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तीर्थयात्रा सुरक्षा: बिहार की सावन त्रासदी से सबक और भारत में धार्मिक पर्यटन का भविष्य – एक UPSC विश्लेषण

तीर्थयात्रा सुरक्षा: बिहार की सावन त्रासदी से सबक और भारत में धार्मिक पर्यटन का भविष्य – एक UPSC विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, बिहार के खगड़िया से बेगूसराय सावन की पहली सोमवारी के अवसर पर जलाभिषेक के लिए गए दो युवकों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई। यह घटना धार्मिक आयोजनों में श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर I – समाज (सांस्कृतिक पहलू), GS पेपर II – शासन (नीति निर्माण, कार्यान्वयन और प्रशासनिक दक्षता), GS पेपर III – आपदा प्रबंधन (भीड़ नियंत्रण, जोखिम न्यूनीकरण, आपातकालीन प्रतिक्रिया) और GS पेपर IV – नैतिकता (सार्वजनिक सेवा में मानवीय संवेदना और उत्तरदायित्व) से संबंधित है। यह घटना भारत में धार्मिक यात्राओं के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने की जटिल चुनौतियों और सरकार, प्रशासन व समाज की सामूहिक जिम्मेदारी को उजागर करती है।


धार्मिक पर्यटन और तीर्थयात्रा सुरक्षा: एक विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

भारत एक ऐसा देश है जहाँ आध्यात्मिकता और धर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं। यहाँ हर वर्ष लाखों लोग विभिन्न धार्मिक यात्राओं और तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हैं। चाहे वह वार्षिक अमरनाथ यात्रा हो, कुंभ मेला हो, काँवर यात्रा हो, या स्थानीय त्योहारों पर लगने वाले मेले, ये सभी आस्था के महापर्व हैं जो समाज को एकजुट करते हैं और देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन करते हैं। धार्मिक पर्यटन न केवल लोगों की आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूरा करता है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी बढ़ावा देता है, रोजगार के अवसर पैदा करता है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है।

हालांकि, इन विशाल आयोजनों में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, और कभी-कभी प्रशासनिक लापरवाही सुरक्षा संबंधी गंभीर चुनौतियाँ पैदा करती हैं। बिहार की हालिया घटना, जिसमें सावन की पहली सोमवारी पर दो युवकों की दुखद मृत्यु हुई, इसी चुनौती का एक ज्वलंत उदाहरण है। यह घटना हमें धार्मिक आयोजनों के दौरान उत्पन्न होने वाले खतरों, जैसे भगदड़, डूबना, बीमारी, और अन्य दुर्घटनाओं की याद दिलाती है। यह सिर्फ एक स्थानीय त्रासदी नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक राष्ट्रीय चिंता का विषय है जो भारत में धार्मिक यात्राओं के प्रबंधन और सुरक्षा प्रोटोकॉल पर पुनर्विचार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत जैसे देश में, जहाँ आस्था इतनी गहरी जड़ें जमाए हुए है, सरकार और संबंधित अधिकारियों का यह परम कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि श्रद्धालु अपनी धार्मिक यात्राएं सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से पूरी कर सकें। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कठोर योजना, कुशल कार्यान्वयन, अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग, और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना शामिल हो।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

धार्मिक आयोजनों के प्रबंधन और सुरक्षा के संबंध में कोई एकल, केंद्रीय कानून या प्रावधान नहीं है। इसके बजाय, यह विभिन्न कानूनों, दिशानिर्देशों, और प्रशासनिक निर्देशों के माध्यम से संचालित होता है। कुछ महत्वपूर्ण पहलू और संबंधित प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005):
    • यह अधिनियम राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (NDMA, SDMA, DDMAs) की स्थापना करता है। भीड़-भाड़ वाले आयोजनों में होने वाली दुर्घटनाएं अक्सर ‘मानव-निर्मित आपदा’ की श्रेणी में आती हैं, और इसलिए यह अधिनियम इन घटनाओं के प्रबंधन, शमन और प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • प्राधिकरणों को जोखिम मूल्यांकन करने, शमन योजनाएं तैयार करने और आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए संसाधन जुटाने का अधिकार है।
  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code – CrPC):
    • IPC की धारा 304A (लापरवाही से मृत्यु): यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु लापरवाहीपूर्ण कृत्य से होती है, तो यह धारा लागू हो सकती है। धार्मिक आयोजनों के आयोजकों या प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही पाए जाने पर उन पर कार्रवाई की जा सकती है।
    • IPC की धारा 279 (सार्वजनिक मार्ग पर लापरवाही से गाड़ी चलाना): यदि वाहनों की भीड़ या अव्यवस्थित यातायात के कारण दुर्घटना होती है।
    • CrPC की धारा 144: यह धारा सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करने का अधिकार देती है, जिसका उपयोग भीड़ को नियंत्रित करने या खतरनाक क्षेत्रों में प्रवेश को रोकने के लिए किया जा सकता है।
  • पुलिस अधिनियम, 1861 और राज्य पुलिस अधिनियम:
    • पुलिस बलों को सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने, भीड़ को नियंत्रित करने, यातायात का प्रबंधन करने और आपराधिक गतिविधियों को रोकने का अधिकार देते हैं। बड़े आयोजनों में पुलिस की तैनाती और उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
  • राज्यों के नगरपालिका कानून और स्थानीय निकाय अधिनियम:
    • ये अधिनियम स्थानीय प्रशासन को सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, बुनियादी ढांचे और सुरक्षा मानकों को बनाए रखने के लिए शक्तियाँ प्रदान करते हैं, जो तीर्थस्थलों के आसपास की सुविधाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • न्यायिक हस्तक्षेप और दिशानिर्देश:
    • सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर बड़े सार्वजनिक और धार्मिक आयोजनों में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। उदाहरण के लिए, भगदड़ की घटनाओं के बाद अदालतों ने सरकारों को विस्तृत सुरक्षा योजनाएं प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
  • स्वयंसेवी संगठन और सामुदायिक भागीदारी:
    • कई धार्मिक और सामाजिक संगठन स्वयंसेवकों के माध्यम से भीड़ प्रबंधन, भोजन वितरण, चिकित्सा सहायता और सूचना प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, उनकी भूमिका को अक्सर अनौपचारिक रूप से देखा जाता है और उन्हें औपचारिक प्रशिक्षण और समन्वय की आवश्यकता होती है।
  • काँवर यात्रा के लिए विशेष दिशानिर्देश:
    • काँवर यात्रा जैसे विशिष्ट आयोजनों के लिए, राज्य सरकारें विशेष एसओपी (Standard Operating Procedures) और दिशानिर्देश जारी करती हैं, जिनमें सुरक्षा मार्ग, चिकित्सा शिविर, यातायात प्रबंधन और आपातकालीन संपर्क नंबर शामिल होते हैं।
    • बिहार की घटना, हालांकि प्रत्यक्ष रूप से भगदड़ से संबंधित नहीं है, लेकिन यह तीर्थयात्रियों की भेद्यता और यात्रा के दौरान होने वाले अन्य जोखिमों (जैसे डूबना, बीमारी, सड़क दुर्घटनाएं) को उजागर करती है, जिनके लिए भी पर्याप्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

धार्मिक पर्यटन और बड़े धार्मिक आयोजनों के कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं, विशेषकर जब सुरक्षा के दृष्टिकोण से उनका विश्लेषण किया जाता है।

सकारात्मक पहलू (Positives)

भारत में धार्मिक पर्यटन और बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाले धार्मिक उत्सव कई सकारात्मक आयाम प्रस्तुत करते हैं:

  • सांस्कृतिक संरक्षण और संवर्धन:

    यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और धार्मिक अनुष्ठानों को जीवित रखता है और पीढ़ियों तक पहुंचाता है। यह देश की विविधता में एकता को प्रदर्शित करता है।

  • आर्थिक प्रोत्साहन:

    धार्मिक पर्यटन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा वरदान है। यह लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करता है, जिनमें पुजारी, फूल विक्रेता, छोटे व्यवसायी, परिवहन सेवा प्रदाता और हस्तशिल्प कलाकार शामिल हैं। होटल, रेस्तरां, परिवहन और अन्य सेवा उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।

  • सामुदायिक एकजुटता और सामाजिक सद्भाव:

    ये आयोजन विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को एक साथ लाते हैं, जिससे सामुदायिक भावना मजबूत होती है। साझा आस्था और अनुभवों के माध्यम से सामाजिक सद्भाव और आपसी समझ बढ़ती है।

  • आध्यात्मिक और मानसिक कल्याण:

    लाखों लोगों के लिए, तीर्थयात्रा आध्यात्मिक शुद्धि, मानसिक शांति और आत्म-खोज का एक मार्ग है। यह तनाव कम करने और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है।

  • बुनियादी ढांचे का विकास:

    धार्मिक स्थलों और यात्रा मार्गों पर भीड़ को समायोजित करने के लिए सरकारें अक्सर सड़कों, रेलवे, आवास, स्वच्छता और चिकित्सा सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश करती हैं, जिसका लाभ स्थानीय आबादी को भी मिलता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

इन आयोजनों से जुड़े कई गंभीर नकारात्मक पहलू और चिंताएँ भी हैं, विशेषकर सुरक्षा के संदर्भ में:

  • सुरक्षा संबंधी जोखिम:
    • भगदड़: भीड़ प्रबंधन में चूक, संकरे रास्ते, अपर्याप्त निकासी मार्ग, या अफवाहों के कारण भगदड़ की घटनाएं हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर चोटें और मौतें हो सकती हैं।
    • अन्य दुर्घटनाएं: डूबना (जैसे नदियों में स्नान करते समय), सड़क दुर्घटनाएं (तीर्थयात्रियों के बड़े पैमाने पर आवागमन के कारण), संरचनात्मक विफलता (पुराने ढांचों में)। बिहार की घटना इसी श्रेणी में आती है।
    • आतंकवादी हमले: भीड़-भाड़ वाले स्थान होने के कारण, ये स्थल आतंकवादी हमलों के संभावित लक्ष्य बन सकते हैं।
  • स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी चुनौतियाँ:
    • बड़ी संख्या में लोगों के जमा होने से पानी और भोजन से फैलने वाली बीमारियों, संक्रामक रोगों और स्वच्छता संबंधी मुद्दों का खतरा बढ़ जाता है। अपर्याप्त शौचालय और अपशिष्ट प्रबंधन गंभीर चुनौतियाँ पेश करते हैं।
    • चिकित्सा सुविधाओं की कमी या उन तक पहुंच की कठिनाई आपात स्थिति में स्थिति को और बदतर बना देती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है, प्रदूषण बढ़ता है (विशेषकर नदियों और पवित्र स्थलों पर), और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या है।
  • प्रशासनिक और समन्वय की कमी:
    • विभिन्न एजेंसियों (पुलिस, स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, मंदिर न्यास) के बीच समन्वय की कमी प्रभावी भीड़ प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया में बाधा डाल सकती है।
    • राज्यों और जिलों के बीच समन्वय की कमी (जैसा कि बिहार घटना में खगड़िया से बेगूसराय की यात्रा में देखा जा सकता है) भी एक चुनौती है।
  • मानव तस्करी और अपराध:
    • भीड़-भाड़ वाले आयोजनों में जेबकटी, चोरी, और यहां तक कि बच्चों की तस्करी जैसे अपराधों का खतरा बढ़ जाता है।
  • आधारभूत संरचना का अभाव:
    • कई तीर्थस्थलों पर आवश्यक बुनियादी ढांचे (जैसे चौड़ी सड़कें, उचित बैरिकेडिंग, पर्याप्त पेयजल, आश्रय स्थल) की कमी होती है जो सुरक्षा जोखिमों को बढ़ाती है।

बिहार की घटना यह स्पष्ट करती है कि धार्मिक आयोजनों से जुड़े लाभों का अधिकतम लाभ उठाने और संभावित खतरों को कम करने के लिए एक मजबूत और बहुआयामी सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

भारत में धार्मिक आयोजनों और तीर्थयात्राओं के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करना एक जटिल कार्य है, जिसमें कई चुनौतियाँ हैं:

  1. भीड़ का अप्रत्याशित व्यवहार: लाखों लोगों की भीड़ में व्यक्तिगत व्यवहार का अनुमान लगाना कठिन होता है, जिससे भगदड़ या अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  2. अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई पुराने तीर्थस्थलों पर भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त चौड़ी सड़कें, पुल, निकासी मार्ग और आश्रय स्थल नहीं हैं।
  3. सीमित संसाधन: पुलिस बल, चिकित्सा कर्मी और स्वयंसेवकों की संख्या अक्सर भीड़ के अनुपात में कम होती है।
  4. एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव: पुलिस, स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, अग्निशमन सेवा, स्वयंसेवी संगठन और मंदिर ट्रस्ट के बीच प्रभावी समन्वय की कमी।
  5. जलवायु संबंधी चुनौतियाँ: विशेषकर मानसून में होने वाली यात्राओं (जैसे सावन यात्रा) में बाढ़, भूस्खलन और बिजली गिरने जैसे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है।
  6. जागरूकता की कमी: तीर्थयात्रियों में सुरक्षा प्रोटोकॉल, आपातकालीन प्रक्रियाओं और प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जागरूकता की कमी।
  7. अवैज्ञानिक भीड़ प्रबंधन: पारंपरिक और प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण अक्सर वैज्ञानिक भीड़ प्रबंधन तकनीकों (जैसे भीड़ मॉडलिंग, सेंसर-आधारित निगरानी) की कमी रखते हैं।
  8. संचार अंतराल: आपात स्थिति में त्वरित और प्रभावी संचार प्रणाली का अभाव।
  9. चिकित्सा और आपातकालीन सेवाओं की पहुंच: दूरस्थ या अत्यधिक भीड़ वाले क्षेत्रों में चिकित्सा सहायता और आपातकालीन वाहनों की त्वरित पहुंच एक बड़ी चुनौती है।
  10. प्रौद्योगिकी का सीमित उपयोग: निगरानी, मार्ग नियोजन और प्रतिक्रिया में आधुनिक तकनीकों का सीमित उपयोग।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने और बिहार जैसी त्रासदियों को रोकने के लिए एक व्यापक, बहु-आयामी और सक्रिय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित उपाय शामिल होने चाहिए:

  • सक्रिय जोखिम मूल्यांकन और योजना:
    • प्रत्येक बड़े धार्मिक आयोजन से पहले विस्तृत जोखिम मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसमें भगदड़ के हॉटस्पॉट, कमजोर बुनियादी ढांचे, और संभावित प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़ या अत्यधिक गर्मी) की पहचान करना शामिल है।
    • भीड़ मॉडलिंग सॉफ्टवेयर और सिमुलेशन का उपयोग करके भीड़ के प्रवाह का अनुमान लगाएं और तदनुसार मार्ग और बैरिकेडिंग की योजना बनाएं।
    • विस्तृत घटना प्रतिक्रिया योजना (Incident Response Plan) और मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs) विकसित करें, जिसमें निकासी मार्ग, आपातकालीन निकास बिंदु और चिकित्सा सहायता केंद्र स्पष्ट रूप से परिभाषित हों।
  • बुनियादी ढांचे का उन्नयन और विस्तार:
    • तीर्थयात्रा मार्गों, पुलों, और स्नान घाटों को चौड़ा और मजबूत करें।
    • पर्याप्त संख्या में अस्थायी आश्रय स्थल, पेयजल सुविधाएँ, और स्वच्छ शौचालय स्थापित करें।
    • पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, विशेषकर रात में, और स्पष्ट दिशा-निर्देश वाले संकेत बोर्ड लगाएं।
  • तकनीकी हस्तक्षेप का अधिकतम उपयोग:
    • भीड़ की निगरानी के लिए ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे और AI-आधारित विश्लेषण प्रणाली का उपयोग करें।
    • जीपीएस-सक्षम ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करके प्रमुख मार्गों पर वाहनों और स्वयंसेवकों की स्थिति की निगरानी करें।
    • आपदा अलर्ट और सूचना प्रसार के लिए मोबाइल ऐप, सोशल मीडिया और पब्लिक एड्रेस सिस्टम का प्रभावी उपयोग करें।
    • बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली का उपयोग करके तीर्थयात्रियों का पंजीकरण किया जा सकता है, विशेषकर संवेदनशील यात्राओं के लिए।
  • सशक्त समन्वय और क्षमता निर्माण:
    • विभिन्न सरकारी एजेंसियों (पुलिस, स्वास्थ्य, राजस्व, सिंचाई, परिवहन), स्थानीय प्रशासन, मंदिर न्यासों, स्वयंसेवी संगठनों और नागरिक समाज के बीच एक एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र स्थापित करें।
    • पुलिसकर्मियों, स्वयंसेवकों और चिकित्सा कर्मियों को भीड़ प्रबंधन, प्राथमिक चिकित्सा, सीपीआर (CPR) और आपदा प्रतिक्रिया का नियमित प्रशिक्षण दें।
    • अंतर-राज्यीय और अंतर-जिला समन्वय को मजबूत करें, विशेषकर उन यात्राओं के लिए जो कई क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं (जैसे काँवर यात्रा)।
  • जागरूकता और शिक्षा अभियान:
    • तीर्थयात्रियों को यात्रा शुरू करने से पहले ‘क्या करें और क्या न करें’ (Do’s and Don’ts) के बारे में शिक्षित करें। इसमें आपातकालीन नंबर, स्वास्थ्य सावधानियां और भीड़ में सुरक्षित रहने के तरीके शामिल हों।
    • विशेषकर नदी स्नान या गहरे पानी के पास, डूबने से बचाव के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाएं।
    • मीडिया, सोशल मीडिया और स्थानीय स्वयंसेवकों के माध्यम से सूचना का व्यापक प्रसार करें।
  • त्वरित प्रतिक्रिया और चिकित्सा तैयारी:
    • प्रत्येक किलोमीटर पर या रणनीतिक बिंदुओं पर चिकित्सा सहायता केंद्र और एम्बुलेंस तैनात करें।
    • मोबाइल मेडिकल यूनिट और प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
    • गंभीर मामलों के लिए निकटतम अस्पतालों के साथ समन्वय स्थापित करें।
  • कानूनी और नियामक ढाँचा:
    • बड़े सार्वजनिक आयोजनों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय दिशानिर्देश या कानून बनाने पर विचार किया जा सकता है।
    • आयोजकों और संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए स्पष्ट प्रावधान होने चाहिए।
  • सामुदायिक भागीदारी:
    • स्थानीय समुदायों और स्वयंसेवकों को योजना और कार्यान्वयन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करें। उनका स्थानीय ज्ञान और समर्थन अमूल्य हो सकता है।
  • पर्यावरण-संवेदनशील प्रबंधन:
    • स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कठोर नियम बनाएं और उनका पालन सुनिश्चित करें। प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करें और बायो-डिग्रेडेबल विकल्पों को बढ़ावा दें।

बिहार की घटना हमें याद दिलाती है कि आस्था और सुरक्षा का संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है। जब तक सरकारें, प्रशासन और आम जनता मिलकर कार्य नहीं करेंगे, तब तक ऐसी त्रासदियों को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि धार्मिक यात्राएँ भय या जोखिम का कारण न बनें, बल्कि वे सुरक्षित और शांतिपूर्ण अनुभव हों।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह अधिनियम राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना का प्रावधान करता है।
    2. भीड़-भाड़ वाले आयोजनों में होने वाली भगदड़ जैसी घटनाएं इसके दायरे में ‘मानव-निर्मित आपदा’ के रूप में आती हैं।
    3. यह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के गठन का प्रावधान नहीं करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल i और ii
    • (b) केवल ii और iii
    • (c) केवल i और iii
    • (d) i, ii और iii

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: कथन (iii) गलत है क्योंकि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ही NDRF के गठन का प्रावधान करता है। बाकी दोनों कथन सही हैं। यह अधिनियम आपदाओं की रोकथाम, शमन, क्षमता निर्माण, प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

  2. भारत में बड़े धार्मिक आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की चुनौतियों में शामिल हैं:

    1. तीर्थयात्रियों के अप्रत्याशित व्यवहार का अनुमान लगाना।
    2. पुरानी और अपर्याप्त आधारभूत संरचना।
    3. विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय का अभाव।
    4. स्वयंसेवकों की अत्यधिक उपलब्धता।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल i, ii और iii
    • (b) केवल ii, iii और iv
    • (c) केवल i, iii और iv
    • (d) i, ii, iii और iv

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: कथन (iv) गलत है। स्वयंसेवकों की उपलब्धता आमतौर पर सीमित होती है, खासकर प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की। इसके अलावा, उनकी उपलब्धता अधिक होने के बावजूद, प्रभावी समन्वय के बिना वे चुनौती का सामना कर सकते हैं। अन्य तीनों कथन भीड़ प्रबंधन की प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

  3. भीड़ प्रबंधन के संदर्भ में, ‘क्राउड मॉडलिंग’ (Crowd Modeling) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन-सा कथन करता है?

    • (a) भीड़ की संख्या का मैन्युअल रूप से अनुमान लगाना।
    • (b) कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करके भीड़ के प्रवाह और घनत्व का विश्लेषण करना और उसका अनुमान लगाना।
    • (c) भीड़ को छोटे समूहों में विभाजित करना।
    • (d) भीड़ से बातचीत करके उनकी प्रतिक्रिया को समझना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: क्राउड मॉडलिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जो जटिल एल्गोरिदम और सिमुलेशन का उपयोग करके भीड़ के व्यवहार, प्रवाह, घनत्व और संभावित दबाव बिंदुओं का विश्लेषण और भविष्यवाणी करती है। यह योजनाकारों को भीड़ नियंत्रण रणनीतियों और आपातकालीन निकासी मार्गों को अनुकूलित करने में मदद करता है।

  4. भारतीय दंड संहिता (IPC) की कौन सी धारा लापरवाही से हुई मृत्यु से संबंधित है?

    • (a) धारा 302
    • (b) धारा 304A
    • (c) धारा 307
    • (d) धारा 323

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: IPC की धारा 304A उन मामलों से संबंधित है जहाँ लापरवाही या जल्दबाजी के कृत्य के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। धारा 302 हत्या के लिए, धारा 307 हत्या के प्रयास के लिए और धारा 323 स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के लिए है।

  5. बड़े धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-से उपाय प्रासंगिक हो सकते हैं?

    1. ड्रोन-आधारित निगरानी।
    2. AI-आधारित भीड़ विश्लेषण प्रणाली।
    3. भीड़ की स्थिति के लिए मोबाइल अलर्ट प्रणाली।
    4. बायोमेट्रिक पहचान और पंजीकरण।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल i और ii
    • (b) केवल iii और iv
    • (c) केवल i, ii और iii
    • (d) i, ii, iii और iv

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: उपरोक्त सभी उपाय बड़े धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा और प्रबंधन को बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। ड्रोन व्यापक दृश्य प्रदान करते हैं, AI भीड़ की गतिशीलता का विश्लेषण करता है, मोबाइल अलर्ट जानकारी प्रसारित करते हैं, और बायोमेट्रिक्स पहचान और सुरक्षा में सुधार करते हैं।

  6. भारत में धार्मिक पर्यटन के आर्थिक महत्व के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देता है।
    2. यह असंगठित क्षेत्र में रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा करता है।
    3. इसका पर्यटन क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कोई खास योगदान नहीं होता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल i
    • (b) केवल ii
    • (c) केवल i और ii
    • (d) i, ii और iii

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: कथन (iii) गलत है। धार्मिक पर्यटन भारत में पर्यटन क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि यह लाखों घरेलू और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर राजस्व उत्पन्न होता है। कथन (i) और (ii) सही हैं।

  7. तीर्थयात्रा के दौरान स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?

    1. बड़ी भीड़ के कारण संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
    2. पेयजल और स्वच्छता सुविधाओं की कमी स्वास्थ्य जोखिमों को कम करती है।
    3. चिकित्सा सहायता केंद्रों तक पहुंच हमेशा आसान नहीं होती है।
    • (a) केवल i
    • (b) केवल ii
    • (c) केवल i और iii
    • (d) i, ii और iii

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: कथन (ii) गलत है। पेयजल और स्वच्छता सुविधाओं की कमी स्वास्थ्य जोखिमों को *बढ़ाती* है, न कि कम करती है। कथन (i) और (iii) सही हैं।

  8. निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है?

    • (a) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
    • (b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
    • (c) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
    • (d) गृह मंत्रालय (MHA)

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है, जिसकी अध्यक्षता प्रधान मंत्री करते हैं। यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों को तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। NDRF एक कार्यान्वयन बल है, IMD मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करता है, और MHA एक नोडल मंत्रालय है लेकिन NDMA शीर्ष नीति-निर्धारण निकाय है।

  9. भारत में काँवर यात्रा के संदर्भ में, ‘मानक संचालन प्रक्रियाएँ’ (Standard Operating Procedures – SOPs) का महत्व क्या है?

    • (a) यह केवल यात्रा के धार्मिक अनुष्ठानों को परिभाषित करता है।
    • (b) यह यात्रा के दौरान सुरक्षा, चिकित्सा और यातायात प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करता है।
    • (c) यह केवल यात्रा के वित्तीय पहलुओं को नियंत्रित करता है।
    • (d) इसका उद्देश्य यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या को सीमित करना है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: SOPs किसी भी बड़े आयोजन के लिए एक सेट प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों का संग्रह होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कार्य कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से किए जाएं। काँवर यात्रा के संदर्भ में, SOPs सुरक्षा, चिकित्सा, यातायात और भीड़ प्रबंधन सहित विभिन्न पहलुओं के लिए विस्तृत निर्देश प्रदान करते हैं ताकि यात्रा सुचारू और सुरक्षित रूप से संपन्न हो सके।

  10. तीर्थयात्रा स्थलों पर पर्यावरणीय गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक है:

    • (a) स्थानीय वनस्पतियों और जीवों का अत्यधिक संरक्षण।
    • (b) तीर्थयात्रियों की सीमित संख्या।
    • (c) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमी और अत्यधिक प्लास्टिक का उपयोग।
    • (d) सरकार द्वारा वृक्षारोपण कार्यक्रमों में वृद्धि।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: तीर्थयात्रियों की भारी संख्या के कारण उत्पन्न होने वाला ठोस अपशिष्ट, विशेषकर प्लास्टिक कचरा, और अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली इन स्थलों पर गंभीर पर्यावरणीय गिरावट का एक प्रमुख कारण है। अन्य विकल्प पर्यावरणीय गिरावट का कारण नहीं बनते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. भारत में बड़े धार्मिक आयोजनों के प्रबंधन में शासन संबंधी चुनौतियाँ क्या हैं? बिहार की हालिया घटना के संदर्भ में, इन आयोजनों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक और बहु-आयामी दृष्टिकोण कैसे विकसित किया जा सकता है? (लगभग 250 शब्द)
  2. “आस्था की स्वतंत्रता और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करना भारतीय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।” इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण करें और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
  3. आपदा प्रबंधन के सिद्धांतों को लागू करते हुए, भारत में तीर्थयात्रा सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी कैसे एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
  4. तीर्थयात्राओं के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संगठनों और समुदाय की भूमिका का मूल्यांकन करें। इन हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय कैसे स्थापित किया जा सकता है? (लगभग 200 शब्द)

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