बिहार चुनाव का ‘कुरुक्षेत्र’: जानिए मुद्दों की धार और नेताओं के दांवपेंच का विस्तृत विश्लेषण

बिहार चुनाव का ‘कुरुक्षेत्र’: जानिए मुद्दों की धार और नेताओं के दांवपेंच का विस्तृत विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में हर चुनाव एक महायज्ञ के समान होता है, और जब बात बिहार जैसे राजनीतिक रूप से जागरूक और संवेदनशील राज्य की हो, तो यह ‘यज्ञ’ एक ‘कुरुक्षेत्र’ में बदल जाता है – जहाँ हर दल, हर नेता और हर मुद्दा अपनी पूरी शक्ति के साथ आमने-सामने खड़ा होता है। हाल के घटनाक्रम और आगामी चुनावों की सुगबुगाहट के बीच, बिहार एक बार फिर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में है। यहाँ का चुनाव न केवल स्थानीय राजनीति की दिशा तय करेगा, बल्कि इसके परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर भी दूरगामी प्रभाव डालेंगे। यह चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि मुद्दों की धार और नेताओं के तेज की असली कसौटी बनने जा रहा है, जहाँ हर समीकरण को बारीकी से परखा जाएगा। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि बिहार जैसे राज्य का चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति की जटिलताओं का एक सूक्ष्म अध्ययन है।

बिहार चुनाव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और प्रासंगिकता (Historical Perspective and Relevance of Bihar Election)

बिहार, भारतीय राजनीति का एक उर्वर मैदान रहा है। मौर्य साम्राज्य से लेकर मगध की शक्ति और आधुनिक भारत में जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गजों की कर्मभूमि तक, इस राज्य ने हमेशा से राजनीतिक और सामाजिक क्रांतियों का नेतृत्व किया है। स्वतंत्रता के बाद से, बिहार की राजनीति में जाति, वर्ग और क्षेत्र का एक जटिल ताना-बाना बुना गया है। मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद 1990 के दशक में हुए सामाजिक न्याय आंदोलन ने बिहार की राजनीति को एक नया आयाम दिया, जहाँ जातिगत पहचान एक निर्णायक चुनावी कारक बन गई।

क्या आप जानते हैं? बिहार का राजनीतिक इतिहास न केवल भारत की संसदीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह सामाजिक इंजीनियरिंग, गठबंधन की राजनीति और जन-आंदोलनों के उदय का भी प्रत्यक्ष गवाह रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र के लचीलेपन और चुनौतियों, दोनों को दर्शाता है।

आज, बिहार चुनाव की प्रासंगिकता कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • यह भारतीय संघवाद के भीतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्रीय नीतियों के बीच संतुलन को दर्शाता है।
  • यह ग्रामीण-शहरी विभाजन, विकास के मुद्दे और सामाजिक असमानताओं को चुनावी बहस के केंद्र में लाता है।
  • यह गठबंधन की राजनीति की प्रयोगशाला है, जहाँ प्री-पोल और पोस्ट-पोल गठबंधन सरकारों की स्थिरता का निर्धारण करते हैं।
  • यह युवा पीढ़ी के बढ़ते राजनीतिक जुड़ाव और उनके द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं को समझने का अवसर प्रदान करता है।

मुद्दों की धार: कौन से विषय तय करेंगे चुनाव की दिशा? (Sharpness of Issues: Which Topics Will Determine the Election’s Direction?)

चुनाव में नेता कितने भी करिश्माई क्यों न हों, अंततः जनता जिन मुद्दों पर अपना मत देती है, वही सरकार बनाते या गिराते हैं। बिहार में मुद्दों की धार इस बार और भी पैनी है, क्योंकि दशकों के विकास की धीमी गति और मौजूदा चुनौतियों ने मतदाताओं को अधिक जागरूक बना दिया है।

1. आर्थिक मुद्दे: विकास की धीमी चाल और उम्मीदों का बोझ (Economic Issues: Slow Pace of Development and Burden of Expectations)

बिहार हमेशा से ही आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में गिना जाता रहा है, और यह चुनावी विमर्श का केंद्रीय बिंदु है।

  • रोजगार और पलायन:

    बिहार की सबसे बड़ी समस्या युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी और उसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर पलायन है। हर साल लाखों युवा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं।

    केस स्टडी: कोविड-19 महामारी के दौरान जब लाखों प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे, तब बिहार की रोजगारविहीनता की समस्या भयावह रूप से सामने आई। यह मुद्दा मतदाताओं के लिए एक भावनात्मक और व्यावहारिक दोनों दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। चुनावी वादों में रोजगार सृजन और पलायन रोकने के उपाय सबसे ऊपर होते हैं।

  • कृषि संकट और किसान:

    बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, लेकिन किसानों को अक्सर बाढ़, सूखे और बाजार पहुंच की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), उर्वरक की उपलब्धता, सिंचाई सुविधाएँ और कृषि ऋणमाफी जैसे मुद्दे सीधे ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित करते हैं।

  • औद्योगिकीकरण का अभाव:

    बिहार में बड़े उद्योगों की कमी एक ऐतिहासिक समस्या रही है, जिससे रोजगार और राजस्व दोनों प्रभावित होते हैं। नई सरकार से औद्योगिक विकास के लिए ठोस नीतियों की उम्मीद की जाती है।

  • विशेष राज्य का दर्जा:

    यह बिहार की एक पुरानी और लगातार उठाई जाने वाली मांग है। राज्य का तर्क है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से उसे केंद्रीय योजनाओं में अधिक वित्तीय सहायता मिलेगी, जिससे विकास की गति तेज होगी। यह मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच खींचतान का विषय भी रहा है।

2. सामाजिक मुद्दे: जाति, शिक्षा और स्वास्थ्य का जटिल समीकरण (Social Issues: Complex Equation of Caste, Education, and Health)

बिहार में सामाजिक मुद्दे, विशेषकर जातिगत समीकरण, चुनाव परिणाम को गहराई से प्रभावित करते हैं।

  • जातिगत समीकरण और जनगणना:

    हाल ही में हुई जातिगत जनगणना ने बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। विभिन्न जातियों के जनसंख्या अनुपात के आधार पर राजनीतिक दल अपने चुनावी समीकरण साधने का प्रयास कर रहे हैं। दलित, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग के वोट बैंक को साधने के लिए हर पार्टी अपनी रणनीति बनाती है। यह सिर्फ संख्या बल नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के वादे से भी जुड़ा है।

    उदाहरण: बिहार में “माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण” या “लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण” जैसे शब्द दशकों से राजनीतिक विश्लेषण का हिस्सा रहे हैं, जो बताते हैं कि जातिगत गठजोड़ कितनी अहमियत रखते हैं।

  • शिक्षा और स्वास्थ्य:

    राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच एक बड़ी चिंता का विषय है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक, शिक्षण संस्थानों की स्थिति और ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। मतदाताओं को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाले वादे आकर्षित करते हैं।

  • कानून व्यवस्था (सुशासन):

    “जंगलराज” की पुरानी छवि से बिहार को बाहर निकालने का प्रयास लगातार होता रहा है। आज भी कानून व्यवस्था का मुद्दा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। अपराध नियंत्रण, भ्रष्टाचार पर लगाम और पुलिस प्रशासन में सुधार की मांगें मतदाताओं के मन में रहती हैं।

  • महिला सशक्तिकरण:

    बिहार में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है (जैसे पंचायती राज में आरक्षण, साइकिल योजना)। महिला मतदाताओं की भूमिका बढ़ गई है, और उनके लिए लाए गए कार्यक्रम चुनावी घोषणापत्रों का अहम हिस्सा होते हैं। शराबबंदी जैसे सामाजिक सुधारों का महिलाओं पर सीधा प्रभाव पड़ा है, और यह भी एक चुनावी कारक बन सकता है।

3. शासनिक मुद्दे: केंद्र-राज्य संबंध और नीतियों का क्रियान्वयन (Governance Issues: Centre-State Relations and Policy Implementation)

शासन से जुड़े मुद्दे, विशेषकर केंद्र और राज्य के बीच संबंधों का प्रभाव, भी मतदाताओं की राय पर असर डालता है।

  • केंद्र-राज्य संबंध:

    यदि राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन केंद्र में सत्तारूढ़ दल से भिन्न होता है, तो केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव आ सकता है, जिससे विकास परियोजनाओं पर असर पड़ता है। मतदाताओं को यह समझने की कोशिश करते हैं कि कौन सा गठबंधन राज्य के लिए अधिक केंद्रीय सहायता और सहयोग ला सकता है।

  • भ्रष्टाचार:

    यह एक सार्वभौमिक मुद्दा है, और बिहार में इसकी जड़ें गहरी रही हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का वादा जनता को लुभाता है।

नेताओं के तेज की कसौटी: नेतृत्व, रणनीति और गठबंधन (Test of Leaders’ Acumen: Leadership, Strategy, and Alliance)

बिहार का चुनाव सिर्फ मुद्दों का नहीं, बल्कि नेताओं की क्षमता, उनकी चुनावी रणनीति और उनके करिश्मे का भी इम्तिहान होता है। ‘कुरुक्षेत्र’ में कौन कितना ‘तेज’ है, यह जनता तय करती है।

1. प्रमुख राजनीतिक दल और उनके चेहरे (Major Political Parties and their Faces)

बिहार में मुख्य रूप से दो बड़े गठबंधन हैं, जिनके इर्द-गिर्द पूरी राजनीतिक धुरी घूमती है:

  • राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA):

    • प्रमुख घटक: भारतीय जनता पार्टी (BJP), जनता दल यूनाइटेड (JDU)।
    • नेतृत्व: नीतीश कुमार (JDU) और भाजपा के वरिष्ठ नेता। नीतीश कुमार ‘सुशासन बाबू’ की छवि के साथ विकास और कानून व्यवस्था पर जोर देते हैं, जबकि भाजपा का राष्ट्रीय एजेंडा और मजबूत संगठन चुनावी रणनीति का हिस्सा होता है।
    • रणनीति: केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ, ‘डबल इंजन सरकार’ का नारा, हिंदुत्व का एजेंडा (भाजपा के लिए), सामाजिक न्याय और विकास (JDU के लिए)।
  • महागठबंधन (Grand Alliance):

    • प्रमुख घटक: राष्ट्रीय जनता दल (RJD), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), वामदल (CPI, CPM, CPI(ML) Liberation)।
    • नेतृत्व: तेजस्वी यादव (RJD)। तेजस्वी युवा चेहरा हैं, जो रोजगार, सामाजिक न्याय और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जोर देते हैं।
    • रणनीति: जातिगत गोलबंदी (विशेषकर मुस्लिम-यादव), सामाजिक न्याय का विमर्श, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना।
  • अन्य दल:

    • लोक जनशक्ति पार्टी (LJP – दोनों गुट): पासवान वोट बैंक पर पकड़ रखने वाले ये दल, भले ही अकेले बड़ी ताकत न हों, लेकिन कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ सकते हैं।
    • ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM): मुस्लिम बहुल सीटों पर यह पार्टी, विशेषकर सीमांचल क्षेत्र में, मुस्लिम वोटों को विभाजित कर परिणाम बदल सकती है।
    • छोटे क्षेत्रीय दल: कुछ अन्य छोटे दल भी स्थानीय मुद्दों और जातिगत प्रभाव के आधार पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

2. नेतृत्व क्षमता और चुनावी रणनीति (Leadership Acumen and Electoral Strategy)

नेताओं का तेज सिर्फ भाषणों में नहीं, बल्कि उनकी रणनीति में दिखता है:

  • प्रचार शैली और जनसंपर्क:

    डिजिटल प्रचार और सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका के बावजूद, बिहार में जनसभाएं और रोड शो अब भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। कौन सा नेता जनता से कितना सीधा जुड़ाव स्थापित कर पाता है, यह मायने रखता है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता की सभाओं में उमड़ी भीड़ उनकी लोकप्रियता का पैमाना होती है।

  • गठबंधन की राजनीति और सीट-शेयरिंग:

    गठबंधन में सीटों का बंटवारा एक जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें हर दल अपनी ताकत और दावेदारी पेश करता है। सफल सीट-शेयरिंग ही गठबंधन की एकजुटता और सफलता की कुंजी होती है। यदि इसमें दरार आती है, तो इसका सीधा नुकसान चुनावी नतीजों पर पड़ता है।

  • युवा नेतृत्व बनाम अनुभवी नेता:

    एक तरफ नीतीश कुमार जैसे अनुभवी और परिपक्व नेता हैं, जिन्होंने दशकों तक बिहार की राजनीति को संभाला है, वहीं तेजस्वी यादव जैसे युवा नेता हैं जो नई पीढ़ी की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों का अपना आधार और अपील है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसे चुनते हैं।

चुनाव को प्रभावित करने वाले अन्य कारक (Other Factors Influencing the Election)

मुद्दों और नेताओं के अलावा भी कई ऐसे कारक हैं जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं:

  • मतदाता व्यवहार:

    बिहार में मतदाता व्यवहार बहुआयामी है। जाति, धर्म, विकास, व्यक्तिगत नेता की छवि और सरकारी योजनाओं का लाभ – सभी मिलकर मतदाता के निर्णय को प्रभावित करते हैं। युवा मतदाता अब सिर्फ जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि रोजगार और विकास के मुद्दों पर भी वोट देने लगे हैं। शहरी बनाम ग्रामीण मतदाताओं की प्राथमिकताएँ भी भिन्न हो सकती हैं।

  • सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार:

    स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच बढ़ने से सोशल मीडिया चुनावी प्रचार का एक अभिन्न अंग बन गया है। मीम्स, शॉर्ट वीडियो, लाइव सेशन और ट्रोलिंग के माध्यम से दल और नेता अपनी बात रखते हैं और विरोधियों पर हमला करते हैं। यह विशेषकर युवा और शहरी मतदाताओं तक पहुँचने का एक शक्तिशाली माध्यम है।

  • धन बल और बाहु बल:

    चुनाव में धन बल (चुनाव खर्च) और बाहु बल (अपराधी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार) का प्रभाव अभी भी एक चिंता का विषय है, हालांकि चुनाव आयोग इस पर नकेल कसने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।

  • स्विंग वोटर्स और अनिर्णायक मतदाता:

    पारंपरिक वोट बैंक के अलावा, अनिर्णायक मतदाता (जो अंतिम समय तक अपना मन नहीं बनाते) और स्विंग वोटर्स (जो किसी एक दल के प्रति निष्ठा नहीं रखते) चुनाव परिणाम में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इन पर अंतिम चरण के प्रचार का गहरा प्रभाव पड़ता है।

  • चुनाव आयोग की भूमिका:

    भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। आदर्श आचार संहिता का क्रियान्वयन, धन के दुरुपयोग पर नियंत्रण और मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चुनाव की विश्वसनीयता बढ़ाते हैं।

“कुरुक्षेत्र” के समीकरण: भविष्य की राह (Equations of “Kurukshetra”: Future Path)

बिहार का चुनाव सिर्फ एक राज्य का चुनाव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नब्ज को समझने का एक अवसर है।

  • संभावित परिणाम:

    बिहार में अक्सर कांटे की टक्कर देखने को मिलती है, और परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। त्रिशंकु विधानसभा (hung assembly) की स्थिति भी बन सकती है, जिससे सरकार गठन की प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी। यह भी संभव है कि कोई एक गठबंधन स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर ले, जिससे स्थिर सरकार का मार्ग प्रशस्त होगा।

  • सरकार गठन के बाद की चुनौतियाँ:

    जो भी सरकार सत्ता में आएगी, उसे विकास की धीमी गति, रोजगार सृजन, शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार, कानून व्यवस्था को बनाए रखने और केंद्र से बेहतर समन्वय स्थापित करने जैसी कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। चुनावी वादों को पूरा करना और जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना एक बड़ा इम्तिहान होगा।

  • बिहार के विकास पर प्रभाव:

    एक स्थिर और विकास-उन्मुख सरकार ही बिहार को आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे ले जा सकती है। यदि राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है, तो इसका सीधा असर निवेश, योजनाओं के क्रियान्वयन और अंततः जनता के जीवन स्तर पर पड़ेगा।

  • भारतीय राजनीति पर व्यापक प्रभाव:

    बिहार के चुनाव परिणाम का राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह परिणाम 2024 के आम चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है, जो केंद्र की सत्ता में आने वाले दलों के मनोबल और रणनीति को प्रभावित करेगा। यह क्षेत्रीय दलों की ताकत और गठबंधन की राजनीति के भविष्य को भी दर्शाएगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

बिहार चुनाव, अपने मूल में, भारतीय लोकतंत्र का एक सूक्ष्म संस्करण है जहाँ मुद्दों, नेताओं के करिश्मे, जातिगत समीकरणों, विकास की आकांक्षाओं और बदलते मतदाता व्यवहार का एक जटिल मिश्रण काम करता है। यह सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, इस चुनाव का विस्तृत विश्लेषण न केवल समसामयिक मामलों की गहरी समझ प्रदान करता है, बल्कि भारतीय राजनीति, समाज और शासन के मूलभूत सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से समझने का अवसर भी देता है। “कुरुक्षेत्र” तैयार है, और अब यह देखना बाकी है कि कौन सा समीकरण जीत का परचम लहराता है, और बिहार को विकास और सुशासन की नई राह पर ले जाता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

1. बिहार में हुए जातिगत जनगणना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. जातिगत जनगणना का आयोजन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत किया गया है।
  2. यह बिहार सरकार द्वारा ‘बिहार राज्य में जाति-आधारित गणना’ नामक कानून के तहत किया गया है।
  3. इस जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. केवल 1 और 3
  4. केवल 2 और 3

उत्तर: B
व्याख्या: जातिगत जनगणना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है, बल्कि यह संघ सूची का विषय है। हालाँकि, बिहार सरकार ने इसे एक ‘गणना’ के रूप में अपने प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में करवाया है। कथन 1 गलत है। यह ‘बिहार राज्य में जाति-आधारित गणना’ नामक कानून के तहत किया गया। कथन 2 सही है। जातिगत जनगणना में सभी जातियों का विवरण होता है, न कि केवल SC/ST का। कथन 3 गलत है।

2. बिहार में ‘विशेष राज्य का दर्जा’ की मांग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह मांग मुख्यतः केंद्रीय योजनाओं में अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए की जाती है।
  2. किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का निर्णय राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) द्वारा लिया जाता है।
  3. विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्रीय सहायता में 90% अनुदान और 10% ऋण के रूप में मिलती है।

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: C
व्याख्या: विशेष राज्य के दर्जे से राज्य को केंद्रीय योजनाओं में अधिक वित्तीय सहायता मिलती है, कथन 1 सही है। राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा विशेष श्रेणी का दर्जा देने का मानदंड निर्धारित किया गया था, लेकिन अब यह कार्य वित्त आयोग की सिफारिशों पर निर्भर करता है। कथन 2 गलत है। विशेष श्रेणी के राज्यों को केंद्रीय सहायता में 90% अनुदान और 10% ऋण के रूप में प्राप्त होता है, जबकि सामान्य राज्यों को यह 30% अनुदान और 70% ऋण के रूप में मिलता है। कथन 3 सही है।

3. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के संदर्भ में, जो भारत निर्वाचन आयोग से संबंधित है, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के चुनावों के संचालन, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार निर्वाचन आयोग में निहित करता है।
  2. नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए भी यही अनुच्छेद लागू होता है।
  3. मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर हटाया जा सकता है।

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 1 और 3
  3. केवल 2 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: B
व्याख्या: अनुच्छेद 324 संसद और राज्य विधानमंडल के चुनावों से संबंधित है, कथन 1 सही है। नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित किए जाते हैं, जो अनुच्छेद 243K और 243ZA के तहत आते हैं। कथन 2 गलत है। मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही हटाया जा सकता है, यानी संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर। कथन 3 सही है।

4. बिहार में ‘पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण’ के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

  1. बिहार भारत का पहला राज्य था जिसने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया।
  2. यह आरक्षण केवल ग्राम पंचायत स्तर पर लागू है, न कि जिला परिषद या पंचायत समिति स्तर पर।
  3. यह आरक्षण केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए है।
  4. यह आरक्षण महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर रखता है।

उत्तर: A
व्याख्या: बिहार ने 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया, ऐसा करने वाला यह भारत का पहला राज्य था। यह आरक्षण सभी स्तरों (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद) पर लागू है और सभी वर्गों की महिलाओं के लिए है, न कि केवल SC/ST के लिए। इसका उद्देश्य महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना है।

5. भारत में ‘मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट’ (MCC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह भारत निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
  2. यह संविधान के तहत एक वैधानिक प्रावधान है।
  3. यह चुनाव प्रक्रिया की घोषणा के साथ लागू होता है और परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहता है।

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 1 और 3
  3. केवल 2 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: B
व्याख्या: MCC निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश हैं, कथन 1 सही है। यह संविधान या किसी अधिनियम के तहत वैधानिक प्रावधान नहीं है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के आधार पर विकसित हुआ है। कथन 2 गलत है। यह चुनाव की घोषणा के साथ लागू होता है और परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहता है, कथन 3 सही है।

6. ‘एंटी-डिफेक्शन लॉ’ (दल-बदल विरोधी कानून) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है?

  1. यह कानून संविधान की दसवीं अनुसूची में उल्लिखित है।
  2. यह संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों पर लागू होता है।
  3. यह कानून स्पीकर या अध्यक्ष को दल-बदल के मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देता है।
  4. यह कानून निर्वाचित सदस्यों को अपनी पार्टी के व्हिप के खिलाफ मतदान करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है।

उत्तर: D
व्याख्या: दल-बदल विरोधी कानून (52वां संशोधन, 1985) संविधान की दसवीं अनुसूची में है (A सही)। यह संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों पर लागू होता है (B सही)। स्पीकर/अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है, यद्यपि न्यायिक समीक्षा के अधीन है (C सही)। यह कानून सदस्यों को पार्टी व्हिप के खिलाफ मतदान करने पर अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है, यह पूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता (D गलत)।

7. बिहार के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा आर्थिक सूचक आमतौर पर राष्ट्रीय औसत से नीचे पाया जाता है?

  1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income)
  2. जनसंख्या घनत्व (Population Density)
  3. साक्षरता दर (Literacy Rate)
  4. शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate)

उत्तर: A
व्याख्या: बिहार की प्रति व्यक्ति आय भारत के राज्यों में सबसे कम में से एक है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। जनसंख्या घनत्व बिहार का अधिक है, राष्ट्रीय औसत से ऊपर। साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय सबसे स्पष्ट रूप से नीचे है। शिशु मृत्यु दर भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। प्रश्न में ‘सबसे कम’ नहीं पूछा गया, बल्कि ‘नीचे पाया जाता है’ पूछा गया है। विकल्पों में, प्रति व्यक्ति आय सबसे प्रमुख रूप से नीचे है।

8. भारतीय राजनीति में ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों का क्या प्रभाव पड़ा?

  1. इन्होंने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की शुरुआत की।
  2. इन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया।
  3. इन्होंने महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण की नींव रखी।
  4. इन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण की सिफारिश की।

उत्तर: B
व्याख्या: मंडल आयोग की सिफारिशों ने 1990 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27% आरक्षण की शुरुआत की, जिससे भारतीय राजनीति में एक बड़ा सामाजिक-राजनीतिक बदलाव आया।

9. बिहार में ‘शराबबंदी’ कानून (Prohibition of Alcohol) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

  1. यह बिहार में 2010 में लागू किया गया था।
  2. इस कानून का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार था।
  3. यह कानून बिहार को भारत का एकमात्र शराबबंदी वाला राज्य बनाता है।
  4. इस कानून ने राज्य के राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

उत्तर: B
व्याख्या: बिहार में शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू की गई थी (A गलत)। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू हिंसा में कमी और महिलाओं व परिवारों के जीवन स्तर में सुधार लाकर सामाजिक सुधार लाना था (B सही)। गुजरात, नागालैंड, मिजोरम और लक्षद्वीप जैसे अन्य राज्य/केंद्र शासित प्रदेश भी शराबबंदी लागू करते हैं (C गलत)। शराबबंदी से राज्य के राजस्व को नुकसान हुआ है, वृद्धि नहीं (D गलत)।

10. ‘डबल इंजन सरकार’ का नारा अक्सर चुनावी अभियानों में प्रयोग किया जाता है। इसका क्या अर्थ है?

  1. राज्य और केंद्र में एक ही राजनीतिक दल की सरकार होने पर विकास की गति तेज होने का दावा।
  2. राज्य में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री, दोनों एक ही दल से होने का दावा।
  3. राज्यों को केंद्र से स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देना।
  4. एक ही राज्य में दो अलग-अलग राजनीतिक दलों का शासन।

उत्तर: A
व्याख्या: ‘डबल इंजन सरकार’ का नारा आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों द्वारा उपयोग किया जाता है। इसका अर्थ है कि यदि राज्य और केंद्र दोनों में एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन की सरकार है, तो राज्यों को केंद्रीय योजनाओं और नीतियों का अधिक लाभ मिलेगा, जिससे विकास की गति तेज होगी।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

1. “बिहार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विकास के मॉडल, सामाजिक न्याय की अवधारणा और गठबंधन की राजनीति की प्रयोगशाला भी है।” इस कथन के आलोक में, बिहार चुनाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों का विस्तृत विश्लेषण करें।

2. बिहार में लगातार उठने वाली ‘विशेष राज्य के दर्जे’ की मांग का आलोचनात्मक परीक्षण करें। क्या यह दर्जा राज्य की दीर्घकालिक विकास चुनौतियों का समाधान कर सकता है? केंद्र-राज्य संबंधों पर इसके संभावित प्रभावों पर भी चर्चा करें।

3. जातिगत जनगणना के परिणामों ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर जातिगत जनगणना के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन करें। क्या यह नीति ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत के अनुरूप है?

4. बिहार में रोजगार सृजन और पलायन हमेशा से प्रमुख चुनावी मुद्दे रहे हैं। इन मुद्दों को हल करने के लिए वर्तमान और संभावित सरकारों द्वारा क्या उपाय किए जा सकते हैं? बिहार के संदर्भ में औद्योगिक विकास की बाधाओं और अवसरों का विश्लेषण करें।

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