दो-राज्य समाधान: भारत की शांति पहल और मध्य पूर्व का जटिल जाल
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत ने फिलिस्तीन में शांति स्थापना के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बैठक में भाग लिया। इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें अमेरिका और फ्रांस जैसे प्रमुख देशों के बीच इस मुद्दे पर विचारों का टकराव देखने को मिला। यह घटना भारत की विदेश नीति में मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के प्रति उसकी बढ़ती सक्रियता को दर्शाती है, साथ ही यह भी उजागर करती है कि इस क्षेत्र में शांति की राह कितनी दुष्कर है। UPSC की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह विषय न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भू-राजनीति, कूटनीति और ऐतिहासिक संदर्भों की गहरी समझ भी प्रदान करता है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस जटिल मुद्दे के हर पहलू को विश्लेषित करेगा, जिसमें दो-राज्य समाधान क्या है, भारत की भूमिका, अमेरिका-फ्रांस जैसे देशों के भिन्न मत, और इस राह में आने वाली चुनौतियाँ शामिल हैं।
दो-राज्य समाधान: एक जटिल पहेली (The Two-State Solution: A Complex Puzzle)
दो-राज्य समाधान, इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत और प्रस्तावित समाधान है। इसका मूल विचार यह है कि फिलिस्तीनियों के लिए एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य की स्थापना की जाए, जो इजरायल राज्य के साथ शांति और सुरक्षा में रह सके। सरल शब्दों में, यह दो अलग-अलग देशों की परिकल्पना है: एक इजरायल और दूसरा फिलिस्तीन।
मुख्य सिद्धांत (Core Principles):**
- भौगोलिक आधार (Territorial Basis):** 1967 के युद्ध से पहले की सीमाओं को अक्सर आधार माना जाता है, जिसमें भूमि के कुछ आदान-प्रदान (land swaps) की अनुमति हो सकती है।
- राजधानी (Capital):** पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीनी राज्य की राजधानी और पश्चिमी यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता।
- शरणार्थियों का मुद्दा (Refugee Issue):** फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी या मुआवजे का समाधान।
- सुरक्षा व्यवस्था (Security Arrangements):** इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए प्रभावी सुरक्षा तंत्र।
यह समाधान दशकों से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा समर्थित है, लेकिन इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के भीतर इसके कार्यान्वयन पर गहरे मतभेद हैं।
भारत की भूमिका: शांति का समर्थक (India’s Role: A Supporter of Peace)
भारत ने हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया है और दो-राज्य समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में भारत की भागीदारी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context):**
- भारत ने 1947 में संयुक्त राष्ट्र के विभाजन योजना (UN Partition Plan) के समय से ही फिलिस्तीनी मुद्दे पर एक स्पष्ट रुख अपनाया है।
- 1974 में, भारत फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
- 1988 में, भारत फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
- भारत ने हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के लिए मानवीय सहायता प्रदान की है और उनके पुनर्निर्माण प्रयासों में सहयोग किया है।
वर्तमान दृष्टिकोण (Current Stance):**
- भारत का मानना है कि इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का समाधान बातचीत के माध्यम से होना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के अनुरूप हो।
- भारत इस क्षेत्र में हिंसा के किसी भी कृत्य की निंदा करता है और दोनों पक्षों से संयम बरतने का आग्रह करता है।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत की भागीदारी शांतिपूर्ण समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करने की उसकी इच्छा को दर्शाती है।
भारत की यह भूमिका ‘वेस्टर्न इकॉनोमिक फोरम’ (WEF) के उस सिद्धांत के समान है जहाँ वह केवल आर्थिक विकास पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता पर भी ध्यान केंद्रित करता है। मध्य पूर्व में भारत की सक्रियता उसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के विस्तार के रूप में भी देखी जा सकती है, जो इन महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षेत्रों में उसकी बढ़ती उपस्थिति को रेखांकित करती है।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: अमेरिका बनाम फ्रांस (International Perspectives: US vs. France)
संयुक्त राष्ट्र की बैठक में अमेरिका और फ्रांस के बीच मतभेद का सामने आना इस मुद्दे की जटिलता को और बढ़ा देता है। विभिन्न देश इस संघर्ष को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं, जो उनके राष्ट्रीय हितों, ऐतिहासिक संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों से प्रभावित होते हैं।
अमेरिका का दृष्टिकोण (US Stance):**
- अमेरिका ऐतिहासिक रूप से इजरायल का एक मजबूत सहयोगी रहा है।
- हाल के वर्षों में, अमेरिका ने इजरायल के हितों को प्राथमिकता दी है, जैसे कि यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देना और गोलान हाइट्स पर उसके संप्रभुता के दावे का समर्थन करना।
- अमेरिका एक दो-राज्य समाधान का समर्थन करता है, लेकिन उसके कार्यान्वयन के तरीकों पर उसके विचार अक्सर इजरायल के साथ संरेखित होते हैं।
- वह इजरायल की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
फ्रांस का दृष्टिकोण (France’s Stance):**
- फ्रांस, यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में, एक ऐसे समाधान का पुरजोर समर्थन करता है जो फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों को भी सुनिश्चित करे।
- फ्रांस 1967 की सीमाओं पर आधारित और कुछ भूमि आदान-प्रदान के साथ दो-राज्य समाधान का पक्षधर है।
- वह पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीनी राज्य की राजधानी के रूप में मान्यता देने का समर्थन करता है।
- फ्रांस इजरायल बस्तियों (Israeli settlements) के निर्माण को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानता है।
अन्य प्रमुख देशों के मत (Views of Other Key Nations):**
- रूस (Russia):** रूस भी दो-राज्य समाधान का समर्थन करता है और इजरायल-फिलिस्तीनी शांति प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने का इच्छुक रहा है।
- यूरोपीय संघ (European Union):** ईयू आम तौर पर फ्रांस के रुख का समर्थन करता है, जो 1967 की सीमाओं और पूर्वी यरुशलम को राजधानी के रूप में दो-राज्य समाधान पर आधारित है।
- अरब देश (Arab Nations):** अधिकांश अरब देश फिलिस्तीन के समर्थन में हैं और एक ऐसे समाधान की वकालत करते हैं जो फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करे। हालांकि, इजरायल के साथ सामान्यीकरण (normalization) की प्रक्रिया ने कुछ अरब देशों के रुख में सूक्ष्म बदलाव लाए हैं।
यह टकराव एक “ट्रम्पेट वाल्व” (Trumpet Valve) की तरह काम करता है, जहाँ एक छोटा सा बदलाव भी बड़े पैमाने पर दबाव या प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इन विभिन्न मतों का टकराव समाधान की राह को और जटिल बना देता है।
दो-राज्य समाधान की राह में चुनौतियाँ (Challenges in the Path of the Two-State Solution)
दो-राज्य समाधान का विचार सैद्धांतिक रूप से आकर्षक लग सकता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई गंभीर बाधाएं हैं। ये बाधाएं इतनी गहरी और जटिल हैं कि इसने कई वर्षों से प्रगति को रोक रखा है।
1. सीमाएँ और बस्तियाँ (Borders and Settlements):**
- 1967 की रेखाएं (1967 Lines):** इजरायल ने 1967 के युद्ध में वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया था। फिलिस्तीनी इन क्षेत्रों में एक स्वतंत्र राज्य चाहते हैं। इजरायल का तर्क है कि 1967 की सीमाएं “असुरक्षित” हैं और वह बड़े पैमाने पर भूमि विनिमय (land swaps) की मांग करता है।
- इजरायली बस्तियाँ (Israeli Settlements):** वेस्ट बैंक में इजरायल द्वारा निर्मित बस्तियाँ एक बड़ी बाधा हैं। अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, ये बस्तियाँ अवैध मानी जाती हैं। इन बस्तियों में लाखों इजरायली नागरिक रहते हैं, और इनकी उपस्थिति एक व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य के लिए आवश्यक भौगोलिक निरंतरता को बाधित करती है। इन बस्तियों को हटाना या उनका क्या होगा, यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है।
2. यरुशलम की स्थिति (Status of Jerusalem):**
- यरुशलम, यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए एक पवित्र शहर है। दोनों पक्ष इसे अपनी राजधानी मानते हैं।
- पूर्वी यरुशलम, जिस पर इजरायल ने 1967 के बाद कब्जा किया था, फिलिस्तीनियों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की राजधानी का केंद्र है।
- यरुशलम का विभाजन या संयुक्त राजधानी का विचार अत्यंत जटिल है और संवेदनशील धार्मिक और राजनीतिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है।
3. फिलिस्तीनी शरणार्थियों का मुद्दा (The Issue of Palestinian Refugees):**
- 1948 और 1967 के युद्धों के दौरान लाखों फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए थे।
- फिलिस्तीनी “वापसी के अधिकार” (Right of Return) की मांग करते हैं, जिसके तहत शरणार्थियों को उनके मूल घरों में लौटने का अधिकार मिलना चाहिए।
- इजरायल का तर्क है कि यह उसकी राष्ट्रीय पहचान और जनसांख्यिकी (demographics) के लिए खतरा पैदा करेगा, और वह इसके बजाय शरणार्थियों के लिए मुआवजे की पेशकश करता है।
- यह मुद्दा भावनात्मक और ऐतिहासिक रूप से बहुत गहरा है, और इसका समाधान दोनों पक्षों के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण है।
4. सुरक्षा चिंताएँ (Security Concerns):**
- इजरायल की मुख्य चिंता उसकी सुरक्षा है। वह ऐसे किसी भी समाधान को स्वीकार नहीं करना चाहता जो उसे हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दे।
- फिलिस्तीनी राज्य की सेना, हथियार नियंत्रण और सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर इजरायल की चिंताएं वास्तविक हैं।
- गाजा पट्टी में हमास जैसे समूहों की उपस्थिति और उनकी विचारधारा, इजरायल के लिए एक निरंतर सुरक्षा चुनौती प्रस्तुत करती है।
5. आंतरिक विभाजन (Internal Divisions):**
- इजरायल के भीतर (Within Israel):** इजरायल के भीतर भी दो-राज्य समाधान को लेकर मतभेद हैं। कुछ पार्टियां शांति के लिए भूमि देने को तैयार हैं, जबकि अन्य बस्तियों का विस्तार करने और फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को रोकने पर जोर देते हैं।
- फिलिस्तीनियों के भीतर (Within Palestinians):** फिलिस्तीनी राजनीतिक परिदृश्य भी विभाजित है। वेस्ट बैंक में फतह (Fatah) और गाजा पट्टी में हमास के बीच विभाजन, एक एकीकृत फिलिस्तीनी आवाज की कमी को दर्शाता है। हमास, इजरायल को मान्यता नहीं देता है और सशस्त्र संघर्ष का समर्थन करता है, जो दो-राज्य समाधान की संभावनाओं को और कम करता है।
6. अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप और हित (International Intervention and Interests):**
- मध्य पूर्व में विभिन्न देशों के हित हैं, जो इस संघर्ष को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
- प्रमुख शक्तियों के बीच मतभेद, जैसे कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच, शांति प्रक्रिया को और जटिल बना देते हैं।
इन चुनौतियों को समझना ‘जटिलता के त्रिकोण’ (Triangle of Complexity) को समझने जैसा है, जहाँ हर कोना दूसरे को प्रभावित करता है और एक सर्वसम्मत समाधान निकालना अत्यंत कठिन हो जाता है।
भविष्य की राह: क्या संभव है? (The Way Forward: What is Possible?)
जब हम दो-राज्य समाधान की संभावनाओं पर विचार करते हैं, तो यह एक “आशा और निराशा के बीच झूलता हुआ” (Swinging between hope and despair) परिदृश्य लगता है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, इस समाधान का शीघ्र कार्यान्वयन कठिन लग रहा है। फिर भी, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और इसमें शामिल पक्षों के लिए कुछ संभावित रास्ते हो सकते हैं:
1. निरंतर कूटनीतिक प्रयास (Continued Diplomatic Efforts):**
- संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं के माध्यम से निरंतर कूटनीतिक संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- प्रमुख शक्तियों को मतभेदों को पाटने और सर्वसम्मत समाधान की ओर बढ़ने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
- भारत जैसे देश, जो दोनों पक्षों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हैं, मध्यस्थता की भूमिका निभा सकते हैं।
2. जमीनी स्तर पर सुधार (Ground-level Improvements):**
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“शांति केवल देशों के बीच समझौते से नहीं, बल्कि लोगों के दिलों और दिमागों में भी स्थापित होती है।”
- फिलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवीय स्थिति में सुधार, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के उपाय करना, विश्वास बहाली के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
- बस्तियों के विस्तार पर रोक लगाना और इजरायल को अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है।
3. वैकल्पिक समाधानों पर विचार (Consideration of Alternative Solutions):**
- हालांकि दो-राज्य समाधान सबसे अधिक स्वीकृत है, लेकिन कुछ लोग “एक-राज्य समाधान” (One-State Solution) जैसे वैकल्पिक विचारों पर भी विचार कर रहे हैं, जहाँ इजरायल और फिलिस्तीन एक संयुक्त, लोकतांत्रिक राज्य के रूप में रह सकते हैं। हालांकि, इस विचार की अपनी चुनौतियाँ हैं, जैसे कि दोनों समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा और राष्ट्रीय पहचान का प्रश्न।
- “संघीय राज्य” (Confederation) का विचार भी सामने आया है, जहाँ दो स्वतंत्र राज्य एक-दूसरे के साथ जुड़े रहेंगे।
4. भारत की भूमिका का विस्तार (Expansion of India’s Role):**
- भारत अपनी “विश्व गुरु” (Vishwaguru) की छवि को मजबूत करते हुए, इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
- मानवीय सहायता, विकास सहायता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भारत फिलिस्तीनी लोगों के साथ अपने संबंध मजबूत कर सकता है, साथ ही इजरायल के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी बनाए रख सकता है।
यह समझना आवश्यक है कि मध्य पूर्व का मुद्दा केवल इजरायल और फिलिस्तीन का द्विपक्षीय मामला नहीं है, बल्कि यह एक जटिल भू-राजनीतिक समीकरण है जिसमें कई देशों के हित जुड़े हुए हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: दो-राज्य समाधान के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा प्रस्ताव आमतौर पर स्वीकार किया जाता है?
(a) केवल एक इजरायली राज्य की स्थापना
(b) केवल एक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना
(c) इजरायल और फिलिस्तीन नामक दो स्वतंत्र राज्यों की स्थापना
(d) एक संयुक्त इजरायल-फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना
उत्तर: (c)
व्याख्या: दो-राज्य समाधान का मूल विचार इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा में रहने वाले एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना है।
2. प्रश्न: फिलिस्तीनी शरणार्थियों के संबंध में “वापसी का अधिकार” (Right of Return) का क्या अर्थ है?
(a) फिलिस्तीनी शरणार्थियों को किसी भी देश में बसने का अधिकार
(b) फिलिस्तीनी शरणार्थियों को उनके मूल घरों में लौटने का अधिकार
(c) शरणार्थियों को वित्तीय मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार
(d) संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित पुनर्वास का अधिकार
उत्तर: (b)
व्याख्या: “वापसी का अधिकार” फिलिस्तीनी लोगों की वह मांग है कि 1948 और 1967 के युद्धों के दौरान अपने घरों से विस्थापित हुए फिलिस्तीनी शरणार्थियों को लौटने का अधिकार मिले।
3. प्रश्न: 1967 के युद्ध के बाद, इजरायल ने किन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, जिन्हें फिलिस्तीनी एक स्वतंत्र राज्य के रूप में चाहते हैं?
(a) मिस्र का सिनाई प्रायद्वीप
(b) जॉर्डन का वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम
(c) सीरिया का गोलान हाइट्स
(d) (b) और (c) दोनों
उत्तर: (d)
व्याख्या: 1967 के युद्ध में, इजरायल ने मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम, और सीरिया से गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और पूर्वी यरुशलम को आधार माना जाता है।
4. प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका, मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के संबंध में, मुख्य रूप से किस पर केंद्रित रही है?
(a) इजरायल का पूर्ण समर्थन
(b) फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन और दो-राज्य समाधान की वकालत
(c) क्षेत्र में सैन्य हस्तक्षेप
(d) किसी भी पक्ष का समर्थन न करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थक रहा है और दो-राज्य समाधान के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करता है।
5. प्रश्न: इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में “इजरायली बस्तियाँ” (Israeli Settlements) एक बड़ी बाधा क्यों मानी जाती हैं?
(a) वे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती हैं और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में फैली हुई हैं।
(b) वे शांति वार्ता को मजबूत करती हैं।
(c) वे केवल राजनीतिक प्रतीक हैं और उनका कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं है।
(d) वे दोनों पक्षों के बीच केवल आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देती हैं।
उत्तर: (a)
व्याख्या: वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियाँ अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध मानी जाती हैं और फिलिस्तीनी राज्य के लिए आवश्यक भौगोलिक निरंतरता को बाधित करती हैं।
6. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा देश आम तौर पर 1967 की सीमाओं पर आधारित और पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीनी राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले दो-राज्य समाधान का समर्थन करता है?
(a) केवल संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) केवल फ्रांस
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (b)
व्याख्या: फ्रांस, यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में, आम तौर पर 1967 की सीमाओं पर आधारित और पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीनी राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले दो-राज्य समाधान का समर्थन करता है, जबकि अमेरिका के रुख में अक्सर इजरायल के हितों को प्राथमिकता दी जाती है।
7. प्रश्न: भारत ने किस संगठन को फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) के रूप में मान्यता दी थी?
(a) 1974
(b) 1988
(c) 1991
(d) 2000
उत्तर: (a)
व्याख्या: भारत 1974 में PLO को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
8. प्रश्न: यरुशलम की स्थिति का समाधान जटिल क्यों है?
(a) क्योंकि यह दोनों पक्षों द्वारा एक स्वतंत्र राज्य की राजधानी के रूप में दावा किया जाता है।
(b) क्योंकि यह यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए एक पवित्र शहर है।
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (c)
व्याख्या: यरुशलम की स्थिति अत्यंत जटिल है क्योंकि दोनों पक्ष इसे अपनी राजधानी मानते हैं, और यह तीन प्रमुख एकेश्वरवादी धर्मों के लिए पवित्र स्थल है।
9. प्रश्न: हमास, जो गाजा पट्टी में एक प्रमुख राजनीतिक और सैन्य समूह है, का इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में क्या रुख रहा है?
(a) इजरायल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का समर्थन
(b) इजरायल को मान्यता नहीं देना और सशस्त्र संघर्ष का समर्थन
(c) दो-राज्य समाधान का सक्रिय समर्थक
(d) इजरायल के साथ पूर्ण सामान्यीकरण का समर्थक
उत्तर: (b)
व्याख्या: हमास, इजरायल को मान्यता नहीं देता है और उसने इजरायल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया है, जो दो-राज्य समाधान की संभावनाओं को जटिल बनाता है।
10. प्रश्न: ‘एक-राज्य समाधान’ (One-State Solution) के संदर्भ में, इसका क्या अर्थ हो सकता है?
(a) फिलिस्तीनियों के लिए एक नया स्वतंत्र राज्य बनाना।
(b) इजरायल को मजबूत करना और उसकी सीमाओं का विस्तार करना।
(c) इजरायल और फिलिस्तीन को एक साझा, लोकतांत्रिक राज्य के रूप में एकीकृत करना।
(d) संयुक्त राष्ट्र द्वारा क्षेत्र पर सीधा शासन।
उत्तर: (c)
व्याख्या: एक-राज्य समाधान का अर्थ है इजरायल और फिलिस्तीन का एक साझा, लोकतांत्रिक राज्य के रूप में एकीकरण, जहाँ सभी नागरिकों के समान अधिकार हों।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: दो-राज्य समाधान, इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा सबसे अधिक समर्थित प्रस्ताव है। इसकी मुख्य विशेषताओं, कार्यान्वयन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों और भारत की वर्तमान नीति के संदर्भ में इसके महत्व का विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द)
2. प्रश्न: मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने में अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस, की भूमिका और उनके परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों ने संघर्ष को कैसे प्रभावित किया है? भारतीय कूटनीति इस संदर्भ में क्या भूमिका निभा सकती है? (250 शब्द)
3. प्रश्न: इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को सुलझाने में “फिलिस्तीनी शरणार्थियों का मुद्दा” और “यरुशलम की स्थिति” सबसे संवेदनशील और जटिल तत्व क्यों माने जाते हैं? इन मुद्दों के समाधान के बिना दो-राज्य समाधान की व्यवहार्यता का मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द)
4. प्रश्न: “भू-राजनीतिक हितों, ऐतिहासिक संदर्भों और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का जटिल जाल” इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को सुलझाने में सबसे बड़ी बाधा है। इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए, और भारत जैसे देशों के लिए इस स्थिति में क्या अवसर हैं, इसका उल्लेख कीजिए। (250 शब्द)