तथ्यों के प्राथमिक तथा द्वितीयक स्त्रोत
( Primary and Secondary Sources of Data )
। अनुसन्धान या शोध की सफलता इसी बात पर निर्भर रहती है कि अनुसन्धानकर्ता अपने अध्ययन – विषय के सम्बन्ध में कितने वास्तविक निर्भरयोग्य सूचनाओं और तथ्यों को एकत्रित करने में सफल होता है । यह सफलता सूचना प्राप्त करने के स्त्रोतों की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है । अतः सूचना या तथ्यों के स्त्रोत के महत्व को सामाजिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कम नहीं किया जा सकता । साथ ही , ये सूचनाएँ या तथ्य एक ही प्रकार के नहीं होते हैं , इनमें भी कई प्रकार भेद हैं । इन प्रकारों के विषय में भी स्पष्ट ज्ञान का होना एक सफल अनुसन्धानकर्ता के लिए आवश्यक है । किस स्त्रोत से किस प्रकार की सूचना उसे प्राप्त हो सकती है इस बात की स्पष्ट जानकारी न होने पर अनुसन्धानकर्ता केवल इधर – उधर भटकता ही रहेगा और उसका काफी समय तथा श्रम व्यर्थ चला जाएगा । अतः सूचना या तथ्या क प्रकार तथा स्त्रोतों के बारे में ज्ञान आवश्यक है ।
तथ्यों या सूचना के प्रकार
( Types of Data or Information )
सामाजिक अनुसन्धान या शोध में दो प्रकार की सूचनाओं या तथ्यों की आवश्यकता होती है –
( 1 ) प्राथमिक तथ्य या सूचनाएँ तथा ( 2 ) द्वितीयक तथ्य या सूचनाएँ । •
प्राथमिक तथ्य या सूचनाएँ ( Primary Data or Information ) प्राथमिक तथ्य वे मौलिक सूचनाएँ या आँकड़े होते हैं जो कि एक अनुसन्धानकत्ता वास्तविक अध्ययन – स्थल ( field ) में जाकर विषय या समस्या से सम्बन्धित जीवित व्यक्तियों से साक्षात्कार ( interview ) करके अथवा अनसूची और प्रश्नावली का सहायता से एकत्रित करता है अथवा प्रत्यक्ष निरीक्षण के द्वारा प्राप्त करता है । प्राथमिक तथ्य प्राथमिक इस अर्थ में होते हैं कि उन्हें अनुसन्धानकर्ता अपने अध्ययन – उपकरणों की सहायता से प्रथम बार एकत्रित करता है अथवा निरीक्षण करता है ।
पी . वी . यंग के अनुसार , ” प्राथमिक तथ्य – सामग्री का तात्पर्य उन सचनाओं व आंकड़ों से है जिनको पहली बार संकलित किया गया हो तथा जिनके संकलन का उत्तरदायित्व शोधकर्ता या सर्वेक्षणकर्ता का अपना है । ” यहाँ यह बात स्पष्ट है कि प्राथमिक तथ्यों का संकलन या तो शोधकर्ता स्वयं करता है या अपनी देखरेख में सहायकों से कराता है । इस प्रकार की सामग्री या तथ्य क्षेत्रीय कार्य के आधार पर प्राप्त किए जाते हैं । इस प्रकार प्राथमिक तथ्यों को एकत्रित करने के दो प्रमुख स्त्रोत ( sources ) हैं ।
पहले स्त्रोत के अंतर्गत वे व्यक्ति आते हैं जो कि अध्ययन – विषय या समस्या के सम्बन्ध में ज्ञान रखते हैं अथवा दीर्घ समय से उसके घनिष्ठ सम्पर्क में हैं । प्राथमिक तथ्यों का दूसरा स्त्रोत प्रत्यक्ष निरीक्षण है । इस प्रकार के निरीक्षणों के द्वारा एक समुदाय या समूह के जीवन सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया जा सकता है यदि निरीक्षण के दौरान अनुसन्धानकर्ता बिल्कुल निष्पक्ष रहे । व्यक्ति के व्यवहार सम्बन्धी तथ्यों को एकत्रित करने के लिए प्रत्यक्ष निरीक्षण एक अति उत्तम स्त्रोत है । सहभागी निरीक्षण के द्वारा सामुदायिक जीवन से सम्बन्धित अति आन्तरिक व गुप्त बातों को भी जाना जा सकता है
द्वितीय तथ्य या सूचनाएँ तथ्य
( Secondary Data or Information )
द्वितीयक तथ्य वे सूचनाएँ और आँकड़े हैं जो कि अनुसन्धानकर्ता को प्रकाशित व अप्रकाशित प्रलेखों ( documents ) , रिपोर्ट , सांख्यिकी ( statistics ) , पाण्डुलिपि , पत्र – डायरी , टेप , वीडियो कैसेट या इन्टरनेट आदि से प्राप्त होते हैं । द्वितीयक तथ्यों की उल्लेखनीय विशेषता यह होती है कि ये तथ्य , सूचनाएँ या आँकड़े स्वयं , अनुसन्धानकर्ता अपने कार्य में उपयोग करने के लिए एकत्रित कर लेता है । पी . वी . यंग के अनुसार , ” द्वितीयक तथ्य वे होते हैं जिन्हें मौलिक स्त्रोतों से एक बार प्राप्त कर लेने के पश्चात् काम में लिया गया हो एवं जिनका प्रसारण अधिकारी उस व्यक्ति से भिन्न होता है जिसने प्रथम बार तथ्य संकलन को नियन्त्रित किया था । “
स्पष्ट है कि द्वितीयक तथ्य वे होते हैं जिनका एकत्रीकरण स्वयं शोधकर्ता या उसके सहायकों द्वारा नहीं किया गया हो , परन्तु जिसने किसी अन्य अध्ययन हेतु किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा संकलित सामग्री का उपयोग किया हो । इस सामग्री या तथ्यों का उपयोग करने वाला इसके क्षेत्रीय संकलन से सम्बन्धित नहीं होता र अन्य शब्दों में जब कोई शोधकर्ता , अन्य शोधकर्ता , संस्था , संगठन या किसी सरकारी या गैर – सरकारी एजेन्सी द्वारा एकत्रित सामग्री या तथ्यों का स्वयं के अध्ययन हेतु उपयोग करता है तो उसके लिए वह सामग्री द्वितीयक सामग्री या तथ्य होंगे ।
यहाँ इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना उचित रहेगा । यदि कोई शोधकर्ता 2001 की जनगणना – रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित सामग्री में से कुछ तथ्यों का चयन कर अपने अध्ययन हेतु उपयोग करता है तो ऐसे तथ्य उसके लिए द्वितीयक तथ्य कहलाएंगे । किर्स अध्ययन में द्वैतीयक तथ्यों का उपयोग उस समय किया जाता है जब विषय की प्रकृति ऐसी हो कि सभी तथ्यों को नवीन सिरे से एकत्र करना आवश्यक नहीं हो तथा उस विषय से सम्बन्धित अन्य द्वारा एकत्रित तथ्य पहले से उपलब्ध हों । शोधकर्ता को अपने सीमित साधनों के कारण भी कई बार द्वितीयक समाग्री का उपयोग करना पड़ता है ।
द्वितीयक सामग्री को काम में लेने हेतु शोधकर्ता का कार्य – कुशल और सूझ – बूझ वाला होना आवश्यक है । यह सामग्री काफी विविधता लिए हुए होती है । अतः इसमें से शोधकर्ता को आवश्यक तथ्यों को संकलित करना होता है । द्वितीयक तथ्यों के भी दो प्रमुख स्त्रोत होते हैं – पहले व्यक्तिगत प्रलेख ( personal documents ) जैसे – आत्मकथा , डायरी , पत्र आदि और दूसरे सार्वजनिक प्रलेख ( public documents ) जैसे – रिकार्ड , पुस्तकें , जनगणना रिपोर्ट , विशिष्ट कमेटियों की रिपोर्ट , समाचारपत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित सूचनाएँ , न्यूज़रील , कम्प्यूटर सी . डी . या इन्टरनेट वैबसाइट आदि । लुण्डबर्ग के अनुसार शिलालेख , स्तूप विभिन्न खुदाइयों से प्राप्त अस्थिपिंजर , भौतिक वस्तु आदि ऐतिहासिक स्त्रोत से प्राप्त तथ्य या सूचनाएँ भी द्वितीयक तथ्यों के अन्तर्गत आते हैं ।
प्राथमिक तथा द्वितीयक तथ्यों में अन्तर
( Distinction between Primary and Secondary Data )
उपर्युक्त विवेचना के आधार पर प्राथमिक तथा द्वितीयक तथ्यों में पाए जाने वाले
अन्तर को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
( 1 ) वास्तव में प्राथमिक एवंद्वतीयक तथ्य सापेक्ष हैं । किसी अध्ययन में कौन तथ्य प्राथमिक और कौन से तथ्य द्वितीयक होंगे , यह शोध के लक्ष्य से सम्बन्धित एक शोधकर्ता के लिए जो तथ्य प्राथमिक हैं . वे ही अन्य शोधकर्ताओं के अध्ययन में प्रयुक्त होने पर द्वितीयक कहलायेंगे ।
( 2 ) प्राथमिक तथ्यों को द्वितीयक तथ्यों की तुलना में अधिक मौलिक ( Original ) माना जाता है । क्योंकि इनका संकलन स्वयं शोधकर्ता के द्वारा अध्ययन की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है । इस मौलिकता का द्वैतीयक तथ्यों में सापेक्ष रूप से अभाव पाया जाता है ।
( 3 ) प्राथमिक तथ्य द्वितीयक तथ्यों की तुलना में अधिक विश्वसनीय होते हैं । क्योंकि इन्हें शोधकर्ता या अन्वेषणकर्ता अपनी प्राक्कल्पनाओं के परीक्षण हेतु अथवा अध्ययन – विषय के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए किसी वैज्ञानिक प्रविधि द्वारा वस्तुनिष्ठ तरीके से स्वयं या अपने निर्देशन में संकलित करता है । ये तथ्य ऐसे होते हैं जिनका अन्य वैज्ञानिकों द्वारा सत्यापन किया जा सकता है । यहाँ हमें यह नहीं सोच लेना चाहिए कि द्वितीयक तथ्य प्राथमिक तथ्यों की तुलना में घटिया किस्म के होते हैं । कहने का तात्पर्य केवल यही है कि प्राथमिक तथ्य तुलनात्मक दृष्टि से अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होते हैं ।
( 4 ) प्राथमिक तथ्य क्षेत्रीय कार्य के आधार पर प्रथम बार एकत्रित किये जाने के कारण नवीन होते हैं । जबकि द्वितीयक तथ्य पूर्व में किये गये अन्वेषणों के अन्तर्गत संकलित किये जाने के कारण पुराने होते हैं । उनका यह पुरानापन कई बार वर्तमान का विश्लेषण करने में कठिनाई पैदा करता है ।
( 5 ) प्राथमिक तथ्यों का प्रयोग प्रथम बार किया जाता है अर्थात प्रथम बार एकत्रित किये गये तथ्यों का प्रथम बार उपयोग किया जाता है । उन्हीं तथ्यों का दूसरी बार उपयोग करने पर वे द्वितीयक तथ्यों के नाम से जाने जाते हैं ।
( 6 ) प्राथमिक तथ्य शोधकर्ता के स्वयं के निर्देशन में एकत्रित किये जाते हैं । जबकि द्वितीयक तथ्य अन्य के द्वारा एकत्रित एवं उपयोग किये हुए होते हैं ।
( 7 ) प्राथमिक तथ्यों का संकलन शोधकर्ता अपनी अध्ययन – समस्या के अनुरूप स्वयं करता है । अतः वह सुगमता से इस बात का निर्णय कर पाता है कि उसके अध्ययन के लिए कौनसे तथ्य उपयोगी हैं , और कौनसे अनुपयोगी हैं , किन्हें , अध्ययन में सम्मिलित किया जाना चाहिए और किन्हें हटा दिया जाना चाहिए । द्वितीयक तथ्यों के संकलनकर्ता को कई बार उन महत्वपूर्ण तथ्यों के संकलन से वंचित । रहना पड़ता है जिन्हें निरर्थक समझकर प्राथमिक तथ्यों के संकलनकर्ता ने अध्ययन में सम्मिलित नहीं किया । इन अन्तरों को संक्षेप में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है I
( 1 ) मौलिकता – अधिक मौलिक माना ( 1 ) अपेक्षाकृत कम मौलिक माना जाता जाता है । ( 2 ) विश्वसनीयता – अधिक विश्वसनीय ( 2 ) तुलनात्मक दृष्टि से कम विश्वसनीय होते हैं । होते हैं । ( 3 ) स्वरूप – प्राथमिक तथ्य नवीन होते ( 3 ) -संकलित किये जाने के कारण पुराने होते हैं । ( 4 ) प्रयोग – प्रथम बार किया जाता है । ( 4 ) बार – बार प्रयोग किया जाता है । ( 5 ) संकलन – शोधकर्ता के स्वयं के निर्देशन ( 5 ) अन्य के द्वारा एकत्र या उपयोग किये में होता है । _ _ गये होते हैं । ( 6 ) आवश्यकता – शोधकर्ता अपने ( 6 ) शोधकर्ता को पूरी तरह द्वितीयक तथ्यों अध्ययन के आवश्यकतानुसार तथ्य पर निर्भर रहना पड़ता है । संकलित करता है ।
आँकड़ों के प्रकार , स्वरूप एवं स्रोतों की विस्तृत विवेचना के उपरान्त अब हम आँकड़ों को संकलित करने की प्रमुख प्रविधियों ( Techniques ) की विस्तृत विवेचना करेंगे ये प्रमुख प्रविधियाँ निम्नांकित हैं
1 . प्रश्वावली ( Questionnaire ) ,
2 . अनुसूची ( Schedule ) ,
3 . साक्षात्कार ( Interview ) ,
4 . अवलोकन ( Observation ) ।