ठाकरे भाईचारा: महाराष्ट्र की राजनीति में नया दांव?
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम देखने को मिला है, जिसने राजनीतिक पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के बीच बढ़ता भाईचारा (bonhomie) चर्चा का विषय बन गया है। यह मुलाकातें और सार्वजनिक रूप से दिख रहा स्नेह, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के बीच संभावित राजनीतिक गठबंधन की अटकलों को हवा दे रही हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह ठाकरे परिवार के बीच राजनीतिक पुनरुद्धार (political reset) की ओर एक कदम है, या केवल एक हताश फोटो-ऑप (desperate photo-op) है, या फिर एक सोची-समझी रणनीतिक चाल (strategic comeback) है?
यह घटनाक्रम महाराष्ट्र की जटिल और बहुआयामी राजनीति के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है। दोनों ही नेता बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाते हैं, और उनके अलग-अलग राजनीतिक रास्तों ने महाराष्ट्र की राजनीतिक एकता को प्रभावित किया है। इस लेख में, हम इस राजनीतिक पुनरुद्धार के कारणों, इसके संभावित प्रभावों, इसके पक्ष और विपक्ष में तर्कों, आने वाली चुनौतियों और भविष्य की राह पर विस्तार से चर्चा करेंगे, विशेष रूप से UPSC उम्मीदवारों के लिए जो भारतीय राजनीति और समसामयिक मामलों की गहरी समझ विकसित करना चाहते हैं।
ठाकरे परिवार का राजनीतिक सफर: एक संक्षिप्त अवलोकन
महाराष्ट्र की राजनीति को समझने के लिए, ठाकरे परिवार के राजनीतिक प्रभाव को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिवसेना की स्थापना 1966 में बाल ठाकरे द्वारा की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य मराठी अस्मिता और मुंबई के अधिकारों की रक्षा करना था। शिवसेना शीघ्र ही महाराष्ट्र की प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी।
- बाल ठाकरे: शिवसेना के संस्थापक और एक करिश्माई नेता, जिन्होंने मराठी मानस पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
- उद्धव ठाकरे: बाल ठाकरे के पुत्र, जिन्होंने पिता के बाद शिवसेना का नेतृत्व संभाला। उन्होंने शिवसेना को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेषकर 2019 में महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन का नेतृत्व करते हुए।
- राज ठाकरे: बाल ठाकरे के भतीजे और उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई। वे अपनी तीखी बयानबाजी और लोकलुभावन वादों के लिए जाने जाते हैं। 2006 में, उन्होंने शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की, जो युवा पीढ़ी और शहरी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हुई।
इन दोनों भाइयों के बीच हमेशा एक प्रतिद्वंद्विता रही है, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति को आकार दिया है। हालांकि, हालिया घटनाक्रम इस प्रतिद्वंद्विता में एक नए अध्याय की ओर इशारा कर रहा है।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य: एमवीए की स्थिति और भाजपा का प्रभाव
महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीतिक स्थिति अत्यंत गतिशील और अस्थिर है। 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) राज्य में एक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी है। महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और कांग्रेस शामिल हैं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना (शिंदे गुट) के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
इस बीच, भाजपा राज्य की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनी हुई है, और वे एमवीए को कमजोर करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। राज्य में विभिन्न उपचुनावों और आगामी चुनावों को देखते हुए, एमवीए के घटक दल अपनी स्थिति मजबूत करने के तरीके तलाश रहे हैं।
इसी पृष्ठभूमि में, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच बढ़ी हुई निकटता को देखा जा रहा है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस पुनर्मिलन के पीछे क्या राजनीतिक समीकरण काम कर रहे हैं।
उद्धव-राज भाईचारा: क्या यह एक रणनीतिक चाल है?
यह प्रश्न कि क्या यह भाईचारा एक “हताश फोटो-ऑप” है या “रणनीतिक वापसी”, ठाकरे परिवार के राजनीतिक पुनरुद्धार के इरादे को समझने की कुंजी है। आइए इसके पीछे के संभावित कारणों और रणनीतियों का विश्लेषण करें:
1. मराठी अस्मिता का पुनः धुव्रीकरण (Re-polarization of Marathi Identity):
बाल ठाकरे ने शिवसेना को मराठी गौरव और अस्मिता के प्रतीक के रूप में स्थापित किया था। शिवसेना में विभाजन के बाद, दोनों धड़े (उद्धव और शिंदे) खुद को बाल ठाकरे का असली उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। राज ठाकरे, जिन्होंने हमेशा मराठी एजेंडे पर जोर दिया है, इस समीकरण में एक महत्वपूर्ण कारक बन सकते हैं।
“मराठी माणूस आज अस्वस्थ आहे. त्याला एक मजबूत नेतृत्वाची गरज आहे. या दोन्ही भावांनी एकत्र येऊन मराठी अस्मितेचे प्रतिनिधित्व केले, तर ते जनमानसात एक सकारात्मक संदेश देऊ शकतात.”
यह कथन दर्शाता है कि दोनों नेताओं के प्रशंसक उन्हें मराठी अस्मिता के रक्षक के रूप में देखते हैं, और उनके एक साथ आने से इस भावना को और बल मिल सकता है।
2. एमवीए के भीतर की चुनौतियाँ और नए सहयोगियों की तलाश:
एमवीए गठबंधन के सामने अपनी एकजुटता बनाए रखने की चुनौती है। राजनीतिक रूप से, शिवसेना (यूबीटी) के लिए मनसे जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन करना, जो मराठी वोटों के एक हिस्से को आकर्षित करते हैं, फायदेमंद हो सकता है। यह न केवल एमवीए को मजबूत कर सकता है, बल्कि भाजपा और शिंदे गुट के गठबंधन के लिए एक नया राजनीतिक अवरोध भी पैदा कर सकता है।
3. पारंपरिक शिवसेना वोट बैंक को वापस जीतना:
शिवसेना में विभाजन के बाद, पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक बिखर गया है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, दोनों ही बाल ठाकरे के अनुयायी माने जाते हैं, और उनके बीच तालमेल उन मतदाताओं को आकर्षित करने में मदद कर सकता है जिन्होंने या तो शिवसेना (यूबीटी) या मनसे को वोट दिया था, या अभी भी अनिश्चित हैं।
4. व्यक्तिगत संबंध और पारिवारिक एकता:
राजनीतिक समीकरणों से परे, दोनों भाइयों के बीच व्यक्तिगत संबंध भी एक भूमिका निभा सकते हैं। बाल ठाकरे के निधन के बाद, परिवार में दूरियाँ बढ़ीं। अब, ये मुलाकातें परिवार के भीतर सुलह का संकेत भी हो सकती हैं, जो उनके समर्थकों के लिए भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण है।
5. “हमलावर” रणनीति (Aggressive Strategy) के लिए एक साथ आना:
राज ठाकरे अपनी आक्रामक और मुखर शैली के लिए जाने जाते हैं, जबकि उद्धव ठाकरे अधिक शांत और संगठनात्मक नेतृत्व प्रदान करते हैं। इन दोनों शैलियों का संयोजन एक प्रभावी राजनीतिक रणनीति बना सकता है, जो विरोधियों पर दबाव बना सके।
इस भाईचारे के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of this Bonhomie):
इस राजनीतिक पुनर्मिलन के कई संभावित सकारात्मक पहलू हो सकते हैं, खासकर उद्धव ठाकरे के खेमे के लिए:
- वोट बैंक का विस्तार: मनसे, हालांकि एक छोटा दल है, लेकिन उसके पास शहरी क्षेत्रों में एक समर्पित वोट बैंक है। उनके साथ आने से शिवसेना (यूबीटी) को नए क्षेत्रों में पैठ बनाने में मदद मिल सकती है।
- मजबूत विपक्ष का गठन: एमवीए के साथ मनसे का संभावित गठजोड़, महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट कर सकता है, जिससे आगामी चुनावों में उन्हें कड़ी चुनौती मिल सकती है।
- मराठी अस्मिता का पुनः दावा: दोनों ठाकरे चचेरे भाइयों का एक साथ आना, शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत को मजबूत कर सकता है और मराठी मानस को आकर्षित कर सकता है।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण को चुनौती: यह गठबंधन महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक विखंडन को चुनौती दे सकता है और एक अधिक एकीकृत क्षेत्रीय ताकत के रूप में उभर सकता है।
- भावनात्मक अपील: ठाकरे परिवार के सदस्य होने के नाते, उद्धव और राज की जोड़ी में मतदाताओं के लिए एक मजबूत भावनात्मक अपील है, जो पिछले नुकसान की भरपाई कर सकती है।
केस स्टडी: 2006 में मनसे की स्थापना के बाद, राज ठाकरे ने अपने भाषणों में लगातार “मराठी माणूस” (मराठी व्यक्ति) के अधिकारों और सम्मान की बात की। इससे उन्हें मुंबई, पुणे और अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों में युवाओं और असंतुष्ट मतदाताओं का समर्थन मिला। यदि वे अब शिवसेना (यूबीटी) के साथ आते हैं, तो यह मराठी वोट बैंक को और मजबूत कर सकता है।
इस भाईचारे के विपक्ष में तर्क (Arguments Against this Bonhomie):
हालांकि, इस पुनर्मिलन के अपने जोखिम और चुनौतियाँ भी हैं:
- वैचारिक मतभेद: समय के साथ, दोनों दलों के एजेंडे और विचारधारा में सूक्ष्म अंतर आए हैं। इन अंतरों को पाटना आसान नहीं होगा।
- नेतृत्व को लेकर संघर्ष: दोनों नेता करिश्माई हैं और उनके अपने अनुयायी हैं। गठबंधन की स्थिति में नेतृत्व को लेकर आंतरिक संघर्ष की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
- मतदाताओं का भ्रम: यदि यह गठबंधन केवल अस्थायी या स्वार्थपूर्ण लगता है, तो यह मतदाताओं को भ्रमित कर सकता है और पार्टी की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।
- मनसे का सीमित प्रभाव: मनसे का प्रभाव मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और कुछ विशेष समुदायों तक सीमित रहा है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बड़े राजनीतिक बदलाव लाने के लिए उनका प्रभाव अभी भी सीमित है।
- “हताश फोटो-ऑप” की छवि: यदि यह गठबंधन सत्ता हासिल करने के लिए हताश प्रयास के रूप में देखा जाता है, तो यह दोनों नेताओं की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
उपमा: इसे ऐसे समझें जैसे दो अलग-अलग नदियों का मिलन हो रहा है। दोनों नदियाँ शक्तिशाली हो सकती हैं, लेकिन उनके मिलने पर धाराएं आपस में टकरा सकती हैं, या वे एक नई, अधिक शक्तिशाली धारा बना सकती हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे एक-दूसरे के साथ कितनी अच्छी तरह तालमेल बिठा पाते हैं।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच की यह बढ़ी हुई निकटता यदि एक वास्तविक राजनीतिक गठबंधन का रूप लेती है, तो इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा:
- साझा एजेंडा तैयार करना: दोनों दलों को एक साझा एजेंडा विकसित करना होगा जो उनके अलग-अलग आधारों को आकर्षित करे।
- वैचारिक मतभेदों को सुलझाना: शिवसेना (यूबीटी) ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और एनसीपी जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन किया है, जबकि मनसे का रुख समय-समय पर बदलता रहा है। इन वैचारिक भेदों को कैसे पाटा जाएगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
- एकजुट नेतृत्व स्थापित करना: यदि वे एक साथ आते हैं, तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन नेतृत्व करेगा और निर्णय कैसे लिए जाएंगे।
- जनता का विश्वास जीतना: मतदाताओं को यह विश्वास दिलाना कि यह गठबंधन केवल सत्ता की लालसा से प्रेरित नहीं है, बल्कि राज्य के भविष्य के लिए एक ठोस योजना का हिस्सा है, एक बड़ी चुनौती होगी।
- चुनाव आयोग और कानूनी मुद्दे: शिवसेना के विभाजन से जुड़े कानूनी और चुनाव आयोग के मामले अभी भी चल रहे हैं, जिनका प्रभाव किसी भी गठबंधन पर पड़ सकता है।
“राजनीति में कोई भी रिश्ता स्थायी या अस्थायी नहीं होता। हर कदम का अपना रणनीतिक महत्व होता है।”
यह उद्धरण दर्शाता है कि वर्तमान घटनाक्रम को विशुद्ध रूप से राजनीतिक नजरिए से देखना चाहिए। भविष्य में, यह गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति को नया आकार दे सकता है, या फिर यह एक छोटा राजनीतिक प्रयोग बनकर रह सकता है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:
- भारतीय राजनीति का विश्लेषण: यह दल-बदल, गठबंधन राजनीति, क्षेत्रीय दलों की भूमिका और राजनीतिक रणनीतियों को समझने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- महाराष्ट्र की राजनीति: यह घटनाक्रम महाराष्ट्र की विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति, शिवसेना के उदय और पतन, और मराठा वोटों के महत्व को समझने में मदद करता है।
- साम्प्रदायिकता और क्षेत्रवाद: मराठी अस्मिता और क्षेत्रीय गौरव के मुद्दे भारतीय राजनीति में हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। यह घटनाक्रम इन मुद्दों की निरंतर प्रासंगिकता को दर्शाता है।
- संवैधानिक और चुनावी प्रक्रियाएं: दल-बदल कानून, चुनाव आयोग की भूमिका, और राजनीतिक दलों के पंजीकरण जैसे विषयों से संबंधित ज्ञान को व्यवहारिक रूप से समझने में मदद मिलती है।
- संचार और नेतृत्व: दोनों नेताओं की संचार शैली और नेतृत्व की क्षमताएं, और उनका प्रभाव, लोक प्रशासन और नेतृत्व के सिद्धांतों का अध्ययन करने वाले उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक हो सकती हैं।
तुलनात्मक अध्ययन: अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों के बीच गठबंधन, जैसे कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का पूर्व गठबंधन, या पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का उदय, महाराष्ट्र की स्थिति को समझने के लिए एक तुलनात्मक आधार प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच बढ़ी हुई निकटता महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण है। यह “ठाकरे भाईचारा” चाहे एक “हताश फोटो-ऑप” हो या “रणनीतिक वापसी”, यह निश्चित रूप से दोनों नेताओं और उनके दलों के भविष्य को प्रभावित करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे मराठी अस्मिता के एक नए प्रतीक के रूप में उभरते हैं, या वे सत्ता के खेल में एक और अध्याय जोड़ते हैं।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति की जटिलता, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और सामूहिक कार्रवाई के बीच की महीन रेखा, और बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के अनुकूल होने के महत्व को समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि राजनीति एक गतिशील क्षेत्र है, और भविष्य के परिणाम केवल समय के साथ ही स्पष्ट होंगे।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: शिवसेना की स्थापना निम्नलिखित में से किस वर्ष हुई थी?
(a) 1956
(b) 1966
(c) 1976
(d) 1986
उत्तर: (b) 1966
व्याख्या: शिवसेना की स्थापना 1966 में बाल ठाकरे द्वारा की गई थी। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के संस्थापक हैं?
(a) उद्धव ठाकरे
(b) शरद पवार
(c) राज ठाकरे
(d) एकनाथ शिंदे
उत्तर: (c) राज ठाकरे
व्याख्या: राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की थी। - प्रश्न: महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में कौन से प्रमुख दल शामिल हैं?
(a) शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी, कांग्रेस
(b) भाजपा, शिवसेना (शिंदे), राकांपा (अजित पवार)
(c) शिवसेना (यूबीटी), भाजपा, कांग्रेस
(d) एनसीपी, कांग्रेस, आप
उत्तर: (a) शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी, कांग्रेस
व्याख्या: महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस शामिल हैं। - प्रश्न: हालिया राजनीतिक घटनाओं के संदर्भ में, उद्धव ठाकरे किस पार्टी के गुट का नेतृत्व करते हैं?
(a) शिवसेना
(b) शिवसेना (शिंदे गुट)
(c) शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)
(d) महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना
उत्तर: (c) शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)
व्याख्या: शिवसेना में विभाजन के बाद, उद्धव ठाकरे शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट का नेतृत्व करते हैं। - प्रश्न: बाल ठाकरे ने किस राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा दिया?
(a) धर्मनिरपेक्षता
(b) मराठी अस्मिता और मराठी मानस का उत्थान
(c) राष्ट्रीय एकीकरण
(d) वामपंथी विचारधारा
उत्तर: (b) मराठी अस्मिता और मराठी मानस का उत्थान
व्याख्या: बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना मराठी अस्मिता और मराठी लोगों के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से की थी। - प्रश्न: राज ठाकरे द्वारा स्थापित मनसे का मुख्य जोर किस पर रहा है?
(a) राष्ट्रीय सुरक्षा
(b) शहरी विकास
(c) मराठी मुद्दों और मराठी भाषी लोगों का संरक्षण
(d) किसानों के मुद्दे
उत्तर: (c) मराठी मुद्दों और मराठी भाषी लोगों का संरक्षण
व्याख्या: राज ठाकरे ने मनसे के माध्यम से हमेशा मराठी एजेंडे और मराठी लोगों के हितों पर जोर दिया है। - प्रश्न: महाराष्ट्र में शिवसेना में विभाजन का मुख्य कारण क्या था?
(a) वैचारिक मतभेद
(b) नेतृत्व को लेकर आंतरिक कलह और सरकार गठन को लेकर मतभेद
(c) बाहरी राजनीतिक दबाव
(d) आर्थिक मुद्दे
उत्तर: (b) नेतृत्व को लेकर आंतरिक कलह और सरकार गठन को लेकर मतभेद
व्याख्या: शिवसेना में विभाजन का एक प्रमुख कारण नेतृत्व और सरकार गठन (2022 महाराष्ट्र राजनीतिक संकट) को लेकर मतभेद थे, जिसके परिणामस्वरूप एकनाथ शिंदे ने बहुमत के साथ भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। - प्रश्न: यदि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच गठबंधन होता है, तो यह किस राजनीतिक दल के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश कर सकता है?
(a) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)
(b) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(c) भारतीय जनता पार्टी (BJP)
(d) आम आदमी पार्टी (AAP)
उत्तर: (c) भारतीय जनता पार्टी (BJP)
व्याख्या: दोनों ठाकरे गुटों का एक साथ आना महाराष्ट्र में भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है, खासकर मराठी वोट बैंक को प्रभावित करके। - प्रश्न: महाराष्ट्र की राजनीति में “मराठी मानस” का क्या महत्व है?
(a) यह केवल एक सांस्कृतिक पहचान है।
(b) यह एक राजनीतिक शक्ति है जो चुनावों को प्रभावित करती है।
(c) यह मुख्य रूप से शहरी मतदाताओं से जुड़ा है।
(d) यह केवल शिवसेना से जुड़ा है।
उत्तर: (b) यह एक राजनीतिक शक्ति है जो चुनावों को प्रभावित करती है।
व्याख्या: “मराठी मानस” महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ध्रुवीकरण कारक रहा है, जिसने दलों की चुनावी सफलता को प्रभावित किया है। - प्रश्न: किस राज्य में हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक संकट देखा गया, जिसके कारण शिवसेना में विभाजन हुआ?
(a) गुजरात
(b) मध्य प्रदेश
(c) महाराष्ट्र
(d) राजस्थान
उत्तर: (c) महाराष्ट्र
व्याख्या: 2022 में महाराष्ट्र में एक राजनीतिक संकट देखा गया, जिसने उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा दिया और शिवसेना के विभाजन का मार्ग प्रशस्त किया।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के दो प्रमुख व्यक्तियों, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच संभावित पुनर्मिलन के कारणों और इसके संभावित राजनीतिक प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इस गठबंधन को “हताश फोटो-ऑप” या “रणनीतिक वापसी” के रूप में देखने के तर्कों पर चर्चा करें।
- प्रश्न: शिवसेना में विभाजन के बाद महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य कैसे बदल गया है? उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुटों के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा और भविष्य में मनसे के साथ शिवसेना (यूबीटी) के संभावित गठबंधन का राज्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
- प्रश्न: भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के बीच गठबंधन की गतिशीलता पर एक टिप्पणी लिखें। महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के बीच संभावित तालमेल को इस व्यापक संदर्भ में कैसे देखा जा सकता है?
- प्रश्न: “मराठी अस्मिता” की राजनीति ने महाराष्ट्र के राजनीतिक विकास को कैसे आकार दिया है? ठाकरे भाइयों के बीच तालमेल इस राजनीतिक चेतना को किस हद तक पुनर्जीवित या पुनः परिभाषित कर सकता है?