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ट्रम्प के रूस टैरिफ का वैश्विक पटल पर प्रभाव: चीन का पुनरुत्थान और भारत की रणनीतिक दुविधा

ट्रम्प के रूस टैरिफ का वैश्विक पटल पर प्रभाव: चीन का पुनरुत्थान और भारत की रणनीतिक दुविधा

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के वर्षों में, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीति के बीच का संबंध लगातार जटिल होता गया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों पर लगाए गए टैरिफ (जैसे रूस पर) ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, द्विपक्षीय संबंधों और यहाँ तक कि प्रमुख शक्तियों के बीच शक्ति संतुलन को भी प्रभावित किया है। मूल समाचार शीर्षक, “India in crosshairs: Trump’s Russia tariffs- How it could make China great again,” एक ऐसे परिदृश्य को इंगित करता है जहाँ अमेरिका की एक नीति (रूस पर टैरिफ) का अप्रत्याशित परिणाम चीन के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, और इसके भारत जैसे अन्य देशों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकते हैं। यह लेख UPSC उम्मीदवारों के लिए इस बहुआयामी मुद्दे का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें इसके कारणों, प्रभावों, भारत के लिए निहितार्थों और भविष्य की राह पर प्रकाश डाला गया है।

1. भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि और ट्रम्प की ‘टैरिफ कूटनीति’ (Geopolitical Context and Trump’s ‘Tariff Diplomacy’)

डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति कार्यकाल “अमेरिका फर्स्ट” की नीति के साथ-साथ आक्रामक व्यापार प्रथाओं और टैरिफ के उपयोग के लिए जाना जाता है। ट्रम्प प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा, अनुचित व्यापार प्रथाओं को दूर करने और अमेरिकी उद्योगों की रक्षा जैसे कारणों से चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा, मैक्सिको और रूस सहित कई देशों पर टैरिफ लगाए।

“टैरिफ केवल एक आर्थिक उपकरण नहीं हैं; वे भू-राजनीतिक शक्ति को प्रदर्शित करने और अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार को निर्देशित करने का एक तरीका हैं।”

रूस पर टैरिफ की बात करें तो, इसके कई कारण थे, जिनमें रूस की कथित आक्रामक विदेश नीति, मानवाधिकारों का उल्लंघन और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन न करना शामिल था। हालाँकि, इन टैरिफ का उद्देश्य सीधे तौर पर रूस की अर्थव्यवस्था को लक्षित करना था, लेकिन इसके व्यापक, अप्रत्यक्ष प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखे गए।

ट्रम्प की टैरिफ कूटनीति की मुख्य विशेषताएं:

  • अक्षमता (Unpredictability): टैरिफ की घोषणाएं अक्सर अचानक और बिना पूर्व सूचना के होती थीं, जिससे बाजारों में अनिश्चितता बढ़ती थी।
  • बहु-मोर्चे (Multi-front): ट्रम्प प्रशासन ने एक साथ कई देशों पर विभिन्न आधारों पर टैरिफ लगाए।
  • पारस्परिकता का अभाव (Lack of Reciprocity): ट्रम्प का मानना ​​था कि अमेरिका के साथ व्यापार में अन्य देश अनुचित लाभ उठाते हैं, और टैरिफ इसका जवाब थे।
  • भू-राजनीतिक दांव (Geopolitical Stakes): टैरिफ को केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साधनों के रूप में भी इस्तेमाल किया गया।

2. “रूस पर टैरिफ” का जटिल ताना-बाना (The Complex Web of “Tariffs on Russia”)

यह समझना महत्वपूर्ण है कि “रूस पर टैरिफ” शब्द अपने आप में बहुत व्यापक है। ट्रम्प प्रशासन ने विभिन्न अवसरों पर रूस पर टैरिफ लगाए, जो विशिष्ट उत्पादों, उद्योगों या विशिष्ट प्रतिबंधों से जुड़े थे। उदाहरण के लिए:

  • एल्यूमीनियम पर टैरिफ: 2018 में, अमेरिकी सरकार ने रूसी स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाए, जिसका सीधा असर इन धातुओं के वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं पर पड़ा।
  • अन्य विशिष्ट उत्पाद: विभिन्न सुरक्षा चिंताओं या व्यापार विवादों के कारण अन्य विशिष्ट रूसी निर्यातकों पर भी टैरिफ लगाए गए।

इन टैरिफ का तत्काल प्रभाव रूस की अर्थव्यवस्था पर पड़ा, जिससे उसके निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो गया। इससे रूसी कंपनियों को अपने उत्पादों के लिए वैकल्पिक बाजार खोजने या अपनी लागत संरचना को समायोजित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

3. चीन को “ग्रेट अगेन” बनाने का अप्रत्याशित लाभ (The Unexpected Advantage of Making China “Great Again”)

यह हिस्सा लेख का मुख्य आकर्षण है, जहाँ हम समझते हैं कि कैसे रूस पर लगाए गए टैरिफ चीन के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। यह एक प्रकार का “जियोपॉलिटिकल कास्केडिंग इफ़ेक्ट” (Geopolitical Cascading Effect) है, जहाँ एक देश की कार्रवाई अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे के लिए अवसर पैदा करती है।

कैसे? (How?):

  1. धातु बाजार में बदलाव: मान लीजिए कि अमेरिका ने रूस से आयातित एल्यूमीनियम या स्टील पर टैरिफ बढ़ा दिए। इससे अमेरिकी बाजार में इन धातुओं की आपूर्ति कम हो गई और कीमतें बढ़ गईं।

    • चीन के लिए अवसर: ऐसे में, चीन, जो एक प्रमुख धातु उत्पादक है, अपने उत्पादों को अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर पेश कर सकता है। इससे रूसी धातुओं का बाजार कम हो जाएगा, और चीन का बाजार हिस्सा बढ़ जाएगा।
    • सब्सटीट्यूशन इफ़ेक्ट (Substitution Effect): अमेरिकी उपभोक्ता और निर्माता, जो रूसी धातुओं पर निर्भर थे, अब चीनी आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख कर सकते हैं।
  2. ऊर्जा बाजार पर प्रभाव: रूस ऊर्जा, विशेष रूप से तेल और गैस का एक प्रमुख निर्यातक है। यदि रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों या टैरिफ के कारण उसकी निर्यात क्षमता प्रभावित होती है, तो इससे वैश्विक ऊर्जा की कीमतों में उतार-चढ़ाव आ सकता है।

    • चीन का लाभ: चीन ऊर्जा का एक बड़ा आयातक है। यदि रूस अपने ऊर्जा निर्यात को अमेरिका जैसे पश्चिमी बाजारों की ओर मोड़ने में असमर्थ है, तो वह चीन को अधिक अनुकूल कीमतों पर ऊर्जा की पेशकश कर सकता है। इससे चीन की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी और उसकी औद्योगिक लागत कम होगी, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  3. रणनीतिक साझेदारी का सुदृढ़ीकरण: जब पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो रूस अक्सर अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए अन्य देशों, विशेष रूप से चीन की ओर देखता है।

    • “एंटी-वेस्ट” ब्लॉक: यह रूस को चीन के करीब लाता है, जिससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक सहयोग बढ़ता है। यह “पश्चिम-विरोधी” या “अमेरिकी-विरोधी” ध्रुवीकरण को मजबूत कर सकता है, जहाँ चीन और रूस एक-दूसरे को पश्चिमी दबाव का मुकाबला करने में मदद करते हैं।
    • कमोडिटी एक्सचेंज: रूस अपनी ऊर्जा और अन्य कमोडिटीज के बदले चीन से विनिर्माण सामान या प्रौद्योगिकी प्राप्त कर सकता है, जो सीधे तौर पर चीन के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देता है।
  4. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन: टैरिफ और प्रतिबंधों के कारण, कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की कोशिश करती हैं।

    • चीन का प्रभुत्व: कुछ मामलों में, चीन को एक विश्वसनीय (या कम से कम एक व्यवहार्य) विकल्प के रूप में देखा जा सकता है, खासकर यदि वह टैरिफ से अप्रभावित हो या उससे लाभान्वित हो रहा हो।

“वैश्विक अर्थव्यवस्था एक जुड़े हुए जाल की तरह है। एक सिरे पर बांधा गया एक गाँठ, अप्रत्याशित जगहों पर खिंचाव पैदा कर सकता है।”

4. भारत के लिए निहितार्थ: “क्रॉसहेयर्स” में क्यों? (Implications for India: Why in the “Crosshairs”?)

अब सवाल उठता है कि भारत इस पूरे परिदृश्य में कहाँ खड़ा है? भारत, अपने आप में, इन वैश्विक उथल-पुथल से अप्रभावित नहीं रह सकता। भारत के “क्रॉसहेयर्स” में होने के कई कारण हो सकते हैं:

  • व्यापारिक संबंध:

    • एल्यूमीनियम/स्टील: यदि अमेरिका ने रूसी एल्यूमीनियम/स्टील पर टैरिफ बढ़ाया, और भारत भी इन धातुओं का एक प्रमुख उपभोक्ता या उत्पादक है, तो वैश्विक कीमतों में वृद्धि से भारतीय उद्योगों पर भी दबाव आ सकता है।
    • ऊर्जा: भारत ऊर्जा का एक शुद्ध आयातक है। यदि रूस के निर्यात पैटर्न बदलते हैं, तो भारत को ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, या कीमतों में वृद्धि का अनुभव हो सकता है।
  • भू-राजनीतिक गठबंधन:

    • अमेरिका-भारत संबंध: भारत के अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, खासकर चीन की बढ़ती शक्ति के जवाब में। यदि अमेरिका की नीतियां, जैसे रूस पर टैरिफ, अप्रत्यक्ष रूप से चीन को लाभ पहुँचाती हैं, तो यह भारत के रणनीतिक हितों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
    • रूस-भारत संबंध: भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत रक्षा और आर्थिक संबंध रहे हैं। रूस पर पश्चिमी दबाव बढ़ने से भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में मुश्किल हो सकती है।
  • आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान:

    • चीन पर निर्भरता: यदि टैरिफ या प्रतिबंधों के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित होती हैं, तो भारत को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने या वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने की आवश्यकता पड़ सकती है। ऐसे में, यदि चीन खुद को मजबूत स्थिति में पाता है, तो भारत के लिए यह एक चुनौती होगी।
  • “चाइना प्लस वन” रणनीति पर प्रभाव: भारत “चाइना प्लस वन” रणनीति को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें कंपनियां चीन के अलावा अन्य देशों में भी निवेश करें। यदि चीन टैरिफ के कारण लाभान्वित होता है, तो यह “प्लस वन” वाले देशों के लिए प्रतिस्पर्धा को और कठिन बना सकता है।

5. आर्थिक और भू-राजनीतिक विश्लेषण (Economic and Geopolitical Analysis)

इस पूरी स्थिति को समझने के लिए हमें कुछ प्रमुख आर्थिक और भू-राजनीतिक सिद्धांतों पर विचार करना होगा:

  • तुलनात्मक लाभ (Comparative Advantage): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इस सिद्धांत पर आधारित है कि देश उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में विशेषज्ञता हासिल करें जिनमें वे सबसे अधिक कुशल हैं। टैरिफ इस सिद्धांत को विकृत कर सकते हैं।
  • मांग और आपूर्ति (Demand and Supply): टैरिफ कृत्रिम रूप से किसी वस्तु की आपूर्ति को कम करके उसकी मांग को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कीमतें बढ़ती हैं।
  • सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्थाओं और सुरक्षा को बाहरी दबावों से मुक्त रखने का प्रयास करते हैं। रूस पर टैरिफ उसकी सामरिक स्वायत्तता को प्रभावित करने का एक प्रयास था, लेकिन इसके अप्रत्यक्ष परिणाम हुए।
  • पॉवर शिफ्ट (Power Shift): भू-राजनीति में, एक शक्ति के कमजोर होने से अक्सर दूसरी शक्ति के मजबूत होने का मार्ग प्रशस्त होता है। यदि रूस पश्चिमी प्रतिबंधों से कमजोर होता है, तो चीन को वैश्विक मंच पर अधिक शक्ति मिल सकती है।

“भू-राजनीति में शून्य-योग खेल (zero-sum game) की धारणाएं अक्सर जटिल और अप्रत्याशित परिणामों को जन्म देती हैं।”

6. चुनौतियाँ और अवसर (Challenges and Opportunities)

भारत के लिए चुनौतियाँ:

  • बढ़ती ऊर्जा कीमतें: रूस से ऊर्जा की आपूर्ति में अनिश्चितता या कीमतों में वृद्धि भारत के व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है।
  • आर्थिक प्रतिस्पर्धा: यदि चीन टैरिफ के कारण अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाता है, तो भारत के लिए वैश्विक बाजारों में अपनी स्थिति बनाए रखना कठिन हो सकता है।
  • सामरिक संतुलन: भारत को अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना होगा, खासकर जब ये दोनों देश भू-राजनीतिक तनाव में हों।
  • आपूर्ति श्रृंखला की निर्भरता: भारत को चीन पर अपनी विनिर्माण निर्भरता कम करने के लिए अपनी घरेलू उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करना होगा।

भारत के लिए अवसर:

  • रणनीतिक साझेदारी का पुनर्मूल्यांकन: यह भारत को अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने और नए गठजोड़ बनाने का अवसर प्रदान कर सकता है।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान भारत को “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलों को तेज करने और घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: भारत को रूसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करके अन्य देशों से ऊर्जा आयात के स्रोतों में विविधता लानी चाहिए।
  • “लुक ईस्ट” और “एक्ट ईस्ट” नीतियों को सुदृढ़ करना: भारत को अपने पड़ोसियों और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करने चाहिए।

7. भविष्य की राह: भारत की रणनीति (The Way Forward: India’s Strategy)

इस जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में, भारत के लिए एक सुविचारित और सक्रिय रणनीति अपनाना महत्वपूर्ण है:

  1. विविधीकरण (Diversification):

    • आर्थिक: ऊर्जा, कच्चे माल और विनिर्माण वस्तुओं के लिए अपने आपूर्तिकर्ता आधार का विविधीकरण करें।
    • रणनीतिक: अपने अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करें, न केवल पारंपरिक सहयोगियों के साथ, बल्कि उभरती शक्तियों के साथ भी।
  2. आत्मनिर्भरता (Self-Reliance): महत्वपूर्ण क्षेत्रों, विशेष रूप से रक्षा, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता बढ़ाना।
  3. संतुलित विदेश नीति (Balanced Foreign Policy): भारत को किसी एक महाशक्ति के साथ पूरी तरह से संरेखित होने के बजाय अपनी “सामरिक स्वायत्तता” बनाए रखनी चाहिए। रूस के साथ पुराने संबंधों को बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ साझेदारी को मजबूत करना एक नाजुक संतुलन का कार्य है।
  4. मजबूत कूटनीति (Strong Diplomacy): बहुपक्षीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाना और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों को बनाए रखने तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए लॉबिंग करना।
  5. नवाचार और प्रौद्योगिकी (Innovation and Technology): अनुसंधान और विकास में निवेश करके तथा उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करके अपनी आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना।

निष्कर्ष (Conclusion)

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा रूस पर लगाए गए टैरिफ, भले ही सीधे तौर पर चीन को लक्षित न करते हों, लेकिन एक अप्रत्यक्ष तरीके से चीन के लिए वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर पैदा कर सकते हैं। यह वैश्विक व्यापार, आपूर्ति श्रृंखलाओं और भू-राजनीतिक गठबंधनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। भारत, इस गतिशील परिदृश्य में, एक नाजुक संतुलनकारी भूमिका में है। यह न केवल उन आर्थिक झटकों से प्रभावित हो सकता है जो उसके द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित करते हैं, बल्कि चीन की बढ़ती शक्ति से भी उसे रणनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों को सक्रिय रूप से अनुकूलित करे, विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करे, आत्मनिर्भरता को मजबूत करे, और अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और प्रभावी भूमिका निभाए। यह जटिल अंतरराष्ट्रीय संबंध और आर्थिक नीतियों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो UPSC उम्मीदवारों को समकालीन विश्व की जटिलताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रदान करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत कई देशों पर टैरिफ लगाए।
2. रूस पर टैरिफ लगाने के मुख्य कारणों में से एक रूस की आक्रामक विदेश नीति थी।
3. टैरिफ को केवल आर्थिक नीति माना जाता है, इसका भू-राजनीति से कोई संबंध नहीं होता।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 1 और 2
व्याख्या: कथन 3 गलत है। टैरिफ को भू-राजनीतिक शक्ति प्रदर्शित करने और अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार को निर्देशित करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा कि ट्रम्प प्रशासन के कार्यों से स्पष्ट है।

2. “जियोपॉलिटिकल कास्केडिंग इफ़ेक्ट” का क्या अर्थ है?
(a) किसी एक देश की कार्रवाई का अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे देश के लिए अवसर पैदा करना।
(b) एक देश की आर्थिक वृद्धि का दूसरे देश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना।
(c) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अचानक बड़ी गिरावट।
(d) एक देश द्वारा दूसरे देश पर व्यापार प्रतिबंध लगाना।
उत्तर: (a) किसी एक देश की कार्रवाई का अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे देश के लिए अवसर पैदा करना।
व्याख्या: यह शब्द बताता है कि कैसे एक घटना या नीति के अप्रत्याशित, दूरगामी परिणाम हो सकते हैं जो अन्य अभिनेताओं को प्रभावित करते हैं, सकारात्मक या नकारात्मक रूप से।

3. यदि अमेरिका रूस से आयातित एल्यूमीनियम पर टैरिफ बढ़ाता है, तो इससे निम्न में से किस देश को अप्रत्यक्ष लाभ होने की संभावना है?
(a) भारत
(b) चीन
(c) ब्राजील
(d) दक्षिण अफ्रीका
उत्तर: (b) चीन
व्याख्या: चीन एक प्रमुख एल्यूमीनियम उत्पादक है। यदि रूसी एल्यूमीनियम महंगा हो जाता है, तो चीनी एल्यूमीनियम अमेरिकी बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकता है, जिससे चीन का बाजार हिस्सा बढ़ सकता है।

4. “सब्सटीट्यूशन इफ़ेक्ट” (Substitution Effect) का तात्पर्य है:
(a) किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर उपभोक्ता द्वारा दूसरी, सस्ती वस्तु की ओर रुख करना।
(b) टैरिफ के कारण एक देश से दूसरे देश में आपूर्ति श्रृंखलाओं का स्थानांतरण।
(c) किसी उत्पाद के उत्पादन की लागत में कमी।
(d) आयातित वस्तुओं पर अधिक कर लगाना।
उत्तर: (a) किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर उपभोक्ता द्वारा दूसरी, सस्ती वस्तु की ओर रुख करना।
व्याख्या: यह आर्थिक सिद्धांत बताता है कि कैसे उपभोक्ता अपनी क्रय शक्ति को अधिकतम करने के लिए बदलती कीमतों पर प्रतिक्रिया करते हैं।

5. भारत के “क्रॉसहेयर्स” में होने का कारण निम्नलिखित में से कौन सा हो सकता है?
1. भारत के अमेरिका के साथ मजबूत होते रणनीतिक संबंध।
2. भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रक्षा संबंध।
3. “चाइना प्लस वन” रणनीति पर भारत का जोर।
उपरोक्त में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (c) 1, 2 और 3
व्याख्या: ये सभी कारक भारत को वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों के केंद्र में रखते हैं, खासकर जब अमेरिका-रूस-चीन के बीच संबंध बदलते हैं।

6. निम्नलिखित में से कौन सा कथन “अमेरिकी फर्स्ट” नीति का सबसे अच्छा वर्णन करता है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देना।
(b) अमेरिकी हितों और घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देना, भले ही इसका मतलब संरक्षणवाद हो।
(c) मुक्त व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना।
(d) वैश्विक मुद्दों पर तटस्थ रहना।
उत्तर: (b) अमेरिकी हितों और घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देना, भले ही इसका मतलब संरक्षणवाद हो।
व्याख्या: यह नीति अमेरिकी नौकरियों, उद्योगों और राष्ट्रीय सुरक्षा को वैश्विक मुद्दों से ऊपर रखती थी।

7. ऊर्जा के संदर्भ में, भारत के लिए एक शुद्ध आयातक होने का क्या अर्थ है?
(a) भारत ऊर्जा का उत्पादन करने के बजाय उसका निर्यात करता है।
(b) भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर करता है।
(c) भारत ऊर्जा के उत्पादन और खपत दोनों में आत्मनिर्भर है।
(d) भारत ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली नीतियों का समर्थन करता है।
उत्तर: (b) भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर करता है।
व्याख्या: शुद्ध आयातक वह देश होता है जो अपने घरेलू उत्पादन से अधिक मात्रा में वस्तुओं का आयात करता है।

8. “सामरिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) का तात्पर्य है:
(a) पूरी तरह से किसी एक शक्तिशाली देश पर निर्भर रहना।
(b) अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में स्वतंत्र होना, बाहरी दबावों से मुक्त।
(c) केवल आर्थिक नीतियां बनाना।
(d) अन्य देशों के साथ गठबंधन करना।
उत्तर: (b) अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में स्वतंत्र होना, बाहरी दबावों से मुक्त।
व्याख्या: यह एक राष्ट्र की अपनी विदेश, रक्षा और आर्थिक नीतियों को तय करने की क्षमता को संदर्भित करता है।

9. “चाइना प्लस वन” रणनीति का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) चीन के साथ अपने व्यापार को दोगुना करना।
(b) कंपनियों को चीन के अलावा अन्य देशों में भी निवेश और उत्पादन के विकल्प तलाशने के लिए प्रोत्साहित करना।
(c) केवल चीनी उत्पादों का आयात करना।
(d) चीन की बढ़ती आर्थिक शक्ति को रोकना।
उत्तर: (b) कंपनियों को चीन के अलावा अन्य देशों में भी निवेश और उत्पादन के विकल्प तलाशने के लिए प्रोत्साहित करना।
व्याख्या: यह आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की एक वैश्विक रणनीति है।

10. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण भारत किस नीति को तेज कर सकता है?
(a) “मेक इन इंडिया”
(b) “आत्मनिर्भर भारत”
(c) “डिजिटल इंडिया”
(d) “स्किल इंडिया”
उत्तर: (b) “आत्मनिर्भर भारत”
व्याख्या: “आत्मनिर्भर भारत” का उद्देश्य स्वदेशी उत्पादन, विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करके भारत को आत्मनिर्भर बनाना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. विश्लेषण करें कि कैसे एक राष्ट्र की संरक्षणवादी व्यापारिक नीतियाँ, जैसे कि आयात टैरिफ, अप्रत्याशित रूप से अन्य देशों के लिए भू-राजनीतिक या आर्थिक अवसर पैदा कर सकती हैं। ट्रम्प प्रशासन की रूस पर टैरिफ नीति के संदर्भ में इस तर्क की व्याख्या करें और भारत के लिए संभावित निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द)

2. “वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधीकरण” की अवधारणा की व्याख्या करें। भारत को “चाइना प्लस वन” रणनीति को सफल बनाने और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे मजबूत करना चाहिए? (250 शब्द)

3. यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और भारत की संतुलित विदेश नीति के बीच के अंतर्संबंधों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या ये प्रतिबंध अप्रत्यक्ष रूप से चीन को लाभ पहुँचा सकते हैं, और यदि हाँ, तो भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए? (250 शब्द)

4. “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत लागू किए गए टैरिफ को केवल आर्थिक उपाय न मानकर भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में समझा जा सकता है। इस कथन की पुष्टि करें और बताएं कि कैसे इस तरह के उपकरण वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर चीन और भारत जैसे देशों के संबंध में। (250 शब्द)

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