नौकरशाही
2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
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‘नौकरशाही’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘ब्यूरोक्रेसी’ का हिन्दी रूपान्तर है जिसका शाब्दिक अर्थ अधिकारी वर्ग की एक व्यवस्था अथवा बौद्विक रूप से परस्पर सम्बन्धित व्यक्तियों का संयोग है। अन्य शब्दों में, यह एक ऐसा औपचारिक संगठन है जिसमें व्यक्ति पदों के आधार पर विभिन्न स्थितियाँ रखते हैं और बौद्धिक रूप से एक-दूसरे से आबद्ध होते है।ं 19 वीं शताब्दी में यूरोप के देशों में विशेषतः जर्मनी में, ब्यूरोक्रेसी शब्द का प्रयोग अधिकारियों द्वारा शासित सरकार के लिए किया जाता था।
नौकरशाही का सम्बन्ध सत्ता के प्रथम प्रकार (तार्किक वैधानिक सत्ता) से है। यह कोई नवीन व्यवस्था नहीं है। वास्तव मे, इसका उद्भव एवं विकास उसी समय हो गया था जब प्राचीनकाल में विशाल साम्राज्यों की स्थापना हुई थी। विशाल साम्राज्यों को बनाये रखने के लिए तथा प्रशासन के सभी क्षेत्रों पर पकड़ कर रखने के लिए अधिकारियों की नियुक्तियों, उनके पदों,
दायित्वों और अधिकारों के स्पष्ट विभाजन व निर्धारण की संगठन पद्वति का विकास हुआ। जगत्
प्रसिद्ध कौटिल्य के अर्थशास्त्र में नौकरशाही का स्पष्ट विवरण है। परन्तु जिस रूप में नौकरशाही को आज हम देखते हंै, उसका विकास औद्योगीकरण के साथ-साथ हुआ है। प्राचीन मिश्र तथा रोम में नौकरशाही की विद्यमानता के प्रमाण मिले हैं,
परन्तु यह प्राचीन नौकरशाही पैतृक प्रशासन, जहाँ प्रशासक के व्यक्तिगत विचारों भावनाओं के आधार पर शासक होता था? आधुनिक नौकरशाही पूर्णतः अवैयक्तिक व्यवस्था है तथा पूँजीवाद एवं प्रजातंत्र के विचारों ने नौकरशाही को संगठन का अपरिहार्य रूप बना दिया है आधुनिक युग में इसका विकास सामान्यतः व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कभी
से जोड़ा जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ विद्वानों (यथा गुन्नार मिर्डल) ने इसके विपुल विकास की आलोचना की है और इसे सार्वजनिक धन का कुछ गिने- चुने व्यक्तियों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दुरूपयोग बताया है। दूसरी ओर, कुछ विद्वानों (यथा, राइनहार्ड बैन्डिक्स) ने इस बात पर बल दिया है कि नौकरशाही के विकास से मानवीय स्वतंत्रता में वृद्धि हुई है। इसके विकास का परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न रहा हो, आज यह वास्तविकता है कि नौकरशाही आधुनिक समाज की प्रमुख विशेषता है। यह सत्ता संचालन का एक प्रमुख साधन है।
कोजऱ तथा रोजेनबर्ग के शब्दों में ‘कर्मचारी तंत्र को एक सोपानिक संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे बड़े पैमाने पर प्रशासनिक कार्यो के अनुसरण में लगे अनेक व्यक्तियों के काम को समन्वित करने के लिए तर्कसंगत ढंग से रूपांकित किया जाता है। मैक्स वेबर के अनुसार नौकरशाही आधुनिक समाजोें के बड़े प्रशासनिक संगठनों में बौद्विक एवं कुशल अभिकरण के रूप में कार्य करता है। यह एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था है जिसमें सत्ता के सोपान पाये जाते हैं तथा जिसमें प्रशिक्षित वेतन भोगी विशेषज्ञों को असामान्य मूर्त तथा स्पष्ट रूप से परिभाषित नियमांे के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वेबर ने अधिकारी तंत्र को दो रूपों में परिभाषित किया है:
इस रूप में अधिकारी तंत्र विधि द्वारा स्थापित अवैयक्तिक व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति पद की सत्ता का प्रयोग इस आधार पर करते हैं कि उन्हें पद की सत्ता के दायरे में आदेश देने की औपचारिक वैधता प्राप्त है।
संगठन के रूप में अधिकारीतंत्र एक संस्तरण बद्ध संगठन है जिसकी रचना बौद्धिक ढंग से ऐसे व्यक्तियों के कार्यो के समीकरण के लिए की गई है जो वृहद स्तर के प्रशासनिक दायित्वों व संगठनात्मक लक्ष्यांे में लगे है।
इस भाँति वेबर के लिए नौकरशाही विधि द्वारा स्थापित औपचारिक व संस्तरित पदों की एक अवैयक्तिक व्यवस्था है जो प्रशासनिक दायित्वों की पूर्ति और संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए
स्थापित की जाती है। अतः नौकरशाही संगठन अथवा प्रशासन का एक विशेष रूप अथवा प्रणाली है। वेबर ने स्पष्ट लिखा है कि नौकरशाही प्रशासन का मौलिक अर्थ ज्ञान के आधार पर नियंत्रण करना है। इसकी यह विशेषता इसे विशिष्ट रूप से बौद्विक बनाती है।
समाजशास्त्र में नौकरशाही की अवधारणा के प्रयोग का श्रेय मुख्य रूप से मैक्स वेबर को दिया जाता है जिसने नौकरशाही को एक आदर्श प्रारूप के रूप में समझाने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त मोस्का, राॅबर्ट के0 मर्टन, पीटर एम0 ब्लाउ तथा एटजिय़ ोनी आदि विद्वानों ने भी नौकरशही की अवधारणा व सिद्वान्त के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।
अधिकारीतन्त्र
; ठनतमंनबतंबल द्ध
राजनैतिक समाजशास्त्र की विवेचना में वेबर का ध्यान आधुनिक राज्यों की उन विशेषताओं की ओर आकृष्ट हुआ जो पैतृक शासन तथा सामन्तवादी शासन से
उत्पन्न होने वाले दोषों से उत्पन्न हुई थीं । आज संसार के अधिकांश राज्यों में वैधानिक सत्ता पर आधारित शासन देखने को मिलता है । इस दृष्टिकोण से वेबर ने सर्वप्रथम उन दशाओं को स्पष्ट किया जिनके अन्तर्गत परम्परागत और चमत्कारी सत्ता के स्थान पर वैधानिक सत्ता तथा इसके एक विशेष उपकरण के रूप में अधि कारीतन्त्र को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा । सर्वप्रथम परम्परागत तथा चमत्कारी सत्ता की प्रणाली में शासन से सम्बन्धित अधिकांश अधिकारी वस्तु के रूप में मिलने वाले करों को अपनी निजी सम्पत्ति समझने लगे थे । जब मुद्रा का प्रचलन अधिक हो गया तब इस बात की आवश्यकता महसस की जाने लगी कि एक विश्वसनीय और कार्य . कुशल अधिकारीतन्त्र को विकसित करके राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया जाय । इसके अतिरिक्त राज्य से आन्तरिक शान्ति की स्थापना करने ए सामाजिक सेवाओं को पूरा करने तथा प्रौद्योगिक विकास करने के लिए भी यह आवश्यक हो गया कि शासन उन व्यक्तियों के माध्यम से चलाया जाय जो किसी विशेष व्यक्ति अथवा नेता के भक्त न होकर राज्य और कानून के प्रति अधिक वफा दार हों । राज्य में सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने में भी वैधा निक सत्ता को अधिक उपयोगी महसूस किया जाने लगा । अधिकारीतन्त्र वैधानिक सत्ता का एक विशेष उपकरण है ए इसलिए वैधानिक सत्ता के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए वेबर ने अधिकारीतन्त्र की प्रकृति तथा इसके लक्षणों का विश्लेषण किया । इस विश्लेषण में वेबर ने अधिकारीतन्त्र के चार पक्षों को विशेष रूप से स्पष्ट किया . . ; 1 द्ध अधिकारीतन्त्र के विकास के ऐतिहासिक कारण ए ; 2 द्ध अधिकारी तन्त्र की कार्यप्रणाली में वैधानिक शासन का प्रभाव ए ; 3 द्ध पैतृक शासन की कार्य प्रणाली की तुलना में ए अधिकारीतन्त्र की प्रकृति ए तथा ; 4 द्ध आधुनिक विश्व में अधिकारीतन्त्र के महत्त्वपूर्ण लक्षण तथा परिणाम । इन्हीं पक्षों के विवेचन द्वारा अधिकारीतन्त्र के बारे में वेबर के विचारों को अधिक व्यवस्थित रूप से समझा जा सकता है । सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि श् अधिकारीतन्त्र एक इस तरह का संस्तरणात्मक संगठन ; भ्पमतंतबीपबंस व्तहंदप्रंजपवद द्ध है जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर प्रशासनिक कार्यों को चलाने के लिए बहुत से व्यक्तियों के कार्य को तार्किक रूप से समन्वित करना होता है । ष् 42 यदि इस दृष्टिकोण से विचार किया जाय तो जहाँ कहीं भी कानूनों पर आधारित शासन व्यवस्था ; वैधानिक सत्ता द्ध पायी जाती है वहाँ अधिकारीतन्त्र का प्रशासनिक संगठन अनेक नियमों अथवा सिद्धान्तों पर आधारित होता है ।
; 1 द्ध सर्वप्रथम ए अधिकारीतन्त्र के अन्तर्गत सरकारी काम निरन्तरता के आधार पर किया जाता है । इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक कार्य के पीछे कुछ विशेष उद्देश्य और नीतियां होती हैं जिनके पालन की अपेक्षा इस तन्त्र से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति से करने की आशा की जाती है ।
; 2 द्ध अधिकारीतन्त्र के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य पूर्व . निश्चित नियमों के अनुसार होता है जिनमें तीन नियम अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । सर्वप्रथम ए कोई भी अधिकारी अथवा कर्मचारी अपने प्रत्येक कार्य को अवैयक्तिक रूप से ही कर सकता है । दूसरे ए प्रत्येक कार्य को पूरा करने के लिए सम्बन्धित अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार सौंपे जाते हैं । तीसरे ए किसी कार्य के लिए एक अधिकारी कुछ वैध साधनों का प्रयोग करके ही जनता को उसके लिए बाध्य कर सकता है । वह मनमाने रूप से अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता ।
; 3 द्ध सम्पूर्ण अधिकारीतन्त्र में प्रत्येक अधिकारी के दायित्व और अधिकार उसके विभाग की सत्ता का एक अंग मात्र होते हैं । साधारणतया उच्च अधिकारियों को निरीक्षण का अधिकार दिया जाता है जबकि निम्न श्रेणी के अधिकारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे आग्रह के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करें ।
; 4 द्ध इस तन्त्र में सरकारी और व्यक्तिगत कार्य एक . दूसरे से बिलकुल अलग होते हैं । इसका तात्पर्य है कि एक अधिकारी राज्य के साधनों का उपयोग तो कर सकता है लेकिन किसी भी रूप में वह उन पर अपना स्वामित्व प्रदर्शित नहीं कर सकता ।
; 5 द्ध कोई भी अधिकारी अपने पद का उपयोग उसे व्यक्तिगत सम्पत्ति मान कर नहीं कर सकता । इसका तात्पर्य है कि किसी पद को न तो बेचा जा सकता है और न ही उसे किसी दूसरे व्यक्ति को उत्तराधिकार में दिया जा सकता है । अधिकारियों को अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह निभाने की प्रेरणा देने के लिए उन्हें पेन्शन प्राप्त करने और पद से बिना कारण न हटाये जाने का अधिकार अवश्य मिलता है लेकिन यह अधिकार भी सम्पत्ति के समान नहीं होते ।
; 6 द्ध अधिकारीतन्त्र के प्रशासनिक संगठन का एक प्रमुख नियम यह है कि कार्य लिखित दस्तावेजों ; ॅतपजजमद क्वबनउमदजे द्ध के आधार पर किये जाते हैं । इन दस्तावेजों को विभिन्न फाइलों के रूप में सुरक्षित रखा जाता है जिससे आवश्यकता पड़ने पर किसी भी पुराने निर्णय और उसके आधार को कभी भी पुनः देखा जा सके ।
282 सामाजिक विचारक इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अधिकारीतन्त्र में सरकारी काम की निरन्तर निश्चित नियमों के द्वारा अधिकारों का सीमित उपयोग ए नियमों को लागू करने के निरीक्षण ए काम करने का अवैयक्तिक ढंग ए पद और पदाधिकारी का भेद तथा लि रूप में कार्यों का सम्पादन कुछ ऐसी प्रमुख विशेषताएं हैं जिनके बिना अधिकारी के रूप में वैधानिक सत्ता को प्रभावपूर्ण नहीं बनाये रखा जा सकता ।
वेबर ने अधिकारीतन्त्र की प्रकृति को एक पैतृक शासन से इसकी भिन्नता के आधार पर स्पष्ट किया है । सर्वप्रथम ए एक पैतृक शासक और उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी सम्पूर्ण कार्य अपनी इच्छा से करते हैं तथा वे कोई भी काम तभी करता चाहते हैं जब काम से उत्पन्न कष्टों के लिए उन्हें उसका समुचित पुरस्कार दिया जाय । दूसरे ए पैतृक शासन के अन्तर्गत शासक और उसके अधिकारी कभी भी यह नहीं चाहते कि किन्हीं निश्चित नियमों के द्वारा उनकी सत्ता को एक सीमा में बाँध दिया जाय । वे कुछ परम्परागत नियमों का पालन कर सकते हैं लेकिन ऐसे नियम उनकी स्वच्छन्दता का समर्थन करने वाले ही होते हैं । तीसरे ए एक पैतृक शासक यह स्वयं निश्चित करता है कि वह अपनी सत्ता को छोड़े अथवा जब तक चाहे उसे बनाये रखे । वह अपने पदाधिकारियों को क्योंकि स्वयं चुनता है इसलिए उनके कामों का निरीक्षण भी अपने प्रति उनकी स्वामिभक्ति और काम के प्रति रुचि को देखते हुए करता है । चौथे ए पैतृक शासन में सभी प्रशासनिक पद शासक की इच्छा से जुड़े होते हैं तथा सभी अधिकारियों को शासक का व्यक्तिगत नौकर समझा जाता है । पांचवें ए ऐसे शासन में अधिकारियों और प्रशासन पर होने वाला व्यय शासक के व्यक्तिगत कोष से दिया जाता है । अन्त में ए सरकारी कार्य लिखित रूप में नहीं होता बल्कि शासक की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए मौखिक रूप से किया जाता है । वैधानिक सत्ता के अन्तर्गत अधिकारीतन्त्र की प्रकृति पैतक शासन की उपर्युक्त विशेषताओं से पूर्णतया भिन्न है । सवप्रथम ए अधिकारीतन्त्र अधिकारियों के पद और उनके कार्यों का संचालन एक प्रशासनिक संगठन से प्रभावित होता है ए किसी व्यक्ति की इच्छा से नहीं । दूसरे ए इसके अन्तर्गत जहाँ अनेक लिखित नियमों को लागू करने पर जोर दिया जाता है ए वहीं अधिकारियों की नियुक्ति भी कुछ विशेष नियमों के अन्तर्गत ही होती है । तीसरे ए एक बार जब किसी व्यक्ति को एक अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया जाता है तो वह नियमों का अवैयक्तिक रूप से पालन करता है ए चाहे नियमों के पालन से स्वयं उसे नियुक्त करने वाले व्यक्ति अथवा संगठन को ही हानि क्यों न होती हो । उदाहरण के लिए सरकार द्वारा नियुक्त न्यायाधीश नियमों का पालन करने के लिए सरकार के विरुद्ध भी कोई आदेश दे सकते हैं । चौथे ए प्रशासनिक कार्यों की निरन्तरता को बनाये रखने के लिए पूरे समय काम करने वाले अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है । अपने कार्य से व्यक्तिगत प्रसन्नता न मिलने के बाद भी उन्हें एक निश्चित प्रणाली के अन्तर्गत काम करना आवश्यक होता है ।
पाँचवें ए अधिकारीतन्ध में एक अधिकारी को अपने कर्तव्यों का समुचित रूप से पालन करने का अवसर देने के लिए उसकी कुशलता का मूल्यांकन उसके द्वारा अजित लाभ से नहीं किया जाता । इसी कारण किसी भी कर्मचारी का वेतन उसके विभागीय राजस्व से नहीं दिया जाता बल्कि एक पथक सरकारी कोष से दिया जाता है । यह सभी विशेषताएँ पैतृक शासन के रूप में परम्परागत सत्ता तथा अधिकारीतन्त्र के रूप में वैधानिक सत्ता के अन्तर को स्पष्ट करती हैं ।
वेबर ने वैधानिक सत्ता के अन्तर्गत प्रशासनिक संगठन की इन विशेषताओं पर विचार करने के बाद आधुनिक जगत में अधिकारीतम्ब के महत्त्वपूर्ण लक्षणों और परिणामों पर भी प्रकाश डाला है । इन्हें संक्षेप में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है रू
; 1 द्ध सर्वप्रथम ए वेबर का कथन है कि अधिकारीतन्त्र का संगठन दूसरे संगठनों की तुलना में उसी प्रकार श्रेष्ठ है जिस प्रकार मशीन से किया गया उत्पादन हाथ से किये गये उत्पादन से श्रेष्ठ होता है । उदाहरण के लिए काम का नियमित रूप से होना ए किसी तरह की अस्पष्टता न होना ए काम लिखित रूप से और निरन्तर होते रहना ए कार्य . संचालन में एकरूपता होना ए व्यक्ति की अपेक्षा नियमों की प्रधानता होना और मतभेद की कम से कम सम्भावना रहना अधिकारीतन्त्र के कुछ विशेष लाभ हैं । इसके बाद भी यह लाभ इसलिए तुलनात्मक है कि अधिकारीतन्त्र एक स्वयंचलित मशीन की तरह है जिसमें व्यक्तिगत कुशलता का अधिक महत्त्व नहीं होता । वेबर के शब्दों में ष् वर्तमान न्यायाधीश सामान बेचने वाली ऐसी मशीन की तरह है जिसमें कीमत के समान मुकदमे के प्रमाण डाल दिए जाते हैं और वस्तु के समान निर्णय निकलकर सामने आ जाता है । इसका तात्पर्य है कि अधिकारी तन्त्र में व्यक्ति यदि नियमों को जानता है तो वह किसी भी निर्णय को पहले से ही बतला सकता है । इस तन्त्र में विधि का शासन होने के कारण लक्ष्य पर आधारित मनोवृत्ति व्यावहारिकता से अक्सर अलग हो जाती है । प्राचीन समय में एक शासक कोई भी निर्णय लेने के लिए सहानुभूति ए परिस्थिति ए कृतज्ञता तथा अतीत की निष्ठा आदि से प्रभावित था लेकिन अधिकारीतन्त्र अवैयक्तिक होने के कारण किसी तरह के प्रेम ए घृणा अथवा किसी दूसरी वैयक्तिक भावना से प्रभावित नहीं होता । वास्तव में यह दशाएँ अधिकारीतन्त्र की तार्किकता और अवैयक्तिकता का परिणाम हैं ।
; 2 द्ध आधुनिक अधिकारीतन्त्र का दूसरा लक्षण श् प्रशासन के साधनों पर एकाधिकार की प्रवृत्ति श् है । वेबर ने मार्क्स की इस शब्दावली का उपयोग इसलिए किया कि वेबर यह स्पष्ट करना चाहते थे कि एकाधिकार की यह प्रक्रिया केवल आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं पायी जाती बल्कि सरकार ए सेना ए राजनैतिक दलों ए विश्व विद्यालय और सभी बड़े . बड़े संगठनों में एकाधिकार की प्रवृत्ति विद्यमान होती है । इसका तात्पर्य है कि वैधानिक सत्ता में जैसे . जैसे किसी संगठन का आकार बढ़ता है ण् इसे चलाने वाले साधनों को स्वतन्त्र व्यक्तियों के हाथों से छीनकर उनका अधिकार शासन करने वाले कुछ थोड़े से व्यक्तियों को सौंप दिया जाता है । 47 उदाहरण के लिए जब बड़े . बड़े व्यापारिक संगठनों के द्वारा उत्पादन के उपकरणों पर अधिकार किया गया तब कारीगरों के अधिकार छिन गये य जब सरकारों ने प्रशासन पर एका धिकार कर लिया तो सामन्ती व्यवस्था वाले सरदारों के अधिकार छिन गये य जब विश्वविद्यालयों ने अपनी बड़ी . बड़ी प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों की स्थापना कर ली तो व्यक्तिगत रूप से शोध करने वाले विद्वानों का महत्त्व कम हो गया । इससे स्पष्ट होता है कि अधिकारीतन्त्र अधिकारों के विकेन्द्रीकरण को महत्त्व न देकर अधिकारों के एकाधिकार में अधिक रुचि लेता है ।
; 3 द्ध अधिकारीतन्त्र की तीसरी विशेषता समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना है । इसका तात्पर्य है कि अधिकारीतन्त्र के विकास से धनी और सम्भ्रान्त लोगों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिये जाते हैं । इस बात को पुनः अधिकारीतन्त्र की पैतृक सरकार से तुलना करके समझा जा सकता है । एक पैतृक शासन में सरकारी कामों का सम्पादन साधारणतया उन्हीं व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है जो आर्थिक रूप से सम्पन्न होते हैं अथवा किसी न किसी रूप में उन्हें समाज में अधिक प्रतिष्ठा मिली होती है । ऐसे लोग अपने कार्य के विशेषज्ञ नहीं होते बल्कि प्रशासन के काम को एक शौक अथवा आनन्दपूर्ण व्यवसाय के रूप में देखते हैं । इसके फलस्वरूप उन्हें अपने पद के द्वारा आर्थिक लाभ उठाने के भी अवसर दिये जाते रहते हैं । अधिकारीतन्त्र में उन लोगों का समावेश होता है जो अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं तथा अपना पूरा समय प्रशासन के लिए देना आवश्यक मानते हैं । नियमों को लागू करने लिए इनकी दृष्टि में सभी लोग समान होते हैं । अधिकारीतन्त्र का एक अधिकारी समाज के किसी भी आर्थिक वर्ग का सदस्य हो सकता है तथा परम्परागत रूप से उसके परिवार का प्रतिष्ठित होना आवश्यक नहीं होता । इस दृष्टिकोण से अधिकारीतन्त्र को विशेषज्ञों द्वारा लागू किया जाने वाला एक ऐसा शासन कहा जा सकता है जिसमें सामाजिक और आर्थिक असमानताएं कम से कम होती हैं ।
; 4 द्ध अधिकारीतन्त्र का अन्तिम महत्वपूर्ण लक्ष्य सत्ता के सम्बन्धों को एक स्थायी प्रणाली का लागू होना है । पैतृक शासन से सम्बन्धित कुलीन परिवारों के अधिकारी प्रशासनिक कार्य को न केवल आनन्द और वैभव की भावना से करते हैं बल्कि ऐसे शासन से अधिकारी के सम्बन्धों का भी स्थायी होना आवश्यक नहीं होता । इसके विपरीत ए अधिकारीतन्त्र के अन्तर्गत एक अधिकारी की सम्पूर्ण सा जिक और आर्थिक अस्तित्व प्रशासन से मिल जाता है । इसी कारण वह अन्य कम चारियों का जितना अधिक सहयोग प्राप्त कर लेता है ण् वह अपने कार्य में उतना ही सफल रहता है । यह तन्त्र इसलिए भी स्थायी है कि इससे शक्ति होने वाले लोग इसे न तो समाप्त कर सकते हैं और न ही इससे नियमों में वैयक्तिक इच्छा से कोई परिवर्तन ला सकते हैं । वर्तमान अधिकारीतन्त्र का संचालन उन विशेषज्ञों के द्वारा होता है जो अपने कार्य के लिए एक लम्बा प्रशिक्षण प्राप्त करके विशेष क्षेत्र में योग्यता प्राप्त कर लेते हैं । प्रशिक्षण और विशेषीकरण की यह प्रक्रिया भी अधिकारी तन्त्र के स्थायित्व में वृद्धि करती है । उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि एक वैधानिक सत्ता को बनाये रखने के लिए वेवर अधिकारीतन्त्र को प्रशासन की स्थायी और आवश्यक विशेषता मानते हैं । इस सम्पूर्ण विवेचन में वेबर के विचार उन अराजकतावादियों और समाज वादियों से भिन्न हैं जो यह मानते हैं कि एक आदर्श समाज में प्रशासन के लिए अधिकारीतन्त्र अनावश्यक ही नहीं है बल्कि न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना में बाधक भी है । वेबर ने दृढ़ना से यह विचार किया कि समाज में यदि वैधानिक सत्ता को बनाये रखना आवश्यक है तो इसे अधिकारीतन्त्र के द्वारा ही प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है । यदि कोई व्यवस्था अधिकारीतन्त्र के बिना किसी तरह का सुधार लाने का वचन देती है तो ऐसा सुधार निश्चय ही अधिक अव्यावहारिक और शोषणकारी होगा ।
नौकरशाही की अवधारणा को इसकी निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा और अधिक आच्छी प्रकार से समझा जा सकता है:
नौकरशाही में पदाधिकारियांे के कार्य अवैयक्तिक नियमों के अन्तर्गत होते हैं तथा इन नियमों में स्थायित्व व निरन्तरता पाई जाती हैै। नौकरशाही को एक ऐसा संगठन कहा जा सकता हैं जिस में व्यक्तियों की अपेक्षा पदों से जुड़ें नियमों को अधिक महत्व दिया जाता है। समान रूप से सभी पदाधिकारियों द्वारा इन नियमांे के पालन के कारण नौकरशाही संगठन में स्थायित्व बना रहता है।
नौकरशाही में प्रत्येक अधिकारी की सत्ता तथा दायित्वों का क्षेत्र सीमित होता है। वास्तव में, नौकरशाही में कार्य कुशलता तथा दक्षता के आधार पर श्रम-विभाजन पाया जाता हैै। जिसमें प्रत्येक सदस्य का कार्य-क्षेत्र पूर्णतः स्पष्ट रूप से परिभाषित होता है।
अधिकारी तंत्र को कार्यों का संस्तरण-बद्ध संगठन कहा जा सकता है
अर्थात इसमें विभिन्न पद उǔचता से निम्नता के क्रम में संगठित रहते है,ं परन्तु निम्नता से
उǔचता की ओर अपील करने की छूट होती है अगर किसी अधिकारी की किसी प्रकार की शिकायत है तो वह अपने से उǔच अधिकारी से ऐसा कर सकता है। पदों में संस्तरण होने के बावजूद ये पद एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं तथा इनमें केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है।
नौकरशाही में सभी पदाधिकारियों के कार्य तकनीकी नियमों द्वारा नियंत्रित होते है अर्थात् कोई अधिकारी मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता, अपितु उसे नियमों के अनुसार
ही कार्य करना पड़ता है। नौकरशाही मंे उǔच पदों पर नियुक्ति अधिकारियों को अपने से निम्न पदाधिकारियों के कार्यों की देख -रेख का अधिकार होता है। तथा अगर अनिवार्य हो तो वे ऐसा अनुशासन समिति द्वारा कर सकते हंै।
नौकरशाही में पदाधिकारी ही उत्पादन के साधनों अथवा प्रशासनिक साधनों पर एकाधिकार नहीं रखते अपितु इनमें अन्तर होता है। अगर ऐसा नहीं है तो अधिकारी तंत्र में बौद्धिकता तथा निष्पक्षता पूर्णरूप से प्राप्त नहीं की जा सकती।
नौकरशाही संगठन बाहरी दबावों तथा अंकुश से मुक्त होना चाहिए ताकि सभी पदाधिकारी अपनी सीमाओं के अन्दर नियमानुसार कार्य कर सकें। अगर बाहरी अंकुश होगा तो सही निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है तथा लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएं पैदा हो सकती हैं।
नौकरशाही के पदों पर किसी एक व्यक्ति का एकाधिकार नहीं होना चाहिए तथा संगठन को आवश्यकतानुसार अधिकारियों को स्थानान्तरित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। नियमों का पालन न करने पर पद की अवनति तथा क्षमतापूर्वक कार्य करने पर पदोन्नति की व्यवस्था एकाधिकार की समाप्ति के लिए ही नौकरशाही में पाई जाती है।
नौकरशाही के सभी नियम आदेश तथा निर्णय लिखित होते हैं तथा किसी भी प्रकार के मौखिक आदेशों इत्यादि की व्यवस्था नहीं होती। हर निर्णय तथा आदेश लिखित रूप में होता है तथा इनका रिकाॅर्ड रखा जाता है। यह व्यवस्था नौकरशाही को सुचारू रूप से चलाने तथा पक्षपातरहित बनाने के लिए होती है। इसी विशेषता के आधार पर कुछ लोगों के नौकरशाही संगठन को लालफीताशाही की प्रवृति को जन्म देने वाला संगठन भी कहा है।
उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त नौकरशाही में पदों पर नियुक्ति या तो प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर होती है या विशेष योग्यता वाले डिप्लोमा, डिग्री या प्रमाण पत्र के आधार पर की जाती है। प्रत्येक पदाधिकारी अपने काम के एवज में निश्चित वेतन पाता है। पदों में संस्तरण की भाँति वेतन-क्रम में भी एक संस्तरण होता है। इसके साथ ही पदाधिकारियों का अपने कार्य पालन की स्थिति में उत्पन्न कठिनाइयों में उचित रूप से संरक्षण तथा पद-समाप्ति के पश्चात् पेन्शन इत्यादि की सुविधाएं आदि विशेषताएं नौकरशाही में देखी जा सकती हैं।
मैक्सवेबर के अनुसार नौकरशाही अपने उपर्युक्त लक्षणों के कारण आधुनिक समाज मंे एक वृहत् प्रशासनिक संगठन के बौद्धिक एवं कुशल अभिकरण के रूप में कार्य करता है। परन्तु
राॅबर्ट के0 मर्टन के अनुसार नौकरशाही की यही विशेषतायें इसकी अकुशलता एवं अपर्याप्तता का कारण है क्योंकि इनके आधार पर इस संगठन में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अधिकारी केवल नियमों के दास बनकर रह जाते हैं, क्योंकि नियमों का पालन करने पर ही उनकी पदोन्नति सम्भव है। यह लक्षण पदाधिकारियों को आत्म-केन्द्रित और घमण्डी बना देते हैं तथा वे अपने हितों की रक्षा के लिए अपने से उǔच अथवा निम्न अधिकारियों के हितों को नुकसान पहुँचाने से नहीं चूकते।
मैक्स वेबर ने नौकरशाही का विश्लेषण इसके सामाजिक परिणामों की दृष्टि से किया है साथ ही नौकरशाही के राजनीतिक विकास में महत्व को भी रेखांकित किया है। यह निम्नलिखित
रूप में समाज के विकास में योगदान देता है।
ऽ नौकरशाही एक ऐसी शासन प्रणाली है जो आर्थिक और सामाजिक मंदों को दूर करके सामाजिक समतलीकरण एवं पाटने का काम करती है। वस्तुनिष्ठ शैक्षिक प्रमाण पत्रों व औपचारिक परीक्षाओं के आधार पर भिन्न पदों पर नियुक्तियों की जा सकती है। परिवार, वंश या आर्थिक सम्पन्नता ऐसी नियुक्तियों को प्रभावित नही करती।
ऽ यह प्रशासन को प्राविधिक श्रेष्ठता प्रदान करता है। अवैयक्तिक नियमों द्वारा निर्दिष्ट होने के कारण नौकरशाही कार्यवाही की सामान्य विश्वसनीयता एवं गण्यता को बढ़ा देता है। इसके अन्तर्गत कार्य अधिक सूक्ष्मता से, तेजी से, मितव्यपिता से तथा बिना अनावश्यक विवाद के सम्पन्न होते हैं।
ऽ यह प्रजातंत्र के लिए अनिवार्य होता है। वेबर के अनुसार ज्यों-ज्यों प्रजातंत्र का विस्तार होता है, अधिकारी तंत्र पर आधारित प्रशासनिक व्यवस्था की अपरिहार्यता भी बढ़ती जाती है।
ऽ यह प्रशासन एंव राजनीतिक नियन्त्रण की पृथकता को सम्भव बनाता है। वास्तव में नौकरशाही ही प्रशासनिक संगठन की एक ऐसी मशीन है जो स्वचालित होती है। इसके द्वारा यह सम्भव हो जाता है कि राजनीतिक नेतृत्व व्यवस्थापिका एवं नीति-निर्माण के कार्यो पर ही अपना ध्यान केन्द्रित कर सके। साथ ही, राजनीतिक नेतृत्व अधिकारी तंत्र पर भी अपना नियन्त्रण रख सकता हैै ताकि पदाधिकारी मनमानी पर न उतर आयें।
ऽ यह शिक्षा के महत्व एवं विभेदीकरण को प्रोत्साहन देता है क्योंकि अधिकारी तंत्र की आवश्यकताओं ने शिक्षा के स्वरूप को भी प्रभावित किया है। कर्मचारियों के चयन के लिए विश्वविद्यालयोें के डिप्लोमा, सर्टिफिकेट्स तथा डिग्री आदि का महत्व बढ़ जाता है।
ऽ यह नवीन बौद्धिक, वैज्ञानिक व अवैयक्तिक संस्कृति के उदय में सहायक है। वास्तव मंे, प्रतियोगी परीक्षाओं पर आधारित, औपचारिक नियमों द्वारा निर्दिष्ट मानवीय भावनाओं में तटस्थ, दफ्तरी कार्य-प्रणाली एक नवीन संस्कृतियों को विकसित कर रही है।
इससे नवीन व्यवसायियो
का वर्ग विकसित होता है। तथा समय सारिणी में आबद्ध औपचारिक एवं लिखित नियमों की प्रतिष्ठा से विभूषित, योजनाबद्ध जीवन शैली का विकास होता है प्रत्येक कदम लागत तथा लाभ को विश्लेषण के आधार पर उठाया जाने लगा हैै।
ऽ नौकरशाही प्रशासन के साधनों के एकत्रीकरण के प्रोत्साहन देता है। ज्यों-ज्यों नौकरशाही संगठनों का आकार बढ़ता जाता है। त्यों-त्यों इनको चलाने के साधनों को स्वतंत्र व्यक्तियों और समूहों से ले लिया जाता है और अल्पसंख्यक शासक समूह के अधिकार में दे दिया जाता है।
ऽ मैक्स वेबर के अनुसार ज्यों-ज्यों समाज में औद्योगिकरण का विकास हो रहा है तथा राज्य की सार्वजनिक क्रियाओं का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है, त्यों-त्योें नौकरशाही संगठन की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही हैं वेबर के अनुसार यह बात चर्च , राज्य, सेना, राजनीतिक दल, आर्थिक संगठन यहाँ तक कि ऐǔिछक समितियों एवं क्लबों के लिए भी उतनी ही सत्य है। चाहे लोग अधिकारी तंत्र के अभिशापों के सम्बन्ध में कितनी भी शिकायत क्यों न करें, क्षण भर के लिए भी यह सोचना केवल भ्रम मात्र होगा कि दफ्तरों में कार्यरत अधिकारियों को माध्यम बनाये बिना किसी भी क्षेत्र में प्रशासनात्मक कार्य किया जा सकता है
मोस्का ने शासनवर्ग की अवधारणा के माध्यम से तथा पारेटो ने शासक तथा अशासक अभिजन के परिभ्रमण के माध्यम से शक्ति वितरण को समझाया है। पारेटो स्पष्ट करते है कि अभिजन के परिभ्रमण केे द्वारा समाज में परिवर्तन घटित होता है। राबर्ट मिशेल अल्पतंत्र का लौह नियम प्रतिपादित करते है और बताते है कि हर संगठन में शक्ति का प्रयोग एक अल्पतंत्र के द्वारा ही किया जाता है।
सी0 राइट मिल्स अमेरिका के सन्दर्भ ‘शक्ति अभिजन’ की अवधारणा गढ़ते है। वे स्पष्ट करते है कि अमरीकी समाज मेें राजनेता, उद्योगपति (पूँजीपति) और सैनिक नेतृत्व के मध्य एक गठबन्धन विकसित हो जाता है, जो शक्ति अभिजन कहलाता है, और यही शक्ति अभिजन राजनीतिक सामाजिक रूप से अधिकांश निर्णय लेना है। इस यूनिट के अगरे चरण में राजनीतिक परिवर्तनों में बौद्धिकों की भूमिका को स्पष्ट किया गया है। फ्रांस की क्रान्ति में बौद्धिकों की भूमिका आदर्श उदाहरण के रूप में उभर कर सामने आई थी। राजनीतिक प्रक्रियाओं में दबाव समूह और हित समूह की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। दबाव समूह राजनीतिक निर्णय निर्धारण को प्रभावित करने के अनेक प्रयास करते है। राजनीतिक स्वरूपों और विशेष रूप से जनतांत्रिक राजनीति का कार्य कलाप नौकरशाही से संचालित होता है।