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भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध: रूस से हथियारों और ऊर्जा पर 25% टैरिफ का पूरा सच

भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध: रूस से हथियारों और ऊर्जा पर 25% टैरिफ का पूरा सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 25% का टैरिफ (शुल्क) लगाने की घोषणा की है। यह घोषणा विशेष रूप से भारत द्वारा रूस से ऊर्जा (विशेषकर तेल) और रक्षा उपकरण (हथियार) की खरीद पर केंद्रित है। ट्रम्प प्रशासन का यह कदम, जिसे भारत के लिए एक ‘दंड’ के रूप में देखा जा रहा है, भू-राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर भारत के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है। यह ब्लॉग पोस्ट UPSC उम्मीदवारों को इस मुद्दे की गहराई से पड़ताल करने, इसके कारणों, प्रभावों, भारत के लिए चुनौतियों और भविष्य की राह को समझने में मदद करेगा।

पृष्ठभूमि: अमेरिका का ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा और वैश्विक व्यापार पर उसका प्रभाव

डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति कार्यकाल ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के इर्द-गिर्द केंद्रित था। इस नीति के तहत, उन्होंने कई देशों पर टैरिफ लगाए, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार किया और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को अमेरिकी हितों के अनुरूप ढालने का प्रयास किया। उनका मानना था कि कई देश अमेरिकी उत्पादों और कंपनियों के प्रति अनुचित व्यवहार करते हैं, जिससे अमेरिका को आर्थिक नुकसान होता है। इस संदर्भ में, रूस से भारत की बढ़ती ऊर्जा और रक्षा साझेदारी को अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए एक संभावित चुनौती के रूप में देखा।

मुख्य मुद्दा: 25% टैरिफ और ‘दंड’ का अर्थ

ट्रम्प की घोषणा का सीधा अर्थ यह है कि यदि भारत अमेरिका से कुछ विशेष वस्तुओं का आयात करता है, तो उन पर 25% का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। यह शुल्क विशेष रूप से उन भारतीय आयातों पर लागू हो सकता है जो अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन यहाँ ‘दंड’ शब्द का प्रयोग अधिक महत्वपूर्ण है। यह दंड केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि यह भारत पर रणनीतिक दबाव बनाने का एक तरीका भी है।

“यह एक प्रकार का ‘सेकेंडरी सैंक्शन’ (Secondary Sanction) या अप्रत्यक्ष प्रतिबंधात्मक उपाय है, जिसका उद्देश्य भारत को रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को सीमित करने के लिए मजबूर करना है।”

यह कदम विशेष रूप से CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) जैसे कानूनों के तहत उठाया जा सकता है, जो उन देशों पर प्रतिबंध लगाता है जो रूस के साथ बड़े रक्षा सौदे करते हैं। हालांकि, ट्रम्प की घोषणा अधिक व्यापक है, जिसमें केवल हथियारों की खरीद ही नहीं, बल्कि ऊर्जा आयात को भी शामिल किया गया है।

भारत के लिए रूस से ऊर्जा और हथियारों की खरीद क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत के लिए रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी कोई नई बात नहीं है। इसके कई ऐतिहासिक और सामरिक कारण हैं:

  • ऐतिहासिक रक्षा साझेदारी: भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 60-70%) रूस से आयात करता है। शीत युद्ध के समय से ही रूस भारत का सबसे विश्वसनीय रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है। रूस द्वारा प्रदान किए गए हथियार प्रणाली, लड़ाकू विमान (जैसे सुखोई, मिग), पनडुब्बियां और मिसाइलें भारतीय सशस्त्र बलों की रीढ़ रही हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत एक ऊर्जा-आयातक देश है और अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विविध स्रोतों पर निर्भर है। रूस भारत को तेल और गैस का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है। विशेष रूप से, यूक्रेन युद्ध के बाद, जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल की पेशकश की। भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाया।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: भारत अपनी विदेश नीति में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) के सिद्धांत का पालन करता है। इसका अर्थ है कि भारत किसी भी एक शक्ति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं है और अपनी राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेता है। रूस के साथ साझेदारी भारत को पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता कम करने और अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
  • विश्वसनीयता और लागत: ऐतिहासिक रूप से, रूस रक्षा उपकरणों की आपूर्ति में अधिक विश्वसनीय रहा है, खासकर जब पश्चिमी देश राजनीतिक कारणों से हथियार बेचने में झिझकते रहे हैं। इसके अतिरिक्त, रूसी हथियार अक्सर पश्चिमी हथियारों की तुलना में अधिक किफायती होते हैं, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।

अमेरिका के टैरिफ और ‘दंड’ के संभावित प्रभाव (Impacts):

ट्रम्प की घोषणा के भारत पर कई बहुआयामी प्रभाव पड़ सकते हैं:

  1. आर्थिक प्रभाव:
    • बढ़ती लागत: यदि यह टैरिफ लागू होता है, तो भारत द्वारा अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर लागत बढ़ जाएगी। यह भारत की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ डाल सकता है।
    • व्यापार असंतुलन: यह अमेरिकी आयात को हतोत्साहित कर सकता है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार पर असर पड़ सकता है।
    • ऊर्जा आयात पर दबाव: यदि टैरिफ ऊर्जा आयात को भी प्रभावित करता है, तो भारत को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ सकती है, जो अधिक महँगे हो सकते हैं।
  2. रक्षा और सुरक्षा पर प्रभाव:
    • आधुनिकीकरण में बाधा: भारत के रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम प्रभावित हो सकते हैं यदि रूस से हथियारों की खरीद पर अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी दबाव बनता है।
    • रूस पर निर्भरता: भारत को रूस पर अपनी रक्षा निर्भरता को लेकर मुश्किल निर्णय लेने पड़ सकते हैं।
    • रणनीतिक दुविधा: भारत को यह तय करना पड़ सकता है कि वह अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को प्राथमिकता दे या रूस के साथ अपनी दीर्घकालिक रक्षा साझेदारी को बनाए रखे।
  3. भू-राजनीतिक प्रभाव:
    • भारत-अमेरिका संबंध: यह टैरिफ भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और रणनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है।
    • भारत-रूस संबंध: भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर अधिक सावधानी बरतनी होगी।
    • वैश्विक शक्ति संतुलन: यह घटना वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की स्थिति को भी प्रभावित कर सकती है, क्योंकि भारत पश्चिमी देशों और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण धुरी है।

ट्रम्प प्रशासन की मंशा (Intention):

ट्रम्प प्रशासन की मंशा को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है:

  • रूस को अलग-थलग करना: अमेरिका की प्राथमिक मंशा रूस के प्रभाव को कम करना और उसे वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करना हो सकती है। रूस से हथियारों और ऊर्जा की खरीद को हतोत्साहित करके, वे रूस की अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता पर दबाव बनाना चाहते हैं।
  • भारत पर दबाव: वे भारत जैसे प्रमुख देशों पर दबाव डालना चाहते हैं कि वे रूस से दूरी बनाए रखें, खासकर यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में।
  • आर्थिक लाभ: अमेरिका अपने टैरिफ के माध्यम से घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और अपने व्यापार घाटे को कम करना भी चाह सकता है।
  • ‘क्वाड’ (QUAD) को मजबूत करना: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका भारत को अपना महत्वपूर्ण साझेदार मानता है। वह भारत को रूस के प्रभाव से दूर रखकर, ‘क्वाड’ (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे गठबंधनों को मजबूत करना चाहता है।

भारत की प्रतिक्रिया और संभावित रणनीतियाँ:

भारत के सामने एक जटिल दुविधा है। उसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक हितों और रणनीतिक स्वायत्तता को संतुलित करना होगा। भारत निम्नलिखित रणनीतियों पर विचार कर सकता है:

  1. कूटनीतिक बातचीत: भारत को अमेरिका के साथ उच्च-स्तरीय कूटनीतिक बातचीत करनी चाहिए ताकि टैरिफ के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और अमेरिकी चिंताओं को समझा जा सके। यह समझाना महत्वपूर्ण है कि भारत की रूस के साथ साझेदारी उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए क्यों आवश्यक है।
  2. वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश:
    • ऊर्जा: भारत को मध्य पूर्व (सऊदी अरब, यूएई, इराक), अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों से ऊर्जा आयात के स्रोतों में विविधता लानी चाहिए।
    • रक्षा: हालाँकि रूस एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, भारत को फ्रांस, इज़राइल और अमेरिका जैसे अन्य देशों से रक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ानी चाहिए और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देकर घरेलू रक्षा उत्पादन को मजबूत करना चाहिए।
  3. CAATSA का अपवाद (Waiver): भारत CAATSA के तहत छूट (waiver) प्राप्त करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस और प्रशासन पर दबाव बना सकता है, जैसा कि अतीत में कुछ अन्य देशों को मिली है। भारत तर्क दे सकता है कि उसकी रूस के साथ रक्षा खरीदें अमेरिका के हितों को सीधे तौर पर नुकसान नहीं पहुंचाती हैं।
  4. रूस के साथ द्विपक्षीय संबंधों का प्रबंधन: भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को इस तरह से प्रबंधित करना होगा कि वह अमेरिकी दबावों का सामना कर सके। इसमें गैर-डॉलर भुगतानों की व्यवस्था, वैकल्पिक भुगतान तंत्र और रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा सहयोग को जारी रखने के तरीके खोजना शामिल हो सकता है।
  5. घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: लंबी अवधि में, भारत को अपनी रक्षा और ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करना होगा।

ऐतिहासिक मिसालें और तुलनात्मक अध्ययन (Case Studies):

यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने रूस के साथ रक्षा सौदे करने वाले देशों पर दबाव डाला है।

  • तुर्की का मामला: तुर्की ने रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी थी, जिसके कारण अमेरिका ने उस पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाए और उसे F-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम से बाहर कर दिया। यह मामला भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि ऐसे सौदों के क्या परिणाम हो सकते हैं।
  • चीन का मामला: चीन पर भी रूस से सैन्य उपकरण खरीदने के कारण CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाए गए थे।

ये मामले दर्शाते हैं कि अमेरिका ऐसे मुद्दों पर कितना सख्त रुख अपना सकता है। भारत को इन मिसालों से सीखते हुए अपनी रणनीति बनानी होगी।

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता:

यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह निम्नलिखित क्षेत्रों को कवर करता है:

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS-II): भारत के विदेश संबंध, भारत-अमेरिका संबंध, भारत-रूस संबंध, भू-राजनीति, वैश्विक व्यापार, प्रतिबंध और उनकी प्रभावशीलता।
  • अर्थव्यवस्था (GS-III): व्यापार नीति, टैरिफ, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा विनिर्माण, आर्थिक प्रभाव।
  • सुरक्षा (GS-III): राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा आधुनिकीकरण, भू-राजनीतिक सुरक्षा।
  • समसामयिक मामले: वर्तमान वैश्विक घटनाओं और उनके भारत पर पड़ने वाले प्रभावों की समझ।

उम्मीदवारों को न केवल घटना का वर्णन करने में सक्षम होना चाहिए, बल्कि इसके पीछे के कारणों, प्रभावों और भारत के लिए चुनौतियों का विश्लेषण भी करना चाहिए।

चुनौतियाँ:

भारत के सामने मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:

  • रणनीतिक संतुलन: अमेरिका जैसे प्रमुख रणनीतिक साझेदार और रूस जैसे पारंपरिक रक्षा साझेदार के बीच संतुलन बनाए रखना।
  • ऊर्जा सुरक्षा: सस्ती और निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना, खासकर जब वैश्विक ऊर्जा बाजार अस्थिर हो।
  • रक्षा आधुनिकीकरण: अपनी सैन्य क्षमताओं को अद्यतन रखना, जबकि आपूर्तिकर्ताओं पर दबाव का सामना करना पड़ रहा हो।
  • आर्थिक लागत: टैरिफ के कारण बढ़ने वाली लागतों का प्रबंधन करना।
  • कूटनीतिक दबाव: अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे कूटनीतिक और आर्थिक दबावों का प्रभावी ढंग से सामना करना।

भविष्य की राह (Way Forward):

भविष्य में, भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देना, अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता: ऊर्जा आपूर्ति के लिए भौगोलिक विविधीकरण (geographical diversification) और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना।
  • विविध रक्षा साझेदारियाँ: विभिन्न देशों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करना ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता न रहे।
  • मजबूत कूटनीति: वैश्विक मंचों पर भारत के हितों की प्रभावी ढंग से पैरवी करना और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (multipolar world order) में अपनी स्थिति मजबूत करना।
  • विनिर्माण को बढ़ावा: आयात प्रतिस्थापन (import substitution) और निर्यात संवर्धन (export promotion) पर ध्यान केंद्रित करते हुए विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर 25% टैरिफ की घोषणा, विशेष रूप से रूस से ऊर्जा और हथियारों की खरीद के संबंध में, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौती है। यह घटना भारत की विदेश नीति, रक्षा खरीद और आर्थिक हितों को प्रभावित करती है। भारत को अपनी पारंपरिक रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए, इस स्थिति से कुशलतापूर्वक निपटना होगा। कूटनीतिक बातचीत, स्रोतों में विविधता और घरेलू क्षमताओं को मजबूत करके, भारत इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है और वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। यह मुद्दा UPSC उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य से गहन अध्ययन का विषय है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर घोषित 25% टैरिफ मुख्य रूप से किस प्रकार की भारतीय खरीद पर केंद्रित है?

    a) भारतीय आईटी सेवाओं का अमेरिकी आयात

    b) रूस से भारत द्वारा ऊर्जा और हथियारों की खरीद

    c) भारत से चीनी स्मार्टफोन का आयात

    d) भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादों का अमेरिकी निर्यात

    उत्तर: b) रूस से भारत द्वारा ऊर्जा और हथियारों की खरीद

    व्याख्या: ट्रम्प की घोषणा विशेष रूप से भारत द्वारा रूस से ऊर्जा (तेल) और रक्षा उपकरण (हथियार) खरीदने के संदर्भ में की गई थी।

  2. CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    a) अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना

    b) रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ महत्वपूर्ण सैन्य या रक्षा सौदा करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाना

    c) जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना

    d) आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना

    उत्तर: b) रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ महत्वपूर्ण सैन्य या रक्षा सौदा करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाना

    व्याख्या: CAATSA एक अमेरिकी कानून है जिसका उद्देश्य रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के विरोधियों पर प्रतिबंध लगाना है, खासकर उन देशों पर जो इन देशों से महत्वपूर्ण रक्षा या वित्तीय लेन-देन करते हैं।

  3. भारत की विदेश नीति में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) का क्या अर्थ है?

    a) किसी भी बाहरी शक्ति के साथ गठबंधन नहीं करना

    b) अपनी राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना, भले ही वह किसी प्रमुख शक्ति के विचारों से भिन्न हो

    c) केवल सैन्य रूप से आत्मनिर्भर होना

    d) सभी अंतर्राष्ट्रीय संधियों का पालन करना

    उत्तर: b) अपनी राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना, भले ही वह किसी प्रमुख शक्ति के विचारों से भिन्न हो

    व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि भारत अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और हितों के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है, बिना किसी बाहरी दबाव के।

  4. निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत का एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, खासकर शीत युद्ध काल से?

    a) संयुक्त राज्य अमेरिका

    b) इज़राइल

    c) फ्रांस

    d) रूस

    उत्तर: d) रूस

    व्याख्या: रूस ऐतिहासिक रूप से भारत का सबसे बड़ा और सबसे विश्वसनीय रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, जो शीत युद्ध के समय से चला आ रहा है।

  5. यूक्रेन युद्ध के बाद, भारत ने रूस से तेल आयात में वृद्धि क्यों की?

    a) भारत का यूक्रेन के साथ रक्षा समझौता था

    b) रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई

    c) पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण

    d) उपरोक्त में से कोई नहीं

    उत्तर: b) रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई

    व्याख्या: यूक्रेन युद्ध के बाद, रूस ने कई देशों को, जिनमें भारत भी शामिल है, रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, जिससे भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करने में मदद मिली।

  6. तुर्की को अमेरिका द्वारा F-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम से बाहर क्यों कर दिया गया था?

    a) तुर्की द्वारा रूसी S-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद

    b) तुर्की द्वारा अमेरिकी टैरिफ का अनुपालन न करना

    c) तुर्की द्वारा CAATSA का उल्लंघन

    d) तुर्की की अपनी रक्षा विनिर्माण क्षमता

    उत्तर: a) तुर्की द्वारा रूसी S-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद

    व्याख्या: तुर्की द्वारा रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के कारण अमेरिका ने उस पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाए और उसे F-35 कार्यक्रम से बाहर कर दिया।

  7. निम्नलिखित में से कौन सा ‘क्वाड’ (QUAD) का सदस्य देश नहीं है?

    a) भारत

    b) जापान

    c) दक्षिण कोरिया

    d) ऑस्ट्रेलिया

    उत्तर: c) दक्षिण कोरिया

    व्याख्या: क्वाड (Quadrilateral Security Dialogue) के सदस्य देश भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।

  8. ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?

    a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना

    b) अमेरिकी आर्थिक और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना

    c) वैश्विक व्यापार को उदार बनाना

    d) मानवीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करना

    उत्तर: b) अमेरिकी आर्थिक और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना

    व्याख्या: ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था, नौकरियों और राष्ट्रीय हितों को वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता देना था।

  9. भारत को अपनी रक्षा निर्भरता कम करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी पहल करनी चाहिए?

    1. ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देना

    2. अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाना

    3. विभिन्न देशों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करना

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:

    a) केवल 1

    b) 1 और 2

    c) 1, 2 और 3

    d) केवल 3

    उत्तर: c) 1, 2 और 3

    व्याख्या: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए ‘मेक इन इंडिया’, अनुसंधान एवं विकास में निवेश और विविध रक्षा साझेदारियाँ सभी महत्वपूर्ण हैं।

  10. भारत के लिए भू-राजनीतिक रूप से रूस के साथ साझेदारी बनाए रखना क्यों महत्वपूर्ण हो सकता है?

    a) पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करना

    b) बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में संतुलन बनाए रखना

    c) ऐतिहासिक और रक्षात्मक संबंध

    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: d) उपरोक्त सभी

    व्याख्या: रूस के साथ साझेदारी भारत को पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करने, बहुध्रुवीय विश्व में संतुलन बनाए रखने और अपने ऐतिहासिक रक्षा संबंधों को जारी रखने में मदद करती है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत पर रूस से हथियार और ऊर्जा खरीदने के कारण लगाए गए टैरिफ और ‘दंड’ का विश्लेषण करें। भारत-अमेरिका संबंधों और भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)

  2. ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के सिद्धांत पर जोर देते हुए, भारत के लिए रूस के साथ अपनी रक्षा और ऊर्जा साझेदारी को बनाए रखना क्यों महत्वपूर्ण है? इस संदर्भ में भारत के सामने क्या चुनौतियाँ हैं और वह उनसे कैसे निपट सकता है? (250 शब्द, 15 अंक)

  3. अमेरिका के CAATSA जैसे प्रतिबंधात्मक उपाय वैश्विक भू-राजनीति में किस प्रकार शक्ति संतुलन को प्रभावित करते हैं? तुर्की के S-400 सौदे के उदाहरण का प्रयोग करते हुए, ऐसे प्रतिबंधों की प्रभावशीलता और भारत जैसे देशों के लिए निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)

  4. भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा आधुनिकीकरण के संदर्भ में, रूस से आयात पर अमेरिकी दबाव के क्या निहितार्थ हैं? भारत को अपनी निर्भरता कम करने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए क्या उपाय करने चाहिए? (150 शब्द, 10 अंक)

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