धरती पर लौटेंगे शुभांशु: अंतरिक्ष से पुन: प्रवेश का रोमांचक विज्ञान और भविष्य की राह

धरती पर लौटेंगे शुभांशु: अंतरिक्ष से पुन: प्रवेश का रोमांचक विज्ञान और भविष्य की राह

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

आज दोपहर शुभांशु नामक एक अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के वायुमंडल में अपने यान के साथ पुन: प्रवेश करने वाले हैं। यह घटना मात्र एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि मानव जाति की अंतरिक्ष यात्रा के एक नए अध्याय का प्रतीक है। अंतरिक्ष से पृथ्वी पर सफलतापूर्वक लौटना किसी भी मानव अंतरिक्ष मिशन का सबसे जटिल और खतरनाक चरणों में से एक होता है। यह उस विज्ञान, इंजीनियरिंग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक प्रमाण है जिसने हमें तारों तक पहुंचने और फिर सुरक्षित घर लौटने में सक्षम बनाया है। आइए, इस रोमांचक यात्रा के हर पहलू को गहराई से समझें और जानें कि यह घटना हमारे भविष्य के लिए क्या मायने रखती है।

अंतरिक्ष से वापसी: एक जटिल नृत्य (Return from Space: A Complex Dance)

अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटना, जितना सुनने में सरल लगता है, वास्तव में उससे कहीं अधिक जटिल और जोखिम भरा होता है। इसे ‘पुनः प्रवेश’ (Re-entry) कहा जाता है, और यह सिर्फ गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गिरने जैसा नहीं होता। इसमें सटीक गणना, अविश्वसनीय इंजीनियरिंग और चरम स्थितियों का सामना करना शामिल होता है।

पुनः प्रवेश का विज्ञान: क्यों यह इतना चुनौतीपूर्ण है? (The Science of Re-entry: Why is it so Challenging?)

कल्पना कीजिए कि कोई वस्तु पृथ्वी का चक्कर लगा रही है, लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटा (17,500 मील प्रति घंटा) की गति से। यह गति इतनी अधिक है कि इसे ‘कक्षीय वेग’ (Orbital Velocity) कहते हैं। जब किसी यान को इस गति से धीमा करके वायुमंडल में सुरक्षित रूप से लाना होता है, तो कई कारक मिलकर इसे एक भयावह चुनौती बना देते हैं:

  1. अत्यधिक गति और वायुमंडलीय घर्षण (Extreme Speed and Atmospheric Friction):
    • अंतरिक्ष यान जब पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो यह अभी भी अविश्वसनीय रूप से तेज गति से यात्रा कर रहा होता है।
    • जैसे ही यह वायुमंडल के सघन परतों में प्रवेश करता है, हवा के अणु यान से टकराते हैं, जिससे भारी घर्षण पैदा होता है।
    • यह घर्षण ऊर्जा को गर्मी में बदल देता है। सोचिए, एक माचिस की तीली को रगड़ने से कितनी गर्मी पैदा होती है? अब इसे अरबों गुना बढ़ा दीजिए! यान का बाहरी हिस्सा क्षण भर में हजारों डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है, जो सूर्य की सतह के तापमान के करीब होता है।
    • “यह किसी चट्टान को नदी में फेंकने जैसा नहीं है; यह एक उच्च गति वाली बुलेट को एक अदृश्य, चिपचिपी दीवार में फेंकने जैसा है जो तुरंत आग पकड़ लेती है।”

  2. प्लाज्मा शीथ (Plasma Sheath):
    • घर्षण से उत्पन्न अत्यधिक गर्मी इतनी तीव्र होती है कि यह यान के चारों ओर की हवा को आयनित कर देती है, जिससे एक चमकती हुई गैस बन जाती है जिसे ‘प्लाज्मा’ कहते हैं।
    • यह प्लाज्मा यान को एक तरह के विद्युत चुम्बकीय ‘कंबल’ से ढक लेता है। इस दौरान यान का पृथ्वी से संचार टूट जाता है, जिसे ‘ब्लैकआउट अवधि’ (Blackout Period) कहते हैं। यह अवधि कुछ मिनटों की हो सकती है, जो अंतरिक्ष यात्रियों और नियंत्रण कक्ष दोनों के लिए चिंता का विषय होती है।
  3. धीमा करने की चुनौती (Deceleration Challenge):
    • यान को सुरक्षित रूप से नीचे लाने के लिए उसे अपनी कक्षीय गति से लगभग शून्य तक धीमा करना होता है। यह मुख्य रूप से वायुमंडलीय घर्षण का उपयोग करके किया जाता है, जिसे ‘एरोब्रेकिंग’ (Aerobraking) कहते हैं।
    • यह प्रक्रिया धीरे-धीरे और नियंत्रित तरीके से होनी चाहिए, अन्यथा अत्यधिक जी-फोर्स (G-forces) अंतरिक्ष यात्रियों के लिए घातक हो सकते हैं और यान को संरचनात्मक क्षति हो सकती है।
  4. सटीक लैंडिंग (Precise Landing):
    • यान को वायुमंडल में इस तरह से प्रवेश करना होता है कि वह सही जगह पर, सुरक्षित गति से और इच्छित लैंडिंग स्थल पर उतरे।
    • यदि प्रवेश कोण बहुत उथला हो, तो यान वायुमंडल से ‘उछल’ कर वापस अंतरिक्ष में जा सकता है।
    • यदि प्रवेश कोण बहुत तीव्र हो, तो यान बहुत तेजी से धीमा होगा, अत्यधिक जी-फोर्स पैदा करेगा और जल सकता है या टूट सकता है। यह एक सुई में धागा डालने जैसा है, लेकिन हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की गति से!

तकनीकी समाधान: कैसे यान इन चुनौतियों का सामना करते हैं? (Technical Solutions: How Do Spacecraft Cope?)

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने कई अविश्वसनीय समाधान विकसित किए हैं:

  1. ताप कवच (Heat Shields):
    • यह शायद सबसे महत्वपूर्ण घटक है। अंतरिक्ष यान के जिस हिस्से का वायुमंडल से संपर्क होता है, उसे एक विशेष ताप कवच से ढका जाता है।
    • ये कवच आमतौर पर ‘एब्लेटिव’ (Ablative) सामग्री से बने होते हैं, जो अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने पर जलते हैं और वाष्पीकृत होते हैं। यह प्रक्रिया गर्मी को यान से दूर ले जाती है, ठीक वैसे ही जैसे पसीना शरीर को ठंडा करता है।
    • उदाहरण: अपोलो कमांड मॉड्यूल में एब्लेटिव हीट शील्ड का उपयोग किया गया था। स्पेस शटल ने सिरेमिक टाइल्स का उपयोग किया, जो गर्मी को अवशोषित और विकीर्ण करती थीं।
  2. एरोडायनामिक डिजाइन (Aerodynamic Design):
    • यान का आकार और डिजाइन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कैप्सूल जैसे आकार (जैसे सोयुज, अपोलो) स्वाभाविक रूप से वायुमंडलीय घर्षण का उपयोग करके धीमे होते हैं और गर्मी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं।
    • कुछ यान, जैसे स्पेस शटल, ‘डेल्टा विंग’ डिजाइन का उपयोग करते थे जो उन्हें ग्लाइड करने और अधिक नियंत्रित लैंडिंग करने की अनुमति देता था, लेकिन इसमें अधिक जटिलता और रखरखाव की आवश्यकता होती थी।
  3. थ्रस्टर्स और पैराशूट (Thrusts and Parachutes):
    • वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले, यान अपने थ्रस्टर्स का उपयोग करके अपनी गति को थोड़ा कम करते हैं और अपनी कक्षा को इस तरह समायोजित करते हैं कि वे सही प्रवेश पथ पर आ सकें।
    • एक बार जब यान सुरक्षित ऊंचाई पर धीमा हो जाता है, तो बड़े पैराशूट तैनात किए जाते हैं। ये पैराशूट यान को और धीमा करते हैं, जिससे सॉफ्ट लैंडिंग संभव हो पाती है (चाहे जमीन पर हो या पानी में)।
  4. नेविगेशन और मार्गदर्शन प्रणाली (Navigation and Guidance Systems):
    • यान को एक संकीर्ण ‘पुनः प्रवेश कॉरिडोर’ (Re-entry Corridor) के भीतर रहना होता है। अत्याधुनिक कंप्यूटर सिस्टम, सेंसर और जीपीएस जैसी प्रणालियाँ यान को अपने पथ पर बने रहने और हवा की स्थिति या अन्य बाहरी कारकों के कारण होने वाले किसी भी विचलन को ठीक करने में मदद करती हैं।

अंतरिक्ष अन्वेषण के लाभ: क्यों हम यह सब करते हैं? (Benefits of Space Exploration: Why Do We Do All This?)

शुभांशु शुक्ला जैसे अंतरिक्ष यात्रियों की घर वापसी की घटना हमें एक महत्वपूर्ण सवाल पूछने पर मजबूर करती है: इतनी जोखिम भरी और महंगी अंतरिक्ष यात्राएं क्यों आवश्यक हैं? इसके कई दूरगामी लाभ हैं:

  1. वैज्ञानिक खोज और ज्ञान का विस्तार (Scientific Discovery and Expansion of Knowledge):
    • अंतरिक्ष हमें ब्रह्मांड, हमारे सौर मंडल और स्वयं पृथ्वी के बारे में अभूतपूर्व जानकारी प्रदान करता है।
    • ग्रहों, तारों और आकाशगंगाओं का अध्ययन हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास को समझने में मदद करता है।
    • सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में जीवन के अध्ययन से मानव शरीर पर अंतरिक्ष के प्रभावों को समझने में मदद मिलती है, जिससे पृथ्वी पर चिकित्सा विज्ञान में भी प्रगति हो सकती है।
  2. तकनीकी नवाचार और स्पिन-ऑफ (Technological Innovation and Spin-offs):
    • अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए विकसित की गई कई प्रौद्योगिकियाँ हमारे दैनिक जीवन में क्रांति ला चुकी हैं।
    • जीपीएस, उपग्रह टीवी, मौसम पूर्वानुमान, उन्नत चिकित्सा इमेजिंग (जैसे एमआरआई), मेमोरी फोम, जल शोधन प्रणाली और यहां तक कि स्क्रैच-प्रतिरोधी लेंस भी अंतरिक्ष अनुसंधान से सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हैं।
    • “अंतरिक्ष अनुसंधान सिर्फ रॉकेट और उपग्रहों के बारे में नहीं है; यह मानवता की रचनात्मकता और नवाचार को चरम पर धकेलने के बारे में है, जिससे हमारे जीवन को बेहतर बनाने वाले अप्रत्याशित लाभ मिलते हैं।”

  3. राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और सॉफ्ट पावर (National Prestige and Soft Power):
    • सफल अंतरिक्ष मिशन किसी भी देश के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन होते हैं।
    • यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है और सॉफ्ट पावर के रूप में कार्य करता है, जिससे वैज्ञानिक सहयोग और कूटनीति के अवसर खुलते हैं।
  4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति (International Cooperation and Peace):
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) जैसी परियोजनाएँ विभिन्न देशों को एक साझा वैज्ञानिक लक्ष्य के लिए मिलकर काम करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
    • यह सहयोग राजनीतिक मतभेदों से परे जाकर एक साझा मानवता के लक्ष्य को बढ़ावा देता है।
  5. पर्यावरण निगरानी और आपदा प्रबंधन (Environmental Monitoring and Disaster Management):
    • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह हमें जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, समुद्री स्तर में वृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं (तूफान, बाढ़, भूकंप) की निगरानी करने में मदद करते हैं।
    • यह जानकारी आपदा तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।

चुनौतियाँ और जोखिम (Challenges and Risks)

हालांकि अंतरिक्ष अन्वेषण के लाभ कई हैं, लेकिन यह अपनी चुनौतियों और जोखिमों से भी भरा है:

  1. लागत (Cost):
    • अंतरिक्ष मिशन, विशेष रूप से मानव मिशन, अविश्वसनीय रूप से महंगे होते हैं। रॉकेट का निर्माण, प्रक्षेपण, प्रशिक्षण और अनुसंधान में अरबों डॉलर खर्च होते हैं।
    • यह अक्सर बहस का विषय होता है कि क्या यह धन सामाजिक जरूरतों के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सकता है।
  2. अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जोखिम (Risks to Astronauts):
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान में अंतर्निहित जोखिम होते हैं, जिसमें प्रक्षेपण और पुनः प्रवेश के दौरान विफलता, अंतरिक्ष में विकिरण के संपर्क में आना और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव शामिल हैं।
    • दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाएँ, जैसे कोलंबिया और चैलेंजर स्पेस शटल आपदाएँ, इन जोखिमों की याद दिलाती हैं।
  3. अंतरिक्ष मलबा (Space Debris):
    • टूटे हुए उपग्रहों के टुकड़े, खर्च किए गए रॉकेट चरण और मिशनों से उत्पन्न अन्य मलबे पृथ्वी की कक्षा में तेजी से बढ़ रहे हैं।
    • ये छोटे कण भी इतनी तेज गति से यात्रा करते हैं कि वे सक्रिय उपग्रहों या अंतरिक्ष यानों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ (Kessler Syndrome) के रूप में जाना जाता है, जहां एक टक्कर से अधिक मलबा पैदा होता है, जिससे आगे की टक्करें होती हैं।
  4. अंतरिक्ष में हथियार और भू-राजनीति (Weaponization of Space and Geopolitics):
    • अंतरिक्ष का सैन्यीकरण और ‘एंटी-सैटेलाइट’ (ASAT) हथियारों का विकास एक बढ़ती हुई चिंता है।
    • अंतरिक्ष संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा से भविष्य में संघर्षों का खतरा पैदा हो सकता है।
    • बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं, लेकिन चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  5. नैतिक और कानूनी मुद्दे (Ethical and Legal Issues):
    • अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज के दौरान ‘ग्रहीय सुरक्षा’ (Planetary Protection) सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है ताकि पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों द्वारा अन्य ग्रहों को दूषित न किया जा सके और इसके विपरीत भी।
    • अंतरिक्ष में खनन, अंतरिक्ष पर्यटन और अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों से संबंधित कानूनी और नियामक ढाँचे को विकसित करने की आवश्यकता है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा और मानव अंतरिक्ष उड़ान (India’s Space Journey and Human Spaceflight)

भारत ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा में उल्लेखनीय प्रगति की है और मानव अंतरिक्ष उड़ान के क्षेत्र में भी अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

  1. इसरो की उपलब्धियां (ISRO’s Achievements):
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कम लागत वाले, विश्वसनीय अंतरिक्ष मिशनों के लिए विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त की है।
    • चंद्रयान (चंद्रमा पर), मंगलयान (मंगल पर), और एक साथ कई उपग्रहों को लॉन्च करने की क्षमता जैसी उपलब्धियों ने भारत को एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया है।
    • “भारत की अंतरिक्ष यात्रा डॉ. विक्रम साराभाई के दूरदर्शी नेतृत्व से शुरू हुई, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण और सामाजिक विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता को पहचाना।”

  2. गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission):
    • यह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है, जिसका लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है।
    • उद्देश्य: इस मिशन का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भरता और तकनीकी क्षमताओं के मामले में एक बड़ी छलांग देना है। यह अनुसंधान, नवाचार और राष्ट्रीय गौरव के नए रास्ते खोलेगा।
    • प्रौद्योगिकी विकास: गगनयान के लिए कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित की जा रही हैं, जिनमें क्रू मॉड्यूल, सेवा मॉड्यूल, प्रक्षेपण यान (GSLV Mk-III का मानव-रेटेड संस्करण), पुनः प्रवेश और रिकवरी सिस्टम, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण और जीवन समर्थन प्रणाली शामिल हैं।
    • पुनः प्रवेश प्रौद्योगिकी में क्षमता: इसरो ने पहले ही पुनः प्रवेश क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, जैसे कि ‘स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट’ (SRE-01) मिशन (2007) और ‘केयर’ (Crew module Atmospheric Re-entry Experiment) मिशन (2014) और ‘रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल – टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर’ (RLV-TD) मिशन (2016)। ये परीक्षण बताते हैं कि भारत में सुरक्षित पुनः प्रवेश के लिए आवश्यक विशेषज्ञता है।
  3. अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण (Astronaut Training):
    • गगनयान के लिए चुने गए भारतीय वायुसेना के पायलटों को रूस में प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है, और अब वे भारत में उन्नत प्रशिक्षण ले रहे हैं। इसमें सिम्युलेटर प्रशिक्षण, चिकित्सा परीक्षण और जीवन समर्थन प्रणालियों का उपयोग शामिल है।

भविष्य की राह: सतत अंतरिक्ष अन्वेषण (Way Forward: Sustainable Space Exploration)

शुभांशु शुक्ला जैसे अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी हमें भविष्य के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है। अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य रोमांचक और चुनौतीपूर्ण दोनों है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख तत्व शामिल होंगे:

  1. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार (Expanding International Cooperation):
    • बड़े और अधिक जटिल मिशनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी आवश्यक होगी, जैसे चंद्रमा पर मानव का स्थायी बेस बनाना या मंगल पर मिशन भेजना।
    • संसाधनों, विशेषज्ञता और जोखिमों को साझा करना अंतरिक्ष अन्वेषण को अधिक सुलभ और सफल बना देगा।
  2. पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (Reusable Launch Vehicles – RLV):
    • स्पेसएक्स के फाल्कन 9 जैसे आरएलवी ने अंतरिक्ष तक पहुंच की लागत में काफी कमी की है।
    • भविष्य में, आरएलवी और भी उन्नत होंगे, जिससे अंतरिक्ष यात्रा नियमित और सस्ती हो जाएगी, जिससे अंतरिक्ष पर्यटन और वाणिज्यिक गतिविधियों का मार्ग प्रशस्त होगा। इसरो भी अपने आरएलवी-टीडी कार्यक्रम पर काम कर रहा है।
  3. चंद्रमा और मंगल पर मानव बस्तियां (Human Settlements on Moon and Mars):
    • मानव सभ्यता के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए अंतरिक्ष में बहु-ग्रहीय उपस्थिति एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
    • आर्टेमिस कार्यक्रम (नासा के नेतृत्व में) और चीन के चंद्र मिशन जैसे प्रयास चंद्रमा पर मानव की वापसी और अंततः स्थायी बस्तियों की स्थापना की दिशा में एक कदम हैं।
    • मंगल ग्रह अगला बड़ा लक्ष्य है, जिसके लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है।
  4. अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग (Space Resource Utilization – ISRU):
    • चंद्रमा और क्षुद्रग्रहों पर पानी, हीलियम-3 और दुर्लभ धातुओं जैसे संसाधनों की पहचान की गई है।
    • इन संसाधनों का खनन और उपयोग अंतरिक्ष मिशनों को आत्मनिर्भर बना सकता है और पृथ्वी पर संसाधनों के बोझ को कम कर सकता है।
  5. अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन और मलबा शमन (Space Traffic Management and Debris Mitigation):
    • अंतरिक्ष में बढ़ती गतिविधि के साथ, उपग्रहों और मलबे के बीच टकराव से बचने के लिए प्रभावी अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणालियों की आवश्यकता होगी।
    • भविष्य के मिशनों को इस तरह से डिजाइन किया जाएगा जो कम मलबा पैदा करें, और सक्रिय मलबा हटाने वाली प्रौद्योगिकियों का भी विकास किया जा रहा है।

निष्कर्ष (Conclusion)

शुभांशु शुक्ला की सुरक्षित घर वापसी एक अनुस्मारक है कि मानव की अदम्य भावना और वैज्ञानिक उद्यम हमें कितनी दूर ले जा सकते हैं। यह घटना न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। अंतरिक्ष की विशालता में हमारे कदम अभी छोटे हैं, लेकिन प्रत्येक वापसी, प्रत्येक नई खोज हमें ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने और मानवता के भविष्य को सुरक्षित करने के करीब लाती है। यह हमें सिखाता है कि दृढ़ संकल्प, नवाचार और सहयोग के साथ, कोई भी सीमा पहुंच से बाहर नहीं है – चाहे वह पृथ्वी के वायुमंडल में सुरक्षित रूप से पुन: प्रवेश करना हो या सुदूर तारों तक पहुंचना हो। भविष्य हमें बुला रहा है, और हम तैयार हैं!

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. पुनः प्रवेश के दौरान अंतरिक्ष यान के चारों ओर बनने वाले ‘प्लाज्मा शीथ’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह वायुमंडल में अत्यधिक घर्षण के कारण हवा के अणुओं के आयनीकरण से बनता है।
    2. यह यान के संचार को पृथ्वी से बाधित कर सकता है, जिसे ‘ब्लैकआउट अवधि’ कहते हैं।
    3. यह मुख्यतः यान को ठंडा करने में मदद करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल a और b
    (B) केवल b और c
    (C) केवल a और c
    (D) a, b और c

    उत्तर: (A)
    व्याख्या: पुनः प्रवेश के दौरान अत्यधिक गति और घर्षण के कारण वायुमंडल में हवा के अणु आयनित हो जाते हैं, जिससे प्लाज्मा शीथ बनता है (कथन a सही है)। यह प्लाज्मा यान के रेडियो संकेतों को बाधित करता है, जिससे ब्लैकआउट अवधि होती है (कथन b सही है)। प्लाज्मा शीथ यान को ठंडा करने में सीधे मदद नहीं करता, बल्कि यह ऊष्मा का एक परिणाम है और संचार को बाधित करता है (कथन c गलत है)।

  2. निम्नलिखित में से कौन-सी तकनीकें अंतरिक्ष यान के पुनः प्रवेश के दौरान अत्यधिक गर्मी से बचाने में सहायक हैं?

    1. एब्लेटिव ताप कवच
    2. सिरेमिक टाइल्स
    3. एरोब्रेकिंग

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (A) केवल 1 और 2
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (A)
    व्याख्या: एब्लेटिव ताप कवच (जैसे अपोलो) और सिरेमिक टाइल्स (जैसे स्पेस शटल) दोनों को अत्यधिक पुनः प्रवेश गर्मी से यान को बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है (कथन 1 और 2 सही हैं)। एरोब्रेकिंग वायुमंडलीय घर्षण का उपयोग करके यान को धीमा करने की प्रक्रिया है, जो गर्मी पैदा करती है, न कि उसे बचाती है, हालांकि नियंत्रित एरोब्रेकिंग गर्मी के भार को प्रबंधित करने में मदद करती है (कथन 3 गलत है, क्योंकि यह सीधे “बचाने” वाली तकनीक नहीं है, बल्कि एक धीमा करने की प्रक्रिया है जो गर्मी पैदा करती है)।

  3. ‘केसलर सिंड्रोम’ शब्द किससे संबंधित है?
    (A) एक अंतरिक्ष यान के अत्यधिक जी-फोर्स के कारण संरचनात्मक विफलता।
    (B) पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष मलबे के कारण होने वाली टक्करों की श्रृंखला।
    (C) अंतरिक्ष में विकिरण के संपर्क में आने से होने वाली मानव स्वास्थ्य समस्या।
    (D) मंगल ग्रह पर तरल पानी की खोज।

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: केसलर सिंड्रोम एक परिदृश्य का वर्णन करता है जहां पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष मलबे का घनत्व इतना अधिक हो जाता है कि एक टक्कर से अधिक मलबा पैदा होता है, जिससे अन्य अंतरिक्ष यानों से टकराने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे एक चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है।

  4. भारत के गगनयान मिशन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना है।
    2. इसके लिए GSLV Mk-III के मानव-रेटेड संस्करण का उपयोग किया जाएगा।
    3. भारतीय वायुसेना के पायलटों को इस मिशन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल 1 और 2
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (D)
    व्याख्या: गगनयान मिशन का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में भेजना है (कथन 1 सही है)। यह मिशन GSLV Mk-III के मानव-रेटेड संस्करण का उपयोग करेगा (कथन 2 सही है)। भारतीय वायुसेना के पायलटों को इस मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्री के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है (कथन 3 सही है)।

  5. निम्नलिखित में से कौन-सा ISRO का पुनः प्रवेश प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन नहीं है?
    (A) स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट (SRE-01)
    (B) क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट (CARE)
    (C) रियूजेबल लॉन्च व्हीकल – टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर (RLV-TD)
    (D) मंगलयान

    उत्तर: (D)
    व्याख्या: SRE-01, CARE और RLV-TD सभी ISRO के पुनः प्रवेश प्रौद्योगिकी और संबंधित प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन मिशन थे। मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन – MOM) मंगल ग्रह के लिए एक इंटरप्लेनेटरी मिशन था, जिसमें पुनः प्रवेश तकनीक का सीधा प्रदर्शन शामिल नहीं था, हालांकि इसके लिए उन्नत नेविगेशन और प्रोपल्शन की आवश्यकता थी।

  6. बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है।
    2. यह राज्यों को चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर संप्रभुता का दावा करने से रोकता है।
    3. यह राज्यों को बाह्य अंतरिक्ष में अन्वेषण और उपयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल 1 और 2
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: बाह्य अंतरिक्ष संधि हथियारों के कुछ प्रकारों (जैसे सामूहिक विनाश के हथियार) के अंतरिक्ष में परिनियोजन पर प्रतिबंध लगाती है, लेकिन यह अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं करती है (कथन 1 गलत है)। यह राज्यों को चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर संप्रभुता का दावा करने से रोकता है (कथन 2 सही है)। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है (कथन 3 सही है)।

  7. अंतरिक्ष कार्यक्रमों से संबंधित ‘स्पिन-ऑफ’ उत्पादों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा अंतरिक्ष अनुसंधान का सीधा परिणाम नहीं है?
    (A) जीपीएस नेविगेशन प्रणाली
    (B) मेमोरी फोम
    (C) नॉन-स्टिक कुकवेयर (टेफ्लॉन)
    (D) आधुनिक जल शोधन प्रणाली

    उत्तर: (C)
    व्याख्या: जीपीएस, मेमोरी फोम और उन्नत जल शोधन प्रणालियाँ अंतरिक्ष अनुसंधान से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विकसित हुई हैं। टेफ्लॉन (पॉलीटेट्राफ्लोरोएथिलीन) का आविष्कार 1938 में ड्यूपॉन्ट में किया गया था और यह अंतरिक्ष कार्यक्रम से पहले का है, हालांकि इसका उपयोग बाद में अंतरिक्ष अनुप्रयोगों में भी किया गया।

  8. अंतरिक्ष यान के पुनः प्रवेश के संदर्भ में ‘ब्लैकआउट अवधि’ का क्या अर्थ है?
    (A) वह अवधि जब अंतरिक्ष यान बिजली की कमी के कारण निष्क्रिय हो जाता है।
    (B) वह अवधि जब अत्यधिक गर्मी के कारण संचार प्रणाली विफल हो जाती है।
    (C) वह अवधि जब यान वायुमंडलीय घर्षण के कारण प्लाज्मा शीथ से घिरा होता है, जिससे रेडियो संचार बाधित होता है।
    (D) वह अवधि जब अंतरिक्ष यात्री अत्यधिक जी-फोर्स के कारण बेहोश हो जाते हैं।

    उत्तर: (C)
    व्याख्या: ब्लैकआउट अवधि वह समय होता है जब अंतरिक्ष यान के पुनः प्रवेश के दौरान, अत्यधिक गर्मी से उत्पन्न प्लाज्मा शीथ रेडियो संकेतों को अवरुद्ध कर देता है, जिससे यान और पृथ्वी के बीच संचार बाधित हो जाता है।

  9. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है?
    (A) चंद्रमा पर मानव बस्ती स्थापित करना।
    (B) विभिन्न देशों के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना।
    (C) मंगल पर नमूना वापसी मिशन संचालित करना।
    (D) अंतरिक्ष मलबे को कक्षा से हटाना।

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे विभिन्न देश एक साझा वैज्ञानिक लक्ष्य के लिए मिलकर काम कर सकते हैं, जिससे वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिलता है।

  10. ‘प्लैनेटरी प्रोटेक्शन’ (Planetary Protection) शब्द निम्नलिखित में से किससे सबसे अच्छी तरह संबंधित है?
    (A) पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों के प्रभावों से बचाना।
    (B) पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों द्वारा अन्य खगोलीय पिंडों को दूषित होने से रोकना।
    (C) सौर विकिरण से अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    (D) अंतरिक्ष में मानव निर्मित मलबे से उपग्रहों की रक्षा करना।

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: प्लैनेटरी प्रोटेक्शन उन सिद्धांतों और प्रथाओं को संदर्भित करता है जिनका उद्देश्य पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों द्वारा अन्य खगोलीय पिंडों (जैसे मंगल) के जैविक संदूषण को रोकना और इसके विपरीत भी, ताकि वैज्ञानिक अध्ययनों की अखंडता बनी रहे।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. अंतरिक्ष से किसी मानवयुक्त यान का पृथ्वी पर पुनः प्रवेश तकनीकी और इंजीनियरिंग की एक जटिल चुनौती क्यों है? इस प्रक्रिया में शामिल प्रमुख वैज्ञानिक सिद्धांतों और सुरक्षा तंत्रों का विस्तृत वर्णन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)
  2. मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों में निवेश के पीछे के प्रमुख औचित्य क्या हैं? अंतरिक्ष अन्वेषण से प्राप्त होने वाले वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक लाभों की विवेचना कीजिए, साथ ही इससे जुड़ी प्रमुख चुनौतियों और जोखिमों पर भी प्रकाश डालिए। (15 अंक, 250 शब्द)
  3. भारत के गगनयान मिशन के संदर्भ में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताएं विकसित करने के लिए किन महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और परीक्षणों का सहारा लिया है? भविष्य में भारत की अंतरिक्ष यात्रा में इस मिशन का क्या महत्व है? (10 अंक, 150 शब्द)
  4. अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, पुन: प्रयोज्य प्रणालियों और अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग पर निर्भर करेगा। इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और चर्चा कीजिए कि अंतरिक्ष के सतत और शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए किन उपायों की आवश्यकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

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