न्यायिक शुचिता पर संकट? जज वर्मा की याचिका और ‘घर पर नकदी’ के दावों का पर्दाफाश
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वर्मा (पहचान गुप्त रखने के लिए एक उपनाम), से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। उन पर ‘घर पर नकदी’ (Cash-at-home) रखने का आरोप लगाया गया है, और इससे भी अधिक सनसनीखेज बात यह है कि उनकी सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में दायर एक याचिका में उनकी पहचान ‘XXX’ के रूप में छिपाई गई है। इस घटना ने न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगाए हैं, बल्कि न्यायिक जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास के नाजुक संतुलन को भी हिला दिया है। यह मामला उन गहन मुद्दों को उजागर करता है जो न्याय प्रणाली के कामकाज, न्यायाधीशों के आचरण और आम आदमी के न्यायपालिका पर भरोसे से जुड़े हैं।
न्यायपालिका: लोकतंत्र का आधार स्तंभ (The Judiciary: A Pillar of Democracy)
किसी भी मजबूत लोकतंत्र की पहचान उसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका से होती है। भारत का संविधान भी न्यायपालिका को विशेष महत्व देता है, इसे विधायिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने के लिए व्यापक प्रावधान करता है। न्यायपालिका का मुख्य कार्य संविधान की रक्षा करना, कानूनों की व्याख्या करना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखना है। एक न्यायाधीश की भूमिका केवल कानूनी निर्णय देना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि न्याय सभी के लिए सुलभ और निष्पक्ष हो। इस भूमिका के लिए आवश्यक है कि न्यायाधीशों का आचरण अत्यंत गरिमापूर्ण, पारदर्शी और सत्यनिष्ठ हो।
‘घर पर नकदी’ विवाद: क्या है पूरा मामला? (The ‘Cash-at-home’ Controversy: What’s the Whole Story?)
यह विवाद एक ऐसे न्यायाधीश के इर्द-गिर्द घूमता है जिन पर अपनी संपत्ति के एक हिस्से को ‘घर पर नकदी’ के रूप में रखने का आरोप है। यह अपने आप में एक गंभीर वित्तीय और नैतिक प्रश्न उठाता है। ‘घर पर नकदी’ का सामान्य अर्थ होता है कि किसी व्यक्ति के पास बड़ी मात्रा में भौतिक नकदी (यानी, नोटों के रूप में पैसा) मौजूद है, जिसे उसने किसी बैंक या वित्तीय संस्थान में जमा नहीं कराया है। ऐसे आरोप अक्सर वित्तीय अनियमितताओं, अवैध आय, या मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों से जुड़े होते हैं।
इस विशिष्ट मामले में, आरोप यह भी है कि न्यायाधीश वर्मा ने अपनी सर्वोच्च न्यायालय की याचिका में अपनी पहचान को ‘XXX’ के रूप में छिपाया। यह कृत्य अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया में गोपनीयता और संभावित रूप से जवाबदेही से बचने के प्रयास का संकेत देता है। न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भूमिकाओं में पूर्ण पारदर्शिता बनाए रखें, विशेषकर जब वे कानूनी कार्यवाही का हिस्सा हों। अपनी पहचान छिपाना, खासकर एक उच्च न्यायालय में, जनता के मन में संदेह पैदा करता है:
- पहचान छिपाने का क्या कारण हो सकता है?
- क्या यह किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है?
- क्या इससे मामले की निष्पक्ष सुनवाई प्रभावित हो सकती है?
न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता: क्यों महत्वपूर्ण हैं? (Judicial Accountability and Transparency: Why are they Crucial?)
न्यायपालिका की विश्वसनीयता सीधे तौर पर उसकी जवाबदेही और पारदर्शिता से जुड़ी होती है। जनता का विश्वास ही न्यायपालिका को उसका अधिकार और शक्ति प्रदान करता है। जब एक न्यायाधीश जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह विश्वास डगमगा सकता है।
“न्याय को न केवल होते हुए देखना चाहिए, बल्कि उसे होते हुए दिखना भी चाहिए।” – यह कहावत न्यायपालिका के कामकाज पर भी लागू होती है।
पारदर्शिता का अर्थ है कि न्यायिक प्रक्रियाएं खुली हों, निर्णय तर्कसंगत हों और सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध हों। जवाबदेही का अर्थ है कि न्यायाधीश और न्यायपालिका अपनी गलतियों या कदाचार के लिए जिम्मेदार हों और जवाबदेह ठहराए जा सकें।
न्यायिक जवाबदेही से जुड़े मौजूदा तंत्र (Existing Mechanisms for Judicial Accountability):
- महाभियोग (Impeachment): संसद के पास कदाचार के आधार पर न्यायाधीशों को हटाने की शक्ति है, लेकिन यह एक अत्यंत जटिल और दुर्लभ प्रक्रिया है।
- आंतरिक जांच (Internal Inquiries): सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के पास न्यायाधीशों के आचरण की प्रारंभिक जांच के आदेश देने की शक्ति होती है।
- न्यायिक आचरण संहिता (Code of Judicial Conduct): न्यायाधीशों के लिए आचरण के नैतिक मानक निर्धारित किए जाते हैं।
हालांकि, ये तंत्र तब भी सवालों के घेरे में आ जाते हैं जब कोई न्यायाधीश स्वयं कानूनी प्रक्रिया में अपनी पहचान छिपाने का प्रयास करता है। न्यायाधीश वर्मा का मामला इन मौजूदा तंत्रों की प्रभावशीलता पर भी प्रकाश डालता है।
‘XXX’ पहचान का रहस्य: क्या मायने हैं? (The Mystery of ‘XXX’ Identity: What are the Implications?)
किसी याचिकाकर्ता की पहचान को ‘XXX’ के रूप में छिपाना एक असामान्य और चिंताजनक कृत्य है। इसके कई संभावित अर्थ हो सकते हैं:
- सुरक्षा चिंताएं (Security Concerns): कभी-कभी, विशेष रूप से धमकी या उत्पीड़न के जोखिम वाले मामलों में, व्यक्तियों की पहचान गुप्त रखी जाती है। हालाँकि, एक न्यायाधीश के मामले में, यह तर्क कमज़ोर पड़ जाता है जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो।
- मामले की संवेदनशीलता (Sensitivity of the Case): हो सकता है कि याचिका स्वयं किसी अत्यंत संवेदनशील मामले से जुड़ी हो, जहाँ याचिकाकर्ता की पहचान उजागर होने से उसके व्यक्तिगत जीवन या उसकी संपत्ति पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता हो।
- सार्वजनिक या पेशेवर प्रतिष्ठा की रक्षा (Protection of Public or Professional Reputation): यह सबसे संभावित कारणों में से एक हो सकता है, जहाँ न्यायाधीश अपनी प्रतिष्ठा को संभावित धूमिल होने से बचाना चाहता हो।
- प्रक्रियात्मक चालाकी (Procedural Maneuvering): यह एक चाल हो सकती है ताकि मामले का प्रारंभिक चरण बिना सार्वजनिक जांच के बीत जाए या किसी विशेष लाभ को प्राप्त किया जा सके।
सर्वोच्च न्यायालय में किसी याचिकाकर्ता की पहचान छिपाना एक असाधारण स्थिति है। आम तौर पर, न्यायिक कार्यवाही पारदर्शी होती है, और याचिकाकर्ताओं की पहचान सार्वजनिक डोमेन में होती है। जब यह पहचान एक न्यायाधीश की होती है, तो यह कई सवाल खड़े करती है। क्या यह न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का मामला है? क्या यह न्यायपालिका के भीतर ‘अदृश्य’ शक्ति संरचनाओं को इंगित करता है?
‘घर पर नकदी’ और ‘पहचान छुपाने’ का दोहरा वार (The Double Blow of ‘Cash-at-home’ and ‘Hiding Identity’)
न्यायाधीश वर्मा के मामले में, ‘घर पर नकदी’ का आरोप और ‘पहचान छुपाना’ एक साथ मिलकर एक गंभीर चिंता उत्पन्न करते हैं। ये दोनों पहलू अलग-अलग भी चिंताजनक हैं, लेकिन जब वे एक ही व्यक्ति से जुड़े होते हैं, तो वे न्यायपालिका की अखंडता पर सीधे प्रहार करते हैं।
‘घर पर नकदी’ से जुड़े संभावित मुद्दे:
- कर चोरी (Tax Evasion): बड़ी मात्रा में नकदी को बिना घोषित रखना आय छिपाने और करों से बचने का एक तरीका हो सकता है।
- अवैध धन (Illicit Funds): यह काला धन या भ्रष्टाचार से अर्जित धन हो सकता है।
- वित्तीय अनियमितता (Financial Irregularity): यह वित्तीय प्रबंधन में लापरवाही या जानबूझकर की गई अनियमितता का संकेत हो सकता है।
‘पहचान छुपाना’ से जुड़े संभावित मुद्दे:
- पारदर्शिता का अभाव (Lack of Transparency): जैसा कि पहले चर्चा की गई, यह जवाबदेही से बचने का संकेत हो सकता है।
- पक्षपात का संदेह (Suspicion of Bias): यदि न्यायाधीश किसी मामले में पक्षकार है और अपनी पहचान छिपाता है, तो यह निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
- सार्वजनिक विश्वास का क्षरण (Erosion of Public Trust): ऐसे कार्य जनता के मन में यह संदेह पैदा करते हैं कि न्यायपालिका स्वयं नियमों से ऊपर है।
यह दोहरा आरोप एक ऐसे न्यायाधीश के बारे में सवाल खड़े करता है जो न केवल वित्तीय नियमों का पालन करने में संदिग्ध हो सकता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने को भी महत्व नहीं देता।
UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC):
यह मामला UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह निम्नलिखित विषयों से जुड़ा है:
- भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity): न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कार्यपालिका और विधायिका से संबंध, मौलिक अधिकार, संवैधानिक नैतिकता।
- शासन (Governance): पारदर्शिता, जवाबदेही, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय, लोकपाल, लोकसेवक आचरण नियम।
- नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि (Ethics, Integrity, and Aptitude): लोक सेवकों के लिए नैतिक मानक, सत्यनिष्ठा का महत्व, सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना, नैतिक दुविधाएं।
- समसामयिक मामले (Current Affairs): न्यायिक सुधार, न्यायपालिका से संबंधित विवाद, वित्तीय कानून।
UPSC उम्मीदवार इस मामले का विश्लेषण विभिन्न दृष्टिकोणों से कर सकते हैं:
- न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए?
- क्या न्यायाधीशों के लिए एक समान आचार संहिता (Code of Conduct) की आवश्यकता है जो अधिक कठोर हो?
- पारदर्शिता के तंत्र को कैसे मजबूत किया जा सकता है?
- क्या न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों को संभालने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है?
संभावित परिदृश्य और विश्लेषण (Potential Scenarios and Analysis):
परिदृश्य 1: सुरक्षा के लिए पहचान छिपाना (Hiding Identity for Security)
यदि न्यायाधीश वर्मा को वास्तविक खतरा महसूस हुआ हो, तो उनकी पहचान छिपाना उचित हो सकता है। हालाँकि, ऐसे में, सर्वोच्च न्यायालय को याचिका की संवेदनशीलता और पहचान गुप्त रखने के कारण की पुष्टि करनी चाहिए। इसके लिए न्यायिक प्रणाली के भीतर एक अधिक औपचारिक और पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए, भले ही याचिकाकर्ता की पहचान गोपनीय रखी जाए।
परिदृश्य 2: प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास (Attempt to Save Reputation)
यदि यह केवल प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास है, तो यह न्यायिक मूल्यों के खिलाफ है। एक न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह आरोपों का सामना करे और अपनी बेगुनाही साबित करे, न कि छिपकर या प्रक्रिया का दुरुपयोग करके बचा जाए। इस स्थिति में, यह न्यायिक प्रणाली में गंभीर दोषों को इंगित करता है।
परिदृश्य 3: प्रक्रियात्मक लाभ (Procedural Advantage)
यह भी संभव है कि पहचान छिपाकर किसी प्रकार का प्रक्रियात्मक लाभ उठाने का प्रयास किया गया हो। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक जांच से बचकर मामला जल्दी निपटाना या किसी विशेष नियम का लाभ लेना। यह सीधे तौर पर न्याय की प्रक्रिया को विकृत करने का प्रयास है।
पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons):
पक्ष (Pros – यदि किसी विशेष परिप्रेक्ष्य में देखे जाएं):
- संभावित सुरक्षा (Potential Security): यदि खतरा वास्तविक है, तो पहचान छिपाना याचिकाकर्ता के लिए सुरक्षित हो सकता है।
- गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy): कुछ विशेष परिस्थितियों में, व्यक्तिगत गोपनीयता बनाए रखना महत्वपूर्ण हो सकता है।
विपक्ष (Cons – यह पक्ष से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं):
- पारदर्शिता का उल्लंघन (Violation of Transparency): न्यायिक प्रक्रियाओं को पारदर्शी होना चाहिए।
- जवाबदेही से बचना (Evading Accountability): पहचान छिपाना जवाबदेही से बचने का एक तरीका हो सकता है।
- सार्वजनिक विश्वास को क्षति (Damage to Public Trust): ऐसे कार्य जनता के मन में संदेह पैदा करते हैं।
- न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग (Abuse of Judicial Process): पहचान छिपाना एक procedural loophole का फायदा उठाना हो सकता है।
- निष्पक्षता पर सवाल (Questions on Fairness): क्या यह मामले के दूसरे पक्ष के लिए निष्पक्ष है?
- न्यायिक शुचिता पर प्रश्नचिह्न (Question Mark on Judicial Probity): यह न्यायाधीश के व्यक्तिगत आचरण और ईमानदारी पर गंभीर सवाल उठाता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward):
चुनौतियाँ (Challenges):
- न्यायिक आचार संहिता का प्रवर्तन (Enforcement of Judicial Code of Conduct): मौजूदा आचार संहिता को प्रभावी ढंग से लागू करना एक चुनौती है।
- न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराना (Holding Judges Accountable): महाभियोग प्रक्रिया की जटिलता इसे एक कठिन कार्य बनाती है।
- पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन (Balancing Transparency and Confidentiality): कब और कैसे गोपनीयता की अनुमति दी जानी चाहिए, यह एक नाजुक संतुलन है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा (Protecting Judicial Independence): जवाबदेही के तंत्र को इस तरह से डिजाइन करना कि वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित न करे।
भविष्य की राह (Way Forward):
- न्यायिक आचार संहिता में सुधार (Reforming the Judicial Code of Conduct): न्यायाधीशों के लिए अधिक स्पष्ट और कठोर आचार संहिता बनाई जानी चाहिए, जिसमें वित्तीय आचरण और सार्वजनिक आचरण के मानक शामिल हों।
- स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र (Independent Grievance Redressal Mechanism): न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों को सुनने के लिए एक स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय का गठन किया जाना चाहिए। यह निकाय निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित कर सकता है।
- पारदर्शिता बढ़ाना (Increasing Transparency): न्यायिक नियुक्तियों, संपत्ति घोषणाओं और कदाचार की जांच की प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता लाई जानी चाहिए।
- न्यायिक जवाबदेही अधिनियम (Judicial Accountability Act): भारत में अभी भी न्यायिक जवाबदेही के लिए एक व्यापक कानून नहीं है। ऐसे कानून की आवश्यकता है जो न्यायाधीशों के लिए स्पष्ट जवाबदेही तंत्र स्थापित करे।
- न्यायाधीशों के लिए निरंतर प्रशिक्षण (Continuous Training for Judges): नैतिक आचरण, वित्तीय प्रबंधन और उभरते कानूनी मुद्दों पर न्यायाधीशों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
- पहचान छिपाने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश (Clear Guidelines for Hiding Identity): यदि किसी विशेष परिस्थिति में पहचान छिपाना आवश्यक हो, तो इसके लिए स्पष्ट और सुसंगत दिशानिर्देश होने चाहिए, जो सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण सहमति से ही लागू हों।
निष्कर्ष (Conclusion):
न्यायाधीश वर्मा का ‘घर पर नकदी’ और ‘पहचान छुपाने’ का मामला एक गंभीर चेतावनी है। यह न्यायपालिका की शुचिता, पारदर्शिता और जवाबदेही को बनाए रखने की हमारी सामूहिक जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। जब न्यायाधीश ही नियमों और पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं, तो यह संपूर्ण व्यवस्था पर जनता के विश्वास को हिला देता है। भारत को अपनी न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता के तंत्र को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है। यह केवल कानूनों को बदलने का मामला नहीं है, बल्कि यह उस नैतिक आधार को मजबूत करने का मामला है जिस पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है। न्यायिक स्वतंत्रता का अर्थ मनमानी या उत्तरदायित्वहीनता नहीं है; इसका अर्थ है निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ शासन करना, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. ‘घर पर नकदी’ (Cash-at-home) रखने का आरोप आमतौर पर किस प्रकार की अनियमितताओं से जुड़ा हो सकता है?
(a) कर चोरी और अवैध धन
(b) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
(c) मौद्रिक नीति का विस्तार
(d) बैंक जमा को प्रोत्साहित करना
उत्तर: (a)
व्याख्या: ‘घर पर नकदी’ रखने के आरोप अक्सर आय को छिपाने, करों से बचने या अवैध स्रोतों से प्राप्त धन को रखने से जुड़े होते हैं, जो कर चोरी और अवैध धन जैसी अनियमितताओं का संकेत देते हैं।
2. भारतीय संविधान के तहत, न्यायाधीशों को कदाचार के आधार पर पद से हटाने की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(a) अविश्वास प्रस्ताव
(b) महाभियोग
(c) सेंसर प्रस्ताव
(d) न्यायिक समीक्षा
उत्तर: (b)
व्याख्या: संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217(1)(b) के तहत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को कदाचार या अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से हटाया जा सकता है।
3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है?
(a) इसका अर्थ न्यायाधीशों का किसी बाहरी दबाव से मुक्त होकर निर्णय लेना है।
(b) इसका अर्थ न्यायाधीशों का किसी भी नियम या कानून का पालन न करना है।
(c) यह संविधान के मौलिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
(d) यह निष्पक्ष न्याय प्रदान करने के लिए आवश्यक है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायाधीश बाहरी दबावों से मुक्त होकर निष्पक्ष निर्णय लें, न कि वे किसी भी नियम या कानून का पालन न करें। स्वतंत्रता का अर्थ उत्तरदायित्वहीनता नहीं है।
4. न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) का संबंध किससे है?
(a) न्यायाधीशों द्वारा दिए गए निर्णयों की समीक्षा करना।
(b) न्यायाधीशों के आचरण और उनके कार्यों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराना।
(c) न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को तेज करना।
(d) अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायिक जवाबदेही का तात्पर्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायाधीश अपने आचरण, निर्णयों और सार्वजनिक पद के प्रति जिम्मेदार हों और कदाचार के मामलों में उन्हें जवाबदेह ठहराया जा सके।
5. निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रभावी न्यायिक जवाबदेही तंत्र है?
(a) सार्वजनिक रूप से न्यायाधीशों की आलोचना करना।
(b) न्यायाधीशों के लिए एक स्पष्ट आचार संहिता और शिकायत निवारण प्रणाली।
(c) अदालतों के फैसले को तुरंत लागू करना।
(d) जजों की व्यक्तिगत संपत्ति की जांच करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायाधीशों के लिए एक स्पष्ट आचार संहिता, जो उनके आचरण के मानकों को निर्धारित करती है, और एक निष्पक्ष शिकायत निवारण प्रणाली, एक प्रभावी जवाबदेही तंत्र के महत्वपूर्ण घटक हैं।
6. सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता की पहचान को ‘XXX’ के रूप में छिपाना निम्नलिखित में से किस पर संदेह उत्पन्न कर सकता है?
(a) याचिका की योग्यता
(b) न्यायाधीश का आचरण और प्रक्रियात्मक पारदर्शिता
(c) अदालत का प्रशासनिक कार्य
(d) मामले की सुनवाई का समय
उत्तर: (b)
व्याख्या: किसी याचिकाकर्ता की पहचान छिपाना, विशेषकर यदि वह न्यायाधीश हो, तो उसके आचरण और न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के सिद्धांत पर संदेह उत्पन्न कर सकता है।
7. भारत में, न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा से संबंधित क्या स्थिति है?
(a) यह पूरी तरह से सार्वजनिक है।
(b) यह स्वैच्छिक है और हमेशा सार्वजनिक नहीं होती।
(c) इसके लिए कोई नियम नहीं हैं।
(d) यह केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए अनिवार्य है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा की नीति भारत में थोड़ी अस्पष्ट है; हालांकि कुछ स्वैच्छिक घोषणाएँ होती हैं, यह पूर्णतः सार्वजनिक या सभी न्यायाधीशों के लिए समान रूप से अनिवार्य नहीं है, जो पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
8. न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) यह न्यायाधीशों के काम को आसान बनाती है।
(b) यह सुनिश्चित करती है कि निर्णय मनमाने न हों और जनता का विश्वास बना रहे।
(c) यह अदालतों के लिए धन जुटाने में मदद करती है।
(d) यह केवल सजा सुनाने की प्रक्रिया को तेज करती है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: पारदर्शिता यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रियाएं खुली हों, निर्णय तार्किक हों और जनता को प्रक्रिया पर विश्वास हो, जिससे न्यायपालिका की वैधता बनी रहती है।
9. न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने का उद्देश्य क्या है?
(a) न्यायाधीशों को राजनीतिक लाभ उठाने में सक्षम बनाना।
(b) यह सुनिश्चित करना कि न्यायपालिका इन शाखाओं के अनुचित प्रभाव से मुक्त होकर कार्य कर सके।
(c) केवल न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते तय करना।
(d) अदालतों में मुकदमों की संख्या बढ़ाना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है कि वह निष्पक्ष रूप से संविधान की रक्षा कर सके और नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण कर सके, बिना विधायिका या कार्यपालिका के हस्तक्षेप के।
10. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) भारतीय सेना के भ्रष्टाचार की जांच करना।
(b) लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र निकाय स्थापित करना।
(c) केवल उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की जांच करना।
(d) चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली की निगरानी करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 का उद्देश्य केंद्र और राज्यों में लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित करना है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. ‘न्यायिक शुचिता’ (Judicial Probity) की अवधारणा का विश्लेषण करें और भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालें। न्यायाधीशों के कदाचार से निपटने के लिए मौजूदा तंत्र की पर्याप्तता का मूल्यांकन करें और सुधारों के लिए सुझाव दें। (250 शब्द)
2. ‘घर पर नकदी’ (Cash-at-home) रखने और न्यायिक याचिकाओं में पहचान छिपाने जैसे आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को कैसे प्रभावित करते हैं? इस संदर्भ में, न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखते हुए उसकी जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जा सकती है? (150 शब्द)
3. किसी न्यायाधीश द्वारा अपनी पहचान छिपाना या वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त होना, न्यायिक व्यवस्था के प्रति जनता के विश्वास को कैसे कमज़ोर करता है? ऐसे विश्वास को बहाल करने और बनाए रखने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की विवेचना करें। (150 शब्द)
4. भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है? ऐसे तंत्रों पर चर्चा करें जो न्यायाधीशों के आचरण को विनियमित कर सकें बिना उनकी आवश्यक स्वतंत्रता से समझौता किए। (250 शब्द)