भारतीय जनगणना के दोषों व उनमें सुधार हेतु सुझाव दीजिए ।
Explain shortcomings of suggestions for Improvement .
भारतीय जनगणना के दोष ( Shortcomings of Indian Cerisuses ) भारतीय जनगणना में कुछ दोष एवं कठिनाइयाँ विद्यमान है । ये दोष निम्न प्रकार
अपर्याप्त पारिश्रमिक ( Insufficient Remuneration ) – भारत में प्रगणन – कार्य अधिकतर स्कूल अध्यापकों , लेखपालों व छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारियों द्वारा कराया जाता है । इन्हें न तो पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही पारिश्रमिक दिया जाता है । सन् 1961 में पहली बाहर एक प्रगणक को 24 रुपए , सन् 1971 में 40 रुपए , सन् 1981 में 100 रुपए और 1991 में 325 रुपए का भुगतान किया गया । उचित पारिश्रमिक के अभाव में उत्तरदायित्व , कुशलता बनाये रखना सम्भव नहीं है ।
प्रगणकों का प्रशिक्षण ( Training of the Enumerators ) – जनगणना की परिशुद्धता प्रगणकों की कुशलता पर निर्भर करती है । प्रगणकों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक होती है जिन्हें इस काम में न तो कोई रुचि होती है और न ही वे पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं जिससे कि परिणाम अशुद्ध निकलते हैं । 6. जनता की उदासीनता ( Indifference of the People ) – सूचना देने वाले व्यक्तियों द्वारा प्रश्नों के उत्तर बिना सोचे – समझे ही दिए जाते हैं अथवा दिए ही नहीं जाते । संसूचकों की उदासीनता के मुख्य कारण उनकी अज्ञानता , आशंकाएँ , टैक्स का डर , परिवार नियोजन , आय का असमान वितरण व साम्प्रदायिकता हैं ।
समरूपता व तुलनीयता का अभाव ( Lack of Comparability ) — पिछली जनगणनाओं में प्रयुक्त अवधारणाओं , भौगोलिक क्षेत्र तथा समकों के वर्गीकरण एवं सारणीयन के आधार भिन्न – भिन्न रहे हैं जिसके कारण उनमें तुलनीयता का अभाव बना रहा । पिछली पाँच जनगणनाओं में जनगणना मकान , भवन तथा परिवार शब्द की परिभाषा अलग – अलग की गयी है । फिर प्रत्येक जनगणना की व्यक्तिगत पर्ची में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या में भी अन्तर रहा है । किसी जनगणना में असम राज्य को छोड़ दिया गया तो अगली जनगणना में जम्मू – कश्मीर को छोड़ा गया । इस प्रकार समरूपता का अभाव इसका प्रमुख दोष है ।
व्यावसायिक वर्गीकरण में एकरूपता की कमी ( Lack of Uniformity in Occupational Classification ) – व्यवसाय के अनुसार वर्गीकरण कार्यशील जनसंख्या के प्रारूप और रोजगार दशाओं को दर्शाता है परन्तु भारत की पिछली सात जनगणनाओं में व्यावसायिक वर्गीकरण के आधार पर , वर्गों की संख्या और उनके निर्वाचन आदि के मामले में काफी असमानता रही है ।
जनगणना विभ्रम ( Census Errors ) – भारतीय जनगणना में दो प्रकार के विभ्रम पायी जाती हैं — व्याप्ति विभ्रम तथा विषय सामग्री विभ्रम । 1951 की जनगणना में | अल्प- प्रगणन विभ्रम 11 प्रति हजार थी , 1961 में 7 प्रति हजार , 1971 में 1.7 प्रति हजार 1981 में 1.8 प्रति हजार तथा 1991 में 2.2 प्रति हजार थी । ये विभ्रम मूलतः अशुद्ध सूचनाओं का परिणाम होते हैं जिसके लिए एक तरफ संसूचकों की अज्ञानता , अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता तो दूसरी तरफ प्रगणको की लापरवाही जिम्मेदार हैं । वैवाहिक स्तर , जाति , आय और आयु से सम्बन्धित सूचनाएं काफी त्रुटिपूर्ण होती हैं । बहुत से व्यक्तियों को अपनी सही आयु का ज्ञान नहीं होता । कुछ अन्ध – विश्वास के कारण अपनी सही आयु नहीं बताते क्योंकि उनके अनुसार आयु बताने से कम हो जाती है । अविवाहित लड़के – लड़कियाँ अपनी आयु सदैव कम बताते हैं । अधिकतर आयु 5 के गुणकों के रूप में अथवा उपसादित अंकों में बतायी जती है । 48 वर्ष आयु बताता है ।
सुधार हेतु आवश्यक सुझाव
( Suggestions for Improvement )
आगामी जनगणनाओं में सुधार के लिए कुछ आवश्यक सुझाव निम्न हैं
योजनाओं का स्थायी अंग ( Permanent Part of the India Plan ) – जनसंख्या वृद्धि भारत की प्रमुख समस्या है । इसलिए जनसंख्या नियन्त्रण अथवा परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए प्रजननशीलता तथा प्रजनन सम्बन्धी सूचना को जनगणना में शामिल करना आवश्यक है । अतः जनगणना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य को योजनाओं का स्थायी अंग बना दिया जाना चाहिए ।
स्त्री प्रगणक ( Female Enumerators ) – पर्दानशीन तथा निरक्षर स्त्रियों से पूछताछ के लिए स्त्री प्रगणकों की नियुक्ति की जानी चाहिए ।
जन सहयोग ( Public Participation ) जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि निरन्तर प्रचार व प्रसारण द्वारा जागरुकता लायी जाए और जनसम्पर्क को बढ़ावा दियाजाए । जनजागरण कार्य से पूर्व जनता के सुझाव आमन्त्रित किए जाने चाहिए , ताकि आम आदमी उससे जुड़ सके । प्रगणन – कार्य में गैर – सरकारी संस्थाओं का सहयोग लेने से भी जन सहयोग मिलता है ।
प्रगणकों की नियुक्ति एवं प्रशिक्षण ( Appointment and Training of Enumerators ) – प्रगणकों एवं गणना निरीक्षकों की नियुक्ति स्थायी रूप से होनी चाहिए और उनके प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए । उन्हें पर्याप्त पारिश्रमिक का भुगतान भी होना चाहिए । इससे वे लगन , निष्ठा के साथ कार्य कर सकें ।
समंक विधान ( Data Processing ) समंकों के विधायन के लिए यान्त्रिक सारणीयन तथा कम्प्यूटर प्रणाली का प्रयोग आवश्यक करना चाहिए ताकि जनगणना परिणामों का शीघ्र विश्लेषण एवं प्रकाशन किया जा सके । 2001 की जनगणना में समक विधायन का कार्य कम्प्यूटर प्रणाली द्वारा ही किया गया है ।
जनगणना शोध ( Census Research ) – जनगणना अत्यन्त व्यापक तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है । इसके उच्च स्तरीय अध्ययन के लिए जनगणना शोध अनुभाग की स्थापना की जानी चाहिए ।
अन्तर्राष्ट्रीय तुलनीयता ( International Comparability ) — जनसंख्या समंकों में अन्तर्राष्ट्रीय तुलनीयता बनाये रखने के लिए पारिभाषिक शब्दों में समरूपता रहनी चाहिए और अन्तर्राष्ट्रीय मानक व्यावसायिक औद्योगिक वर्गीकरण को आधार बनाया जाना चाहिए ।