धराली में बादल फटने की भयावहता: 34 सेकंड का मंजर, 4 जानें गईं, 50 से ज्यादा लापता – भौगोलिक और प्रशासनिक विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
उत्तराखंड का शांत पहाड़ी क्षेत्र, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, हाल ही में एक विनाशकारी घटना का गवाह बना। राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित धराली गाँव के पास अचानक बादल फटने से भारी तबाही मची। यह घटना इतनी तेज और अप्रत्याशित थी कि मात्र 34 सेकंड में सैकड़ों घर और होटल मलबे में दब गए, जिससे कम से कम 4 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग लापता हो गए। इस आपदा ने एक बार फिर पहाड़ी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, अविकसित अवसंरचना और आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, सामाजिक न्याय और शासन जैसे विषयों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी है।
आपदा की भयावहता: 34 सेकंड का विनाशकारी मंजर
यह घटना किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। धराली और आसपास के इलाकों में हुई बादल फटने की इस घटना ने एक पल में जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।
- समय: मात्र 34 सेकंड
- प्रभाव: सैकड़ों घर और होटल मलबे में दबे
- हताहत: 4 मौतें, 50 से अधिक लोग लापता
- अन्य नुकसान: सड़कें, पुल और अन्य महत्वपूर्ण अवसंरचना क्षतिग्रस्त
पहाड़ों में बादल फटना एक अत्यंत तीव्र और विनाशकारी घटना होती है। जब वायुमंडल में बड़ी मात्रा में जलवाष्प अचानक संघनित होकर अत्यंत तेजी से वर्षा के रूप में गिरती है, तो इसे बादल फटना कहते हैं। यह सामान्य वर्षा से बहुत अलग होता है, क्योंकि इसमें थोड़े समय में अत्यधिक मात्रा में पानी गिरता है, जिससे नदियों और नालों में अचानक बाढ़ आ जाती है। इन क्षेत्रों में ढलान अधिक होने के कारण, यह पानी अपने साथ बड़े-बड़े पत्थर, मिट्टी और मलबा ले आता है, जिससे भूस्खलन और कीचड़ का सैलाब (mudslide) आ जाता है। धराली की घटना में भी यही हुआ, जिसके कारण कुछ ही क्षणों में पूरा गाँव मलबे की चपेट में आ गया।
“यह एक भीषण मंजर था। जिस तरह से बादल फटे और सब कुछ बह गया, उसे देखकर लगा कि प्रकृति का रौद्र रूप हमने पहली बार देखा।” – एक प्रत्यक्षदर्शी
भौगोलिक परिप्रेक्ष्य: पहाड़ी क्षेत्र और बादल फटने का खतरा
उत्तराखंड जैसे राज्य, जो हिमालयी क्षेत्र का हिस्सा हैं, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। इस विशेष घटना के पीछे कई भौगोलिक कारण हो सकते हैं:
- उच्च ढलान: पहाड़ी इलाकों में तीव्र ढलान होने के कारण, जब बादल फटते हैं तो पानी और मलबा बहुत तेज गति से नीचे बहते हैं। यह गति विनाशकारी होती है।
- वनस्पति आवरण की कमी: अवैध कटाई या जंगल की आग के कारण जिन क्षेत्रों में वनस्पति आवरण कम होता है, वहाँ मिट्टी का कटाव अधिक होता है। बादल फटने पर यह ढीली मिट्टी और मलबा आसानी से बह जाता है।
- भूगर्भीय संवेदनशीलता: हिमालयी क्षेत्र अभी भी भूगर्भीय रूप से सक्रिय है। यहाँ की चट्टानें और मिट्टी की संरचना कई बार भूस्खलन और अन्य भूस्खलन को बढ़ावा देती है, खासकर जब उन पर पानी का अत्यधिक दबाव पड़ता है।
- अचानक मौसम परिवर्तन: पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) और मानसून जैसी मौसमी प्रणालियाँ हिमालयी क्षेत्रों में अचानक और तीव्र वर्षा का कारण बन सकती हैं, जो बादल फटने की घटनाओं को बढ़ाती हैं।
धराली जैसे इलाके, जो अक्सर नदियों या नालों के पास बसे होते हैं, इन आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। नालों का संकुचित होना या उनके प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालना भी आपदा के प्रभाव को बढ़ा सकता है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ता खतरा
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा रहा है।
- बढ़ा हुआ तापमान: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण, वायुमंडल अधिक जलवाष्प धारण कर सकता है। जब यह वाष्प पहाड़ी इलाकों में टकराती है, तो तीव्र और केंद्रित वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
- चरम मौसमी घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) को बढ़ावा देता है, जिसमें तीव्र वर्षा, अत्यधिक गर्मी और अचानक बाढ़ शामिल हैं। बादल फटना ऐसी ही एक चरम घटना है।
- बर्फ का तेजी से पिघलना: ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और सर्दियों में कम बर्फबारी भी मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकती है, जिससे अचानक और अप्रत्याशित वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि धराली की घटना जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
प्रशासनिक और अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ
इस तरह की आपदाओं से निपटने में प्रशासनिक और अवसंरचनात्मक कमजोरियाँ भी सामने आती हैं।
- शहरी नियोजन का अभाव: कई पहाड़ी गाँव और कस्बे नदियों के किनारे या भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में अविकसित या अनियोजित तरीके से बसे हुए हैं। धराली में सैकड़ों घर और होटलों का मलबे में दबना इस अनियोजित विकास का परिणाम हो सकता है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): हालाँकि कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों में प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ अभी भी एक बड़ी चुनौती हैं। समय पर और सटीक जानकारी न मिलने से हताहतों की संख्या बढ़ सकती है।
- आपदा प्रतिक्रिया बल: ऐसे दुर्गम इलाकों में आपदा प्रतिक्रिया टीमों का तुरंत पहुँचना और बचाव कार्य शुरू करना एक बड़ी चुनौती होती है। सड़कों का टूटना और संचार साधनों का अभाव इसमें और बाधा डालता है।
- स्थानीय समुदायों की जागरूकता: स्थानीय समुदायों को आपदाओं के जोखिमों और उनसे बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित और प्रशिक्षित करना भी एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
“हमें यह समझना होगा कि हिमालय एक नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है। यहाँ विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। केवल प्राकृतिक सुंदरता का दोहन करना और जोखिमों की अनदेखी करना विनाशकारी हो सकता है।” – एक पर्यावरणविद्
आपदा प्रबंधन: वर्तमान स्थिति और भविष्य की राह
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन ऐसी घटनाएँ दर्शाती हैं कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
वर्तमान उपाय:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): NDMA आपदाओं के प्रबंधन, रोकथाम और प्रतिक्रिया के लिए नीतियाँ और दिशा-निर्देश तैयार करता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): NDRF की टीमें देश भर में आपदाओं से निपटने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित हैं।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): प्रत्येक राज्य में SDMA राज्य-स्तरीय आपदा प्रबंधन की देखरेख करता है।
- मौसम विभाग (IMD): IMD मौसम पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भविष्य की राह (Way Forward):
- प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: रडार, उपग्रहों और स्थानीय सेंसर का उपयोग करके पहाड़ी इलाकों के लिए विशेष रूप से उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
- जोखिम-आधारित शहरी नियोजन: ऐसे क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति न देना जो भूस्खलन या बाढ़ के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। मौजूदा बस्तियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने की योजना बनाना।
- टिकाऊ अवसंरचना का विकास: पहाड़ी इलाकों के लिए ऐसी अवसंरचना (सड़कें, पुल) का निर्माण करना जो प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सके।
- वनस्पति आवरण बढ़ाना: वनीकरण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रमों पर जोर देना, खासकर भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में।
- सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों को आपदा पूर्व और पश्च-कार्यवाही में प्रशिक्षित करना, मॉक ड्रिल आयोजित करना और उन्हें संवेदनशील बनाना।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation): जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाना, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना।
- अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी एजेंसियों, अनुसंधान संस्थानों और स्थानीय प्रशासन के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए निम्नलिखित कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- भूगोल (Paper I): प्राकृतिक आपदाएँ, भू-आकृतियाँ, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
- पर्यावरण (Paper III): पर्यावरण संरक्षण, पारिस्थितिकी, जैव विविधता, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
- आंतरिक सुरक्षा (Paper III): आपदा प्रबंधन, सीमा प्रबंधन (कुछ हद तक)।
- शासन (Paper II): सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम, सार्वजनिक प्रशासन, पंचायती राज (यदि स्थानीय स्तर पर प्रबंधन शामिल हो)।
- निबंध (Essay): जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ, विकास बनाम पर्यावरण, भारत की भेद्यता।
उम्मीदवारों को इस घटना का विश्लेषण करते समय न केवल इसके तात्कालिक प्रभाव (जान-माल का नुकसान) पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि इसके मूल कारणों (भौगोलिक, जलवायु संबंधी, मानवजनित) और दीर्घकालिक समाधानों पर भी विचार करना चाहिए।
निष्कर्ष
धराली में हुई बादल फटने की घटना एक दुखद अनुस्मारक है कि प्रकृति की शक्ति के सामने हम कितने असहाय हो सकते हैं। यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि आधुनिक विकास को प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर ही आगे बढ़ाया जा सकता है। सरकारों, नीति निर्माताओं और नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे आपदा जोखिमों को कम करने, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करने और सतत विकास को प्राथमिकता देने के लिए मिलकर काम करें। केवल मजबूत नीतियाँ, प्रभावी कार्यान्वयन और जन जागरूकता के माध्यम से ही हम ऐसी भविष्य की त्रासदियों को कम कर सकते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘बादल फटने’ (Cloudburst) की घटना के लिए सबसे उपयुक्त है?
(a) जब किसी बड़े क्षेत्र में बहुत धीरे-धीरे भारी वर्षा होती है।
(b) जब एक छोटे से क्षेत्र में एक घंटे के भीतर 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
(c) जब हवा का तापमान अचानक बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) जब किसी क्षेत्र में हवा का दबाव तेजी से गिरता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: बादल फटना एक ऐसी घटना है जिसमें एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में बहुत कम समय (आमतौर पर एक घंटे के भीतर) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है। 100 मिमी प्रति घंटा (या 10 सेमी प्रति घंटा) एक सामान्य रूप से स्वीकृत सीमा है, हालांकि यह विभिन्न मौसम विज्ञान संगठनों के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है।
2. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता के संभावित कारण निम्नलिखित में से कौन से हैं?
1. तीव्र ढलान वाले भूभाग
2. कमजोर भूगर्भीय संरचना
3. वनस्पति आवरण में कमी
4. पश्चिमी विक्षोभों का प्रभाव
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: ये सभी कारक हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। तीव्र ढलान पानी और मलबे को तेज गति से नीचे ले जाता है, कमजोर भूगर्भीय संरचना भूस्खलन को बढ़ावा देती है, वनस्पति आवरण की कमी मिट्टी को अस्थिर करती है, और पश्चिमी विक्षोभ तथा अन्य मौसमी प्रणालियाँ तीव्र वर्षा का कारण बन सकती हैं।
3. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों और दिशा-निर्देशों के निर्माण के लिए जिम्मेदार है?
(a) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
(b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
(c) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
(d) केंद्रीय गृह मंत्रालय
उत्तर: (b)
व्याख्या: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक और नीति-निर्माण संस्था है। यह रोकथाम, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशानिर्देश तैयार करता है।
4. पहाड़ी इलाकों में बादल फटने से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रभावी उपाय नहीं है?
(a) प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास
(b) भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण पर रोक
(c) वनस्पति आवरण को बढ़ाना
(d) नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने वाले निर्माण को प्रोत्साहित करना
उत्तर: (d)
व्याख्या: नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने वाले निर्माण को प्रोत्साहित करना आपदा के जोखिम को बढ़ाएगा, न कि कम करेगा। यह बाढ़ और मलबे के प्रवाह को अप्रत्याशित बना सकता है। अन्य सभी विकल्प नुकसान को कम करने में सहायक हैं।
5. जलवायु परिवर्तन का बादल फटने की घटनाओं पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
1. वर्षा की तीव्रता में वृद्धि
2. वर्षा की आवृत्ति में कमी
3. तापमान में वृद्धि के कारण वायुमंडल में अधिक जलवाष्प का धारण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल अधिक जलवाष्प धारण कर सकता है, जिससे वर्षा की तीव्रता बढ़ सकती है। हालांकि, वर्षा की कुल मात्रा या आवृत्ति पर इसका प्रभाव जटिल है और क्षेत्र-विशिष्ट हो सकता है, लेकिन तीव्रता में वृद्धि एक प्रमुख चिंता का विषय है। ‘वर्षा की आवृत्ति में कमी’ निश्चित रूप से सही नहीं है, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में आवृत्ति बढ़ भी सकती है।
6. ‘कीचड़ का सैलाब’ (Mudslide) मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया का परिणाम है?
(a) हवा द्वारा रेत और धूल का उड़ना
(b) पानी द्वारा चट्टानों का कटाव
(c) भारी वर्षा के कारण मिट्टी, मलबा और पानी का मिश्रित रूप से तेजी से बहना
(d) ज्वालामुखी राख का जमा होना
उत्तर: (c)
व्याख्या: कीचड़ का सैलाब, जिसे मडफ्लो भी कहते हैं, तब होता है जब भारी वर्षा या बर्फ पिघलने से मिट्टी, चट्टान के टुकड़े, वनस्पति और पानी मिलकर एक गाढ़ा, बहने वाला पदार्थ बनाते हैं जो ढलान से नीचे तेजी से बहता है।
7. उत्तराखंड के धराली में हुई हालिया आपदा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है?
(a) घटना केवल 34 सेकंड तक चली।
(b) घटना के कारण 4 लोगों की मौत हुई और 50 से अधिक लोग लापता हैं।
(c) सैकड़ों घर और होटल मलबे में दब गए।
(d) इस घटना का कारण केवल एक भौगोलिक विसंगति थी, न कि किसी अन्य कारक का प्रभाव।
उत्तर: (d)
व्याख्या: नवीनतम समाचार रिपोर्टों के अनुसार, घटना की अवधि 34 सेकंड थी, 4 लोगों की मौत हुई और 50 से अधिक लापता हैं, तथा सैकड़ों घर मलबे में दब गए। हालांकि, इसका कारण केवल भौगोलिक विसंगति नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं।
8. पहाड़ी क्षेत्रों में ‘अति-विकास’ (Over-development) या अनियोजित विकास का आपदा प्रबंधन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
1. यह भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम को बढ़ा सकता है।
2. यह प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित कर सकता है।
3. यह बचाव कार्यों को कठिन बना सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: अनियोजित विकास, जैसे कि ढलानों पर निर्माण, वनों की कटाई, और नदियों के किनारे अतिक्रमण, भूस्खलन, बाढ़ और मलबे के प्रवाह के जोखिम को काफी बढ़ा देता है। यह प्राकृतिक जल निकासी को भी बाधित करता है और आपातकालीन सेवाओं के पहुँचने में बाधा उत्पन्न करता है।
9. ‘पश्चिमी विक्षोभ’ (Western Disturbance) का भारतीय उपमहाद्वीप पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(a) यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून को लाता है।
(b) यह भारत के मैदानी इलाकों में शीतकालीन वर्षा और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी लाता है।
(c) यह भारतीय प्रायद्वीप पर शुष्क और गर्म हवाएँ लाता है।
(d) यह पूर्वोत्तर भारत में भारी मानसून वर्षा का कारण बनता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाली वे मौसमी प्रणालियाँ हैं जो मुख्य रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा और बर्फबारी लाती हैं। यह हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात और निचले इलाकों में वर्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
10. आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR) के स्तंभों में निम्नलिखित में से किसे शामिल नहीं किया जाता है?
(a) जोखिम की समझ
(b) जोखिम को कम करना
(c) लचीलापन (Resilience) का निर्माण
(d) आपदा के तुरंत बाद राहत और पुनर्वास
उत्तर: (d)
व्याख्या: आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के मुख्य स्तंभों में जोखिम की समझ, जोखिम को कम करना, लचीलापन का निर्माण और तैयारी शामिल हैं। राहत और पुनर्वास (Response and Recovery) आपदा के घटित होने के बाद के चरण हैं, न कि जोखिम न्यूनीकरण के सक्रिय चरण।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. उत्तराखंड के धराली में हाल ही में हुई बादल फटने की घटना का विश्लेषण करते हुए, हिमालयी क्षेत्र में इस प्रकार की आपदाओं के लिए जिम्मेदार प्रमुख भौगोलिक, जलवायु संबंधी और मानवजनित कारकों पर प्रकाश डालिए। इसके दीर्घकालिक निवारण के लिए सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की विवेचना करें।
2. भारत में आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता पर हाल की घटनाओं (जैसे धराली की बादल फटना) के आलोक में एक आलोचनात्मक टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए। विशेष रूप से, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, अवसंरचनात्मक भेद्यताओं और सामुदायिक भागीदारी के महत्व पर जोर दें।
3. जलवायु परिवर्तन को एक ‘खतरे गुणक’ (Threat Multiplier) के रूप में देखते हुए, चर्चा करें कि यह भारत में बादल फटने जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को कैसे बढ़ा रहा है। पहाड़ी समुदायों को इस बढ़ते जोखिम से बचाने के लिए अनुकूलन (Adaptation) और शमन (Mitigation) रणनीतियों का वर्णन करें।
4. पहाड़ी क्षेत्रों में टिकाऊ विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है? धराली जैसी आपदाओं के संदर्भ में, स्थानीय समुदायों की आजीविका और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शहरी नियोजन, भवन कोड और भूमि उपयोग नीतियों में किन सुधारों की आवश्यकता है?