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ट्रम्प के टैरिफ के जाल में भारत का निर्यात: जानिए क्या है सरकार की रणनीति

ट्रम्प के टैरिफ के जाल में भारत का निर्यात: जानिए क्या है सरकार की रणनीति

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कुछ भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क (टैरिफ) लगाने की धमकी ने भारतीय निर्यात क्षेत्र में चिंता की लहर दौड़ा दी है। यह संभावित कदम न केवल भारत के व्यापार घाटे को प्रभावित कर सकता है, बल्कि उन उद्योगों के लिए भी बड़ा झटका साबित हो सकता है जो सीधे तौर पर अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। इस अनिश्चितता के बीच, भारत सरकार ने प्रतिक्रिया की है, लेकिन उसका दृष्टिकोण ‘ब्लैंकेट एड’ (सभी के लिए समान सहायता) के बजाय ‘लक्षित राहत’ (targeted relief) पर केंद्रित है। यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों और सरकार की आर्थिक नीतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पृष्ठभूमि: टैरिफ युद्धों का इतिहास और भारत का निर्यात (Background: History of Tariff Wars and India’s Exports)

वैश्विक व्यापार में टैरिफ का उपयोग एक पुराना और विवादास्पद हथियार रहा है। राष्ट्र अपनी घरेलू उद्योगों की रक्षा करने, अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने या दूसरे देशों पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए टैरिफ लगाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, गैट (GATT – General Agreement on Tariffs and Trade) और बाद में डब्ल्यूटीओ (WTO – World Trade Organization) के गठन के साथ, देशों ने व्यापार बाधाओं को कम करने के लिए एक साथ काम किया। हालांकि, हाल के वर्षों में, कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने संरक्षणवादी नीतियों को अपनाया है, जिससे ‘टैरिफ युद्धों’ का एक नया दौर शुरू हुआ है।

भारत, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नाते, वैश्विक व्यापार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है। भारत का निर्यात कई क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिसमें इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, रत्न और आभूषण, और कृषि उत्पाद शामिल हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, और अमेरिकी बाजार में किसी भी प्रकार की बाधा का भारतीय निर्यात पर सीधा और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) नीति ने अक्सर व्यापार असंतुलन को ठीक करने के उद्देश्य से अन्य देशों पर टैरिफ लगाने का मार्ग प्रशस्त किया है। भारत के मामले में, कुछ आयातित वस्तुओं पर उच्च भारतीय टैरिफ को लेकर उनकी शिकायतें रही हैं, जिसके जवाब में वे जवाबी कार्रवाई की धमकी देते रहे हैं।

अमेरिकी टैरिफ के खतरे का विश्लेषण: भारत के निर्यात पर संभावित प्रभाव (Analysis of US Tariff Threats: Potential Impact on India’s Exports)

जब कोई देश किसी विशेष उत्पाद पर टैरिफ बढ़ाता है, तो उस उत्पाद की कीमत अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए बढ़ जाती है। इसके कई परिणाम हो सकते हैं:

  • मांग में कमी: बढ़ी हुई कीमत के कारण, अमेरिकी उपभोक्ता समान या सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों के लिए मांग कम हो जाती है।
  • प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी: यदि अन्य देशों के उत्पाद बिना टैरिफ के अमेरिकी बाजार में प्रवेश कर सकते हैं, तो भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता और भी कम हो जाती है।
  • उत्पादन में गिरावट: निर्यात की मांग में कमी से भारतीय उद्योगों में उत्पादन कम हो सकता है, जिससे कारखानों को नुकसान हो सकता है और छंटनी की स्थिति बन सकती है।
  • रोजगार पर प्रभाव: उत्पादन में कमी सीधे तौर पर रोजगार को प्रभावित करती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
  • व्यापार घाटे पर प्रभाव: यद्यपि टैरिफ का उद्देश्य अक्सर व्यापार घाटे को कम करना होता है, लेकिन कभी-कभी यह आयातकों को नए स्रोत खोजने या घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है, जिसके जटिल परिणाम हो सकते हैं।
  • आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान: यदि भारतीय सामानों को अमेरिकी बाजार से बाहर कर दिया जाता है, तो अमेरिकी कंपनियों को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी होगी, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान आ सकता है।

उदाहरण: मान लीजिए, अमेरिका ने भारतीय स्टील पर 25% टैरिफ लगा दिया। इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय स्टील की कीमत बढ़ जाएगी। अमेरिकी निर्माता जो भारतीय स्टील खरीदते थे, वे या तो यूरोपीय संघ या कनाडा जैसे देशों से स्टील खरीदेंगे (जहां टैरिफ नहीं है) या अपने स्वयं के उत्पादन को बढ़ाएंगे। इसका मतलब है कि भारतीय स्टील निर्माताओं को अमेरिकी बाजार में अपना हिस्सा खोना पड़ेगा।

सरकार की प्रतिक्रिया: ‘लक्षित राहत’ की रणनीति (Government’s Response: The ‘Targeted Relief’ Strategy)

अमेरिकी टैरिफ की धमकी के जवाब में, भारत सरकार का दृष्टिकोण ‘ब्लैंकेट एड’ (सभी को समान सहायता) की नीति से अलग है। इसका मतलब है कि सरकार उन उद्योगों या क्षेत्रों को प्राथमिकता देगी जो सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, न कि सभी निर्यातकों को एक साथ राहत पैकेज देगी। इस रणनीति के पीछे कई कारण हैं:

  • संसाधनों का कुशल उपयोग: सरकार के पास सीमित संसाधन होते हैं। लक्षित सहायता यह सुनिश्चित करती है कि ये संसाधन उन लोगों तक पहुँचें जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
  • बाजार संकेतों को विकृत न करना: ‘ब्लैंकेट एड’ उद्योग को यह संदेश दे सकता है कि सरकार हमेशा हस्तक्षेप करेगी, जिससे वे बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए कम प्रेरित होंगे। लक्षित सहायता उन लोगों को बचाती है जो अन्यथा जीवित रह सकते थे, लेकिन जिनका व्यवसाय संरचनात्मक समस्याओं से ग्रस्त है।
  • नीतिगत विवेक: सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह अपनी नीतियों के माध्यम से बाजार के प्राकृतिक कामकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप न करे।
  • बातचीत की गुंजाइश: ‘लक्षित राहत’ की घोषणा सरकार को अमेरिका के साथ अपनी बातचीत में एक मजबूत स्थिति प्रदान करती है। यह दर्शाता है कि भारत अपने निर्यातकों की रक्षा के लिए तैयार है, लेकिन यह कूटनीतिक समाधान भी चाहता है।

‘लक्षित राहत’ के संभावित उपाय:

  • निर्यातकों के लिए क्रेडिट सुविधा: प्रभावित निर्यातकों को रियायती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना ताकि वे अपनी उत्पादन क्षमता बनाए रख सकें।
  • निर्यात प्रोत्साहन: प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निर्यात प्रोत्साहन (जैसे ‘रॉडटीईपी’ – Remission of Duties and Taxes on Exported Products) को उन क्षेत्रों के लिए बढ़ाना जो टैरिफ से प्रभावित हैं।
  • बाजार विविधीकरण सहायता: निर्यातकों को नए बाजारों की तलाश में मदद करना, ताकि वे अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता कम कर सकें। इसमें व्यापार मेलों में भाग लेने, बाजार अनुसंधान आदि के लिए वित्तीय सहायता शामिल हो सकती है।
  • कच्चे माल पर कर में ढील: यदि टैरिफ से प्रभावित निर्यातकों को आयातित कच्चे माल की आवश्यकता होती है, तो उन पर शुल्क कम किया जा सकता है।
  • तकनीकी उन्नयन और अनुसंधान: निर्यातकों को अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए नई तकनीकों को अपनाने या आर एंड डी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना।

चुनौतियाँ और अवसर (Challenges and Opportunities)

यह स्थिति भारत के लिए कई चुनौतियाँ पेश करती है, लेकिन साथ ही अवसर भी प्रदान करती है:

चुनौतियाँ:

  • बढ़ती प्रतिस्पर्धा: वैश्विक बाजार में अन्य देश भारत के प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं, जो अमेरिकी बाजार में अपना हिस्सा बनाए रखने या बढ़ाने के लिए प्रयासरत होंगे।
  • आर्थिक मंदी का खतरा: यदि निर्यात में बड़ी गिरावट आती है, तो यह समग्र आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकती है।
  • कूटनीतिक तनाव: व्यापारिक विवादों से भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं।
  • घरेलू उद्योगों पर दबाव: टैरिफ के कारण निर्यात के अवसर कम होने पर, घरेलू बाजार में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।

अवसर:

  • बाजार विविधीकरण: यह भारत को केवल कुछ प्रमुख बाजारों पर निर्भर रहने के बजाय यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे नए और उभरते बाजारों की ओर देखने का एक मजबूत प्रोत्साहन दे सकता है।
  • घरेलू क्षमता का विकास: अमेरिकी बाजार के लिए उत्पादन को नई तकनीकों या बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों के साथ फिर से तैयार करने का अवसर मिल सकता है।
  • ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति: वैश्विक कंपनियां आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविधतापूर्ण बनाने के लिए ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति अपना रही हैं। भारत इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर उन कंपनियों को आकर्षित कर सकता है जो चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती हैं।
  • समझौतों पर जोर: भारत द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को मजबूत करने या नए समझौते करने के लिए जोर दे सकता है।

केस स्टडी: 2018 में, अमेरिकी सरकार ने चीन से आयातित कुछ वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाया था। इसके जवाब में, कुछ चीनी कंपनियों ने अपनी उत्पादन इकाइयों को वियतनाम और भारत जैसे देशों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया। इसने भारत के लिए विनिर्माण और निर्यात के अवसरों का द्वार खोला। इसी तरह, वर्तमान टैरिफ अनिश्चितता के बीच, भारतीय निर्यातकों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को अनुकूलित करने और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करने के नए तरीके खोजने होंगे।

भविष्य की राह: सरकार और निर्यातकों के लिए आगे क्या? (The Way Forward: What Next for Government and Exporters?)

इस गतिशील परिदृश्य में, भारत को एक बहु-आयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है:

  1. निरंतर कूटनीतिक प्रयास: अमेरिका के साथ व्यापारिक संवाद जारी रखना और टैरिफ हटाने या कम करने के लिए बातचीत करना सर्वोपरि है। भारत को डब्ल्यूटीओ जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का भी उपयोग करना चाहिए।
  2. निर्यात प्रोत्साहन को मजबूत करना: सरकार को ‘लक्षित राहत’ के तहत अपने प्रोत्साहन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे उन उद्योगों तक पहुंचें जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है। RODTEP जैसी योजनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  3. बाजार विविधीकरण पर ध्यान: नए बाजारों की पहचान करना, उन बाजारों में प्रवेश की बाधाओं को समझना और निर्यातकों को वहां पैर जमाने में मदद करना। इसमें नए व्यापार समझौते करना या मौजूदा समझौतों का लाभ उठाना शामिल है।
  4. विनिर्माण क्षेत्र का उन्नयन: भारतीय उद्योगों को अपनी उत्पादकता, गुणवत्ता और नवाचार क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वे वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें। ‘मेक इन इंडिया’ पहल और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं इसमें महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
  5. ‘चाइना प्लस वन’ का लाभ उठाना: भारत को अपनी विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करके और व्यापारिक वातावरण को सुव्यवस्थित करके उन वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करना चाहिए जो अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर ले जाना चाहती हैं।
  6. जोखिम प्रबंधन: निर्यातकों को भू-राजनीतिक जोखिमों और व्यापार नीतियों में बदलावों को समझने और उनके अनुसार अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

निष्कर्ष:

अमेरिकी टैरिफ की अनिश्चितता भारतीय निर्यातकों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, लेकिन यह भारत को अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करने और अपनी निर्यात रणनीति में विविधता लाने का अवसर भी प्रदान करती है। सरकार का ‘लक्षित राहत’ दृष्टिकोण संसाधनों के कुशल उपयोग और बाजार की विकृतियों से बचने का एक समझदारी भरा प्रयास है। निरंतर कूटनीतिक प्रयास, घरेलू विनिर्माण को मजबूत करना और नए बाजारों की खोज करके, भारत इस अनिश्चितता को पार कर सकता है और अपनी निर्यात क्षमता को और बढ़ा सकता है। यह समय है कि भारतीय व्यवसाय नवाचार करें, अनुकूलन करें और वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. हाल के दिनों में, अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा कुछ भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा ‘लक्षित राहत’ (Targeted Relief) का एक संभावित उपाय हो सकता है?

a) सभी निर्यातकों के लिए सीधे नकद हस्तांतरण।

b) प्रभावित उद्योगों को रियायती ब्याज दरों पर ऋण की सुविधा।

c) सभी औद्योगिक क्षेत्रों के लिए करों में सामान्य कटौती।

d) निर्यातकों के लिए आयात शुल्क में एकमुश्त कमी।

उत्तर: b)**

व्याख्या: ‘लक्षित राहत’ का तात्पर्य है कि सहायता विशिष्ट रूप से उन उद्योगों या क्षेत्रों को प्रदान की जाए जो सबसे अधिक प्रभावित हैं। रियायती ब्याज दर पर ऋण प्रभावित निर्यातकों को उनकी उत्पादन क्षमता बनाए रखने में मदद करने का एक लक्षित तरीका है। अन्य विकल्प सामान्य या ‘ब्लैंकेट’ सहायता के उदाहरण हैं।

2. ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति मुख्य रूप से किस उद्देश्य से जुड़ी हुई है?

a) वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना।

b) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना।

c) राष्ट्रीय हितों और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना।

d) विकासशील देशों को सहायता प्रदान करना।

उत्तर: c)**

व्याख्या: ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का मुख्य सार अमेरिकी अर्थव्यवस्था, नौकरियों और उद्योगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना है, भले ही इसके लिए संरक्षणवादी व्यापार नीतियों का सहारा लेना पड़े।

3. निम्नलिखित में से कौन सा टैरिफ बढ़ाने का एक संभावित प्रत्यक्ष परिणाम है?

a) आयातित वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं।

b) घरेलू उत्पादकों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ जाती है।

c) आयातकों के लिए उत्पादन लागत कम हो जाती है।

d) उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग में वृद्धि होती है।

उत्तर: b)**

व्याख्या: टैरिफ बढ़ाने से आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे वे घरेलू स्तर पर उत्पादित समान वस्तुओं की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं। इससे घरेलू उत्पादकों को फायदा होता है।

4. निम्नलिखित में से कौन सा संगठन वैश्विक व्यापार नियमों और विवादों के समाधान के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?

a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

b) विश्व बैंक (World Bank)

c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

d) संयुक्त राष्ट्र (UN)

उत्तर: c)**

व्याख्या: विश्व व्यापार संगठन (WTO) वैश्विक व्यापार को विनियमित करने, व्यापार बाधाओं को कम करने और सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है।

5. ‘चाइना प्लस वन’ (China Plus One) रणनीति का क्या अर्थ है?

a) चीन के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक क्षेत्र विकसित करना।

b) चीन के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए एक नई नीति।

c) आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविधतापूर्ण बनाने के लिए चीन के अलावा एक और देश पर निर्भर रहना।

d) चीनी कंपनियों के लिए उत्पादन लागत कम करना।

उत्तर: c)**

व्याख्या: ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का मतलब है कि कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को केवल चीन पर निर्भर न रखकर, चीन के अलावा किसी अन्य देश (जैसे भारत, वियतनाम) में भी अपनी विनिर्माण या sourcing गतिविधियां स्थापित करती हैं, ताकि जोखिम कम हो सके।

6. भारत के निर्यात के प्रमुख क्षेत्रों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?

a) इंजीनियरिंग सामान

b) फार्मास्यूटिकल्स

c) तेल और गैस का आयात

d) रत्न और आभूषण

उत्तर: c)**

व्याख्या: तेल और गैस का आयात भारत के निर्यात का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह आयात का एक प्रमुख क्षेत्र है। अन्य विकल्प भारत के महत्वपूर्ण निर्यात क्षेत्र हैं।

7. सरकार द्वारा ‘ब्लैंकेट एड’ (Blanket Aid) के बजाय ‘लक्षित राहत’ (Targeted Relief) को प्राथमिकता देने का मुख्य लाभ क्या है?

a) इससे प्रशासनिक लागतें बढ़ जाती हैं।

b) यह सुनिश्चित करता है कि सहायता उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

c) यह बाजार की प्रतिस्पर्धा को हतोत्साहित करता है।

d) यह निर्यातकों को जोखिम लेने से रोकता है।

उत्तर: b)**

व्याख्या: ‘लक्षित राहत’ संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करती है और यह भी सुनिश्चित करती है कि सहायता उन हितधारकों को मिले जो वास्तव में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिससे सहायता का प्रभाव अधिकतम हो।

8. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में ‘टैरिफ’ (Tariff) क्या है?

a) विदेशी कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी।

b) देश के भीतर उत्पादित वस्तुओं पर कर।

c) दूसरे देशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर।

d) सेवा क्षेत्र पर लगाया जाने वाला अप्रत्यक्ष कर।

उत्तर: c)**

व्याख्या: टैरिफ एक प्रकार का कर है जो सरकार द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है, जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना या राजस्व उत्पन्न करना होता है।

9. भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार कौन सा देश है, जिसका उल्लेख अक्सर व्यापार वार्ता में किया जाता है?

a) चीन

b) संयुक्त राज्य अमेरिका

c) यूरोपीय संघ

d) जापान

उत्तर: b)**

व्याख्या: संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, और इसके साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंध अक्सर महत्वपूर्ण चर्चाओं का विषय होते हैं।

10. निम्नलिखित में से कौन सा भारत सरकार की निर्यात प्रोत्साहन योजना का एक उदाहरण है?

a) प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

b) राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान

c) RODTEP (Remission of Duties and Taxes on Exported Products)

d) स्वच्छ भारत अभियान

उत्तर: c)**

व्याख्या: RODTEP (Remission of Duties and Taxes on Exported Products) भारत सरकार की एक योजना है जो निर्यातित उत्पादों पर लगे विभिन्न शुल्कों और करों से छूट प्रदान करके निर्यातकों को प्रोत्साहन देती है। अन्य विकल्प प्रत्यक्ष रूप से निर्यात प्रोत्साहन से संबंधित नहीं हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. अमेरिकी टैरिफ नीतियों के कारण उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है। इस संदर्भ में, ‘लक्षित राहत’ की सरकारी रणनीति का विस्तार से विश्लेषण करें और बताएं कि यह ‘ब्लैंकेट एड’ से कैसे भिन्न है। इस रणनीति के संभावित लाभ और सीमाएं क्या हैं?

2. भू-राजनीतिक और व्यापारिक तनावों के दौर में, किसी देश की आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखने में निर्यात विविधीकरण (Export Diversification) की क्या भूमिका होती है? भारत के लिए अमेरिका जैसे प्रमुख बाजारों पर निर्भरता कम करने के लिए किन रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिए?

3. ‘अमेरिका फर्स्ट’ जैसी संरक्षणवादी व्यापार नीतियों का वैश्विक व्यापार प्रणालियों (जैसे WTO) और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसे परिदृश्य में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपनी व्यापार रणनीतियों को कैसे अनुकूलित करना चाहिए?

4. भारत सरकार द्वारा निर्यातकों को प्रदान की जाने वाली विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं (जैसे RODTEP, PLI) की चर्चा करें और बताएं कि ये योजनाएं भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने में कैसे योगदान करती हैं, खासकर संरक्षणवाद के बढ़ते युग में।

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