निर्धनता

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निर्धनता भारतीय समाज की अत्यन्त गम्भीर आर्थिक एवं सामाजिक समस्या है । अपराध , बाल – अपराध , भिक्षावृत्ति , वेश्यावृत्ति , गन्दी बस्तियाँ जैसी सामाजिक समस्याओं का मूल कारण निर्धनता ही है । निर्धनता आर्थिक समस्या का कारण भी है । विभिन्न काल और समाज में निर्धनता को अलग – अलग दृष्टि से देखा गया है , कृषि अर्थव्यवस्था में निर्धनता का स्वरूप औद्योगिक अर्थव्यवस्था में पाई जाने वाली निर्धनता से भिन्न होता है ।

एक समय विशेष की निर्धनता की प्रकृति दूसरे समय विशेष की निर्धनता की प्रकृति से भिन्न होती है । किसी प्रदेश में सम्पन्नता या निर्धनता को मापने का तरीका है कि किसी समय विशेष में उस राष्ट्र में उपभोग की वस्तुओं एवं सेवाओं को देखा जाय , इसे ही राष्ट्रीय आय या लाभांश का नाम दिया जाता है । भारत में गरीबी या निर्धनता एक विकराल आर्थिक समस्या ही नहीं अपितु एक भयंकर सामाजिक रोग भी है । यह सच है कि निर्धनता का स्वरूप आर्थिक है ; परन्तु इसके फलस्वरूप जो सामाजिक दुष्परिणाम सामने आते हैं उनसे स्वाभाविक ( Normal ) सामाजिक सम्बन्धों का तानाबाना बहुतकुछ टूट – सा जाता है । इसी निर्धनता का जो कटु रूप भारत में दिखायी देता है , वैसा शायद संसार में बहुत कम देशों में देखने को मिलेगा ।

श्री संजय चौधरी ने लिखा है कि “ वास्तव में अन्तराष्ट्रीय सन्दर्भ में गरीबी एक – तुलनात्मक शब्द है ; यह शब्द एक देश – विशेष में जनसंख्या के विशेष वर्ग का बोध कराता है । भारत की कुल आबादी में केवल 5 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनकी क्रयक्षमता ( Purchasing Power ) अमेरिका के एक औरात नागरिक के समान है । इसीलिए एक भारतीय गरीब और एक अमेरिकी गरीब को एक पंक्ति में | रखकर विचार करना गलत होगा । गरीबी को मापने के मापदण्ड निर्धारित किये गये हैं जैसे रहन – सहन का स्तर , न , ग्तम पौष्टिक आहार जुटा पाने की क्षमता , व्यक्ति की क्रय – क्षमता आदि । . . . . . . . वस्तुतः गरीबी क्रय – क्षमता पर निर्भर करती है । जिसकी क्रय – क्षमता जितनी कम है वह उतना ही गरीब है । ‘ यह बात निम्नलिखित विवेचना से और भी स्पष्ट हो जायेगी ।

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जीवित रहने के लिए प्रत्येक मनुष्य की कुछ आधारभूत आवश्यकताएँ हुआ करती हैं । आराम और विलासिता की वस्तुओं को अगर निकाल दिया जाये , तो भी जीवन का एक न्यूनतम स्तर बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को उचित भोजन , पर्याप्त वस्त्र तथा अच्छा मकान मिल सके और इनकी मात्रा इतनी हो कि स्वयं व्यक्ति की तथा उसके आश्रितों की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी हो सकें । जब इन आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती और व्यक्ति तथा उनके आश्रितों का जीवन – स्तर उस न्यूनतम स्तर से नीचे गिर जाता है तो उस अवस्था को निर्धनता कहते हैं ।

 गोडार्ड ( Goddard ) ने निर्धनता की परिभाषा करते हुए लिखा है , “ निर्धनता उन वस्तुओं का अभाव या अपर्याप्त पूर्ति है जो कि एक व्यक्ति तथा उसके आश्रितों को स्वस्थ एवं बलवान बनाये रखने के लिए आवश्यक है । “

 गिलिन और गिलिन ( Gillin and Gillin ) के शब्दों में , ” निर्धनता यह दशा है जिससे कोई व्यक्ति , अपर्याप्त आय के कारण या विचारहीन व्यय करने के कारण जीवन – स्तर को ऊँचा नहीं रख पाता है जिससे कि उसकी शारीरिक तथा मानसिक कुशलता बनी रह सके और न ही वह व्यक्ति तथा उसके आश्रित उस समाज द्वारा जिसका कि वह सदस्य है , निर्धारित मानों के अनुरूप उपयोगी ढंग से कार्य कर पाते हैं । ” उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि निर्धनता वह दशा है जिसमें व्यक्ति तथा उसक आश्रितों को जीवन का एक न्यूनतम स्तर बनाये रखने के लिए आवश्यक सामग्री भी उप नहीं हो पाती है ।

 

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भारत में निर्धनता के कारण

भारत में गरीबी या निर्धनता एक विकराल आर्थिक समस्या ही नहीं अपितु एक भयंकर सामाजिक रोग भी है । यह सच है कि निर्धनता का स्वरूप आर्थिक है ; परन्तु इसके फलस्वरूप जो सामाजिक दुष्परिणाम सामने आते हैं उनसे स्वाभाविक ( Normal ) सामाजिक सम्बन्धों का तानाबाना बहुतकुछ टूट – सा जाता है

 निर्धनता एक जटिल समस्या है , अतः इसको किसी एक विशेष कारक के आधार पर नहा । समझाया जा सकता । दूसरे शब्दों में , निर्धनता के एक से अधिक कारण हैं । विशेष रूप से भारतवर निर्धनता के लिए उत्तरदायी कारणों में से कुछ निम्नलिखित हैं :

 . सामाजिक कारण ( Social Causes ) निर्धनता के सामाजिक कारण निम्नलिखित हैं :

 संयुक्त परिवार प्रणाली – संयुक्त परिवार प्रणाली निर्धनता के लिए काफी कुछ उत्तरदायी है । यह प्रणाली बहुतसे लोगों को आलसी , निकम्मा और गैर – जिम्मेदार बना देती है । जब बैठे – बैठे खाने को मिलता है तो काम करने के विषय में कौन सोचे ? ऐसे व्यक्ति देश की आर्थिक उन्नति में कुछ भी हाथ नहीं बंटाते हैं । संयुक्त परिवार प्रथा , बाल – विवाह को प्रोत्साहित करती है जिससे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ती है और साथ ही देश में पिर्धनता की वृद्धि होती है ।

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जाति – प्रथा – भारतीय जाति – प्रथा देश की आर्थिक प्रगति के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है । इस प्रथा ने देश के लोगों को अनेक छोटे – छोटे भागों में बाँट दिया है जिससे कि सभी लोग एकसाथ सहयोग से और मिलकर देश की आर्थिक उन्नति में हाथ नहीं बँटा पाते । इतना ही नहीं , जाति – प्रथा के लोग ” श्रम की गरिमा ‘ ( Dignity of Labour ) को भी ठीक – ठीक नहीं समझ पाते । इसलिये उच्च जाति के लोग उन कार्यों को जिन्हें कि नीच जाति के लोग करते हैं , कभी करना ही नहीं चाहते । इससे भी देश में निर्धनता बढ़ी है ।

 बीमारी तथा निम्न स्वास्थ्य – स्तर – भारतवासियों को अनेक भयंकर रोग सदा घेरे रहते हैं । मलेरिया , टी . बी , कैंसर आदि रोगों से लाखों व्यक्ति इस देश में पीड़ित रहते हैं जिसके कारण मिलों , कारखानों आदि से उन्हें प्रायः छुट्टी लेनी पड़ती है । इससे एक ओर उत्पादन घटता है और दूसरी ओर श्रमिकों का रोजगार भी कम होता है । इसी प्रकार निम्न – स्वास्थ्य – स्तर के कारण देश में लोग कम आयु में मर जाते हैं जिसके फलस्वरूप यहाँ अनभवी और योग्य व्यक्तियों की नितान्त कमी है । इस कारण भी यहाँ आथिक उन्नति उचित रूप में नहीं हो पाता ।

 गन्दी बस्तियाँ – प्रायः सभी भारतीय औद्योगिक श्रमिक गन्दी बस्तियों में निवास करते हैं । इन बस्तियों में रहने से वे अनेक प्रकार के भयंकर रोगों के शिकार बन जाते हैं और उनका स्वास्थ्य दिन – प्रतिदिन गिरता जाता है । स्वास्थ्य के गिरने पर श्रमिकों की कार्यक्षमता घट जाती है और कार्यक्षमता घट जाने से राष्ट्रीय उत्पादन व आय दोनों ही कम हो जाते हैं । देश में इस समय प्राय 5 . 12 करोड़ लोग गन्दी बस्ती में रहते हैं । यह भी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है ।

अशिक्षा -अशिक्षा भारत में निर्धनता का प्रमुख कारण है । इस देश में कुल जनसंख्या का 52 . 11 प्रतिशत ( सन् 1991 की जनगणना की अन्तरिम रिपोर्ट के अनुसार ) साक्षर है । इतना ही नहीं , तकनीकी शिक्षा और ट्रेनिंग के लिए उचित प्रबन्ध तो देश में और भी कम है । इसीलिए यहाँ कारखानों में काम करने के लिए कुशल व्यक्ति नहीं मिल पाते हैं यह मानी हुई बात है कि जब तक देश में उद्योग – धन्धों को पनपाने के लिए औद्योगिकरण प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों की कमी बनी रहेगी , तब तक देश की आर्थिक दशा नहीं सुधर सकती ।

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. व्यक्तिगत कारण ( Parsonal Causes )

 बीमारी – पारिवारिक निर्धनता का प्रमुख कारण बीमारी है । बीमारी मनुष्य को दुबल और निकम्मा बना देती है ; वह काम करने के योग्य नहीं रहता और उसको आय कम हो जाती है । इतना ही नहीं , बीमारी का इलाज करवाने में काफी धन बर्बाद हो जाता है जो कि निर्धनता को जन्म देता है ।

 मानसिक रोग – सामान्य बीमारियों से कहीं अधिक दःखदायी मानसिक रोग होते हैं । इस देश में लगभग 1 . 69 करोड़ लोग मानसिक विकास सम्बन्धी कमियों के शिकार हैं । मानसिक राग भी मनुष्य को काम करने के अयोग्य बना देते हैं जिससे कि उसकी आय बन्द हो जाती है । साथ ही , मानसिक रोग की चिकित्सा उतनी सरल नहीं होती है जितनी कि शारीरिक रोगों की । अनुमान है कि इस देश में कम – से – कम 8 लाख मानसिक रोगी ऐसे हैं जिन्हें अस्पताल में रखने की आवश्यकता है ।

  बुरी आदतें – व्यक्ति की बुरी आदतें भी उसे निर्धन बना देती हैं । भारत में बुरी आदतों में वेश्यावृत्ति , नशेबाजी , जुआ खेलना , सट्टेबाजी आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । ये बुरी आदतें व्यक्ति के निजी तथा परिवारिक जीवन के आर्थिक आधार को खोखला बना देती हैं ।

 दुर्घटनाएँ – भारत में रेलगाड़ी , मोटर , हवाई जहाज आदि की दुर्घटनाएँ काफी संख्या में होती हैं । साथ ही , भारतीय श्रमिकों को मिल और कारखानों में पुरानी तथा टूटी – फूटी मशीनों पर भी काम करना पडता है । इस कारण मिलव कारखानों में भी बहत दुर्घटनाएं होती है । फलतः अनेक व्यक्ति या तो मर जाते हैं या उनके शरीर का कोई – न – कोई अंग बेकार हो जाता है । इस प्रकार से उत्पन्न स्थायी या अस्थायी असमर्थता भी निर्धनता को बढ़ाती है । दुर्घटना के कारण यदि कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है , तो भी परिवार में निर्धनता बढ़ती है ।

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आर्थिक कारण ( Economic Causes ) निर्धनता चूंकि एक आर्थिक घटना है , अतः इसको बढ़ाने में आर्थिक कारणों का भी अत्यधिक योगदान रहता है . जैसा कि निम्नलिखित विवेचना से स्पष्ट है :

खेती की पिछड़ी दशा – भारत एक खेतिहर देश है । यहाँ कुल जनसंख्या का प्रायः 70 प्रतिशत अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर है । पर दुःख की बात यह है कि यहाँ खेती की दशा अन्य देशों की तुलना में अत्यधिक पिछड़ी हुई है । सिंचाई के कम साधन या अन्य कठिनाइयों के कारण . कृषि – उत्पादन देश में बहुत कम है और गाँवों के लोग निर्धनता से ग्रस्त हैं ।

 बुनियादी उद्योगों की पिछड़ी दशा – बुनियादी उद्योगों की दशा भी इस देश में अत्यधिक गिरी हुई है । यहाँ लोहा और इस्पात , वैज्ञानिक उपकरण , बिजली के भारी यन्त्र , खनिज तेल , वायु – परिवहन , रेल – परिवहन , आदि बनाने के कारखानों की नितान्त कमी है । इससे एक ओर उद्योगों का विकास शीघ्रता से नहीं हो पाता है दूसरी ओर मशीनों व उपकरणों को विदेशों से मँगवाने में देश का काफी धन विदेशों को चला जाता है । ये दोनों ही दशाएँ निर्धनता को पनपाती हैं ।

 कम पूँजी – भारत में पूँजी – संचय अत्यधिक कम होता है । उसका कारण यह है कि यहाँ के निवासियों की आय इतनी कम है कि उनका सभी रुपया खाने – पहनने में ही व्यय हो जाता है । जो लोग कुछ धन बचाते भी हैं उसका काफी हिस्सा या तो छिपाकर रख दिया जाता है या सोने – चांदी के आभूषण बनवा लिये जाते हैं । इससे नये उद्योग – धन्धों के पनपने के लिए आवश्यक पूँजी नहीं उपलब्ध हो पाती है और देश में निर्धनता का विकास होता है ।

परिवहन व संचार के उन्नत साधनों की कमी – उद्योग – धन्धों , व्यापार और वाणिज्य में उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि देश के परिवहन तथा संचार के साधन उन्नत अवस्था में हों ; परन्तु भारत में इनकी नितान्त कमी है । रेलगाड़ी , तार , टेलीफोन आदि की सुविधाएँ भारतीय गाँवों में बहुत कम हैं । इससे गाँववासी अपनी उपज को ठीक ढंग से नहीं बेच पाते और उन्हें अपनो उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता । इससे भी देश में निर्धनता पनपती है ।

 श्रमिकों की कार्यक्षमता की कमी – भारत में निर्धनता का एक कारण यह भी है कि यहाँ के श्रमिकों की कार्यक्षमता अत्यधिक कम है । कहा जाता है कि भारतीय श्रमिकों की अपेक्षा अन्य प्रगतिशील देशों के श्रमिक प्रायः तीन गुना अधिक काम करते हैं । श्रमिकों की इस कार्यक्षमता की कमी के कारण यहाँ उत्पादन कम होता है और इसका प्रभाव राष्ट्रीय आय पर पड़ता है और निर्धनता से देश का पीछा नहीं छूटता ।

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 समुचित बैंकिंग व साख – सुविधाओं की कमी – भारत में बैंकिंग और साख सुविधाएँ समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं जिसके कारण देश में पूँजी का संचय और निर्माण उचित ढंग से नहीं हो पाता है और न ही किसानों , व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को पर्याप्त साख – सुविधाएँ प्राप्त हो पाती है । इससे भी खेती व उद्योग – धन्धों का देश में उचित विकास नहीं हो पाता और निर्धनता पनपती है ।

  प्राकृतिक साधनों का अपर्याप्त उपयोग – जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है कि इस देश में प्राकृतिक साधनों की कमी नहीं है और जल – शक्ति , भूमि , खनिज – सम्पत्ति और पश – धन आदि के क्षेत्र में भारत पर्याप्त धनी है । परन्तु वर्तमान अवस्था यह है कि भारतवासी इन साधनों को उचित ढंग से उपयोग में नहीं ला पा रहे हैं और इस कारण सबकुछ होते हुए भी वे निर्धन बने हुए हैं ।

. राजनीतिक कारण ( Political Causes ) निर्धनता के कुछ राजनीतिक कारणों का उल्लेख किया जा सकता है :

 ब्रिटिश साम्राज्यवाद – ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बिल्कुल खोखला बना दिया था । अंग्रेज लोग इस देश से सस्ते दामों में कच्चा माल खरीदकर अपने देश में ले जाकर उद्योग – धन्धों को विकसित करते थे और वहाँ की बनी वस्तुओं को ऊँचे दामों में बेचते थे । इससे यहाँ के उद्योग – धन्धों का धीरे – धीरे विनाश होता . गया । इसके अतिरिक्त उस समय भारत पर जो शासन – सम्बन्धी व्यय होता था उसे भी अंग्रेज भारत से ही वसूल करते थे । इस रूप में करोड़ों रुपया यहाँ से इंगलैण्ड को चला जाता था । अंग्रेजों ने भारत से ब्रिटिश साम्राज्य का तो अन्त कर दिया , परन्तु उसके द्वारा ही स्थापित सुदृढ़ व भयंकर निर्धनता का साम्राज्य आज भी देश में अटल है ।

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य द्ध – पिछले दो विश्वयुद्धों ने भी भारत की निर्धनता को बढ़ाया है । विशेषकर द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् देश की आर्थिक स्थिति में जो असन्तुलन प्रारम्भ हुआ , उसका अन्त आज तक भी नहीं हुआ है । इतना ही नहीं , भारत पर चीन और पाकिस्तान के कूर आक्रमणों के फलस्वरूप देश का आर्थिक संकट और भी अधिक बढ़ गया । इसी प्रकार सन् 1971 में ‘ बंगला देश ‘ में जो मुक्ति – संग्राम चला , उसका भी अत्यन्त बुरा प्रभाव भारत की अर्थ – व्यवस्था पर पड़ा क्योंकि वहाँ के लगभग 1 करोड़ शरणार्थी . यहाँ आये और लगभग 20 महीने रहने के बाद बंगला देश वापस गये । भारत सरकार ने शरणार्थियों के खाने , रहने , चिकित्सा व वापस जाने पर 325 करोड़ रुपया खर्च किया , साथ ही उसके पुनर्वास के लिए भी आर्थिक सहायता दी ।

 जनसंख्यात्मक कारक या कारण ( Demographic Factors ) कहा जाता है कि “ अति जनसंख्या भारत की निर्धनता का मूल कारण है । ” यह इसलिए कहा जाता है कि भारतवर्ष की जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है । उदाहरणार्थ सन् 1901 में देश की जनसंख्या प्रायः 23 . 83 करोड़ थी जो कि सन् 1931 में बढ़कर 27 . 89 हो गयी थी । सन् 1941 में भारत की जनसंख्या प्रायः 31 . 8 करोड़ थी जो कि सन् 1961 में बढ़कर 43 . 92 करोड़ हो गई थी . पन् 1971 में भारत की जनसंख्या 54 , 81 , 59 , 625 और सन् 1981 में 68 , 51 , 84 , 692 थी जो कि सन् 1991 की जनगणना रिपोर्ट के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार 84 , 39 , 30 , 861 हो गई है । आर्थिक विकास की वर्तमान स्थिति में भारत इतनी बढ़ती हुई जनसंख्या का भली प्रकार भरण – पोषण नहीं कर पा रहा है , अतः इस समय देश में अति जनसंख्या की स्थिति है जो निर्धनता को निम्नलिखित रूप में प्रोत्साहन देती है :

( i ) अनुमान है कि जनसंख्या के तेजी से बढ़ने से भारत में नये श्रमिक प्रति वर्ष 25 लाख की संख्या में बढ़ते जा रहे हैं । इनको रोजगार देना सरल नहीं है । इससे देश में बेरोजगारी फैलती है और निर्धनता बढ़ती है ।

 ( ii ) काम करने योग्य श्रमिकों की जनसंख्या अत्यधिक होने का एक अन्य दुष्परिणाम यह । होता है कि श्रमिकों की माँग ( Demand ) की तुलना में श्रमिकों की पूर्ति ( Supply ) बहुत ज्यादा हो । जाती है । इससे श्रम का मूल्य अर्थात् श्रमिकों का वेतन घटने से निर्धनता स्वभावतः बढ़ती है ।

 ( iii ) जनसंख्या अत्यधिक बढ़ने से प्रतिव्यक्ति आय ( Per capita income ) बहुत घट जाती है । इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति को न तो उचित भोजन मिलता है और न ही रहने के लिए । अच्छे मकान । अपर्याप्त तथा असन्तुलित भोजन करने और अस्वास्थ्यकर मकानों में रहने से लोगों को नाना । प्रकार के भयंकर रोग घेर लेते हैं और उनकी कार्यक्षमता घटती है । कार्यक्षमता घटने से आय और भी घटता है ।

 ( iv ) जनसंख्या का आधिक्य और इसमें प्रतिदिन की तेज वृद्धि देश के आर्थिक विकास के मार्ग में बहुत बड़ी अड़चन है । इसमें देश को सबसे पहले अधिक – से – अधिक लोगों के पेट भरने या उन्हें भुखमरी से बचाने की चिन्ता करनी पड़ती है । इससे भी देश में गरीबी बढ़ती है ।

 ( v ) जनसंख्या अधिक बढ़ने से भूमि पर दबाव बढ़ता जाता है । आज देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर है । जनसंख्या के भूमि पर अत्यधिक दबाव से खेत बहुत छोटे – छोटे और छिटके हो गये हैं और खेती का आधुनिकीकरण और विकास बहुत कठिन हो गया है । इसलिए खेती का कुल उत्पादन , क्षेत्र में बहुत कम है और गाँव के लोग निर्धन बने हुए हैं । अतः कहा जा सकता है कि अति जनसंख्या भारत की निर्धनता या दरिद्रता का मूल कारण है , पर यही एकमात्र कारण नहीं है निर्धनता के अन्य कारण भी हैं जिनकी विवेचना हम कर चुके हैं ।

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प्रमुख सामाजिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं :

 बाल – अपराध – निर्धनता का एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक दुष्परिणाम बाल – अपराध है । एक निर्धन परिवार का बच्चा जब अपने से अधिक सम्पन्न परिवार के बच्चों को नाना प्रकार के आराम तथा विलासिता की वस्तुओं का उपभोग करते देखता है और चाहने पर भी निर्धनता के कारण उन वस्तुओं को प्राप्त नहीं कर पाता तो उस निर्धन बच्चे में लालच , द्वेष और ईर्ष्या की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं । पहले वैध तरीकों से उन वस्तुओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और जब वह इन प्रयत्नों में असफल हो जाता है तब वह अवैध तरीकों से चोरी आदि को अपनाता है । अत्यधिक निर्घनता की स्थिति में बच्चों को प्राथमिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती हैं और भूख से तंग आकर चोरी करना सीख जाते हैं । इसी प्रकार निर्धनता के कारण माता – पिता दोनों को ही नौकरी करनी पड़ती है , इससे बच्चों पर उनका नियन्त्रण ढीला पड़ जाता है और बच्चोंके  िलए  िबगाडना सरल हो जाता है । अर्थात् वे बाल – अपराधी बन जाते हैं ।

अपराध – निर्धरता का एक दुष्परिणाम अपराध भी है । निर्धनता के कारण व्यक्ति अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है । अतः पहले तो वह ईमानदारी के रास्ते पर रहकर इन आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहता है , पर जब वह ऐसा नहीं कर पाता है तब चोरी करके या बलपूर्वक छीनकर अथवा अवैध तरीकों से अपनी आवश्यकताओं की पर्ति करने का प्रयत्न करता है । अपनी आँखों के सामने पत्नी व बच्चों को भूखा मरते देखने की तुलना में व्यक्ति चोरी करना या डाका डालना अधिक अच्छा समझता है । उसी प्रकार अत्यधिक निर्धनता की स्थिति में आर्थिक चिन्ताओं में मानसिक सन्तुलन खो बैठता है और उस अवस्था में उसके लिए कोई भी अपराध करना सम्भव होता है ।

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 आत्महत्या – गरीबी या निर्धनता के कारण व्यक्ति आत्महत्या भी कर सकता है । निर्धनता से पीड़ित व्यक्ति जब स्वयं तथा अपने आश्रितों के लिए रोटी – कपड़े की व्यवस्था करने में असफल रहता है तो उस अवस्था में वह आत्महत्या करके अपने को आत्मलज्जा से बचाता है । इसी प्रकार व्यापार में यकायक हानि हो जाने से निर्धनता उत्पन्न होती है . उससे भी आत्महत्या पनपती है । इतना ही नहीं , निर्धनता व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को नष्ट कर देती है और प्रतिष्ठा की हानि कभी – कभी व्यक्ति के लिए इतनी असहनीय हो जाती है कि इस अपमान की कड़वी गोली को निगलने की अपेक्षा उसे मृत्यु अधिक मीठी लगती है । –

 विच्छेद – निर्धरता का एक प्रत्यक्ष दुष्परिणाम विवाह – विच्छेद भी है । आथिक विषयों में बहत दिनों तक चिन्तित रहना भी वैवाहिक सम्बन्धों का नाशक है । सम्भव है कि निधन पति अपनी नौकरी – खोज में दिन – भर सड़कों पर मारा – मारा फिरे और जब शाम को घर लौटे तो पत्नी का सहानुभूति भी उसे प्राप्त न हो । पत्नी यह सोचती है और कहती है कि यदि ठीक से कोशिश की जाये तो नोकरी न मिलने का कोई कारण नहीं है । ये बातें तथा आर्थिक चिन्ताएँ पति – पत्नी और बच्चों को चिड़चिड़ा बना देती हैं और इससे परिवार में कलह और अशान्ति का बोलबाला रहता है । निर्धनता का स्थिति में बच्चों के पास जूते नहीं होते , सबके वस्त्र फटे – चिथड़े होते हैं और घर में खाने को नहीं होता , सब चिन्ताएँ वैवाहिक जीवन को विषमय बना देती हैं जिनका परिणाम विवाह – विच्छेद हो सकता है । –

 बेकारी – बेकारी निर्धनता का एक अन्य दुष्परिणाम है । निर्धनता के कारण व्यक्ति अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता और उसके लिए भोजन , मकान , कपड़े आदि की व्यवस्था करना सम्भव नहीं होता है । फलतः वह रोगी हो जाता है । रोगी व्यक्तियों को नौकरी में अधिक छडी लेनी पडती है । अधिक छट्टी लेने वाले को नौकरी से निकाला जा सकता है और वह बेरोजगार हो सकता है । साथ ही आर्थिक चिन्ताओं से अनेक प्रकार के मानसिक रोग भी मनुष्य को काम करने के अयोग्य बना देते है इससे भी बेकारी पनपती है ।

 भिक्षावृत्ति – निर्धनता का एक सामाजिक दुष्परिणाम भिक्षावृत्ति भी हो सकता है । गरीबी की चरमसीमा पर पहुंचकर जब आदमी भूखों मरने लगता है और अपने बीवी – बच्चों को अपनी आँखों के सामने भूख से तड़पते और मरते देखता है तो उसके लिए भीख मांगने का काम भी लज्जा का विषय नहीं होता है ।

 वेश्यावृत्ति – निर्धनता के कारण जब आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं तक की पूर्ति नहीं हो पाती है तो अनेक स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति को अपनाने के लिए विवश हो जाती हैं । वास्तव में , धन के बदले में अपने शरीर को दूसरे के हाथों में बेच देना ही वेश्यावृत्ति है अर्थात् वेश्यावृत्ति में ‘ धन ‘ मुख्य चीज है । और इसलिए निर्धनता को इसका मुख्य कारण माना जा सकता है । ऐसी अनेक बेबस लड़कियाँ व स्त्रियाँ हैं जो गरीबी के आघात से अपने को बचाने के लिए छिप – छिपकर वेश्यावृत्ति का धन्धा चलाती हैं , क्योंकि पेट भरने और तन को ढकने के लिए जिस धन की आवश्यकता है वह भी इन बेचारियों को अन्य किसी भी उपाय से जब नहीं मिल पाता है तब उनके लिए शरीर बेचने के अलावा और उपाय रह भी नहीं जाता । अतः स्पष्ट है कि निर्धनता का एक कटु सामाजिक दुष्परिणाम वेश्यावृत्ति भी है

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