बाजार में गिरावट: टैरिफ युद्ध की आहट से शेयर बाजार लाल निशान पर, सेंसेक्स-निफ्टी लुढ़के, क्या है इसके मायने?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में भारतीय शेयर बाजार ने एक महत्वपूर्ण झटके का अनुभव किया। वैश्विक और घरेलू स्तर पर बढ़ती टैरिफ (सीमा शुल्क) से जुड़ी चिंताओं के बीच, बाजार की शुरुआत लाल निशान में हुई। बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों में ही गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों के बीच चिंता की लहर दौड़ गई। यह घटनाक्रम न केवल बाजार की अल्पकालिक दिशा को प्रभावित करता है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर भी सवाल खड़े करता है। यह लेख इस घटना के पीछे के कारणों, इसके प्रभावों और यूपीएससी परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
समझें: टैरिफ, शेयर बाजार और ये खास दिन (Understanding: Tariffs, the Share Market, and This Particular Day)
जब हम “टैरिफ की चिंताओं” की बात करते हैं, तो इसका सीधा संबंध विभिन्न देशों के बीच व्यापार पर लगाए जाने वाले शुल्कों से है। सरल शब्दों में, टैरिफ एक प्रकार का कर है जो एक देश द्वारा दूसरे देश से आयात (import) किए जाने वाले सामानों पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और सरकारी राजस्व बढ़ाना होता है।
यह दिन खास क्यों है?
- सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट: ये भारतीय शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक (indices) हैं। सेंसेक्स बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) पर सूचीबद्ध 30 बड़ी और अधिक सक्रिय रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों का एक भारित औसत (weighted average) है, जबकि निफ्टी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर सूचीबद्ध 50 प्रमुख कंपनियों का सूचकांक है। इनमें गिरावट का मतलब है कि समग्र रूप से बाजार में बिकवाली का दबाव है और निवेशकों का विश्वास डगमगा रहा है।
- लाल निशान पर खुलना: इसका मतलब है कि बाजार की शुरुआत पिछले कारोबारी दिवस के बंद भाव से नीचे हुई है। यह अक्सर नकारात्मक आर्थिक संकेतों या व्यापक अनिश्चितता का संकेत होता है।
- टैरिफ की चिंताएँ: यह वह मूल कारण है जिसने इस गिरावट को हवा दी। जब प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर टैरिफ बढ़ाती हैं, तो यह वैश्विक व्यापार को बाधित करता है, माल की लागत बढ़ाता है, और अनिश्चितता का माहौल पैदा करता है। भारत जैसी आयात-निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं के लिए, यह विशेष रूप से चिंताजनक होता है।
कारणों की गहराई में: टैरिफ की चिंताओं का स्रोत क्या है? (Deep Dive into the Causes: What’s the Source of Tariff Concerns?)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये “टैरिफ की चिंताएँ” अचानक पैदा नहीं होतीं। ये अक्सर वैश्विक भू-राजनीतिक (geopolitical) और आर्थिक परिदृश्यों का परिणाम होती हैं।
1. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापारिक तनाव:
- उदाहरण: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: हाल के वर्षों में, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया है। दोनों देशों ने एक-दूसरे के आयातित सामानों पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखला (supply chains) बाधित हुई है और वैश्विक व्यापार की गति धीमी हुई है।
- अन्य देशों पर प्रभाव: जब दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं व्यापार युद्ध में उलझती हैं, तो इसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ता है जो या तो उन अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार करते हैं या उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा होते हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं रहता।
2. कच्चे माल की लागत में वृद्धि:
- जब टैरिफ बढ़ते हैं, तो उन देशों से आयातित कच्चे माल (raw materials) और घटकों (components) की लागत भी बढ़ जाती है।
- भारतीय संदर्भ: भारत कई महत्वपूर्ण वस्तुओं, जैसे पेट्रोलियम उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स के पुर्जे, और कुछ औद्योगिक उपकरणों के लिए आयात पर निर्भर है। यदि इन पर टैरिफ बढ़ते हैं, तो देश में उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
3. कंपनियों के लाभ मार्जिन पर दबाव:
- बढ़ी हुई लागत का सीधा असर कंपनियों के लाभ मार्जिन (profit margins) पर पड़ता है। यदि कंपनियां लागत वृद्धि को पूरी तरह से उपभोक्ताओं पर नहीं डाल पातीं, तो उनके मुनाफे में कमी आती है।
- शेयर बाजार पर असर: शेयर बाजार भविष्य की आय और लाभप्रदता की उम्मीदों पर चलता है। जब कंपनियों के लाभ मार्जिन पर दबाव होता है, तो निवेशक उनके शेयरों को कम आकर्षक मानते हैं, जिससे शेयर की कीमतों में गिरावट आती है।
4. वैश्विक मांग में कमी का डर:
- व्यापार युद्ध और बढ़ती लागत वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को धीमा कर सकती है, जिससे वैश्विक मांग (global demand) में कमी आ सकती है।
- निर्यात पर प्रभाव: भारत के लिए, यह एक बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि कई भारतीय कंपनियां वैश्विक बाजारों में निर्यात करती हैं। मांग में कमी का मतलब कम निर्यात और कम राजस्व।
5. अनिश्चितता और निवेशक भावना:
“बाजार हमेशा अनिश्चितता का सबसे बड़ा दुश्मन रहा है। टैरिफ युद्धों से पैदा होने वाली अनिश्चितता निवेशकों की भावनाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिससे वे जोखिम भरे निवेशों से दूर रहने लगते हैं।”
यह अनिश्चितता शेयर बाजार में भारी बिकवाली का कारण बनती है। निवेशक सुरक्षित संपत्तियों (safe haven assets) की ओर बढ़ते हैं, जिससे इक्विटी (equity) बाजारों से पैसा निकलता है।
शेयर बाजार पर प्रत्यक्ष प्रभाव: सेंसेक्स और निफ्टी का गिरना (Direct Impact on the Share Market: The Fall of Sensex and Nifty)
जब ये चिंताएँ बढ़ने लगती हैं, तो शेयर बाजार इन पर बहुत तेज़ी से प्रतिक्रिया करता है।
1. बिकवाली का दबाव (Selling Pressure):
- जैसे ही टैरिफ की खबरें आती हैं, निवेशक, खासकर विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) और घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs), घबराकर अपने शेयर बेचने लगते हैं।
- “डर का माहौल”: यह बिकवाली अक्सर एक “डर के माहौल” को जन्म देती है, जहाँ छोटी-छोटी नकारात्मक खबरें भी बड़ी गिरावट का कारण बन सकती हैं।
2. प्रमुख क्षेत्रों पर प्रभाव:
- आयात-निर्भर क्षेत्र: जो भारतीय कंपनियां आयातित कच्चे माल पर बहुत अधिक निर्भर हैं, वे सबसे पहले प्रभावित होती हैं। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल (कुछ घटकों के लिए), और विशेष रसायन।
- निर्यात-उन्मुख क्षेत्र: वे क्षेत्र जो मुख्य रूप से निर्यात पर निर्भर करते हैं, वे भी वैश्विक मांग में संभावित कमी से प्रभावित हो सकते हैं।
- ऊर्जा क्षेत्र: तेल जैसे आयातित ऊर्जा स्रोतों पर टैरिफ का प्रभाव सीधे तौर पर लागत को बढ़ाता है, जिससे इन्फ्लेशनरी दबाव बढ़ता है।
3. मुद्रा पर प्रभाव:
- जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हैं, तो वे रुपये को बेचकर अन्य मुद्राओं (जैसे डॉलर) को खरीदते हैं। इससे रुपये का मूल्य गिरता है।
- कमजोर रुपया: एक कमजोर रुपया आयात को और महंगा बना देता है, जिससे व्यापार घाटा (trade deficit) बढ़ सकता है और मुद्रास्फीति (inflation) का दबाव बढ़ सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए व्यापक निहितार्थ (Broader Implications for the Indian Economy)
शेयर बाजार का गिरना केवल एक संख्यात्मक बदलाव नहीं है; इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं:
1. निवेश और आर्थिक विकास:
- जब शेयर बाजार गिरता है, तो कंपनियों के लिए नए फंड जुटाना मुश्किल हो जाता है। इससे पूंजीगत व्यय (capital expenditure) और विस्तार योजनाओं पर असर पड़ता है।
- निवेशक विश्वास: गिरता बाजार निवेशकों के विश्वास को कम करता है, जिससे वे नए निवेश से कतराते हैं। यह सीधे तौर पर आर्थिक विकास (economic growth) की गति को धीमा कर सकता है।
2. मुद्रास्फीति का दबाव:
- आयातित वस्तुओं की बढ़ी हुई लागत और मजबूत डॉलर (कमजोर रुपया) दोनों ही देश में मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं।
- आम आदमी पर प्रभाव: बढ़ी हुई मुद्रास्फीति का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है, क्योंकि रोजमर्रा की जरूरत की चीजें महंगी हो जाती हैं।
3. व्यापार घाटा (Trade Deficit):
- टैरिफ के कारण आयात महंगा हो जाता है, लेकिन अगर वैश्विक मांग कम होती है, तो निर्यात भी गिर सकता है।
- बढ़ता घाटा: यदि आयात निर्यात से तेज़ी से बढ़ता है, तो व्यापार घाटा बढ़ता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा चिंता का विषय होता है।
4. कॉर्पोरेट आय और रोजगार:
- कंपनियों की घटती आय से उनके विस्तार की योजनाएं रुक सकती हैं, जिसका असर रोजगार सृजन (job creation) पर भी पड़ता है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: क्या और कैसे पढ़ें? (Relevance for UPSC: What and How to Study?)
यह विषय भारतीय अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, और समसामयिक मामलों (Current Affairs) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy):
- मैक्रोइकॉनॉमिक्स: जीडीपी, मुद्रास्फीति, व्यापार घाटा, राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) – ये सभी आपस में कैसे जुड़े हैं, यह समझना आवश्यक है।
- मौद्रिक नीति और राजकोषीय नीति: ये कैसे टैरिफ से प्रभावित हो सकती हैं? उदाहरण के लिए, अगर टैरिफ से मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो RBI रेपो रेट बढ़ा सकता है।
- भुगतान संतुलन (Balance of Payments): व्यापार घाटे का भुगतान संतुलन पर क्या असर होता है?
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन: रुपये के अवमूल्यन (depreciation) और इसके प्रभावों को समझना।
2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade):
- टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ (Non-Tariff Barriers): टैरिफ के अलावा व्यापार को बाधित करने वाले अन्य कारक क्या हैं?
- व्यापार समझौते (Trade Agreements): विभिन्न देशों के बीच व्यापार को कैसे नियंत्रित करते हैं?
- वैश्विक व्यापार संगठन (WTO): टैरिफ जैसे मुद्दों पर WTO की क्या भूमिका है?
- संरक्षणवाद (Protectionism) बनाम मुक्त व्यापार (Free Trade): इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क।
3. समसामयिक मामले (Current Affairs):
- वैश्विक भू-अर्थव्यवस्था (Global Geoeconomics): प्रमुख देशों की आर्थिक नीतियाँ और उनका वैश्विक प्रभाव।
- भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार: भारत किन देशों के साथ सबसे ज़्यादा व्यापार करता है और उन देशों की व्यापार नीतियाँ भारत को कैसे प्रभावित करती हैं?
- हालिया आर्थिक घटनाक्रम: विश्व स्तर पर और भारत में प्रमुख आर्थिक निर्णय और उनके प्रभाव।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कारक भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का कारण बन सकता है, विशेष रूप से टैरिफ से संबंधित चिंताओं के समय?
- घरेलू मांग में वृद्धि
- विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) द्वारा भारी बिकवाली
- सरकारी व्यय में वृद्धि
- कम तेल की कीमतें
उत्तर: B
व्याख्या: टैरिफ से संबंधित चिंताएँ वैश्विक अनिश्चितता पैदा करती हैं, जिससे FIIs अक्सर उभरते बाजारों से पैसा निकालते हैं, जिससे शेयर बाजार में बिकवाली का दबाव बनता है। - प्रश्न: “टैरिफ” का सबसे सटीक अर्थ क्या है?
- एक देश द्वारा दूसरे देश में किए गए निवेश पर कर।
- किसी देश द्वारा दूसरे देश से आयात किए जाने वाले सामानों पर लगाया जाने वाला कर।
- घरेलू कंपनियों द्वारा अपने लाभ पर चुकाया जाने वाला कर।
- सेवाओं के निर्यात पर लगाया जाने वाला कर।
उत्तर: B
व्याख्या: टैरिफ विशेष रूप से आयातित वस्तुओं पर लगाए जाने वाले सीमा शुल्क होते हैं। - प्रश्न: यदि भारत किसी प्रमुख देश पर भारी टैरिफ लगाता है, तो निम्नलिखित में से क्या होने की संभावना है?
- भारत से निर्यात बढ़ेगा।
- उस देश से भारत में आयातित वस्तुओं की कीमतें कम होंगी।
- भारत में उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादकों को फायदा हो सकता है।
- भारत का व्यापार घाटा कम होगा।
उत्तर: C
व्याख्या: टैरिफ आयातित वस्तुओं को महंगा बनाते हैं, जिससे घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलता है। - प्रश्न: शेयर बाजार में “लाल निशान” का क्या अर्थ है?
- बाजार एक निश्चित स्तर से ऊपर चढ़ गया है।
- बाजार पिछले दिन के बंद भाव से नीचे कारोबार कर रहा है।
- बाजार में अत्यधिक खरीददारी हो रही है।
- बाजार में बहुत कम ट्रेडिंग हो रही है।
उत्तर: B
व्याख्या: “लाल निशान” गिरावट का संकेत देता है, अर्थात कीमतें गिर रही हैं। - प्रश्न: वैश्विक व्यापार युद्ध (Trade War) का निम्नलिखित में से किस पर सबसे सीधा प्रभाव पड़ सकता है?
- केवल घरेलू कंपनियों पर।
- केवल निर्यातकों पर।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं (Supply Chains) और वैश्विक मांग पर।
- केवल सेवा क्षेत्र पर।
उत्तर: C
व्याख्या: व्यापार युद्ध माल की आवाजाही, उत्पादन लागत और वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। - प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, “रुपये का अवमूल्यन” (Depreciation of Rupee) का निम्नलिखित में से कौन सा प्रभाव हो सकता है?
- आयात सस्ते हो जाएंगे।
- निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
- विदेशी पर्यटकों के लिए भारत आना सस्ता हो जाएगा।
- उपरोक्त सभी।
उत्तर: B
व्याख्या: जब रुपया कमजोर होता है, तो विदेशी खरीदारों के लिए भारतीय सामान और सेवाएं सस्ती हो जाती हैं, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा सूचकांक (Index) भारत के शेयर बाजार में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाता है?
- डॉव जोन्स (Dow Jones)
- नैस्डैक (NASDAQ)
- सेंसेक्स (Sensex) और निफ्टी (Nifty)
- FTSE 100
उत्तर: C
व्याख्या: सेंसेक्स और निफ्टी भारत के प्रमुख शेयर बाजार सूचकांक हैं, जबकि अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सूचकांक हैं। - प्रश्न: टैरिफ की चिंताओं के कारण कंपनियों के लाभ मार्जिन पर दबाव क्यों पड़ सकता है?
- वे अपने उत्पादों की कीमतें कम करने के लिए मजबूर हो सकती हैं।
- आयातित कच्चे माल की लागत बढ़ जाती है।
- उनकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
- सरकारी सब्सिडी में वृद्धि होती है।
उत्तर: B
व्याख्या: टैरिफ आयातित कच्चे माल को महंगा बनाते हैं, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है और लाभ मार्जिन पर दबाव आता है। - प्रश्न: “संरक्षणवाद” (Protectionism) की नीति का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- आयात पर प्रतिबंध लगाकर घरेलू उद्योगों की रक्षा करना।
- मुक्त व्यापार समझौतों को लागू करना।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
उत्तर: B
व्याख्या: संरक्षणवाद वह नीति है जो घरेलू उद्योगों को टैरिफ और अन्य व्यापार बाधाओं के माध्यम से विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाती है। - प्रश्न: वैश्विक अर्थव्यवस्था पर टैरिफ युद्धों का एक संभावित नकारात्मक परिणाम क्या हो सकता है?
- उत्पादों की कीमतें गिरना।
- वैश्विक व्यापार की मात्रा में कमी।
- उच्च विदेशी निवेश।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं का अधिक कुशल बनना।
उत्तर: B
व्याख्या: टैरिफ देशों के बीच व्यापार को महंगा और बाधित करते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार की मात्रा में कमी आती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: वैश्विक टैरिफ बढ़ोत्तरी के पीछे के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करें और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित प्रभावों, विशेष रूप से शेयर बाजार, व्यापार घाटे और मुद्रास्फीति के संबंध में, विस्तार से बताएं। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: “वैश्विक व्यापार युद्ध (Global Trade Wars) संरक्षणवाद (Protectionism) की ओर एक कदम है।” इस कथन की प्रासंगिकता की व्याख्या करें और बताएं कि संरक्षणवादी नीतियाँ घरेलू अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था दोनों के लिए क्या लाभ और हानियाँ प्रस्तुत करती हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: शेयर बाजार में गिरावट अक्सर अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का एक संकेतक मानी जाती है। टैरिफ संबंधी चिंताओं के कारण हालिया शेयर बाजार की गिरावट के संदर्भ में, इस कथन का मूल्यांकन करें और भारतीय अर्थव्यवस्था के व्यापक मैक्रोइकॉनॉमिक्स (Macroeconomics) पर इसके संभावित पड़भावों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: भारत एक बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में, वैश्विक आर्थिक शक्तियों के बीच व्यापारिक तनावों से कैसे प्रभावित होता है? टैरिफ से संबंधित वर्तमान चिंताओं के आलोक में, भारत की व्यापार नीति (Trade Policy) और विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) के लिए आगे की राह पर चर्चा करें। (150 शब्द, 10 अंक)