भारतीय अर्थव्यवस्था ‘मृत’ या ‘बीमार’? राहुल के आरोप, आर्थिक चक्रव्यूह और भविष्य की राह
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता, राहुल गांधी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक तीखी टिप्पणी की है। उनका दावा है कि “भारतीय अर्थव्यवस्था मर चुकी है” और इसका श्रेय सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीतियों को जाता है। उन्होंने व्यंग्यात्मक ढंग से यह भी कहा कि यह बात प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर “सबको पता है”। यह बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है और इसने भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान दशा और भविष्य की राह पर बहस छेड़ दी है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, इस तरह के बयान सिर्फ राजनीतिक सुर्खियाँ नहीं हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था के विश्लेषण, सरकारी नीतियों के मूल्यांकन और समसामयिक राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर हैं।
यह लेख इस बयान के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेगा, जिसमें आर्थिक मंदी के संकेतक, सरकार की प्रतिक्रिया, प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इन मुद्दों का महत्व शामिल है।
भारतीय अर्थव्यवस्था: एक जटिल चित्र (The Indian Economy: A Complex Picture)
किसी भी अर्थव्यवस्था को “मृत” या “बीमार” कहना एक अतिसरलीकरण हो सकता है। अर्थव्यवस्थाएँ अक्सर चक्रीय होती हैं, जिनमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। वर्तमान समय में, भारतीय अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिन्होंने विकास की गति को धीमा कर दिया है। इन चुनौतियों को समझना महत्वपूर्ण है:
1. धीमी विकास दर (Slowing Growth Rate):
हाल के वर्षों में, भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर में गिरावट देखी गई है। विभिन्न तिमाहियों में विकास दर अपनी पिछली ऊँचाइयों से नीचे रही है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में मंदी के संकेत मिलते हैं।
2. उपभोग में गिरावट (Decline in Consumption):
अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक उपभोग है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मांग कमजोर पड़ी है। इसका कारण आय में वृद्धि की कमी, बढ़ती बेरोजगारी और अनिश्चित भविष्य की आशंकाएं हो सकती हैं।
3. निवेश का सुस्त पड़ना (Sluggish Investment):
निजी क्षेत्र का निवेश, जो आर्थिक विस्तार के लिए महत्वपूर्ण है, अपेक्षा के अनुरूप नहीं बढ़ रहा है। कंपनियां या तो विस्तार करने में झिझक रही हैं या वे अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पा रही हैं।
4. बेरोजगारी (Unemployment):
रोजगार सृजन, विशेष रूप से युवाओं के लिए, एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। बेरोजगारी दर में वृद्धि, विशेष रूप से शिक्षित युवाओं के बीच, आर्थिक कुंठा को बढ़ाती है।
5. वित्तीय क्षेत्र की चुनौतियाँ (Financial Sector Challenges):
बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) का मुद्दा, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) में तरलता की समस्या, और ऋण की उपलब्धता में कमी ने भी आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।
राहुल गांधी के आरोप: एक विश्लेषण (Rahul Gandhi’s Allegations: An Analysis)
राहुल गांधी के बयान को सीधे तौर पर “सही” या “गलत” ठहराने के बजाय, हमें उनके द्वारा उठाई गई चिंताओं को समझना चाहिए। उनका आरोप है कि सरकार की नीतियां अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही हैं। आइए, उन संभावित नीतियों पर गौर करें जिनका जिक्र उनके बयान से हो सकता है:
- मुद्रीकरण (Demonetisation) का प्रभाव: 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले ने अर्थव्यवस्था पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के प्रभाव डाले, जिससे नकदी प्रवाह बाधित हुआ और अनौपचारिक क्षेत्र पर असर पड़ा।
- जीएसटी का कार्यान्वयन (GST Implementation): वस्तु एवं सेवा कर (GST) का जटिल कार्यान्वयन, विशेष रूप से शुरुआत में, छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए अनुपालन बोझ बन गया।
- चक्रीय मंदी (Cyclical Downturn): कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि वर्तमान मंदी एक वैश्विक चक्रीय मंदी का हिस्सा हो सकती है, लेकिन सरकारी नीतियों ने इसे और गंभीर बना दिया है।
- नीतिगत अनिश्चितता (Policy Uncertainty): कुछ निर्णयों या नीतियों में अचानक बदलाव की आशंकाओं ने भी व्यावसायिक विश्वास को कम किया हो सकता है।
- राजकोषीय नीति (Fiscal Policy): क्या सरकार ने अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त राजकोषीय उपाय किए हैं? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।
“अर्थव्यवस्थाएं जीवित प्राणियों की तरह नहीं होतीं जो ‘मर’ जाती हैं। वे जटिल प्रणालियाँ हैं जो बदलती हैं, समायोजित होती हैं, और विभिन्न शक्तियों से प्रभावित होती हैं। किसी एक व्यक्ति को इसका पूरा श्रेय देना या किसी एक कारक को इसका कारण बताना अतिसरलीकरण है।”
सरकारी पक्ष और प्रतिक्रिया (Government’s Stance and Response)
सरकार आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मंदी के आरोपों को स्वीकार करने से बचती है, लेकिन चुनौतियों को स्वीकार करती है और उनसे निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर प्रकाश डालती है। सरकार का दृष्टिकोण अक्सर निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित होता है:
- संरचनात्मक सुधार (Structural Reforms): सरकार का दावा है कि वे लंबी अवधि के विकास के लिए संरचनात्मक सुधार कर रहे हैं, जैसे कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), कॉर्पोरेट करों में कटौती, और व्यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business) को बढ़ावा देना।
- वैश्विक प्रभाव (Global Factors): सरकार अक्सर वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार युद्धों और भू-राजनीतिक तनावों को घरेलू समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराती है।
- नीतिगत पहल (Policy Initiatives): सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए कई पहलें की हैं, जैसे ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए राहत पैकेज, रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए उपाय, और सार्वजनिक व्यय में वृद्धि।
- दीर्घकालिक विकास की बात (Long-term Growth Story): सरकार इस बात पर जोर देती है कि भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अल्पकालिक मंदी केवल एक अस्थायी चरण है।
अर्थव्यवस्था को ‘मारने’ की बजाय ‘बीमार’ क्यों कहें? (Why Call the Economy ‘Sick’ Instead of ‘Dead’?)
“मृत” शब्द का प्रयोग अत्यधिक नाटकीय है। एक अर्थव्यवस्था को “बीमार” कहना अधिक उपयुक्त हो सकता है क्योंकि इसमें अभी भी कुछ जीवन शक्ति शेष है, लेकिन यह अपनी पूर्ण क्षमता पर कार्य नहीं कर रही है। “बीमारी” के लक्षण स्पष्ट हैं:
- कमजोर मांग (Weak Demand): उपभोक्ता खर्च में कमी।
- नौकरियों की कमी (Job Shortages): बेरोजगारी का बढ़ता स्तर।
- अल्प-उपयोग क्षमता (Underutilised Capacity): कारखानों और व्यवसायों का पूरी क्षमता से काम न करना।
- क्रेडिट संकुचन (Credit Contraction): बैंकों द्वारा ऋण देने में सतर्कता।
लेकिन, “बीमार” होने का मतलब यह भी है कि इलाज संभव है। अर्थव्यवस्था में अभी भी कुछ मजबूत पहलू हैं:
- घरेलू बचत (Domestic Savings): भारत में बचत दरें अभी भी अच्छी हैं।
- जनसांख्यिकी लाभांश (Demographic Dividend): बड़ी युवा आबादी।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था (Digital Economy): प्रौद्योगिकी अपनाने में तेजी।
- सरकारी प्रयास (Government Efforts): सुधारों को जारी रखने की मंशा।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विशेष रूप से सामान्य अध्ययन (GS) पेपर 3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी), सामान्य अध्ययन (GS) पेपर 2 (शासन, संविधान, राजनीति), और निबंध के लिए, इस तरह की चर्चाओं का गहरा महत्व है। उम्मीदवारों को निम्नलिखित पर ध्यान देना चाहिए:
GS पेपर 3: भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy)
- विकास और मंदी (Growth and Recession): GDP, उपभोग, निवेश, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटा आदि जैसे आर्थिक संकेतकों का विश्लेषण।
- सरकारी नीतियां (Government Policies): राजकोषीय नीति (Fiscal Policy), मौद्रिक नीति (Monetary Policy), प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर, कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र से संबंधित नीतियां।
- वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) और बैंकिंग क्षेत्र (Banking Sector): NPAs, NBFCs, क्रेडिट फ्लो, वित्तीय स्थिरता।
- रोजगार सृजन (Employment Generation): बेरोजगारी के कारण, सरकारी योजनाएं, कौशल विकास।
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दे (International Economic Issues): वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध, IMF, विश्व बैंक।
GS पेपर 2: शासन और राजनीति (Governance and Politics)
- संसदीय बहसों का विश्लेषण (Analysis of Parliamentary Debates): राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए मुद्दे और सरकार की प्रतिक्रिया।
- नीतियों का मूल्यांकन (Policy Evaluation): आर्थिक नीतियों के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव।
- लोकप्रियतावाद बनाम आर्थिक विवेक (Populism vs. Economic Prudence): राजनीतिक बयानबाजी और आर्थिक निर्णय लेने के बीच संतुलन।
निबंध (Essay)
अर्थव्यवस्था की स्थिति, विकास पथ, सरकारी जवाबदेही, या आर्थिक नीति निर्माण जैसे विषयों पर निबंध के लिए यह चर्चा एक अच्छा आधार प्रदान करती है।
चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and The Way Forward)
भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्तमान चुनौतियों से पार पाने और सतत विकास के पथ पर लौटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- मांग को पुनर्जीवित करना (Reviving Demand):
- राजकोषीय प्रोत्साहन, जैसे कि करों में कटौती या सार्वजनिक व्यय में वृद्धि, मांग को बढ़ा सकती है।
- ग्रामीण आय बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना।
- निवेश को बढ़ावा देना (Boosting Investment):
- व्यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business) को और बेहतर बनाना।
- निजी निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, जिसमें विधायी और नियामक निश्चितता शामिल है।
- बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना।
- रोजगार सृजन (Employment Generation):
- एमएसएमई (MSMEs) क्षेत्र को मजबूत करना, जो रोजगार का एक बड़ा स्रोत है।
- कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ाना और उन्हें उद्योग की जरूरतों से जोड़ना।
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में अधिक नौकरियां पैदा करने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना।
- वित्तीय क्षेत्र को मजबूत करना (Strengthening the Financial Sector):
- बैंकों में पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- एनबीएफसी क्षेत्र में तरलता की समस्याओं का समाधान करना।
- प्रभावी ऋण वसूली तंत्र सुनिश्चित करना।
- संरचनात्मक सुधार जारी रखना (Continuing Structural Reforms):
- भूमि, श्रम और नियामक सुधारों पर काम करना।
- निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाना।
- कृषि उपज को बाजार से जोड़ना।
निष्कर्ष (Conclusion)
राहुल गांधी का बयान, भले ही राजनीतिक रूप से प्रेरित हो, भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान सुस्ती को रेखांकित करता है। “मृत” शब्द का प्रयोग विवादास्पद हो सकता है, लेकिन यह चिंता को व्यक्त करता है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो समस्याएं गंभीर हो सकती हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतर्निहित मुद्दों, सरकारी प्रतिक्रियाओं और आवश्यक सुधारों का गहराई से अध्ययन करने का एक अवसर है। आर्थिक नीति-निर्माण के लिए आंकड़ों, विश्लेषणों और निष्पक्ष दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, न कि केवल राजनीतिक जुबानी जंग की। यह समझना महत्वपूर्ण है कि अर्थव्यवस्था एक सतत प्रक्रिया है, और चुनौतियाँ अवसरों के साथ आती हैं। वर्तमान मंदी से उबरना भारत के लिए अपनी विकास क्षमता को फिर से हासिल करने का एक महत्वपूर्ण क्षण है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी का एक प्रमुख संकेतक हो सकता है?
- GDP वृद्धि दर में गिरावट
- बढ़ती बेरोजगारी दर
- कमजोर उपभोक्ता मांग
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D. उपरोक्त सभी
व्याख्या: GDP वृद्धि में गिरावट, बेरोजगारी दर में वृद्धि और उपभोक्ता मांग में कमी, ये सभी आर्थिक मंदी के प्रमुख संकेतक हैं।
- प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी सरकारी नीति को भारतीय अर्थव्यवस्था पर मंदी के प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
- 2016 का विमुद्रीकरण
- GST का कार्यान्वयन
- कॉर्पोरेट करों में कटौती
- दोनों A और B
उत्तर: D. दोनों A और B
व्याख्या: विमुद्रीकरण और GST के जटिल कार्यान्वयन को अक्सर अर्थव्यवस्था पर अल्पकालिक नकारात्मक प्रभावों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, हालांकि दीर्घकालिक लाभ भी हैं। कॉर्पोरेट करों में कटौती को मंदी से लड़ने के एक उपाय के रूप में देखा जाता है।
- प्रश्न 3: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां’ (NPAs) का क्या अर्थ है?
- बैंकों द्वारा दिए गए वे ऋण जो अभी तक चुकाए नहीं गए हैं।
- बैंकों के वे ऋण जिन पर निश्चित अवधि तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं हुआ है।
- सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड जो बाजार में नहीं बिक रहे हैं।
- किसी कंपनी की संपत्ति जिसका मूल्य घट गया हो।
उत्तर: B. बैंकों के वे ऋण जिन पर निश्चित अवधि तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं हुआ है।
व्याख्या: NPAs वे ऋण होते हैं जिनके लिए उधारकर्ता द्वारा एक निश्चित अवधि (आमतौर पर 90 दिन) तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं किया गया है।
- प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में वित्तीय स्थिरता की निगरानी करती है?
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
- वित्त मंत्रालय
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D. उपरोक्त सभी
व्याख्या: RBI मौद्रिक नीति और बैंकिंग पर्यवेक्षण के माध्यम से, SEBI पूंजी बाजारों के माध्यम से, और वित्त मंत्रालय समग्र आर्थिक और राजकोषीय नीतियों के माध्यम से वित्तीय स्थिरता में योगदान करते हैं।
- प्रश्न 5: ‘जनसांख्यिकी लाभांश’ (Demographic Dividend) का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?
- किसी देश की युवा और कामकाजी आबादी का बड़ा अनुपात।
- देश की प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता।
- तकनीकी नवाचारों से प्राप्त आर्थिक लाभ।
- उच्च निर्यात से प्राप्त आय।
उत्तर: A. किसी देश की युवा और कामकाजी आबादी का बड़ा अनुपात।
व्याख्या: जनसांख्यिकी लाभांश तब प्राप्त होता है जब किसी देश में काम करने योग्य आयु (आमतौर पर 15-64 वर्ष) की आबादी, आश्रितों (बच्चों और बुजुर्गों) की तुलना में बहुत बड़ी होती है, जिससे उत्पादकता और आर्थिक वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है।
- प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा ‘व्यवसाय करने में आसानी’ (Ease of Doing Business) सूचकांक के तहत एक महत्वपूर्ण मापदंड है?
- कंपनी स्थापित करना
- ऋण प्राप्त करना
- कर भुगतान करना
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D. उपरोक्त सभी
व्याख्या: ‘व्यवसाय करने में आसानी’ सूचकांक विभिन्न व्यावसायिक प्रक्रियाओं जैसे कंपनी शुरू करना, परमिट प्राप्त करना, बिजली प्राप्त करना, ऋण प्राप्त करना, करों का भुगतान करना, सीमा पार व्यापार करना और अनुबंध लागू करना जैसे कारकों को मापता है।
- प्रश्न 7: भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘चक्रीय मंदी’ (Cyclical Downturn) का क्या अर्थ है?
- किसी विशेष क्षेत्र में आई समस्या।
- अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि दर में अस्थायी गिरावट।
- लंबे समय तक चलने वाली आर्थिक मंदी।
- तकनीकी अप्रचलन के कारण उद्योग का बंद होना।
उत्तर: B. अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि दर में अस्थायी गिरावट।
व्याख्या: चक्रीय मंदी अर्थव्यवस्था के सामान्य विस्तार और संकुचन के चक्र का हिस्सा है, जहां विकास दर अस्थायी रूप से धीमी हो जाती है।
- प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी मौद्रिक नीति की एक उपकरण है जिसका उपयोग RBI अर्थव्यवस्था में तरलता को नियंत्रित करने के लिए कर सकता है?
- राजकोषीय घाटा
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
- राष्ट्रीय राजकोषीय परिषद
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
उत्तर: B. नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
व्याख्या: CRR, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, और खुले बाजार परिचालन (OMO) मौद्रिक नीति के प्रमुख उपकरण हैं जिनका उपयोग RBI अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति और ब्याज दरों को प्रभावित करने के लिए करता है।
- प्रश्न 9: ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- विदेशी निवेश को पूरी तरह से रोकना।
- घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता कम करना।
- केवल सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को हतोत्साहित करना।
उत्तर: B. घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता कम करना।
व्याख्या: आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना, स्थानीय व्यवसायों और उद्योगों को मजबूत करना और आयात पर निर्भरता कम करना है।
- प्रश्न 10: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत की आर्थिक वृद्धि को अक्सर ‘ट्रिकल-डाउन’ प्रभाव (trickle-down effect) से जोड़ा जाता है, जहां अमीरों की संपत्ति बढ़ने से अंततः गरीबों को भी लाभ होता है।
2. ‘इंक्लूसिव ग्रोथ’ (Inclusive Growth) का अर्थ है कि आर्थिक विकास के लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँचें, विशेष रूप से समाज के कमजोर और वंचित वर्ग।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?- केवल 1
- केवल 2
- दोनों 1 और 2
- न तो 1 और न ही 2
उत्तर: B. केवल 2
व्याख्या: ‘ट्रिकल-डाउन’ सिद्धांत विवादास्पद है और अक्सर इसकी आलोचना की जाती है कि यह हमेशा प्रभावी नहीं होता। ‘इंक्लूसिव ग्रोथ’ का उद्देश्य स्पष्ट रूप से लाभों का व्यापक वितरण है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में मंदी के दौर से गुजर रही है। इस मंदी के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करें और आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले संभावित नीतिगत उपायों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: राजनीतिक बयानबाजी अक्सर आर्थिक नीतियों पर बहस को प्रभावित करती है। इस संदर्भ में, हालिया राजनीतिक बयानों और वास्तविक आर्थिक संकेतकों के प्रकाश में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3: भारतीय अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इसके कारणों का पता लगाएं और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की रणनीतियों की प्रभावशीलता पर चर्चा करें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 4: ‘व्यवसाय करने में आसानी’ (Ease of Doing Business) को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा किए गए विभिन्न सुधारों की जांच करें और यह बताएं कि ये सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कैसे योगदान कर सकते हैं। (150 शब्द, 10 अंक)