भारतीय राजव्यवस्था का महासंग्राम: आज के 25 Challenge!
नमस्कार, संविधान के योद्धाओं! आज अपनी राजव्यवस्था की समझ को परखने और उसे एक नई ऊँचाई देने का दिन है। भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभों, संवैधानिक अनुच्छेदों, और ऐतिहासिक निर्णयों की गहराई में उतरने के लिए तैयार हो जाइए। यह 25 प्रश्नों का अभ्यास सत्र आपको न केवल आपकी वर्तमान स्थिति बताएगा, बल्कि आपकी तैयारी में एक निर्णायक भूमिका भी निभाएगा। चलिए, शुरू करते हैं यह ज्ञानवर्धक यात्रा!
भारतीय राजव्यवस्था और संविधान अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द किस संशोधन द्वारा जोड़े गए?
- 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976
- 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978
- 52वाँ संशोधन अधिनियम, 1985
- 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ (Socialist), ‘पंथनिरपेक्ष’ (Secular), और ‘अखंडता’ (Integrity) शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया था। यह भारतीय संविधान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण संशोधन था।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन ने संविधान में कई परिवर्तन किए, जिसमें प्रस्तावना में इन तीन महत्वपूर्ण शब्दों को शामिल करना भी शामिल था, जिसका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के साथ-साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करना था।
- अincorrect विकल्प: 44वाँ संशोधन, 1978 ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर विधिक अधिकार बनाया और कुछ आपातकालीन प्रावधानों को संशोधित किया। 52वाँ संशोधन, 1985 दल-बदल विरोधी कानून (10वीं अनुसूची) से संबंधित है। 73वाँ संशोधन, 1992 पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ में शामिल नहीं माना गया है?
- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार
- काम का अधिकार
- पर्यावरण की शुद्धता का अधिकार
- बिना देरी के चिकित्सा सहायता का अधिकार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई ऐतिहासिक निर्णयों में इस अधिकार का विस्तार किया है। ‘काम का अधिकार’ (Right to Work) सीधे तौर पर अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल नहीं है, हालांकि यह राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का हिस्सा है।
- संदर्भ और विस्तार: ‘गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार’ (Right to live with dignity), ‘पर्यावरण की शुद्धता का अधिकार’ (Right to clean environment), और ‘बिना देरी के चिकित्सा सहायता का अधिकार’ (Right to medical aid without delay) जैसे अधिकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों (जैसे मेनका गांधी बनाम भारत संघ, ओलगा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) में अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के विस्तारित अर्थ में शामिल किए गए हैं।
- अincorrect विकल्प: ‘काम का अधिकार’ (Article 41) DPSP का हिस्सा है, जिसे राज्य के नीतिगत निर्देश के रूप में उल्लेखित किया गया है, न कि मौलिक अधिकार के रूप में। अन्य विकल्प अनुच्छेद 21 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।
प्रश्न 3: भारत के राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- महाभियोग का प्रस्ताव किसी भी सदन में शुरू किया जा सकता है।
- महाभियोग चलाने के लिए सदन के कुल सदस्यों के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त लिखित सूचना कम से कम 14 दिन पूर्व दी जानी चाहिए।
- आरोप का अन्वेषण करने वाला सदन उस आरोप के संबंध में जांच करेगा।
- यदि आरोप सिद्ध हो जाता है, तो प्रस्ताव को उस सदन की कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
- 1, 2, 3 और 4
- 1, 2 और 3
- 1, 3 और 4
- 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 61 में वर्णित है। कथन 1, 3 और 4 सही हैं। प्रस्ताव किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में शुरू किया जा सकता है। आरोप का अन्वेषण करने वाला सदन जांच करता है। यदि आरोप सिद्ध हो जाता है, तो प्रस्ताव को उस सदन की कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने के लिए, जिस सदन में प्रस्ताव पेश किया जाता है, उसके कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित सूचना, राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व दी जानी चाहिए। यह सूचना केवल प्रस्ताव की शुरुआत के लिए है, महाभियोग चलाने के लिए नहीं। (कथन 2 गलत है क्योंकि यह ‘महाभियोग चलाने’ के लिए 1/4 सदस्यों के बहुमत की बात करता है, जबकि यह केवल ‘प्रस्ताव की सूचना’ देने के लिए है।)
- अincorrect विकल्प: कथन 2 गलत है क्योंकि 14 दिन की पूर्व सूचना के लिए प्रस्ताव रखने वाले सदन के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों का हस्ताक्षर युक्त प्रस्ताव चाहिए, न कि महाभियोग चलाने के लिए।
प्रश्न 4: भारत के संविधान में ‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत’ (DPSP) किस देश के संविधान से प्रेरित हैं?
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कनाडा
- आयरलैंड
- ऑस्ट्रेलिया
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) की प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से ली गई है। ये सिद्धांत संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51) में वर्णित हैं।
- संदर्भ और विस्तार: आयरलैंड के संविधान में इन सिद्धांतों को ‘निर्देश’ (Directives) कहा जाता है। ये सिद्धांत न्यायोचित (justiciable) नहीं हैं, अर्थात इनके उल्लंघन पर कोई नागरिक न्यायालय में नहीं जा सकता, लेकिन ये देश के शासन में मूलभूत हैं और कानून बनाने में राज्य का कर्तव्य है कि वे इन सिद्धांतों को लागू करें।
- अincorrect विकल्प: संयुक्त राज्य अमेरिका से मौलिक अधिकार, कनाडा से संघवाद और अवशिष्ट शक्तियाँ, और ऑस्ट्रेलिया से समवर्ती सूची और प्रस्तावना की भाषा प्रेरित है।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सी रिट किसी व्यक्ति को उस पद पर बने रहने के लिए चुनौती देती है जिस पर वह विधिपूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर रहा है?
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- परमादेश (Mandamus)
- उत्प्रेषण (Certiorari)
- अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘अधिकार पृच्छा’ (Quo Warranto) रिट का अर्थ है ‘किस अधिकार से’। यह एक सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति के अधिकार को चुनौती देने के लिए जारी की जाती है, जब वह उस पद पर विधिपूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर रहा हो। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 32 और उच्च न्यायालयों द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत ये रिट जारी की जाती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इस रिट का उद्देश्य सार्वजनिक कार्यालय के दुरुपयोग को रोकना है। यदि यह साबित हो जाता है कि व्यक्ति उस पद के लिए योग्य नहीं है या उसने पद का दुरुपयोग किया है, तो उसे पद से हटाया जा सकता है।
- अincorrect विकल्प: ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ का अर्थ है ‘शरीर प्रस्तुत करो’ और यह अवैध गिरफ्तारी के विरुद्ध है। ‘परमादेश’ का अर्थ है ‘हम आदेश देते हैं’ और यह किसी लोक प्राधिकारी को उसका कर्तव्य करने का आदेश देने के लिए है। ‘उत्प्रेषण’ का अर्थ है ‘प्रमाणित करना’ और यह किसी निचली अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने के लिए है।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा आयोग/निकाय केवल संवैधानिक निकाय है?
- नीति आयोग
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
- संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) एक संवैधानिक निकाय है, जिसका प्रावधान संविधान के भाग XIV, अनुच्छेद 315 में किया गया है।
- संदर्भ और विस्तार: संवैधानिक निकाय वे होते हैं जिनके गठन और शक्तियों का उल्लेख सीधे भारतीय संविधान में होता है। UPSC अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं के लिए नियुक्तियों की परीक्षाओं का संचालन करता है।
- अincorrect विकल्प: नीति आयोग (पूर्व में योजना आयोग) एक कार्यकारी आदेश द्वारा गठित गैर-संवैधानिक (statutory) निकाय है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक सांविधिक निकाय है जिसका गठन मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत हुआ है। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) एक कार्यकारी प्रस्ताव (Resolution) द्वारा गठित एक गैर-सांविधिक (non-statutory) एजेंसी है।
प्रश्न 7: दल-बदल के आधार पर किसी सदस्य की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान भारतीय संविधान की किस अनुसूची में उल्लिखित हैं?
- दूसरी अनुसूची
- सातवीं अनुसूची
- नवीं अनुसूची
- दसवीं अनुसूची
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: दल-बदल के आधार पर संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता का प्रावधान संविधान की दसवीं अनुसूची में उल्लिखित है, जिसे 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा जोड़ा गया था।
- संदर्भ और विस्तार: दसवीं अनुसूची उन आधारों को निर्धारित करती है जिन पर एक निर्वाचित सदस्य को दलबदल के कारण अयोग्य ठहराया जा सकता है। यह राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने और विधायकों को खरीद-फरोख्त से रोकने के उद्देश्य से लाया गया था।
- अincorrect विकल्प: दूसरी अनुसूची में राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, संसद सदस्यों आदि के भत्तों और विशेषाधिकारों का उल्लेख है। सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के वितरण से संबंधित है। नौवीं अनुसूची कुछ अधिनियमों और विनियमों के सत्यापन से संबंधित है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारत की ‘न्यायिक समीक्षा’ (Judicial Review) की शक्ति के बारे में सही नहीं है?
- यह संसद द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता की जाँच की शक्ति है।
- यह केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर ही की जा सकती है।
- यह संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति अनुच्छेद 13 और 32 के तहत प्राप्त है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: न्यायिक समीक्षा की शक्ति के संबंध में कथन (b) सही नहीं है। हालाँकि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न्यायिक समीक्षा का एक प्रमुख आधार है, लेकिन यह केवल इसी तक सीमित नहीं है। न्यायिक समीक्षा का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी भी विधायी अधिनियम या कार्यकारी कार्रवाई की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकते हैं। यदि कोई कानून या कार्रवाई संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध पाई जाती है, तो उसे असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: केशवानंद भारती मामले (1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘संविधान के मूल ढांचे’ (Basic Structure Doctrine) के सिद्धांत को स्थापित किया, जिसके अनुसार संसद संविधान के मूल ढांचे को संशोधित नहीं कर सकती। न्यायिक समीक्षा इस मूल ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अनुच्छेद 13 के तहत, कोई भी कानून जो मौलिक अधिकारों के असंगत है, शून्य माना जाएगा, और अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए रिट जारी करने की शक्ति देता है, जिसमें न्यायिक समीक्षा भी शामिल है।
- अincorrect विकल्प: विकल्प (a), (c) और (d) सभी न्यायिक समीक्षा की प्रकृति और शक्तियों के बारे में सही कथन हैं।
प्रश्न 9: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति, राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं?
- अनुच्छेद 80(1)(a)
- अनुच्छेद 80(1)(b)
- अनुच्छेद 80(1)(c)
- अनुच्छेद 80(3)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80(1)(b) के अनुसार, राष्ट्रपति, साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा के लिए मनोनीत करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रावधान राष्ट्रपति को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को राष्ट्रीय विधानमंडल में प्रतिनिधित्व देने का अधिकार देता है, जिससे विधानों पर गहन और बहुआयामी चर्चा हो सके।
- अincorrect विकल्प: अनुच्छेद 80(1)(a) राज्य सभा में राज्यों और संघ राज्यों के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से संबंधित है। अनुच्छेद 80(3) मनोनीत सदस्यों की अवधि और योग्यता से संबंधित है।
प्रश्न 10: भारत में ‘प्रथम नागरिक’ (First Citizen) के रूप में किसे जाना जाता है?
- भारत के प्रधानमंत्री
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- लोकसभा अध्यक्ष
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के राष्ट्रपति को देश का ‘प्रथम नागरिक’ कहा जाता है। हालांकि संविधान में कहीं भी ‘प्रथम नागरिक’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन यह एक पारंपरिक उपाधि है जो राष्ट्रपति के पद की गरिमा और सर्वोच्चता को दर्शाती है।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख (Head of State) होते हैं और पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रधानमंत्री सरकार प्रमुख (Head of Government) होते हैं।
- अincorrect विकल्प: प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका के प्रमुख होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष निम्न सदन (लोकसभा) के अध्यक्ष होते हैं।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, विदेशियों को नहीं?
- विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा (अनुच्छेद 21)
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनुच्छेद 15)
- किसी भी रूप में अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध) केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है। अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) भारतीय नागरिकों और विदेशियों दोनों के लिए उपलब्ध हैं। अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत) भी सभी के लिए है।
- संदर्भ और विस्तार: ऐसे कई मौलिक अधिकार हैं जो केवल नागरिकों को प्राप्त हैं (जैसे अनुच्छेद 15, 16, 19, 29, 30) और कुछ ऐसे हैं जो सभी व्यक्तियों, जिनमें विदेशी भी शामिल हैं, के लिए उपलब्ध हैं (जैसे अनुच्छेद 14, 20, 21, 22, 25, 26, 27, 28)।
- अincorrect विकल्प: विकल्प (a) और (b) दोनों नागरिकों और विदेशियों के लिए हैं। विकल्प (d) भी सभी व्यक्तियों के लिए है।
प्रश्न 12: भारत में आकस्मिकता निधि (Contingency Fund of India) का संरक्षक कौन होता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के प्रधानमंत्री
- भारत के वित्त मंत्री
- भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत की आकस्मिकता निधि का संरक्षक भारत के राष्ट्रपति होते हैं, जैसा कि अनुच्छेद 267(1) में प्रावधान है। यह निधि अप्रत्याशित व्ययों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति के लिए उपलब्ध होती है।
- संदर्भ और विस्तार: संसद ने ‘भारत की आकस्मिकता निधि अधिनियम, 1950’ पारित किया। इस निधि में सरकार द्वारा समय-समय पर तय की गई राशि जमा होती है। राष्ट्रपति इस निधि से पैसा निकालने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन इसके बाद संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है।
- अincorrect विकल्प: प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं, लेकिन इस निधि का प्रत्यक्ष संरक्षक राष्ट्रपति होते हैं। वित्त मंत्री वित्तीय मामलों के प्रभारी होते हैं, लेकिन निधि का परिचालन राष्ट्रपति के माध्यम से होता है। CAG वित्तीय प्रशासन का लेखा-जोखा रखता है, संरक्षक नहीं।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘संसद के सत्रावसान’ (Prorogation) के बारे में सही है?
- सत्रावसान स्पीकर द्वारा किया जाता है।
- सत्रावसान का अर्थ है सदन की बैठक समाप्त होना।
- सत्रावसान के बाद, लंबित सभी विधेयक समाप्त हो जाते हैं।
- सत्रावसान केवल अनिश्चित काल के लिए ही हो सकता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘सत्रावसान’ (Prorogation) का अर्थ है सदन की बैठक का समाप्त होना। यह राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, स्पीकर या सभापति द्वारा नहीं। सत्रावसान के बाद, लंबित विधेयक समाप्त नहीं होते, बल्कि आगामी सत्र में जारी रखे जा सकते हैं। सत्रावसान निश्चित या अनिश्चित काल के लिए हो सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: सत्रावसान, सत्रावसान (Adjournment) से भिन्न होता है। सत्रावसान का अर्थ है सत्र का अंत, जबकि सत्रावसान (Adjournment) का अर्थ है बैठक का कुछ समय के लिए स्थगित होना। राष्ट्रपति अनुच्छेद 85(2)(a) के तहत संसद के किसी भी सदन को सत्रावसान कर सकते हैं।
- अincorrect विकल्प: विकल्प (a) गलत है क्योंकि सत्रावसान राष्ट्रपति करते हैं। विकल्प (c) गलत है क्योंकि सत्रावसान से लंबित विधेयक समाप्त नहीं होते (विघटन से भिन्न)। विकल्प (d) गलत है क्योंकि सत्रावसान निश्चित अवधि के लिए भी हो सकता है।
प्रश्न 14: पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा किस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रदान किया गया?
- 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992
- 74वाँ संशोधन अधिनियम, 1992
- 64वाँ संशोधन अधिनियम, 1989
- 80वाँ संशोधन अधिनियम, 2000
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज संस्थाओं को भारतीय संविधान के भाग IX (अनुच्छेद 243 से 243O) के तहत संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और संविधान में एक नई ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन का उद्देश्य पंचायती राज को अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बनाना था, ताकि विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा मिले और ग्रामीण स्थानीय स्वशासन को मजबूत किया जा सके।
- अincorrect विकल्प: 74वाँ संशोधन अधिनियम शहरी स्थानीय निकायों (नगरपालिका) से संबंधित है। 64वाँ संशोधन अधिनियम एक असफल प्रयास था। 80वाँ संशोधन अधिनियम कुछ करों के वितरण से संबंधित था।
प्रश्न 15: राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council – NDC) की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता सही नहीं है?
- यह एक गैर-संवैधानिक निकाय है।
- यह भारत की पंचवर्षीय योजनाओं को अंतिम रूप देती है।
- इसका पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
- इसके सदस्यों में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) का गठन 1952 में एक कार्यकारी आदेश द्वारा किया गया था, इसलिए यह एक गैर-संवैधानिक निकाय है। इसके पदेन अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं, और इसके सदस्यों में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं। NDC पंचवर्षीय योजनाओं के लिए एक ‘सलाहकार’ की भूमिका निभाती है, न कि अंतिम रूप देने की। पंचवर्षीय योजनाओं को अंतिम रूप देने का कार्य केंद्रीय मंत्रिमंडल (प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में) का है, हालाँकि NDC की सिफारिशें महत्वपूर्ण होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: NDC का मुख्य कार्य पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यान्वयन और प्रगति की समीक्षा करना और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम उठाना है।
- अincorrect विकल्प: विकल्प (b) गलत है क्योंकि NDC योजनाओं को अंतिम रूप देने के बजाय अनुमोदन और समीक्षा करती है; अंतिम रूप केंद्रीय मंत्रिमंडल देता है। अन्य सभी विकल्प NDC की प्रकृति के बारे में सही हैं।
प्रश्न 16: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद कहता है कि ‘विधि के समक्ष समानता’ और ‘विधियों का समान संरक्षण’ का अधिकार?
- अनुच्छेद 13
- अनुच्छेद 14
- अनुच्छेद 15
- अनुच्छेद 16
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 14 भारतीय संविधान में ‘विधि के समक्ष समानता’ (Equality before law) और ‘विधियों का समान संरक्षण’ (Equal protection of laws) दोनों की गारंटी देता है।
- संदर्भ और विस्तार: ‘विधि के समक्ष समानता’ का सिद्धांत ब्रिटिश मूल का है और इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा और सभी पर एक समान कानून लागू होगा। ‘विधियों का समान संरक्षण’ का सिद्धांत अमेरिकी मूल का है और इसका अर्थ है कि समान परिस्थितियों में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
- अincorrect विकल्प: अनुच्छेद 13 ‘विधियों की शून्य घोषणा’ से संबंधित है। अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है। अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता की गारंटी देता है।
प्रश्न 17: भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- उन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- वे भारत सरकार के मुख्य विधि अधिकारी होते हैं।
- वे संसद की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं, लेकिन मतदान नहीं कर सकते।
- उनकी नियुक्ति के लिए वही योग्यताएं होनी चाहिए जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की होती हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
- 1, 2 और 3
- 1, 2 और 4
- 1, 3 और 4
- 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: महान्यायवादी की नियुक्ति, शक्तियाँ और कर्तव्य अनुच्छेद 76 में वर्णित हैं। कथन 1, 2 और 4 सही हैं। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, वे भारत सरकार के मुख्य विधि अधिकारी होते हैं, और उनकी नियुक्ति के लिए वही योग्यताएं होनी चाहिए जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 88 के अनुसार, महान्यायवादी को संसद के किसी भी सदन की कार्यवाही में भाग लेने, बोलने और किसी भी समिति में, जिसका वे सदस्य हों, भाग लेने का अधिकार है, लेकिन वे मतदान नहीं कर सकते। कथन 3 गलत है क्योंकि महान्यायवादी केवल मतदान नहीं कर सकते, वे कार्यवाही में भाग ले सकते हैं।
- अincorrect विकल्प: कथन 3 गलत है क्योंकि महान्यायवादी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं (जैसा कि अनुच्छेद 88 में है) लेकिन मतदान नहीं कर सकते।
प्रश्न 18: केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission – CVC) की स्थापना किस समिति की सिफारिश पर की गई थी?
- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग
- संथानम समिति
- एल. एम. सिंघवी समिति
- तारापुर समिति
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की स्थापना 1964 में संथानम समिति (K. Santhanam Committee) की सिफारिशों के आधार पर की गई थी, जिसका उद्देश्य सरकारी भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए एक स्वायत्त निकाय बनाना था।
- संदर्भ और विस्तार: CVC मूल रूप से एक कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा स्थापित एक गैर-सांविधिक निकाय था। 2003 में, संसद द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा इसे एक सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया, जिससे यह एक वैधानिक निकाय बन गया।
- अincorrect विकल्प: प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी भ्रष्टाचार पर अपनी रिपोर्ट दी थी, लेकिन CVC की स्थापना विशेष रूप से संथानम समिति की सिफारिश पर हुई थी। एल.एम. सिंघवी समिति ने पंचायती राज संस्थाओं के सुधारों की सिफारिश की थी। तारापुर समिति ने पूंजी खातों के परिवर्तनीयता पर रिपोर्ट दी थी।
प्रश्न 19: भारतीय संविधान का कौन सा भाग ‘संघ और राज्यों के बीच विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय संबंध’ से संबंधित है?
- भाग XI
- भाग XII
- भाग XIII
- भाग XIV
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान का भाग XI (अनुच्छेद 245 से 293) संघ और राज्यों के बीच विधायी और प्रशासनिक संबंधों से संबंधित है, और भाग XII (अनुच्छेद 264 से 300A) संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से संबंधित है। प्रश्न में तीनों संबंधों का उल्लेख है, लेकिन अक्सर विधायी और प्रशासनिक संबंध भाग XI में और वित्तीय संबंध भाग XII में अलग-अलग सूचीबद्ध किए जाते हैं। यदि प्रश्न को व्यापक रूप से देखें, तो दोनों भाग महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, विधायी और प्रशासनिक संबंध मुख्य रूप से भाग XI के तहत आते हैं, और वित्तीय संबंध भाग XII के तहत। प्रश्न की संरचना को देखते हुए, भाग XI का संबंध विधायी और प्रशासनिक पर अधिक केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: भाग XI संघ की विधायी शक्तियों के वितरण (अनुच्छेद 245-255) और प्रशासनिक शक्तियों के वितरण (अनुच्छेद 256-263) को परिभाषित करता है। भाग XII में वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद से संबंधित प्रावधान हैं।
- अincorrect विकल्प: भाग XII वित्तीय संबंधों से संबंधित है। भाग XIII भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम से संबंधित है। भाग XIV सेवाओं से संबंधित है।
प्रश्न 20: राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा किस अनुच्छेद के तहत की जा सकती है?
- अनुच्छेद 352
- अनुच्छेद 356
- अनुच्छेद 360
- अनुच्छेद 365
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत की जा सकती है। यह युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लागू होता है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा संसद के दोनों सदनों द्वारा एक महीने के भीतर अनुमोदित होनी चाहिए। यह अधिकतम 6 महीने तक लागू रह सकता है, जिसके बाद इसे पुनः अनुमोदित कराना आवश्यक होता है।
- अincorrect विकल्प: अनुच्छेद 356 ‘राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता’ (राष्ट्रपति शासन) से संबंधित है। अनुच्छेद 360 ‘वित्तीय आपातकाल’ से संबंधित है। अनुच्छेद 365 राज्यों द्वारा केंद्र के निर्देशों का पालन न करने पर आपातकाल लगाने से संबंधित है, जो अक्सर अनुच्छेद 356 के तहत उपयोग होता है।
प्रश्न 21: किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को शपथ कौन दिलाता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- संबंधित राज्य के राज्यपाल
- संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को संबंधित राज्य का राज्यपाल शपथ दिलाता है, जैसा कि अनुच्छेद 219 में प्रावधान है।
- संदर्भ और विस्तार: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन वे अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल के समक्ष शपथ लेते हैं।
- अincorrect विकल्प: राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं, लेकिन शपथ राज्यपाल दिलाते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश भी नियुक्तियों में भूमिका निभाते हैं, लेकिन शपथ दिलाने की प्रक्रिया में उनका सीधा हस्तक्षेप नहीं होता। मुख्यमंत्री राज्य के कार्यकारी प्रमुख होते हैं, लेकिन शपथ दिलाना राज्यपाल का कार्य है।
प्रश्न 22: भारत के संविधान के ‘मूल ढांचे’ (Basic Structure) की अवधारणा किस वाद में उत्पन्न हुई?
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)
- एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘मूल ढांचे’ (Basic Structure) की अवधारणा केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय द्वारा उत्पन्न हुई। इस निर्णय ने यह स्थापित किया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से को, जिसमें मौलिक अधिकार भी शामिल हैं, संशोधित कर सकती है, लेकिन संविधान के ‘मूल ढांचे’ को नहीं बदल सकती।
- संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत ने संसद की संशोधन शक्ति पर कुछ सीमाएं लगाईं और संविधान की सर्वोच्चता और मौलिक अधिकारों की रक्षा की।
- अincorrect विकल्प: गोलकनाथ मामले ने कहा था कि मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता। मेनका गांधी मामले ने अनुच्छेद 21 के दायरे को व्यापक बनाया। एस.आर. बोम्मई मामला राष्ट्रपति शासन की शक्तियों से संबंधित था।
प्रश्न 23: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘न्याय’ (Justice) का उल्लेख किस रूप में किया गया है?
- केवल सामाजिक न्याय
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय
- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक न्याय
- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक न्याय
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय’ का आश्वासन दिया गया है। यह सीधे तौर पर प्रस्तावना के शब्दों में निहित है।
- संदर्भ और विस्तार: यह तीनों प्रकार के न्याय सुनिश्चित करके एक आदर्श समाज की स्थापना का लक्ष्य रखता है, जहाँ किसी भी नागरिक के साथ उसके सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक स्थिति के कारण भेदभाव न हो।
- अincorrect विकल्प: प्रस्तावना में धार्मिक न्याय का विशेष उल्लेख नहीं है, हालाँकि पंथनिरपेक्षता (secularism) के सिद्धांत में सभी धर्मों के प्रति समान आदर शामिल है। सांस्कृतिक न्याय का भी अलग से उल्लेख नहीं है।
प्रश्न 24: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है, जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो?
- अनुच्छेद 250
- अनुच्छेद 252
- अनुच्छेद 256
- अनुच्छेद 257
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान का अनुच्छेद 250 यह प्रावधान करता है कि जब राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) लागू होता है, तो संसद को राज्य सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति मिल जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह आपातकालीन प्रावधान केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाता है ताकि देश की सुरक्षा और अखंडता सुनिश्चित की जा सके। इस अवधि के दौरान, संसद द्वारा राज्य सूची के विषय पर बनाए गए कानून आपातकाल समाप्त होने के छह महीने बाद तक प्रभावी रहते हैं।
- अincorrect विकल्प: अनुच्छेद 252 दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से कानून बनाने की संसद की शक्ति से संबंधित है। अनुच्छेद 256 राज्यों को निर्देश देने की केंद्र की शक्ति से संबंधित है। अनुच्छेद 257 कुछ मामलों में राज्यों पर नियंत्रण रखने की केंद्र की शक्ति से संबंधित है।
प्रश्न 25: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘संवैधानिक संशोधन’ (Constitutional Amendment) का एक तरीका नहीं है?
- साधारण बहुमत से संशोधन
- विशेष बहुमत से संशोधन
- विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति से संशोधन
- न्यायालय द्वारा संशोधन
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान के भाग XX (अनुच्छेद 368) में संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन है। संविधान में संशोधन के तीन तरीके हैं: (a) साधारण बहुमत से (कुछ प्रावधान), (b) विशेष बहुमत से (अधिकांश प्रावधान), और (c) विशेष बहुमत और आधे से अधिक राज्यों के अनुसमर्थन से (संघीय प्रावधान)। ‘न्यायालय द्वारा संशोधन’ संविधान संशोधन का कोई तरीका नहीं है।
- संदर्भ और विस्तार: न्यायालयों की भूमिका संविधान की व्याख्या करना है, न कि उसे संशोधित करना। न्यायपालिका संविधान के मूल ढांचे को बनाए रखते हुए उसके अर्थ को स्पष्ट कर सकती है, लेकिन यह संशोधन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है।
- अincorrect विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) सभी संविधान में संशोधन के वैध तरीके हैं जैसा कि अनुच्छेद 368 में बताया गया है।