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धांधली के आरोप से गरमाई सियासत: राहुल बनाम राजनाथ, चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता दांव पर!

धांधली के आरोप से गरमाई सियासत: राहुल बनाम राजनाथ, चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता दांव पर!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और प्रमुख विपक्षी नेता, राहुल गांधी द्वारा भारत की चुनावी प्रणाली की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि “भारत का इलेक्शन सिस्टम मर चुका है” और आरोप लगाया कि “सीटों पर धांधली” हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए। इसके जवाब में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्षी नेताओं को सीधे चुनौती देते हुए कहा कि यदि उनके पास सबूतों का “एटम बम” है, तो वे उसे “फोड़ दें”। यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं, विशेष रूप से चुनाव आयोग और चुनावी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर एक तीखी बहस छेड़ गया है। यह घटनाक्रम न केवल राजनीतिक गलियारों में, बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह सीधे तौर पर देश के लोकतंत्र के मूल आधार से जुड़ा है।

यह पूरा घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारतीय राजनीति की वर्तमान स्थिति को समझने में मदद करता है, बल्कि संविधान, शासन, चुनावी सुधारों, न्यायपालिका की भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय तुलना जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी प्रकाश डालता है। आइए, इस मुद्दे की तह तक जाकर इसके विभिन्न आयामों को समझते हैं।

1. राहुल गांधी के आरोप: “इलेक्शन सिस्टम मर चुका है”

राहुल गांधी का यह बयान कोई एकाएक की गई टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस पार्टी और कुछ अन्य विपक्षी दलों द्वारा समय-समय पर चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर उठाए जा रहे सवालों की एक कड़ी है। उनके आरोपों के मुख्य बिंदु इस प्रकार समझे जा सकते हैं:

  • “इलेक्शन सिस्टम मर चुका है”: यह एक प्रतीकात्मक और गंभीर आरोप है, जिसका अर्थ है कि चुनावी प्रक्रिया अब निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र नहीं रह गई है। इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि वोट की गिनती, ईवीएम की सुरक्षा, वोटर लिस्ट की शुचिता, या अन्य कई स्तरों पर गंभीर खामियां हैं।
  • “सीटों पर धांधली”: इसका सीधा अर्थ है कि विशेष निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए अनैतिक या अवैध तरीकों का इस्तेमाल किया गया। यह कई रूपों में हो सकता है, जैसे:
    • ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन): ईवीएम की हैकिंग, चिप-टैम्परिंग या सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ के आरोप, हालांकि चुनाव आयोग द्वारा लगातार खंडित किए गए हैं।
    • वोटर लिस्ट में विसंगतियां: फर्जी वोटों का जुड़ना, पात्र मतदाताओं का नाम हटाना, या विशेष समुदायों को निशाना बनाना।
    • मतदान के दिन की अनियमितताएं: बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को धमकाना, मतदान में बाधा डालना, या अधिकारियों का पक्षपाती होना।
    • मतगणना में धांधली: वोटों की गलत गिनती, या नतीजों को प्रभावित करने के लिए प्रक्रियाओं का उल्लंघन।
  • “तभी मोदी PM बने”: यह आरोप चुनावी धांधली के परिणामों को सीधे तौर पर वर्तमान सरकार के सत्ता में आने से जोड़ता है। यह संकेत देता है कि सरकार अपनी लोकप्रियता या जनादेश के बजाय चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण बनी है।

UPSC प्रासंगिकता: यह आरोप भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है। यह ‘लोकतंत्र’ (UPSC GS-II: Polity), ‘चुनाव आयोग की भूमिका’ (GS-II), ‘ electoral reforms’ (GS-II), और ‘न्यायपालिका की निगरानी’ (GS-II) जैसे विषयों से सीधे तौर पर जुड़ता है।

“चुनावों का निष्पक्ष होना किसी भी लोकतंत्र की जीवनरेखा है। यदि जनता का विश्वास चुनावी प्रक्रिया से उठ जाए, तो यह पूरे तंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।”

2. राजनाथ सिंह का पलटवार: “सबूतों का एटम बम है तो फोड़ दें!”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान, जहां एक ओर विपक्षी आरोपों को सीधे तौर पर चुनौती देता है, वहीं दूसरी ओर यह सरकार का यह रुख भी दर्शाता है कि वह इन आरोपों को निराधार मानती है और किसी भी ऐसे आरोप को स्वीकार करने को तैयार नहीं है जिसके समर्थन में ठोस सबूत न हों।

  • “सबूतों का एटम बम”: यह एक अलंकारिक भाषा का प्रयोग है, जिसका अर्थ है कि यदि विपक्ष के पास चुनाव में धांधली के इतने गंभीर और अकाट्य प्रमाण हैं, तो उन्हें सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत करना चाहिए, न कि केवल मौखिक आरोप लगाने चाहिए। ‘एटम बम’ शब्द का प्रयोग आरोपों की गंभीरता को दर्शाने के साथ-साथ, इस बात पर जोर देता है कि ऐसे ‘सबूत’ इतने शक्तिशाली होने चाहिए कि वे पूरे ‘सिस्टम’ को हिला सकें।
  • सबूतों की मांग: इस बयान के माध्यम से, सरकार एक तरह से विपक्ष पर यह दबाव बना रही है कि वह आरोप लगाने से पहले ठोस, सत्यापित और अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत करे। यह एक तरह से ‘burden of proof’ (सबूत का भार) को विपक्ष पर डालना है।
  • चुनाव आयोग की रक्षा: यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग और उसकी प्रक्रियाओं की रक्षा भी करता है। सरकार का मानना है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था है, और उस पर लगे आरोप निराधार हैं।

UPSC प्रासंगिकता: यह सत्तारूढ़ दल की प्रतिक्रिया को दर्शाता है और ‘राजनीतिक आचरण’ (GS-II), ‘सरकार की जवाबदेही’ (GS-II), और ‘जनता के प्रति पारदर्शिता’ (GS-II) जैसे पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह ‘राजनीतिक संचार’ (GS-II) का एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है।

3. चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता: एक गंभीर राष्ट्रीय चिंता

भारत की चुनावी प्रणाली, जिसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार माना जाता है, हमेशा से ही देश-विदेश में चर्चा का विषय रही है। एक ओर, जहाँ चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और कुशलता के लिए सराहा गया है, वहीं दूसरी ओर, कुछ विशिष्ट मुद्दों पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं।

A. भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं और ताकतें:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग: संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित भारतीय चुनाव आयोग (ECI) एक स्वायत्त निकाय है, जो चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होकर कार्य करने के लिए जाना जाता है।
  • ईवीएम का उपयोग: ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) ने मतदान और मतगणना प्रक्रिया को तेज, सटीक और मानवीय त्रुटि से मुक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके साथ ही, वीवीपैट (Voter Verifiable Paper Audit Trail) के माध्यम से मतदाता अपने वोट की पर्ची देखकर पुष्टि कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है।
  • व्यापक मतदाता आधार: 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को मताधिकार प्राप्त है, जो दुनिया में सबसे बड़े और सबसे विविध मतदाता आधारों में से एक है।
  • निष्पक्ष आचार संहिता: चुनाव के दौरान लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) यह सुनिश्चित करती है कि सत्ताधारी दल सरकारी तंत्र का दुरुपयोग न कर सके।
  • पर्यवेक्षण और शिकायत निवारण: चुनाव प्रक्रिया के हर चरण की निगरानी के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक, जिला स्तरीय अधिकारी और अन्य तंत्र मौजूद हैं, जो शिकायतों का निवारण करते हैं।

B. चुनावी प्रणाली पर उठने वाले प्रमुख प्रश्न और चिंताएं:

राहुल गांधी जैसे नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दे, और अन्य स्रोतों से सामने आने वाली चिंताओं को निम्नलिखित बिंदुओं में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह:
    • हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर टैकनोलॉजी: कुछ विशेषज्ञ ईवीएम के डिजाइन और सुरक्षा पर सवाल उठाते हैं। वे आशंका जताते हैं कि क्या इन्हें हैक किया जा सकता है या इनमें कोई अंतर्निहित दोष हो सकता है।
    • वीवीपैट मिलान: हालांकि वीवीपैट का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना है, लेकिन कई बार ईवीएम के वोटों और वीवीपैट पर्चियों के बीच मिलान (matching) में विसंगतियों के मामले सामने आए हैं, जिससे संदेह को बल मिलता है।
    • ‘वन-वे’ ट्रांसमिशन: ईवीएम का डिजाइन केवल डेटा प्राप्त करने का है, उसमें कोई परिवर्तन या अपडेट नहीं किया जा सकता, जिससे ‘वन-वे ट्रांसमिशन’ की बात कही जाती है। हालाँकि, कुछ लोगों का तर्क है कि एक-तरफा प्रसारण भी दुर्भावनापूर्ण इनपुट से पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकता।
  2. वोटर लिस्ट में धांधली और फर्जी वोट:
    • डेटा का दोहराव या अशुद्धि: कई बार शिकायतें आती हैं कि वोटर लिस्ट में मृत व्यक्तियों के नाम अभी भी शामिल हैं, या एक ही व्यक्ति का नाम कई जगहों पर दर्ज है।
    • ‘सुसुप्त मतदाता’ (Sleeper Voters): यह भी आरोप लगते हैं कि कुछ विशेष क्षेत्रों में या विशेष समयों पर ‘सुसुप्त मतदाताओं’ (जो वास्तव में मौजूद नहीं हैं या मतदान नहीं करते) के नाम का दुरुपयोग कर फर्जी वोट डाले जा सकते हैं।
    • इलेक्टोरल रोल मैनेजमेंट: मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी पर भी चिंताएं व्यक्त की जाती हैं।
  3. चुनाव प्रचार में असमानता और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग:
    • धनबल और बाहुबल: चुनाव प्रचार में भारी मात्रा में धन का उपयोग और कुछ मामलों में बाहुबल का प्रयोग, निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत को कमजोर करता है।
    • सरकारी मशीनरी का पक्षपातपूर्ण उपयोग: सत्तारूढ़ दल द्वारा सरकारी कार्यक्रमों, अधिकारियों और सार्वजनिक धन का उपयोग अपने पक्ष में प्रचार के लिए किए जाने के आरोप लगते रहे हैं।
    • मीडिया पर प्रभाव: मीडिया के एक बड़े हिस्से का झुकाव एक विशेष दल की ओर होना भी निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है।
  4. चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर प्रश्न:
    • नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार की भूमिका पर कई बार सवाल उठाए गए हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता पर संदेह पैदा होता है।
    • प्रवर्तन शक्तियां: आदर्श आचार संहिता या अन्य नियमों के उल्लंघन पर चुनाव आयोग की प्रवर्तन शक्तियों की प्रभावशीलता पर भी बहस होती है।
  5. ईवीएम के ईवीएम के बजाय मतपत्रों (Ballot Papers) पर वापसी की मांग: कुछ राजनीतिक दल और नागरिक समाज संगठन, ईवीएम के बजाय पारंपरिक मतपत्रों पर लौटने की वकालत करते रहे हैं, उनका मानना है कि मतपत्रों से छेड़छाड़ करना अधिक कठिन है और जनता की ओर से अधिक स्वीकार्य है।

UPSC प्रासंगिकता: यह पूरा खंड ‘भारतीय शासन’ (GS-II), ‘लोकतांत्रिक चुनौतियाँ’ (GS-I/GS-II), ‘सामाजिक न्याय’ (GS-I) जहाँ कमजोर वर्गों के मताधिकार पर सवाल उठ सकते हैं, ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’ (GS-II) जहाँ भारत की चुनावी व्यवस्था की तुलना अन्य देशों से की जाती है, जैसे विषयों के लिए महत्वपूर्ण है। ‘Constitutional Provisions’ (GS-II) जैसे अनुच्छेद 324, 325, 326 भी प्रासंगिक हैं।

“किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए, उसके नागरिकों का चुनावी प्रक्रिया में विश्वास उसका सबसे बड़ा धन होता है। इस विश्वास को बनाए रखना सरकार, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों, सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।”

4. सरकार का पक्ष और चुनाव आयोग का रुख

सरकार, विशेष रूप से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान से यह स्पष्ट है कि उनका मानना है कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष है, और ऐसे आरोप निराधार हैं। सरकार का रुख इन तर्कों पर आधारित हो सकता है:

  • चुनाव आयोग की स्वतंत्रता: सरकार जोर देती है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और संवैधानिक निकाय है, और इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाना संवैधानिक संस्थाओं का अपमान है।
  • ईवीएम की सुरक्षा: सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि ईवीएम को हैक करना असंभव है। उन्होंने ईवीएम की सुरक्षा के लिए कई स्तरों पर सुरक्षा उपाय (जैसे वन-टाइम प्रोग्रामेबल चिप, फिक्स्ड मशीन, रैंडम एलोकेशन) लागू किए हैं।
  • वीवीपैट से मिलान: चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए वीवीपैट से ईवीएम के वोटों के मिलान की संख्या बढ़ाई है, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
  • कानूनी प्रक्रिया: सरकार का कहना है कि यदि किसी के पास चुनावी धांधली के कोई ठोस सबूत हैं, तो उन्हें कानूनी माध्यमों से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, न कि केवल राजनीतिक मंचों पर आरोप लगाए जाने चाहिए।
  • विपक्षी दलों का दोहरा मापदंड: कई बार यह भी तर्क दिया जाता है कि जब कोई दल चुनाव जीतता है, तो वह चुनावी प्रक्रिया की प्रशंसा करता है, लेकिन जब हारता है, तो प्रक्रिया पर ही सवाल उठाता है।

UPSC प्रासंगिकता: यह ‘कार्यकारी शाखा का उत्तरदायित्व’ (GS-II), ‘न्यायिक समीक्षा’ (GS-II), और ‘संवैधानिक निकायों की भूमिका’ (GS-II) जैसे विषयों पर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

5. आगे की राह: चुनावी सुधारों की आवश्यकता और चुनौतियां

राहुल गांधी के आरोपों ने एक बार फिर चुनावी सुधारों पर बहस को तेज कर दिया है। भारत को अपनी चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों पर विचार करने की आवश्यकता है:

A. प्रस्तावित और आवश्यक चुनावी सुधार:

  • चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति: नियुक्ति प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता लाई जानी चाहिए। इसके लिए कॉलेजियम प्रणाली या प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी जैसी व्यवस्था पर विचार किया जा सकता है।
  • ईवीएम सुरक्षा और ऑडिट:
    • पूर्ण वीवीपैट पर्ची मिलान: सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट पर्चियों का शत-प्रतिशत मिलान एक विकल्प हो सकता है, हालांकि इसमें समय और संसाधनों की अधिक आवश्यकता होगी।
    • स्वतंत्र तकनीकी ऑडिट: ईवीएम के डिजाइन, सॉफ्टवेयर और सुरक्षा प्रोटोकॉल का स्वतंत्र और विशेषज्ञ तकनीकी ऑडिट कराया जाना चाहिए।
    • ‘हैकिंग प्रूफ’ ईवीएम: भविष्य में ऐसी ईवीएम विकसित की जानी चाहिए जिनमें हैकिंग की गुंजाइश और भी कम हो।
  • वोटर लिस्ट की शुचिता:
    • डेटा मिलान और सत्यापन: राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) या आधार डेटा के साथ मतदाता सूची का अधिक प्रभावी मिलान और सत्यापन किया जाना चाहिए ताकि डुप्लिकेट या फर्जी प्रविष्टियों को हटाया जा सके।
    • ‘ऑप्ट-आउट’ विकल्प: यदि कोई मतदाता लगातार कई चुनावों में मतदान नहीं करता है, तो उसे एक निश्चित प्रक्रिया के बाद सूची से हटाने का प्रावधान, लेकिन साथ ही पुनर्पंजीकरण का सरल मार्ग भी होना चाहिए।
  • चुनाव प्रचार में धन और संसाधनों का विनियमन:
    • निर्वाचन व्यय सीमा में वृद्धि: चुनावी खर्च की सीमा को वास्तविकताओं के अनुरूप बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही इसके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी तंत्र भी होने चाहिए।
    • कॉर्पोरेट फंडिंग पर नियंत्रण: चुनावी बॉन्ड जैसी व्यवस्थाओं में और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है।
  • मीडिया की भूमिका और नियमन: पेड न्यूज, फेक न्यूज और एजेंडा-आधारित रिपोर्टिंग पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए मजबूत तंत्र की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग की शक्तियों का विस्तार: चुनाव आयोग को उल्लंघन पर तत्काल और प्रभावी कार्रवाई करने के लिए अधिक स्वायत्त और मजबूत शक्तियां दी जानी चाहिए।
  • ‘नोट्टा’ (NOTA) का प्रभावी उपयोग: यदि कोई भी उम्मीदवार स्वीकार्य न हो, तो ‘नोटा’ (None Of The Above) विकल्प को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है, और ऐसे मामलों में पुनः चुनाव कराने या अन्य विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।

B. चुनौतियां:

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति: कई सुधारों को लागू करने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, जो अक्सर मुश्किल होता है।
  • संसाधन और समय: कुछ सुधार, जैसे शत-प्रतिशत वीवीपैट मिलान, काफी समय लेने वाले और महंगे हो सकते हैं।
  • संविधानिक संशोधन: कुछ सुधारों के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है, जो एक जटिल प्रक्रिया है।
  • तकनीकी जटिलताएं: ईवीएम जैसी तकनीकी प्रणालियों में सुधार के लिए विशेषज्ञता और निरंतर नवाचार की आवश्यकता होती है।

UPSC प्रासंगिकता: यह खंड ‘शासन में सुधार’ (GS-II), ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना’ (GS-II), ‘संवैधानिक व्याख्या’ (GS-II), और ‘सामाजिक न्याय’ (GS-I) जैसे विषयों के लिए महत्वपूर्ण है। ‘International Best Practices’ (GS-II) का संदर्भ भी दिया जा सकता है।

निष्कर्ष:

राहुल गांधी द्वारा भारत की चुनावी प्रणाली पर उठाए गए सवाल और राजनाथ सिंह का तीखा जवाब, देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण विचार-विमर्श को जन्म देता है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी लोकतंत्र की परिपक्वता का एक पैमाना यह भी है कि वह आलोचना और संदेह का सामना कैसे करता है, और अपनी संस्थाओं में सुधार के लिए कितना खुला है। जबकि हमें भारत की चुनावी प्रणाली की ताकत और उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए, वहीं हमें संभावित कमजोरियों को स्वीकार करने और उन्हें दूर करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यदि “सबूतों का एटम बम” मौजूद है, तो उसे सभी के सामने लाया जाना चाहिए। यदि नहीं, तो चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने के लिए पारदर्शी और प्रभावी सुधार आवश्यक हैं। यह सुनिश्चित करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि भारत का लोकतंत्र मजबूत, निष्पक्ष और जनता के विश्वास पर टिका रहे।

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