न्यायाधीश वर्मा का ‘XXX’ रहस्य: सुप्रीम कोर्ट याचिका में पहचान छिपाने का पूरा सच!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, भारत के न्यायिक परिदृश्य में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम सामने आया है, जिसने न केवल आम जनमानस बल्कि विधि विशेषज्ञों और सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह मामला ‘कैश-इन-कोठी’ (Cash-in-kothi) विवाद के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें एक माननीय न्यायाधीश, जिन्हें हम फिलहाल ‘न्यायाधीश वर्मा’ के नाम से संबोधित कर रहे हैं, की सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में उनकी पहचान को ‘XXX’ के रूप में छुपाए जाने की बात सामने आई है। यह स्थिति कई गंभीर सवाल खड़े करती है: न्यायाधीश वर्मा कौन हैं? उनकी पहचान क्यों छुपाई गई? ‘XXX’ का क्या मतलब है? और इस पूरी घटना का ‘कैश-इन-कोठी’ जैसे गंभीर आरोप से क्या संबंध है? यह लेख इस जटिल मामले की तह तक जाकर, इसके विभिन्न पहलुओं, संभावित निहितार्थों और UPSC उम्मीदवारों के लिए इसके महत्व पर प्रकाश डालेगा।
यह घटना केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और अखंडता पर एक व्यापक बहस को जन्म देती है। जब न्याय व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की पहचान ही सवालों के घेरे में हो, तो यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस प्रकार की परिस्थितियाँ कैसे उत्पन्न होती हैं और इनके दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं।
‘कैश-इन-कोठी’ विवाद: क्या है पूरा मामला?
‘कैश-इन-कोठी’ एक ऐसा शब्द है जो अक्सर भ्रष्टाचार और अवैध धन के संदिग्ध स्रोतों को इंगित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। सरल शब्दों में, यह उन स्थितियों को दर्शाता है जहाँ बड़ी मात्रा में नकदी या मूल्यवान संपत्ति किसी गुप्त स्थान (जैसे कोठी या सुरक्षित घर) में पाई जाती है, और यह स्पष्ट नहीं होता कि यह धन किसका है या इसका स्रोत क्या है। अक्सर ऐसे मामले मनी लॉन्ड्रिंग, आय से अधिक संपत्ति, या अन्य अवैध गतिविधियों से जुड़े होते हैं।
इस विशेष मामले में, एक न्यायाधीश (न्यायाधीश वर्मा) एक ऐसी स्थिति में शामिल पाए गए हैं जहाँ उनकी एक सुप्रीम कोर्ट याचिका में पहचान ‘XXX’ के रूप में दर्ज की गई है। इस ‘XXX’ कोडिंग का अर्थ स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से न्यायाधीश वर्मा की पहचान को सार्वजनिक जांच से बचाने का एक प्रयास प्रतीत होता है। यह कृत्य कई प्रश्न उठाता है:
- न्यायाधीश की संलिप्तता: क्या न्यायाधीश वर्मा सीधे तौर पर ‘कैश-इन-कोठी’ से जुड़े हैं?
- पहचान छुपाने का कारण: यदि वे निर्दोष हैं, तो उन्हें अपनी पहचान क्यों छुपानी पड़ी? क्या यह उनकी सुरक्षा के लिए था, या किसी बड़े पर्दे के पीछे की चाल का हिस्सा?
- ‘XXX’ का महत्व: क्या ‘XXX’ किसी पदनाम, किसी कोड वर्ड, या किसी विशिष्ट समूह का प्रतीक है?
- कानूनी प्रक्रिया: सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था में याचिका दायर करते समय पहचान छुपाना कितना वैध है?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाम पारदर्शिता: एक नाजुक संतुलन
भारतीय संविधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसका अर्थ है कि न्यायाधीशों को बाहरी दबावों, विशेषकर सरकार या राजनीतिक दलों के हस्तक्षेप से मुक्त होकर निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त है। यह स्वतंत्रता निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
हालाँकि, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ पारदर्शिता की बलि देना नहीं है। जनता का न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखने के लिए, न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। जब किसी न्यायाधीश की पहचान को गोपनीय रखा जाता है, विशेषकर किसी ऐसे मामले में जो भ्रष्टाचार से जुड़ा हो सकता है, तो यह जनता के विश्वास को ठेस पहुँचा सकता है।
उपमा: सोचिए कि एक स्कूल का प्रिंसिपल किसी गंभीर धोखाधड़ी की जांच में अपनी पहचान गुप्त रख रहा है। इससे छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में संदेह पैदा होगा कि क्या प्रिंसिपल स्वयं इस मामले में शामिल है या कुछ छुपा रहा है। इसी तरह, एक न्यायाधीश का अपनी पहचान छुपाना न्यायपालिका की छवि पर एक धब्बा लगा सकता है।
पहचान छुपाने की कानूनी और नैतिक सीमाएं
भारतीय कानून और न्यायपालिका के अपने मानक और परंपराएँ हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है, जिसमें याचिकाकर्ता की पहचान स्पष्ट रूप से बताई जाती है। किसी विशेष परिस्थिति में, जैसे कि किसी गवाह की सुरक्षा या किसी संवेदनशील मामले के लिए, अदालत विशेष निर्देश दे सकती है, लेकिन यह आमतौर पर दुर्लभ होता है और इसके पुख्ता कारण होने चाहिए।
मुख्य प्रश्न:
- क्या न्यायाधीश वर्मा ने आत्म-सुरक्षा के लिए अपनी पहचान छुपाई?
- क्या यह पहचान छुपाने का निर्णय उनकी अपनी इच्छा थी, या किसी बाहरी दबाव का परिणाम?
- क्या सुप्रीम कोर्ट ने इस पहचान छुपाने के अनुरोध को स्वीकार करने में उचित प्रक्रिया का पालन किया?
नैतिक रूप से, सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति, विशेषकर न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अत्यंत उच्च नैतिक मानकों का पालन करें और पारदर्शी रहें। किसी भी प्रकार का संदेह, चाहे वह निराधार ही क्यों न हो, उनकी प्रतिष्ठा और न्यायपालिका की विश्वसनीयता को धूमिल कर सकता है।
“पारदर्शिता जवाबदेही की जननी है।” – महात्मा गांधी।
यह कथन न्यायपालिका पर भी समान रूप से लागू होता है।
‘XXX’ का संभावित अर्थ: अटकलें और संभावनाएँ
जब किसी व्यक्ति, विशेषकर एक न्यायाधीश की पहचान को ‘XXX’ के रूप में दर्शाया जाता है, तो यह कई अटकलों को जन्म देता है। इसके कुछ संभावित अर्थ हो सकते हैं:
- संवेदनशील पहचान: यह किसी विशेष पदनाम (जैसे, एक उच्च पदस्थ अधिकारी जो सीधे तौर पर मामले से जुड़ा हो) या किसी गुप्त एजेंसी से संबंधित व्यक्ति का संकेत हो सकता है।
- पहचान की सुरक्षा: हो सकता है कि न्यायाधीश को किसी विशेष मामले में जान का खतरा हो, या उनकी पहचान उजागर होने से किसी बड़ी जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता हो।
- बचाव का तरीका: यह संभावित रूप से किसी अपराध या गलत काम में अपनी भूमिका को छुपाने का एक तरीका हो सकता है, या किसी बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकता है।
- सिर्फ एक सांकेतिक शब्द: यह भी संभव है कि ‘XXX’ का कोई गहरा अर्थ न हो, बल्कि यह केवल एक अस्थायी कोड हो जब तक कि असली पहचान सार्वजनिक न की जाए।
यह महत्वपूर्ण है कि हम बिना पुख्ता सबूत के किसी निष्कर्ष पर न पहुँचें, लेकिन यह भी समझें कि इस तरह के कदम क्यों उठाए जाते हैं और ये क्या दर्शा सकते हैं।
‘कैश-इन-कोठी’ विवाद के व्यापक निहितार्थ
यह मामला केवल एक न्यायाधीश की पहचान से कहीं बढ़कर है। इसके निहितार्थ दूरगामी हो सकते हैं:
1. न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर प्रभाव
- जनता का विश्वास: यदि जनता यह मान ले कि न्यायाधीश भी पारदर्शी नहीं हैं या वे गलत कामों से जुड़े हो सकते हैं, तो न्यायपालिका में उनका विश्वास डगमगा सकता है।
- नैतिक मानक: यह मामला न्यायपालिका के लिए उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
2. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई
- संदिग्धता का माहौल: जब न्यायपालिका के सदस्य ही संदेह के घेरे में आते हैं, तो यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई को कमजोर कर सकता है।
- जांच की निष्पक्षता: क्या ऐसे मामले में की गई कोई भी जांच निष्पक्ष हो पाएगी?
3. कानूनी और संवैधानिक प्रश्न
- न्यायिक जवाबदेही: न्यायाधीशों की जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाए?
- पारदर्शिता के सिद्धांत: क्या न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता का सिद्धांत सर्वोपरि होना चाहिए?
- सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या भूमिका निभाई और क्या उसने उचित प्रक्रिया का पालन किया?
4. मीडिया की भूमिका
मीडिया का काम जनता को सूचित करना है। इस मामले में, मीडिया ने ‘कैश-इन-कोठी’ और न्यायाधीश की छिपी हुई पहचान के बीच संबंध को उजागर किया है। हालाँकि, मीडिया को संवेदनशील मामलों में रिपोर्टिंग करते समय जिम्मेदारी और सटीकता से काम लेना चाहिए, खासकर जब न्यायपालिका जैसे संवेदनशील संस्थान शामिल हों।
UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिकता
यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:
- भारतीय शासन और राजनीति: यह न्यायपालिका, सरकार और जनता के बीच संबंधों, शक्तियों के पृथक्करण, और जवाबदेही तंत्र को समझने का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- नैतिकता और अखंडता (GS Paper IV): यह लोक प्रशासन में नैतिकता, सत्यनिष्ठा और गैर-पक्षपात के महत्व पर प्रकाश डालता है। एक न्यायाधीश से उम्मीद की जाती है कि वह इन मूल्यों का प्रतीक हो।
- समसामयिक मामले (GS Paper I, II, III): यह सीधे तौर पर समसामयिक मामलों का हिस्सा है, जो भारतीय समाज, शासन और कानून से जुड़ा है।
- प्रश्न-पत्र निर्माण: ऐसे मामले अक्सर परीक्षा के प्रश्न-पत्रों में विश्लेषणात्मक प्रश्नों के रूप में दिखाई देते हैं, जो उम्मीदवार की विश्लेषण क्षमता का परीक्षण करते हैं।
आगे की राह (Way Forward)
इस मामले को सुलझाने और न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
- पूर्ण पारदर्शी जांच: मामले की एक स्वतंत्र और पारदर्शी जांच होनी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।
- स्पष्टीकरण: संबंधित प्राधिकारियों को ‘XXX’ के उपयोग और पहचान छुपाने के कारणों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।
- न्यायिक सुधार: यदि आवश्यक हो, तो न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए सुधारों पर विचार किया जाना चाहिए।
- जन जागरूकता: जनता को न्यायपालिका की भूमिका, उसकी स्वतंत्रता और उसकी जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि एक या कुछ व्यक्तियों के कार्यों से पूरी न्यायपालिका को परिभाषित नहीं किया जा सकता। भारतीय न्यायपालिका में कई ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्होंने निष्ठा और ईमानदारी से सेवा की है। हालाँकि, ऐसे मामले न्यायपालिका को अपनी कमजोरियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का अवसर प्रदान करते हैं।
यह ‘कैश-इन-कोठी’ और न्यायाधीश वर्मा की ‘XXX’ पहचान का मामला भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इससे कैसे निपटा जाता है। UPSC उम्मीदवारों को इस मामले के विभिन्न आयामों पर गहनता से विचार करना चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर शासन, नैतिकता और भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से जुड़ा है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: ‘कैश-इन-कोठी’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर किस संदर्भ में किया जाता है?
(a) अवैध रूप से सरकारी खजाने से नकदी की चोरी।
(b) किसी निजी संपत्ति में बड़ी मात्रा में संदिग्ध धन या संपत्ति का पाया जाना।
(c) बैंकों से ऋण लेकर जानबूझकर भुगतान न करना।
(d) करों का भुगतान न करके सरकार को धोखा देना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘कैश-इन-कोठी’ का सीधा अर्थ है किसी कोठी (घर) के अंदर नकदी का पाया जाना, जिसका स्रोत अक्सर संदिग्ध या अवैध होता है। यह मनी लॉन्ड्रिंग या आय से अधिक संपत्ति के मामलों से जुड़ा हो सकता है। - प्रश्न 2: भारतीय संविधान के अनुसार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) न्यायपालिका को सरकार के प्रति जवाबदेह बनाना।
(b) विधायिका और कार्यपालिका के अनियंत्रित शक्ति को सीमित करना।
(c) न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति घोषित करने से छूट देना।
(d) अदालती प्रक्रियाओं को गुप्त रखना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायपालिका की स्वतंत्रता शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि विधायिका और कार्यपालिका न्यायपालिका पर अनुचित प्रभाव न डाल सकें, जिससे निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित हो। - प्रश्न 3: किसी न्यायाधीश या सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति की पहचान को ‘XXX’ के रूप में दर्शाने का क्या संभावित कारण हो सकता है?
(a) यह केवल एक काल्पनिक नाम है।
(b) पहचान को गोपनीय रखने या सुरक्षा कारणों से।
(c) यह इंगित करता है कि व्यक्ति ने कोई अपराध नहीं किया है।
(d) यह उस व्यक्ति के पद का आधिकारिक संक्षिप्त रूप है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘XXX’ जैसे सांकेतिक शब्दों का प्रयोग अक्सर किसी व्यक्ति की पहचान को सार्वजनिक जांच या संभावित खतरों से बचाने के लिए किया जाता है, विशेषकर संवेदनशील मामलों में। - प्रश्न 4: भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सबसे महत्वपूर्ण है?
(a) न्यायाधीशों का व्यक्तिगत धन।
(b) अदालतों में गोपनीयता।
(c) निष्पक्षता, पारदर्शिता और अखंडता।
(d) अदालतों द्वारा राजनीतिक निर्णय लेना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: न्यायपालिका में जनता का विश्वास उसके निष्पक्ष निर्णय लेने, प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और न्यायाधीशों के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में अखंडता पर निर्भर करता है। - प्रश्न 5: ‘शक्तियों का पृथक्करण’ (Separation of Powers) का सिद्धांत भारतीय संविधान में किससे संबंधित है?
(a) केवल न्यायपालिका को स्वतंत्र रखना।
(b) विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का विभाजन।
(c) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण।
(d) चुनाव आयोग को स्वतंत्र रखना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह सिद्धांत सरकार के तीनों अंगों – विधायिका (कानून बनाना), कार्यपालिका (कानून लागू करना) और न्यायपालिका (कानून की व्याख्या करना) – के कार्यों को अलग-अलग करता है ताकि कोई भी अंग अत्यधिक शक्तिशाली न हो जाए। - प्रश्न 6: न्यायाधीशों की जवाबदेही (Judicial Accountability) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
(a) न्यायाधीशों को किसी भी जांच से छूट प्राप्त है।
(b) न्यायाधीशों को केवल महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है, किसी अन्य रूप में जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता।
(c) न्यायाधीशों को भी कानून के अनुसार अनुशासनात्मक कार्यवाही या जांच का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए विशेष प्रक्रियाएं हैं।
(d) न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति सार्वजनिक करनी अनिवार्य है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: हालांकि न्यायाधीशों को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए कुछ सुरक्षा प्राप्त है, वे दुर्व्यवहार या अक्षमता के मामले में जवाबदेह हो सकते हैं, जिसके लिए महाभियोग जैसी प्रक्रियाएं और आंतरिक जांच तंत्र मौजूद हैं। - प्रश्न 7: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की प्रक्रिया के संदर्भ में, निम्नलिखित में से क्या सामान्यतः आवश्यक है?
(a) याचिकाकर्ता की पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाए।
(b) याचिकाकर्ता की पहचान स्पष्ट रूप से बताई जाए, जब तक कि अदालत विशेष अनुमति न दे।
(c) याचिकाकर्ता को केवल उपनाम से ही संबोधित किया जाए।
(d) याचिकाकर्ता को एक राष्ट्रीय सुरक्षा नंबर प्रदान किया जाए।
उत्तर: (b)
व्याख्या: सामान्यतः, सभी कानूनी याचिकाओं में याचिकाकर्ता की पहचान स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए। असाधारण परिस्थितियों में ही अदालत पहचान को गोपनीय रखने की अनुमति दे सकती है। - प्रश्न 8: ‘पारदर्शिता’ (Transparency) का सिद्धांत सार्वजनिक संस्थानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) यह केवल नौकरशाही को जटिल बनाता है।
(b) यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
(c) यह जवाबदेही सुनिश्चित करता है और जनता का विश्वास बढ़ाता है।
(d) यह गुप्त सूचनाओं को आसानी से प्रकट करता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: पारदर्शिता सुनिश्चित करती है कि निर्णय लेने की प्रक्रियाएं स्पष्ट हों, जिससे लोक सेवकों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके और जनता का उन संस्थानों में विश्वास बढ़े। - प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारतीय न्यायपालिका का हिस्सा नहीं है?
(a) सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)
(b) उच्च न्यायालय (High Courts)
(c) जिला एवं सत्र न्यायालय (District & Sessions Courts)
(d) लोकपाल (Lokpal)
उत्तर: (d)
व्याख्या: लोकपाल भारत सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली एक स्वतंत्र संस्था है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय भारतीय न्यायपालिका का गठन करते हैं। - प्रश्न 10: ‘समवर्ती सूची’ (Concurrent List) के संदर्भ में, संघ और राज्य सरकारें दोनों किस विषय पर कानून बना सकती हैं? (यह प्रश्न सीधे मामले से संबंधित नहीं है, लेकिन ‘कानून’ की प्रासंगिकता को दर्शाता है)
(a) रक्षा
(b) विदेशी मामले
(c) आपराधिक कानून
(d) बैंकिंग
उत्तर: (c)
व्याख्या: आपराधिक कानून और प्रक्रियाएं समवर्ती सूची के विषय हैं, जिस पर संसद और राज्य विधानसभाएं दोनों कानून बना सकती हैं, हालांकि टकराव की स्थिति में केंद्रीय कानून को प्राथमिकता मिलती है। (यह प्रश्न वर्तमान मामले के कानूनी ढांचे को समझने में सहायक है)।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: ‘कैश-इन-कोठी’ विवाद में एक न्यायाधीश की पहचान ‘XXX’ के रूप में गुप्त रखने के मामले का विश्लेषण करें। चर्चा करें कि कैसे इस कृत्य ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता के बीच संतुलन को प्रभावित किया है। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: भारतीय न्यायपालिका की अखंडता बनाए रखने में पारदर्शिता की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। ऐसे उदाहरणों की चर्चा करें जहाँ पारदर्शिता की कमी ने जनता के विश्वास को प्रभावित किया हो, और उन उपायों का सुझाव दें जिनसे न्यायपालिका में अधिक पारदर्शिता लाई जा सके। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 3: लोक सेवकों, विशेषकर न्यायपालिका के सदस्यों के लिए उच्च नैतिक मानकों की आवश्यकता पर चर्चा करें। न्यायाधीशों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा तंत्रों की जांच करें और उनमें सुधार के लिए सुझाव दें। (लगभग 200 शब्द)
- प्रश्न 4: ‘शक्तियों के पृथक्करण’ के सिद्धांत के संदर्भ में, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्या महत्व है? ऐसे मामलों का उल्लेख करें जहाँ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चुनौती दी गई हो और ऐसी चुनौतियों से निपटने के संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करें। (लगभग 250 शब्द)