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पुरी में दरिंदगी: 15 वर्षीय की मौत और सुस्त न्याय व्यवस्था पर तीखे सवाल

पुरी में दरिंदगी: 15 वर्षीय की मौत और सुस्त न्याय व्यवस्था पर तीखे सवाल

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में ओडिशा के पुरी में एक 15 वर्षीय नाबालिग के साथ हुई दरिंदगी की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। गंभीर रूप से घायल पीड़िता को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली एम्स ले जाया गया, जहाँ उसने दम तोड़ दिया। इस हृदय विदारक घटना ने न केवल महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाए हैं, बल्कि स्थानीय पुलिस की जांच की गति और प्रभावशीलता पर भी गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं, जिससे न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और तत्परता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।

यह घटना भारत में सामाजिक न्याय, कानून व्यवस्था, बाल अधिकारों और सुरक्षा तंत्र की प्रभावशीलता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करती है, जो UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत प्रासंगिक हैं। यह केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि एक प्रणालीगत विफलता का प्रतीक है, जिस पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है।

घटना का विस्तृत अवलोकन: क्यों यह मामला इतना गंभीर है?

यह मामला 15 वर्षीय एक निर्दोष जान के खोने का है, जिसे क्रूरतापूर्ण अपराध का शिकार होना पड़ा। पुरी जैसे पवित्र शहर में हुई इस घटना ने धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को भी ठेस पहुंचाई है। पीड़िता की नाजुक हालत के कारण उसे दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई। यह दर्शाता है कि घटना कितनी भयावह थी और शुरुआती इलाज कितना महत्वपूर्ण था।

मुख्य चिंताएँ:

  • अपराध की भयावहता: एक नाबालिग के साथ ऐसी दरिंदगी का होना सभ्य समाज के लिए कलंक है।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: पीड़िता को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली ले जाना पड़ा, जो स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाओं को दर्शाता है।
  • जांच की धीमी गति: पुलिस द्वारा की जा रही जांच की रफ्तार और उसके तरीकों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या समय रहते प्रभावी कदम उठाए गए?
  • न्याय मिलने में देरी: जब जांच ही सवालों के घेरे में हो, तो न्याय मिलने की प्रक्रिया पर भी शंकाएं उत्पन्न होना स्वाभाविक है।

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता: कौन से मुद्दे जुड़े हैं?

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  1. भारतीय समाज (GS-I): महिला सशक्तिकरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध, बाल अपराध, सामाजिक मुद्दे, लैंगिक समानता।
  2. शासन (GS-II): सरकार की नीतियाँ और विभिन्न वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं, विभिन्न संस्थानों की भूमिका और उत्तरदायित्व, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग।
  3. सुरक्षा (GS-III): आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यवस्था, अपराध निवारण, पुलिस सुधार।
  4. नैतिकता, सत्यनिष्ठा और योग्यता (GS-IV): सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, लोक सेवकों के लिए सत्यनिष्ठा, करुणा, सार्वजनिक नीति का नैतिक आयाम।
  5. निबंध (Essay): इस घटना पर आधारित निबंध जैसे “भारत में महिला सुरक्षा: एक बहुआयामी चुनौती”, “न्याय में देरी, न्याय का दमन”, या “बाल अधिकारों का संरक्षण: एक राष्ट्रीय अनिवार्यता”।
  6. साक्षात्कार (Interview): ऐसे मुद्दों पर अभ्यर्थी की समझ, संवेदनशीलता और समाधान-उन्मुख सोच का परीक्षण किया जाता है।

घटना का विश्लेषण: क्या हुआ, क्यों हुआ और कौन जिम्मेदार है?

पृष्ठभूमि (Background): पुरी में हुई यह घटना एक गंभीर अपराध की ओर इशारा करती है, जिसने स्थानीय प्रशासन और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाए हैं। किसी भी अपराध की जांच में पुलिस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है – साक्ष्य एकत्र करना, गवाहों के बयान दर्ज करना, अपराधियों को पकड़ना और अदालत में मजबूती से मुकदमा पेश करना।

मुख्य बिंदु (Key Points):

  • संदिग्ध की गिरफ्तारी: पुलिस ने कुछ संदिग्धों को पकड़ा है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया, उनसे पूछताछ और साक्ष्य एकत्र करने के तरीके सवालों के घेरे में हैं।
  • प्रारंभिक लापरवाही के आरोप: ऐसे आरोप हैं कि घटना के तुरंत बाद पुलिस ने मामले को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जितनी लेनी चाहिए थी, जिससे अपराधियों को भागने या सबूत मिटाने का मौका मिल गया।
  • पीड़िता का बयान और उपचार: पीड़िता के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया, उसके मेडिकल जांच की गुणवत्ता और उसे समय पर उचित उपचार दिलाने में हुई देरी, ये सभी बिंदु जांच के दायरे में हैं।
  • पुलिस की जवाबदेही: क्या पुलिस ने एफआईआर (FIR) समय पर दर्ज की? क्या उसने सभी आवश्यक कदम उठाए? क्या वह अपराध स्थल का ठीक से निरीक्षण कर पाई? ये वो सवाल हैं जो पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठ रहे हैं।

“न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है।” – यह कहावत इस घटना के संदर्भ में बेहद प्रासंगिक हो जाती है, जब जांच प्रक्रिया पर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा हो।

न्याय प्रणाली और पुलिस की भूमिका: क्या सुधार आवश्यक हैं?

यह घटना भारत की न्याय प्रणाली में व्याप्त कुछ गहरी समस्याओं को उजागर करती है, विशेष रूप से पुलिस सुधारों की आवश्यकता पर:

पुलिस सुधार (Police Reforms):

भारत में पुलिस बल औपनिवेशिक युग के कानूनों (जैसे भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861) से संचालित होता रहा है, जो आज की आधुनिक पुलिसिंग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (2006) जैसे कई ऐतिहासिक न्यायिक निर्णय पुलिस सुधारों की आवश्यकता पर जोर दे चुके हैं:

  • राज्य पुलिस प्रमुख की नियुक्ति: राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना।
  • पुलिस जवाबदेही: शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना।
  • अपराध जांच: जांच और कानून व्यवस्था बनाए रखने के कार्यों का पृथक्करण।
  • आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षण: फोरेंसिक विज्ञान, साइबर अपराध, पूछताछ तकनीकों में प्रशिक्षण।
  • जांच की गुणवत्ता: साक्ष्य-आधारित और वैज्ञानिक तरीके से जांच सुनिश्चित करना।

न्याय प्रणाली की चुनौतियाँ (Challenges in the Justice System):

  • लंबित मामले: अदालतों में वर्षों से लंबित मामलों की बड़ी संख्या।
  • धीमी प्रक्रिया: सुनवाई, साक्ष्य प्रस्तुति और फैसले आने में अत्यधिक समय लगना।
  • संसाधनों की कमी: न्यायपालिका और पुलिस दोनों में संसाधनों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
  • जवाबदेही का अभाव: कुछ मामलों में, अधिकारियों द्वारा लापरवाही बरतने पर कार्रवाई की कमी।

महिला सुरक्षा और बाल अधिकार: एक राष्ट्रीय एजेंडा

यह घटना भारत में महिला सुरक्षा और बाल अधिकारों के संरक्षण की गंभीर कमी को दर्शाती है। POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम, 2012 जैसे सख्त कानून मौजूद होने के बावजूद, ऐसे अपराधों का होना चिंताजनक है।

POCSO अधिनियम, 2012:

यह अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था। इसके तहत:

  • विशेष अदालतों की स्थापना।
  • जांच के लिए विशेष अधिकारी।
  • पीड़ित के लिए गोपनीय और मनोवैज्ञानिक समर्थन।
  • अपराधों के लिए कठोर दंड।

चुनौतियाँ:

  • अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन: क्या विशेष अदालतों में पर्याप्त न्यायाधीश और कर्मचारी हैं? क्या जांच अधिकारी प्रशिक्षित हैं?
  • पुलिस की संवेदनशीलता: POCSO मामलों में पुलिस का व्यवहार अक्सर संवेदनशील नहीं होता, जिससे पीड़ित और भी आहत होते हैं।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता और स्वयं बच्चों के बीच POCSO अधिनियम और बाल अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी।

शासन और जवाबदेही: सरकार की भूमिका

राज्य सरकार की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों, विशेषकर कमजोर वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। इस मामले में, राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर कई सवाल उठते हैं:

  • कानून और व्यवस्था बनाए रखना: क्या राज्य सरकार अपराधों को रोकने और नियंत्रित करने में प्रभावी रही है?
  • न्याय सुनिश्चित करना: क्या राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है कि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिले?
  • योजनाओं का क्रियान्वयन: महिला सुरक्षा और बाल संरक्षण से संबंधित सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर कितना प्रभावी क्रियान्वयन हो रहा है?
  • प्रशासनिक जवाबदेही: यदि किसी स्तर पर प्रशासनिक चूक हुई है, तो क्या संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है?

आगे की राह: समाधान क्या हैं?

इस तरह की घटनाओं को भविष्य में रोकने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

  1. पुलिस सुधारों को प्राथमिकता: प्रकाश सिंह समिति की सिफारिशों का तत्काल और पूर्ण कार्यान्वयन।
  2. जांच एजेंसियों का सशक्तिकरण: फोरेंसिक लैब की क्षमता बढ़ाना, आधुनिक तकनीकों का उपयोग, और जांच अधिकारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण।
  3. POCSO अधिनियम का सख्ती से कार्यान्वयन: विशेष अदालतों में लंबित मामलों को प्राथमिकता देना, न्यायाधीशों और कर्मचारियों की नियुक्ति, और पुलिस को POCSO मामलों में संवेदनशील प्रशिक्षण देना।
  4. त्वरित न्याय: त्वरित सुनवाई और साक्ष्य-आधारित निर्णय सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक सुधार।
  5. सार्वजनिक जागरूकता अभियान: महिलाओं और बच्चों के अधिकारों, सुरक्षित व्यवहार और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया के बारे में जागरूकता फैलाना।
  6. मानवाधिकार आयोगों की भूमिका: राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे निकायों को सक्रिय रूप से निगरानी और हस्तक्षेप करना चाहिए।
  7. प्रौद्योगिकी का उपयोग: अपराध स्थल की मैपिंग, डिजिटल फोरेंसिक, और प्रभावी निगरानी प्रणाली के लिए तकनीक का उपयोग।
  8. संवेदनशील प्रतिक्रिया तंत्र: अपराधों की रिपोर्टिंग पर पुलिस और प्रशासन का त्वरित और संवेदनशील प्रतिक्रिया देना।

निष्कर्ष: न्याय की आस

पुरी में 15 वर्षीय नाबालिग की मृत्यु एक राष्ट्रीय त्रासदी है। यह घटना उन गंभीर कमियों को उजागर करती है जो हमारे समाज और शासन प्रणाली में मौजूद हैं। यह समय है कि हम केवल संवेदना व्यक्त करने से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाएं। पुलिस को अपनी जवाबदेही स्वीकार करनी होगी, न्यायपालिका को अपनी प्रक्रिया को तेज करना होगा, और सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सुरक्षा के वादे केवल कागजों तक सीमित न रहें। प्रत्येक नागरिक, विशेष रूप से बच्चे और महिलाएं, सुरक्षित और न्यायपूर्ण वातावरण के हकदार हैं। जब तक न्याय की प्रक्रिया तेज, पारदर्शी और प्रभावी नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएँ समाज पर एक गहरे घाव की तरह बनी रहेंगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: पुरी में हाल ही में हुई घटना में किस केंद्रीय अधिनियम के कार्यान्वयन और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं?

    (a) भारतीय दंड संहिता, 1860

    (b) यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012

    (c) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

    (d) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

    उत्तर: (b) यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012

    व्याख्या: यह घटना एक नाबालिग से जुड़े यौन अपराध की ओर इशारा करती है, जिसके लिए POCSO अधिनियम, 2012 विशेष रूप से लागू होता है। पुलिस की जांच की गति और गुणवत्ता पर सवाल POCSO मामलों में उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाते हैं।
  2. प्रश्न 2: भारत में पुलिस सुधारों से संबंधित निम्नलिखित में से कौन सी न्यायपालिका की एक प्रमुख सिफारिश है?

    (a) पुलिस प्रमुख की नियुक्ति में पूर्ण राजनीतिक स्वायत्तता।

    (b) जांच और कानून व्यवस्था बनाए रखने के कार्यों का पूर्ण एकीकरण।

    (c) पुलिस के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का गठन।

    (d) पुलिस बल का आकार दस गुना बढ़ाना।

    उत्तर: (c) पुलिस के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का गठन।

    व्याख्या: प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जवाबदेही के लिए शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी।
  3. प्रश्न 3: POCSO अधिनियम, 2012 के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?

    1. यह बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाता है।

    2. इसमें विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान है।

    3. यह सभी प्रकार के बाल श्रम को अपराध मानता है।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b) 1 और 2

    व्याख्या: POCSO अधिनियम विशेष रूप से यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा से संबंधित है और इसमें विशेष अदालतों का प्रावधान है। यह बाल श्रम को सीधे तौर पर अपराध नहीं मानता।
  4. प्रश्न 4: किसी मामले में “न्याय में देरी, न्याय से इनकार” इस कथन से क्या तात्पर्य है?

    (a) त्वरित न्याय की आवश्यकता पर बल देना।

    (b) न्यायपालिका की कार्यक्षमता पर सवाल उठाना।

    (c) अपराधों को कम करने के उपायों को लागू करना।

    (d) उपरोक्त सभी।

    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी।

    व्याख्या: यह कथन न्याय प्रक्रिया में लगने वाले अत्यधिक समय के नकारात्मक प्रभावों को दर्शाता है, जिसमें देरी के कारण पीड़ित को न्याय मिलने की संभावना कम हो जाती है, या वह उस समय तक महत्व खो देता है, और यह न्यायपालिका की अक्षमता को भी दर्शाता है।
  5. प्रश्न 5: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की निम्नलिखित में से किस प्रकार की शक्तियों के तहत, NHRC पुरी मामले जैसी घटनाओं में स्वतः संज्ञान ले सकता है?

    (a) सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सभी शक्तियों के साथ एक दीवानी न्यायालय की शक्ति।

    (b) केवल प्रारंभिक जांच की शक्ति।

    (c) केवल पीड़ितों से शिकायत प्राप्त करने की शक्ति।

    (d) केवल सरकार को सलाह देने की शक्ति।

    उत्तर: (a) सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सभी शक्तियों के साथ एक दीवानी न्यायालय की शक्ति।

    व्याख्या: NHRC को मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में स्वतः संज्ञान लेने और जांच करने की शक्ति है, जिसमें उसे दीवानी न्यायालय जैसी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  6. प्रश्न 6: “आंतरिक सुरक्षा” के संदर्भ में, पुरी जैसी घटना निम्नलिखित में से किस श्रेणी के तहत आती है?

    (a) सीमा पार आतंकवाद

    (b) संगठित अपराध

    (c) कानून और व्यवस्था का पतन

    (d) इको-टेररिज्म

    उत्तर: (c) कानून और व्यवस्था का पतन

    व्याख्या: एक नाबालिग के साथ जघन्य अपराध और उस पर पुलिस की जांच की गति पर सवाल कानून व्यवस्था की स्थिति और उसके प्रभावी कार्यान्वयन से संबंधित है।
  7. प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा संस्थान बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए भारत में एक वैधानिक निकाय है?

    (a) राष्ट्रीय महिला आयोग

    (b) केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड

    (c) राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)

    (d) किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) बोर्ड

    उत्तर: (c) राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)

    व्याख्या: NCPCR एक वैधानिक निकाय है जो बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए काम करता है।
  8. प्रश्न 8: पुरी घटना के संदर्भ में, ‘पुलिस जवाबदेही’ का अर्थ क्या है?

    1. पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष और कुशल निष्पादन।

    2. नागरिकों के प्रति पुलिस का उत्तरदायी होना।

    3. पुलिस के कार्यों की नियमित समीक्षा और निगरानी।

    सही कूट का प्रयोग कर उत्तर दें:

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (d) 1, 2 और 3

    व्याख्या: पुलिस जवाबदेही में उसके प्रदर्शन, नागरिकों के प्रति उत्तरदायित्व और निगरानी तंत्र सभी शामिल हैं।
  9. प्रश्न 9: यदि पुरी घटना के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) जांच शुरू करता है, तो यह मुख्य रूप से किस अधिनियम के तहत कार्य करेगा?

    (a) राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990

    (b) POCSO अधिनियम, 2012

    (c) महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013

    (d) घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005

    उत्तर: (a) राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990

    व्याख्या: राष्ट्रीय महिला आयोग अपने अधिनियम के तहत महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा से संबंधित मामलों की जांच और उन पर कार्रवाई करता है।
  10. प्रश्न 10: पुरी घटना से किस प्रकार की “प्रणालीगत विफलता” (Systemic Failure) का संकेत मिलता है?

    (a) केवल स्थानीय पुलिस की अक्षमता।

    (b) कानून प्रवर्तन, न्यायिक प्रक्रिया और सामाजिक सुरक्षा जाल में अंतराल।

    (c) केवल स्वास्थ्य सेवाओं की कमी।

    (d) केवल मीडिया की भूमिका की विफलता।

    उत्तर: (b) केवल स्थानीय पुलिस की अक्षमता।

    व्याख्या: ऐसी घटनाएं अक्सर कई स्तरों पर विफलता को दर्शाती हैं, जिसमें प्रारंभिक प्रतिक्रिया, जांच, कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक समर्थन शामिल हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: पुरी में नाबालिग की मृत्यु और पुलिस जांच पर उठे सवालों के संदर्भ में, भारत में पुलिस सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर एक विश्लेषणात्मक निबंध लिखिए। अपने उत्तर में, प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों और उनके वर्तमान कार्यान्वयन की स्थिति पर भी प्रकाश डालें। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न: POCSO अधिनियम, 2012 के उद्देश्यों और प्रावधानों की विवेचना करें। पुरी जैसी घटनाओं से इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें और इन चुनौतियों से निपटने के लिए संभावित उपायों का सुझाव दें। (लगभग 150 शब्द)
  3. प्रश्न: “न्याय में देरी, न्याय से इनकार है।” इस कथन के आलोक में, भारतीय न्याय प्रणाली में लंबित मामलों की समस्या और इसके कारणों का विश्लेषण करें। पुरी घटना में जांच की धीमी गति से यह समस्या कैसे जुड़ती है? (लगभग 200 शब्द)
  4. प्रश्न: भारत में महिला सुरक्षा एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है। पुरी में हुई जघन्य घटना के प्रकाश में, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने और अपराधियों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले बहु-आयामी कदमों की रूपरेखा प्रस्तुत करें। (लगभग 250 शब्द)

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