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भारतीय अर्थव्यवस्था का ‘मृत्यु’ और राहुल गांधी का आरोप: क्या PM और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है?

भारतीय अर्थव्यवस्था का ‘मृत्यु’ और राहुल गांधी का आरोप: क्या PM और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक पूर्व बयान का हवाला देते हुए कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘मर चुकी’ है। गांधी ने आरोप लगाया कि यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में उत्पन्न हुई है, और यह बात प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री को छोड़कर देश के बाकी सभी लोगों को पता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर विभिन्न स्तरों पर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं, और यह राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस का विषय बन गया है। यह ब्लॉग पोस्ट इस बयान के पीछे के आर्थिक और राजनीतिक संदर्भों का गहराई से विश्लेषण करेगा, भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करेगा, और यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक पहलुओं पर प्रकाश डालेगा।

पृष्ठभूमि: राहुल गांधी के बयान का संदर्भ (Background: Context of Rahul Gandhi’s Statement)

राहुल गांधी का यह बयान अप्रत्याशित नहीं है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों के प्रति उनकी पार्टी के लगातार विरोध का हिस्सा है। यह बयान विशेष रूप से दो प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित है:

  • डोनाल्ड ट्रम्प का पूर्व बयान: राहुल गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक पुराने बयान का उल्लेख किया, जिसमें ट्रम्प ने संभवतः भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी गति या विशिष्ट समस्याओं पर टिप्पणी की थी। यह इंगित करता है कि राहुल गांधी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चिंता व्यक्त करने के लिए बाहरी संदर्भों का उपयोग कर रहे हैं।
  • “मर चुकी अर्थव्यवस्था” का आरोप: यह एक अतिरंजित लेकिन राजनीतिक रूप से प्रभावी शब्दावली है जिसका उपयोग गांधी ने अर्थव्यवस्था की गंभीर स्थिति को उजागर करने के लिए किया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि उनके अनुसार, अर्थव्यवस्था इतनी बुरी हालत में है कि वह जीवित रहने योग्य नहीं रही।
  • “सबको पता है, सिवाय PM और वित्त मंत्री के”: यह आरोप सीधा और तीखा है। इसका तात्पर्य है कि सरकार, विशेष रूप से शीर्ष नेतृत्व, अर्थव्यवस्था की वास्तविकता से अनभिज्ञ या जानबूझकर आंखें मूंदे हुए है, जबकि आम जनता, विशेषज्ञ और व्यवसायी सभी इस संकट को महसूस कर रहे हैं। यह सरकार की प्रभावशीलता और उनकी आर्थिक नीतियों पर एक मजबूत प्रहार है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति: एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण (Current State of the Indian Economy: An Objective Analysis)

राहुल गांधी के आरोपों की गंभीरता को समझने के लिए, हमें भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का निष्पक्ष रूप से मूल्यांकन करना होगा। हम विभिन्न प्रमुख आर्थिक संकेतकों को देखेंगे:

1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर: (Gross Domestic Product (GDP) Growth Rate)

हाल के वर्षों में, भारत की GDP वृद्धि दर में मंदी देखी गई है। वैश्विक मंदी, घरेलू मांग में कमी, और कुछ संरचनात्मक समस्याओं के कारण यह दर अपेक्षा से कम रही है।

  • प्रवृत्तियाँ: 2016-17 में 8.2% की मजबूत वृद्धि के बाद, GDP वृद्धि दर धीरे-धीरे कम होती गई। 2019-20 में यह 4.2% पर आ गई, जो पिछले कुछ वर्षों की तुलना में काफी कम थी। COVID-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया, जिससे 2020-21 में अर्थव्यवस्था में भारी संकुचन (contraction) आया।
  • कारण:
    • घरेलू मांग में कमी: विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उपभोग व्यय में गिरावट।
    • निवेश में शिथिलता: कॉर्पोरेट जगत द्वारा नए निवेश करने में झिझक।
    • विनिर्माण क्षेत्र की समस्याएं: उत्पादन में धीमी गति और क्षमता उपयोग में कमी।
    • वित्तीय क्षेत्र की चुनौतियाँ: बैंकों के NPA (Non-Performing Assets) का मुद्दा और NBFCs (Non-Banking Financial Companies) में तरलता की कमी।

“एक इंजन जो ठीक से काम नहीं कर रहा है, वह अर्थव्यवस्था है। हमारे लोग ऑटो रिक्शा चला रहे हैं, लेकिन सरकार बुलेट ट्रेन की बात कर रही है।” – यह उपमा आर्थिक वास्तविकता और सरकारी दावों के बीच अंतर को दर्शाती है।

2. बेरोजगारी दर: (Unemployment Rate)

बेरोजगारी, विशेष रूप से युवाओं में, एक प्रमुख चिंता का विषय रही है। COVID-19 महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।

  • आंकड़े: विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर कई वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, खासकर 2019-2020 में। युवा बेरोजगारी दर विशेष रूप से चिंताजनक है।
  • कारण:
    • नौकरी सृजन में मंदी: आर्थिक विकास के अनुरूप पर्याप्त नई नौकरियां उत्पन्न नहीं हो रही हैं।
    • कौशल की कमी: शिक्षा प्रणाली और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर।
    • अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भरता: अधिकांश रोजगार अभी भी असंगठित क्षेत्र में हैं, जो आर्थिक झटकों के प्रति अधिक संवेदनशील है।

3. मुद्रास्फीति (Inflation):

जबकि पिछले कुछ वर्षों में समग्र मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही है, कुछ वस्तुओं, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि ने आम आदमी पर दबाव डाला है।

  • कारण: आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं, खराब मानसून (कुछ वर्षों में), और वैश्विक कमोडिटी कीमतों में उतार-चढ़ाव।
  • 4. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit):

    सरकार का राजकोषीय घाटा, जो सरकारी खर्च और राजस्व के बीच का अंतर है, एक महत्वपूर्ण संकेतक है। COVID-19 महामारी के दौरान, खर्च में वृद्धि और राजस्व में कमी के कारण घाटा बढ़ा।

    • प्रभाव: उच्च घाटा सरकार पर उधार लेने का दबाव बढ़ाता है, जिससे ब्याज भुगतान बढ़ता है और अन्य विकासशील क्षेत्रों के लिए उपलब्ध धन कम हो जाता है।

    5. वैश्विक सूचकांकों में प्रदर्शन: (Performance in Global Indices)

    भारत ने कुछ वैश्विक सूचकांकों में सुधार दिखाया है, जैसे कि विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट में। हालांकि, अन्य क्षेत्रों में, जैसे कि मानव विकास सूचकांक (HDI), अभी भी काफी सुधार की गुंजाइश है।

    राहुल गांधी के आरोपों की पड़ताल (Investigating Rahul Gandhi’s Allegations)

    राहुल गांधी का दावा है कि “प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है” कि अर्थव्यवस्था ‘मर चुकी’ है। आइए इस पर गहराई से विचार करें:

    “मर चुकी अर्थव्यवस्था” का सच:

    यह कहना कि अर्थव्यवस्था ‘मर चुकी है’, एक अतिशयोक्तिपूर्ण राजनीतिक बयान है। कोई भी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ‘मृत’ नहीं हो सकती जब तक कि वह पूरी तरह से ठप न हो जाए। हालांकि, इसका मतलब यह हो सकता है कि यह गंभीर मंदी, संरचनात्मक समस्याओं, और विकास की गति खो चुकी है।

    तर्क:

    • GST राजस्व: COVID-19 के बाद GST राजस्व में सुधार दिख रहा है, जो कुछ आर्थिक गतिविधि का संकेत है।
    • निर्यात: कुछ क्षेत्रों में निर्यात में वृद्धि देखी गई है।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था: डिजिटल लेन-देन और फिनटेक क्षेत्र में वृद्धि जारी है।
    • RBI का हस्तक्षेप: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कई उपाय किए हैं।

    विपक्ष का तर्क:

    • मांग का अभाव: औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में वृद्धि की अस्थिरता और उपभोग में कमी।
    • क्षेत्रीय असंतुलन: कुछ क्षेत्र, जैसे सेवा क्षेत्र, दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन विनिर्माण और कृषि अभी भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • असमानता: आर्थिक सुधारों का लाभ समान रूप से वितरित नहीं हो रहा है।

    “PM और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है” का तात्पर्य:

    यह आरोप सरकार की संवेदनशीलता और प्रभावी नीति-निर्माण पर सवाल उठाता है।

    • विपक्ष का दृष्टिकोण: वे दावा करते हैं कि अर्थव्यवस्था की कमजोरियों के स्पष्ट संकेत (जैसे धीमी वृद्धि, उच्च बेरोजगारी, गिरता निवेश) सरकार के एजेंडे से गायब हैं, या उन्हें जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है।
    • सरकार का दृष्टिकोण: सरकार अक्सर इन आरोपों को राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा बताती है और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर जोर देती है। वे वैश्विक कारकों और अप्रत्याशित घटनाओं (जैसे महामारी) को समस्याओं का कारण बताते हैं।
    • वास्तविकता: यह संभव है कि सरकार आर्थिक चुनौतियों से अवगत हो, लेकिन उनके द्वारा अपनाए जा रहे समाधानों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए जा सकते हैं। ‘सबको पता है’ का मतलब यह भी हो सकता है कि विशेषज्ञ, व्यवसायी, श्रमिक और आम जनता भी समस्या को महसूस कर रहे हैं, भले ही वे इसे सीधे व्यक्त न करें।

    सरकार द्वारा उठाए गए कदम और उनकी प्रभावशीलता (Government Measures and Their Effectiveness)

    भारतीय सरकार ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कई कदम उठाए हैं:

    • कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती: कंपनियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने हेतु।
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान: आत्मनिर्भरता बढ़ाने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए।
    • PLI (Production Linked Incentive) योजनाएं: विशिष्ट क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए।
    • वित्तीय क्षेत्र सुधार: NPA से निपटने और NBFCs को समर्थन देने के उपाय।
    • आधारभूत संरचना परियोजनाओं पर जोर: आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए।
    • COVID-19 राहत पैकेज: महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए।

    चुनौतियाँ:

    • कार्यान्वयन: योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन हमेशा एक चुनौती रही है।
    • मांग प्रोत्साहन: केवल आपूर्ति-पक्ष के उपायों से स्थायी विकास संभव नहीं है; मांग को बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है।
    • संरचनात्मक सुधार: श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण, और वित्तीय क्षेत्र में गहन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
    • वैश्विक अनिश्चितता: भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी का प्रभाव।


    “यह सिर्फ सरकारी दावों का खेल नहीं है, बल्कि जमीनी हकीकत का सामना करने का समय है। जब तक उपभोक्ता की जेब में पैसा नहीं होगा, तब तक अर्थव्यवस्था रफ्तार नहीं पकड़ेगी।”

    UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Candidates)

    राहुल गांधी के बयान और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई चरणों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है:

    प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):

    • अर्थव्यवस्था: GDP, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, राजकोषीय घाटा, फिस्कल पॉलिसी, मौद्रिक नीति, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), निर्यात-आयात।
    • सरकारी योजनाएं: आत्मनिर्भर भारत, PLI योजनाएं, कॉर्पोरेट टैक्स कटौती, वित्तीय क्षेत्र सुधार।
    • अंतर्राष्ट्रीय संगठन: IMF, विश्व बैंक, WTO (अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य को समझने के लिए)।
    • सांख्यिकी: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आर्थिक आंकड़े।

    मुख्य परीक्षा (Mains):

    • GS-I (Social Issues): बेरोजगारी, गरीबी, असमानता।
    • GS-II (Governance): सरकार की आर्थिक नीतियां, उनका कार्यान्वयन और प्रभाव।
    • GS-III (Economy): भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, योजना, संसाधन जुटाना, विकास, रोजगार, समावेशी विकास, आर्थिक सुधार।
    • GS-III (Science & Tech): आर्थिक विकास पर तकनीक का प्रभाव।
    • GS-III (Environment): आर्थिक गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव।
    • निबंध: भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ और भविष्य की राह, आत्मनिर्भर भारत की भूमिका, आर्थिक विकास में युवाओं की भूमिका।
    • साक्षात्कार: आर्थिक मुद्दों पर स्पष्ट समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता।

    आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसर (Way Forward: Challenges and Opportunities)

    राहुल गांधी के बयान एक चेतावनी के रूप में देखे जा सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनसे निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

    • मांग को बढ़ाना: विशेष रूप से उपभोग और निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी नीतियां।
    • रोजगार सृजन: विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में अधिक नौकरियां पैदा करना, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • संरचनात्मक सुधार: भूमि, श्रम, और नियामक सुधारों को गति देना।
    • वित्तीय क्षेत्र को मजबूत करना: NPA की समस्या को हल करना और NBFCs में तरलता सुनिश्चित करना।
    • निर्यात को बढ़ावा देना: अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना।
    • कृषि क्षेत्र में सुधार: किसानों की आय बढ़ाना और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना।
    • “ईज ऑफ लिविंग” को सुगम बनाना: नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार।

    अवसर:

    • जनसांख्यिकीय लाभांश: युवा कार्यबल का सदुपयोग।
    • डिजिटल क्रांति: वित्तीय समावेशन और दक्षता बढ़ाने के लिए।
    • “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत”: विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: विकास और रोजगार के नए अवसर।

    निष्कर्ष (Conclusion)

    राहुल गांधी का बयान, हालांकि राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकता है, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद वास्तविक चुनौतियों की ओर इशारा करता है। “अर्थव्यवस्था मर चुकी है” का दावा निश्चित रूप से अतिरंजित है, लेकिन GDP वृद्धि में मंदी, उच्च बेरोजगारी, और उपभोग में कमी जैसी समस्याएं वास्तविक हैं। सरकार ने कई सुधारों और पहलों का प्रयास किया है, लेकिन उनकी प्रभावशीलता और कार्यान्वयन अभी भी महत्वपूर्ण प्रश्न हैं।

    यह महत्वपूर्ण है कि सरकार और विपक्ष दोनों अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए रचनात्मक संवाद में शामिल हों। नीति-निर्माताओं को डेटा-संचालित निर्णय लेने, संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय भारतीय अर्थव्यवस्था की जटिलताओं, सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता, और आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। परीक्षा में सफलता के लिए, केवल आरोपों को सुनना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनसे जुड़े आर्थिक तथ्यों, आंकड़ों और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

    प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

    1. प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा संकेतक भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि को मापता है?
    2. a) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)

      b) थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

      c) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर

      d) औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)

      उत्तर: c) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर

      व्याख्या: GDP वृद्धि दर किसी देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में समय के साथ होने वाले परिवर्तन को मापती है, जो अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का एक व्यापक संकेतक है।

    3. प्रश्न 2: “गैर-निष्पादित आस्ति” (NPA) की स्थिति निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
    4. a) सरकारी खजाने में राजस्व की कमी

      b) बैंकों द्वारा दिए गए उन ऋणों पर जिनकी किस्तें समय पर नहीं चुकाई गई हैं

      c) निर्यात में गिरावट

      d) मुद्रास्फीति का अनियंत्रित होना

      उत्तर: b) बैंकों द्वारा दिए गए उन ऋणों पर जिनकी किस्तें समय पर नहीं चुकाई गई हैं

      व्याख्या: NPA, बैंकिंग शब्दावली है जो उन ऋणों को संदर्भित करती है जिन पर तय समय अवधि में ब्याज या मूलधन की कोई वसूली नहीं हुई है, जिससे बैंक की वित्तीय स्थिति प्रभावित होती है।

    5. प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी योजना भारत सरकार द्वारा विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई एक प्रमुख नीति है?
    6. a) प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)

      b) उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना

      c) मनरेगा (MGNREGA)

      d) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)

      उत्तर: b) उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना

      व्याख्या: PLI योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ाना, आयात पर निर्भरता कम करना और निर्यात को बढ़ावा देना है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सकती है।

    7. प्रश्न 4: “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” रिपोर्ट निम्नलिखित में से किस अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा जारी की जाती है?
    8. a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

      b) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

      c) विश्व बैंक (World Bank)

      d) संयुक्त राष्ट्र (UN)

      उत्तर: c) विश्व बैंक (World Bank)

      व्याख्या: विश्व बैंक अपनी वार्षिक “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” रिपोर्ट के माध्यम से विभिन्न देशों में व्यापार करने में आसानी का मूल्यांकन करता है। (हालांकि, हाल के वर्षों में रिपोर्ट का प्रकाशन रोक दिया गया है, लेकिन ऐतिहासिक महत्व के कारण यह प्रश्न प्रासंगिक है)।

    9. प्रश्न 5: राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) क्या इंगित करता है?
    10. a) सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर

      b) सरकार के कुल राजस्व और कुल गैर-ऋण व्यय के बीच का अंतर

      c) सरकार के कुल व्यय और कुल उधारी के बीच का अंतर

      d) सरकार के कुल राजस्व और कुल ब्याज भुगतान के बीच का अंतर

      उत्तर: a) सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर

      व्याख्या: राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जब सरकार का कुल व्यय उसके कुल राजस्व (गैर-ऋण प्राप्तियों) से अधिक हो जाता है, और इस अंतर को पाटने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है।

    11. प्रश्न 6: हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में देखी गई ‘मांग में कमी’ का सबसे प्रत्यक्ष परिणाम क्या रहा है?
    12. a) निर्यात में भारी वृद्धि

      b) औद्योगिक उत्पादन में तेजी

      c) सेवा क्षेत्र का अप्रत्याशित विस्तार

      d) उपभोग व्यय में गिरावट और औद्योगिक उत्पादन में मंदी

      उत्तर: d) उपभोग व्यय में गिरावट और औद्योगिक उत्पादन में मंदी

      व्याख्या: जब लोग या व्यवसाय कम खर्च करते हैं, तो वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो जाती है, जिससे कंपनियों को उत्पादन कम करना पड़ता है, और इस प्रकार औद्योगिक उत्पादन प्रभावित होता है।

    13. प्रश्न 7: ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    14. a) केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करना

      b) आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना

      c) घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता बढ़ाना

      d) केवल निर्यात बाजारों पर ध्यान केंद्रित करना

      उत्तर: c) घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता बढ़ाना

      व्याख्या: आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य भारत को विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाना, स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहित करना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है।

    15. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा कारक “युवा बेरोजगारी” (Youth Unemployment) को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है?
    16. a) शिक्षा प्रणाली और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर (Skill Gap)

      b) नए व्यवसायों के लिए कम निवेश

      c) बढ़ती हुई जनसंख्या

      d) उपरोक्त सभी

      उत्तर: d) उपरोक्त सभी

      व्याख्या: कौशल की कमी, पर्याप्त निवेश का अभाव और जनसंख्या वृद्धि सभी मिलकर नौकरी के बाजार में प्रवेश करने वाले युवाओं के लिए बेरोजगारी की दर को बढ़ा सकते हैं।

    17. प्रश्न 9: “मुद्रास्फीति” (Inflation) का सीधा प्रभाव क्या होता है?
    18. a) वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि

      b) क्रय शक्ति (Purchasing Power) में वृद्धि

      c) ब्याज दरों में कमी

      d) बेरोजगारी में कमी

      उत्तर: a) वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि

      व्याख्या: मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें समय के साथ मुद्रा के मूल्य में कमी आती है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं की सामान्य कीमत स्तर में वृद्धि होती है।

    19. प्रश्न 10: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में “संरचनात्मक सुधार” (Structural Reforms) का क्या अर्थ है?
    20. a) मौसमी आर्थिक मंदी से निपटना

      b) दीर्घकालिक और मौलिक आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए नीतियां

      c) केवल वित्तीय घाटे को कम करना

      d) अल्पकालिक विकास दर को बढ़ाना

      उत्तर: b) दीर्घकालिक और मौलिक आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए नीतियां

      व्याख्या: संरचनात्मक सुधार अर्थव्यवस्था की मूल कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए डिज़ाइन किए गए व्यापक बदलाव हैं, जैसे कि श्रम कानून, भूमि अधिग्रहण, कर प्रणाली, और व्यापार करने में आसानी से संबंधित सुधार।

    मुख्य परीक्षा (Mains)

    1. प्रश्न 1: राहुल गांधी के बयान “भारतीय अर्थव्यवस्था मर चुकी है” के आलोक में, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता पर भी चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
    2. प्रश्न 2: “मांग-पक्ष” और “आपूर्ति-पक्ष” के उपायों के बीच संतुलन बनाते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था में टिकाऊ विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक संरचनात्मक सुधारों का विस्तार से वर्णन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
    3. प्रश्न 3: “प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है” – राहुल गांधी के इस आरोप के संदर्भ में, भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति पर सार्वजनिक धारणा और सरकारी संचार के बीच के अंतर का विश्लेषण करें। इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)
    4. प्रश्न 4: “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलों का भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में इसकी स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)

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