बेकारी
जब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कार्य करने के योग्य होता है , लेकिन फिर भी वह कार्य प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे बेरोजगारी के रूप में विवेचित किया जा सकता है । बेरोजगारी की स्थिति प्रत्येक समाज में है , लेकिन कुछ समाजों में बेरोजगारी विकट एवं गम्भीर , आर्थिक व समाजशास्त्रीय समस्या के रूप में सामने आती है । औद्योगीकरण एवं नगरीयकरण ने जहाँ एक ओर रोजगार के नये साधन जुटाये हैं वहीं दूसरी ओर इन्होंने बेरोजगारी को भी प्रोत्साहित किया है । मशीनीकरण के कारण उत्पादित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में न टिक पाने के कारण छोटे – छोटे लघु एवं कुटीर उद्योग नष्ट हो गये हैं जिससे लाखों श्रमिक पलायन कर गाँवों से शहर चले गये । परिणामस्वरूप श्रमिक बेरोजगारी बढ़ी , औद्योगीकरण ने पूँजीवाद के विकास में योग दिया है । सम्पत्ति का असमान वितरण एवं विषमता से अनेक सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का कुप्रचलन हुआ उसमें बेरोजगार व्यक्ति कुण्ठित , निराश एवं हीनता से ग्रसित हो जाता है उसी से अन्य मानसिक एवं अन्य सामाजिक समस्याओं जैसे – अपराध आदि का जन्म होता है ।बेरोजगार किसे माना जाय ? क्या ऐसे व्यक्तियों को जो स्नातकोत्तर होते हुए भी बस – कण्डक्टर या क्लर्क आदि जैसे कार्य करते हैं अथवा ऐसे दक्ष श्रमिकों को जो अदक्ष मजदूरों का कार्य करते हैं ? ये सब व्यक्ति बेरोजगार ‘ नहीं परन्तु ‘ अर्द्ध – बेकार ‘ कहे जा
आज हम अपने को वैज्ञानिक शक्ति से शक्तिमान होने का दम भरते . हैं . औद्योगिक विकास को आर्थिक उन्नति का आधार मानते हैं और शिक्षा के विस्तार के द्वारा अज्ञानता को दर करने का प्रयास करते हैं ; परन्तु वहीं हम बेकारी के सामने सिर झुका देते हैं तो हमारी समस्त सफलताएँ और उपलब्धियाँ स्वयं हमारी हँसी उड़ाती हैं । एक स्वस्थ , सबल और सक्षम व्यक्ति के लिए यह कितना कर अभिशाप है कि काम करने की योग्यता और इच्छा होते हुए भी उसे काम करने का अवसर नहीं मिलता और वह रोजी – रोटी के लिए तरस जाता है । यही बेकारी है और यही बेकारी का परिणाम भी । पर इस सम्बन्ध में और कुछ विवेचना करने से पहले बेकारी का अर्थ समझ लेना उचित होगा ।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गुन्नार मिरडल के अनुसार “ बेरोजगारी एक ऐसी दशा है जिसमें व्यक्ति के पास कोई नौकरी या काम – धन्धा नहीं है परन्तु वह कोई ऐसी नौकरी तलाश रहा है या पाने की इच्छा रखता है जिसमें उसकी योग्यता के अनुपात में पैसा या वेतन मिल रहा हो । ” मिडल के अनुसार बेरोजगारी आवश्यक रूप से अस्वैच्छिक है अर्थात् बेरोजगार वे ही लोग माने जायेंगे जो रोजगार करने की क्षमता तथा इच्छा रखते हुए भी रोजगार नहीं पा रहे हैं और रोजगार तलाशने के लिए गम्भीर रूप से प्रयत्नशील हैं ।
बेकारी वह दशा है जिसमें कि एक व्यक्ति काम करने योग्य होते हुए और उस समय प्रचलित मजदूरी या पारिश्रमिक की दर पर काम करने की इच्छा रखते हुए भी काम पाने में असफल होता है ।
श्री कार्ल प्रिनाम ( Karl Pribram ) ने बेकारी की परिभाषा करते हुए लिखा है , ” बेकारी – श्रम बाजार की वह दशा है जिसमें श्रम – शक्ति की पूर्ति कार्य करने के स्थानों की संख्या से अधिक होती है । ”
फ्लोरेन्स ( Fiorence ) के शब्दों में , ” बेकारी उस व्यक्ति की निष्क्रियता के रूप में परिभाषित की जा सकती है जो कार्य करने के योग्य एवं इच्छुक हैं । ”
फेयरचाइल्ड ( Fairchild ) के अनुसार , ” बेकारी एक सामान्य श्रमजीवी – वर्ग के सदस्य का सामान्य समय में , सामान्य कार्य करने की दशाओं में सामान्य वेतन पर मिलने वाले काम से अनिच्छापूर्वक और जबरदस्ती अलग कर देना है । ”
सक्सेना ( Dr . R . C . Saxena ) के अनुसार , “ एक व्यक्ति को जो काम करने के योग्य है और काम करना चाहता है , उसे देश में प्रचलित मजदूरी की दर पर काम न मिलने की अवस्था में बेकार कहेंगे । ”
स्पष्ट है कि बेकार व्यक्ति वही होगा जो कि काम करने की इच्छा होते हुए तथा काम करने के योग्य होने पर भी रोजगार से वंचित है । जो व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक दृष्टिकोण से काम करने के योग्य नहीं , उसे काम अगर नहीं मिलता है तो वह बेकार नहीं कहा जायेगा । इसी प्रकार साधु – संन्यासी तथा भिखारी यद्यपि काम करने के योग्य होते हैं , पर चूँकि ये करना ही नहीं चाहते , इसीलिए उन्हें भी बेकार नहीं कहा जा सकता । इसी तरह वह व्यक्ति भी बेकार नहीं है जो कि देश में मजदूरी की आम प्रचलित दर 8 रुपए प्रतिदिन होते हुए भी 15 रु . प्रतिदिन से कम पर काम करने को तैयार नहीं है । इसी स्थिति में उसकी इच्छानुसार मजदूरी न मिलने के कारण वह व्यक्ति कार्य नहीं करेगा या उसे रोजगार नहीं मिल सकेगा , पर उस व्यक्ति को बेकार नहीं कहा जायेगा ।
बेकारी के भेद या रूप
बेरोजगारी के अनेक प्रकारों का अनेक आधार पर विवरण निम्नांकित है
ऐच्छिक बेरोजगारी ( Voluntary Unemployment ) – ऐच्छिक बेरोजगारी तब होती है , जब कोई व्यक्ति प्रचलित दरों पर उपलब्ध रोजगार को स्वीकार नहीं करता ।
अनैच्छिक बेरोजगारी ( Involuntary Unemployment ) – जब कोई व्यक्ति प्रचलित कीमत ( आय ) या उससे कम पर रोजगार प्राप्ति हेतु तत्पर हो किन्तु उसे रोजगार न मिल रहा हो , उस स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है ।
संरचनात्मक बेरोजगारी ( Structural Unemployment ) – इसका तात्पर्य एक दीर्घकालीन बेरोजगारी की स्थिति से है जो देश के पिछड़े आर्थिक ढाँचे से सम्बन्धित होती है ।
खुली बेरोजगारी ( Open Unemployment ) – इससे तात्पर्य ऐसी बेरोजगारी से है जिसमें श्रमिक बिल्कुल बिना कामकाज के होता है । उसे थोड़ा बहुत भी काम नहीं मिलता है ।
छिपी हुई बेरोजगारी ( Disguised Unemployment ) – ऐसे व्यक्ति जो अपनी श्रम शक्ति का कुछ न कुछ उपयोग करते रहते हैं किन्तु उनकी सीमान्त उत्पादकता ( MP ) शून्य होती है , छिपी बेरोजगारी के अन्तर्गत आते हैं ।
बेकारी के भेद या रूप ( Types or Forms of Unemployment )
सामान्यतः बेकारी के निम्नलिखित छः रूपों का वर्णन किया जाता है :
. मौसमी बेकारी – कुछ उद्योगों या व्यापार की प्रकति इस प्रकार की होती है पास साल में केवल कछ महीनों में ही चलते हैं । उदाहरणार्थ , बर्फ और चीनी मिलें साल में 6 – 7 महीने करती हैं । शेष महीनों में इन उद्योगों में लगे मजदूर बेकार रहते है । अतः इस प्रकार का बेकारी को मौसमी के कहते हैं ।
. आकस्मिक बेकारी – आकस्मिक बेकारी वह बेकारी है जो कि अचानक ही आर रूप से मजदूरों की संख्या में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप पैदा हो जाती है । आर्थिक मन्दी ( Ecn . depression ) या युद्धकाल के बाद प्रायः इसी प्रकार की बेकारी विकसित होती है ।
. चक्रीय बेकारी – प्रकार की बेकारी व्यापार के चक्र में उतार – चढ़ाव के फलस्य उत्पत्र होती है । दूसरे शब्दों में , उन्नत व्यापार में यकायक मन्दी आ जाने पर श्रमिकों को काम से हटाना पड़ा आर्थिक मन्दी ( Economic है . इसी को चक्रीय बेकारा कहा गाँवों में किसान लोग खताकामी को ग्रामीण बेकारी ।
. ग्रामीण बेकारी – गाँवों में किसान लोग खेती – कार्य में केवल कुछ समय ही व्यस्तो हैं , शेष समय उनके लिए कोई कार्य नहीं होता अर्थात वे बेकार रहते हैं । इसी को ग्रामीण बेकारी कहा गया है ।
. अर्द्ध – बेकारी – कभी – कभी मिलों , कारखानों और कार्यालयों में आवश्यकता से अधिक लोगों को भर्ती कर लिया जाता है । चॅटि इन लोगों के लिए काम कम होता है अतः उन्हें सुविधाएँ और वेतन भी कम मिलता है । इस स्थिति को अर्द्ध – बेरोजगारी कहा जायेगा ।
. औद्योगिक बेकारी – कभी – कभी श्रमिको की हड़ताल या मालिकों द्वारा औद्योगिक संस्थाओं में तालाबन्दी के कारण भी हजारों श्रमिक बेकार हो जाते हैं , या अन्य किसी कारण से कोई मिल या कारखाना बन्द हो जाने से श्रमिक बेकार हो जाते हैं . इसी को औद्योगिक बेकारी कहते हैं ।
भारतवर्ष में बेकारी
भारतवर्ष में वास्तव में कितने बेरोजगार हैं , इसके सम्बन्ध में कोई भी निश्चित आँकडे हमें उपलब्ध नहीं हैं , फिर भी रोजगार – दफ्तरों से विभिन्न वर्षों में गम्भीर आँकड़ों की तुलना करने से देश में बढ़ती हुई बेरोजगारी की गम्भीरता का आभास होता है । सन् 1970 के अन्त में 41 लाख व्यक्ति विभिन्न रोजगार – कार्यालयों में पंजीकृत थे , जो कि सन् 1971 में बढ़कर 51 लाख तथा सन् 1973 के अन्त तक बढ़कर 82 , 17 , 649 हो गये । दिसम्बर 1977 में रोजगार कार्यालयों के रजिस्टर में नौकरी चाहने वालों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख 24 हजार थी और दिसम्बर 1982 में यह संख्या 1 करोड़ 97 लाख हो गयी । 1990 भारत में दिए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार 31 दिसम्बर , 1989 में 3 . 27 , 76 , 220 लोगों के नाम रोजगार – कार्यालयों में दर्ज थे । परन्तु एक गैर – सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार , वर्ष 1990 के अन्त में भारत में बेरोजगारों की संख्या 7 करोड़ से भी अधिक थी । पर यह ही सब – कछ नहीं है । श्रीमती मनोरमा दीवान ने सच ही लिखा है कि एक बहुत भयानक और खतरनाक धमाका जो 21वीं सदी यानी आज से ठीक 9 साल बाद भारत में होने वाला है उसका अन्दाजा न तो सत्तारूढ़ पार्टी और न ही विरोधी पार्टियाँ लगा रहा हैं । आश्चर्यजनक बात यह है कि इस भयंकर विस्फोट की कोई चर्चा भी बाकायदा नीति बनाकर नहीं का जाती । आई . एल . ओ . विश्व मजदूर संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि जब 21वीं सदी शुरू होगीता भारत में दस करोड़ से अधिक बेरोजगार होंगे जो दुनिया के बेरोजगारों की कल संख्या का दो – तिहाई भाग होगा । स्पष्ट है कि आई . एल . ओ . ने अपना अध्ययन उन आँकडों को आधार बनाकर किया है जो बेरोजगार के लिए बनाये गये दफ्तरों और एजेंसियों के रजिस्टरों पर चढे हए हैं या आने वाले वर्षों में चढ़ा लेकिन सभी बेरोजगारों के नाम इन रजिस्टरों पर नहीं चढते । इसीलिए एक संकचित अनुमान से यह १ गलता न होगा कि जब हम 21वीं सदी में प्रवेश करेंगे तो भारत में बेकार लोगों की संख्या कम से क करोड़ होगी । अनुमान यही है कि तब तक हमारी आबादी 100 करोड यानी एक अरब तक पहुंच जा इस हिसाब से भारत का हर नौवाँ इन्सान बेरोजगार होगा ।
भारत में शिक्षित बेकारी
शिक्षित बेरोजगारों की संख्या भी काफी अधिक है । शिक्षित बेरोजगारा का और वाणिज्य के स्नातकों में केन्द्रित है । नवीनतम सरकारी अनुमानों के अनुसार इसशिक्षित बेरोजगारों की संख्या 500 लाख है । इतना ही नहीं , विज्ञान और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में बेरोजगारों की – संख्या 5 . 9 लाख होने का अनुमान है ।
बेकारी के सामान्य कारण
( General Causes of Unemployment )
बेकारी या बेरोजगारी के निम्नलिखित कारणों का उल्लेख किया जा सकता है :
श्रम की माँग व पूर्ति में असन्तुलन – – यह कारण परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है । यह मानी हुई बात है किसी समयविशेष में किसी देश में कार्य करने के स्थानों की संख्या निश्चित होती है और उसी के अनुसार श्रम की माँग भी हुआ करती है । अगर श्रमिकों की माँग कम है और काम करने के इच्छक योग्य व्यक्तियों की संख्या ज्यादा है तो सभी लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता और बेकारी फैलने लगती है ।
. मन्दी – मन्दीकाल में मूल्य – स्तर बहुत नीचे हो जाता है जिससे उत्पादक – वर्ग को हानि होती है । इस हानि से बचने के लिए वे उत्पादन कार्य बन्द कर देते हैं या श्रमिकों की छटनी शुरू कर देते हैं । दोनों ही अवस्थाओं में बेकारी को जन्म मिलता है ।
. उपभोग की अपेक्षा बचत में आधिक्य होना – श्री कीन्स का मत है कि राष्टीय आय का एक निश्चित भागे उपभोग पर व्यय किया जाना चाहिए तथा शेष भाग बचत के रूप में रखा जाना चाहिए ; परन्तु जब उपभोग पर किये जाने वाले व्यय की मात्रा घटने लगती है और बचाये जाने वाले अंश की मात्रा बढ़ती है , तभी बेकारी फैलती है । इसका कारण यह है कि उपभोग पर कम व्यय करने से उपभोग – पदार्थों की माँग घटती है और उसी अनुपात में उन चीजों का उत्पादन करने वाली औद्योगिक संस्थाओं को या तो संकुचित किया जाता है या कुछ औद्योगिक संस्थाओं को बन्द कर दिया जाता है । दोनों ही दशाओं में बेकारी फैलती है ।
. श्रम – संघों की माँग – श्रमिक संघ प्रायः मजदूरों में वृद्धि करने के लिए मिलों या कारखानों के मालिकों को विवश करते हैं । मजदूरी बढ़ जाने से वस्तुओं की उत्पादन – लागत भी बढ़ जाती है और उत्पादक वर्ग ( मिल मालिक ) को हानि होने लगती है । इस अवस्था से बचने के लिए उत्पादक वर्ग मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग करके श्रमिक की माँग को घटाते हैं जिससे बेकारी पनपती है ।
. विवेकीकरण – विवेकीकरण की अवस्था में भी बेकारी पनप सकती है । क्योंकि इसमें अधिक कुशल तथा अच्छी मशीनों और प्रविधियों को काम में लाया जाता है , जिससे श्रम की बचत होती है और अनेक श्रमिकों को काम से हटाकर बेकार कर दिया जाता है ।
. जनसंख्या में वृद्धि – श्री माल्थस के अनुसार जनसंख्या की वृद्धि से भी बेरोजगारी अवश्य फैलती है क्योंकि जिस अनुपात में जनसंख्या में वृद्धि होती है उस अनुपात में रोजगार की सुविधाओं में वृद्धि नहीं की जा सकती । दूसरे शब्दों में , जनसंख्या में वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से बेकारी को बढ़ावा देती है ।
भारत में बेकारी के कारण ( Causes of Unemployment in India ) सामान्यतः बेकारी की समस्या प्रत्येक देश में किसी – न – किसी रूप में अवश्य पायी जाती है , परन्तु भारत की भाँति इसका वह भयंकर रूप शायद ही किसी अन्य देश में हो । वास्तव में देश में इस समस्या के अनेक कारण हैं जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं :
. खेती की पिछड़ी दशा – भारत एक कृषि प्रधान देश है । इस दृष्टिकोण से कृषि – व्यव साय से ही यहाँ के अधिकतर लोगों को काम देने की व्यवस्था होनी चाहिए ; परन्तु देश में खेती की दशा इतनी पछड़ा हुई है कि बहुतस व्यक्ति इस व्यवसाय से दूर रहना पसन्द करते हैं । इसके फलस्वरूप देश में बेकारी फैलती है ।
. कुटीर उद्योगों का पतन – भारतीय कटीर उद्योग एक समय अपने गौरव पद पर आसान थ और असंख्य व्यक्तियों का पेट पालते थे ; परन्तु मशीनों के आ जाने और बड़े – बड़े कारखानों के खुल TOOकुलधाम साध प्रतियोगिता नहीं कर पाये और धीरे – धीरे उनका पतन होने लगा । फलस्वरूप व्यक्ति बेकार हो गये और देश में उनके लिए काम करने की नयी जगहा का बनाना सम्भव नहीं हो पाया ।
. उद्योग – धन्धों का पिछड़ापन – भारतवर्ष में उद्योग – धन्धे भी पिछड़ी अवस्था में है विशेष करके बडे उद्योगों की तो यहाँ अब भी कमी है । इसके कारण भी भारतवर्ष में अधिकतर लोगों को उचित काम नहीं मिल पाता है । फलतः देश में बेकारी फैलती है ।
. यन्त्रीकरण – इस देश में अभी कुछ वर्षों में यन्त्रीकरण की एक विशेष लहर चल पडी है । इसके अन्तर्गत कार्यालयों और मिल – कारखानों में कम्प्यूटर ( Computors ) तथा अन्य प्रकार के आधुनिकतम व उन्नत यन्त्रों को लगाया जा रहा है । इन यन्त्रों के द्वारा हजारों श्रमिकों या व्यक्तियों का काम केवल कुछ ही समय में करना सम्भव होता है । फलतः लाखों की संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता कम हो जाती है और देश में बेकारी बढ़ती जाती है ।
. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि – भारतवर्ष में जनसंख्या बहुत ही तेजी के साथ बढ़ रही है । उदाहरण के लिए , सन् 1931 – 1961 के बीच भारत की जनसंख्या में 36 . 3 प्रतिशत अर्थात् 20 करोड़ 88 लाख की वृद्धि हुई । सन् 1961 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 43 , 92 , 34 , 771 थी , सन् 1971 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार वह संख्या 54 , 81 , 59 , 662 थी जो कि सन् 1981 में बढ़कर 68 , 51 , 84 , 692 हो गई जबकि सन् 1991 की जनगणना रिपोर्ट के अस्थायी आँकड़ों के अनुसार यह संख्या बढ़कर 84 , 39 , 30 , 861 हो गयी है । परन्तु इस अनुपात में इस देश में रोजगार की सुविधाओं में वृद्धि नहीं हो पायी है जिसके कारण देश में बेकारी भी काफी तेजी से बढ़ रही है ।
. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली – भारतीय शिक्षा – प्रणाली अंग्रेजी की देन है । अंग्रेजी ने इस प्रकार की शिक्षा – प्रणाली विकसित की थी जो कि हमें शारीरिक श्रम से घृणा करना सिखाती है । आज के पढ़े – लिखे नौजवान अफसर बनने या बाबू बनने की धुन में रहते हैं , पर देश के लिए सबको वह काम देना सम्भव नहीं होता , इससे शिक्षित बेकारी बढ़ती है । साथ ही भारत में तकनीकी शिक्षा की भी नितान्त कमी है । इसीलिए आज भी मशीनी युग में लोग काम करने के योग्य नहीं बन पाते हैं । इससे भी बेकारी फैलती है ।
योजना आयोग ने भारत वर्ष में बेरोजगारी की समस्या के लिए इन कारणो को उतरदायी ठहराया है – ( i ) तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या , ( ii ) आर्थिक विकास की मन्द गति , ( ii ) ग्रामोद्योगों का विनाश तथा उपेक्षा , ( iv ) कृषि पर अत्यधिक जनभार , ( v ) घरेलू तथा नीची विनियोग दर , ( vi ) दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति ; ( vii ) प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव , ( viii ) श्रम में गतिशीलता का अभाव , ( ix ) क्रय में कमी आना , ( x ) उद्योगों में अधिकतर मशीनीकरण , तथा ( xi ) लागत व्यय और मूल्यों के मध्य समायोजन का अभाव ।
भारतवर्ष में शिक्षित बेकारी के कारण ( Causes of Educated Unemployment in India ) किसी भी देश की प्रगति वहाँ की शिक्षित जनता पर काफी कुछ निर्भर करती है । यह अत्यन्त दुःख का विषय है कि इस देश में यही शिक्षित वर्ग बेकारी की समस्या से अत्यधिक पीड़ित है । आज इस देश में शिक्षित बेकारी की संख्या लाखों में है । वास्तव में इस शिक्षित बेकारी के कुछ विशेष कारण हैं जिनमें से अग्रांकित मुख्य हैं :
. वर्तमान दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली – वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कोरी किताबी शिक्षा ही प्रदान की जाती है जिसमें कि प्रायः पढ़े – लिखे बेकारों की ही सृष्टि होती है । वास्तव में , आज को शिक्षा – पद्धति अंग्रेजों के मस्तिष्क की उपज है । अंग्रेजों को अपनी शासन – व्यवस्था चलाने के लिए ‘ बाबुओं ( Clerks ) की आवश्यकता थी , अतः उन्होंने शिक्षा – पद्धति को इस प्रकार बनाया ताकि उनके शासन के लिए कुछ बाबू लोग तैयार हो जायें , परन्तु आधुनिक परिस्थितियों में यह प्रणाली बिल्कुल अनुपयोगी हो गयी है क्योंकि आज हमें केवल ‘ कलम ‘ चलाने वाले ही नहीं चाहिएं । वर्तमान शिक्षा – प्रणाला करार बाट ए . की डिग्रीधारियों की इस देश में भरमार है और प्रतिवर्ष उनकी संख्या बढ़ता ही जा रही है स्वतन्त्रतापूर्वक अपनी आजीविका कमाने में असमर्थ होते हैं , क्योंकि केवल पटने – लिखने के अलावा उन्होंने और कुछ सीखा ही नहीं है । दूसरे शब्दों में , वर्तमान शिक्षा – प्रणाली व्यावहारिक न होकर साहित्यिक अधिक है । डॉ . राजेन्द्र प्रसाद ( Dr Rajendra Prasad ) ने भी स सम्बन्ध में कहा है कि ” इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि देश की शिक्षा प्रणाली कछ कमियाँ हैं । विश्वविद्यालयों से बहुत – से छात्र प्रतिवर्ष निकलते हैं उनको काम ही नहीं मिलता , बल्कि वे काम के अयोग्य भी हैं , यह स्थिति बेकारी से भी अधिक भयंकर है । आज बेकारी इसलिए बढ़ रही है कि नौकरियों की संख्या में वृद्धि नहीं हो रही है , पर लोग इसलिए भी बेकार हैं कि जो स्थान खाली हैं उनके लिए योग्य आदमी नहीं मिलते । ” इस प्रकार स्पष्ट है कि वर्तमान दोपूर्ण शिक्षा – प्रणाली पढ़े – लिखे बेकारों की सृष्टि करती है ।
. शारीरिक श्रम के प्रति उदासीनता – शिक्षित लोगों में बेकारी का एक अन्य प्रमुख कारण यह है कि शिक्षित लोगों में शारीरिक श्रम के प्रति उदासीनता पायी जाती है । अधिकतर शिक्षित व्यक्ति ऐसे काम करना पसन्द करते हैं जिनमें कि शारीरिक श्रम न के बराबर हो । आज एक बी . ए . पास व्यक्ति गाँव में जाकर खेती का कार्य करने की अपेक्षा किसी दफ्तर में 500 – 600 की नौकरी करना अधिक पसन्द करता है । शारीरिक श्रम के प्रति उदासीनता के कारण अनेक शिक्षित लोग बेरोजगार रहते हैं क्योंकि सभी व्यक्तियों को ऐसी नौकरियाँ प्रदान करना सम्भव नहीं होता ।
. विश्वविद्यालयों और स्नातकों की भरमार – भारत में प्रतिवर्ष विश्वविद्यालयों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है जिनसे लाखों स्नातक डिग्री प्राप्त करके निकलते हैं । इस समय देश में 186 विश्वविद्यालय व उसके समकक्ष संस्थाएँ हैं जिनके अन्तर्गत 4 , 800 से भी अधिक कॉलेजों में विद्यार्थी स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करते हैं । विश्वविद्यालयों और इनमें से प्रतिवर्ष निकलने वाले लगभग 35 लाख स्नातकों की संख्या के अनुरूप रोजगार प्रदान करना सम्भव नहीं हो पा रहा है , इसलिए शिक्षितों में बेकारी की समस्या जटिल रूप धारण करती जा रही है ।
. उचित तकनीकी शिक्षा का अभाव – भारत में उचित तकनीकी शिक्षा का अभाव भी यहाँ की शिक्षित बेकारी का एक प्रमुख कारण है । आधुनिक युग विज्ञान का युग है और इस युग में अनेक क्षेत्रों में तकनीकी ज्ञान का विस्तार हो रहा है और साथ ही इनसे सम्बद्ध अनेकों उद्योगों का विकास भी हो रहा है । प्लास्टिक टेक्नोलॉजी ( Plastic Technology ) , कागज टेक्नोलॉजी ( Paper Technology ) , टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी ( Textile Technology ) , कम्प्यूटर विज्ञान ( Computor Science ) आदि क्षेत्रों में आज पर्याप्त नौकारियाँ उपलब्ध है ; परन्तु भारत में इस प्रकार की शिक्षा की उचित सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं । अतः इस विषय में कुशल इन्जीनियरों को विदेशों से बुलाना पड़ता हैं और इस देश के लोग बेकार रहते हैं । इस देश में पढ़े – लिखे तो काफी लोग मिलते है , परन्तु कुशल इन्जीनियर कम । इस रूप में यह स्पष्ट है कि उचित तकनीकी शिक्षा का अभाव भी इस देश में शिक्षित बेकारी के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी है ।
बेकारी के परिणाम ( Consequences of Unemployment ) बेकारी व्यक्ति तथा समुदाय दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध होती है । बेकारी वह अवस्था है , जो व्यक्ति के जीवन के आनन्दों को नष्ट कर देती है तथा समुदाय के आर्थिक जीवन को खोखला करती है । अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति एच . हूबर ( H . Hoover ) ने सच ही कहा है कि ‘ बेकारी से बढ़कर संसार में और कोई बर्बादी नहीं है । काम करने के इच्छुक व्यक्ति को रोजगार न मिलने पर जितना कष्ट हाता है शायद उससे बढ़कर विश्व में और कोई कष्ट नहीं है । व्यक्ति तथा समुदाय के दृष्टिकोण से बेरोजगारी के निम्नलिखित परिणाम उल्लेखनीय हैं :
– बेरोजगारी अनेक मानसिक रोगों को उत्पन्न कर सकती है । आर्थिक कष्टों के बीच परिवार के अन्य सदस्यों के कष्टों को देखता है जिसका कि बहुत मन पर पड़ता है और वह सदैव चिन्तित रहता है । चिन्तारूपी नागिन उसके जीवन में परन्तर विष उड़ेलती रहती है जो उसके जीवन को नष्ट कर देती है ।
. सामान्य निर्धनता में वृद्धि – बेकार व्यक्ति अपनी तथा अपने आश्रितों की मौलिक आवश्यकताओं तक की पूर्ति नहीं कर पाता है । उसे न तो उचित ढंग से खाने को मिलता है और न ही अच्छे मकानों में रहने को सुविधा प्राप्त होती है । इससे न केवल उसके रहन – सहन का स्तर घटता है बल्कि उसका स्वास्थ्य भी दिन – प्रतिदिन गिरता जाता है और वह किसी न किसी रोग के पंजे में फँस जाता है । इससे उसकी कार्यकुशलता भी घटती है और भविष्य में उसके लिए रोजगार पाने की सम्भावना कम हो जाती है । इससे सामान्य व्यक्ति निर्धनता के पंजे में जकड़ा रहता है । वास्तविकता तो यह है कि बेरोजगारी भारतीय निर्धनता का एक आधारभूत कारक है ।
. नैतिक पतन – बेकारी की अवस्था व्यक्ति के नैतिक स्तर को गिरा देती है । बेकारी की अवस्था में एक व्यक्ति अपने प्रियजनों को निरन्तर नाना प्रकार के कष्टों को सहते देखता है , यहाँ तक कि अपनी आँखों के सामने उन्हें भूख से तड़पते हुए देखता है । एक सीमा के बाद यह दृश्य उसके लिए असह्य हो जाता है और इसे सहन करने की अपेक्षा चोरी , डकैती , जालसाजी या वेश्यावृत्ति के रास्ते को अपना लेना उसके लिए सरल होता है ।
. अनेक सामाजिक समस्याएँ – बेकारी भीख माँगने , जुआ खेलने और शराब पीने आदि सामाजिक समस्याओं को जन्म देती है । हर तरफ से निराश और असफल व्यक्ति शराब पीकर अपनी समस्त निराशाओं को भूलने का प्रयत्न करता है और अपने तथा अपने परिवार के लिए अधिकतर बर्बादी को आमन्त्रित करता है । बेकार व्यक्ति इसी प्रकार जुआ खेलकर रहा – सहा धन भी उसमें हार जाता है और जीवन के समस्त हाहाकार को लेकर लौटता है । अन्त में उसके लिए एक ही रास्ता और रह जाता है और वह है भीख की झोली फैला देना , और इस प्रकार देश में भिखमंगों की एक नयी समस्या का जन्म होता है ।
. पारिवारिक विघटन – बेकारी की अवस्था में पारिवारिक विघटन की प्रक्रिया भी क्रियाशील हो जाती है क्योंकि स्त्रिया भी घर छोड़कर बाहर काम करने के लिए जाती हैं जिससे कि पारिवारिक व्यवस्था बिगड़ जाती है तथा बच्चों का लालन – पालन ठीक ढंग से नहीं हो पाता है ।
. क्रान्ति – बेकारी की समस्या क्रान्ति को जन्म दे सकती है । बेकार व्यक्ति अभाव से पीड़ित होता है । हर दुःख और कष्ट को सहना पड़ता है । इसके बीच जब वह यह देखता है कि कुछ बड़े आदमी तिजोरियों में लाखों – करोड़ों रुपये भरे हुए आराम और विलास का जीवन बिता रहे हैं तो उसके लिए अपने अभाव और कष्टों को सहना सम्भव नहीं होता और वह उन धनिकों के विरुद्ध क्रान्ति कर सकता
. प्रगति में बाधक – बेकारी देश की प्रगति में बाधक है क्योंकि बेकार व्यक्तियों की सेवाओं का समाज लाभ नहीं उठा पाता है और सब मिलकर उसकी प्रगति के लिए काम नहीं कर पाते हैं । यह देश या समुदाय के लिए बहुत बड़ी आर्थिक तथा सामाजिक हानि है । 8 . भावी पीढ़ी को हानि – बेकारी की स्थिति में समुदाय को घोर हानि पहुँचती है क्योंकि इस अवस्था में माता – पिता बच्चों का लालन – पालन उचित ढंग से नहीं कर पाते हैं जिससे कि समुदाय की आने वाली पीढ़ी अयोग्य , दुर्बल तथा निकम्मी हो जाती है ।