पहाड़ी उड़ानें: उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर दुर्घटना और भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा

पहाड़ी उड़ानें: उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर दुर्घटना और भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (Aircraft Accident Investigation Bureau – AAIB) ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुई एक दुखद हेलीकॉप्टर दुर्घटना पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि पायलट ने आपातकालीन लैंडिंग का प्रयास किया था, लेकिन हेलीकॉप्टर का रोटर एक केबल से टकरा गया, जिससे यह घातक दुर्घटना हुई। यह घटना न केवल इस क्षेत्र में उड़ान भरने की अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करती है, बल्कि भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा की व्यापक तस्वीर पर भी महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े करती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह रिपोर्ट सिर्फ एक दुर्घटना का विवरण नहीं, बल्कि नागरिक उड्डयन, आपदा प्रबंधन, सुरक्षा नियामक निकायों और पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास जैसे कई महत्त्वपूर्ण विषयों को समझने का एक प्रवेश द्वार है।

क्या था मामला? (What was the case?):

सितंबर 2023 में, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में मोरी के पास बाउंडर गांव में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। यह हेलीकॉप्टर एक निजी कंपनी द्वारा संचालित किया जा रहा था और इसका उपयोग श्रद्धालुओं को यमुनोत्री धाम तक पहुंचाने के लिए किया जा रहा था। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में पायलट, को-पायलट और एक स्थानीय व्यक्ति सहित तीन लोगों की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट नहीं था कि दुर्घटना किस कारण हुई, लेकिन AAIB की विस्तृत रिपोर्ट ने अब कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने रखे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार:

  • पायलट ने खराब मौसम या तकनीकी समस्या के कारण आपातकालीन लैंडिंग का प्रयास किया था।
  • लैंडिंग के दौरान, हेलीकॉप्टर का मुख्य रोटर (जो हेलीकॉप्टर को ऊपर उठाता है) एक अचिह्नित केबल (संभवतः बिजली या संचार केबल) से टकरा गया।
  • टकराव के कारण हेलीकॉप्टर का नियंत्रण बिगड़ गया और वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

यह रिपोर्ट न केवल एक दुखद घटना का विवरण देती है, बल्कि उन जटिल परिस्थितियों को भी सामने लाती है, जिनमें पहाड़ी क्षेत्रों में विमानन संचालन होता है। यह हमें यह समझने का अवसर देती है कि ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं और भारत में हवाई सुरक्षा के मानकों को कैसे और मजबूत किया जा सकता है।

AAIB क्या है और इसकी भूमिका क्या है? (What is AAIB and its role?):

किसी भी विमान दुर्घटना या गंभीर घटना की जांच उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी कि दुर्घटना से बचाव के उपाय। यहीं पर विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की भूमिका सामने आती है।

AAIB का परिचय:

AAIB भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत कार्य करने वाला एक स्वायत्त संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य विमान दुर्घटनाओं और गंभीर घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करना है। इसकी स्थापना का मुख्य विचार यह सुनिश्चित करना था कि विमानन सुरक्षा से जुड़े तकनीकी पहलुओं की जांच किसी भी बाहरी दबाव या हित से मुक्त होकर की जाए।

“AAIB का प्राथमिक लक्ष्य किसी दोषी को खोजना नहीं, बल्कि दुर्घटना के मूल कारणों की पहचान करना है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। यह ‘क्या गलत हुआ’ से अधिक ‘क्यों गलत हुआ’ पर केंद्रित है।”

AAIB की मुख्य भूमिकाएँ और कार्य:

  1. स्वतंत्र जांच: AAIB भारत में होने वाली सभी नागरिक विमान दुर्घटनाओं और गंभीर घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करता है। इसमें वाणिज्यिक उड़ानों से लेकर निजी और सैन्य (नागरिक उद्देश्यों के लिए) उड़ानों तक सब कुछ शामिल है।
  2. कारणों की पहचान: जांच का मुख्य उद्देश्य दुर्घटना के कारणों (तत्काल और अंतर्निहित दोनों) का पता लगाना है, चाहे वे तकनीकी विफलता, मानवीय त्रुटि, मौसम संबंधी कारक, या अन्य परिचालन मुद्दे हों।
  3. सुरक्षा सिफारिशें: जांच के निष्कर्षों के आधार पर, AAIB नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), विमानन कंपनियों, हवाई अड्डे के अधिकारियों और अन्य संबंधित हितधारकों को सुरक्षा सिफारिशें जारी करता है। ये सिफारिशें नीतियों, प्रक्रियाओं, प्रशिक्षण, उपकरण सुधार या बुनियादी ढांचे में बदलाव से संबंधित हो सकती हैं।
  4. डेटा संग्रह और विश्लेषण: AAIB दुर्घटना स्थलों से साक्ष्य एकत्र करता है, ब्लैक बॉक्स (फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) का विश्लेषण करता है, गवाहों से पूछताछ करता है, और सभी प्रासंगिक डेटा का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है।
  5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: AAIB अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के मानकों और प्रथाओं का पालन करता है और अंतर्राष्ट्रीय जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करता है, खासकर जब दुर्घटना में विदेशी विमान या नागरिक शामिल होते हैं।

AAIB बनाम DGCA:

यह समझना महत्वपूर्ण है कि AAIB और DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) की भूमिकाएँ अलग-अलग हैं, लेकिन वे एक-दूसरे के पूरक हैं:

  • DGCA: यह भारत में नागरिक उड्डयन के लिए मुख्य नियामक निकाय है। यह सुरक्षा मानकों को निर्धारित करता है, एयरलाइंस को लाइसेंस जारी करता है, पायलटों को प्रमाणित करता है, हवाई यातायात नियंत्रण (ATC) को नियंत्रित करता है, और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करता है। DGCA एक नियामक और प्रवर्तक है।
  • AAIB: यह एक जांच एजेंसी है। यह DGCA द्वारा निर्धारित नियमों के उल्लंघन या प्रभाव की जांच करता है, लेकिन इसका प्राथमिक कार्य नियम बनाना या प्रवर्तित करना नहीं है, बल्कि दुर्घटनाओं के कारणों का पता लगाना और DGCA तथा अन्य निकायों को सुरक्षा सुधार के लिए सिफारिशें देना है।

सरल शब्दों में, DGCA यह सुनिश्चित करता है कि विमानन क्षेत्र के नियम बनाए और माने जाएँ, जबकि AAIB यह जांचता है कि जब कुछ गलत होता है तो क्यों होता है, ताकि भविष्य के नियमों और प्रथाओं को बेहतर बनाया जा सके।

दुर्घटना के संभावित कारण और अंतर्निहित मुद्दे (Possible Causes and Underlying Issues of the Accident):

उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर दुर्घटना की AAIB रिपोर्ट ने घटना के तात्कालिक कारण – एक केबल से रोटर का टकराना – को स्पष्ट कर दिया है। लेकिन किसी भी दुर्घटना की जांच केवल तात्कालिक कारणों तक सीमित नहीं होती, बल्कि उन अंतर्निहित मुद्दों और परिस्थितियों को भी उजागर करती है जो ऐसी घटनाओं को जन्म देते हैं। इस दुर्घटना के संदर्भ में, हमें पहाड़ी इलाकों में उड़ान भरने की विशेष चुनौतियों पर ध्यान देना होगा।

रिपोर्ट के निष्कर्षों का विश्लेषण:

AAIB की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि पायलट ने आपातकालीन लैंडिंग का प्रयास किया था, लेकिन इस प्रयास के दौरान हेलीकॉप्टर का रोटर एक केबल से टकरा गया। यह दर्शाता है कि:

  1. केबल की उपस्थिति: दुर्घटनास्थल पर अचिह्नित या अस्पष्ट केबलों की उपस्थिति एक गंभीर खतरा है। ये बिजली के तार, संचार केबल या रोपवे के तार हो सकते हैं, जो पहाड़ी इलाकों में अक्सर होते हैं और कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले विमानों के लिए अदृश्य बाधाएँ बन सकते हैं।
  2. आपातकालीन लैंडिंग की आवश्यकता: पायलट ने आपातकालीन लैंडिंग का प्रयास क्यों किया? इसका कारण तकनीकी खराबी, अचानक खराब मौसम, इंजन की समस्या या किसी अन्य अप्रत्याशित परिस्थिति हो सकती है। रिपोर्ट में इस पर आगे विश्लेषण होगा।
  3. भू-जागरूकता (Terrain Awareness): पहाड़ी इलाकों में पायलटों के लिए इलाके की सटीक जानकारी और खतरों (जैसे केबल) की पहचान करना बेहद महत्वपूर्ण होता है।

पहाड़ी इलाकों में उड़ान भरने की चुनौतियाँ:

हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र विमानन संचालन के लिए कुछ सबसे चुनौतीपूर्ण वातावरण प्रस्तुत करते हैं। ये चुनौतियाँ न केवल पायलटों और विमानों के लिए, बल्कि नियामक निकायों और बुनियादी ढाँचा प्रदाताओं के लिए भी गंभीर चिंता का विषय हैं।

  1. अप्रत्याशित और तेजी से बदलता मौसम (Unpredictable and Rapidly Changing Weather):
    • पहाड़ी इलाकों में मौसम का पूर्वानुमान लगाना बेहद कठिन होता है।
    • तेज हवाएं, अचानक कोहरा, बादल, भारी बारिश या बर्फबारी कुछ ही मिनटों में उड़ान की स्थिति को खतरनाक बना सकती है।
    • बादलों में छिपी चोटियाँ (cloud-obscured peaks) और घाटियाँ (valleys) दृश्यता को कम कर देती हैं, जिससे नेविगेशन मुश्किल हो जाता है।
  2. दुर्गम इलाका और ऊंचाई (Challenging Terrain and Altitude Effects):
    • खड़ी पहाड़ियाँ, गहरी घाटियाँ और अनियमित भूभाग आपातकालीन लैंडिंग के लिए सुरक्षित स्थानों की उपलब्धता को सीमित कर देते हैं।
    • ऊंचाई पर हवा पतली होती है, जिससे इंजन की दक्षता कम हो जाती है और विमान को पर्याप्त लिफ्ट (ऊपर उठने की शक्ति) उत्पन्न करने में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह हेलीकॉप्टरों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
    • ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी पायलटों पर भी शारीरिक और मानसिक दबाव डाल सकती है।
  3. अनचिह्नित बाधाएँ (Unmarked Obstacles):
    • पहाड़ी इलाकों में बिजली के तार, केबल, रोपवे और अन्य मानवीय संरचनाएँ अक्सर विमानन चार्ट पर ठीक से चिह्नित नहीं होती हैं या उन्हें कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले विमानों के लिए पर्याप्त दृश्य चेतावनी (जैसे मार्कर बॉल) नहीं दी जाती है।
    • उत्तरकाशी दुर्घटना इसी चुनौती का एक दुखद उदाहरण है।
  4. संचार और नेविगेशन चुनौतियाँ (Communication and Navigation Challenges):
    • पहाड़ों की छाया संचार संकेतों को बाधित कर सकती है, जिससे एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) और विमान के बीच निरंतर संपर्क बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
    • पहाड़ी इलाके में पारंपरिक नेविगेशन एड्स (जैसे VOR, NDB) की प्रभावशीलता सीमित हो सकती है, जिससे पायलटों को अधिक सटीक नेविगेशन प्रणालियों (जैसे GPS) पर निर्भर रहना पड़ता है।
  5. मानवीय कारक (Human Factors):
    • पहाड़ी उड़ानें पायलटों पर अत्यधिक दबाव डालती हैं। थकान, तनाव और अपर्याप्त प्रशिक्षण से दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ सकता है।
    • पायलट को इलाके का गहन ज्ञान और ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  6. मजबूत नियामक निगरानी की कमी (Lack of Robust Regulatory Oversight in remote areas):
    • दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षा नियमों का प्रवर्तन और निगरानी कभी-कभी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
    • छोटे ऑपरेटरों द्वारा सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी का जोखिम होता है।

इन चुनौतियों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सिर्फ एक दुर्घटना का नहीं, बल्कि भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के एक बड़े परिदृश्य का हिस्सा हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ हवाई कनेक्टिविटी जीवन रेखा है (जैसे उत्तराखंड में चारधाम यात्रा)।

भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र (Civil Aviation Safety Ecosystem in India):

भारत का नागरिक उड्डयन क्षेत्र दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है। इस तीव्र विकास के साथ, सुरक्षा सुनिश्चित करना एक सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाता है। भारत का नागरिक उड्डयन सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र कई नियामक निकायों, कानूनों, नीतियों और प्रथाओं का एक जटिल जाल है जो हवाई यात्रा को यथासंभव सुरक्षित बनाने के लिए मिलकर काम करता है।

मुख्य नियामक निकाय और उनकी भूमिकाएँ:

  1. नागरिक उड्डयन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation – MoCA):
    • यह भारत में नागरिक उड्डयन के लिए सर्वोच्च नीति-निर्धारण निकाय है।
    • यह नागरिक उड्डयन के समग्र विकास, नियमन और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है।
    • AAIB, DGCA, BCAS, AAI जैसे सभी प्रमुख निकाय इसके अधीन कार्य करते हैं।
  2. नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation – DGCA):
    • यह भारत में नागरिक उड्डयन के लिए मुख्य नियामक और सुरक्षा निगरानी निकाय है।
    • कार्य:
      • विमानन सुरक्षा मानकों को निर्धारित करना और लागू करना।
      • एयरलाइंस और हवाई अड्डों को लाइसेंस जारी करना और उनका नवीनीकरण करना।
      • पायलटों, इंजीनियरों और अन्य विमानन कर्मियों को लाइसेंस और प्रमाण पत्र जारी करना।
      • हवाई जहाजों के लिए एयरवर्थनेस (उड़ान योग्यता) प्रमाण पत्र जारी करना।
      • सुरक्षा ऑडिट और निरीक्षण करना।
      • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के मानकों का पालन सुनिश्चित करना।
  3. विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (Aircraft Accident Investigation Bureau – AAIB):
    • जैसा कि पहले चर्चा की गई, यह विमान दुर्घटनाओं और गंभीर घटनाओं की स्वतंत्र जांच के लिए जिम्मेदार है ताकि कारणों का पता लगाया जा सके और सुरक्षा सिफारिशें की जा सकें।
  4. नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (Bureau of Civil Aviation Security – BCAS):
    • यह भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिए नियामक प्राधिकरण है।
    • कार्य:
      • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार विमानन सुरक्षा नीतियाँ और कार्यक्रम तैयार करना।
      • हवाई अड्डों, एयरलाइंस और अन्य एजेंसियों के सुरक्षा उपायों का ऑडिट और निगरानी करना।
      • विमानन सुरक्षा कर्मियों के प्रशिक्षण और प्रमाणीकरण की देखरेख करना।
      • सुरक्षा खतरों और खुफिया जानकारी पर कार्रवाई करना।
  5. भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority of India – AAI):
    • यह भारत में नागरिक हवाई अड्डों का प्रबंधन और संचालन करता है।
    • कार्य:
      • हवाई यातायात प्रबंधन (ATM) सेवाएँ प्रदान करना।
      • हवाई अड्डों पर बुनियादी ढाँचे (रनवे, टर्मिनल आदि) का विकास, रखरखाव और उन्नयन करना।
      • विमानों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए एयरसाइड (airside) सुरक्षा बनाए रखना।

कानून और नीतियाँ:

  • विमान अधिनियम, 1934 (Aircraft Act, 1934): यह भारत में विमानन गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून है, जो हवाई यातायात, नेविगेशन, सुरक्षा, और दुर्घटना जांच के लिए व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • विमान नियम, 1937 (Aircraft Rules, 1937): ये अधिनियम के तहत बनाए गए विस्तृत नियम हैं, जो विमानों के पंजीकरण, उड़ान योग्यता, पायलटों के लाइसेंस, हवाई अड्डों के संचालन, हवाई यातायात सेवाओं और सुरक्षा प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
  • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (National Civil Aviation Policy): समय-समय पर जारी की गई ये नीतियाँ नागरिक उड्डयन क्षेत्र के विकास के लिए एक रोडमैप प्रदान करती हैं, जिसमें सुरक्षा, कनेक्टिविटी, क्षेत्रीय संपर्क, बुनियादी ढाँचा और नियामक सुधार शामिल हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू:

  • सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (Safety Management System – SMS): यह एक संगठित दृष्टिकोण है जो विमानन संगठनों (जैसे एयरलाइंस, हवाई अड्डे) को सुरक्षा जोखिमों की पहचान करने, उनका आकलन करने और उन्हें कम करने में मदद करता है। यह ICAO द्वारा अनिवार्य है।
  • डेटा-संचालित सुरक्षा (Data-Driven Safety): दुर्घटनाओं और घटनाओं से एकत्र किए गए डेटा का विश्लेषण करके सुरक्षा प्रवृत्तियों (trends) की पहचान करना और निवारक उपाय करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानक और सहयोग: भारत अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) का एक हस्ताक्षरकर्ता है और उसके वैश्विक सुरक्षा मानकों और प्रथाओं का पालन करता है।

यह पारिस्थितिकी तंत्र लगातार विकसित हो रहा है, जिसमें नई तकनीकों, बढ़ते हवाई यातायात और उभरते सुरक्षा खतरों को समायोजित करने के लिए निरंतर समायोजन और सुधार की आवश्यकता है। उत्तरकाशी जैसी दुर्घटनाएँ इस प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करती हैं और निरंतर सुधार की आवश्यकता पर जोर देती हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर संचालन के लिए चुनौतियाँ और सिफारिशें (Challenges and Recommendations for Helicopter Operations in Hilly Regions):

उत्तरकाशी जैसी घटनाएँ हमें पहाड़ी क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर संचालन की जटिलताओं और खतरों की याद दिलाती हैं। इन अद्वितीय चुनौतियों को संबोधित करना और स्थायी समाधान खोजना भारत की नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे देश में जहाँ हिमालयी क्षेत्र में हवाई यात्रा पर्यटन, तीर्थयात्रा, और आपदा प्रतिक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

चुनौतियाँ (Challenges):

  1. सूक्ष्म-मौसम विज्ञान (Micro-Meteorology): पहाड़ों में, एक घाटी से दूसरी घाटी तक मौसम नाटकीय रूप से बदल सकता है। अचानक हवा के झोंके (wind gusts), टर्बुलेंस (turbulence), डाउनड्राफ्ट (downdrafts) और अपड्राफ्ट (updrafts) हेलीकॉप्टर के स्थिर संचालन को बाधित कर सकते हैं।
  2. नेविगेशन और इलाके का ज्ञान: पारंपरिक नेविगेशन एड्स की सीमित प्रभावशीलता के कारण पायलटों को विजुअल रेफरेंस और इलाके के गहन ज्ञान पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है। यह चुनौती तब और बढ़ जाती है जब दृश्यता कम हो जाती है।
  3. उच्च घनत्व ऊंचाई (High Density Altitude): ऊंचाई बढ़ने के साथ हवा का घनत्व कम हो जाता है। इससे हेलीकॉप्टर के इंजन और रोटर की प्रदर्शन क्षमता घट जाती है, जिससे उसे अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है और उसकी लिफ्ट क्षमता कम हो जाती है। गर्म मौसम में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
  4. लैंडिंग स्थलों की कमी: पहाड़ी इलाकों में समतल और सुरक्षित लैंडिंग स्थलों की उपलब्धता सीमित होती है, खासकर आपातकालीन स्थिति में।
  5. खतरनाक मानव निर्मित बाधाएँ: बिजली के तार, केबल, रोपवे, सेल टावर, और अन्य संरचनाएँ अक्सर स्पष्ट रूप से चिह्नित नहीं होती हैं या विमानन चार्ट पर ठीक से दर्ज नहीं होती हैं। उत्तरकाशी दुर्घटना इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  6. संचार अंतराल: पहाड़ी भूभाग रेडियो संचार को बाधित कर सकता है, जिससे एयर ट्रैफिक कंट्रोल और आपातकालीन सेवाओं के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
  7. बचाव और राहत (SAR) की जटिलता: पहाड़ी इलाकों में दुर्घटना की स्थिति में खोज और बचाव अभियान चलाना अत्यधिक कठिन और समय लेने वाला होता है, जिससे जीवित बचे लोगों के बचने की संभावना कम हो जाती है।
  8. मानव कारक और प्रशिक्षण: पहाड़ी उड़ानें पायलटों पर शारीरिक और मानसिक रूप से भारी पड़ती हैं। यदि पायलटों को पर्याप्त विशेष प्रशिक्षण न दिया जाए, तो त्रुटियों का जोखिम बढ़ जाता है।

सुधार के उपाय/सिफारिशें (Way Forward/Recommendations):

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण, नियामक सुधार और बुनियादी ढाँचे का विकास शामिल हो:

  1. उन्नत मौसम पूर्वानुमान और निगरानी प्रणालियाँ:
    • पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले मौसम रडार और सेंसर नेटवर्क स्थापित करना।
    • रीयल-टाइम मौसम डेटा और चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
    • AWOS (स्वचालित मौसम अवलोकन प्रणाली) को और मजबूत करना।
  2. उन्नत नेविगेशन और भू-जागरूकता प्रणाली:
    • हेलीकॉप्टरों में उन्नत जीपीएस-आधारित नेविगेशन प्रणाली, EGPWS (Enhanced Ground Proximity Warning System) और भू-जागरूकता डिस्प्ले अनिवार्य करना।
    • ये प्रणालियाँ पायलटों को इलाके, बाधाओं और निकटता के खतरों के बारे में वास्तविक समय पर चेतावनी प्रदान करती हैं।
  3. बाधाओं का विस्तृत मानचित्रण और चिह्नीकरण:
    • सभी उच्च-वोल्टेज बिजली लाइनों, रोपवे, संचार टावरों और अन्य हवाई बाधाओं का एक व्यापक, सटीक डेटाबेस बनाना।
    • इन बाधाओं को विमानन चार्ट पर स्पष्ट रूप से चिह्नित करना और उन्हें उचित दृश्य चिह्नक (जैसे मार्कर बॉल) और रोशनी के साथ चिह्नित करना अनिवार्य करना।
    • स्थानीय अधिकारियों, बिजली कंपनियों और केबल ऑपरेटरों के साथ समन्वय स्थापित करना।
  4. पायलटों के लिए विशेष प्रशिक्षण:
    • पहाड़ी और उच्च ऊंचाई पर उड़ान भरने के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम अनिवार्य करना। इसमें सिमुलेटर पर अभ्यास, मौसम की बारीकियों को समझना और आपातकालीन प्रक्रियाओं का अभ्यास शामिल होना चाहिए।
    • नियमित पुनश्चर्या प्रशिक्षण और मूल्यांकन सुनिश्चित करना।
  5. आधुनिक हेलीकॉप्टर फ्लीट और रखरखाव:
    • पहाड़ी क्षेत्रों में संचालित होने वाले हेलीकॉप्टरों को उच्च ऊंचाई और कठिन मौसम की स्थिति में बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता वाले होना चाहिए।
    • कठोर रखरखाव कार्यक्रम और नियमित सुरक्षा जाँच सुनिश्चित करना।
  6. नियामक निगरानी को सुदृढ़ करना:
    • पहाड़ी क्षेत्रों में संचालित होने वाले ऑपरेटरों पर DGCA और AAIB द्वारा अधिक कठोर निरीक्षण और ऑडिट।
    • सुरक्षा नियमों का पालन न करने पर कड़े दंड का प्रावधान।
    • अनिवार्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (SMS) का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  7. डेटा-संचालित सुरक्षा विश्लेषण:
    • सभी छोटी-बड़ी घटनाओं और ‘निकट चूक’ (near misses) की रिपोर्टिंग और विश्लेषण को प्रोत्साहित करना।
    • इस डेटा का उपयोग करके जोखिम वाले क्षेत्रों और प्रवृत्तियों की पहचान करना ताकि दुर्घटनाओं को सक्रिय रूप से रोका जा सके।
  8. बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक सुरक्षित और सुसज्जित हेलीपैड विकसित करना।
    • आपातकालीन लैंडिंग स्थलों की पहचान करना और उन्हें बनाए रखना।
  9. हितधारकों का सहयोग:
    • नागरिक उड्डयन प्राधिकरण, स्थानीय प्रशासन, पर्यटन विभाग, बिजली कंपनियाँ और आपातकालीन सेवाएँ जैसी विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना।

आगे की राह (Way Forward):

उत्तरकाशी जैसी दुर्घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि सुरक्षा कभी भी समझौता योग्य नहीं हो सकती, खासकर नागरिक उड्डयन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में। भारत के लिए आगे की राह एक मजबूत, लचीले और भविष्य-उन्मुख नागरिक उड्डयन सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में निहित है।

  1. समग्र सुरक्षा संस्कृति का विकास: यह केवल नियमों का पालन करने से कहीं बढ़कर है। यह हर स्तर पर, हर हितधारक – पायलट से लेकर हवाई अड्डे के कर्मचारी, नियामक से लेकर एयरलाइन प्रबंधन तक – में सुरक्षा को एक अंतर्निहित मूल्य के रूप में स्थापित करने की बात है। इसमें जोखिमों की पहचान करने, रिपोर्ट करने और उन्हें कम करने की एक सक्रिय और खुली प्रणाली शामिल है।
  2. प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग:
    • उन्नत सेंसर और रडार: मौसम और भूभाग की बेहतर निगरानी के लिए।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML): भविष्य कहनेवाला रखरखाव (predictive maintenance) के लिए, जिससे उपकरणों की विफलता का अनुमान लगाया जा सके। साथ ही, उड़ान डेटा का विश्लेषण कर सुरक्षा जोखिमों की पहचान करना।
    • ब्लॉकचेन तकनीक: रिकॉर्ड-कीपिंग और आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, विशेष रूप से स्पेयर पार्ट्स और रखरखाव लॉग के लिए।
    • उच्च-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजरी: हवाई बाधाओं और संभावित लैंडिंग स्थलों का बेहतर मानचित्रण करने के लिए।
  3. अनुसंधान और विकास: भारत को विमानन सुरक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाना चाहिए। इसमें विशेष रूप से भारतीय परिस्थितियों (जैसे मानसून, पहाड़ी क्षेत्र) के लिए अनुकूलित प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं का विकास शामिल है।
  4. अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का अनुपालन और अनुकूलन: ICAO के मानकों का पूरी तरह से पालन करना और दुनिया भर में अपनाई जा रही सर्वोत्तम सुरक्षा प्रथाओं को अपनाना। अन्य देशों से सीखना जिन्होंने समान भौगोलिक या परिचालन चुनौतियों का सामना किया है।
  5. मानव पूंजी का सशक्तिकरण: पायलटों, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर और रखरखाव इंजीनियरों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश। मानसिक स्वास्थ्य सहायता और थकान प्रबंधन पर ध्यान देना।
  6. हितधारकों के बीच समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों (नागरिक उड्डयन, ऊर्जा, रक्षा, पर्यटन), निजी ऑपरेटरों और स्थानीय समुदायों के बीच एक मजबूत समन्वय तंत्र स्थापित करना। यह सुनिश्चित करेगा कि सुरक्षा से संबंधित जानकारी और चुनौतियाँ प्रभावी ढंग से साझा की जाएँ।
  7. जवाबदेही और पारदर्शिता: दुर्घटना जांच रिपोर्टों को समय पर और पारदर्शी तरीके से जारी करना। सिफारिशों को लागू करने में संबंधित पक्षों की जवाबदेही तय करना।

भारत में नागरिक उड्डयन क्षेत्र में न केवल विकास की असीम क्षमता है, बल्कि लोगों को सुरक्षित और कुशल हवाई यात्रा प्रदान करने की भी अपार जिम्मेदारी है। उत्तरकाशी दुर्घटना जैसी घटनाएँ एक कड़वी याद दिलाती हैं कि इस जिम्मेदारी को निभाने में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। निरंतर सुधार, नवाचार और सामूहिक प्रतिबद्धता के माध्यम से ही भारत अपने आसमान को सभी के लिए सुरक्षित बना सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर दुर्घटना की AAIB रिपोर्ट, जो पायलट द्वारा आपातकालीन लैंडिंग के प्रयास और रोटर के केबल से टकराने के तथ्य को उजागर करती है, भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण सबक है। यह हमें याद दिलाती है कि पहाड़ी इलाकों में हवाई संचालन कितना जटिल और जोखिम भरा हो सकता है। यह घटना केवल एक दुर्घटना नहीं है, बल्कि एक प्रणालीगत चुनौती का प्रतिबिंब है जिसमें अप्रत्याशित मौसम, दुर्गम इलाके, अनचिह्नित बाधाएँ और मानवीय कारक शामिल हैं।

भारत का नागरिक उड्डयन सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र, DGCA, AAIB, BCAS और AAI जैसे निकायों के साथ, एक मजबूत ढाँचा है। हालाँकि, उत्तरकाशी जैसी घटनाएँ निरंतर सुधार, कठोर निगरानी और चुनौतियों के लिए सक्रिय प्रतिक्रिया की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणालियाँ, बाधाओं का सटीक मानचित्रण, पायलटों के लिए विशेष प्रशिक्षण, और एक मजबूत सुरक्षा संस्कृति का विकास ही भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने की कुंजी है।

सुरक्षित हवाई यात्रा एक विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक अधिकार है। सरकार, नियामक निकायों और ऑपरेटरों की सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ, भारत अपने तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र में सुरक्षा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित कर सकता है, जिससे हमारे आसमान सभी के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय बन सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. AAIB (विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है।
    2. इसका प्राथमिक लक्ष्य विमान दुर्घटनाओं और घटनाओं के कारणों की स्वतंत्र जांच करना है।
    3. यह विमानन सुरक्षा मानकों को लागू करने और एयरलाइंस को लाइसेंस जारी करने के लिए जिम्मेदार है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल i और ii
    (b) केवल ii और iii
    (c) केवल i और iii
    (d) i, ii और iii
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: AAIB विमान दुर्घटनाओं की जांच करता है। विमानन सुरक्षा मानकों को लागू करने और लाइसेंस जारी करने का कार्य नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) का है, न कि AAIB का।

  2. भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के नियामक निकायों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित नहीं है?
    (a) DGCA: विमानन सुरक्षा मानकों का प्रवर्तन
    (b) BCAS: विमानन सुरक्षा के लिए नीति निर्माण
    (c) AAI: हवाई यातायात प्रबंधन (ATM) सेवाएँ
    (d) AAIB: पायलटों को लाइसेंस जारी करना
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: पायलटों को लाइसेंस जारी करने का कार्य DGCA का है। AAIB विमान दुर्घटनाओं की जांच के लिए जिम्मेदार है।
  3. पहाड़ी क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर संचालन से जुड़ी चुनौतियों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. ऊंचाई बढ़ने से हवा का घनत्व बढ़ता है, जिससे हेलीकॉप्टर का प्रदर्शन बेहतर होता है।
    2. अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और मजबूत हवा के झोंके इन क्षेत्रों में आम हैं।
    3. मानव निर्मित बाधाएँ जैसे बिजली के तार और रोपवे अक्सर विमानन चार्ट पर चिह्नित नहीं होते हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल i और ii
    (b) केवल ii और iii
    (c) केवल i और iii
    (d) i, ii और iii
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: ऊंचाई बढ़ने पर हवा का घनत्व कम होता है, जिससे हेलीकॉप्टर का प्रदर्शन घटता है। इसलिए, कथन i गलत है। कथन ii और iii सही हैं।

  4. सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (Safety Management System – SMS) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह विमानन संगठनों को सुरक्षा जोखिमों की पहचान करने और उन्हें कम करने में मदद करता है।
    2. यह अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा अनिवार्य है।
    3. यह केवल विमान दुर्घटनाओं की जांच के बाद लागू किया जाता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल i
    (b) केवल ii और iii
    (c) केवल i और ii
    (d) i, ii और iii
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: SMS एक सक्रिय प्रणाली है जो दुर्घटना से पहले ही जोखिमों का प्रबंधन करती है, न कि केवल दुर्घटना के बाद। इसलिए, कथन iii गलत है।

  5. भारत में नागरिक उड्डयन को विनियमित करने वाले प्राथमिक कानून कौन से हैं?
    (a) नागरिक उड्डयन अधिनियम, 1961 और नियम, 1963
    (b) विमान अधिनियम, 1934 और विमान नियम, 1937
    (c) एयरलाइंस अधिनियम, 1947 और नियम, 1950
    (d) भारतीय विमानपत्तन अधिनियम, 2000 और नियम, 2002
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: भारत में नागरिक उड्डयन को विनियमित करने वाले प्राथमिक कानून विमान अधिनियम, 1934 और इसके तहत बनाए गए विमान नियम, 1937 हैं।
  6. पहाड़ी इलाकों में आपातकालीन लैंडिंग के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
    (a) हवाई यातायात नियंत्रकों की कमी
    (b) सुरक्षित और समतल लैंडिंग स्थलों की सीमित उपलब्धता
    (c) ईंधन भरने वाले स्टेशनों की अनुपलब्धता
    (d) पायलटों के लिए संचार उपकरणों की कमी
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: पहाड़ी इलाकों की अनियमित भूभाग के कारण समतल और सुरक्षित आपातकालीन लैंडिंग स्थलों की उपलब्धता बेहद सीमित होती है।
  7. निम्नलिखित में से कौन सा संगठन भारत में हवाई अड्डों का प्रबंधन और संचालन करता है, और हवाई यातायात प्रबंधन (ATM) सेवाएँ प्रदान करता है?
    (a) नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA)
    (b) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)
    (c) नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS)
    (d) पवन हंस लिमिटेड
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) भारत में नागरिक हवाई अड्डों का प्रबंधन और हवाई यातायात प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करता है।
  8. ब्लैक बॉक्स’ (फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
    (a) पायलटों को वास्तविक समय में उड़ान डेटा प्रदान करना।
    (b) विमान के रखरखाव की जानकारी संग्रहीत करना।
    (c) विमान दुर्घटनाओं और घटनाओं के बाद जांच में सहायता के लिए डेटा रिकॉर्ड करना।
    (d) यात्रियों के मनोरंजन के लिए संगीत बजाना।
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: ब्लैक बॉक्स का मुख्य कार्य दुर्घटना या घटना के बाद जांच एजेंसियों (जैसे AAIB) को उड़ान के दौरान के डेटा (उड़ान पैरामीटर और कॉकपिट की आवाजें) प्रदान करना है ताकि दुर्घटना के कारणों का पता लगाया जा सके।
  9. उच्च घनत्व ऊंचाई (High Density Altitude) का हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
    (a) यह इंजन की शक्ति को बढ़ाता है।
    (b) यह हेलीकॉप्टर को अधिक लिफ्ट उत्पन्न करने में मदद करता है।
    (c) यह इंजन की दक्षता को कम करता है और लिफ्ट क्षमता को घटाता है।
    (d) इसका हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: उच्च घनत्व ऊंचाई (जहां हवा पतली होती है) पर इंजन की दक्षता कम हो जाती है और रोटर को पर्याप्त लिफ्ट उत्पन्न करने में अधिक कठिनाई होती है, जिससे हेलीकॉप्टर का प्रदर्शन घट जाता है।
  10. निम्नलिखित में से कौन सा निकाय भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिए नियामक प्राधिकरण है, जो सुरक्षा नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने तथा सुरक्षा उपायों का ऑडिट करने के लिए जिम्मेदार है?
    (a) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)
    (b) नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA)
    (c) नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS)
    (d) विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB)
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: BCAS (Bureau of Civil Aviation Security) भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा के लिए नियामक प्राधिकरण है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. उत्तरकाशी हेलीकॉप्टर दुर्घटना ने भारत में पर्वतीय क्षेत्रों में विमानन सुरक्षा से जुड़े अंतर्निहित मुद्दों को उजागर किया है। इन चुनौतियों का विस्तार से विश्लेषण करें और ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक तकनीकी, नियामक और परिचालन सुधारों का सुझाव दें।
  2. भारत में नागरिक उड्डयन सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और भूमिकाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इस प्रणाली में AAIB, DGCA और BCAS जैसे निकायों के बीच समन्वय को कैसे सुधारा जा सकता है, चर्चा करें।
  3. ‘सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (SMS)’ की अवधारणा को समझाते हुए, भारतीय विमानन क्षेत्र में इसके प्रभावी कार्यान्वयन के महत्त्व और चुनौतियों का मूल्यांकन करें। क्या यह केवल नियामक आवश्यकता है या सुरक्षा संस्कृति का एक अभिन्न अंग?
  4. तेजी से बढ़ते नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। आप इस चुनौती का सामना करने और भविष्य के लिए एक लचीला और सुरक्षित विमानन पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए किन ‘आगे की राह’ (Way Forward) के उपायों का सुझाव देंगे?

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