पूर्वोत्तर-पूर्वी भारत में 7 दिनों की मूसलाधार बारिश: क्या है तैयारी? जानें आगामी मानसून का पूरा सच
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा जारी की गई एक महत्वपूर्ण चेतावनी के अनुसार, पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के बड़े हिस्से अगले सात दिनों तक भारी से अत्यधिक भारी बारिश का सामना कर सकते हैं। यह मौसमी घटना, जो अगस्त और सितंबर के महीने में अपने चरम पर पहुँचने की उम्मीद है, न केवल इन क्षेत्रों की जीवन रेखाओं को प्रभावित करती है, बल्कि यह यूपीएससी (UPSC) परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थिति भूस्खलन, बाढ़, और जलभराव जैसी प्राकृतिक आपदाओं को ट्रिगर कर सकती है, जिससे बुनियादी ढाँचा, कृषि, और सार्वजनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। ऐसे में, इस मौसमी पैटर्न को समझना, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों का विश्लेषण करना, और इसके प्रभावों से निपटने की तैयारी के बारे में जानना, सामान्य ज्ञान के साथ-साथ परीक्षा के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
भारत का मानसून: एक अनवरत गाथा
मानसून, भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनदायिनी है। यह न केवल कृषि को संचालित करता है, बल्कि हमारे समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में भी गहराई से समाया हुआ है। पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत, विशेष रूप से, मानसूनी वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर हैं, लेकिन यही क्षेत्र अक्सर अतिवृष्टि और उससे जुड़ी आपदाओं का भी शिकार होते हैं। इस वर्ष, अगस्त और सितंबर के महीने में भारी बारिश का अनुमान, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व और पूर्वी क्षेत्रों के लिए, कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
भारी बारिश का वैज्ञानिक आधार: क्या हो रहा है?
IMD की चेतावनी एक सामान्य मौसमी पैटर्न से परे एक विशिष्ट घटना की ओर इशारा करती है। इस प्रकार की भारी बारिश के पीछे कई मौसम संबंधी कारक जिम्मेदार हो सकते हैं:
- निम्न दबाव क्षेत्र (Low-Pressure Systems): बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव क्षेत्र अक्सर मानसून के दौरान मजबूत होते हैं और अपने साथ भारी मात्रा में नमी लाते हैं। ये क्षेत्र जब तटीय इलाकों से टकराते हैं, तो व्यापक और तीव्र वर्षा का कारण बनते हैं।
- मानसून ट्रफ (Monsoon Trough): मानसून ट्रफ, या मानसून के निम्न दबाव का अक्ष, भारत के मैदानी इलाकों पर फैला हुआ है। जब यह अक्ष हिमालय की तलहटी के करीब उत्तर की ओर खिसकता है, तो यह उत्तर-पूर्व और पूर्वी भारत में अधिक वर्षा को बढ़ावा देता है।
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) का प्रभाव: हालाँकि पश्चिमी विक्षोभ मुख्य रूप से उत्तर भारत को प्रभावित करते हैं, कभी-कभी वे हवाओं के पैटर्न को इस तरह से बदल सकते हैं कि वे बंगाल की खाड़ी से नमी को पूर्व की ओर धकेलते हैं, जिससे पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में बारिश बढ़ जाती है।
- स्थानीय मौसम प्रणाली (Local Weather Systems): स्थानीय भौगोलिक स्थितियाँ, जैसे कि पहाड़ियों की उपस्थिति, संवहनीय वर्षा (convective rainfall) को बढ़ा सकती हैं, जिससे दोपहर या शाम के समय अचानक और तीव्र बौछारें पड़ सकती हैं।
- समुद्र की सतह का तापमान (Sea Surface Temperature – SST): बंगाल की खाड़ी के बढ़े हुए SST, वाष्पीकरण को बढ़ाते हैं, जिससे वायुमंडल में अधिक नमी पहुँचती है और वर्षा की तीव्रता बढ़ती है।
उपमा: आप इसे ऐसे समझ सकते हैं जैसे एक बड़ा ‘गीला स्पंज’ (बंगाल की खाड़ी) सूर्य की गर्मी से संतृप्त हो जाता है। जब यह स्पंज हवाओं (मानसून ट्रफ, निम्न दबाव) द्वारा ऊपर उठाया जाता है, तो यह भारी मात्रा में पानी (बारिश) गिराता है।
पूर्वोत्तर-पूर्वी भारत: एक संवेदनशील क्षेत्र
यह क्षेत्र भारत की भौगोलिक विविधता और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है।
- भौगोलिक विशेषताएँ: हिमालय की तलहटी, घने जंगल, नदियाँ और ऊँची पहाड़ियाँ इस क्षेत्र को भूस्खलन और अचानक बाढ़ (flash floods) के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं।
- नदी प्रणालियाँ: ब्रह्मपुत्र, बराक, और अन्य प्रमुख नदियाँ, जो अक्सर अपने साथ भारी मात्रा में पानी लाती हैं, निचले इलाकों में बाढ़ का कारण बन सकती हैं, खासकर जब भारी बारिश कई दिनों तक जारी रहे।
- पारिस्थितिकी: यह क्षेत्र जैव विविधता का एक हॉटस्पॉट है, लेकिन तीव्र वर्षा और बाढ़ वनस्पति, वन्यजीवों और उनके आवासों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
अगले सात दिनों का अलर्ट: क्या उम्मीद करें?
IMD द्वारा जारी ‘अगले सात दिनों’ की चेतावनी का मतलब है कि सामान्य से काफी अधिक वर्षा की उम्मीद है, जो कई स्थानों पर ‘भारी’ (heavy: 64.5 mm से 115.5 mm प्रति दिन), ‘बहुत भारी’ (very heavy: 115.6 mm से 204.4 mm प्रति दिन), या ‘अत्यधिक भारी’ (extremely heavy: 204.5 mm से अधिक प्रति दिन) की श्रेणी में आ सकती है।
संभावित प्रभाव:
- बाढ़: नदियों का जलस्तर बढ़ना, निचले इलाकों में पानी का जमाव, और बड़े पैमाने पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बाढ़।
- भूस्खलन: पहाड़ी और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में मिट्टी का खिसकना, सड़कों को अवरुद्ध करना और समुदायों को अलग-थलग करना।
- बुनियादी ढाँचा: सड़कें, पुल, बिजली लाइनें और संचार नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
- कृषि: फसलें पानी में डूब सकती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य: जलजनित रोगों (जैसे डायरिया, टाइफाइड) का प्रकोप बढ़ सकता है।
- यातायात: हवाई, रेल और सड़क यातायात में बाधा आ सकती है।
केस स्टडी: 2018 केरल बाढ़
2018 में केरल में आई अभूतपूर्व बाढ़, जिसमें भारी वर्षा के कारण नदियों का उफान और बांधों से पानी छोड़ना शामिल था, ने भारत के कई क्षेत्रों में भारी बारिश के विनाशकारी प्रभावों को उजागर किया। इस घटना से सबक सीखा गया है कि कैसे मानसून की चरम घटनाओं के लिए बेहतर तैयारी की आवश्यकता है।
अगस्त-सितंबर में ‘जमकर बरसेंगे बदरा’: दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य
अगस्त और सितंबर वह समय है जब मानसून अपनी पूरी शक्ति पर होता है, और इन महीनों में भारी वर्षा की भविष्यवाणी अधिक गंभीर चिंता का विषय है।
- मानसून का सामान्य से अधिक सक्रिय होना: इन महीनों में सामान्य से अधिक वर्षा का मतलब है कि खरीफ की फसल पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
- सूखा राहत का संतुलन: हालाँकि कुछ क्षेत्रों में सूखे की चिंता रहती है, वहीं दूसरी ओर अतिवृष्टि उन इलाकों के लिए चिंता का विषय बन जाती है जो अक्सर बाढ़ का सामना करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: शोध बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति दोनों बढ़ सकती हैं। तीव्र वर्षा की घटनाएँ (extreme rainfall events) अधिक सामान्य हो सकती हैं।
तैयारी और प्रबंधन: क्या हैं उपाय?
ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है:
1. सरकारी स्तर पर:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): IMD और अन्य एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली चेतावनियों को प्रभावी ढंग से स्थानीय स्तर तक पहुँचाना।
- आपदा प्रतिक्रिया बल (Disaster Response Forces): NDRF, SDRF और स्थानीय प्रशासन की टीमों को तैयार रखना।
- बुनियादी ढाँचा: बाढ़-रोधी संरचनाएँ, मजबूत पुल, और तटबंधों का निर्माण और रखरखाव।
- नदी प्रबंधन: बांधों का सुरक्षित संचालन, जल निकासी प्रणालियों की सफाई, और नदियों के गाद (silt) को हटाना।
- शहरी नियोजन: जलभराव को रोकने के लिए उचित शहरी नियोजन और जल निकासी व्यवस्था।
- जन जागरूकता अभियान: लोगों को सुरक्षित रहने के तरीकों और सरकारी निर्देशों का पालन करने के बारे में शिक्षित करना।
2. सामुदायिक स्तर पर:
- सामुदायिक जागरूकता: स्थानीय समुदायों को संभावित खतरों और सुरक्षित स्थानों के बारे में जानकारी देना।
- आपदा किट: आवश्यक वस्तुओं (भोजन, पानी, दवाएं, टॉर्च) की किट तैयार रखना।
- सुरक्षित स्थानों की पहचान: ऊँचे और सुरक्षित स्थानों की पहचान करना जहाँ बाढ़ या भूस्खलन की स्थिति में शरण ली जा सके।
- निकासी योजना: परिवार और समुदाय के लिए एक निकासी योजना बनाना।
3. पर्यावरणीय प्रबंधन:
- वनीकरण: पहाड़ी ढलानों पर पेड़ लगाना ताकि मिट्टी का कटाव रोका जा सके।
- वन भूमि का संरक्षण: वनों की कटाई रोकना, जो भूस्खलन को बढ़ा सकती है।
- भूमि उपयोग नियोजन: बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को विनियमित करना।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह विषय विभिन्न UPSC परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है:
- प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- भूगोल: मानसून, वर्षा के प्रकार, भारतीय नदियाँ, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)।
- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी, भूस्खलन, बाढ़।
- समसामयिक घटनाएँ: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वर्तमान घटनाएँ।
- मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-I (भूगोल): भौतिक भूगोल, मानसून की प्रकृति, जल-संसाधन और जल-वितरण।
- GS-III (पर्यावरण, आंतरिक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन):
- आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं की पहचान, रोकथाम, शमन, पुनर्वास और पुनर्निर्माण।
- आंतरिक सुरक्षा: प्राकृतिक आपदाओं का आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव, सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रभाव।
- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण।
- GS-II (शासन): सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास, स्वास्थ्य।
UPSC में प्रश्न किस प्रकार पूछे जा सकते हैं?
- विश्लेषणात्मक: “भारत के पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में भारी बारिश की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के पीछे के कारणों का विश्लेषण करें और इसके सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा करें।”
- नीति-उन्मुख: “जलवायु परिवर्तन के आलोक में, भारत को मानसून की चरम घटनाओं से निपटने के लिए अपनी आपदा प्रबंधन नीतियों को कैसे मजबूत करना चाहिए? उदाहरण सहित समझाएं।”
- समस्या-समाधान: “पूर्वोत्तर भारत में भूस्खलन और बाढ़ को कम करने के लिए प्रभावी शमन रणनीतियों पर एक रिपोर्ट तैयार करें।”
निष्कर्ष
पूर्वोत्तर-पूर्वी भारत में भारी बारिश का अलर्ट एक गंभीर मौसमी घटना है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह न केवल आम जनता के लिए बल्कि नीति निर्माताओं, प्रशासकों और निश्चित रूप से यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस घटना को समझना, इसके कारणों का विश्लेषण करना, और इसके प्रभावों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियों की वकालत करना, आज की दुनिया में एक जिम्मेदार नागरिक और एक सक्षम प्रशासक बनने के लिए आवश्यक है। आगामी सप्ताहों में होने वाली बारिश पर कड़ी नजर रखना और सभी आवश्यक सावधानियां बरतना, हम सभी की जिम्मेदारी है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्न में से कौन सा कारक बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव क्षेत्रों को मजबूत करके भारतीय उपमहाद्वीप में भारी वर्षा को बढ़ावा दे सकता है?
- पश्चिमी विक्षोभ
- हिंद महासागर द्विध्रुवीय (Indian Ocean Dipole)
- समुद्र की सतह का बढ़ा हुआ तापमान (SST)
- मैडेन-जूलियन दोलन (Madden-Julian Oscillation)
- प्रश्न 2: भारत में मानसून ट्रफ (Monsoon Trough) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह भारतीय उपमहाद्वीप पर निम्न दबाव का एक विस्तारित अक्ष है।
- यह आमतौर पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर फैला होता है।
- जब यह अक्ष हिमालय की तलहटी के करीब उत्तर की ओर खिसकता है, तो यह उत्तर-पश्चिम भारत में भारी वर्षा को बढ़ावा देता है।
- केवल 1
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1, 2 और 3
- प्रश्न 3: पूर्वोत्तर भारत में भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक जिम्मेदार नहीं है?
- तेज ढलान वाली स्थलाकृति
- भारी और तीव्र वर्षा
- वनों की कटाई
- स्थिर और अनाच्छादित (unweathered) चट्टानी संरचनाएं
- प्रश्न 4: भारत में ‘चरम वर्षा की घटनाएँ’ (Extreme Rainfall Events) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- इन घटनाओं में एक दिन में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण इनकी आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ने की संभावना है।
- ये घटनाएँ अक्सर बाढ़ और भूस्खलन का कारण बनती हैं।
- केवल 1
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1, 2 और 3
- प्रश्न 5: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा ‘भारी वर्षा’ (Heavy Rainfall) की क्या परिभाषा है?
- 24 घंटे में 70 मिमी से 120 मिमी तक
- 24 घंटे में 64.5 मिमी से 115.5 मिमी तक
- 24 घंटे में 100 मिमी से 150 मिमी तक
- 24 घंटे में 120 मिमी से 200 मिमी तक
- प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा राज्य पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा है और अक्सर भारी मानसून वर्षा से प्रभावित होता है?
- गुजरात
- राजस्थान
- मेघालय
- महाराष्ट्र
- प्रश्न 7: ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत, निम्नलिखित में से कौन सी संस्था प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी है?
- भारतीय सेना
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
- नीति आयोग
- प्रश्न 8: ‘फ्लैश फ्लड’ (Flash Flood) का क्या अर्थ है?
- लंबे समय तक होने वाली धीमी गति की बाढ़।
- कम समय में अचानक और तीव्र वर्षा के कारण आने वाली बाढ़।
- नदियों के बांधों से अचानक पानी छोड़े जाने से होने वाली बाढ़।
- तटीय क्षेत्रों में ज्वार के कारण आने वाली बाढ़।
- प्रश्न 9: खरीफ की फसल के संबंध में, अगस्त-सितंबर में भारी वर्षा का क्या प्रभाव हो सकता है?
- फसल की पैदावार में वृद्धि
- कटाई और भंडारण में आसानी
- फसल की गुणवत्ता में सुधार
- फसल का सड़ना और नुकसान
- प्रश्न 10: भारत का कौन सा राज्य, अपने ‘पूर्वोत्तर’ क्षेत्र में होने के बावजूद, भारी मानसून वर्षा के साथ-साथ सूखे की चपेट में भी रहता है?
- अरुणाचल प्रदेश
- असम
- मणिपुर
- (इनमें से कोई नहीं)
उत्तर: (c) समुद्र की सतह का बढ़ा हुआ तापमान (SST)
व्याख्या: बंगाल की खाड़ी के उच्च SST, वाष्पीकरण को बढ़ाते हैं, जिससे वायुमंडल में अधिक नमी पहुँचती है और वर्षा की तीव्रता बढ़ती है। अन्य कारक भी मौसमी पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन SST प्रत्यक्ष रूप से नमी की उपलब्धता को बढ़ाता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
उत्तर: (b) 1 और 2
व्याख्या: मानसून ट्रफ निम्न दबाव का एक अक्ष है जो आमतौर पर पश्चिम से पूर्व की ओर फैला होता है। जब यह उत्तर की ओर खिसकता है, तो यह हिमालय की तलहटी में अधिक वर्षा को बढ़ावा देता है, न कि उत्तर-पश्चिम भारत में।
उत्तर: (d) स्थिर और अनाच्छादित (unweathered) चट्टानी संरचनाएं
व्याख्या: स्थिर और अनाच्छादित चट्टानी संरचनाएं भूस्खलन के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं। इसके विपरीत, अस्थिर, अपक्षयित (weathered) सामग्री और ढलान भूस्खलन के लिए अनुकूल होते हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीनों कथन चरम वर्षा की घटनाओं की विशेषताओं और जलवायु परिवर्तन के साथ उनके संबंध को सही ढंग से दर्शाते हैं।
उत्तर: (b) 24 घंटे में 64.5 मिमी से 115.5 मिमी तक
व्याख्या: IMD के अनुसार, भारी वर्षा 24 घंटे की अवधि में 64.5 मिमी से 115.5 मिमी के बीच होती है।
उत्तर: (c) मेघालय
व्याख्या: मेघालय, अपने चेरापूंजी और मासिनराम जैसे स्थानों के लिए जाना जाता है, जो दुनिया में सबसे अधिक वर्षा वाले स्थानों में से हैं, पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा है और भारी मानसून वर्षा से गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
उत्तर: (b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
व्याख्या: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीति, योजना और समन्वय के लिए शीर्ष वैधानिक निकाय है।
उत्तर: (b) कम समय में अचानक और तीव्र वर्षा के कारण आने वाली बाढ़।
व्याख्या: फ्लैश फ्लड आमतौर पर अचानक और तीव्र वर्षा के कारण नदियों या जलमार्गों में तेजी से जल स्तर बढ़ने से होती है, जो अक्सर पहाड़ी और खड़ी ढलान वाले क्षेत्रों में देखी जाती है।
उत्तर: (d) फसल का सड़ना और नुकसान
व्याख्या: खरीफ की फसलें, जो इन महीनों में परिपक्व हो रही होती हैं, अत्यधिक वर्षा के कारण पानी में डूब सकती हैं, जिससे जड़ों में सड़न, बीजों का अंकुरण और समग्र रूप से फसल का नुकसान हो सकता है।
उत्तर: (d) (इनमें से कोई नहीं)
व्याख्या: पूर्वोत्तर भारत के राज्य मुख्य रूप से भारी मानसून वर्षा से प्रभावित होते हैं, न कि सूखे से। जबकि कुछ अलग-थलग क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है, ‘सूखे की चपेट में रहना’ इन राज्यों की प्राथमिक समस्या नहीं है, जो आमतौर पर अतिवृष्टि से जुड़ी होती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारत के पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के पीछे के वैज्ञानिक कारणों का विस्तार से विश्लेषण करें। इन घटनाओं के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा करें और भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे को मजबूत करने के लिए सुझाई गई रणनीतियों का उल्लेख करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली मानसून की चरम घटनाओं (जैसे अत्यधिक वर्षा) से निपटने में भारत की तैयारियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं को कम करने के लिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यक शमन और अनुकूलन रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3: “मानसून भारत की जीवन रेखा है, लेकिन अतिवृष्टि कई क्षेत्रों के लिए एक निरंतर चुनौती बनी हुई है।” इस कथन के आलोक में, पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत में आगामी भारी बारिश के अलर्ट के संभावित परिणामों पर चर्चा करें। जल प्रबंधन, बुनियादी ढांचे की मजबूती और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रभावी उपायों का सुझाव दें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 4: आपदा प्रबंधन के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) के महत्व का वर्णन करें, विशेष रूप से भारत के पूर्वोत्तर जैसे भौगोलिक रूप से जटिल और आपदा-संवेदनशील क्षेत्रों में। IMD की भूमिका और चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधारों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)