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भारत-अमेरिका व्यापार जंग: 25% टैरिफ पर नई दिल्ली की दो टूक, क्या होंगे परिणाम?

भारत-अमेरिका व्यापार जंग: 25% टैरिफ पर नई दिल्ली की दो टूक, क्या होंगे परिणाम?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में तब हलचल मच गई जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए जाने वाले शुल्कों (टैरिफ) के जवाब में भारत के कुछ खास इस्पात और अलौह धातु उत्पादों पर 25% का आयात शुल्क लगाने की घोषणा की। इस कदम ने भारत की आर्थिक और व्यापारिक नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए और स्वाभाविक रूप से भारत सरकार को अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी। भारत की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया कि देश के हित में जो भी आवश्यक कदम होंगे, वे उठाए जाएंगे। इस घोषणा ने द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत की, जिसने न केवल दोनों देशों के बीच आर्थिक तनाव बढ़ाया, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था के भविष्य पर भी बहस छेड़ दी।

यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और भू-राजनीति जैसे विषयों से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस मुद्दे की तह तक जाएंगे, इसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे, और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसकी प्रासंगिकता को समझेंगे।

अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने का संदर्भ और कारण

अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने का निर्णय कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि यह एक व्यापक व्यापारिक रणनीति का हिस्सा था जो तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन द्वारा ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत अपनाई जा रही थी। इसके पीछे कई प्रमुख कारण थे:

  • व्यापार घाटा (Trade Deficit): अमेरिका का मानना था कि कई देश, जिनमें भारत भी शामिल है, अनुचित व्यापार प्रथाओं के माध्यम से अमेरिका के साथ अपने व्यापार घाटे को बढ़ा रहे हैं। वे चाहते थे कि अन्य देश अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए शुल्कों को कम करें और अमेरिका के निर्यात के लिए अपने बाजारों को खोलें।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights – IPR): अमेरिका अक्सर अन्य देशों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है। उनका मानना था कि ऐसे टैरिफ के माध्यम से वे इन मुद्दों पर दबाव बना सकते हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security): कुछ मामलों में, राष्ट्रीय सुरक्षा को एक कारण के रूप में भी इस्तेमाल किया गया, खासकर इस्पात जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में। अमेरिका का तर्क था कि घरेलू इस्पात उद्योग को सुरक्षित रखना उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • बातचीत की रणनीति (Negotiation Tactic): टैरिफ लगाना अक्सर बातचीत की मेज पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का एक तरीका होता है। अमेरिका ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि जब वे भारत के साथ व्यापार वार्ता करें, तो उनके पास मजबूत सौदेबाजी की शक्ति हो।

“हम अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।” – भारतीय सरकार का एक प्रतिनिधि वक्तव्य।

भारत की प्रतिक्रिया: ‘देशहित में हर जरूरी कदम’

अमेरिकी टैरिफ की घोषणा के जवाब में, भारत की प्रतिक्रिया सधी हुई लेकिन दृढ़ थी। भारत ने स्पष्ट किया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की आवश्यक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगा। यह प्रतिक्रिया कई मायनों में महत्वपूर्ण थी:

  • सार्वभौमिकता का सिद्धांत (Principle of Reciprocity): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में, अक्सर ‘समानता’ (reciprocity) का सिद्धांत लागू होता है। यदि एक देश दूसरे पर शुल्क लगाता है, तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई के रूप में शुल्क लगा सकता है। भारत का रुख इसी सिद्धांत पर आधारित था।
  • आर्थिक प्रभाव का आकलन: भारत ने अमेरिकी टैरिफ के संभावित आर्थिक प्रभावों का तुरंत आकलन किया। इसमें यह देखा गया कि किन भारतीय उद्योगों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा और किन अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाने से अमेरिका को सबसे अधिक नुकसान होगा।
  • कूटनीतिक संवाद: भारत ने केवल जवाबी कार्रवाई की धमकी नहीं दी, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी इस मुद्दे को उठाने का प्रयास किया। अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत जारी रखी गई ताकि किसी सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचा जा सके।
  • घरेलू उद्योगों का समर्थन: यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए कि टैरिफ से प्रभावित भारतीय उद्योगों को सरकारी सहायता मिले, चाहे वह सब्सिडी के रूप में हो या बाजार पहुंच को आसान बनाने के रूप में।

25% टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ का सीधा प्रभाव उन भारतीय निर्यातकों पर पड़ा जो इन शुल्कों के दायरे में आने वाले उत्पादों का निर्यात करते थे।

  • निर्यात में गिरावट: जिन भारतीय इस्पात और अलौह धातु उत्पादों पर 25% का शुल्क लगा, उनके अमेरिकी बाजारों में प्रवेश की लागत बढ़ गई, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो गई और अंततः निर्यात में गिरावट आई।
  • राजस्व का नुकसान: भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में बिक्री के अवसरों को खोने या कम मात्रा में बेचने के कारण राजस्व का नुकसान हुआ।
  • रोजगार पर असर: यदि निर्यात कम होता है, तो संबंधित उद्योगों में उत्पादन कम हो सकता है, जिससे रोजगार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • निवेश पर प्रभाव: इस तरह की अनिश्चितता और व्यापार बाधाएं विदेशी और घरेलू दोनों तरह के निवेश को हतोत्साहित कर सकती हैं।

भारत द्वारा उठाए गए संभावित जवाबी कदम

जैसा कि भारत ने कहा, ‘देशहित में हर जरूरी कदम उठाएंगे’, यह केवल एक बयान नहीं था, बल्कि इसमें कई कूटनीतिक और आर्थिक विकल्प शामिल थे:

  1. जवाबी आयात शुल्क (Retaliatory Tariffs): भारत, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत, उन अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी आयात शुल्क लगा सकता था जिन पर अमेरिका को सबसे अधिक आर्थिक नुकसान हो। यह आमतौर पर उन उत्पादों पर लगाया जाता है जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होते हैं या जिन पर अमेरिका की निर्भरता अधिक होती है।
  2. बाजार पहुंच को आसान बनाना: भारत कुछ अमेरिकी उत्पादों पर शुल्कों को कम कर सकता था या उन्हें कोटा-मुक्त कर सकता था, जिससे अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजार में अधिक सुगमता से प्रवेश मिल सके। यह एक ‘डील’ के हिस्से के रूप में किया जा सकता था।
  3. डब्ल्यूटीओ का सहारा: यदि भारत को लगता कि अमेरिकी कदम डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो वह विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान तंत्र (Dispute Settlement Mechanism) का सहारा ले सकता था।
  4. ऊर्जा और रक्षा सौदों पर पुनर्विचार: कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए, भारत ऊर्जा या रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बड़े सौदों पर पुनर्विचार कर सकता था, जो अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।
  5. निर्यात प्रोत्साहन: उन भारतीय उद्योगों को जो अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित थे, सरकार अतिरिक्त निर्यात प्रोत्साहन या वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती थी ताकि वे वैकल्पिक बाजारों में अपने उत्पादों को बेच सकें।

“व्यापार युद्ध किसी के लिए भी अच्छा नहीं होता। हमें बातचीत से समाधान खोजना चाहिए।” – एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर व्यापक प्रभाव

भारत-अमेरिका व्यापारिक तनाव का असर केवल इन दो देशों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसने वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर भी व्यापक प्रभाव डाला:

  • संरक्षणवाद (Protectionism) का उदय: ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने दुनिया भर में संरक्षणवाद की लहर को बढ़ावा दिया। अन्य देशों ने भी अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए इसी तरह के कदम उठाने शुरू कर दिए।
  • डब्ल्यूटीओ की भूमिका पर प्रश्नचिह्न: संरक्षणवादी प्रवृत्तियों और एकतरफा शुल्कों ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी बहुपक्षीय व्यापार संस्थाओं की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए।
  • आपूर्ति श्रृंखलाओं (Supply Chains) का पुनर्गठन: व्यापार युद्धों और टैरिफ के अनिश्चित माहौल ने वैश्विक कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन करने पर मजबूर किया, ताकि वे टैरिफ के प्रभाव को कम कर सकें।
  • वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा: बड़े पैमाने पर व्यापार युद्धों से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ सकती है, जिससे निवेश कम हो सकता है और आर्थिक विकास धीमा पड़ सकता है, जो संभावित रूप से वैश्विक मंदी का कारण बन सकता है।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

यह मुद्दा UPSC के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है:

  • प्रारंभिक परीक्षा (Preliminary Examination):
    • अर्थव्यवस्था: टैरिफ, व्यापार घाटा, संरक्षणवाद, डब्ल्यूटीओ, आयात-निर्यात, आपूर्ति श्रृंखलाएं।
    • अंतर्राष्ट्रीय संबंध: द्विपक्षीय व्यापार संबंध, भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएं।
  • मुख्य परीक्षा (Main Examination):
    • GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध: भारत के विदेश संबंध, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएं और उनका प्रभाव, बहुपक्षवाद बनाम एकपक्षवाद।
    • GS-III: अर्थव्यवस्था: भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रभाव, संरक्षणवाद और वैश्वीकरण, राजकोषीय और मौद्रिक नीति के हस्तक्षेप, अवसंरचना (इस्पात क्षेत्र)।
    • निबंध (Essay): ‘वैश्वीकरण की बदलती प्रकृति’, ‘संरक्षणवाद का उदय और वैश्विक अर्थव्यवस्था’, ‘भारत की आर्थिक कूटनीति’।

आगे की राह और चुनौतियाँ

भारत के लिए आगे की राह कई चुनौतियों से भरी थी:

  • संतुलन बनाना: भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका जैसे प्रमुख व्यापारिक भागीदार के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने का संतुलन बनाना था।
  • विविधीकरण (Diversification): अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए, भारत को अन्य बाजारों में अपने निर्यात को बढ़ाने की आवश्यकता थी।
  • घरेलू क्षमता का निर्माण: आयात पर निर्भरता कम करने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करना महत्वपूर्ण था।
  • कूटनीतिक सक्रियता: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाना और समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देना आवश्यक था।

यह एक सतत प्रक्रिया थी जहां भारत को कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए वैश्विक व्यापार परिदृश्य में अपनी जगह बनानी थी।

निष्कर्ष

अमेरिका द्वारा 25% टैरिफ लगाने का निर्णय भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन इसने भारत को अपनी आर्थिक और कूटनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करने का अवसर भी प्रदान किया। ‘देशहित में हर जरूरी कदम उठाएंगे’ का भारत का रुख उसकी संप्रभुता और अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऐसे मुद्दों का अध्ययन UPSC उम्मीदवारों को वैश्विक आर्थिक गतिशीलता, भू-राजनीतिक दांव-पेंच और भारत की विदेश नीति के जटिल जाल को समझने में मदद करता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों और संरक्षणवाद के उदय जैसे व्यापक विषयों को समझना, इन घटनाओं के पीछे के कारणों और भविष्य के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर आयात शुल्क लगाने के मुख्य कारणों में से एक कौन सा था?

    (a) भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ाना
    (b) भारत-अमेरिका के बीच व्यापार घाटा कम करना
    (c) भारत को तकनीकी हस्तांतरण रोकना
    (d) भारत को परमाणु अप्रसार संधि में शामिल करना

    उत्तर: (b) भारत-अमेरिका के बीच व्यापार घाटा कम करना
    व्याख्या: तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का एक मुख्य उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना था, और उनका मानना था कि कई देश अनुचित व्यापार प्रथाओं के माध्यम से अमेरिका के साथ घाटा बढ़ा रहे हैं।
  2. प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन (WTO) का प्राथमिक कार्य क्या है?

    (a) देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाना
    (b) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों को विनियमित करना
    (c) विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करना
    (d) सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करना

    उत्तर: (b) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों को विनियमित करना
    व्याख्या: WTO वैश्विक स्तर पर व्यापार नियमों को स्थापित करने और विवादों को सुलझाने का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
  3. प्रश्न: ‘संरक्षणवाद’ (Protectionism) का सबसे अच्छा वर्णन निम्नलिखित में से किससे किया जा सकता है?

    (a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना
    (b) घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए व्यापार बाधाएं लगाना
    (c) मुक्त व्यापार समझौतों को प्रोत्साहित करना
    (d) सभी देशों के लिए सीमाएं खोलना

    उत्तर: (b) घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए व्यापार बाधाएं लगाना
    व्याख्या: संरक्षणवाद वह नीति है जिसमें देश अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए टैरिफ, कोटा, सब्सिडी आदि जैसे उपायों का उपयोग करते हैं।
  4. प्रश्न: यदि कोई देश दूसरे देश के उत्पादों पर आयात शुल्क (Tariff) लगाता है, तो दूसरा देश क्या जवाबी कार्रवाई कर सकता है?

    (a) आयात शुल्क को कम करना
    (b) समान उत्पादों पर जवाबी आयात शुल्क लगाना
    (c) विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज करने से बचना
    (d) द्विपक्षीय व्यापार को पूरी तरह से समाप्त कर देना

    उत्तर: (b) समान उत्पादों पर जवाबी आयात शुल्क लगाना
    व्याख्या: समान या आनुपातिक शुल्क लगाना ‘समानता’ (reciprocity) के सिद्धांत के तहत एक सामान्य जवाबी कार्रवाई है।
  5. प्रश्न: ‘व्यापार घाटा’ (Trade Deficit) तब होता है जब:

    (a) किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक होता है।
    (b) किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है।
    (c) किसी देश का व्यापार संतुलन शून्य होता है।
    (d) किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कम होता है।

    उत्तर: (b) किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है।
    व्याख्या: व्यापार घाटा तब होता है जब किसी देश द्वारा की गई कुल आय (निर्यात से) उसके द्वारा किए गए कुल व्यय (आयात पर) से कम होती है।
  6. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा भारत के ‘देशहित’ (National Interest) की रक्षा के संदर्भ में उठाया जा सकने वाला एक कदम है?

    (a) अपने उद्योगों के लिए सुरक्षात्मक टैरिफ लागू करना
    (b) विदेशी निवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना
    (c) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों का अनिश्चित काल के लिए पालन करना
    (d) आर्थिक सहायता के बदले सैन्य गठजोड़ में शामिल होना

    उत्तर: (a) अपने उद्योगों के लिए सुरक्षात्मक टैरिफ लागू करना
    व्याख्या: देशहित में आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता शामिल हो सकती है, जिसके लिए संरक्षणवादी उपाय भी किए जा सकते हैं।
  7. प्रश्न: ‘आपूर्ति श्रृंखला’ (Supply Chain) से क्या तात्पर्य है?

    (a) किसी उत्पाद को बनाने के लिए कच्चे माल से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक की प्रक्रिया
    (b) केवल अंतिम उत्पाद का वितरण
    (c) केवल विनिर्माण इकाई
    (d) केवल विपणन और बिक्री

    उत्तर: (a) किसी उत्पाद को बनाने के लिए कच्चे माल से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक की प्रक्रिया
    व्याख्या: आपूर्ति श्रृंखला में कच्चे माल की खरीद, उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री सभी शामिल हैं।
  8. प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुसार, टैरिफ लगाने का एक संभावित औचित्य क्या हो सकता है?

    (a) अन्य देशों की सरकारों को अस्थिर करना
    (b) राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं
    (c) विशुद्ध रूप से राजनीतिक लाभ के लिए
    (d) द्विपक्षीय ऋणों को माफ करना

    उत्तर: (b) राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं
    व्याख्या: WTO के कुछ प्रावधान कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, के लिए टैरिफ लगाने की अनुमति देते हैं।
  9. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ का प्रत्यक्ष परिणाम हो सकता है?

    (a) भारतीय रुपये का मजबूत होना
    (b) अमेरिकी बाजारों में भारतीय उत्पादों की मांग में वृद्धि
    (c) भारतीय निर्यातकों के लाभ मार्जिन में कमी
    (d) भारत के व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) में वृद्धि

    उत्तर: (c) भारतीय निर्यातकों के लाभ मार्जिन में कमी
    व्याख्या: बढ़े हुए टैरिफ से अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की लागत बढ़ती है, जिससे उनकी बिक्री कम हो सकती है और लाभ मार्जिन घट सकता है।
  10. प्रश्न: ‘द्विपक्षीय व्यापार’ (Bilateral Trade) का क्या अर्थ है?

    (a) दो से अधिक देशों के बीच व्यापार
    (b) केवल दो देशों के बीच व्यापार
    (c) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों के बीच व्यापार
    (d) केवल क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के तहत व्यापार

    उत्तर: (b) केवल दो देशों के बीच व्यापार
    व्याख्या: ‘द्वि’ का अर्थ है दो, इसलिए द्विपक्षीय व्यापार का अर्थ है केवल दो देशों के बीच होने वाला व्यापार।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: “अमेरिका द्वारा लगाए गए आयात शुल्कों (टैरिफ) के संदर्भ में, ‘देशहित में हर जरूरी कदम उठाने’ की भारत की प्रतिक्रिया का विश्लेषण करें। इसमें भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले विभिन्न कूटनीतिक और आर्थिक कदमों की विवेचना करें।”
  2. प्रश्न: “संरक्षणवाद (Protectionism) और मुक्त व्यापार (Free Trade) के बीच की बहस पर चर्चा करें। अमेरिकी टैरिफ नीतियों के वैश्विक व्यापार व्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख करें।”
  3. प्रश्न: “किसी भी देश की आर्थिक संप्रभुता के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंध कितने महत्वपूर्ण हैं? भारत-अमेरिका व्यापार तनाव के आलोक में इस कथन का मूल्यांकन करें।”
  4. प्रश्न: “भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East) और ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) जैसी पहलों पर अमेरिकी टैरिफ का क्या प्रभाव पड़ सकता है? इन पहलों को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा क्या उपाय किए जाने चाहिए?”

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