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पहलगाम हमला: आतंक के विरुद्ध दोहरे मापदंडों पर प्रहार – मोदी की दो-टूक, वैश्विक कूटनीति पर गहरा प्रभाव

पहलगाम हमला: आतंक के विरुद्ध दोहरे मापदंडों पर प्रहार – मोदी की दो-टूक, वैश्विक कूटनीति पर गहरा प्रभाव

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले में भारतीय सुरक्षा बलों के कई बहादुर जवान शहीद हुए। इसी दुखद घटनाक्रम के बीच, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि “आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंडों की कोई जगह नहीं है।” उनके इस बयान ने न केवल अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धता को मजबूती से रेखांकित किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने की वर्तमान रणनीति पर भी एक गंभीर सवाल खड़ा किया। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान जैसे देश, जो स्वयं आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते।

यह घटनाक्रम, जिसमें एक ओर आतंकवाद का जघन्य कृत्य शामिल है और दूसरी ओर वैश्विक नेताओं के बीच उच्च-स्तरीय वार्ता, UPSC के उम्मीदवारों के लिए कई महत्वपूर्ण आयामों को खोलता है। यह न केवल आंतरिक सुरक्षा, बल्कि भारत की विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, और आतंकवाद की वैश्विक प्रकृति की समझ के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आतंकवाद: एक बहुआयामी खतरा

आतंकवाद केवल एक राजनीतिक या सैन्य मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक जटिल सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक घटना है। इसे किसी एक परिभाषा में बांधना मुश्किल है, लेकिन मोटे तौर पर यह असैनिकों को लक्षित कर भय और आतंक फैलाने की एक सुनियोजित कार्रवाई है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाना होता है।

आतंकवाद के कुछ प्रमुख लक्षण:

  • हिंसा का प्रयोग: नागरिकों या गैर-लड़ाकों को लक्षित कर हिंसा का प्रयोग।
  • भय और आतंक फैलाना: लक्षित हिंसा के माध्यम से बड़े पैमाने पर भय और आतंक का माहौल बनाना।
  • राजनीतिक/वैचारिक उद्देश्य: किसी विशिष्ट राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक लक्ष्य को प्राप्त करना।
  • अस्थिरता पैदा करना: सरकारों और समाजों में अस्थिरता और अनिश्चितता पैदा करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय आयाम: अक्सर अंतर्राष्ट्रीय संबंध, सीमा पार समर्थन और वैश्विक नेटवर्क शामिल होते हैं।

पहलगाम हमला: जमीनी हकीकत

पहलगाम, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ समय से आतंकवाद की छाया में रहा है। इस विशेष हमले ने एक बार फिर इस बात की पुष्टि की है कि आतंकवादियों के हौसले अभी भी बुलंद हैं और वे हमारे देश की शांति और स्थिरता को भंग करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। ऐसे हमलों के पीछे अक्सर वही दुर्भावनापूर्ण तत्व होते हैं जो सीमा पार से निर्देशित होते हैं और जो भारत को अस्थिर करने की फिराक में रहते हैं।

इस तरह के हमलों का मुख्य उद्देश्य होता है:

  • सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ना: जवानों की शहादत से देश में शोक और असुरक्षा का माहौल बनाना।
  • पर्यटन को प्रभावित करना: जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुँचाना।
  • सामाजिक सद्भाव बिगाड़ना: विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास और भय पैदा करना।
  • सरकार की संप्रभुता को चुनौती देना: राज्य की नियंत्रण क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाना।

प्रधानमंत्री मोदी का बयान: “दोहरे मापदंडों की जगह नहीं”

प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान, विशेष रूप से आयरिश प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के दौरान, कई महत्वपूर्ण संदेश देता है:

  1. वैश्विक आतंकवाद विरोधी सहयोग की आवश्यकता: यह रेखांकित करता है कि आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और इससे निपटने के लिए किसी एक देश का प्रयास पर्याप्त नहीं है। इसके लिए एक एकजुट वैश्विक प्रयास की आवश्यकता है, जहाँ सभी देश समान रूप से प्रतिबद्ध हों।
  2. आतंकवाद के प्रायोजक देशों पर दबाव: यह उन देशों पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने का प्रयास है जो आतंकवाद को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देते हैं। “दोहरे मापदंड” का तात्पर्य उन देशों से है जो एक ओर तो आतंकवाद की निंदा करते हैं, लेकिन दूसरी ओर अपनी भू-राजनीतिक लाभ के लिए आतंकवादियों को पनाह देते हैं या उनका इस्तेमाल करते हैं।
  3. मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवाद का बचाव नहीं: अक्सर, आतंकवाद को ‘स्वतंत्रता संग्राम’ या ‘राजनीतिक विरोध’ जैसे नामों से नवाज कर उसे बचाने का प्रयास किया जाता है। मोदी का बयान स्पष्ट करता है कि निर्दोष नागरिकों की हत्या को किसी भी नाम पर उचित नहीं ठहराया जा सकता।
  4. भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता: यह भारत की आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहनशीलता’ (Zero Tolerance) नीति को दर्शाता है। भारत किसी भी कीमत पर आतंकवाद के आगे नहीं झुकेगा और न ही उसे किसी भी रूप में स्वीकार करेगा।

वैश्विक कूटनीति और भारत का रुख

प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी केवल एक बयान नहीं है, बल्कि यह भारत की सक्रिय और जिम्मेदार विदेश नीति का प्रतिबिंब है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत वैश्विक संधि (Comprehensive Convention on International Terrorism – CCIT) के लिए प्रयासरत रहा है, जो आतंकवाद की एक स्पष्ट परिभाषा तय करेगी और इसके लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा प्रदान करेगी।

“हमें यह समझना होगा कि आतंकवाद एक विचारधारा है, जो उन लोगों द्वारा फैलाई जाती है जो शांति और विकास के विरोधी हैं। इससे लड़ने के लिए हमें न केवल सैन्य और सुरक्षा उपायों पर ध्यान देना होगा, बल्कि उन कारणों पर भी गौर करना होगा जो युवाओं को कट्टरपंथी बनाते हैं।” – एक वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक

आयरलैंड के प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात का महत्व:

  • सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध: भारत और आयरलैंड के बीच ऐतिहासिक और मजबूत सांस्कृतिक तथा राजनीतिक संबंध हैं।
  • यूरोपीय संघ का सदस्य: आयरलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य है, और इस तरह की बातचीत यूरोपीय संघ को भी भारत के आतंकवाद विरोधी रुख से अवगत कराती है।
  • आतंकवाद से प्रभावित देश: आयरलैंड ने भी अतीत में आतंकवाद से जुड़े अनुभवों का सामना किया है, जिससे दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर आपसी समझ और सहयोग की संभावना बढ़ जाती है।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंड: एक वैश्विक समस्या

जब हम “दोहरे मापदंडों” की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि कुछ देश आतंकवाद को अपने भू-राजनीतिक हितों के अनुसार परिभाषित करते हैं। वे अपने हित साधने वाले आतंकवादी समूहों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ या ‘विद्रोही’ का दर्जा दे देते हैं, जबकि वही कार्य करने वाले दूसरे समूहों को ‘आतंकवादी’ करार देते हैं।

इसके कुछ उदाहरण:

  • पाकिस्तान का भारत के प्रति रवैया: पाकिस्तान अक्सर भारत में होने वाले आतंकवादी हमलों को ‘कश्मीरियों का स्वतंत्रता संग्राम’ कहकर महिमामंडित करने का प्रयास करता है, जबकि वही पाकिस्तान स्वयं तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे अपने ही देश के भीतर सक्रिय आतंकवादी समूहों से जूझ रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया: कभी-कभी, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी आतंकवाद के प्रति अपनी प्रतिक्रिया में पक्षपाती रहा है। कुछ देशों को आतंकवादी हमलों का शिकार होने पर तीव्र अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलता है, जबकि अन्य देशों को ऐसी सहानुभूति कम ही मिलती है।
  • कट्टरपंथ का पोषण: कुछ देश अपनी नीतियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे चरमपंथी समूहों को बढ़ावा देते हैं जो अंततः उनके अपने हितों के लिए भी खतरा बन जाते हैं, जैसा कि अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीनों को समर्थन देने के बाद देखा गया था।

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से विश्लेषण

यह पूरा घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं के लिए महत्वपूर्ण है:

1. आंतरिक सुरक्षा (Internal Security – GS Paper III):

  • सीमा पार आतंकवाद: पहलगाम हमला एक बार फिर सीमा पार आतंकवाद की समस्या को उजागर करता है, जो भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती है।
  • आतंकवादी नेटवर्क: आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण, भर्ती और प्रशिक्षण के तरीकों को समझना।
  • सुरक्षा बलों की भूमिका: उग्रवाद-विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों के सामने आने वाली चुनौतियाँ और उनकी भूमिका।
  • जनजातीय क्षेत्रों में आतंकवाद: जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों में आतंकवाद को नियंत्रित करने की जटिलताएँ।
  • खुफिया तंत्र की भूमिका: खुफिया जानकारी एकत्र करने और उसका प्रभावी ढंग से उपयोग करने का महत्व।

2. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations – GS Paper II):

  • भारत की विदेश नीति: भारत की आतंकवाद विरोधी कूटनीति और वैश्विक मंचों पर उसकी आवाज।
  • द्विपक्षीय संबंध: भारत और आयरलैंड जैसे देशों के बीच कूटनीतिक संबंध और सहयोग के क्षेत्र।
  • आतंकवाद विरोधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: संयुक्त राष्ट्र, जी20, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर आतंकवाद से निपटने के प्रयास।
  • भू-राजनीति और आतंकवाद: कैसे भू-राजनीतिक हित आतंकवाद को प्रभावित करते हैं और उनसे कैसे निपटा जाए।
  • पाकिस्तानी विदेश नीति का विश्लेषण: पाकिस्तान की आतंकवाद को लेकर दोहरी नीति और भारत पर उसके प्रभाव का विश्लेषण।

3. सामाजिक मुद्दे (Social Issues – GS Paper I) और शासन (Governance – GS Paper II):

  • सामुदायिक पुलिसिंग: स्थानीय समुदायों को सुरक्षा अभियानों में शामिल करने की आवश्यकता।
  • कानून और व्यवस्था: प्रभावी कानून प्रवर्तन तंत्र और न्याय प्रणाली।
  • आतंकवाद का सामाजिक प्रभाव: आतंकवाद से प्रभावित समुदायों का पुनर्वास और उनका पुन: एकीकरण।

चुनौतियाँ और आगे की राह

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक लंबी और कठिन यात्रा है। भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार: सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से कट्टरपंथी विचारों का तेजी से प्रसार।
  • वित्तीय सहायता: आतंकवादी समूहों को मिलने वाली वित्तीय सहायता को रोकना।
  • प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: आतंकवादी समूहों द्वारा संचार और योजना बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग।
  • डिजिटल युग में सुरक्षा: साइबर आतंकवाद और ऑनलाइन दुष्प्रचार का मुकाबला करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की कमी: कुछ देशों द्वारा आतंकवाद के प्रति सॉफ्ट रवैया अपनाना।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत को एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:

  • मजबूत खुफिया तंत्र: आतंकवादियों की योजनाओं का समय से पहले पता लगाने के लिए खुफिया जानकारी को और मजबूत करना।
  • कानूनी ढाँचा: आतंकवाद विरोधी कानूनों को सख्त करना और उनका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: आतंकवाद से लड़ने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग को और गहरा करना, विशेष रूप से सूचनाओं के आदान-प्रदान और प्रत्यर्पण संधियों पर।
  • जनजागरूकता: आतंकवाद के खतरों के बारे में जनता को शिक्षित करना और युवाओं को कट्टरपंथी बनने से रोकना।
  • आर्थिक विकास: जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ताकि निराशा और अलगाव की भावना को कम किया जा सके, जो आतंकवाद को पनपने के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करते हैं।
  • डी-रेडिकलाइजेशन कार्यक्रम: कट्टरपंथ से प्रभावित व्यक्तियों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रभावी डी-रेडिकलाइजेशन (de-radicalization) कार्यक्रम चलाना।

निष्कर्ष

पहलगाम हमला और प्रधानमंत्री मोदी का बयान, दोनों ही भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाते हैं। “आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंडों की जगह नहीं” का उनका आह्वान सिर्फ एक कूटनीतिक टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक अनिवार्यता है। जब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद के हर रूप के खिलाफ एकजुट नहीं होता और बिना किसी पक्षपात के कार्रवाई नहीं करता, तब तक दुनिया सुरक्षित नहीं हो सकती। भारत अपनी संप्रभुता और अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है, और वह आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगा, चाहे वह किसी भी रूप या स्रोत से आए। UPSC उम्मीदवारों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इस मुद्दे के विभिन्न आयामों को समझें, क्योंकि यह न केवल आंतरिक सुरक्षा के लिए, बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: पहलगाम हमला, जिसकी चर्चा हुई, किस राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में हुआ था?

    (a) हिमाचल प्रदेश
    (b) उत्तराखंड
    (c) जम्मू और कश्मीर
    (d) लद्दाख

    उत्तर: (c) जम्मू और कश्मीर

    व्याख्या: पहलगाम जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

  2. प्रश्न: प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान का मुख्य संदेश क्या था जिसमें उन्होंने कहा कि “आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंडों की जगह नहीं”?

    (a) केवल अपने देश के आतंकवाद से लड़ना महत्वपूर्ण है।
    (b) आतंकवाद के सभी रूपों को बिना किसी भेदभाव के समाप्त किया जाना चाहिए।
    (c) आतंकवाद को राजनीतिक लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
    (d) आतंकवाद से केवल सैन्य तरीकों से लड़ा जा सकता है।

    उत्तर: (b) आतंकवाद के सभी रूपों को बिना किसी भेदभाव के समाप्त किया जाना चाहिए।

    व्याख्या: यह बयान आतंकवाद के प्रति वैश्विक एकजुटता और किसी भी प्रकार के पक्षपात या दोहरे मापदंड से बचने की आवश्यकता पर बल देता है।

  3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय मंच है जहाँ भारत आतंकवाद पर एक व्यापक संधि (CCIT) के लिए प्रयासरत रहा है?

    (a) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
    (b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
    (c) संयुक्त राष्ट्र (UN)
    (d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

    उत्तर: (c) संयुक्त राष्ट्र (UN)

    व्याख्या: भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा तय करने और उस पर कार्रवाई के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा बनाने के उद्देश्य से एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद सम्मेलन (CCIT) का प्रस्ताव रखा है।

  4. प्रश्न: उस देश का नाम बताइए जिसके प्रधानमंत्री से पीएम मोदी ने हाल ही में मुलाकात की थी, जिससे यह बयान जुड़ा हुआ है।

    (a) ऑस्ट्रेलिया
    (b) आयरलैंड
    (c) कनाडा
    (d) न्यूजीलैंड

    उत्तर: (b) आयरलैंड

    व्याख्या: प्रधानमंत्री मोदी ने आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर से मुलाकात के दौरान यह टिप्पणी की थी।

  5. प्रश्न: “दोहरे मापदंड” (Double Standards) का संदर्भ क्या है, जब आतंकवाद की बात आती है?

    (a) आतंकवाद को केवल कुछ देशों द्वारा ही परिभाषित किया जाना चाहिए।
    (b) कुछ देश अपनी राष्ट्रीय नीतियों के अनुसार आतंकवाद को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं।
    (c) आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हमेशा सफल होती है।
    (d) आतंकवाद केवल एक विशेष धर्म से जुड़ा है।

    उत्तर: (b) कुछ देश अपनी राष्ट्रीय नीतियों के अनुसार आतंकवाद को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं।

    व्याख्या: दोहरे मापदंड का अर्थ है कि एक देश या समूह, एक ही प्रकार की कार्रवाई को, अपने हितों के आधार पर, कुछ मामलों में अस्वीकार्य और अन्य मामलों में स्वीकार्य मानता है।

  6. प्रश्न: आतंकवाद के अप्रत्यक्ष लक्ष्यों में से एक क्या हो सकता है, जैसा कि ऐसे हमलों में देखा जाता है?

    (a) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना
    (b) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना
    (c) सामाजिक सद्भाव बिगाड़ना और भय फैलाना
    (d) आर्थिक विकास को गति देना

    उत्तर: (c) सामाजिक सद्भाव बिगाड़ना और भय फैलाना

    व्याख्या: आतंकवादी हमलों का एक मुख्य उद्देश्य समाज में भय और अनिश्चितता फैलाना और विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करना है।

  7. प्रश्न: भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को अक्सर किस शब्द से परिभाषित किया जाता है?

    (a) रियायत (Concession)
    (b) शून्यता (Voidance)
    (c) शून्य सहनशीलता (Zero Tolerance)
    (d) परित्याग (Abandonment)

    उत्तर: (c) शून्य सहनशीलता (Zero Tolerance)

    व्याख्या: भारत की आधिकारिक नीति आतंकवाद के प्रति “शून्य सहनशीलता” की रही है, जिसका अर्थ है कि आतंकवाद को किसी भी परिस्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

  8. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रभावी ‘डी-रेडिकलाइजेशन’ (De-radicalization) कार्यक्रम का लक्ष्य होता है?

    (a) कट्टरपंथी विचारधारा को और बढ़ावा देना।
    (b) व्यक्तियों को हिंसक चरमपंथ से दूर कर समाज की मुख्यधारा में लाना।
    (c) आतंकवादी समूहों के लिए भर्ती बढ़ाना।
    (d) समाज में और अधिक अलगाव पैदा करना।

    उत्तर: (b) व्यक्तियों को हिंसक चरमपंथ से दूर कर समाज की मुख्यधारा में लाना।

    व्याख्या: डी-रेडिकलाइजेशन कार्यक्रमों का उद्देश्य उन व्यक्तियों को कट्टरपंथी विचारधाराओं से दूर करना है जिन्होंने हिंसक चरमपंथ को अपनाया है, और उन्हें समाज में पुनः एकीकृत करना है।

  9. प्रश्न: आतंकवादी समूह अक्सर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किस माध्यम का दुरुपयोग करते हैं?

    (a) केवल पारंपरिक मीडिया
    (b) केवल सामाजिक मीडिया
    (c) पारंपरिक मीडिया और सोशल मीडिया दोनों
    (d) केवल साहित्यिक प्रकाशन

    उत्तर: (c) पारंपरिक मीडिया और सोशल मीडिया दोनों

    व्याख्या: आतंकवादी संगठन अपनी विचारधारा के प्रसार, भर्ती और दुष्प्रचार के लिए पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करते हैं।

  10. प्रश्न: यदि आतंकवाद एक ‘विचारधारा’ है, जैसा कि अक्सर कहा जाता है, तो इससे लड़ने के लिए केवल सैन्य उपायों के अलावा किन अन्य उपायों की आवश्यकता है?

    (a) केवल आर्थिक प्रतिबंध
    (b) केवल कूटनीतिक बातचीत
    (c) सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी पहल
    (d) केवल सैन्य अभ्यास

    उत्तर: (c) सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी पहल

    व्याख्या: एक विचारधारा के रूप में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए, केवल सैन्य या सुरक्षा उपायों के बजाय, उन सामाजिक-आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारणों को संबोधित करना आवश्यक है जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देते हैं।

    मुख्य परीक्षा (Mains)

    1. प्रश्न: “आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंडों की जगह नहीं” – प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के आलोक में, आतंकवाद के विरुद्ध भारत की वैश्विक कूटनीति का विश्लेषण कीजिए। इसमें भारत के सामने आने वाली चुनौतियों और आगे की राह पर भी प्रकाश डालिए। (250 शब्द, 15 अंक)
    2. प्रश्न: आतंकवाद एक जटिल और बहुआयामी सुरक्षा चुनौती है। पहलगाम हमले के संदर्भ में, भारत के लिए सीमा पार आतंकवाद की प्रकृति, इसके कारणों और परिणामों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
    3. प्रश्न: आधुनिक युग में आतंकवाद से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका की विवेचना कीजिए। संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद विरोधी पहलों और भारत की भूमिका का उल्लेख करते हुए, उन प्रमुख बाधाओं की पहचान करें जो प्रभावी वैश्विक सहयोग में बाधक हैं। (150 शब्द, 10 अंक)
    4. प्रश्न: भारत में आंतरिक सुरक्षा के लिए आतंकवाद एक निरंतर खतरा बना हुआ है। जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में आतंकवाद के सामाजिक-आर्थिक कारकों और आतंकवाद विरोधी अभियानों में ‘सामुदायिक पुलिसिंग’ तथा ‘डी-रेडिकलाइजेशन’ कार्यक्रमों के महत्व पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (150 शब्द, 10 अंक)

    सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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