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पूर्व प्रधानमंत्री के पोते को उम्र कैद: प्रज्वल रेवन्ना केस में न्याय, ₹7 लाख का हर्जाना!

पूर्व प्रधानमंत्री के पोते को उम्र कैद: प्रज्वल रेवन्ना केस में न्याय, ₹7 लाख का हर्जाना!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, कर्नाटक की एक अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते और जद (एस) नेता प्रज्वल रेवन्ना को एक गंभीर यौन उत्पीड़न मामले में दोषी करार दिया है। अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई है और पीड़िता को ₹7 लाख का हर्जाना देने का आदेश दिया है। यह फैसला न केवल कर्नाटक की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी गहन चर्चा का विषय बना हुआ है, खासकर सत्ता और राजनीति में बैठे लोगों के व्यवहार और कानून के शासन पर इसके निहितार्थों को लेकर। यह मामला महिलाओं की सुरक्षा, न्याय प्रणाली की भूमिका और राजनीतिक परिवारों की जवाबदेही जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है, जो UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

यह मामला कई परतों वाला है, जिसमें राजनीतिक साख, व्यक्तिगत आचरण, कानूनी प्रक्रियाएं और सामाजिक न्याय के प्रश्न शामिल हैं। आइए, इस घटना के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझें, ताकि UPSC के दृष्टिकोण से इसके महत्व को आत्मसात किया जा सके।

पृष्ठभूमि: कैसे सामने आया मामला? (Background: How did the Case Emerge?)

प्रज्वल रेवन्ना, जो स्वयं एक राजनेता हैं और हासन निर्वाचन क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं, पर कई महिलाओं ने गंभीर यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाए थे। यह मामला 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान तब पहली बार चर्चा में आया जब कुछ महिलाओं ने रेवन्ना पर शोषण का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शुरुआत में, इन आरोपों को राजनीतिक साजिश का हिस्सा बताकर खारिज करने का प्रयास किया गया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता और पीड़ित सामने आते गए, मामला गंभीर होता गया।

मुख्य आरोप:

  • यौन उत्पीड़न: कई महिलाओं ने आरोप लगाया कि प्रज्वल रेवन्ना ने उन्हें अपनी शक्ति और पद का दुरुपयोग करके यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।
  • बलात्कार: कुछ मामलों में, आरोप बलात्कार तक गंभीर थे, जिसमें जबरदस्ती और सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाने का दावा किया गया।
  • ब्लैकमेल और धमकी: आरोप यह भी थे कि पीड़ितों को चुप कराने के लिए ब्लैकमेल किया गया और धमकी दी गई।
  • वीडियो बनाना: सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि कुछ पीड़ितों के आपत्तिजनक वीडियो बनाने के भी आरोप लगे, जिन्हें बाद में लीक करने की धमकी दी जाती थी।

शुरुआत में, मामले को राजनीतिक रूप से दबाने की कोशिशें हुईं, विशेषकर इसलिए क्योंकि प्रज्वल रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सरकार में मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के भतीजे हैं। इससे मामला और अधिक संवेदनशील हो गया, क्योंकि इसमें एक प्रमुख राजनीतिक घराने की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी।

कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक हस्तक्षेप (Legal Process and Judicial Intervention)

जैसे-जैसे पीड़ितों की संख्या बढ़ी और साक्ष्य सामने आने लगे, कर्नाटक पुलिस ने जांच शुरू की। हालांकि, राजनीतिक दबाव और साक्ष्यों को मिटाने के प्रयासों की आशंका के चलते, मामला जल्द ही कानूनी और राजनीतिक उथल-पुथल का केंद्र बन गया।

एसआईटी गठन: कर्नाटक सरकार ने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक विशेष जांच दल (Special Investigation Team – SIT) का गठन किया। एसआईटी ने कई पीड़िताओं के बयान दर्ज किए, गवाहों से पूछताछ की और सबूत जुटाए।

प्रज्वल रेवन्ना का विदेश भागना: जांच के प्रारंभिक चरणों के दौरान, प्रज्वल रेवन्ना देश से बाहर, विशेष रूप से जर्मनी भाग गए। उनकी अनुपस्थिति ने इस धारणा को बल दिया कि वह जांच को प्रभावित करने या सबूतों को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे जनता का आक्रोश और बढ़ गया।

अंतर्राष्ट्रीय प्रत्यर्पण का प्रयास: मामला तब अंतरराष्ट्रीय मोड़ ले लिया जब भारत सरकार ने जर्मनी से प्रज्वल रेवन्ना के प्रत्यर्पण (Extradition) की मांग की। यह प्रक्रिया जटिल थी और इसमें कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता थी।

अदालत का फैसला: लंबी कानूनी प्रक्रिया और एसआईटी की चार्जशीट के बाद, मामला अदालत में पहुंचा। अदालत ने प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों और गवाहों के बयानों के आधार पर प्रज्वल रेवन्ना को दोषी पाया। अदालत का फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • दोषसिद्धि: यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में दोषी ठहराया जाना।
  • उम्र कैद: ऐसे मामलों में आजीवन कारावास की सजा, जो अपराध की गंभीरता को दर्शाती है।
  • ₹7 लाख का हर्जाना: पीड़िता को हुए शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे का आदेश। यह सुनिश्चित करता है कि पीड़िता को न्याय मिले और उसे आर्थिक सहारा मिले।

इस फैसले को कई लोग न्याय प्रणाली की जीत के रूप में देख रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि कानून किसी भी व्यक्ति पर, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, लागू हो सकता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: किन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें? (Relevance for UPSC: Which Issues to Focus On?)

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों (प्रारंभिक, मुख्य और व्यक्तित्व परीक्षण) के लिए कई महत्वपूर्ण पहलुओं को छूता है।

1. भारतीय संविधान और कानून (Indian Constitution and Law)

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14): यह मामला दर्शाता है कि कानून के समक्ष सभी समान हैं, चाहे उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21): अनुच्छेद 21 सिर्फ शारीरिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है, जो यौन उत्पीड़न के कारण प्रभावित होता है।

महिला अधिकार और कानून:

  • भारतीय दंड संहिता (IPC): बलात्कार (धारा 376), यौन उत्पीड़न (धारा 354), पीछा करना (धारा 354D), और अन्य संबंधित धाराओं के तहत अपराध।
  • यौन उत्पीड़न से कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013 (POSH Act): हालांकि यह मामला कार्यस्थल से संबंधित प्रत्यक्ष रूप से नहीं है, यह अधिनियम महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम: यदि पीड़ित अनुसूचित जाति या जनजाति से हैं, तो यह अधिनियम भी लागू होता है, जो विशेष सुरक्षा और दंड का प्रावधान करता है।

2. न्यायपालिका की भूमिका (Role of the Judiciary)

निष्पक्षता और स्वतंत्रता: एक स्वतंत्र न्यायपालिका सत्ताधारी वर्ग के खिलाफ भी न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस मामले में अदालत का फैसला इसी स्वतंत्रता का प्रमाण है।

आपराधिक न्याय प्रणाली: जांच (एसआईटी), अभियोजन (Prosecution), और सजा (Conviction) की पूरी प्रक्रिया को समझना।

साक्ष्य अधिनियम: गवाहों के बयान, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, फोरेंसिक रिपोर्ट आदि कैसे अदालत में प्रस्तुत किए जाते हैं।

3. लैंगिक समानता और महिला सुरक्षा (Gender Equality and Women’s Safety)

MeToo आंदोलन का प्रभाव: इस तरह के मामले अक्सर MeToo जैसे आंदोलनों को बल देते हैं, जो महिलाओं को आगे आने और अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

महिला सशक्तिकरण: कानूनी सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण महिलाओं को शोषण के खिलाफ खड़े होने की शक्ति देता है।

समाज की भूमिका: रूढ़िवादी सोच को बदलना, पीड़ितों पर दोषारोपण (Victim Blaming) को रोकना और समाज में सुरक्षा का माहौल बनाना।

4. राजनीति और नैतिकता (Politics and Ethics)

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता: राजनेताओं और सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों से उच्च नैतिक मानकों की उम्मीद की जाती है। यह मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि व्यक्तिगत आचरण का उनके सार्वजनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

पॉवर इक्वेशन और दुरुपयोग: कैसे शक्ति का दुरुपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जा सकता है, और कैसे सत्ताधारी घराने के लोग जांच को प्रभावित करने का प्रयास कर सकते हैं।

जवाबदेही: राजनेताओं और उनके परिवारों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की प्रक्रिया।

5. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations – यदि लागू हो)

प्रत्यर्पण संधियाँ: यदि आरोपी दूसरे देश में भाग जाता है, तो प्रत्यर्पण की प्रक्रिया भारत और उस देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों और संधियों पर निर्भर करती है।

अंतर्राष्ट्रीय कानून: गंभीर अपराधों के मामले में न्याय प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।

मामले के विभिन्न पहलू और चुनौतियाँ (Different Aspects of the Case and Challenges)

यह मामला केवल एक व्यक्तिगत अपराध का मामला नहीं है, बल्कि इसमें कई जटिलताएं और चुनौतियाँ शामिल हैं:

1. राजनीतिक संरक्षण का आरोप (Allegations of Political Patronage)

शुरुआत में, यह आरोप लगे कि राजनीतिक प्रभाव के कारण मामले को दबाया जा रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों और पीड़ितों को धमकाने के प्रयास भी सामने आए। यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक पहुंच न्याय प्रक्रिया को बाधित कर सकती है।

2. साक्ष्य का संग्रह और सुरक्षा (Collection and Preservation of Evidence)

यौन उत्पीड़न के मामलों में, विशेष रूप से जब आरोपी शक्तिशाली होते हैं, तो साक्ष्य एकत्र करना और उन्हें सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती होती है। इसमें फोरेंसिक साक्ष्य, डिजिटल साक्ष्य (जैसे वीडियो), और गवाहों के बयान शामिल हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक संभाला जाना चाहिए।

3. पीड़ितों का सामना (Victims’ Ordeal)

पीड़ितों को न केवल शारीरिक और मानसिक आघात से गुजरना पड़ता है, बल्कि उन्हें सामाजिक कलंक, सार्वजनिक जांच और कानूनी प्रक्रिया की लंबी और थकाऊ यात्रा का भी सामना करना पड़ता है। उन्हें बार-बार अपने दर्दनाक अनुभवों को दोहराना पड़ता है, जो भावनात्मक रूप से बहुत कठिन होता है।

4. प्रत्यर्पण की प्रक्रिया (Extradition Process)

प्रज्वल रेवन्ना के जर्मनी भागने के बाद, उनका प्रत्यर्पण एक जटिल कानूनी और कूटनीतिक प्रक्रिया थी। प्रत्यर्पण संधियों, सबूतों की पर्याप्तता और जर्मनी के कानूनी ढांचे के अनुपालन जैसे कई कारकों पर विचार किया गया।

5. मुआवजे की भूमिका (Role of Compensation)

अदालत द्वारा ₹7 लाख के हर्जाने का आदेश न्याय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल पीड़िता को हुए नुकसान की आंशिक भरपाई करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि ऐसे अपराधों की आर्थिक कीमत भी होती है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कई बार मुआवजे की राशि अपराध की गंभीरता के मुकाबले अपर्याप्त लग सकती है।

आगे की राह: भविष्य के लिए सबक (The Way Forward: Lessons for the Future)

प्रज्वल रेवन्ना मामले का फैसला भविष्य के लिए कई महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है:

  1. कानून के शासन को मजबूत करना: यह मामला इस बात का सशक्त प्रमाण है कि कानून सर्वोच्च है और किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
  2. महिला सुरक्षा को प्राथमिकता: सरकार और समाज दोनों को महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके लिए सख्त कानूनों के प्रवर्तन, त्वरित न्याय और सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है।
  3. न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी: ऐसे गंभीर मामलों में न्याय जितनी जल्दी मिले, उतना ही बेहतर होता है। न्याय में देरी अन्याय के समान है। न्यायिक सुधारों की आवश्यकता है ताकि ऐसी जांचें और मुकदमे तेजी से पूरे हो सकें।
  4. राजनीतिक जवाबदेही: राजनेताओं और राजनीतिक परिवारों से उच्च नैतिक आचरण की उम्मीद की जानी चाहिए। ऐसे मामलों से राजनीतिक दलों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने सदस्यों के आचरण को सुनिश्चित करें।
  5. जागरूकता और सशक्तिकरण: महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना और उन्हें शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है। MeToo जैसे आंदोलन इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

एक उदाहरण (Analogy):
इस मामले को ऐसे समझ सकते हैं जैसे किसी घर का मालिक (राजनेता) अपने नौकर (पीड़ित) का शोषण करता है। घर का मालिक अपनी ताकत (राजनीतिक शक्ति) का इस्तेमाल करके नौकर को धमकाता और नियंत्रित करता है। जब नौकर आखिरकार पुलिस (एसआईटी) के पास जाता है, तो मालिक बाहर भागने की कोशिश करता है। लेकिन अंततः, कानून (अदालत) मालिक को पकड़ता है, उसे सजा देता है और मालिक को नौकर को हुए नुकसान की भरपाई करने का आदेश देता है। यह दिखाता है कि चाहे मालिक कितना भी धनी या शक्तिशाली क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं है।

यह फैसला न केवल पीड़ितों के लिए न्याय की एक किरण है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है कि यौन अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह कानून, नैतिकता, राजनीति और सामाजिक न्याय के बीच जटिल संबंधों को समझने का एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: प्रज्वल रेवन्ना किस राजनीतिक दल से जुड़े थे?

    (a) भारतीय जनता पार्टी (BJP)
    (b) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
    (c) जनता दल (सेक्युलर) (JDS)
    (d) आम आदमी पार्टी (AAP)

    उत्तर: (c) जनता दल (सेक्युलर) (JDS)

    व्याख्या: प्रज्वल रेवन्ना जनता दल (सेक्युलर) के प्रमुख नेता थे।

  2. प्रश्न: प्रज्वल रेवन्ना पर मुख्य रूप से किस प्रकार के आरोप लगे थे?
    (a) भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी
    (b) यौन उत्पीड़न और बलात्कार
    (c) हत्या और साजिश
    (d) देशद्रोह और आतंकवाद

    उत्तर: (b) यौन उत्पीड़न और बलात्कार

    व्याख्या: मामले में मुख्य आरोप यौन उत्पीड़न और बलात्कार से संबंधित थे।

  3. प्रश्न: प्रज्वल रेवन्ना किस पूर्व राष्ट्रीय नेता के पोते हैं?
    (a) इंदिरा गांधी
    (b) अटल बिहारी वाजपेयी
    (c) एचडी देवेगौड़ा
    (d) मनमोहन सिंह

    उत्तर: (c) एचडी देवेगौड़ा

    व्याख्या: प्रज्वल रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते हैं।

  4. प्रश्न: यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच के लिए किस विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया था?
    (a) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)
    (b) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
    (c) कर्नाटक राज्य पुलिस की एसआईटी
    (d) प्रवर्तन निदेशालय (ED)

    उत्तर: (c) कर्नाटक राज्य पुलिस की एसआईटी

    व्याख्या: कर्नाटक सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था।

  5. प्रश्न: अदालत ने प्रज्वल रेवन्ना को दोषी ठहराए जाने पर क्या सजा सुनाई?
    (a) 5 साल का कारावास
    (b) आजीवन कारावास (उम्र कैद)
    (c) 10 साल का कारावास
    (d) जुर्माना और 2 साल का कारावास

    उत्तर: (b) आजीवन कारावास (उम्र कैद)

    व्याख्या: अदालत ने प्रज्वल रेवन्ना को यौन उत्पीड़न के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई।

  6. प्रश्न: अदालत ने पीड़िता को कितना हर्जाना देने का आदेश दिया?
    (a) ₹2 लाख
    (b) ₹5 लाख
    (c) ₹7 लाख
    (d) ₹10 लाख

    उत्तर: (c) ₹7 लाख

    व्याख्या: अदालत ने पीड़िता को ₹7 लाख का हर्जाना देने का आदेश दिया।

  7. प्रश्न: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद “कानून के समक्ष समानता” की गारंटी देता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 15
    (c) अनुच्छेद 16
    (d) अनुच्छेद 17

    उत्तर: (a) अनुच्छेद 14

    व्याख्या: अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार की गारंटी देता है।

  8. प्रश्न: POSH Act का पूर्ण रूप क्या है?
    (a) Protection of Persons of Sexual Harassment Act
    (b) Prevention of Offensive Sexual Harm Act
    (c) Protection of Offenders of Sexual Harassment Act
    (d) Prevention of Offensive Sexual Harassment Act

    उत्तर: (a) Protection of Persons of Sexual Harassment Act

    व्याख्या: POSH Act का पूर्ण रूप Protection of Persons of Sexual Harassment Act है।

  9. प्रश्न: प्रज्वल रेवन्ना के मामले में किस देश से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शामिल थी?
    (a) फ्रांस
    (b) जर्मनी
    (c) संयुक्त अरब अमीरात
    (d) यूनाइटेड किंगडम

    उत्तर: (b) जर्मनी

    व्याख्या: प्रज्वल रेवन्ना ने देश से बाहर जर्मनी में शरण ली थी, जिससे प्रत्यर्पण का मामला उठा।

  10. प्रश्न: किसी गंभीर अपराध के मामले में, जब आरोपी देश छोड़कर भाग जाता है, तो उसे वापस लाने के लिए किस कानूनी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है?
    (a) निर्वासन (Deportation)
    (b) प्रत्यर्पण (Extradition)
    (c) वीज़ा रद्द करना
    (d) दूतावास द्वारा वापसी

    उत्तर: (b) प्रत्यर्पण (Extradition)

    व्याख्या: प्रत्यर्पण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक देश किसी दूसरे देश द्वारा वांछित व्यक्ति को सौंपता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: प्रज्वल रेवन्ना मामले के आलोक में, भारत में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे, न्यायिक हस्तक्षेप और सामाजिक जागरूकता के महत्व का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न: सार्वजनिक जीवन में नैतिकता की गिरती स्थिति और राजनेताओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों पर चर्चा करें। प्रज्वल रेवन्ना मामले को एक केस स्टडी के रूप में उपयोग करते हुए, जवाबदेही तंत्र को मजबूत करने के उपायों का सुझाव दें। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न: भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में न्याय में देरी (Delay in Justice) एक गंभीर समस्या है। इस मामले के संदर्भ में, यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों के पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने की चुनौतियों और संभावित समाधानों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न: “कानून के समक्ष सभी समान हैं” – इस कथन का मूल्यांकन प्रज्वल रेवन्ना जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों के संदर्भ में करें। राजनीतिक प्रभाव न्याय प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकता है और इसे कैसे रोका जा सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)

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