ताकिक तथा अताकिक क्रियाएँ

ताकिक तथा अताकिक क्रियाएँ

( Logical and Non – Logical Actions )

परेटो ने तार्किक क्रियाओं तथा इनसे सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के मानव व्यवहारों को ही समाजशास्त्र की मुख्य अध्ययन – वस्तु के रूप में स्वीकार किया है । यही कारण है कि उन्होंने अपने चिन्तन में अतार्किक क्रियाओं की तुलना में इन क्रियाओं की प्रकृति को विस्तार से स्पष्ट किया । परेटो का विचार है कि सभी मानवीय क्रियाओं को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :

( क ) ताकिक क्रियाएँ ( Logical Actions ) तथा

( ख ) अतार्किक क्रियाएँ ( Non Logical Actions ) ।

 यदि सामान्य शब्दों में इनकी प्रकृति को समझा जाय तो यह कहा जा सकता है कि तार्किक क्रियाएं वस्तुनिष्ठ ( Objective ) होती हैं जबकि अतार्किक क्रियाओं का आधार भावनात्मक ( Subjective ) होता है । इसका तात्पर्य है कि जब कोई क्रिया को और दूसरे व्यक्तियों के दृष्टिकोण से यथार्थ होती है तब उसे ताविक क्रिया कहा जाता है लेकिन जब कोई क्रिया कुछ भ्रान्त तर्को , भावनाओं अथवा संवेगों पर आधारित होती है तब इसे अतार्किक क्रिया कहा जा सकता है । परेटो का कथन है कि ‘ कोई क्रिया तब तार्किक होती है यदि उससे सम्बन्धित लक्ष्य को वस्तुनिष्ठ रूप से प्राप्त किया जा सके तथा सर्वोत्तम ज्ञान के आधार पर उस लक्ष्य को प्राप्त करने से सम्बन्धित साधन भी उससे यथार्थ रूप से सम्बन्धित हों । इस प्रकार कर्ता तथा उस विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के मस्तिष्क में जब किसी क्रिया के लक्ष्य और साधनों के बीच एक तार्किक सम्बन्ध स्पष्ट होता है तब ऐसी क्रिया को हम तार्किक क्रिया कहते हैं । अतार्किक क्रिया का तात्पर्य ऐसी सभी मानवीय क्रियाओं से है जो उपयुक्त अर्थ में ताकिकता की परिधि से बाहर होती हैं । यह क्रियाएँ एक ‘ अवशिष्ट श्रेणी ‘ ( Residual Category ) को प्रदर्शित करती हैं । ” स्पष्ट है कि मानव व्यवहारों में ताकिक क्रियाओं की अपेक्षा अतार्किक क्रियाओं का अधिक समावेश होता है । इस तथ्य को एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करते हए परेटो ने लिखा है कि समाज के नागरिक कानून को अपने सैद्धान्तिक रूप में तार्किक क्रिया का प्रतिनिधित्व करने वाला समझा जाता है लेकिन इस पर आधा रित न्यायाधीश का व्यवहार साधारणतया अतार्किक ही होता है । परेटो के शब्दों में , ” न्यायालय के निर्णय भी एक बड़ी सीमा तक समाज में प्रचलित भावनाओं तथा हितों पर निर्भर होने के साथ ही बहुत कुछ व्यक्तिगत विचारों तथा संयोग से प्रभावित होते हैं । अनेक अवसरों पर यह निर्णय किसी संहिता अथवा लिखित कानन से बिल्कुल भी सम्बन्धित नहीं होते । ” इसका तात्पर्य है कि अनेक निर्णय यद्यपि वैयक्तिक धारणा से प्रभावित होते हैं लेकिन उन्हें कानून के आधार पर तर्कसंगत प्रमाणित कर दिया जाता है । इस प्रकार किसी भी निर्णय की प्रक्रिया में जो आन्त रिक शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं , वे ही तार्किक तथा अतार्किक क्रियाओं के नाजुक विभेद को स्पष्ट करती हैं ।

उपर्युक्त आधार पर ) परेटो ने स्पष्ट किया कि तार्किक और अतार्किक क्रिया का विभेद मुख्य रूप से इस वास्तविकता पर आधारित है कि किसी क्रिया के लक्ष्य और साधनों के बीच ताकिक संगति कितनी अधिक या कम है । इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्तिगत क्रिया के दो पक्ष होते हैं लक्ष्य और साधन । कुछ क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिनके द्वारा तार्किक आधार पर लक्ष्य और साधनों के बीच एक स्पष्ट सामंजस्य देखने को मिलता है । इन्हीं क्रियाओं को हम वस्तुनिष्ठ अथवा तार्किक क्रियाएं कहते हैं । दूसरी ओर अनेक क्रियाएँ अथवा मानव व्यवहार इस प्रकार के होते हैं जिनमें लक्ष्य तथा साधनों के बीच कोई तार्किक संगति देखने को नहीं मिलती । यह क्रियाएँ भावनाप्रधान होती हैं और इसीलिए इन्हें अतार्किक किया कहा जा सकता है । परेटर्टी ने स्पष्ट किया कि केवल तर्क पर आधारित क्रियाओं को ही तार्किक क्रिया नहीं कहा जा सकता क्योंकि प्रत्येक क्रिया किसी न किसी तर्क पर अवश्य ही आधारित होती है ।

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अन्तर केवल इतना है कि किसी क्रिया के लिए जो तर्क दिया जाय वह कर्ता के अपने दृष्टिकोण या औचित्य पर आधारित हो अथवा वह तर्क प्रामाणिक या अनुभवसिद्ध हो । इसका तात्पर्य है कि कुछ क्रियाएं ऐसी होती हैं जिनके लक्ष्य और साधनों को कर्ता अनेक ऐसे तर्कों के आधार पर स्पष्ट कर देता है जो केवल उसी के दृष्टिकोण से उचित होते हैं । इस तरह के तर्क को परेटो ने ‘ भ्रान्त तर्क ‘ ( Derivation ) कहा है । ऐसे तर्कों पर आधारित क्रियाएं ही अतार्किक क्रियाएँ हैं । इसके विपरीत , जब कोई क्रिया केवल कर्ता के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि उन व्यक्तियों के दृष्टिकोण से भी प्रामाणिक तर्क पर आधारित होती है जिन्हें उस विषय का अधिक व्यापक ज्ञान हो , तब ऐसी क्रिया को तार्किक क्रिया कहा जाता है । वास्तविकता यह है कि प्रामाणिक तर्क वे . ही होते हैं जो निरीक्षण और अनुभव पर आधारित होते हैं ।

ऐसे तर्कों का आधार किसी तरह की आत्म – सन्तुष्टि , भ्रान्ति अथवा कल्पना नहीं होती । इनकी वास्तविकता को निरीक्षण या प्रयोग के द्वारा कभी भी सिद्ध किया जा सकता है । इस प्रकार किसी भी विज्ञान का कार्य मुख्यतः तार्किक क्रियाओं के अध्ययन द्वारा ही सामान्य नियमों का प्रतिपादन करना है । इस आधार पर तार्किक क्रियाओं को पुनः परिभाषित करते हुए परेटो ने लिखा कि केवल वे क्रियाएँ ही तार्किक क्रियाएं हैं जो प्रामाणिक तर्क के आधार पर लक्ष्य और साधनों को एक – दूसरे से जोडती हैं केवल उस क्रिया को करने वाले कर्ता के दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि उन व्यक्तियों के दृष्टिकोण से भी जिन्हें उसके विषय में अधिक व्यापक ज्ञान होता है । ” एक विज्ञान की अध्ययन वस्तु के रूप में जाकिक क्रियाओं के महत्त्व को स्वीकार करने के बाद भी परेटो के अनुसार अतार्किक क्रियाओं के सामाजिक प्रभाव की अवहेलना नहीं की जा सकती । इस सम्बन्ध में परेटो ने लिखा है , ” तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति पर आधारित तर्कसंगत क्रियाओं का क्षेत्र इतना छोटा है कि यह मानव व्यवहारों की सम्पूर्ण परिधि के एक छोटे – से भाग को ही स्पष्ट कर पाती हैं । अधिकांश दशाओं में विज्ञान हमें अपने लक्ष्यों का निर्धारण करने अथवा अपनी क्रियाओं के परिणामों का पूर्वानुमान करने में सहायता नहीं दे पाता । यही कारण है कि मानवीय व्यवहारों का अधिकांश भाग अताकिक ही होता है । ” मनोवैज्ञानिक रूप से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यवहार को तार्किक रूप से उचित प्रदर्शित करने का प्रयत्न करता है । इसका तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति जब अपने व्यवहार अथवा क्रिया में प्रामाणिक तार्किकता का समावेश नहीं कर पाता तब वह अपने व्यवहार को तार्किकता की वेश – भूषा पहनाकर उसे दूसरे लोगों के सामने ताकिक प्रमाणित करने का प्रयत्न ( Logicalize ) करता है ।

इस दष्टिकोण से अतार्किक क्रियाओं का क्षेत्र बहुत व्यापक होने के बाद भी वे केवल कर्ता की आत्म भ्रान्ति ( Self – diception ) को स्पष्ट करती हैं बल्कि सार्वजनिक कपट ( Public Deceit ) की भी परिचायक होती हैं । सच तो यह है कि समाज में प्रचलित विभिन्न निषेध ( Tabons ) , गाथाएं और जनरीतियाँ अधिकांशतः अतार्किक क्रियाओं का ही प्रतिनिधित्व करती हैं । इसके बाद भी अतार्किक क्रियाओं को निरर्थक अथवा समाज को विघटित करने वाली ( Pathological ) नहीं कहा जा सकता । परम्पराओं के पालन के रूप में अनेक अतार्किक व्यवहार समूह में अक्सर संगठन और एकीकरण की प्रक्रिया में भी वृद्धि करते हैं जिसका रूप अनेक आदिम समूहों के उत्सवों में देखने को मिलता है । पूरेटो द्वारा प्रस्तुत तार्किक तथा अतार्किक क्रिया की अवधारणा को सार रूप में ऐरों ( R . Aron ) द्वारा दिए गये अपांकित चित्र की सहायता से समझा सकता है :

 तार्किक तथा अतार्किक क्रियाओं के इस सम्पूर्ण विश्लेषण द्वारा परेटो ने यह स्पष्ट किया कि अतार्किक क्रियाएं भले ही समाज में व्यापक रूप से पायी जाती हों लेकिन यह प्रामाणिक और अनुभवसिद्ध न होने के कारण किसी विज्ञान की अध्ययन वस्तु नहीं बन सकतीं । समाजशास्त्र स्वयं एक ऐसा विज्ञान है जो तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति के आधार पर ही विकसित हो सकता है । इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्रीय अध्ययनों में केवल तार्किक क्रियाओं का ही समावेश होना चाहिए ।

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