प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की संसद मुलाकात: भारत की नीति और सुरक्षा का रोडमैप?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में संसद परिसर में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई। यह बैठक प्रधानमंत्री के एक आगामी विदेश दौरे से ठीक पहले हुई, जिसने राजनीतिक गलियारों और नीति निर्माताओं के बीच गहन चर्चाओं को जन्म दिया है। सतह पर यह एक सामान्य उच्च-स्तरीय बैठक प्रतीत हो सकती है, लेकिन भारत जैसे विशाल और गतिशील राष्ट्र में, जहां निर्णय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, ऐसी मुलाकातें गहरी रणनीतिक और नीतिगत महत्व रखती हैं। यह केवल दो शीर्ष नेताओं की मुलाकात नहीं थी, बल्कि राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करने वाली एक महत्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया का हिस्सा थी।
यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं, एक रणनीतिक मंथन है!
आपने अक्सर सुना होगा कि ‘दिल्ली के गलियारों में बहुत कुछ पक रहा है’। यह मुहावरा हमारी राजधानी में होने वाली उच्च-स्तरीय बैठकों और उनके पीछे की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह मुलाकात भी इसी श्रेणी में आती है। आइए, गहराई से समझते हैं कि ऐसी बैठकों का क्या महत्व होता है और वे किस प्रकार भारत की नीतिगत दिशा को आकार देती हैं।
इस मुलाकात का क्या महत्व है? (What is the significance of this meeting?)
किसी भी देश की शासन प्रणाली में, शीर्ष नेतृत्व के बीच नियमित और गहन संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, खासकर तब जब देश बड़े कूटनीतिक या आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा हो। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण थी:
- रणनीतिक समन्वय: प्रधानमंत्री का विदेश दौरा सिर्फ एक यात्रा नहीं होता, बल्कि यह देश के हितों को वैश्विक मंच पर मजबूती से रखने का एक अवसर होता है। इससे पहले, आंतरिक सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर गृह मंत्री के साथ समन्वय आवश्यक हो जाता है। यह बैठक यह सुनिश्चित करती है कि देश के आंतरिक और बाहरी नीतिगत उद्देश्य एक ही दिशा में संरेखित हों।
- अद्यतन जानकारी और ब्रीफिंग: गृह मंत्री देश की आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, खुफिया जानकारी और संभावित चुनौतियों के बारे में सबसे सटीक और अद्यतन जानकारी रखते हैं। प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले, उन्हें देश की आंतरिक स्थिति पर एक विस्तृत ब्रीफिंग देना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, ताकि प्रधानमंत्री वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करते समय किसी भी अनपेक्षित घरेलू घटनाक्रम से अवगत रहें।
- नीतिगत निर्णय और प्राथमिकताओं का निर्धारण: कई बार, ऐसी बैठकों में विदेश दौरे के एजेंडे से संबंधित महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर अंतिम मुहर लगाई जाती है। इसमें आर्थिक समझौते, सुरक्षा सहयोग, या अन्य द्विपक्षीय/बहुपक्षीय वार्ता के विषय शामिल हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि विदेश दौरे के दौरान लिए जाने वाले निर्णय देश की समग्र नीतिगत प्राथमिकताओं के अनुरूप हों।
- सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्वहन: भारतीय संसदीय प्रणाली में, मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। ऐसी बैठकें मंत्रिमंडल के भीतर सामंजस्य और सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को मजबूत करती हैं, जहां सभी प्रमुख मंत्री एक-दूसरे के कार्यक्षेत्रों से अवगत होते हैं और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर काम करते हैं।
“एक मजबूत सरकार वह नहीं है जहाँ कोई मतभेद न हो, बल्कि वह है जहाँ मतभेदों के बावजूद, निर्णय लेने की प्रक्रिया सामंजस्यपूर्ण और राष्ट्रीय हित में हो।”
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा: सिर्फ एक यात्रा नहीं, एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व (PM’s Foreign Tour: Not just a Trip, Representation of a Nation)
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं होती, बल्कि इसके गहरे आर्थिक, रणनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ होते हैं।
उद्देश्य (Objectives):
- आर्थिक सहयोग और निवेश: भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और उसे निरंतर निवेश और नए बाजारों की तलाश रहती है। प्रधानमंत्री अक्सर द्विपक्षीय व्यापार समझौतों, निवेश को आकर्षित करने और भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक अवसर तलाशने के उद्देश्य से यात्रा करते हैं।
- सामरिक भागीदारी: भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलते समीकरणों के बीच, भारत विभिन्न देशों के साथ अपनी सामरिक भागीदारी को मजबूत करने का प्रयास करता है। इसमें रक्षा सहयोग, आतंकवाद विरोधी अभियान, साइबर सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़े मुद्दे शामिल होते हैं।
- बहुपक्षीय मंचों पर प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र, G20, ब्रिक्स (BRICS) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत अपनी आवाज को बुलंद करता है। प्रधानमंत्री के दौरे इन मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत करने और वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास पर अपनी राय रखने का अवसर प्रदान करते हैं।
- प्रवासी भारतीयों से संबंध: दुनिया भर में फैला भारतीय समुदाय भारत की सॉफ्ट पावर का एक बड़ा स्रोत है। प्रधानमंत्री अक्सर इन देशों में प्रवासी भारतीयों से संवाद करते हैं, उन्हें भारत की विकास गाथा से जोड़ते हैं और उनके योगदान को स्वीकार करते हैं।
- सांस्कृतिक कूटनीति: भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत के माध्यम से भी वैश्विक संबंध मजबूत करता है। योग, आयुर्वेद और भारतीय त्योहारों को बढ़ावा देना सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री अपनी यात्राओं के दौरान उजागर करते हैं।
तैयारियां (Preparations):
प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारी एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें कई मंत्रालय और एजेंसियां शामिल होती हैं:
- विदेश मंत्रालय (MEA): दौरे का एजेंडा तय करना, मेजबान देश के साथ समन्वय करना, राजनयिक शिष्टाचार सुनिश्चित करना।
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO): दौरे के समग्र उद्देश्यों का निर्धारण, विभिन्न मंत्रालयों से इनपुट लेना, अंतिम अनुमोदन प्रदान करना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS): भू-राजनीतिक विश्लेषण, सुरक्षा जोखिम आकलन, रणनीतिक सलाह।
- वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय: आर्थिक समझौतों और निवेश प्रस्तावों का मसौदा तैयार करना।
- सुरक्षा एजेंसियां: प्रधानमंत्री की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खुफिया इनपुट और जमीनी स्तर पर समन्वय।
गृह मंत्री की भूमिका और PM के दौरे से संबंध (Role of Home Minister and connection to PM’s tour)
गृह मंत्री का पद भारत सरकार में सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक है, जो आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और सीमा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों का प्रभारी होता है। प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले गृह मंत्री से मुलाकात क्यों महत्वपूर्ण है, इसे समझते हैं:
- आंतरिक सुरक्षा ब्रीफिंग: प्रधानमंत्री जब विदेश में होते हैं, तो देश की आंतरिक सुरक्षा स्थिति स्थिर और नियंत्रण में रहनी चाहिए। गृह मंत्री प्रधानमंत्री को देश भर की नवीनतम सुरक्षा स्थिति, आतंकवाद विरोधी प्रयासों, नक्सलवाद, पूर्वोत्तर में उग्रवाद और अन्य संभावित आंतरिक खतरों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।
- कानून-व्यवस्था का आकलन: दौरे के दौरान देश में कोई बड़ा कानून-व्यवस्था का मुद्दा न उठे, यह सुनिश्चित करना गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है। गृह मंत्री राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं और किसी भी संभावित अशांति के बारे में प्रधानमंत्री को अवगत कराते हैं।
- खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान: रॉ (RAW), आईबी (IB) जैसी खुफिया एजेंसियां सीधे गृह मंत्रालय के अधीन काम करती हैं। प्रधानमंत्री को किसी भी संभावित खतरे या महत्वपूर्ण खुफिया इनपुट के बारे में जानकारी देना आवश्यक होता है, खासकर यदि वह इनपुट किसी भी तरह से उनकी यात्रा या भारत के हितों से जुड़ा हो।
- सीमा प्रबंधन और साइबर सुरक्षा: सीमा पार से होने वाली घुसपैठ या साइबर हमलों जैसे मुद्दे भी गृह मंत्रालय के दायरे में आते हैं। इन पर अद्यतन स्थिति से प्रधानमंत्री को अवगत कराना जरूरी होता है, क्योंकि ये सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना: किसी भी अप्रत्याशित आंतरिक संकट की स्थिति में, प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए गृह मंत्री के साथ समन्वय आवश्यक है। यह एक तरह से “प्लान बी” की चर्चा है।
मंत्रिमंडल का कार्य और सामूहिक उत्तरदायित्व: लोकतंत्र की रीढ़ (Functioning of Cabinet and Collective Responsibility: Backbone of Democracy)
भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, और इसकी कार्यप्रणाली में मंत्रिमंडल की भूमिका केंद्रीय है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इस बड़ी मशीनरी का एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंत्रिमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली (Structure and Functioning of Cabinet):
- प्रधानमंत्री: मंत्रिमंडल का मुखिया, सरकार की नीतियों और दिशा का निर्धारण करता है।
- कैबिनेट मंत्री: महत्वपूर्ण मंत्रालयों के प्रमुख, नीति निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार): छोटे मंत्रालयों के मुखिया या बड़े मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री के सहायक।
- राज्य मंत्री: कैबिनेट मंत्रियों की सहायता करते हैं।
मंत्रिमंडल की बैठकें नियमित रूप से होती हैं, जहाँ महत्वपूर्ण नीतियों, विधेयकों और प्रशासनिक निर्णयों पर चर्चा होती है। लेकिन प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसी द्विपक्षीय बैठकें विशिष्ट मुद्दों पर त्वरित और केंद्रित चर्चा के लिए होती हैं।
सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Principle of Collective Responsibility):
यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि पूरा मंत्रिमंडल संसद (विशेषकर लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है।
- “एक साथ तैरते हैं, एक साथ डूबते हैं”: इसका मतलब है कि यदि किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है।
- गोपनीयता और एकजुटता: मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णयों का सार्वजनिक रूप से समर्थन करना होता है, भले ही आंतरिक बैठकों में उनके व्यक्तिगत विचार अलग रहे हों।
- नीतिगत एकता: यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की सभी नीतियां एक एकीकृत और सुसंगत दृष्टिकोण से निर्मित हों। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इसी सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना को मजबूत करती है, जहाँ दो प्रमुख पोर्टफोलियो धारक राष्ट्रीय हित में एक साथ आते हैं।
“सामूहिक उत्तरदायित्व केवल एक संवैधानिक प्रावधान नहीं है, बल्कि यह सुशासन और नीतिगत स्थिरता का आधार है।”
भारत की विदेश नीति: निर्धारण और क्रियान्वयन (India’s Foreign Policy: Formulation and Implementation)
भारत की विदेश नीति केवल विदेश मंत्रालय द्वारा नहीं बनाई जाती, बल्कि यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई हितधारक शामिल होते हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बैठक हमें इस प्रक्रिया को समझने में मदद करती है।
कौन निर्धारित करता है? (Who Formulates?):
- प्रधानमंत्री: प्रधानमंत्री विदेश नीति के मुख्य वास्तुकार होते हैं। उनके विचार, दृष्टिकोण और नेतृत्व भारत की वैश्विक स्थिति को आकार देते हैं। उनके विदेशी दौरे, भाषण और द्विपक्षीय बैठकें नीति की दिशा निर्धारित करती हैं।
- विदेश मंत्रालय (MEA): यह विदेश नीति के कार्यान्वयन की प्राथमिक एजेंसी है। विदेश मंत्री, विदेश सचिव और विभिन्न भौगोलिक डिवीजनों के अधिकारी नीतिगत प्रस्ताव तैयार करते हैं, राजनयिक वार्ता करते हैं और विदेशों में भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (CCS): यह भारत की सुरक्षा और विदेश नीति से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इस समिति की बैठकें अक्सर महत्वपूर्ण विदेशी दौरों से पहले होती हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC): ये प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सलाह देते हैं। NSA विदेश नीति के रणनीतिक पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- खुफिया एजेंसियां: रॉ (RAW) और आईबी (IB) जैसी एजेंसियां विदेशी नीति के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी और विश्लेषण प्रदान करती हैं।
कौन क्रियान्वित करता है? (Who Implements?):
- विदेश मंत्रालय और दूतावास: भारतीय दूतावास और उच्चायोग दुनिया भर में भारत की विदेश नीति को जमीनी स्तर पर लागू करते हैं, द्विपक्षीय संबंध बनाए रखते हैं और भारत के हितों की रक्षा करते हैं।
- अन्य मंत्रालय: व्यापार समझौतों के लिए वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा सहयोग के लिए रक्षा मंत्रालय, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए संस्कृति मंत्रालय आदि।
घरेलू राजनीति का विदेश नीति पर प्रभाव (Impact of Domestic Politics on Foreign Policy):
यह अक्सर कहा जाता है कि “विदेश नीति घरेलू नीति का विस्तार है”। यह प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बैठक से स्पष्ट होता है।
- आंतरिक सुरक्षा: देश के भीतर स्थिरता और शांति विदेश नीति की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। यदि देश में आंतरिक अशांति या सुरक्षा चुनौतियां हैं, तो यह वैश्विक मंच पर भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है। गृह मंत्री का इनपुट यहां महत्वपूर्ण हो जाता है।
- आर्थिक स्थिति: देश की आर्थिक मजबूती विदेश नीति में मोलभाव की शक्ति देती है। एक मजबूत अर्थव्यवस्था भारत को अधिक प्रभावी ढंग से व्यापार समझौते करने और निवेश आकर्षित करने में मदद करती है।
- जनता की राय: लोकतांत्रिक देश में जनता की राय भी विदेश नीति को प्रभावित करती है। सरकार को जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने होते हैं।
- निर्वाचन संबंधी दबाव: कई बार, आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए भी कुछ विदेश नीतिगत निर्णय लिए जा सकते हैं, जो जनता में सकारात्मक संदेश दें।
सरकार में समन्वय और इसकी चुनौतियाँ (Coordination in Government and its Challenges)
भारतीय सरकार एक विशाल और जटिल तंत्र है, जिसमें कई मंत्रालय, विभाग और एजेंसियां शामिल हैं। प्रभावी शासन के लिए इन सभी के बीच समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इसका एक आदर्श उदाहरण है।
क्यों महत्वपूर्ण है समन्वय? (Why is Coordination Important?):
- प्रभावी नीति निर्माण: विभिन्न मंत्रालयों से इनपुट लेकर एक व्यापक और प्रभावी नीति बनाई जा सकती है, जो सभी पहलुओं को ध्यान में रखे।
- कुशल कार्यान्वयन: यदि विभिन्न एजेंसियां एक साथ मिलकर काम करती हैं, तो नीतियों का कार्यान्वयन अधिक सुचारू और कुशल होता है।
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग: समन्वय डुप्लीकेशन को कम करता है और संसाधनों (मानव, वित्तीय) का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
- त्वरित निर्णय: संकट की स्थिति में, विभिन्न मंत्रालयों के बीच त्वरित समन्वय से तेजी से और प्रभावी निर्णय लिए जा सकते हैं।
- सुशासन: अंततः, बेहतर समन्वय सुशासन की ओर ले जाता है, जहाँ नागरिक अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से पूरा किया जाता है।
चुनौतियाँ (Challenges):
- विभागीय बाधाएं (Silo Mentality): प्रत्येक मंत्रालय अपने स्वयं के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर केंद्रित होता है, जिससे अन्य मंत्रालयों के साथ सहयोग में कमी आ सकती है। इसे अक्सर ‘विभागीय बाधा’ कहा जाता है, जहाँ सूचना का प्रवाह रुक जाता है।
- सूचना का असमान प्रवाह: विभिन्न मंत्रालयों के पास अलग-अलग स्तर की जानकारी होती है, और इसे प्रभावी ढंग से साझा न कर पाना समन्वय में बाधा डालता है।
- निर्णय लेने में देरी: यदि विभिन्न मंत्रालयों के बीच सहमति नहीं बनती, तो महत्वपूर्ण निर्णय लेने में अनावश्यक देरी हो सकती है।
- व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ: मंत्रियों या वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ भी समन्वय में बाधा डाल सकती हैं, यदि वे अपने मंत्रालय को दूसरों से ऊपर रखने का प्रयास करते हैं।
- जटिल प्रक्रियाएं: बड़ी परियोजनाओं या नीतियों के लिए अक्सर कई मंत्रालयों से अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो जाती है।
समाधान के तंत्र (Mechanisms for Solution):
- कैबिनेट सचिवालय: यह प्रधानमंत्री के सीधे अधीन काम करता है और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO): PMO विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के कामकाज की निगरानी करता है और प्रधानमंत्री के निर्देशों के अनुसार समन्वय सुनिश्चित करता है।
- अंतर-मंत्रालयी समूह: विशिष्ट मुद्दों या परियोजनाओं के लिए तदर्थ (ad-hoc) समूह बनाए जाते हैं, जिनमें विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- कैबिनेट समितियाँ: सुरक्षा, आर्थिक मामले, संसदीय मामले आदि से संबंधित कैबिनेट समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का मंच प्रदान करती हैं।
- ई-गवर्नेंस पहल: डिजिटल प्लेटफॉर्म और डेटा साझाकरण तंत्र सूचना के कुशल प्रवाह और बेहतर समन्वय में मदद करते हैं।
भविष्य की राह (Way Forward)
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच हुई यह मुलाकात हमें न केवल सरकार के उच्च-स्तरीय कार्यप्रणाली की झलक दिखाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि प्रभावी शासन के लिए निरंतर संवाद, समन्वय और सामंजस्य कितना महत्वपूर्ण है। भारत जैसे बड़े और विविध देश में, जहाँ चुनौतियाँ बहुआयामी हैं और लक्ष्य महत्वाकांक्षी, वहां नेतृत्व के बीच यह तालमेल ही राष्ट्र को आगे ले जा सकता है।
- निरंतर संवाद और समीक्षा: उच्च-स्तरीय बैठकों को नियमित करना और उनके निर्णयों की प्रभावी ढंग से समीक्षा करना महत्वपूर्ण है।
- क्षमता निर्माण: मंत्रालयों के भीतर और उनके बीच समन्वय के लिए आवश्यक कौशल और प्रक्रियाओं को विकसित करना।
- तकनीकी एकीकरण: निर्णय लेने और कार्यान्वयन प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग, जिससे पारदर्शिता और दक्षता बढ़े।
- उत्तरदायित्व और पारदर्शिता: निर्णय लेने की प्रक्रिया में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना और जहाँ संभव हो, पारदर्शिता बनाए रखना।
निष्कर्ष (Conclusion)
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की संसद में हुई यह मुलाकात सिर्फ एक खबर से कहीं बढ़कर है। यह भारत की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली, उसके नेतृत्व के बीच के गहरे समन्वय और राष्ट्र के महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों के पीछे की गंभीर सोच का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि कैसे घरेलू सुरक्षा और विदेशी कूटनीति आपस में गुंथे हुए हैं, और कैसे शीर्ष नेतृत्व इन दोनों मोर्चों पर भारत के हितों की रक्षा और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह घटना शासन, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा के बीच के जटिल अंतर्संबंधों को समझने का एक उत्कृष्ट केस स्टडी प्रस्तुत करती है, जो उन्हें भारत के शासन तंत्र की समग्र समझ विकसित करने में मदद करेगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(प्रत्येक प्रश्न के लिए, दिए गए कथनों पर विचार करें और सही विकल्प चुनें)
-
प्रश्न 1: भारतीय संसदीय प्रणाली में कैबिनेट के सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है।
- यदि लोकसभा में किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है।
- मंत्रिमंडल के सदस्य सार्वजनिक रूप से कैबिनेट के निर्णयों का समर्थन करने के लिए बाध्य हैं, भले ही उन्होंने आंतरिक रूप से विरोध किया हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। इसका अर्थ है कि सभी मंत्री अपने निर्णयों के लिए एकजुट होते हैं, और यदि किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है या सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है। मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से कैबिनेट के सभी निर्णयों का समर्थन करना होता है। -
प्रश्न 2: भारत में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारियों में निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था/मंत्रालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
- विदेश मंत्रालय
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO)
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS)
- गृह मंत्रालय
उपर्युक्त में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2, 3 और 4
(C) केवल 1, 2 और 3
(D) 1, 2, 3 और 4उत्तर: (D)
व्याख्या: प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारी एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें विदेश मंत्रालय (राजनयिक समन्वय), प्रधानमंत्री कार्यालय (समग्र योजना और अनुमोदन), राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (रणनीतिक और सुरक्षा विश्लेषण), और गृह मंत्रालय (आंतरिक सुरक्षा ब्रीफिंग और समन्वय) सहित कई एजेंसियां और मंत्रालय शामिल होते हैं। -
प्रश्न 3: भारत की विदेश नीति के निर्धारण और कार्यान्वयन के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- भारत की विदेश नीति केवल विदेश मंत्रालय द्वारा निर्धारित की जाती है।
- घरेलू सुरक्षा स्थिति का भारत की विदेश नीति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता।
- मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (CCS) विदेश नीति से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए एक सर्वोच्च निकाय है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 3
(C) केवल 1 और 2
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (B)
व्याख्या: कथन 1 गलत है। भारत की विदेश नीति प्रधानमंत्री, कैबिनेट (विशेषकर CCS), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, और विदेश मंत्रालय सहित कई हितधारकों द्वारा निर्धारित की जाती है। कथन 2 गलत है। घरेलू सुरक्षा स्थिति का विदेश नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, क्योंकि आंतरिक स्थिरता वैश्विक मंच पर भारत की विश्वसनीयता और मोलभाव की शक्ति को प्रभावित करती है। कथन 3 सही है। CCS विदेश नीति और सुरक्षा से संबंधित निर्णयों के लिए एक प्रमुख निर्णय लेने वाला निकाय है। -
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय शासन में अंतर-मंत्रालयी समन्वय के महत्व को दर्शाता/दर्शाते है/हैं?
- प्रभावी नीति निर्माण।
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग।
- त्वरित निर्णय लेने की क्षमता।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: प्रभावी शासन के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यापक और प्रभावी नीति निर्माण में मदद करता है, संसाधनों के अनावश्यक डुप्लीकेशन को कम करके उनका इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करता है, और संकट या अवसरों के दौरान त्वरित और समन्वित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। -
प्रश्न 5: भारत के गृह मंत्री की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- वे देश की आंतरिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के प्राथमिक प्रभारी हैं।
- वे भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के प्रबंधन से संबंधित मामलों में भी भूमिका निभाते हैं।
- खुफिया ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) सीधे गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (A)
व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। गृह मंत्री आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, और सीमा प्रबंधन (जैसे सीमा सुरक्षा बल) के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, खुफिया ब्यूरो (IB) गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है, लेकिन रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अधीन काम करती है, न कि गृह मंत्रालय के। इसलिए, कथन 3 गलत है। -
प्रश्न 6: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद के लोकसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का प्रावधान करता है?
(A) अनुच्छेद 74
(B) अनुच्छेद 75
(C) अनुच्छेद 78
(D) अनुच्छेद 85उत्तर: (B)
व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75(3) स्पष्ट रूप से कहता है कि “मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।” -
प्रश्न 7: भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की मुख्य भूमिका क्या है?
- केवल आंतरिक सुरक्षा मामलों पर गृह मंत्री को सलाह देना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का नेतृत्व करना और प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सलाह देना।
- देश के रक्षा बलों का प्रत्यक्ष परिचालन नियंत्रण करना।
- भारत की विदेश नीति के कार्यान्वयन के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी निभाना।
उत्तर: (B)
व्याख्या: NSA राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का प्रमुख होता है और प्रधानमंत्री का मुख्य सलाहकार होता है जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों पर उन्हें सलाह देता है। विकल्प A गलत है क्योंकि NSA प्रधानमंत्री का मुख्य सलाहकार है, न कि केवल गृह मंत्री का। विकल्प C और D गलत हैं क्योंकि ये भूमिकाएँ क्रमशः रक्षा मंत्री और विदेश मंत्रालय की हैं। -
प्रश्न 8: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें कि सरकार में ‘विभागीय बाधाओं’ (Silo Mentality) का क्या अर्थ है:
- यह विभिन्न सरकारी विभागों के बीच प्रभावी समन्वय की अनुपस्थिति को संदर्भित करता है।
- इसका परिणाम सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा हो सकता है।
- यह मंत्रालयों के बीच क्षेत्राधिकार के स्पष्ट सीमांकन को बढ़ावा देता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 2
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (C)
व्याख्या: ‘विभागीय बाधाएं’ या ‘Silo Mentality’ का अर्थ है कि विभिन्न विभाग या मंत्रालय एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, जिससे प्रभावी समन्वय की कमी होती है और सूचना का आदान-प्रदान बाधित होता है। यह क्षेत्राधिकार के स्पष्ट सीमांकन को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि समन्वय के अभाव में टकराव पैदा कर सकता है। -
प्रश्न 9: भारत की विदेश नीति के स्तंभों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा हाल के वर्षों में ‘गुटनिरपेक्षता’ से एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है?
(A) क्षेत्रीय सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
(B) संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सक्रिय भागीदारी।
(C) ‘बहु-संरेखण’ (Multi-alignment) की नीति को अपनाना।
(D) अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए केवल आत्मरक्षा पर निर्भर रहना।उत्तर: (C)
व्याख्या: हाल के वर्षों में, भारत ने पारंपरिक गुटनिरपेक्षता की नीति से हटकर ‘बहु-संरेखण’ की नीति अपनाई है, जिसका अर्थ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार विभिन्न देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाता है, बिना किसी एक गुट का स्थायी सदस्य बने। -
प्रश्न 10: प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की मुख्य भूमिकाओं में शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता करना।
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के कामकाज की निगरानी करना।
- प्रधानमंत्री के निर्देशों के अनुसार अंतर-मंत्रालयी समन्वय सुनिश्चित करना।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 1 और 2
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: PMO प्रधानमंत्री के सचिवालय के रूप में कार्य करता है, उन्हें सलाह देता है, मंत्रालयों के कामकाज की निगरानी करता है और सरकार के भीतर प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करता है ताकि प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन किया जा सके। सभी कथन सही हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
-
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच उच्च-स्तरीय बैठकों का क्या महत्व है, खासकर प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले? सरकार की आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति के बीच अंतर्संबंधों को स्पष्ट कीजिए।
-
भारतीय संसदीय लोकतंत्र में ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के सिद्धांत का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। प्रभावी शासन सुनिश्चित करने में यह सिद्धांत कितना सफल रहा है और इसकी क्या चुनौतियाँ हैं?
-
भारत में विदेश नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), विदेश मंत्रालय (MEA) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। क्या घरेलू राजनीति भारत की विदेश नीति को प्रभावित करती है? उदाहरण सहित समझाइए।
-
सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच ‘समन्वय’ सुशासन के लिए क्यों आवश्यक है? भारतीय प्रशासन में अंतर-मंत्रालयी समन्वय की चुनौतियों और उन्हें दूर करने के लिए किए गए प्रयासों पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
[–END_CONTENT–]
[–SEO_TITLE–]प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की संसद मुलाकात: भारत की नीति और सुरक्षा का रोडमैप?
[–CONTENT_HTML–]
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की संसद मुलाकात: भारत की नीति और सुरक्षा का रोडमैप?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में संसद परिसर में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई। यह बैठक प्रधानमंत्री के एक आगामी विदेश दौरे से ठीक पहले हुई, जिसने राजनीतिक गलियारों और नीति निर्माताओं के बीच गहन चर्चाओं को जन्म दिया है। सतह पर यह एक सामान्य उच्च-स्तरीय बैठक प्रतीत हो सकती है, लेकिन भारत जैसे विशाल और गतिशील राष्ट्र में, जहां निर्णय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, ऐसी मुलाकातें गहरी रणनीतिक और नीतिगत महत्व रखती हैं। यह केवल दो शीर्ष नेताओं की मुलाकात नहीं थी, बल्कि राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करने वाली एक महत्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया का हिस्सा थी।
यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं, एक रणनीतिक मंथन है!
आपने अक्सर सुना होगा कि ‘दिल्ली के गलियारों में बहुत कुछ पक रहा है’। यह मुहावरा हमारी राजधानी में होने वाली उच्च-स्तरीय बैठकों और उनके पीछे की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह मुलाकात भी इसी श्रेणी में आती है। आइए, गहराई से समझते हैं कि ऐसी बैठकों का क्या महत्व होता है और वे किस प्रकार भारत की नीतिगत दिशा को आकार देती हैं।
इस मुलाकात का क्या महत्व है? (What is the significance of this meeting?)
किसी भी देश की शासन प्रणाली में, शीर्ष नेतृत्व के बीच नियमित और गहन संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, खासकर तब जब देश बड़े कूटनीतिक या आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा हो। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण थी:
- रणनीतिक समन्वय: प्रधानमंत्री का विदेश दौरा सिर्फ एक यात्रा नहीं होता, बल्कि यह देश के हितों को वैश्विक मंच पर मजबूती से रखने का एक अवसर होता है। इससे पहले, आंतरिक सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर गृह मंत्री के साथ समन्वय आवश्यक हो जाता है। यह बैठक यह सुनिश्चित करती है कि देश के आंतरिक और बाहरी नीतिगत उद्देश्य एक ही दिशा में संरेखित हों।
- अद्यतन जानकारी और ब्रीफिंग: गृह मंत्री देश की आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, खुफिया जानकारी और संभावित चुनौतियों के बारे में सबसे सटीक और अद्यतन जानकारी रखते हैं। प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले, उन्हें देश की आंतरिक स्थिति पर एक विस्तृत ब्रीफिंग देना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, ताकि प्रधानमंत्री वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करते समय किसी भी अनपेक्षित घरेलू घटनाक्रम से अवगत रहें।
- नीतिगत निर्णय और प्राथमिकताओं का निर्धारण: कई बार, ऐसी बैठकों में विदेश दौरे के एजेंडे से संबंधित महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर अंतिम मुहर लगाई जाती है। इसमें आर्थिक समझौते, सुरक्षा सहयोग, या अन्य द्विपक्षीय/बहुपक्षीय वार्ता के विषय शामिल हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि विदेश दौरे के दौरान लिए जाने वाले निर्णय देश की समग्र नीतिगत प्राथमिकताओं के अनुरूप हों।
- सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्वहन: भारतीय संसदीय प्रणाली में, मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। ऐसी बैठकें मंत्रिमंडल के भीतर सामंजस्य और सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को मजबूत करती हैं, जहां सभी प्रमुख मंत्री एक-दूसरे के कार्यक्षेत्रों से अवगत होते हैं और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर काम करते हैं।
“एक मजबूत सरकार वह नहीं है जहाँ कोई मतभेद न हो, बल्कि वह है जहाँ मतभेदों के बावजूद, निर्णय लेने की प्रक्रिया सामंजस्यपूर्ण और राष्ट्रीय हित में हो।”
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा: सिर्फ एक यात्रा नहीं, एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व (PM’s Foreign Tour: Not just a Trip, Representation of a Nation)
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं होती, बल्कि इसके गहरे आर्थिक, रणनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ होते हैं।
उद्देश्य (Objectives):
- आर्थिक सहयोग और निवेश: भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और उसे निरंतर निवेश और नए बाजारों की तलाश रहती है। प्रधानमंत्री अक्सर द्विपक्षीय व्यापार समझौतों, निवेश को आकर्षित करने और भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक अवसर तलाशने के उद्देश्य से यात्रा करते हैं।
- सामरिक भागीदारी: भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलते समीकरणों के बीच, भारत विभिन्न देशों के साथ अपनी सामरिक भागीदारी को मजबूत करने का प्रयास करता है। इसमें रक्षा सहयोग, आतंकवाद विरोधी अभियान, साइबर सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़े मुद्दे शामिल होते हैं।
- बहुपक्षीय मंचों पर प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र, G20, ब्रिक्स (BRICS) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत अपनी आवाज को बुलंद करता है। प्रधानमंत्री के दौरे इन मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत करने और वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास पर अपनी राय रखने का अवसर प्रदान करते हैं।
- प्रवासी भारतीयों से संबंध: दुनिया भर में फैला भारतीय समुदाय भारत की सॉफ्ट पावर का एक बड़ा स्रोत है। प्रधानमंत्री अक्सर इन देशों में प्रवासी भारतीयों से संवाद करते हैं, उन्हें भारत की विकास गाथा से जोड़ते हैं और उनके योगदान को स्वीकार करते हैं।
- सांस्कृतिक कूटनीति: भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत के माध्यम से भी वैश्विक संबंध मजबूत करता है। योग, आयुर्वेद और भारतीय त्योहारों को बढ़ावा देना सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री अपनी यात्राओं के दौरान उजागर करते हैं।
तैयारियां (Preparations):
प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारी एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें कई मंत्रालय और एजेंसियां शामिल होती हैं:
- विदेश मंत्रालय (MEA): दौरे का एजेंडा तय करना, मेजबान देश के साथ समन्वय करना, राजनयिक शिष्टाचार सुनिश्चित करना।
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO): दौरे के समग्र उद्देश्यों का निर्धारण, विभिन्न मंत्रालयों से इनपुट लेना, अंतिम अनुमोदन प्रदान करना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS): भू-राजनीतिक विश्लेषण, सुरक्षा जोखिम आकलन, रणनीतिक सलाह।
- वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय: आर्थिक समझौतों और निवेश प्रस्तावों का मसौदा तैयार करना।
- सुरक्षा एजेंसियां: प्रधानमंत्री की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खुफिया इनपुट और जमीनी स्तर पर समन्वय।
गृह मंत्री की भूमिका और PM के दौरे से संबंध (Role of Home Minister and connection to PM’s tour)
गृह मंत्री का पद भारत सरकार में सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक है, जो आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और सीमा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों का प्रभारी होता है। प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले गृह मंत्री से मुलाकात क्यों महत्वपूर्ण है, इसे समझते हैं:
- आंतरिक सुरक्षा ब्रीफिंग: प्रधानमंत्री जब विदेश में होते हैं, तो देश की आंतरिक सुरक्षा स्थिति स्थिर और नियंत्रण में रहनी चाहिए। गृह मंत्री प्रधानमंत्री को देश भर की नवीनतम सुरक्षा स्थिति, आतंकवाद विरोधी प्रयासों, नक्सलवाद, पूर्वोत्तर में उग्रवाद और अन्य संभावित आंतरिक खतरों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं।
- कानून-व्यवस्था का आकलन: दौरे के दौरान देश में कोई बड़ा कानून-व्यवस्था का मुद्दा न उठे, यह सुनिश्चित करना गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है। गृह मंत्री राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं और किसी भी संभावित अशांति के बारे में प्रधानमंत्री को अवगत कराते हैं।
- खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान: रॉ (RAW), आईबी (IB) जैसी खुफिया एजेंसियां सीधे गृह मंत्रालय के अधीन काम करती हैं। प्रधानमंत्री को किसी भी संभावित खतरे या महत्वपूर्ण खुफिया इनपुट के बारे में जानकारी देना आवश्यक होता है, खासकर यदि वह इनपुट किसी भी तरह से उनकी यात्रा या भारत के हितों से जुड़ा हो।
- सीमा प्रबंधन और साइबर सुरक्षा: सीमा पार से होने वाली घुसपैठ या साइबर हमलों जैसे मुद्दे भी गृह मंत्रालय के दायरे में आते हैं। इन पर अद्यतन स्थिति से प्रधानमंत्री को अवगत कराना जरूरी होता है, क्योंकि ये सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना: किसी भी अप्रत्याशित आंतरिक संकट की स्थिति में, प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए गृह मंत्री के साथ समन्वय आवश्यक है। यह एक तरह से “प्लान बी” की चर्चा है।
मंत्रिमंडल का कार्य और सामूहिक उत्तरदायित्व: लोकतंत्र की रीढ़ (Functioning of Cabinet and Collective Responsibility: Backbone of Democracy)
भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, और इसकी कार्यप्रणाली में मंत्रिमंडल की भूमिका केंद्रीय है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इस बड़ी मशीनरी का एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंत्रिमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली (Structure and Functioning of Cabinet):
- प्रधानमंत्री: मंत्रिमंडल का मुखिया, सरकार की नीतियों और दिशा का निर्धारण करता है।
- कैबिनेट मंत्री: महत्वपूर्ण मंत्रालयों के प्रमुख, नीति निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार): छोटे मंत्रालयों के मुखिया या बड़े मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री के सहायक।
- राज्य मंत्री: कैबिनेट मंत्रियों की सहायता करते हैं।
मंत्रिमंडल की बैठकें नियमित रूप से होती हैं, जहाँ महत्वपूर्ण नीतियों, विधेयकों और प्रशासनिक निर्णयों पर चर्चा होती है। लेकिन प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसी द्विपक्षीय बैठकें विशिष्ट मुद्दों पर त्वरित और केंद्रित चर्चा के लिए होती हैं।
सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Principle of Collective Responsibility):
यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि पूरा मंत्रिमंडल संसद (विशेषकर लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है।
- “एक साथ तैरते हैं, एक साथ डूबते हैं”: इसका मतलब है कि यदि किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है।
- गोपनीयता और एकजुटता: मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णयों का सार्वजनिक रूप से समर्थन करना होता है, भले ही आंतरिक बैठकों में उनके व्यक्तिगत विचार अलग रहे हों।
- नीतिगत एकता: यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की सभी नीतियां एक एकीकृत और सुसंगत दृष्टिकोण से निर्मित हों। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इसी सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना को मजबूत करती है, जहाँ दो प्रमुख पोर्टफोलियो धारक राष्ट्रीय हित में एक साथ आते हैं।
“सामूहिक उत्तरदायित्व केवल एक संवैधानिक प्रावधान नहीं है, बल्कि यह सुशासन और नीतिगत स्थिरता का आधार है।”
भारत की विदेश नीति: निर्धारण और क्रियान्वयन (India’s Foreign Policy: Formulation and Implementation)
भारत की विदेश नीति केवल विदेश मंत्रालय द्वारा नहीं बनाई जाती, बल्कि यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई हितधारक शामिल होते हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बैठक हमें इस प्रक्रिया को समझने में मदद करती है।
कौन निर्धारित करता है? (Who Formulates?):
- प्रधानमंत्री: प्रधानमंत्री विदेश नीति के मुख्य वास्तुकार होते हैं। उनके विचार, दृष्टिकोण और नेतृत्व भारत की वैश्विक स्थिति को आकार देते हैं। उनके विदेशी दौरे, भाषण और द्विपक्षीय बैठकें नीति की दिशा निर्धारित करती हैं।
- विदेश मंत्रालय (MEA): यह विदेश नीति के कार्यान्वयन की प्राथमिक एजेंसी है। विदेश मंत्री, विदेश सचिव और विभिन्न भौगोलिक डिवीजनों के अधिकारी नीतिगत प्रस्ताव तैयार करते हैं, राजनयिक वार्ता करते हैं और विदेशों में भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (CCS): यह भारत की सुरक्षा और विदेश नीति से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इस समिति की बैठकें अक्सर महत्वपूर्ण विदेशी दौरों से पहले होती हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC): ये प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सलाह देते हैं। NSA विदेश नीति के रणनीतिक पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- खुफिया एजेंसियां: रॉ (RAW) और आईबी (IB) जैसी एजेंसियां विदेशी नीति के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी और विश्लेषण प्रदान करती हैं।
कौन क्रियान्वित करता है? (Who Implements?):
- विदेश मंत्रालय और दूतावास: भारतीय दूतावास और उच्चायोग दुनिया भर में भारत की विदेश नीति को जमीनी स्तर पर लागू करते हैं, द्विपक्षीय संबंध बनाए रखते हैं और भारत के हितों की रक्षा करते हैं।
- अन्य मंत्रालय: व्यापार समझौतों के लिए वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा सहयोग के लिए रक्षा मंत्रालय, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए संस्कृति मंत्रालय आदि।
घरेलू राजनीति का विदेश नीति पर प्रभाव (Impact of Domestic Politics on Foreign Policy):
यह अक्सर कहा जाता है कि “विदेश नीति घरेलू नीति का विस्तार है”। यह प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बैठक से स्पष्ट होता है।
- आंतरिक सुरक्षा: देश के भीतर स्थिरता और शांति विदेश नीति की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। यदि देश में आंतरिक अशांति या सुरक्षा चुनौतियां हैं, तो यह वैश्विक मंच पर भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है। गृह मंत्री का इनपुट यहां महत्वपूर्ण हो जाता है।
- आर्थिक स्थिति: देश की आर्थिक मजबूती विदेश नीति में मोलभाव की शक्ति देती है। एक मजबूत अर्थव्यवस्था भारत को अधिक प्रभावी ढंग से व्यापार समझौते करने और निवेश आकर्षित करने में मदद करती है।
- जनता की राय: लोकतांत्रिक देश में जनता की राय भी विदेश नीति को प्रभावित करती है। सरकार को जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने होते हैं।
- निर्वाचन संबंधी दबाव: कई बार, आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए भी कुछ विदेश नीतिगत निर्णय लिए जा सकते हैं, जो जनता में सकारात्मक संदेश दें।
सरकार में समन्वय और इसकी चुनौतियाँ (Coordination in Government and its Challenges)
भारतीय सरकार एक विशाल और जटिल तंत्र है, जिसमें कई मंत्रालय, विभाग और एजेंसियां शामिल हैं। प्रभावी शासन के लिए इन सभी के बीच समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मुलाकात इसका एक आदर्श उदाहरण है।
क्यों महत्वपूर्ण है समन्वय? (Why is Coordination Important?):
- प्रभावी नीति निर्माण: विभिन्न मंत्रालयों से इनपुट लेकर एक व्यापक और प्रभावी नीति बनाई जा सकती है, जो सभी पहलुओं को ध्यान में रखे।
- कुशल कार्यान्वयन: यदि विभिन्न एजेंसियां एक साथ मिलकर काम करती हैं, तो नीतियों का कार्यान्वयन अधिक सुचारू और कुशल होता है।
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग: समन्वय डुप्लीकेशन को कम करता है और संसाधनों (मानव, वित्तीय) का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
- त्वरित निर्णय: संकट की स्थिति में, विभिन्न मंत्रालयों के बीच त्वरित समन्वय से तेजी से और प्रभावी निर्णय लिए जा सकते हैं।
- सुशासन: अंततः, बेहतर समन्वय सुशासन की ओर ले जाता है, जहाँ नागरिक अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से पूरा किया जाता है।
चुनौतियाँ (Challenges):
- विभागीय बाधाएं (Silo Mentality): प्रत्येक मंत्रालय अपने स्वयं के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर केंद्रित होता है, जिससे अन्य मंत्रालयों के साथ सहयोग में कमी आ सकती है। इसे अक्सर ‘विभागीय बाधा’ कहा जाता है, जहाँ सूचना का प्रवाह रुक जाता है।
- सूचना का असमान प्रवाह: विभिन्न मंत्रालयों के पास अलग-अलग स्तर की जानकारी होती है, और इसे प्रभावी ढंग से साझा न कर पाना समन्वय में बाधा डालता है।
- निर्णय लेने में देरी: यदि विभिन्न मंत्रालयों के बीच सहमति नहीं बनती, तो महत्वपूर्ण निर्णय लेने में अनावश्यक देरी हो सकती है।
- व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ: मंत्रियों या वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ भी समन्वय में बाधा डाल सकती हैं, यदि वे अपने मंत्रालय को दूसरों से ऊपर रखने का प्रयास करते हैं।
- जटिल प्रक्रियाएं: बड़ी परियोजनाओं या नीतियों के लिए अक्सर कई मंत्रालयों से अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो जाती है।
समाधान के तंत्र (Mechanisms for Solution):
- कैबिनेट सचिवालय: यह प्रधानमंत्री के सीधे अधीन काम करता है और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO): PMO विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के कामकाज की निगरानी करता है और प्रधानमंत्री के निर्देशों के अनुसार समन्वय सुनिश्चित करता है।
- अंतर-मंत्रालयी समूह: विशिष्ट मुद्दों या परियोजनाओं के लिए तदर्थ (ad-hoc) समूह बनाए जाते हैं, जिनमें विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- कैबिनेट समितियाँ: सुरक्षा, आर्थिक मामले, संसदीय मामले आदि से संबंधित कैबिनेट समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का मंच प्रदान करती हैं।
- ई-गवर्नेंस पहल: डिजिटल प्लेटफॉर्म और डेटा साझाकरण तंत्र सूचना के कुशल प्रवाह और बेहतर समन्वय में मदद करते हैं।
भविष्य की राह (Way Forward)
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच हुई यह मुलाकात हमें न केवल सरकार के उच्च-स्तरीय कार्यप्रणाली की झलक दिखाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि प्रभावी शासन के लिए निरंतर संवाद, समन्वय और सामंजस्य कितना महत्वपूर्ण है। भारत जैसे बड़े और विविध देश में, जहाँ चुनौतियाँ बहुआयामी हैं और लक्ष्य महत्वाकांक्षी, वहां नेतृत्व के बीच यह तालमेल ही राष्ट्र को आगे ले जा सकता है।
- निरंतर संवाद और समीक्षा: उच्च-स्तरीय बैठकों को नियमित करना और उनके निर्णयों की प्रभावी ढंग से समीक्षा करना महत्वपूर्ण है।
- क्षमता निर्माण: मंत्रालयों के भीतर और उनके बीच समन्वय के लिए आवश्यक कौशल और प्रक्रियाओं को विकसित करना।
- तकनीकी एकीकरण: निर्णय लेने और कार्यान्वयन प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग, जिससे पारदर्शिता और दक्षता बढ़े।
- उत्तरदायित्व और पारदर्शिता: निर्णय लेने की प्रक्रिया में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना और जहाँ संभव हो, पारदर्शिता बनाए रखना।
निष्कर्ष (Conclusion)
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की संसद में हुई यह मुलाकात सिर्फ एक खबर से कहीं बढ़कर है। यह भारत की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली, उसके नेतृत्व के बीच के गहरे समन्वय और राष्ट्र के महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों के पीछे की गंभीर सोच का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि कैसे घरेलू सुरक्षा और विदेशी कूटनीति आपस में गुंथे हुए हैं, और कैसे शीर्ष नेतृत्व इन दोनों मोर्चों पर भारत के हितों की रक्षा और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह घटना शासन, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा के बीच के जटिल अंतर्संबंधों को समझने का एक उत्कृष्ट केस स्टडी प्रस्तुत करती है, जो उन्हें भारत के शासन तंत्र की समग्र समझ विकसित करने में मदद करेगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(प्रत्येक प्रश्न के लिए, दिए गए कथनों पर विचार करें और सही विकल्प चुनें)
-
प्रश्न 1: भारतीय संसदीय प्रणाली में कैबिनेट के सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है।
- यदि लोकसभा में किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है।
- मंत्रिमंडल के सदस्य सार्वजनिक रूप से कैबिनेट के निर्णयों का समर्थन करने के लिए बाध्य हैं, भले ही उन्होंने आंतरिक रूप से विरोध किया हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। इसका अर्थ है कि सभी मंत्री अपने निर्णयों के लिए एकजुट होते हैं, और यदि किसी एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है या सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है। मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से कैबिनेट के सभी निर्णयों का समर्थन करना होता है। -
प्रश्न 2: भारत में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारियों में निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था/मंत्रालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
- विदेश मंत्रालय
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO)
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS)
- गृह मंत्रालय
उपर्युक्त में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2, 3 और 4
(C) केवल 1, 2 और 3
(D) 1, 2, 3 और 4उत्तर: (D)
व्याख्या: प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की तैयारी एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें विदेश मंत्रालय (राजनयिक समन्वय), प्रधानमंत्री कार्यालय (समग्र योजना और अनुमोदन), राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (रणनीतिक और सुरक्षा विश्लेषण), और गृह मंत्रालय (आंतरिक सुरक्षा ब्रीफिंग और समन्वय) सहित कई एजेंसियां और मंत्रालय शामिल होते हैं। -
प्रश्न 3: भारत की विदेश नीति के निर्धारण और कार्यान्वयन के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- भारत की विदेश नीति केवल विदेश मंत्रालय द्वारा निर्धारित की जाती है।
- घरेलू सुरक्षा स्थिति का भारत की विदेश नीति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता।
- मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (CCS) विदेश नीति से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए एक सर्वोच्च निकाय है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 3
(C) केवल 1 और 2
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (B)
व्याख्या: कथन 1 गलत है। भारत की विदेश नीति प्रधानमंत्री, कैबिनेट (विशेषकर CCS), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, और विदेश मंत्रालय सहित कई हितधारकों द्वारा निर्धारित की जाती है। कथन 2 गलत है। घरेलू सुरक्षा स्थिति का विदेश नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, क्योंकि आंतरिक स्थिरता वैश्विक मंच पर भारत की विश्वसनीयता और मोलभाव की शक्ति को प्रभावित करती है। कथन 3 सही है। CCS विदेश नीति और सुरक्षा से संबंधित निर्णयों के लिए एक प्रमुख निर्णय लेने वाला निकाय है। -
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय शासन में अंतर-मंत्रालयी समन्वय के महत्व को दर्शाता/दर्शाते है/हैं?
- प्रभावी नीति निर्माण।
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग।
- त्वरित निर्णय लेने की क्षमता।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: प्रभावी शासन के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यापक और प्रभावी नीति निर्माण में मदद करता है, संसाधनों के अनावश्यक डुप्लीकेशन को कम करके उनका इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करता है, और संकट या अवसरों के दौरान त्वरित और समन्वित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। -
प्रश्न 5: भारत के गृह मंत्री की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- वे देश की आंतरिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के प्राथमिक प्रभारी हैं।
- वे भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के प्रबंधन से संबंधित मामलों में भी भूमिका निभाते हैं।
- खुफिया ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) सीधे गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (A)
व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। गृह मंत्री आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, और सीमा प्रबंधन (जैसे सीमा सुरक्षा बल) के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, खुफिया ब्यूरो (IB) गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है, लेकिन रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अधीन काम करती है, न कि गृह मंत्रालय के। इसलिए, कथन 3 गलत है। -
प्रश्न 6: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद के लोकसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का प्रावधान करता है?
(A) अनुच्छेद 74
(B) अनुच्छेद 75
(C) अनुच्छेद 78
(D) अनुच्छेद 85उत्तर: (B)
व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75(3) स्पष्ट रूप से कहता है कि “मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।” -
प्रश्न 7: भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की मुख्य भूमिका क्या है?
- केवल आंतरिक सुरक्षा मामलों पर गृह मंत्री को सलाह देना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का नेतृत्व करना और प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सलाह देना।
- देश के रक्षा बलों का प्रत्यक्ष परिचालन नियंत्रण करना।
- भारत की विदेश नीति के कार्यान्वयन के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी निभाना।
उत्तर: (B)
व्याख्या: NSA राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का प्रमुख होता है और प्रधानमंत्री का मुख्य सलाहकार होता है जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों पर उन्हें सलाह देता है। विकल्प A गलत है क्योंकि NSA प्रधानमंत्री का मुख्य सलाहकार है, न कि केवल गृह मंत्री का। विकल्प C और D गलत हैं क्योंकि ये भूमिकाएँ क्रमशः रक्षा मंत्री और विदेश मंत्रालय की हैं। -
प्रश्न 8: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें कि सरकार में ‘विभागीय बाधाओं’ (Silo Mentality) का क्या अर्थ है:
- यह विभिन्न सरकारी विभागों के बीच प्रभावी समन्वय की अनुपस्थिति को संदर्भित करता है।
- इसका परिणाम सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा हो सकता है।
- यह मंत्रालयों के बीच क्षेत्राधिकार के स्पष्ट सीमांकन को बढ़ावा देता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 2
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (C)
व्याख्या: ‘विभागीय बाधाएं’ या ‘Silo Mentality’ का अर्थ है कि विभिन्न विभाग या मंत्रालय एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, जिससे प्रभावी समन्वय की कमी होती है और सूचना का आदान-प्रदान बाधित होता है। यह क्षेत्राधिकार के स्पष्ट सीमांकन को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि समन्वय के अभाव में टकराव पैदा कर सकता है। -
प्रश्न 9: भारत की विदेश नीति के स्तंभों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा हाल के वर्षों में ‘गुटनिरपेक्षता’ से एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है?
(A) क्षेत्रीय सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
(B) संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सक्रिय भागीदारी।
(C) ‘बहु-संरेखण’ (Multi-alignment) की नीति को अपनाना।
(D) अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए केवल आत्मरक्षा पर निर्भर रहना।उत्तर: (C)
व्याख्या: हाल के वर्षों में, भारत ने पारंपरिक गुटनिरपेक्षता की नीति से हटकर ‘बहु-संरेखण’ की नीति अपनाई है, जिसका अर्थ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार विभिन्न देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाता है, बिना किसी एक गुट का स्थायी सदस्य बने। -
प्रश्न 10: प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की मुख्य भूमिकाओं में शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता करना।
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के कामकाज की निगरानी करना।
- प्रधानमंत्री के निर्देशों के अनुसार अंतर-मंत्रालयी समन्वय सुनिश्चित करना।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल 1
(B) केवल 1 और 2
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3उत्तर: (D)
व्याख्या: PMO प्रधानमंत्री के सचिवालय के रूप में कार्य करता है, उन्हें सलाह देता है, मंत्रालयों के कामकाज की निगरानी करता है और सरकार के भीतर प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करता है ताकि प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन किया जा सके। सभी कथन सही हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
-
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच उच्च-स्तरीय बैठकों का क्या महत्व है, खासकर प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से पहले? सरकार की आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति के बीच अंतर्संबंधों को स्पष्ट कीजिए।
-
भारतीय संसदीय लोकतंत्र में ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के सिद्धांत का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। प्रभावी शासन सुनिश्चित करने में यह सिद्धांत कितना सफल रहा है और इसकी क्या चुनौतियाँ हैं?
-
भारत में विदेश नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), विदेश मंत्रालय (MEA) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। क्या घरेलू राजनीति भारत की विदेश नीति को प्रभावित करती है? उदाहरण सहित समझाइए।
-
सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच ‘समन्वय’ सुशासन के लिए क्यों आवश्यक है? भारतीय प्रशासन में अंतर-मंत्रालयी समन्वय की चुनौतियों और उन्हें दूर करने के लिए किए गए प्रयासों पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
[कोर्स और फ्री नोट्स के लिए यहाँ क्लिक करें]