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डेड इकोनॉमी बयान पर गरमागरम बहस: राहुल गांधी का समर्थन और थरूर की अमेरिका-चिंता, UPSC के लिए महत्वपूर्ण विश्लेषण

डेड इकोनॉमी बयान पर गरमागरम बहस: राहुल गांधी का समर्थन और थरूर की अमेरिका-चिंता, UPSC के लिए महत्वपूर्ण विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, भारतीय राजनीति में एक नया राजनीतिक भूचाल आया है जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने “डेड इकोनॉमी” (Dead Economy) के अपने बयान का समर्थन किया। इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, पार्टी के एक अन्य प्रमुख नेता, शशि थरूर ने कहा कि राहुल गांधी के ऐसा कहने के अपने कारण हो सकते हैं, लेकिन उनकी मुख्य चिंता भारत के संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को सुधारने को लेकर है। यह बयानबाजी न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है, बल्कि इसने भारतीय अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी महत्वपूर्ण प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और समसामयिक घटनाओं जैसे विषयों से गहराई से जुड़ा हुआ है।

“डेड इकोनॉमी” का अर्थ और संदर्भ (Meaning and Context of “Dead Economy”):

सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि “डेड इकोनॉमी” से राहुल गांधी का क्या तात्पर्य है। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर एक ऐसी अर्थव्यवस्था का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो गतिहीन हो गई है, जहां विकास दर बहुत धीमी है, मांग कम है, निवेश आकर्षित नहीं हो रहा है, और रोज़गार सृजन लगभग रुक गया है। यह एक ऐसी आर्थिक स्थिति है जहाँ नवाचार और उत्पादकता का अभाव होता है, जिससे समग्र आर्थिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

राहुल गांधी के बयान को मौजूदा आर्थिक परिदृश्य के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भारत की अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में कई चुनौतियों का सामना किया है, जिनमें धीमी विकास दर, बढ़ती बेरोजगारी, ग्रामीण क्षेत्रों में घटती मांग, और कुछ क्षेत्रों में निजी निवेश में कमी शामिल हैं। COVID-19 महामारी के बाद, इन चुनौतियों ने और भी विकट रूप धारण किया है। ऐसे में, “डेड इकोनॉमी” शब्द का प्रयोग सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करने और अर्थव्यवस्था में एक गंभीर मंदी की ओर इशारा करने का एक तरीका हो सकता है।

“अर्थव्यवस्था का ‘मृत’ हो जाना केवल एक लाक्षणिक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह उन गहरी समस्याओं को उजागर करती है जो देश के विकास पथ को बाधित कर सकती हैं।”

राहुल गांधी के बयान का समर्थन: क्यों? (Support for Rahul Gandhi’s Statement: Why?):

राहुल गांधी द्वारा अपने “डेड इकोनॉमी” वाले बयान का समर्थन करने के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:

  • आर्थिक मंदी के संकेत: वे शायद उन आंकड़ों और वास्तविकताओं की ओर इशारा कर रहे हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मंदी का संकेत देते हैं। इसमें जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट, औद्योगिक उत्पादन में कमी, और उपभोग में ठहराव शामिल हो सकता है।
  • सरकारी नीतियों की आलोचना: यह बयान सरकार की आर्थिक नीतियों, जैसे कि नोटबंदी, जीएसटी का कार्यान्वयन, और विभिन्न क्षेत्रों में निजीकरण की आलोचना का एक हिस्सा हो सकता है। गांधी का मानना हो सकता है कि इन नीतियों ने अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया है।
  • रोज़गार सृजन का अभाव: राहुल गांधी अक्सर देश में बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या पर ज़ोर देते हैं। “डेड इकोनॉमी” का विचार सीधे तौर पर रोज़गार सृजन की कमी से जुड़ा है, क्योंकि धीमी अर्थव्यवस्था में नई नौकरियाँ पैदा होने की संभावना कम होती है।
  • अमीर-गरीब खाई का बढ़ना: वे यह भी तर्क दे सकते हैं कि वर्तमान आर्थिक स्थिति ने समाज में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को और बढ़ाया है, जिससे आम आदमी की क्रय शक्ति प्रभावित हुई है।

उदाहरण: जैसे एक बगीचे को बढ़ने के लिए पर्याप्त धूप, पानी और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उसी तरह अर्थव्यवस्था को भी विकास के लिए अनुकूल नीतियां, निवेश और मांग की आवश्यकता होती है। यदि ये तत्व अनुपस्थित हों, तो अर्थव्यवस्था “मृत” या गतिहीन हो सकती है, जैसा कि राहुल गांधी का इशारा हो सकता है।

शशि थरूर की चिंता: अमेरिका से रिश्ते सुधारना (Shashi Tharoor’s Concern: Improving Relations with the US):

शशि थरूर का बयान इस मुद्दे को एक नया आयाम देता है। उनका कहना है कि भले ही राहुल गांधी के पास अपनी चिंताएं हों, लेकिन थरूर की मुख्य चिंता भारत के संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को सुधारने को लेकर है। यह निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:

  • भू-राजनीतिक महत्व: अमेरिका आज दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक प्रमुख वैश्विक शक्ति है। भारत के लिए अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक, रणनीतिक और राजनयिक संबंध बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के समय में।
  • आर्थिक सहयोग: अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार, निवेशक और प्रौद्योगिकी प्रदाता है। भारत को अमेरिकी निवेश, बाज़ार तक पहुँच और तकनीकी सहयोग की आवश्यकता है ताकि वह अपनी आर्थिक वृद्धि को गति दे सके।
  • रणनीतिक साझेदारी: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए अमेरिका के साथ साझेदारी महत्वपूर्ण है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, समुद्री सुरक्षा और रक्षा सहयोग जैसे मुद्दों पर यह साझेदारी भारत के हितों को साधती है।
  • “डेड इकोनॉमी” बयान का संभावित प्रभाव: थरूर का मानना हो सकता है कि “डेड इकोनॉमी” जैसे नकारात्मक और निराशावादी बयान, यदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, खासकर अमेरिका जैसे प्रमुख देशों के बीच, गलत संदेश देते हैं, तो यह भारत की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं और निवेश को हतोत्साहित कर सकते हैं। भारत की आर्थिक क्षमता पर संदेह व्यक्त करने वाले बयान विदेशी निवेशकों और नीति निर्माताओं के बीच चिंता पैदा कर सकते हैं।

उपमा: कल्पना कीजिए कि आप एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक बैठक में अपने उत्पादों को बेच रहे हैं। यदि आप अपने स्वयं के उत्पादों को “खराब” या “बेकार” बताते हैं, तो कौन खरीदेगा? इसी तरह, थरूर का मानना हो सकता है कि “डेड इकोनॉमी” जैसे बयान भारत की आर्थिक साख को कमज़ोर करते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निवेश मुश्किल हो सकता है।

“डेड इकोनॉमी” और अंतर्राष्ट्रीय संबंध: एक जटिल जुड़ाव ( “Dead Economy” and International Relations: A Complex Interplay):

यह घटनाक्रम हमें सिखाता है कि घरेलू आर्थिक स्थितियाँ और अंतर्राष्ट्रीय संबंध कैसे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

कैसे “डेड इकोनॉमी” अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकती है?

  • निवेश का प्रवाह: जब कोई देश “डेड इकोनॉमी” की स्थिति में होता है, तो विदेशी निवेशक उस देश में निवेश करने से कतरा सकते हैं, क्योंकि उन्हें रिटर्न की उम्मीद कम होती है।
  • कूटनीतिक प्रभाव: आर्थिक रूप से कमजोर देश अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखने में कमज़ोर हो जाते हैं। अन्य देश आर्थिक मदद या सहयोग के लिए उन पर कम भरोसा कर सकते हैं।
  • भू-राजनीतिक समीकरण: यदि भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, तो यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है। प्रतिद्वंद्वी देश इसका फायदा उठा सकते हैं।
  • बातचीत की शक्ति: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों या वार्ताओं में, एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश अधिक लाभप्रद स्थिति में होता है।

कैसे अंतर्राष्ट्रीय संबंध घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं?

  • व्यापार समझौते: अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते भारतीय उद्योगों के लिए नए बाज़ार खोल सकते हैं और निर्यात बढ़ा सकते हैं।
  • एफडीआई (FDI): मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित होता है, जो पूंजी, प्रौद्योगिकी और रोज़गार लाता है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: अन्य देशों के साथ साझेदारी से उन्नत प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण होता है, जो उत्पादकता और नवाचार को बढ़ा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: आर्थिक संकट के समय, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (जैसे IMF, World Bank) या अन्य देश आर्थिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

“डेड इकोनॉमी” के संभावित कारण (Potential Causes of “Dead Economy”):

किसी देश की अर्थव्यवस्था के “डेड” होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. संरचनात्मक मुद्दे: नौकरशाही की बाधाएं, जटिल कर प्रणाली, भूमि अधिग्रहण की समस्याएं, श्रम कानूनों की कठोरता, और भ्रष्टाचार।
  2. नीतिगत विफलताएं: अव्यवस्थित मौद्रिक या राजकोषीय नीतियां, गलत व्यापार नीतियां, या प्रभावी औद्योगिक नीति का अभाव।
  3. मांग की कमी: आय असमानता, कम क्रय शक्ति, और उपभोक्ता विश्वास में गिरावट।
  4. निवेश की कमी: निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में निवेश की कमी, जो अक्सर अनिश्चितता, उच्च लागत या खराब बुनियादी ढांचे के कारण होती है।
  5. तकनीकी पिछड़ापन: नवाचार और स्वचालन में निवेश की कमी, जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है।
  6. वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ: मंदी, व्यापार युद्ध, या भू-राजनीतिक तनाव जो निर्यात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करते हैं।
  7. आंतरिक अस्थिरता: सामाजिक अशांति या राजनीतिक अस्थिरता भी आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकती है।

“डेड इकोनॉमी” के पक्ष और विपक्ष में तर्क (Arguments For and Against the “Dead Economy” Label):

“डेड इकोनॉमी” के पक्ष में तर्क (Arguments in favor of “Dead Economy”):

  • धीमी जीडीपी वृद्धि: जीडीपी वृद्धि दर का कई वर्षों तक अनुमानित लक्ष्यों से नीचे रहना।
  • बढ़ती बेरोजगारी: विशेष रूप से युवा और शिक्षित वर्ग के बीच रोज़गार के अवसरों की कमी।
  • कमज़ोर मांग: ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों में बिक्री का गिरना।
  • कम औद्योगिक उत्पादन: औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में ठहराव या गिरावट।
  • राजस्व में कमी: सरकार के कर राजस्व में अपेक्षा से कम वृद्धि।
  • निजी निवेश का अभाव: बड़ी परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की ओर से निवेश को लेकर हिचकिचाहट।

“डेड इकोनॉमी” के विपक्ष में तर्क (Arguments against “Dead Economy”):

  • सरकार का खंडन: सरकार अक्सर इन दावों को खारिज करती है और अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के आंकड़े पेश करती है।
  • सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन: सेवा क्षेत्र (जैसे IT, फिनटेक) का अच्छा प्रदर्शन, जो कुल जीडीपी में बड़ा योगदान देता है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार: मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार, जो बाहरी झटकों से निपटने में मदद करता है।
  • संरचनात्मक सुधार: सरकार द्वारा किए जा रहे संरचनात्मक सुधारों (जैसे IBC, GST) का दीर्घकालिक प्रभाव।
  • असमान विकास: यह तर्क दिया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा धीमा हो सकता है, लेकिन पूरा राष्ट्र “मृत” नहीं है।
  • आंकड़ों की व्याख्या: आर्थिक आंकड़ों की व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: मुख्य बिंदु (Relevance for UPSC: Key Points):

यह मामला UPSC परीक्षा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को छूता है:

1. अर्थव्यवस्था (Economy):

  • समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics): जीडीपी, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, राजकोषीय घाटा, चालू खाता घाटा (CAD), और निवेश जैसे मैक्रोइकॉनॉमिक संकेतक।
  • सरकारी नीतियां: मौद्रिक नीति (RBI द्वारा), राजकोषीय नीति (सरकार द्वारा), राजकोषीय समेकन, कर सुधार, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम।
  • रोज़गार सृजन: श्रम बल सर्वेक्षण, भारत में रोज़गार की स्थिति, और सरकार की रोज़गार सृजन की पहल।
  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्र: इन क्षेत्रों का प्रदर्शन, चुनौतियां और सरकारी नीतियां।
  • निवेश: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), पोर्टफोलियो निवेश, और घरेलू निवेश की गतिशीलता।

2. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations):

  • भारत-अमेरिका संबंध: रणनीतिक साझेदारी, व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और वीजा मुद्दे।
  • भू-राजनीति: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन, चीन का उदय, और भारत की विदेश नीति।
  • वैश्विक आर्थिक रुझान: वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध, और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का भारत पर प्रभाव।
  • कूटनीति: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति और छवि।

3. समसामयिक घटनाएँ (Current Affairs):

  • राजनीतिक बयानबाजी: प्रमुख राजनीतिक हस्तियों के बयान और उनके निहितार्थ।
  • विपक्ष की भूमिका: सरकार की नीतियों पर विपक्ष की आलोचना और वैकल्पिक दृष्टिकोण।
  • जनमत: सार्वजनिक धारणा और आर्थिक विश्वास।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. “डेड इकोनॉमी” शब्द का सबसे उपयुक्त वर्णन क्या है?

(a) एक ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ केवल कृषि क्षेत्र ही सक्रिय है।

(b) एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो धीमी वृद्धि, कम मांग और निवेश की कमी से ग्रस्त है।

(c) एक ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ केवल सरकार ही आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है।

(d) एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है।

उत्तर: (b)

व्याख्या: “डेड इकोनॉमी” एक ऐसी आर्थिक स्थिति को दर्शाता है जहाँ विकास दर बहुत कम हो जाती है, मांग कमजोर पड़ जाती है, निवेश आकर्षित नहीं होता और रोज़गार सृजन रुक जाता है। यह एक गतिहीन या सुस्त अर्थव्यवस्था का संकेत है।

2. निम्नलिखित में से कौन सी स्थिति भारत में “डेड इकोनॉमी” के लक्षणों का संकेत दे सकती है?

1. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में लगातार गिरावट।

2. ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि।

3. बढ़ती बेरोजगारी दर, विशेषकर युवाओं में।

4. सेवा क्षेत्र (जैसे IT) का मजबूत प्रदर्शन।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) 1 और 3 केवल

(b) 2 और 4 केवल

(c) 1, 2 और 3

(d) 1, 3 और 4

उत्तर: (a)

व्याख्या: औद्योगिक उत्पादन में गिरावट और बढ़ती बेरोजगारी “डेड इकोनॉमी” के लक्षण हैं। सेवा क्षेत्र का मजबूत प्रदर्शन अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की कमजोरी को संतुलित कर सकता है, लेकिन यह स्वयं “डेड इकोनॉमी” को नकारता नहीं है। ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में गिरावट “डेड इकोनॉमी” का संकेत है, वृद्धि नहीं।

3. समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?

(a) जीडीपी वृद्धि दर का गिरना अर्थव्यवस्था में मंदी का संकेत हो सकता है।

(b) कम राजकोषीय घाटा हमेशा अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होता है, चाहे कोई भी स्थिति हो।

(c) उच्च मुद्रास्फीति हमेशा अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होती है।

(d) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) केवल सेवा क्षेत्र को लाभ पहुंचाता है।

उत्तर: (a)

व्याख्या: जीडीपी वृद्धि दर का गिरना अर्थव्यवस्था में सुस्ती या मंदी का संकेत दे सकता है। राजकोषीय घाटे का स्तर अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। थोड़ी मुद्रास्फीति अक्सर विकास के लिए अच्छी होती है। FDI सभी क्षेत्रों को लाभ पहुंचा सकता है।

4. भारत-अमेरिका संबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन महत्वपूर्ण है?

1. अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार और निवेशक है।

2. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी भारत के लिए महत्वपूर्ण है।

3. अमेरिका के साथ संबंध केवल सैन्य सहयोग तक सीमित हैं।

4. भारत को अमेरिकी निवेश की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) 1 और 2 केवल

(b) 2 और 3 केवल

(c) 1, 2 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)

व्याख्या: अमेरिका भारत का एक प्रमुख व्यापारिक और निवेश भागीदार है, और इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक साझेदारी महत्वपूर्ण है। यह संबंध सैन्य, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य क्षेत्रों में फैला हुआ है, और भारत को अमेरिकी निवेश और सहयोग की आवश्यकता है।

5. “डेड इकोनॉमी” बयान का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

(a) यह भारत की आर्थिक क्षमता में विश्वास बढ़ा सकता है।

(b) यह विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।

(c) यह भारत की साख को कम कर सकता है और निवेश को हतोत्साहित कर सकता है।

(d) इसका अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

उत्तर: (c)

व्याख्या: “डेड इकोनॉमी” जैसे नकारात्मक बयान भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ा सकते हैं, जिससे विदेशी निवेशक हतोत्साहित हो सकते हैं और भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख प्रभावित हो सकती है।

6. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

(a) अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना।

(b) सरकारी खर्च और राजकोषीय घाटे को सीमित करना।

(c) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ाना।

(d) सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: FRBM अधिनियम का उद्देश्य सरकारी ऋण और राजकोषीय घाटे को एक निश्चित सीमा तक सीमित करके राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करना है।

7. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में मौद्रिक नीति (Monetary Policy) जारी करती है?

(a) वित्त मंत्रालय, भारत सरकार

(b) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

(c) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

(d) राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD)

उत्तर: (c)

व्याख्या: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत में मौद्रिक नीति का संचालन करता है, जिसका उद्देश्य मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।

8. “चालू खाता घाटा” (Current Account Deficit – CAD) से क्या तात्पर्य है?

(a) जब निर्यात, आयात से अधिक होता है।

(b) जब सेवाओं का निर्यात, माल के निर्यात से अधिक होता है।

(c) जब माल और सेवाओं के आयात का मूल्य, उनके निर्यात के मूल्य से अधिक होता है।

(d) जब सरकार का राजकोषीय घाटा अधिक होता है।

उत्तर: (c)

व्याख्या: चालू खाता घाटा तब होता है जब देश का माल और सेवाओं का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है, जो भुगतान संतुलन में असंतुलन को दर्शाता है।

9. निम्नलिखित में से कौन सी सरकार की राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) का एक उपकरण नहीं है?

(a) सरकारी व्यय

(b) कराधान

(c) ब्याज दरें

(d) सार्वजनिक ऋण

उत्तर: (c)

व्याख्या: ब्याज दरें मौद्रिक नीति का उपकरण हैं, जो केंद्रीय बैंक (RBI) द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। सरकारी व्यय, कराधान और सार्वजनिक ऋण राजकोषीय नीति के प्रमुख उपकरण हैं।

10. “स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स” (Structural Reforms) का क्या अर्थ है?

(a) अर्थव्यवस्था के दिन-प्रतिदिन के संचालन में छोटे बदलाव।

(b) अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक वृद्धि क्षमता को बढ़ाने के लिए मौलिक बदलाव।

(c) केवल मौद्रिक नीति में बदलाव।

(d) अल्पकालिक आर्थिक मंदी से निपटना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स का अर्थ है अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता, दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे, नियमों और संस्थानों में बड़े बदलाव लाना।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “डेड इकोनॉमी” के संदर्भ में राहुल गांधी के बयान का विश्लेषण करें। इस अवधारणा का भारतीय अर्थव्यवस्था के समष्टि आर्थिक संकेतकों (Macroeconomic Indicators) पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? भारत-अमेरिका संबंधों के दृष्टिकोण से इस तरह के बयानों की प्रासंगिकता पर भी चर्चा करें।

2. भारत की आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे संरचनात्मक सुधारों (Structural Reforms) की जांच करें। “डेड इकोनॉमी” जैसे शब्दों के प्रयोग से इन सुधारों की धारणा पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

3. वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक और रणनीतिक संबंध क्यों महत्वपूर्ण हैं? “डेड इकोनॉमी” जैसे घरेलू आर्थिक मुद्दे इन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इसका मूल्यांकन करें।

4. समष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए, “डेड इकोनॉमी” की स्थिति के कारणों और परिणामों की व्याख्या करें। इस स्थिति से निपटने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीति दोनों के संभावित उपायों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

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