    व्याख्या: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और आयात निर्भरता कम करने में मदद करेगा।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: “रणनीतिक स्वायत्तता” के सिद्धांत के आलोक में, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल की खरीद जारी रखने के भारत के फैसले का विश्लेषण करें। इस निर्णय से जुड़े आर्थिक, कूटनीतिक और भू-राजनीतिक आयामों पर प्रकाश डालें।
  2. प्रश्न 2: भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में, बहु-आयामी ऊर्जा कूटनीति (multi-faceted energy diplomacy) के महत्व का वर्णन करें। वैश्विक ऊर्जा बाजारों में स्थिरता और भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए इस कूटनीति की क्या चुनौतियाँ हैं?
  3. प्रश्न 3: भू-राजनीतिक तनावों और प्रमुख वैश्विक शक्तियों के दबावों के बीच, भारत जैसे देश अपनी ऊर्जा आपूर्ति को कैसे सुरक्षित और विविधतापूर्ण बनाए रखते हैं? उदाहरण सहित समझाएं।
  4. प्रश्न 4: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव और भारत जैसे देशों की प्रतिक्रिया का वैश्विक व्यवस्था पर क्या असर पड़ता है? इस संदर्भ में भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की भूमिका का मूल्यांकन करें।

Leave a Comment